Wednesday 25 September 2019

Haryna education and health

आज हरियाणा में चुनाव के दौर में जनता की तरफ से राजनितिक पार्टियों से अपेक्षाएं
आज कल की भयभीत करने वाली राजनीती व शंकट ग्रस्त आर्थिक हालातों के दौर में चनाव के वक्त जनता के वास्तविक मुद्दों पर बातचीत करना बहुत जरूरी है | इस वक्त शिक्षा और स्वास्थ्य जनता के दो अहम मुद्दे हैं ---
1. शिक्षा, विशेष कर स्कूली शिक्षा
  • शिक्षा को समीक्षा के शीर्ष पर रखने का एक खास कारण है । शिक्षा मानव के लिये समाज में व आर्थिक जगत में जगह बनाने की सबसे महत्त्वपूर्ण सीढी है ।
  • वो लोग जो बहुत बड़ी पूंजी के मालिक हैं और बैठे बिठाये ऐसो आराम या रुतबा पा सकते हैं वो भी लैजिटिमेशी के लिये नामी शिक्षण संस्थानों की डिग्री हाँसिल करते हैं । सामंतवादी नोबिलिटी जो अपने वंशानुगत धन पर  धार्मिक सामाजिक मान्यताओं के बल पर मोज मस्ती करती थी वहीं पूंजीवादी आका मेरिटोक्रेसी की दुहाई देकर कमेरे लोगों के आंशिक परिश्रम को हड़पते हैं । पूंजीवादी सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक आईडियोलोजी मैरिटोक्रेसी के दर्शन के माध्यम से राज करती है ।


  • मजदूरों व सीमान्तर किसानों के बच्चों के लिये शिक्षा का महत्व और भी ज्यादा है क्योंकि उनके पास और कोई साजो सामान नही जिसके बल पर वो अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य उज्ज्वल बना सकें ।
  • आजादी के बाद और खासकर हरियाणा के स्टेट के रूप में अलग अस्तित्व में आने के बाद में स्कूली शिक्षा की अच्छी शुरूवात हुई थी |गौर तलब है कि प्रदेश में स्कूली सिस्टम कामन स्कूलों (Universal School system) की तर्ज पर ही शुरू हुआ, सरकार की चेष्टा थी कि सभी स्कूलों में एक समान सुविधाएँ हों । यदि आने वाले दशकों में स्कूली शिक्षा वैसे ही सरकारी कर्तव्यों में रहती तो आज हमारे स्कूल विश्व स्तर के होते |नतीजतन आज के दिन 50% से भी ज्यादा छात्र सरकारी स्कूलों से पलायन कर निजि स्कूलों में जा चुके हैं, जहाँ उनके किसान मजदूर व निम्न मध्यम वर्ग के माता पिता को असहनीय मोटी फीस देनी पड़ रही है और वोभी ज्यादातर निजि स्कूलों के हर लिहाज से घटिया यानि सब सटैन्डर्ड है शिक्षा स्तर के लिये|
समाधान क्या हो सकते हैं :-
  • पब्लिक मोर्चा समस्या पर गहन विचार के बाद ईस निश्कर्ष पर पहूँचा है और मेरी भी व्यक्तिगत राय है कि हरियाणा की पीछले 50 सालों की प्रगति व आज की आर्थिक स्थिति (जब राज्य की SGDP 700,000 करोड़ तक पहुँच चुकी है व यहाँ की प्रतिव्यक्ति आय 205'00 रुपये  सालाना है) के हिसाब से प्रदेश के हर बच्चे के लिये सरकारी खर्च से चलने वाले एक जैसे उच्चतम स्तर के स्कूल (also called common schools or universal schools) उपलब्ध कराये जा सकते हैं ।
  • ऐसे टाप क्लास स्कूल परचूर.मात्रा में सिर्फ किताबी ज्ञान ही नही बल्कि खेल कूद, संगीत,गाना बजाना, सांग, फिल्म व जीवन यापन के लिये सभी प्रकार के हाथ के हूनर भी बच्चों को दे सकेंगे ।
  • टाप क्लास कामन स्कूली अनुभव बच्चों में किताबी ज्ञान के साथ सामाजिकता की भावना भरने व उनको स्वस्थ एवमं बलिष्ठ नागरिक बनाने में मील का पत्थर शाबित होंगे । प्रदेश के लिये  आर्थिक व तकनीकी दृष्टि से जापान व योरोपीय देशों की कतार में जगह बनाने में अहम भूमिका अदा करेंगे ।
  • समान स्कूल का अनुभव बच्चों को जाति उँच-नीच, लिंगभेद व साम्प्रदायिक भेदों के संकुचित दायरे से बाहर निकालकर उनको सच्ची देशभक्ती से ओतप्रोत भी करेगा ।
उच्च शिक्षा: प्रदेश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी ज्यादातर सार्वजनिक व पब्लिक बजट से चलने वाली शिक्षा व्यवस्था होना लाज्मी है । सरकारी क्षेत्र के कालेजों व विश्वविद्यालयों में प्रयाप्त रगूलर प्राध्यापकों की भर्ती करके सभी सब-सटैन्डर्ड निजि संस्थानों बन्द किया जाना चाहिये ।
  • सभी शिक्षा संस्थानों में सामाजिक महत्व के अनुसंधान करने वाले संकाय जोड़े जाने की आवश्यकता हैं । ईन सभी संस्थानों को सिर्फ शिक्षाविदों द्वारा (अध्यापकों, छात्रों, उनके अभिभावकों व फील्ड में काम कर रहे गण्य मान्य लोगों की सलाह से) बिना किसी  पार्टी प्रेरित राजनितिक दखल के संचालित किया जाना चाहिए ।
सरकार की मदद से चलने वाले व शिक्षण संगठनों द्वारा संचालित कालेजों की मदद बन्द करने की हाली सरकारी सोच का पब्लिक मोर्चा पूरजोर विरोध करता है ।

