Wednesday 25 October 2017

डाक्टरों की सामाजिक एवं राजनीतिक भूमिका

डाक्टरों की सामाजिक एवं राजनीतिक भूमिका
टाधुनिक चिकित्सा की बहुत सारी आलोचना चिकित्सा.विज्ञान पर नहीं , वरन चिकित्सा के पेशे की भूमिका पर आधारित होती है।
  भौतिकीविदों , रसायनशास्त्रियों ,गणितज्ञों, दार्शनिकों ,आदि के पेशागत संगठन प्राथमिक रुप से या विशिष्ट रुप से अपनी अपनी विशिष्ट विश्षयवस्तु से संबंधित हैं। इसके अलावा चिकित्सकों और सर्जनों के संगठन अपने सदस्यों के साथ ही पूरे पेशे के आर्थिक, पेशेवराना , और कानूनी हितों की रक्षा भी करते हैं। वे स्वास्थ्य -सेवा के प्रति सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं औतर तार्किक और अतार्किक आधारों पर अपने पेशे में होने वाले अतिक्रमन को रोकते हैं।वे यह तय करते हैं कि किसी देश में कितने डाक्टर होने चाहिये या हो सकते हैं,आदि। उदाहरण के लिए , पिछले कुछ वर्षों से दूसरे देशों से आने वाले चिकित्सकों को पश्चिम में अपना पेशा शुरु करने की इजाजत के लिए अपनी योग्यता साबित करनी पड़ रही है। उन पर यह शर्त थोंपने में चिकित्सा संघों की भूमिका निर्णायक रही है। दूसरे किसी भी पेशे में ऐशी पाबन्दी नहीं है।
   अमेरिकी मैडीकल संघ,एएमए ने 1940 के दशक में राष्ट्रपति फै्रंकलिन डेलैनो रुजवेल्ट ; 1882..1945 द्ध द्वारा, राष्ट्रपति लिंडन बेंस जॅानसन ;1008.1973    द्ध ़द्वारा और बिल क्ंिलटन के राष्ट्रपति काल में सांसद हिलरी क्ंिलटन द्वारा लाए गए स्वास्थ्य सुधारों  में रुकावट डालने में अहम भूमिका अदा की । हर बार एएमए का यही दावा होता था  िकवह अपनी भूमिका मरीजों के ही व्यापक हितों को ध्याान में रखते हुए तए करता है। मगर उसकी भूमिका स्पष्ट रुप से चिकित्सों के पेशे के धनोपार्जन के हितों से ही तय होता रहा है। लेकिन पड़ौस में कनाडा के स्वास्थ्य सेवा सुधारों की सफलता की प्रेरणा से किसी-न-किसी तरह की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए जो जन दबाव बना उसके चलते एएमए 2009-10 में राष्ट्रपति ओबामा द्वारा लाए जाने वाले सुधारों का समर्थन करने को बाध्य हुआ।
   कनाडा में सबके लिए स्वास्थ्य-सेवा लागू करने का पहला प्रयास1930 के दशक में नॉर्मन बेथ्यून ने किया था,हालांकि उस वक्त कोई सफलता नहीं मिली थी। आखिर सैस्कैचेवान के मुख्यमंत्री थॉमस ;टामीद्ध क्लीमेंट डगलस ;1904-1986द्ध ने इसे अपने प्रदेश में लागू किया । वहां चिकित्सा का पेशा अपनाने वालों की ओर से इसका तीखा अिरोध हुआ और डाक्टरों ने हड़ताल भी की। टॉमी डगलस के ही मत के कनाडा के प्रधानमंत्री लेस्टर बी. पियर्सन ;1897-1972द्ध ने ,जिन्हें सुएज संकट के समाधान के लिए 1957 का नोबेल शान्ति पुरुस्कार हासिल हुआ, 1966 में पूरे कनाडा में ‘ सबके लिए स्वास्थ्य- सेवा ’ लागू किया। चिकित्सा के पेशेवरों ने इसका भी विरोध किया, हालांकि इतने तीखे तरीके से नहीं जितना कि सैस्कैचेवान में।
     कनाडा की स्वास्थ्य सेवा योजना के लिए टॉमी डगलस को कनाडा ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन द्वारा 2004 में चलाए गए एक सर्वेक्षण में ‘ तमाम युगों का महानतम कनाडाई ’ चुने जाने के रुप में औपचारिक तौर पर जन समर्थन और दूसरी तरफ चिकित्सकों का विरोध कनाडा में डाक्टरों और जनता के बीचनैतिकता के सवाल पर विपरीत मतों का सूचक है।
  लिंग भेद पूरी दुनिया में व्यापत है, हालांकि लगभग पिछले पचीस साल में महिलाओं के खिलाफ बेहद क्रूर किस्म के भेदभाव को दूर करने में काफी प्रगति हुई है। लेकिन विज्ञान के क्षे़त्र में जितनी महिलाएं होनी चाहिये उतनी अभी नहीं हैं। लिंग आधारित भेदभाव सामाजिक विकास -क्रम की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। सामुती व्यवस्था और धार्मिक विश्वास महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को कायम रखने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इस कारण से बहुत सी महिलाएं भी इसका समर्थन करती हैं।
   इस भेदभाव का एक बहुत भयानक रुप जिसका सीधा सम्बन्ध चिकित्सा के पेशे से है। वह है बेटे की अधिक  चाहत । अल्ट्रासाउण्ड उपलब्ध होने के कारण भ्रूण अगर कन्या हो तो गर्भपात कराने का चलन बहुत व्यापक हो चला है। बीसवीं सदी के पिछले दशक में भारत में एक करोड़ तक कन्या भ्रूणों की हत्या हुई। चिकित्सा के पेशेवरों की इसमें सक्रिय भागीदारी के बिना ऐसा नहीं हो पाता।
  स्त्री पुरुष की शारीरिक क्रियाएं भिन्न हैं और उन पर होने वाले रोगों के परिणाम भी भिन्न होते हैं। चिकित्सा के अधिकांश शोधकर्ता अपने आंकड़ों में जेंडर के प्रभाव का ध्यान न के बराबर ही रखते हैं। न तो कोई जर्नल और न ही कोई धनदाता संस्था ऐसा कोई जोर देती है कि सभी शोधों में जेंडर के अनुसार अध्ययन किया जाए । इसलिए जब हम यह पढ़ते हैं कि कोई एक दवा अवसाद कम करने के लिये  दूसरी दवा से बेहतर है ,तो हम यह नहीं जान पाते हें कि यह बात स्त्री और पुरुष दोनों के लिए लागू होती है या सिर्फ पुरुषों के लिए ?

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