Saturday 13 July 2019

टॉयफस बुखार

💐टॉयफस बुखार ----(Typhus Fever)
 यह इतना आम बुखार तो नहीं है फिर भी इसके लिए जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि इसका शुरुआत में इलाज बहुत आसान है लेकिन बाद में बीमारी बढ़ने के बाद इलाज असंभव है । एक बैक्टीरिया  जैसे विषाणु की वजह से होता है। जिसे रीक्टसियल कहते हैं और यह खेतों में होने वाले कीट के काटने से फैलती है । शुरू में केवल बुखार होता है और बाद में शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंग काम करना बंद कर देते हैं ।
एंटीबायोटिक (Doxycycline) से ठीक हो जाता है मरीज ।

Friday 12 July 2019

मच्छरों से होने वाली बीमारियां

मच्छरों से होने वाली बीमारियां :---
^ मलेरिया
^ डेंगू
^ चिकनगुनिया
* मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए व्यक्ति, समाज और सरकार को सबको मिलकर समन्वय के साथ कार्य करना पड़ता है।
* सरकार का काम स्वास्थ्य संबन्धी जानकारियां उपलब्ध करवाना ।
* नगर पालिका व पंचायत का काम साफ वातावरण उपलब्ध करवाना एवम मच्छरों के पैदा होने की जगह अनचाहे पानी को इकट्ठा होने से रोकना
* पारिवारिक जिम्मेवारी घर के अंदर सफाई रखना एवं मच्छरों को पैदा होने से रोकना।
* व्यक्तिगत तौर पर स्वयं को कपड़ों तथा रहन-सहन के तरीके से मच्छरों से काटे जाने से खुद को रोकना।
**मच्छर पैदा होने की जगहें व उनका समाधान ::---------
मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया
* पानी के बहाव में कोई रुकावट तो नहीं ।
* घर में कहीं पर भी बिना मतलब पानी इकट्ठा तो नहीं है।
* पानी के सभी बर्तन नियमित रूप से साफ होते हैं ।
* जमीन में कही खड्डे तो नहीं हैं जहां बरसात का पानी इकट्ठा हो।
* खासतौर पर रफ्रिजरेटर एवम ए. सी. में पानी इकट्ठा न होने दें ।
* एयर कूलर में पानी नियमित रूप से सप्ताह में दो बार पूरी तरह से साफ करके पानी बदलें।
व्यक्तिगत सावधानियां:---
* पूरी बाजू की कमीज व पायजामा या पैंट पहनें।
* सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें
* एयकण्डेशनर भी मलेरिया , डेंगू व चिकनगुनिया के मच्छरों से सावधानी देता है।
* मच्छरों को दूर करने वाली क्रीम भी लाभकारी है । यह केवल शरीर के खुले भाग पर ही लगाएं।
* छोटे बच्चों पर मच्छरों को भगाने वाली क्रीम नहीं लगानी चाहिए।
* जख्मों पर भी मच्छर भगाने वाली क्रीम नहीं लगानी चाहिए ।
* बीमार होने की स्थिति में डॉक्टर को शीघ्र ही सम्पर्क करें ।

जल जनित रोग

जल जनित रोगों की रोकथाम:---
उदाहरण-
- दस्त
- ख़ूनीदस्त
- हैजा
- टाइफाइड
- पीलिया(हेपेटाइटिस)
- पोलियो
- पेट के कीड़े आदि
रोकथाम:--------
* फ़िल्टर किया हुआ/ उबाले हुए पानी का प्रयोग करें ।
* खाना खाने से पहले हाथ अवश्य धोएं।
* बर्तनों की नियमित रूप से साफ करें
* अच्छी तरह धोकर ही फल खाएं और खाना अच्छी तरह ही पका कर खाना चाहिए।
* नाखूनों को नियमित रूप से काटें और साफ रखें।
* साफ शौचालय का प्रयोग करें ।

नोट::-
ऐसा माना गया है कि जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा साफ या फ़िल्टर किया गया पानी ही बीमारियों को दूर करने में लाभ दायक होता है , यदि जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिया गया पानी शुद्धता के मापदंड पर उचित नहीं है तो भी पारिवारिक या व्यक्तिगत तौर पर साफ(फिल्टर) किया गया पानी बीमारियां दूर करने में ज्यादा लाभदायक नहीं रहता । पीने के पानी और रोजमर्रा की जरूरत के पानी को अलग -अलग रख पाना आम व्यक्ति के लिए बहुत ही कठिन है।

