Tuesday, 19 August 2014

HARYANA SOCIETY AND HEALTH CHALLENGES

STATE CONVENTION
Topic: Haryana Society and Health Challenges
Date: 31.8.2014, Time: 10.30 AM
Venue: New Lecture Theatre (Near Anatomy Deptt.)
PGIMS,Rohtak
Main Speaker:   Dr Amit Sengupta , 
National Convener JSA & General Secretary of AIPSN
        Amitava Guha, National Convenor JSA
Haryana Health Status: Dr. R. S. Dahiya
Discussion and Comments: Audience
Future Planning: Satnam Singh

Vote of thanks and Remarks from the Chair

HEALTH CONVENTION

JAN SWASTHAY ABHIYAN HARYANA
STATE CONVENTION
 Topic: Haryana Society and Health Challenges
         Date: 31.8.2014, Time: 10.30 
Venue: New Lecture Theatre (Near Anatomy Deptt.)
Main Speaker: Dr Amit Sengupta , 
National Convener JSA & General Secretary of AIPSN
Amitava Guha, National Convenor JSA
Haryana Health Status: Dr. R. S. Dahiya
Discussion and Comments: Audience
Future Planning: Satnam Singh
Vote of thanks and Remarks from the Chair

Sunday, 17 August 2014

जन स्वास्थ्य अभियान हरियाणा

जन स्वास्थ्य अभियान हरियाणा
संयोजक ... सतनाम....09466290728
             हमारे संसार के पूरे इतिहास में सभी की सभी सभ्यताएं बीमारी और रुगण्ता के खतरों के साथ पली हैं। हम देख और जान सकते हैं कि प्रत्येक सभ्यता ने इस हकीकत से निपटने के समयानुसार अपने अपने तरीके ईजाद किये, मगर रोग मुक्त जीवन का सपना तो पिछली दो सदियों से ही देखा जाने लगा है। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के विकास से हमें बीमारी की प्रक्रिया में सक्रिय हस्तक्षेप के औजार मिले किन्तु आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के शुरूआती पुलाव के बाद चिन्ताएं भी पैदा हुई हैं। पिछले सालों में भारत की स्वास्थ्य सम्बंधी स्थिति में कई अहम बदलाव आये हैं। पिछले दशकों में दवाइयों और कीटनाशकों के विरूद्ध प्रतिरोध की समस्या उभरी है  और संक्रामक व परजीवी जनित बीमारियों ने फिर से सिर उठाया है। जैनेटिक खोजों के कारण उपजी बीमारियों का दायरा बढ़ा है और एडस का नया खतरा तो मुँह बाये खड़ा ही है। इस सबसे लड़ने के लिए जिस तरह के बदलाव की जरूरतें हैं वह नहीं हो पा रही हैं।
              इसको ठीक करने के वास्ते दरकार तो समाज के ढांचे में बदलाव की थी मगर जो असल में हुआ वह है ढांचागत समायोजन। हमारे देश भारत में सन 1991 में ढांचागत समायोजन कार्यक्रम को अपनाया गया। हमें यही कहा गया कि हमारी ‘कमजोर’ अर्थव्यवस्था में यह एक जान फूंकने का प्रयास है। ‘विश्व बैंक’ और ‘मुद्रा कोष’ द्वारा थोंपी गई शर्तों के अधीन देश की आर्थिक नीति में व्यापक बदलाव किये गये हैं और किये जा रहे हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में जरूरी दवाओं सम्बन्धी नियंत्रण खत्म किये गये, सरकारी अस्पतालों में सेवा शुल्क वसूली लागू करने के प्रयास किये गये, स्वास्थ्य पर होने वाले सरकारी खर्च में कटौती जारी है, इसके साथ-साथ निजीकरण को बढ़ावा बेइन्तहा दिया जा रहा है। कारपोरेट सैक्टर द्वारा संचालित बीमा कम्पनियों के माध्यम से सभी के लिए स्वास्थ्य का नारा लाने की पुरजोर कोशिशें  की जा रही हैं।