दूरगामी परिणाम
  • पब्लिक मोर्चे का मानना है कि उच्चतम कोटी के कामन स्कूलों की व्यवस्था व उच्च शिक्षा के लिये दिये गये ऊपरलिखित सुधारों से प्रदेश में युवाओं के लिये 3-4 लाख नये व रैगुलर रोजगार भी सृजित होंगे और अगले 15 साल में हमारा प्रदेश पढाई,  रिसर्च व आर्थिक विकास में, विकसित देशों के साथ मेज पर बैठ सकेगा ।
  • आखिरकार युनिवर्शल स्कूल सभी वर्गों के बच्चों के विकास के लिये लेवल पलेईंग फील्ड तैयार करेंगे ।
  • कामन व गुणवत्ता पूर्ण स्कूलों का अनुभव बच्चों को संवेदनशील नागरिकों में परिवर्तित करने का और फलस्वरूप समाज में हर तरह के सामाजिक न्याय (औरत मरद की बराबरी की भावना, जाति उत्पीणन का उन्मूलन व धार्मिक द्वेस का अन्त) को परमोट करने का सबसे कोस्ट ईफैक्टिव माध्यम है ।
2. स्वास्थ्य सेवायें-युनिवर्शल स्वास्थ्य सेवा
  • आदमी के जीवन में सेहत की देखरेख व चिकित्सा को सविंधान के जीने के अधिकार को साक्षात करने की दृष्टि से देखा जाना चाहिए । जब तक आधुनिक मैडिकल सांईस वजुद में नही थी तब तक मृत्यु दर अनियंत्रित जन्म दर के बराबर थी,  जीवन अनिस्चितता से भरा पड़ा था, यानि जीने. का अधिकार तरह तरह बीमारियों से लड़ाई करने की क्षमता का मुहताज था । आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था के बिना आज भी जीवन उतना ही अनिश्चित होता और ऐसे में जीने का अधिकार भी अधुरा होता ।
  • शूरूवात: आजादी के बाद और विशेष कर हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद सरकार की जिला स्तर के हस्पतालों, पीएचसी व सीएचसी हस्पतालों की की स्थापना करने की एक बहुत ही सकारात्मक पहल थी ।