टाइ फ़ायड बुखार

💐टाइफायड बुख़ार:----
कारण --
बैक्टीरिया --- Salmonella Typhi
 यह खाने या पानी के साथ हमारे शरीर में प्रवेश करता है । इसके उपरांत हमारी आंतों में स्थित सफेद ग्रन्थियों में बढ़ना शुरू हो जाता है । शरीर में प्रवेश करने के लगभग सप्ताह के बाद ही हमारे खून से होता हुआ शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंच जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति को बुखार होने शुरू होता है जो शुरू में थोड़ा होता है और पांच-सात दिन के बाद तेज बुखार होने लगता है । व्यक्ति को बुखार के साथ पेट में दर्द , कब्जी होना, दस्त होना , सोचने समझने की शक्ति में कमी आ जाना , नींद में बड़बड़ाना जैसे लक्षण होते हैं।
     समय पर इलाज न करने की स्थिति में दूसरे और तीसरे सप्ताह में मरीज की हालत ज्यादा गम्भीर होती है। उचित इलाज से सभी मरीज ठीक हो जाते हैं । इलाज न होने की स्थिति में इस बीमारी की मियाद तीन महीने है , लेकिन उस स्थिति में लगभग 20 प्रतिशत मरीज अपनी जान गंवा देते हैं ।
   **हमारे समाज में  इस बीमारी के प्रति बहुत भ्रांतियां हैं:---- 
बुखार -- बुखार महसूस होने की स्थिति में बुखार को थर्मामीटर द्वारा अवश्य देखें। हर बुखार का अनुभव बुखार नहीं है और हर बुखार टाइफायड नहीं है। यदि एक बार टाइफायड हो जाये तो तीन माह के अंदर तो एक बार हो सकता है ,उसके उपरांत तीन साल तक दोबारा टाइफ़ायड दोबारा हो ऐसा बहुत ही कम होता है।
 टाइफायड का इलाज 15 दिन तक चलता है या कम से कम सात दिन तक बुखार उतरने के बाद तक। इसमें कई बार ग्लुकोस या ग्लुकोस के रास्ते से दवाइयां भी देनी पड़ती हैं ।टाइफ़ायड में मानसिक लक्षण भी होते हैं । लेकिन हर मानसिक बीमारी टाइफ़ायड नहीं है ।
💐विडाल टैस्ट(Widal Test)-----

डॉक्टरी तौर पर मान्य नहीं है। भारत में तो किसी का भी करवा लो , यहां तक कि यदि बुखार भी नहीं है तो भी पॉजिटिव आ जायेगा।
कारण-- एक तो टैस्ट की वैज्ञानिक मान्यता पूरी नहीं है और दूसरा करने का तरीका बहुत ही कम लैबोरेटरियों में उचित है।
💐टाइ फ़ायड का निदान कैसे करें----
* बुखार होने की स्थिति में बुखार तालिका बनाएं।
* बुखार का कारण जाने बिना एंटीबायोटिक दवाई न लें।
* ब्लड कल्चर ही टाइ फ़ायड का पक्का टैस्ट है।
* यह 90 प्रतिशत से ज्यादा मरीजों में बीमारी का निदान करने में पूरी तरह से सहायक है ।
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Tuesday 9 July 2019

अवसाद को अभिव्यक्ति चाहिए, अवरोध या दमन नहीं।

साभार --ड्रीम 2047
अवसाद को अभिव्यक्ति चाहिए दमन या अवरोध नहीं( कुछ भाग )