              ’सन 2000 तक सबके लिए स्वास्थ्य’ का नारा जिस जोशो-खरोश से उछाला गया था, कुछ दिन उसे फुस फुसाया गया और अब तो बहुत से लोग नाम लेना भी भूल गये । इसके एवज में अब ‘चुनिंदा’ प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को ही एकमात्र विकल्प बताकर पेश किया जा रहा है। ऐसी हालत में यह और भी जरूरी हो गया है कि स्वास्थ्य सम्बन्धी बहस को एक बार फिर से नये सिरे से छेड़ा जाए और इसकी समीक्षा की जाए। अन्यायपूर्ण नीतियों को रोकना और संसाधनों व सता के असमान वितरण के प्रयासों का विरोध लोगों की संगठित ताकत से ही संभव है। लोगों का स्वास्थ्य एक अहम मुद्दा होते हुए भी उनका सामुहिक मुद्दा नहीं बन सका है।
                 स्वास्थ्य सभी नागरिकों के लिए एक मौलिक एवं सार्वभौमिक अधिकार है। इस अधिकार के साथ साथ स्वास्थ्य  के उन निर्णायक मुद्यों व अंतरखण्डीय  कारकों जैसे अच्छा भोजन, सुरक्षित साफ पीने योग्य पानी, बेहतर सफाई सुरक्षा व्यवस्था, बेहतर रहन सहन व खान पान, रोजगार, प्रदूषण रहित वातावरण व खाद्य पदार्थ, लिंग जाति व वर्ग आधारित असमानता का निवारण, सभी के लिए स्तरीय व गुणवतापूर्ण शिक्षा, सामाजिक न्याय तथा वर्तमान बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की सभी के लिए उपलब्धता आदि की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। महज ‘थ्री  डी-डाक्टर,डिजीज और डरग्ज-’ के पैमाने से स्वास्थ्य के मुद्दे को नहीं देखा जाना चाहिये और न ही इसे बाजार व्यवस्था में मुनाफे के रुप में देखा जाना चाहिये। खासतौर से तुरन्त लाभ हानि की नजर से नीति निर्घारकों को भी नहीं देखना चाहिये। दुर्भाग्य है हमारा कि हम इन संकीर्ण दायरों में ही स्वास्थ्य के मुद्दे को देख रहे हैं।
                समेकित स्वास्थ्य रक्षा सेवाएं भी स्वास्थ्य के अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है ।  इस अधिकार को पूर्ण करने के लिए हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर संसाधनों से युक्त करने की , उसे विस्तारित करने की तथा उसे जवाब देह बनाने की आवश्यकता  है जिससे देश  की समस्त जनता को साथ में हरयाणा की जनता को मुफत , समेकित, उच्च गुणवता पूर्ण तथा आसानी से उपलब्ध स्वास्थ्य रक्षा सेवाएं प्रदान की जा सकें।
               सरकारी ढांचे में स्वास्थ्य सेवाओं में जरुरत के हिसाब से 76 प्रतिश त डाक्टरों और 53 प्रतिशत नर्सों की कमी है(आर एच एस ) । इसके साथ ही प्रयोगशालाओं में  तकनीशियनों की 80 प्रतिश त और एक्सरे कर्मीयों की 85 प्रतिशत कमी है। यह राष्ट्रीय  आंकडे़ हैं। हरियाणा के आंकड़े भी ज्यादा भिन्न नहीं हैं।-टेबल-
जिला स्तरीय हाॅस्पीटल की संख्या----2010--------21
कुल  गांव की संख्या---2010-----------------6955
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या---2010-------107---111
सब डिस्ट्रिक्ट  हाॅस्पीटल की संख्या---2010 ............25
सब सैंटरों की संख्या----2010----------------2484
प्राथमिक सवास्थ्य केन्द्रों की संख्या---2010--------441

                स्वास्थ्य सुविधाएं, मध्यम दर्जे के कार्यकर्ताओं पर टिकी हैं - नर्सें, ए.एन.एम. (दाइयां) और पैरा मैडीकल कर्मचारी (अर्द्ध चिकित्सा कर्मी)। ये कार्यकर्ता ही लोगों की सामाजिक आर्थिक समस्याओं के सम्पर्क में आते हैं। परन्तु खुद के स्वास्थ्य क्षेत्र के काम के विश्लेषण में इनकी भागीदारी न के बराबर है। पहली बात तो यह है कि निचले दर्जे में होने के कारण इनसे सिर्फ आदेशों के पालन करने की अपेक्षा की जाती है, निर्णयों में इनकी कोई भागीदारी नहीं होती है। दूसरी बात यह है कि इन्हें यदि निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बना लिया जाए तो इनकी ट्रेनिंग इस तरह की नहीं हुई है कि ये अपने व्यवहारिक अनुभवों से अवधारणा या विचार विकसित कर सकें या अवधारणाओं को व्यवहार में बदल सकें।