  • काबिले जिक्र है कि तत्कालिक सरकारों ने बहुत बड़े पैमाने पर टीकाकरण के कार्यक्रम माध्यम से लाखों बच्चों की जिन्दगी बचाने की बड़ी महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की थी । 1950 के आसपास पैदा होने वाले बच्चों की ऐसी पहली पीढ़ी थी जिनमें से 90% के आस पास जिन्दा रहे और फले फुले।
  • हरियाणा में स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा(2016-17) सोचने का विषय :
             सरकार द्वारा निश्चित किये गए मापदंडों के हिसाब से 5000 की जनसंख्या पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए, 30000 की जनसंख्या पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए और 1,20,000 की जनसंख्या पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए। 
    हरयाणा की 2016-17 की अनुमानित जनसंख्या 2 करोड़ 79 लाख के लगभग है। 
    इसके हिसाब से हरियाणा में जो ढांचा होना चाहिए और जो है वह नीचे दिया जा रहा है--
    संस्था         जो हैं      जो चाहियें 
    उपस्वास्थ्य   2603     5580
    केंद्र
    पीएचसी       498       930
    सीएचसी।      123       232
    हॉस्पिटल्स       125
    टीबी सेन्टर        15
    पोस्ट पार्टम।      37
    केंद्र
    शहरी स्वास्थ्य     16
    केंद्र
    नोट -- एक सीएचसी में निम्लिखित विशेषज्ञ होने चाहिए
    सर्जन........  1
    शिशु रोग विशेषज्ञ....1
    स्त्री रोग विशेषज्ञ....1
    फिजिशियन....1
    बेहोशी विशेषज्ञ ...1 ( हो सके तो)
        अफसोस की बात है कि हरियाणा की 123 सीएचसी में से एकाध में ही ये सारे विशेषज्ञ होंगे। 
    सिविल अस्पतालों की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं हैं ।
    जनता का भी उसका अपना स्वास्थ्य अभी एजेंडा बनना बाकी है। 
  • यदि ऊपरलिखित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का लगातार विकास हुआ होता तो हरियाणा आज स्वास्थ्य सेवाओं की दृष्टि से भारत की अग्रणी स्टेट होती, जबकि आज हम 12वें स्थान पर हैं, बंगाल व जम्मु काश्मिर से भी  नीचे, जबकि आर्थिक दृष्टि से बड़े राज्यों की तालिका में हम शीर्ष स्थान पर हैं ।
  • राज्य का रोहतक में स्थित परिमियर मैडिकल कालेज हस्पताल भी डाक्टरों (एक तिहाई तो अधिकारिक स्थान ही खाली पड़े हैं) व साजोसामान की भारी कमी की दृष्टि से खुद बीमार है ।
जिला, तहसील या ब्लाक स्तर के हसपताल तो बिना प्रयाप्त डाक्टरों, नर्सों, दवाईयों व टेस्टिंग व्यवस्थाओं के मरणासन्न पर हैं ।
  • पूरे हरियाणा के स्तर पर मात्र 2100 डाकटर हैं और कुल 21000 के आसपास स्टाफ हैं । WHO के मानकों के हिसाब से तो 2.8 करोड़ की आबादी के लिये 28000 डाक्टर चाहियें । सरकारी व्यवस्था के नकारा होने के चलते ज्यादातर पब्लिक को निजि हस्पतालों में अपनी जेब खाली करवाने और ज्यादातर सब-स्डैन्डर्ड चिकित्सा व्यवस्था पर निर्भर रहने के ईलावा और कोई चारा नही । रोज सैंकड़ो  हरियाणा वासी सम्मुचित ईलाज की व्यवस्था के ईलाजी बीमारियों (curable diseases) से मर रहे हैं ।
  • हरियाणा का कोई मन्त्री या बड़ा ब्यूरोक्रेट सरकारी हस्पतालों में ईलाज नही करवाता बल्की गुड़गांव के 7 सितारा निजि हस्पतालों में पब्लिक टैक्स को खर्च पर अपना ईलाज करवाते हैं ।
  • सरकारी खर्च पर निजि हस्पतालों में ईलाज की अनुमती सरकार के ईस ईरादे को जाहिर करती है कि वे सरकारी हस्पतालों को साजोसामान से सुसज्जित करने का ईरादा भी छोड़ चुके और पुरी बेशर्मी से पब्लिक हैल्थ केयर की जिम्मेवारी से मूकर गये ।
  • बी जे पी का 2014 का चुनाव घोषणा पत्र ---
  • हेल्थ 12 स्वास्थ्य घोषणा पत्र बीजेपी 2014 हरियाणा :
    1 प्रत्येक बालक - बालिका , महिला एवं वृद्धों को अनिवार्य स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जायगा और उन्हें कुपोषण से मुक्त रखने के सन्दर्भ में बजट में विशेष तौर पर धन राशि का प्रावधान किया जाएगा।
    2 मौसमी बीमारियों के लिए स्वास्थ्य विभाग को अपडेट किया जाएगा।
    3 स्टेट लिकर पालिसी का पुनरवलोकन कर इसमें जन -स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सुधार किया जाएगा।
    4 प्राइवेट हस्पताल जिन्होंने सरकार से भूमि सस्ती दर पर ली है , उन द्वारा 25 प्रतिशत मरीजों का निःशुल्क इलाज , स्वास्थ्य सेवाएं, (विभिन्न टेस्टों सहित) प्रदान करने की नीति लागू की जाएगी।
    5 सरकारी अस्पताल , प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आदि मरीजों को अनुदान प्राप्त हस्पतालों को रेफर कर सकेंगे ।
    6 दो लाख रुपये तक वार्षिक आय वाले परिवारों के लिए चिकित्सा मुफ्त दवाई योजना लागू की जाएगी। 
    7 शिशु एवम 70 वर्ष से अधिक के बुजुर्गों के लिए सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त specialisation  बेस्ड विशिष्टीकरण पर आधारित प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र में एक हस्पताल खोला जाएगा।
  • जनता देखे कितना पूरा हुआ यह घोषणा पत्र | मेरे हिसाब से शायद ही किसी विधान सभा में स्पेशलिस्ट हस्पताल खुला हो | 
समाधान:
  • युनिवर्शल हैल्थ केयर व्यवस्था ही ईसका एकमात्र जवाब है,  जहाँ सभी गरीब अमीर नागरिकों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवा जेब से कुछ दिये बिना मिले । यह सेवा बर्तानिया की नेशनल हैल्थ सर्विस की तरज पर स्थापित की जा सकती है । बाकी योरोप के देशों जैसे जर्मनी फ्रांस की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं तथा क्युबा (जो आर्थिक दृष्टि से भारत जैसा ही है) व दुसरे सफल व किफायती (पूरे राज्य के स्तर पर) स्वास्थ्य सेवाओं के सकारात्मक पहलुओं को शामिल करके ।
  • ऐसी युनिवर्शल स्वास्थ्य सेवा को सृजित करने के लिये राज्य सरकार को राज्य की SGDP का 5-6% खर्च करना पड़ेगा और यह खर्च अति आवश्यक व लाभदायक है ।
  • कूल खर्च का एक छोटा हिस्सा नागरिकों से   भी उनकी ईन्कम के हिसाब से एक मुस्त सालाना या माहवार स्वास्थ्य सेवा शुल्क के रूप में लिया जा सकता है ।
  • बर्तानिया (जहाँ 6.5 करोड़ आबादी की स्वास्थ्य सेवाओं के लिये NHS में 15 लाख लोग काम करते हैं) व दुसरे विकसित देशों के आंकड़ों से पता लगता है कि युनिवर्शल स्वास्थ्य सेवाएँ देने के लिये 4-5 लाख युवाओं को रैगुलर व लाभप्रद रोजगार भी मिलेंगे ।
  • युनिवर्शल स्वास्थ्य सेवाओं से नागरिकों के जीवन में जो सिक्योरिटी आती है उसका कोई और दुसरा उपाय नही । यह जीने के मौलिक आधार को साकार बनाने का सबसे बड़ा स्तम्भ सिद्ध हो सकता है  ।
रणबीर सिंह दहिया
रिटायर्ड सीनियर प्रोफेसर सर्जरी
पी जी आई एम एस रोहतक

