Friday 6 March 2020

हरयाणा स्वास्थ्य सभा जींद --7 अप्रैल 2020

हमाजन 
स्वाहरयाणा स्वास्थ्य सभा जींद --7  अप्रैल 2020 स्थ्य सभा जींद --7  अप्रैल 2020 श की वर्तमान सरकार के सारे  दावों के बावजूद हमारे देश के  स्वास्थ्य क्षेत्र की तस्वीर ज्यादा ठीक दिखाई नहीं देती है |  साल में 
हरयाणा 
प्रति         विश्व स्वास्थ्य दिवस 2020 पूरे विश्व भर में 7 अप्रैल मंगलवार को मनाया जायेगा।
हरयाणा में इस अवसर के उपलक्ष्य में 5 अप्रैल 2020 को जींद में एक हरयाणा स्वास्थ्य सभा का आयोजन किया जा रहा है जिसमें विभिन्न जन संगठनों के कार्य कर्ता , आशा वर्कर , आँगनवाड़ी वर्कर , बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कर्मचारी , डाक्टर और जनता के जागरूक नागरिक बड़े स्तर पर इसमें भाग लेंगे और हरयाणा के सवास्थ्य सेवाओं के स्वास्थ्य ढांचे के सशक्तिकरण और जनता के स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करके एक मांग पत्र तैयार किया जायेगा | 

हमारे देश की वर्तमान सरकार के सारे  दावों के बावजूद हमारे देश के  स्वास्थ्य क्षेत्र की तस्वीर ज्यादा ठीक दिखाई नहीं देती है |  साल में प्रति व्यक्ति सिर्फ 1,112 रुपये के साथ भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों में है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी ताजा नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट ने भी इन हालातों के ठीक  होने की बात को ही एक तरह से सही ठहराया लगता है |   इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 11,082 लोगों पर सिर्फ  एक एलौपैथिक डॉक्टर ही है। स्वास्थ्य पर किया जाने वाला खर्च भी भारत में  जीडीपी का महज एक फीसदी ही है जो स्वास्थय के क्षेत्र में खर्च किया जाता है|  यह स्वास्थय पर किया जाने वाला खर्च  पड़ोसी देशों मालदीवभूटानश्रीलंका और नेपाल के मुकाबले भी कम ही  है। देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर हर साल प्रति व्यक्ति रोजाना औसतन कहें तो  तीन रुपए खर्च किए जाते हैं।

 सिर्फपिछले कुछ वर्षों के दौरान हरियाणा में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनेक ढांचागत व नीतिगत बदलाव के साथ-साथ उद्देश्यों के स्तर पर भी बदलाव हुए हैं । पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान तीन नए राजकीय मेडिकल कॉलेज खुले व हुए पीजीआईएमएस रोहतक को हेल्थ यूनिवर्सिटी के तौर पर अपग्रेड किया गया। लेकिन पहले से मौजूद स्वास्थ्य ढांचे की सुध कम ली गई । वो चाहे पीएचसी हों , सीएचसी हों या फिर सामान्य अस्पताल सभी जगह चिकित्सकों ,अन्य स्वास्थ्य कर्मियों जैसे लैब तकनीशियन , फार्मासिस्ट , स्टाफ नर्स इत्यादि की कमी ज्यों की त्यों बनी हुई है । जो स्वास्थ्य कर्मचारी पहले से काम कर रहे हैं , उनके शिक्षण व प्रशिक्षण की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है। सभी स्वास्थ्य कर्मचारी सरकार की मौजूदा नीतियों से परेशान हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं जैसे आशा वर्कर्स, आंगनवाड़ी वर्कर आदि की स्थिति भी बाकी कर्मचारियों जैसी ही है । पिछले कुछ वर्षों में इन तमाम तबकों ने अनेक हड़तालें व प्रदर्शन इन्हीं मांगों को लेकर किए हैं । दूसरी ओर मरीजों व बीमारियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है , कोई भी बीमारी महामारी का रूप धारण कर लेती है । गर्भवती महिलाओं व छोटी बच्चियों में खून की कमी हरियाणा की पहचान बनी हुई है ।अस्पतालों में दवाइयों की उपलब्धता न के बराबर है। जांच सेवाएं उपलब्ध कराने के नाम पर निजी कंपनी को पीपीपी के ठेके दिए गए हैं। इससे लोगों के एक तबके को कुछ राहत तो मिली है लेकिन निजीकरण की मुहिम ज्यादा तेज हो गई है । राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना भी पिछले करीब 4 साल से बजट उपलब्धता के बावजूद ठप्प पड़ी है । स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और विकास के नाम पर सिर्फ बड़ी-बड़ी बिल्डिंग ही बनी हैं । यह सारी परिस्थितियां स्वास्थ्य ढांचे व सेवाओं के प्रति सरकार की उदासीनता को ही दर्शाती हैं ।
एक तरफ जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा लोगों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को संबोधित करने में नाकाफी सिद्ध हो रहा है वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य के साथ-साथ दूसरे सामाजिक क्षेत्र जैसे शिक्षा आदि के क्षेत्र में भीसार्वजनिक निवेश नियमित रूप से साल दर साल कम होता जा रहा है ।जरूरी हो जाता है कि स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने के लिए और सार्वजनिक सेवाओं के तेजी से हो रही निजीकरण के खिलाफ लोग अपनी आवाज बुलंद करें । यह सब चुनौतियां जन स्वास्थ्य अभियान हरयाणा की भूमिका को अहम बना रही हैं ।
कुछ मुख्य मुद्दे:
1.सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र और स्टाफ का सशक्तिकरण 
2 . निजीकरण और स्वास्थ्य सेवाएं
3 . जेंडर और स्वास्थ्य
4 . दवाइयों और जांच सेवाओं की उपलब्धता
5 . स्वास्थ्य के सामाजिक कारक
जन स्वास्थ्य अभियान हरयाणा |
 1,112 रुपये के साथ भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों में है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी ताजा नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट ने भी इन हालातों के ठीक  होने की बात को ही एक तरह से सही ठहराया लगता है |   इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 11,082 लोगों पर सिर्फ  एक एलौपैथिक डॉक्टर ही है। स्वास्थ्य पर किया जाने वाला खर्च भी भारत में  जीडीपी का महज एक फीसदी ही है जो स्वास्थय के क्षेत्र में खर्च किया जाता है|  यह स्वास्थय पर किया जाने वाला खर्च  पड़ोसी देशों मालदीवभूटानश्रीलंका और नेपाल के मुकाबले भी कम ही  है। देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर हर साल प्रति व्यक्ति रोजाना औसतन कहें तो  तीन रुपए खर्च किए जाते हैं।

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