                 जानकारी अपने आप बदलाव नहीं लाती। परन्तु जानकारी बदलाव की एक पूर्ण शर्त जरूर है। ‘समाज और स्वास्थ्य’ के माध्यम से देश में और हरियाणा में ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ की यह कोशिश है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में हो रहे विकास के ताजा घटनाक्रम को शामिल करके लोगों तक पहुँचा जाए ताकि हम सबको वर्तमान की झलक मिल सके और स्वास्थ्य सेवाओं तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में जन पक्षीय आधार को मजबूत किया जा सके।
           इस उपलक्ष्य में निम्नवत प्रस्ताव रखे जाते हैं जो कि मौजूदा स्वास्थ्य परीस्थिति, जो कि पूर्णरुप से खारीज करने लायक है, को पलट सकें तथा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां तथा स्वास्थ्य सेवाएं लागू करते हुए सबके लिए स्वास्थ्य का सपना साकार कर सकें।
1. हरयााणा में स्वास्थ्य के सामाजिक नियामकों पर ध्यान बहुत आवश्यक  हो गया है- इसके अंतर्गत  स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ावा देना , लोक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाना होगा जिसके तहत स्थानीय खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जाए। राष्ट्रीय  शिशु स्वास्थ्य एवं पोष ण नीति बनाई जाए जिसके अंतर्गत  आई.सी.डी.एस. का सार्वभौमिकी करण हो व तीन साल तक के बच्चों को पूर्ण रुप से शामिल करने हेतू सेवाओं तथा कार्यदल में विस्तार हो। समस्त गावों व मोहल्लों में शुद्ध एवं सुरक्षित पेयजल की सार्वभौमिक उपलब्धता हो तथा हर गांव व मोहल्ले में स्वच्छ शोचालयों तक सार्वभौमिक पहुंच हो।
2. हरयाणा में महिलाओं की स्थिति विचारणीय है। यहां स्वास्थ्य सम्बन्धित लैंगिक पहलूओं को सम्बोधित किया जाना आवश्यक  है -इसके अंर्तगत समस्त महिलाओं तथा समलैंगिक नागरिकों को समेकित , आसानी से उपलब्ध उच्चगुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच व इसकी उपलब्धता की गारण्टी दी जाए जो कि केवल मातृत्व सवास्थ्य सेवाओं तक ही सीमित न हो। उन समस्त कानून ,नीतियों तथा आाचरणों को समाप्त किया जाए जो कि महिलाओं के प्रजनन, यौनिक तथा जनतांन्त्रिक अधिकारों का हनन करता है। उन विभिन्न प्रजनन प्रोद्योगिकियांे को जो कि महिलाओं के लिए हानिकारक हो सकती हैं , नियंत्रित किया जाए । लिंग आधारित उत्पीड़न को एक लोक स्वास्थ्य समस्या माना जाए तथा इसके तहत शारीरिक एवम मानसिक रुप से पीड़ितों को तमाम आवष्यक स्वास्थ्य जांच, दस्तावेजिकरण, रेफरल का अधिकार दिया जाए तथा समन्वित नैतिक चिकित्सीय कानूनी प्रक्रियाओं के लिए भी उन्हें अधिकृत बनाया जाए । स्वास्थ्य सेवाओं को किशोर  किशौरियों के लिए मित्रता पूर्ण  बनाया जाए तथा इस तबके को भी समेकित, उच्चगुणवता पूर्ण , आासनी से पहुंचने लायक स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित हों  जो कि उनके विशेष  प्रजनन तथा यौनिक स्वास्थ्य आवश्यक्ताओं  को पूरा करती हों।