Tuesday 24 September 2019

जन स्वास्थ्य अभियान के सामने कार्य

डॉ सुन्दररमन
जन स्वास्थ्य अभियान के सामने कार्य 

1 आयुष्मान भारत : प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ( मोदी केयर )

2. आयुष्मान भारत : स्वास्थ्य एवं अच्छा होने के केंद्र 

3. स्वास्थ्य व्यवसायिक बनाना : स्वास्थ्य लाभ शिक्षा तथा व्यवसायिक नियमों की बदलती नीतियां 

4. निजीकरण : पब्लिक --प्राईवेट सांझेदारी तथा स्वास्थ्य उद्योग का विकास ; नीति आयोग का काम 

5. दवाओं , पेटेंटों तथा नवाचारों तक पहुंच का विकास 

6. स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य लाभ से जुड़े लैंगिक मुद्दे 

7. स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारक 

 1. आयुष्मान भारत : 

 एन डी ए सरकार के अंतर्गत शुरू किया गया यही मुख्य कार्यक्रम है।  यह सन 2019 में शुरू किया गया।  इस कार्यक्रम के दो पक्ष हैं - स्वास्थ्य  व स्वास्थ्य लाभ केंद्र और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना।  पहला पक्ष सम्यक प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच का तथा दूसरा पक्ष सरकार द्वारा स्वास्थ्य बीमा योजनाऐं उपलब्ध कराना है तथा गरीबी रेखा से नीचे परिवारों की सुरक्षा निश्चित करना , जिन्हें द्वितीय और तृतीय स्टार की स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है।  

            हम यहाँ हर योजना का वर्णन कर रहे हैं।  हम उन समस्याओं को  भी लेना चाहते हैं कि ये योजनाएं किस तरह बनायीं गई हैं और किस तरह काम कर रही हैं।  इसके साथ साथ हम  यह भी बताना चाहते हैं कि जन स्वास्थ्य अभियान तथा जन विज्ञानं आंदोलन तथा सभी जनवादी शक्तियों को इन नीतियों तथा इनके क्रियान्वन  देखना चाहिए।  

       प्रधान मंत्री की जन आरोग्य योजना ( मोदी केयर )

* यह योजना है क्या ?

एक वर्णन 

         यह सरकार द्वारा अनुदान प्रदत्त स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है, जो जनगणना के अनुसार सामाजिक-आर्थिक  जातियां हैं , जो विशेष पेशों से जुडी हैं वो ही इस योजना के लिए योग्य हैं।  एक अनुमान के अनुसार 10. 74  करोड़ परिवार यानि लगभग 50 करोड़ व्यक्ति इस योजना के लिए पात्र हैं।  


          इस योजना में कोई भी पात्र व्यक्ति  द्वितीय या तृतीय स्तर की स्वास्थ्य सेवा की जरूरत हो , अपने  इलाज हेतु किसी भी मंजूर पैनल के हस्पताल में जा सकता है।  हस्पताल बिना कुछ लिए उन्हें भर्ती करेगा और उनका इलाज करेगा।  सभी दवाइयां यहाँ तक की टैस्ट और कुछ हद तक यातायात सुविधा भी मरीज को मुफ्त मिलेंगी।  सरकार एक  अनुसार हस्पताल को वह खर्च दे  देगी।  एक परिवार एक साल में 5 लाख रूपये तक भी ऐसी सुविधाएँ ले सकता है।  इसमें पुराणी बीमारियां भी हो सकती हैं तथा हस्पताल के पहले और बाद तक के भी कुछ खर्चे शामिल  हैं।  

      प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में 1350 चिकित्सीय पैकेज शामिल हैं, जिनमें सर्जरी व प्रतिदिन के इलाज भी शामिल हैं। 

     इस योजना के तहत सरकारी एवं प्राइवेट दोनों प्रकार के हस्पताल पैनल पर हैं।  लगभग 60 % दावेदारों का और कुल खर्च  का लगभग 75 % प्राइवेट सैक्टर के हस्पताल अदा करते हैं। 

         इसमें प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रूपये का लाभ दिया जाता है। 

2. प्रचार माध्यमों में इस योजना का बहुत स्वागत किया गया है।  जनता और देनदारों ने भी इसका स्वागत किया है।  इस योजना का इतना स्वागत क्यों है ? 