अवसाद एक प्रकार का मानसिक असंतुलन होता है जो मुख्य रूप से इंसान के मूड या मनोदशा से संबन्धित होता है और यह विश्व भर में तेजी से फैलता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन या WHO  द्वारा प्रदर्शित आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि सम्पूर्ण विश्व में 30 करोड़ (300 मिलियन) से अधिक लोग अवसादग्रस्त हैं और यह संख्या 2005 से लेकर 2015 के बीच में18प्रतिशत  बढ़ी है। इसे मानव स्वास्थ्य के प्रति गंभीर चिंता के रूप में लेते हुए WHO  ने इस वर्ष 7 अप्रैल को मनाए जाने वाले विश्व स्वास्थ्य दिवस की विषयवस्तु (थीम) को ही ‘अवसाद’ रख दिया थाए और अवसाद के ऊपर 1 वर्ष का वैश्विक अभियान (ग्लोबल कैम्पेन) भी शुरू किया है।
परिचय
पिछले कुछ दशकों में देश की अर्थव्यवस्था शारीरिक-कार्य आधारित से हटकर मानसिक-कार्य आधारित की ओर रुख कर चुकी है। जहां दिमागी गतिविधियां, शारीरिक गतिविधियों पर हावी हो चुकी हैं और ये ही विश्व की अर्थव्यवस्था को ऊंचाई तक ले जा रही हैं। अब हम एक ऐसे दशक से गुजर रहे हैं जहां मानसिक-कार्य आधारित अर्थव्यवस्था भी रूप बदल कर डिजिटल-गैजेट आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है जहां कृत्रिम बुद्धि एवं ज्ञान, काल्पनिक वास्तविकता, रोबोटिक्स आदि ही मुख्य प्रेरक शक्ति होंगे और ये मानव का स्थान लेंगे। निश्चित रूप से इन सभी विकास कार्यों ने विश्व की अर्थव्यवस्था को नए आयाम तक पहुंचाया है लेकिन इसमें मानव स्वास्थ्य को दांव पर लगाया गया है या हम कह सकते हैं किमानव स्वास्थ्य की कीमत पर अर्थव्यवस्था को ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया है। प्रत्येक मानव का शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से स्वस्थ्य एवं सुखी होना ही स्वास्थ्य की वास्तविक परिभाषा है जिसे WHO  ने ही परिभाषित किया है। शारीरिक रोगों के लिए पर्याप्त
चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन मानसिक रोगों के लिए उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं पर्याप्त नहीं है, विशेषकर भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 13 प्रतिशत  से अधिक लोग किसी न किसी तरह के मानसिक असंतुलन से पीड़ित हैं और 80-90ः मामलों मे ये लोग बिना इलाज के ही रहते हैं। ऐसा या तो जागरूकता के अभाव में होता है अथवा पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में। भारतीय सरकार इस मुद्दे पर बहुत गंभीर है और 27 मार्च 2017 को लोकसभा में इससे संबन्धित एक बिल ‘मेडिकल हैल्थ केयर बिल-2016ए को पास किया गया है। इस बिल में मानसिक बीमारी को इस तरह से परिभाषित किया गया है ‘‘मानसिक बीमारी वह होती है जब किसी व्यक्ति के सोचने, समझने, ध्यान देने या याद रखने की क्षमता अथवा उसकी मनोदशा
जो प्रमुख रूप से निर्णय लेने, सच पहचानने, जीवन की सामान्य जरूरतों को पूरा करने की क्षमता अथवा उसके स्वभाव में सहायक होती है, में यदि बहुत बड़ा असंतुलन पाया जाता हो। आम तौर पर मानसिक स्थितियां शराब और नशे की लत से जुड़ी होती है। इस बिल में कुछ अद्भुत प्रावधान किए गए हैं जैसे मेंटल हैल्थकेयर में भारत के समस्त नागरिकों को पहुंच का अधिकार, इसे भारत सरकार द्वारा चलाया जाना व आर्थिक अनुदान मिलना, सबके साथ बराबरी का व्यवहार व अमानवीय व्यवहार से सूरक्षा; और कानूनी सुविधाओं तक सबकी पहुंच। इसके अलावा यह बिल आत्महत्या के प्रयास को अपराध की क्षेणी से अलग करता है जबकि पहले आत्महत्या के प्रयास को भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध माना जाता था। भारत में अवसाद, मानसिक बीमारियों के कुल मामलों में से एक तिहाई लोगों में देखा जाता है। अतः इस पर उचित ध्यान देने की आवश्यकता है और इसकी चिकित्सा के बारे में अध्ययन एवं प्रावधान विकसित करने की भी अत्यंत आवश्यकता है।
अवसाद क्या है?