3. हरयाणा में जाति समीकरण बढा है। समस्त जाति आधारित भेदभाव तुरंत समाप्त किया जाए- जाति आधारित भेदभावों को, जो कि बुरे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है , पूर्णरुप से समाप्त करने हेतू त्वरित एवं प्रभावी कदम उठाये जाएं। मानव द्वारा मैला ढोने वाले समस्त मैनुअल कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबन्धित हों। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इस भेदभाव से पीड़ित तबकों को प्राथमिकता दी जाए । इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं का पुर्नगठन किया जाए।
4. हरयाणा में स्वास्थ्य सेवाओं के अधिकार को संवैधानिक बनाया जाए- देश  में और प्रदेश   में स्वास्थ्य के अधिकार का कानून लागू किया जाए जो कि समेकित, उच्चगुणवतापूर्ण, आसानी से उपलब्ध सेवाओं को सुनिश्चित करता हो तथा प्राथमिक, द्वितीय एवं तृतीय स्तरीय सेवायें आवश्यकतानुसार  सबको उपलब्ध करता हो। सेवा प्रदाता को सेवाओं को उपलब्ध नहीं कराने या मना करने पर ;चाहे गुणवता,पहुंच या खर्च से जुड़े हुए कारणों से भी हो।  उसे कानूनी अपराध घोषित किया जाए।
5. हरयाणा में स्वास्थ्य के उपर सार्वजनिक व्यय को बढ़ाया जाए-सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 3--6 प्रतिशत को स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित किया जाए जो कि 2014 की स्थिति में प्रति व्यक्ति 3000 रुपये बनता है। इस व्यय में कम से कम एक तिहाई केन्द्रिीय सरकार से राज्यों को उपलब्ध हो। हरियाणा सरकार का प्रति व्यक्ति खर्च 1786 के लगभग है। एक मध्य सीमा के तहत स्वास्थ्य के उपर किये जाने वाले समस्त सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 5 प्रतिषत तक बढ़ाया जाए।
6. हरयाणा के प्रत्येक जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता एवं गुणवता सुनिश्चित  की जाए-समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में सेवाओं की गुणवता सुनिश्चित की जाए जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावी , सुरक्षित , गैर शोषणीय बनायें तथा लोगों को सम्मानपूर्वक सेवायें उपलब्ध हों। मरीजों के अधिकारों का आदर हो एवं मरीजों की आराम तथा संतुष्टि  पर ध्यान दिया जाता हो। गुणवता का मानक केवल भौतिक या चिकित्सकीय संरचना पर आधारित न हो जो कि प्रायः बड़े कार्पोरेट अस्पतालों या मैडीकल टूरिज्म के लोग को बढ़ावा देते हैं तथा यह कम खर्च में सही एवं प्रभावी सेवाओं के प्रदाय को बढ़ावा नहीं देता है। समस्त लोक स्वास्थ्य संस्थान अपने स्तर पर गारन्टी की गई सभी स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान करने हेतू बाध्य हों। समस्त लोक स्वास्थ्य सुविधाओं को किसी भी प्रकार के उपभोग्ता शुल्क  से मुक्त किया जाए तथा सेवाएं शासन द्वारा संचालित सुविधाओं के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएं न कि निजी सार्वजनिक सहयोग व्यवस्था से।
7. हरयाणा में स्वास्थ्य सेवाओं का सक्रीय एवं निष्क्रिय  निजीकरण बंद हो- सक्रीय निजीकरण के तरीके ; जैसे सार्वजनिक संसाधन या पूंजी को निजी संस्थानों को वाणिज्यिक तौर पर हस्तानन्तरण करना ,पूर्ण रुप से बंद करने हेतू आवश्यक  कदम उठाया जाएं। निष्क्रिय  रुप से हो रहे निजीकरण को रोकने के लिए लोक सुविधाओं में निवेश  बढ़ाया जाए। सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों से प्रदत सेवाएं केवल प्रजनन स्वास्थ्य,टीकाकरण एवं अन्य चुनिन्दा बीमारियों के नियन्त्रण पर सीमित न होकर समेकित स्वास्थ्य सेवाओं पर आधारित हों।