       १. मुफ्त या रियायती हिसाब से प्राइवेट हस्पतालों में सुविधा सुनिश्चित करना ताकि उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाएं सभी को मिल सकें।  
              यद्यपि सरकारी चिकित्सा सुविधाओं की क्षमता बहुत सीमित है , इसलिए लोगों को मजबूर होकर इलाज के लिए निजी क्षेत्र में जाना पड़ता है। निजी स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हैं,इनके आर्थिक बोझ से पूरा परिवार प्रभावित होता है । इससे बचने के लिए बीमा योजनाएं हैं । यहां जनता का स्वागत है। 
ii) निजी हस्पतालों के पास बिना प्रयोग होने वाली बड़ी क्षमता है। उनके पास बीमारों की कमी नहीं है, अपितु उनकी कमी है जो पैसे दे सकें। आधुनिक हस्पतालों को बड़ा लाभ इसी बात से हो जाता है कि वे उच्च तकनीक के जांच, तरीके या सर्जरी सुझाते हैं। इनकी जरूरत जिनको है उन्हें मना लिया जाता है, बेशक सीमित ही सही सरकार द्वारा दिये पैसे से बीमा योजना को भारत का निजी स्वास्थ्य उद्योग कहा जा सकता है।
iii) मीडिया, समाज या बुद्धिजीवी तबके में इसका स्वागत इसलिये है कि निजी क्षेत्र की ओर जाने को वे समय के साथ जरूरी सुधार के रूप में देखते हैं। निजी सेवाओं में वे सरकारी सेवाओं की अपेक्षा अच्छी गुणवत्ता देखते हैं।ऐसा केवल गरीब या कमजोर तबके का ही   मानना नहीं है अपितु मध्यम वर्ग भी ऐसा ही मानता है। ये भिन्न भिन्न सोच इसलिए है कि निजी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर असमानताएं हैं। इसके चलते इन तबकों में सरकार के विरुद्ध तथा निजी क्षेत्र के प्रति अच्छा प्रभाव बनता है।