अवसाद एक मानसिक स्थिति है जिसमें लोग नकारात्मक विचारों के आदी हो जाते हैं अथवा उनकी स्मृति में स्थित पहले की किसी घटना या परिस्थिति  के बारे में ही सोचते है या बातें करते है और जीवन के प्रति विश्वास खो देते हैं। ये सब उनके व्यवहार में भी झलकता है जैसे भूख कम लगना, नींद ठीक से न आना, किसी काम में मन ना लगना ध्यान भटकना और दैनिक कार्यों में रुचि न लेना आदि। एक अवसादग्रस्त व्यक्ति लगातार दुखी ही रहता है और लोगों से मिलना जुलना उसे पसंद नहीं आता है। अत्यधिक अवसाद की स्थिति में रोगी के भीतर कभी कभी आत्महत्या की ओर रुझान भी बढ़ता हुआ देखा गया है।
अवसाद के कारण
वास्तव में अवसाद का कोई कारण नहीं है बल्कि यह व्यक्ति के स्वभाव या व्यवहार पर निर्भर होता है। जीवन में घटी कोई अप्रिय घटना जैसे प्यार में धोखा या पारिवारिक सम्बन्धों में धोखा, कैरियर में असफलता, किसी प्रियजन की मृत्यु, संवेदनाओं का आहत होना, सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आना आदि कई ऐसे कारण हैं जो किसी व्यक्ति को अवसाद की ओर ले जाते हैं। आम तौर पर एक व्यक्ति तब अवसाद में आता है जब उसकी उम्मीदें पूरी नहीं हो पाती हैं या उनमे वह असफल हो जाता है, लेकिन उसे वह पाने की पूरी चेष्ठा करता है जिससे उसके मन में नकारात्मक विचार आते हैं और ये ही आगे चलकर चिंता और अवसाद का कारण बनते हैं। आधुनिक समय में स्मार्ट फोन, कम्प्यूटर, सोशल मीडिया या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर अत्यधिक निर्भरता भी लोगों को सामाजिक मेल मिलाप एवं पारिवारिक रिश्तों से दूर ले जा रही है जिसके परिणामस्वरूप मानसिक असंतुलन के मामले अधिक देखने में आ रहे हैं जैसे असंतुलित कार्य करना, ध्यान भटकना, किसी चीज में ध्यान केन्द्रित न कर पाना, अधिक उत्साहित हो जाना, अधिक गुस्सा आना आदि। इस डिजिटल प्रेरित मनोदशा असंतुलन से अवसाद, डिमेन्शिया (स्मरण क्षमता में कमी) और अन्य कई प्रकार की मानसिक बीमारियां होती हैं।
प्रारम्भिक अवस्था में नकारात्मक भावनाओं से मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न होता है जिसकी वजह न्यूरो केमिकल्स में आने वाले बदलाव होते हैं। लेकिन इनकी ओर ध्यान न देने की वजह से व्यक्ति को तनाव, चिंता और बेचैनी, क्लिनिकल डिप्रेशन या पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रेस डिसोर्डर (PTSD ) हो जाता है। यदि यह बहुत दिनों तक बिना चिकित्सा के चलता रहता है तो अवसाद के कारण बहुत से न्यूरोकेमिकल और न्यूरो-ऐनाटोमिकल परिवर्तन हमारे मस्तिष्क में होते हैं जो आगे चलकर व्यक्ति को असंतुलित संज्ञानात्मक कार्य तथा विचलित मानसिक स्थिति की ओर ले जाते हैं। अंतिम चरण में अवसाद से होने वाले लगातार नकारात्मक आवेगों के कारण व्यक्ति के भीतर आत्महत्या करने जैसे भी विचार आने लगते हैं। शुरुआती दौर मे जब व्यक्ति तनाव से होकर गुजरता है तब परिवार के लोगों की उचित सलाह और देखभाल के द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन एक बार जब
यह स्थिति बिगड़ जाती है तब हमें मनोचिकित्सक के परामर्श एवं चिकित्सा की आवश्यकता होती है। हालांकि
अवसाद एक न्यूरोबायोलोजिकल घटना है जिसकी वजह से हमारे शरीर के भीतर बहुत से न्यूरोकेमिकल,
न्यूरोऐनाटोमिकल और हार्मोनल परिवर्तन होते हैं। अवसाद की न्यूरोबायोलोजी को समझने के लिए यह
आवश्यक है कि हम मानव मस्तिष्क के बारे में संक्षिप्त रूप में जाने।
अवसाद के रोकथाम के उपाय एवं उपचार
यह अत्यंत आवश्यक है कि आप ऐसे किसी भी व्यक्ति की बदलती मनोदशा के प्रति पूर्णतः सचेत रहें। उचित देखभाल और जागरूकता के कारण अवसाद या अन्य मानसिक रोगों से लोगों को दूर रखा जा सकता है। हमारी शारीरिक गतिविधियां एक लयबद्ध तरीके से चलती हैं या शरीर की प्राकृतिक घड़ी के अनुसार चलती रहती हैं। अतः हमें एक अनुशासनपूर्ण जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए जिसमें सोने और जागने का समय निश्चित हो।