8. हरयाणा के स्वास्थ्य कार्यदल का बेहतर प्रशिक्षण  हो-- स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत सभी कर्मचारियों की बेहतरीन शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए सार्वजनिक निवेश  को बढ़ाया जाए। सरकार द्वारा चलायी जा रही सभी शिक्षण संस्थानों द्वारा उन जरुरत मंद इलाकों से चिकित्सकों, नर्सों तथा स्वास्थ्य कर्मचारियों को आवश्यक  संख्या में चयनित कर शिक्षा व प्रशिक्षण दिया जा रहा है यह सुनिश्चित  किया जाए। प्रशिक्षण नीति में बदलाव लाया जाए जिससे कि स्वास्थ्य कार्यदल द्वारा स्थानीय आवश्यक्ताओं  को पूरा करने हेतू समस्त जरुरी दक्षताएं दी जा सकें। चिकित्सा तथा संबन्धित क्षेत्र के उच्च शि क्षा व्यवस्था के वाणिज्यिकरण बंद हों तथा निजी शिक्षण संस्थाओं के व्यवस्थित नियन्त्रण हेतू प्रभावी एवं पारदर्शी  तन्त्र लागू किया जाए।भारतीय चिकित्सा परिषद,भारतीय नर्सिंग परिषद जैसी संस्थाओं व दूसरी विनियामक संस्थाओं को गहन समीक्षा के पश्चात  पुनर्गठित किया जाए जिससे कि वर्तमान भ्रष्ट  एवं अनैतिक व्यवस्था को समाप्त किया जा सके।
9. बेहतर शासित ,प्रयाप्त लोक स्वास्थ्य कार्यदल हो-- लोक स्वास्थ्य प्रणाली में समस्त सेवाओं के लिए आवश्यक  सभी पद एवं स्थान प्रर्याप्त रुप से सृजित किये जाएं एवं इन पदों को समय समय पर भरा जाये। संविदा में नियुक्त कर्मचारियों को नियमित किया जाए तथा आशाओं , बहुउद्येशीय कार्यकर्ताओं तथा अन्य लोक स्वास्थ्य तऩ्त्र के कर्मचारियों का प्रयाप्त रुप से क्षमता निर्माण किया जाए एवं उन्हें अपने कार्य के लिए सही मानदेय दिया जाए व उपयुक्त कार्य करने का माहौल प्रदान किया जाए। कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए तथा इस हेतू महिला कर्मचारियों के लिए विषेश व्यवस्था बनाई जाए। उपलब्ध शोध  से यह पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्र में डाक्टरों की कमी पेशेवर समस्याओं से ज्यादा प्रशासनिक कमजोरी तथा राजनैतिक पराजय के चलते है, जिसके सुधारने के लिए कार्य किया जाए । हर स्तर के लिए ऐसे लोक स्वास्थ्य कैडर का गठन हो जिसमें प्रयाप्त संख्या में चिकित्सक, नर्सें तथा स्वास्थ्यर्किर्मयों का दल सम्मिलित हो जिसको प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में, लोक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में एवं एक दल के रुप में बेहतर कार्य करने में प्रशिक्षण प्राप्त हो।
10. हरयाणा में सभी आवश्यक  दवाओं का एवं जांच सुविधाओं की मुफत एवं गुणवतापूर्ण उपलब्धता सुनिश्चित  हो।  जिस प्रकार तामिलनाडू, केरल एवं राजस्थान राज्य में किया गया है वैसा स्वायत , पारदर्शी  एवं आवश्यकता   आाधारित दवा एवं अन्य सामग्रियों के लिए खरीदी एवं वितरण प्रणाली गठित एवं लागू हो। लंबित बीमारियों के सभी मरीजों के लिए सभी आवश्यक  दवाओं का पूरी अवधि के लिए उपलब्धता सुनिश्चित  हो एवं दवा वितरण केन्द्रों को मरीजों के आसान पहुंच के मद्येनजर गठित किया जाये। समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में जेनेरिक दवाओं के प्रिस्क्रिप्शन  एवं उपयोग को अनिवार्य करार दिया जाये।