3. सरकार इस योजना को बड़ी सफलता मानती है और इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि समझती है । इसमें सच्चाई कितनी है और ढकोसला कितना?
i) सरकार का दावा है कि 'मोदीकेयर' दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना है । यह सत्य से दूर है । बजट देने के हिसाब से देखा जाय तो यह छोटी योजनाओं में से एक है । यहां तक कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से भी छोटी तथा बहुत से राज्यों द्वारा स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च से भी कम । बीमा कवरेज में भी ये बहुत पीछे रहती है बनिस्बत दूसरे देशों की योजनाओं के । जनसंख्या के हिसाब से भी ये चीन से भी कम कवर करती है।
ii) संख्या की दृष्टि से इसमें 3 करोड़ इसमें शामिल हैं,जबकि स्मार्ट कार्ड की दृष्टि से 12 करोड़ इसके योग्य हैं। 
iii) जिन अधिकतर राज्यों में प्रधानमंत्री 
जन आरोग्य योजना प्रभावी दिखाई दे रही है , ये वे राज्य हैं जो पहले  से अपनी योजनाओं पर काम कर रहे हैं , केंद्र ने तो उन पर अपने नाम का ठप्पा लगाया है। सरकार केवल 60%खर्च वापसी पर प्रतिबद्ध है,जबकि यह भी पूरी तरह किया नहीं गया है। राज्य सरकारों को अपने नियमों को बदलने के लिए कहा जा रहा है,जहाँ पहले से ही प्रभावी योजनाएं काम कर रही हैं ।फ़लस्वरूप केरल जैसे राज्य इससे दुखी हैं। 
iv) सरकार का दावा इस बात पर आधारित है कि राज्यों से कितने क्लेम आये, कितनों को पैसे मिले। इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि इनसे स्वास्थ्य परिणामों में कितनी बेहतरी हुई है तथा स्वास्थ्य सेवाओं के खर्चों की मुशीबत से कितने गरीबों को बचाया जा सका है। पूर्व सरकार की बीमा योजनाओं पर बहुत से अध्ययनों से निम्नलिखित बातें सामने आई हैं :-
a) सूचनाओं का अभाव - बहुत से योग्य व्यक्तियों को इन योजनाओं का पता ही नहीं होता और वे इसका लाभ नहीं ले पाते ।
b) सेवा देने से इन्कार:- 
वे जो योग्य  भी हैं और इन्हें जानते भी हैं ,उनकी बड़ी संख्या तकनीकी आधारों पर लाभों से वंचित कर दी जाती है। राज्य सबसे ज्यादा यह बहन करते हैं कि इसमें अमुक बीमारी या प्रक्रिया शामिल नहीं है ,और यहां हस्पताल में यह विशेष सेवा है ही नहीं ।
c) दोहरे बिल :-
जो किसी भी तरह इस योजना के तहत सेवा लेने में सफल हो जाते हैं , उनमें से अधिकांश से किसी न किसी तरह उनकी जेबों से इन सेवाओं के लिए निकलवा लिया जाता है।मुफ्त व नकद रहित सेवाएं तो एक मिथ है । ज्यादा  से ज्यादा उनको 20% कम देना पड़ता है उनकी अपेक्षा जिनके पास कार्ड होता है। मरीज से ले लिया जाता है और फिर हस्पताल सरकार से भी भुगतान कर लेता है ।
d) सप्लाई आधारित सेवाएं:-
हस्पताल प्रायः वे प्रकिर्याएँ अपनाते हैं जिनसे उन्हें लाभ ज्यादा होता है और उन सेवाओं से इनकार कर देते हैं जहां मुनाफा कम रहता है। बहुत बार वे ऐसे मरीजों को ज्यादा भर्ती करते हैं जो उनकी सप्लाई व प्रकिर्याओं पर खरे उतरते हों । यदि हम जिलों पर किये गए क्लेम का पैटर्न दीखें तो पाएंगे कि इनका महामारियों से कोई ज्यादा रिश्ता नहीं बनता अपितु उस बात से ज्यादा रहता है जिन्हें ये निजी वाहक ज्यादा आगे धकेलते हैं। 
e) सरकारी सेवाओं के सहायक के रूप में नहीं अपितु विकल्प के रूप में:- 
       निजी क्षेत्र लाने का उद्देश्य यह था कि उन प्रकिर्याओं तक पहुंचा जाए जो इस समय सरकारी हस्पतालों में उपलब्ध नहीं हैं। यदि हम हर राज्य के क्लेम की पड़ताल करें तो पाएंगे कि या वही सामान्य क्षेत्र हैं जहां सरकार पहले ही सेवाएं दे रही हैं।उदाहरण के लिए यू.पी.,बिहार व छत्तीसगढ़ में आंखों की वही सामान्य सर्जरी सेवा है जो सरकारी सेवा जैसी ही हैं । यदि गुर्दे की पथरी , आंखों की गम्भीर बीमारी , पेट में अधिक जलन जैसी बातों पर आये तो पता चलता है कि इस बीमा योजना का योगदान बहुत कम है।
f) ठीक से देखभाल नहीं व दवाना :-
पहले किसी निजी हस्पताल में गरीब मरीज के लिए सेवाएं नहीं होती थी तो उसे रेफर कर देता था। आज वही हस्पताल उस मरीज को दाखिल करता है , उस मरीज के स्मार्ट कार्ड का सारा पैसा चूस लेता है औए फिर आगे रैफर करता है। इससे इलाज में विलंब होता है , जब तक मरीज सरकारी हस्पताल में पहुंचता है , वह सभी संसाधनों से विहीन हो जाता है । मरीजों द्वारा अपनी बीमा रकम को सरकारी हस्पताल में डुबो देना सामान्य बात है।
अमेरिका तक में ऐसा ही है।
4. क्या सरकार इन समस्याओं से अवगत नहीं ?
     इन्हें ठीक करने के लिए क्या किया गया है? क्या इससे ज्यादा नहीं किया जा सकता? यदि सरकार इन मुद्दों पर गंभीर हो तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि बीमा कार्यक्रमों से राहत मिलेगी?
  सरकार को इन समस्यों का पता है। सरकार के पास परेशानियां दूर करने तथा मॉनिटरिंग करने के तरीके हैं। परेशानियां दूर करने का पूर्ण प्रयोग नहीं किया जाता ,क्योंकि दावेदार ही अपने दावों को पूरी तरह से नहीं समझते। जो दावों के लिए जाते भी हैं , उन्हें अनुभव कम है । समस्या वह है कि यदि कोई कष्ट उठा कर अपनी परेशानियां आगे ले भी जाता है ,तो निजी हस्पतालों को नाममात्र की सजा मिलती है । इसी प्रकार मानीटरिंग करने के तरीके बहुत कमजोर हैं । यदि वे थोड़ा बहुत काम करते भी हैं तो सरकार भी ऐसे गलत हस्पतालों पे कार्यवाही करने की इच्छुक नहीं दिखती । अंदरखाने इनके बीच एक समझ बनी हुई है कि इस प्रकार की धोखा धोखा धड़ी जायज है , वरना ये निजी हस्पताल इसमें शामिल नहीं होंगे । 
     इस प्रकार हस्पतालों को अदा करने की दर आजकल कम चल रही है। लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं है। यह तो एक आसान बहाना है, जिससे दोहरे बिल लिए जा रहे हैं। मानीटरिंग करने वाले भी इससे सहमत रहते हैं , बेशक नियमों की अनदेखी हो। अदायगी में देर होना भी अनैतिक है और इसके लिये तो खासकर जो अदायगी में देरी या अनिश्चितता को सम्भाल नहीं पाता।
   क्या सरकार इन विकृतियों को दूर करने के लिए गंभीर थी?
यदि सरकार इन योजनाओं की ठीक मानीटरिंग , परेशानियां दूर करने के ठीक प्रबन्ध करती तो निजी हस्पतालों की इनमें  भागीदारी घट जाती। वर्तमान
दरों पर भी निजी हस्पताल इनमें आने के इच्छुक नहीं हैं। वह स्वयं में कोई बुरी बात नहीं है, क्योंकि सरकारी हस्पताल रहेंगे , बेशक लाभ के लिए नहीं, इन दरों पर वे भी नैतिक आधार पर कुछ प्रबन्ध करेंगे।
   जब ऐसा दृश्य है कि बीमा व खरीद के लिये प्राइवेट क्षेत्र सरकारी क्षेत्र में खानापूर्ति ही कर रहा है , तो इसके भी वैचारिक कारण हैं जिन्हें हमारे नीति निर्माता स्वीकार करने को तैयार नहीं ।
    यदि मानीटरिंग ठीक की जाये तो दोहरे बिल और अदायगी न देने को सम्भाला जा सकता है। यदि नियमों में सख्ती कर दी जाये तो सप्लाई आधारित देखभाल दुरुस्त की जा सकती है। यहां फैंसले व देखभाल इस बात से प्रभावित होती हैं कि धन कहां से आता है न कि इस बात से कि भला होने वालों के दृष्टिकोण से।
5. बहुत से देशों में बीमा योजनाएं ठीक चल रही हैं । ये देश ठीक कैसे चल रहे हैं? 
इन रणनीतियों को अपनाने में हमारी सरकार को कौन रोकता है?
  जर्मनी और जापान में ऐसे उदाहरण हैं जहां सेवा देने वाले प्राइवेट हैं तथा भुगतान बीमा प्रक्रिया से होता है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसा ही है । यद्यपि सरकारी सेवा का अनुपात काफी ज्यादा है।
   इनका सबसे प्रमुख फीचर ही यही है कि ये आपसी सहयोग के सिद्धांत पर बने हैं । इस बात की ओर ज्यादा ध्यान दिया जाता है कि सेवा दाता सुनिश्चित हो कि भुगतान तुरन्त हो जाये। जापान में कानून है कि स्वास्थ्य सेवाओं से आप लाभ नहीं लेंगे। इसीलिए इसके लिए सीधे या कारपोरेट द्वारा सहायता नहीं ली जाती , क्योंकि लाभांश दिया ही नहीं जाता । जर्मनी में बीमा कंपनियों का लाभ लेना मना है , यदि नुकसान होता है तो उसकी भरपाई सरकार करती है और बराबरी सुनिश्चित करती है।
   जिन देशों में भी यह बीमा योजना आधारित है , उनके कड़े कानून हैं , जहां स्वास्थ्य सेवाओं के बदले कीमत दी जाती है । जहां बीमा नहीं है वहां भी सरकारी हिसाब से कीमत दी जाती है ।ऑस्ट्रेलिया व कनाडा में सारा भुगतान सरकार करती है । वे अमीर गरीब सब से टैक्स इकट्ठा करती हैं, लेकिन इलाज सभी का एक समान।
जन स्वास्थ्य अभियान के सामने कार्य
1 आयुष्मान भारत : प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ( मोदी कायर )
2. आयुष्मान भारत : स्वास्थ्य एवं अच्छा होने के केंद्र
3. स्वास्थ्य व्यवसायिक बनाना : स्वास्थ्य लाभ शिक्षा तथा व्यवसायिक नियमों की बदलती नीतियां
4. निजीकरण : पब्लिक --प्राईवेट सांझेदारी तथा स्वास्थ्य उद्योग का विकास ; नीति आयोग का काम
5. दवाओं , पेटेंटों तथा नवाचारों तक पहुंच का विकास
6. स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य लाभ से जुड़े लैंगिक मुद्दे
7. स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारक
 1. आयुष्मान भारत :
 एन डी ए सरकार के अंतर्गत शुरू किया गया यही मुख्य कार्यक्रम है।  यह सन 2019 में शुरू किया गया।  इस कार्यक्रम के दो पक्ष हैं - स्वास्थ्य  व स्वास्थ्य लाभ केंद्र और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना।  पहला पक्ष सम्यक प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच का तथा दूसरा पक्ष सरकार द्वारा स्वास्थ्य बीमा योजनाऐं उपलब्ध कराना है तथा गरीबी रेखा से नीचे परिवारों की सुरक्षा निश्चित करना , जिन्हें द्वितीय और तृतीय स्टार की स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है।
            हम यहाँ हर योजना का वर्णन कर रहे हैं।  हम उन समस्याओं को  भी लेना चाहते हैं कि ये योजनाएं किस तरह बनायीं गई हैं और किस तरह काम कर रही हैं।  इसके साथ साथ हम  यह भी बताना चाहते हैं कि जन स्वास्थ्य अभियान तथा जन विज्ञानं आंदोलन तथा सभी जनवादी शक्तियों को इन नीतियों तथा इनके क्रियान्वन  देखना चाहिए।
       प्रधान मंत्री की जन आरोग्य योजना ( मोदी केयर )
* यह योजना है क्या ?
एक वर्णन
         यह सरकार द्वारा अनुदान प्रदत्त स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है, जो जनगणना के अनुसार सामाजिक-आर्थिक  जातियां हैं , जो विशेष पेशों से जुडी हैं वो ही इस योजना के लिए योग्य हैं।  एक अनुमान के अनुसार 10. 74  करोड़ परिवार यानि लगभग 50 करोड़ व्यक्ति इस योजना के लिए पात्र हैं।