1. देर रात तक व्यस्तता और इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स पर अत्यधिक निर्भरता से भी बचना चाहिए।
2. हमें अपने परिवार के लोगों और मित्रों के साथ अच्छा समय बिताना चाहिए। सोशल मीडिया की अपेक्षा लोगों से मिलने जुलने को अधिक महत्व देना चाहिए।
3. शराब एवं नशे की लत से दूर रहना चाहिए।
4. नियमित व्यायाम, योगाभ्यास और ध्यान को हमारे दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए। हमें रोज कम से कम 30 मिनट तक इन अभ्यासों पर समय बिताना चाहिए।
5. हमें बिना शर्तों की खुशियों के साथ जीने का अभ्यास करना चाहिए और हमें यह एहसास होना चाहिए कि बाहरी घटनाओं पर किसी का नियंत्रण नहीं होता है, अतः हमें किसी भी परिस्थिति को संतोष के साथ अपना लेना चाहिए।
6. लगातार खुश होने की इच्छा रखने से ही व्यक्ति मूड-संबन्धित असंतुलनों से दूर रह सकता है। इस तरह से हमें खुशियों की आदत या खुश रहने की आदत डाल लेनी चाहिए और जीवन के प्रत्येक क्षण को कृतज्ञता के दृष्टिकोण के साथ जीना चाहिए।
7. यदि कोई व्यक्ति दुख महसूस करता है तो वह स्वयं को कुछ न कुछ रचनात्मक कार्यों जैसे बगीचे में पेड़ पौधों के साथ समय बिताना और उनकी देखभाल करना, अच्छा संगीत सुनना, नई जगहों पर घूमने जाना, प्रेरणा दायी पुस्तकें पढ़ना, प्रेरणात्मक वीडियो देखना और मस्तिष्क को नया कार्य देना आदि में व्यस्त कर सकता है। इस तरह के कार्यों का लगातार अभ्यास करने से नकारात्मक संवेदनाओं का दमन होगा और इसके बदले आत्म विश्वास, आत्म गौरव और सकारात्मक विचारों का जन्म होगा।
8. जब लगातार नकारात्मक विचार दिमाग में चलते रहते हैं तो व्यक्ति को स्वयं उसे समझ लेना चाहिए और अपना ध्यान वहां से हटकर सकारात्मक विचारों तथा जीवन के महत्वपूर्ण लक्ष्य की तरफ केन्द्रित करने की कोशिश करनी चाहिए।
9. समाज में इस बात की जागरूकता जरूर फैलानी चाहिए कि किसी भी तरह की मानसिक बीमारी किसी भी अन्य शारीरिक बीमारी की तरह ही होती है और उचित इलाज एवं देखभाल से इसे पूर्णतः ठीक किया जा सकता है। इसे छिपाना नहीं चाहिए और न ही इसे किसी प्रकार की शर्म की बात समझना चाहिए, बल्कि इसका इलाज भी संभव है यह मानते हुए तुरंत डॉ से संपर्क करना चाहिए। अवसाद से ग्रसित रोगी को परिवार वालों की उचित देखभाल की आवश्यकता होती है।
10. जब क्लीनिकल या नैदानिक लक्षण दिखाई देने लगें तब आपको किसी मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए और उसके निर्देशानुसार नियमित रूप से दवाएं लेनी चाहिए। केवल एक प्रशिक्षित मनोचिकित्सक के प्रेसक्रिप्शन या पर्चे पर ही दवाएं लिखी या बदली या उनकी डोज में परिवर्तन किया गया स्वीकार करना चाहिए अन्यथा नहीं।
11. लगातार व्यायाम का अभ्यास, योगाभ्यास, गहरी सांसे लेना छोड़ना, और अन्य विश्राम अभ्यास जैसे संगीत, कला, ध्यान आदि करने चाहिए जिससे अवसाद के रोगी जल्दी ही ठीक होने लगते हैं। लेकिन ये सभी अभ्यास उचित दवाओं के साथ साथ करने चाहिए।
12. कई प्राकृतिक उत्पाद और अभ्यास भी अवसाद को कम करने में मदद करते है जैसे सूर्य की रोशनी में बैठने से सिरोटोनिन का स्तर बढ़ता है, दूध भी सिरोटोनिन का एक अच्छा स्त्रोत है। गहरी सांस लेना-छोड़ना और प्राणायाम का अभ्यास भी चिंता और तनाव के स्तर को घटता है। इसका कारण है कि इनसे एंडोर्फिंस और
ऑक्सीटोसिन का रिसाव होता है और कोर्टिसोल का स्तर घटाता है। पानी पीना, खट्टे फल जैसे संतरा, स्ट्राबेरी आदि खाने से भी मनोदशा या मूड अच्छा रहता है और अवसाद के स्तर में कमी आती है। इस तरह से यह पूरी तरह से ठीक हो सकने वाला असंतुलन है और इसे केवल उचित चिकित्सा और देखभाल की ही आवश्यकता होती है। अवसाद से जो व्यक्ति ग्रसित है या जिस व्यक्ति को तनाव महसूस हो रहा है वह अपने विचार अवश्य व्यक्त करे और स्वयं को किसी सामाजिक गतिविधि अथवा रचनात्मक कार्य में अवश्य व्यस्त रखे। इस प्रकार
हम कह सकते हैं कि अवसाद को अभिव्यक्ति चाहिए, अवरोध या दमन नहीं।