11. हरयाणा में प्रत्येक स्तर पर सामुदायिक सहभागिता, सहभागी योजना निर्माण एवं समुदाय आधारित निगरानी को बढ़ावा दिया जाये।  स्वास्थ्य सेवायें जनता के प्रति जवाबदेह हों। इसके लिए समुदाय आधारित निगरानी एवं योजना निर्माण प्रक्रिया को समस्त लोक स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं सेवाओं का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाये जिससे कि सेवा प्रदान में उतरदायित्व एवं पारदर्शिता  बढे। शिकायत निवारण की प्रक्रियाओं को सुचारु रुप से चलाने के लिए संस्थागत व्यवस्थायें बनाई जायें जिसके लिए प्रयाप्त धन राशि  के साथ साथ आवश्यक  प्रबंधन स्वायतता भी प्राप्त हो।
12. हरयााणा की लोक स्वास्थ्य प्रणाली को भ्रष्टाचार  मुक्त किया जायेः नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानान्तरण, खरीदी तथा अधोरचना विकास के लिए पारदर्शी  नीतियां बनाई जायें तथा लागू की जाएं जिस प्रकार तामिलनाडू राज्य ने खरीदी के लिए तथा कर्नाटक राज्य  ने स्थानान्तरण के लिए नीतियां बनाई हैं। शिकायत निवारण की प्रक्रियाओं को सुचारु रुप से चलाने के लिए संस्थागत व्यवस्थायें बनाई जायें जिसके लिए प्रयाप्त धनराशि  के साथ साथ आवश्यक  स्वायतता भी  प्राप्त हो।
13. निजी अस्पतालों द्वारा किये जाने वाले शोषण को समाप्त किया जाये।  राष्ट्रीय  क्लिनिकल एस्टेब्लिश्मैंट  एक्ट के अंर्तगत मरीजों के अधिकार हर संस्थाओं में सुरक्षित हों । विभिन्न सेवाओं के दाम नियंत्रित हों। प्रिस्क्रिप्शन , जांच तथा रेफरल के पीछे चलने वाली घूसखोरी को बंद किया जाए, एवं इसके लिए शासन द्वारा पर्यवेक्षित लेकिन स्वतंत्र शिकायत निवारण व्यवस्था लागू की जाये। मानक निर्माण का प्रकार ऐसा हो जिसमें कारपोरेट हित का बढ़ावा न हो सके। इन तमाम व्यवस्थाओं पर यह भी विशेष  ध्यान हो कि नैतिक एवं गैर वाणिज्यिक सेवा प्रदान करने वाले निजी प्रदाताओं को संपमूर्ण परिरक्षा मिल रहा है।
14. समस्त सार्वजनिक बीमा योजनाओं को समय सीमा के अन्र्तगत लोक सेवा व्यवस्था में विलीन किया जाये।  आर एस बी वाई जैसे तथा अन्य राज्य संचालित बीमाएं कर-आधारित सार्वजनिक वितीय व्यवस्था  से पोषित  लोक स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में समय सीमा के अंर्तगत विलीन हो । इन बीमा योजनाओं के अंर्तगत प्राप्त सभी सेवायें लोक स्वास्थ्य प्रणाली में भी सम्मिलित हों एवं इसके लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को लोक स्वास्थ्य प्रणाली में पूर्ण रुप से शामिल किया जाये जिससे कि उनके लिए समेकित स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो।
15  . हरयाणा मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज ‘योजना’, जननी सुरक्षा योजना आदि सभी स्वास्थ्य योजनाओं को ठीक प्रकार से लागू किया जाए। इसके लिए जिला स्तर पर सामाजिक संस्थाओं व जन संगठनों के कार्यकर्ताओं की एक माॅनिटरिंग कमेटी बनाई जाए जिसकी सिफारिशों पर सम्बंधित विभाग उचित कार्यवाही तुरन्त करे।
16 .  हरयाणा से गुजरने वाले हाइवे पर एक्सीडैंट होने पर 48 घण्टे तक सभी को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं देने की योजना उचित ढंग से लागू की जाए।