          इस योजना में कोई भी पात्र व्यक्ति  द्वितीय या तृतीय स्तर की स्वास्थ्य सेवा की जरूरत हो , अपने  इलाज हेतु किसी भी मंजूर पैनल के हस्पताल में जा सकता है।  हस्पताल बिना कुछ लिए उन्हें भर्ती करेगा और उनका इलाज करेगा।  सभी दवाइयां यहाँ तक की टैस्ट और कुछ हद तक यातायात सुविधा भी मरीज को मुफ्त मिलेंगी।  सरकार एक  अनुसार हस्पताल को वह खर्च दे  देगी।  एक परिवार एक साल में 5 लाख रूपये तक भी ऐसी सुविधाएँ ले सकता है।  इसमें पुराणी बीमारियां भी हो सकती हैं तथा हस्पताल के पहले और बाद तक के भी कुछ खर्चे शामिल  हैं।
      प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में 1350 चिकित्सीय पैकेज शामिल हैं, जिनमें सर्जरी व प्रतिदिन के इलाज भी शामिल हैं।
     इस योजना के तहत सरकारी एवं प्राइवेट दोनों प्रकार के हस्पताल पैनल पर हैं।  लगभग 60 % दावेदारों का और कुल खर्च  का लगभग 75 % प्राइवेट सैक्टर के हस्पताल अदा करते हैं।
         इसमें प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रूपये का लाभ दिया जाता है।
2. प्रचार माध्यमों में इस योजना का बहुत स्वागत किया गया है।  जनता और देनदारों ने भी इसका स्वागत किया है।  इस योजना का इतना स्वागत क्यों है ?
       १. मुफ्त या रियायती हिसाब से प्राइवेट हस्पतालों में सुविधा सुनिश्चित करना ताकि उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाएं सभी को मिल सकें।  यद्यपि


