लेखक
अनुराग त्रिपाठी
अनुवाद --श्रीमती संगीता चतुर्वेदी

Sunday 7 July 2019

बुखार से संबंधित जानकारियां

बुखार से संबंधित जानकारियां
बुखार क्या है ?
मनुष्य का सामान्य तापमान 36 . 8 प्लस माइनस 0 . 4 या 98 . 4 प्लस माइनस 0 . 7 डिग्री f  होता है | इससे ऊपर मुँह के अंदर का तापमान बुखार माना जायेगा |
सामान्य तापमान क्या है ? और यह क्यों है ? 
* जैविक प्रक्रियाएं सबसे जटिल रसायनिक प्रक्रियाएं होती हैं | 
* ज्यादा विकसित जीवों में ( जैसे की स्तनधारी जीव ) ये ज्यादा जटिल होती हैं | 
* सभी प्रकार की रसायनिक प्रक्रियाओं के इष्टतम रूप के लिए एक उचित वातावरण जरूरी है | 
* तापमान इन रसायनिक प्रक्रियाओं के लिए वातावरण का सबसे महत्व पूर्ण हिस्सा है | 
* ये इष्टतम तापमान ही इन रसायनिक प्रक्रियाओं के लिए सबसे उचित है -सामान्य तापमान माना जायेगा |  मनुष्य का सामान्य तापमान 36 . 8 प्लस माइनस 0 . 4 डिग्री सेंटीग्रेड या 98 . 4 प्लस माइनस 0 . 7 डिग्री f  होता है | 
मनुष्य तापमान को सामान्य कैसे रखता है ?
*मानव मष्तिष्क का एक हिस्सा जिसे हाईपोथैलेमस कहते हैं -- थर्मोस्टैट के रूप में काम करता है , यानि कि एक सामान्य तापमान को बनाये रखना | 
* यह कार्य वह शरीर द्वारा ऊष्मा उत्पादन तथा ऊष्मा निकासी के संतुलन को बना कर करता है | 
* शरीर में ऊष्मा उत्पादन मुख्य रूप से मांसपेशियों के काम के दौरान एवं जिगर द्वारा होती है | 
* ऊष्मा निकासी त्वचा द्वारा सतह से सीधी एवं पसीने से होती है |  
* कुछ ऊष्मा हम साँस द्वारा भी शरीर से निकालते हैं | 
* इसी ऊष्मा का उत्पादन व निकासी का संतुलन ही तापमान को सामान्य बनाये रखता है |  
शरीर के तापमान मापने का सही तरीका क्या है ?
* शरीर का तापमान थर्मामीटर द्वारा ही नापा जाता है| 
* थर्मामीटर को हमेशा धो कर ही प्रयोग करें | 
* तापमान नापने से पहले थर्मामीटर के पारे को झटका देकर नीचे उतार लें | 
* फिर थर्मामीटर को कम से कम दो से तक जीभ के नीचे  रखें | 
* और बुखार देख लें | 
* बच्चों एवं बेहोश मरीजों में बगल में भी बुखार देखा जा सकता है एवं जो तापमान आये उसमें एक डिग्री फारंहाईट जोड़ लें | 
* आजकल डिजिटल थर्मामीटर ज्यादा प्रयोग में होते हैं |  जिसमें पारा नहीं होता सीधा इस्तेमाल किया जा सकता है |  
बुखार क्यों होता है ?
* बुखार कई प्रकार के हानिकारक उत्तेजक के खिलाफ शरीर की एक प्रक्रिया है | 
* हानिकारक तत्वों से हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली उत्तेजित हो जाती है ताकि उसके दुष्प्रभाव को दूर किया जा सके | 
* बुखार भी उसी प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण काम है -- उस हानिकारक तत्व को ख़त्म करने के लिए | 
* परन्तु कई बार यह संतुलन नहीं बन पाता एवं बुखार ही स्वयं के शरीर पर दुष्प्रभाव  डाल देता है |  