17  . स्वास्थ्य नीतियों के विकास में तथा प्राथमिकतायें तय करने में बहुपक्षीय अंर्तराष्ट्रीय वितीय संस्थाओं का तकनीकी सहयोग पूर्ण रुप से समाप्त हो।  विश्व  बैंक,यू.एस.एड.,गेट्स फाउन्डेशन,कंसलटेंसी संस्थाएं जैसे डियोलाइट,मैकेन्सी आदि  की राष्ट्रीय  स्वास्थ्य प्राथमिकतांए एवं वितीय या सेवा प्रदाय रणनीतियों के निर्धारण में भूमिका को पूर्ण रुप से समाप्त किया जाये। शोध  व ज्ञान संसाधन के विकास एवं वितरण के लिए एक विशेष  अंर्तराष्ट्रीय सहयोग प्रणाली गठित की जाये , खासकर अन्य विकासशील देशों  के साथ। डब्लू.एच. ओ. ,यूनिसेफ तथा अन्य संयुक्त राष्ट्र  संस्थाओं के उपर तकनीकी निर्भरता एवं उनकी वितिय सहायता की आवश्यकता  से मुक्त किया जाने हेतू शासकीय स्तर पर दबाव बनें। इस प्रकार की संस्थाओं की ओर से आने वाले परामर्श  तथा विशेषज्ञता को भी समीक्षात्मक दृष्टि  से देखा जाये क्योंकि यह संस्थांए भी कारपोरेट एवं निजी संस्थानों के हित से प्रभावित हैं।
18 . राष्ट्रीय  एवं राज्य स्तर पर स्वास्थ्य पर शोध  एवं विकास के लिए क्षमता निर्माण हो।  लोक स्वास्थ्य बजट का कम से कम 5 प्रतिशत स्वास्थ्य पर शोध  के लिए आवंटित हो जिसमें स्वास्थ्य तन्त्रों पर शोध  भी शामिल हो। स्वास्थ्य के क्षेत्र में तथा स्वास्थ्य तन्त्रों पर शोध  हेतू नवीन संस्थागत ढांचे शासन द्वारा गठित हों तथा मौजूदा संस्थाओं को प्रयाप्त शासकीय वितिय सहायता दी जाये।
19 . आवश्यक  एवं सुरक्षित दवाईयों तथा उपकरणों की सही उपलब्धता सुनिश्चित  हो।  सभी दवाईयों का मूल्य आधारित दाम नियन्त्रण हो , दवा एवं उपकरण सुरक्षा के लिए आवश्यक  प्रावधान हो। जेनेरिक दवाईयों के वितरण के लिए प्रयाप्त सुंविधायें लागू हों व चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक दवाईयों के प्रिस्क्रिप्शन  हेतू अनिवार्यता हो। इंडियन पेटैंट एक्ट के अंर्तगत लोक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए की गई व्यवस्थाओं का दवाईयों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए उपयोग हो तथा ज्यादातर दवाईयों एवं उपकरणों के देशी  निर्माण को बढावा मिले।
20 . जैव चिकिस्तकीय शोध तथा क्लिनिकल ट्रायलों  की सशक्त विनियामक व्यवस्था हो।  क्लिनिकल ट्रायलों के नैतिक संचालन हेतू स्पष्ट  रुप रेखा तैयार एवं लागू हो जिससे समस्त हितग्राहियों के सशक्त विनियम के लिए व्यवस्थायें बंधित हों चाहे वे वितीय प्रदाता हों  ,शोध  संस्थाएं हों या नैतिक समितियां हों। सी.डी.एस.सी.ओ. तथा आई.सी. एम. आर. द्वारा समस्त क्लिनिकल ट्रायलों की तथा ट्रायल स्थानों की सशक्त निगरानी की जाये तथा ट्रायल संस्थानों के आंवटन के दौरान वहां पर आवश्यक  सभी आपातकालीन स्थिति के निपटारे हेतू व्यवस्थायें सुनिश्चित  हों । क्लिनिकल ट्रायलों में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को प्रयाप्त क्षतिपूर्ण राशि  उपलब्ध कराने हेतू एवं उनको हो सकने वाले समस्त बुरे प्रभाव निपटारे के लिए प्रयाप्त व्यवस्था के साथ निर्देष विकसित और लागू हों। क्लिनिकल ट्रायल प्रतिभागियों के लिए उनके अधिकार पत्र विकसित किये जायें जिसकी कानूनी रुप में भी वैधता हो।
21 . हरयाणा के सभी मानसिक रुप से पीड़ित मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं एवं रक्षा सुनिश्चित  की जायें।  जिला स्तरीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को राष्ट्रीय  स्वास्थ्य मिशन के अंर्तगत शामिल किया जाये। राष्ट्रीय   मानसिक स्वास्थ्य नीति पर अमल हो तथा मानसिक स्वास्थ्य कानून पास किया जाये।