Monday 23 September 2019

ग्लोबल वार्मिंग

धरती का औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस है। वायुमंडल इसे बरकरार रखने में मदद करता है। इसकी भूमिका ग्रीन हाउस में शीशे या प्लास्टिक जैसी होती है। अगर वायुमंडल की परत नहीं होती तो धरती एक जमा हुआ ग्रह होती और शायद यहां जिंदगी कभी नहीं पनपती। लेकिन धरती के ग्रीन हाउस का ज्यादा गर्म होना भी अच्छा नहीं है। पिछले कई दशकों से कुछ ऐसा ही हो रहा है। धरती का औसत तापमान बढ़ रहा है और
इससे मौसम का मिजाज बदल रहा है। इसे ही आप ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापन के नाम से जानते हैं।

जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन क्या आज हम सबके लिए  एक खतरे की घंटी है?
आज बदलती हुई जलवायु संबन्धित परिस्थितियाँ पृथ्वी के
हरेक  कोने पर प्रभाव  डाल  रही हैं । जलवायु परिवर्तन के मुख्य  प्रभाव  
 निम्नलिखित हो सकते हैः
1. पृथ्वी का औसत तापमान पूर्व औद्योगिक काल की
तुलना में  1° सेन्टीग्रेड बढ़ा है और 2030 से 2052
के मध्य यह बढ़कर 1.5° सेन्टीग्रेड हो जाएगा अगर
तापमान वृद्धि इसी अनुपात में  बढ़ती जाएगी ।
2. ध्रुवों  पर मौजूद  बर्फ तेजी से पिघलती जा  रही है जिससे
समुद्री सतह  में  वृद्धि हो रही है। इन सबके
परिणाम स्वरूप तटीय क्षेत्रों, छोटे द्वीपों एवं आसपास
के शहरों मे बाढ़ आदि  का खतरा बढ़ गया है।
3. वर्षा का हिसाब किताब  बदल गया है जिसके फलस्वरूप
कहीं सूखे जैसी स्थिति है तो कहीं बाढ़ जैसी।
4. प्रमुख खाद्य एवं संसाधन क्षेत्र जैसे कृषि, वन विभाग,
मत्स्य पालन आदि की गुणवत्ता एवं मात्रा में भारी
गिरावट आई है और यह तेजी से घटती ही जा
रही है।
5. कई प्रकार के पेड़ पौधे एवं जीव जन्तु लुप्त होते जा
रहे हैं और कुछ लुप्त हो भी गए हैं।
6. बढ़ते हुये तापमान के कारण ऋतुएं लंबी हो गई हैं
जिसके कारण कीट प्रजाति के वर्ग में उत्तर की ओर
बढ़ोत्तरी देखी गई हैं।
7. कम विकसित देशों के लोगों को जलवायु परिवर्तन
के कारण अधिक परेशानियों का सामना करना पड़

रहा है।