                                                   

पीलिया ( Infective Hepatitis):-

पीलिया ( Infective Hepatitis):-
1 कारण एक वायरल इन्फ़ेक्शन।
2. मुख्य रूप से चार प्रकार A,B,C,E
3. B एवम C खून या खून के अंश से शरीर में प्रवेश करते हैं।
4. A एवम E खाना या पानी से शरीर में प्रवेश करते हैं ।
पीलिया में सबसे पहले मरीज को थोड़ा बुखार होगा, भूख लगनी कम हो जाएगी। उल्टी आएगी और उसके बाद पेशाब पीला हो जाएगा और आंखों में एवम शरीर में पीलापन आने लगेगा । बीमारी के लिए कोई दवाई नहीं है। बीमारी का अपना समय आमतौर पर एक माह से तीन माह तक है।इस दौरान मरीज की खुराक पानी एवम लवणों की कमी होने को रोकना है। ऐसी खुराक दी जाती है जिसमें वसा बहुत ही कम हो, प्रोटीन ऐसे हों जो उचित श्रेणी के हों और कार्बोहाईड्रेट की मात्रा अधिक हो । जैसे कि- फल ,सीत, उबले चावल, आलू, फलों का जूस इत्यादि। दूध भी मलाई उतरा हुआ ले सकते हैं ।यदि मरीज मूंह से अपनी खुराक पूरी नहीं कर पा रहा तो गुलुकोस चढ़ाना अनिवार्य हो जाता है ।किसी भी प्रकार के जोहड़ में नहाने का कोई फायदा नहीं है।
B एवम C प्रकार का पीलिया कई बार लम्बे समय के लिए शरीर में ग्रस्त कर जाता है। जो आगे जाकर हानिकारक सिद्ध हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञ द्वारा इसका इलाज संभव है।
शिक्षा:-
पीलिया होने की स्थिति में पीलिया के प्रकार को जाना जाए। A एवम E में मरीज की खुराक और पानी का खास ख्याल रखा जाए।कभी कभी पीलिया व्यक्ति के दिमाग को भी प्रभावित कर देता है । यहां तक कि व्यक्ति बेहोश हो जाये , और उसकी जान जोखिम में पड़ सकती है।इसलिए नियमित रूप से डॉक्टर को दिखाना जरूरी है।
जन स्वास्थ्य अभियान हरियाणा ।