22 . हरयाणा में कीटनाशक दवाओं के अन्धाधुन्ध इस्तेमाल के चलते हर क्षेत्र--मानवीय, पशु व खेती में इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मानवीय स्तर पर इन कीटनाशकों की मात्रा पता लगाने के टैस्टों की सुविधा इस प्रदेश के इकलौते पीजीआईएमएस में भी नहीं है। कई तरह की बीमारियां इसके चलते बढ़ रही हैं या पैदा हो रही हैं। यह सुविधा तत्काल मुहैया करवाई जाए।
23 . हरयाणा के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर - एक सर्जन, एक फिजिसियन, एक शिशु रोग विशेषज्ञ व एक महिला रोग विशेषज्ञ के प्रावधान के मानक केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा तय किये गए हैं। इसके साथ यदि मरीज बेहोशी का विशेषज्ञ नहीं है तो सर्जन और गायनकाॅलोजिस्ट तो अपंग हो जाते हैं। इसलिए इन पांचों विशेषज्ञों की नियुक्तियां प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में  की जाए।
24 . हरयाणा प्रदेश के जिलों में गुड़गांव, रोहतक, हिसार, भिवानी,फरीदाबाद और सोनीपत में विशेष  आर्थिक पैकेज के तहत 1500 करोड़ रुपये की परियोजनांए शुरू  की गइ्र हैं जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए इन जिलों के अस्पतालों को अपग्रेड  करके सुपर स्पैशिलिटी अस्पताल बनाये जा रहे हैं। बहुत ही हाईटेक उपकरण पिछले सालों में खरीदे गए जो बहुत कम जगह और कमतर स्तर पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं। यहां पर उपयुक्त स्टाफ की कमी को पूरा करते हुए इसके लिए सम्बंधित विशेषज्ञों, डाॅक्टरों, नर्सों व पैरामैडिकल स्टाफ को उपयुक्त ट्रेनिंग देने की भी आवश्यकता है। निशुल्क  सर्जीकल पैकेज योजना के तहत 2009 से बी. पी. एल परिवारों को दी जा रही निशुल्क  सर्जरी
की सेवा को लागू करने में आ रही सभी दिक्कतों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाये जायें। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले व अधि सूचित झोंपड़ पट्टियों एवं बस्तियों के निवासियों के सभी आपरेशन मुफत करने की योजना को सही ढंग से लागू किया जाए । इंदिरा बाल स्वास्थ्य योजना 26 जनवरी 2010 से लागू की गई। जिसके तहत अठारह वर्ष  तक की आयु के बच्चों के स्वास्थ्य कार्ड बना कर सरकारी अस्पतालों में उनके स्वास्थ्य की निशुल्क  जांच व ईलाज किया जाता है। बहुत से लोगों को इन सब योजनाओं से वाकिफ ही नहीं करवाया गया लगता और इनके क्रियान्वयन की दिक्कतों को भी दुरुस्त करने के कदम पहले सुझाये गये माध्यमों के द्वारा उठाये जायें। प्रदेश  में 2005 तक एम. बी.बी.एस.की कुल सीटें 350 थी जो वर्श 2013 में 850 हो गई। मगर इन विद्यार्थियों की गुणवता पूर्ण मैडीकल शिक्षा के लिए जरुरी फैकल्टी की काफी कमी हैं । साथ ही हरेक मैडीकल कालेज में इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुत कमी है जिसे पूरा करना बड़ी चुनौती है।
25 . राष्ट्रीय  खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत दाल रोटी योजना को सही सही लागू किया जाए।
26 . कुपोषण ---नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे तीन के अनुसार हरियाणा में बढ़ा है। इसके लिए कारगर कदम उठाये जायें। इसी प्रकार गर्भवती महिलाओं में नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे तीन के अनुसार नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे दो के मुकाबले 10 प्रतिशत खून की कमी बढ़ी है। इसके साथ-साथ लड़कियों में किये गये सरकारी सर्वे में भी खून की कमी का प्रतिशत काफी पाया गया है। उचित कदम उठाये जाने की जरूरत है।
27 . पी एन डी टी एक्ट के तहत उचित कार्यवाही की जाएं।