Thursday, 6 May 2021

JSA MANIFESTO

अल्मा आटा सम्मेलन की 40वीं वर्षगांठ याद दिलाती है कि इसमें ‘सभी के लिए स्वास्थ्य’ की घोषणा की गई थी। इस मौके पर जन स्वास्थ्य अभियान, भारत के सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य अधिकार और स्वास्थ्य सेवायों के अधिकार परभारी जोर देते हुए हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में वर्तमान सरकार द्वारा उठाए जा रहे जन-विरोधी कदमों का विरोध करते हैं। हम निम्नलिखित विभिन्न हानिकारक नीतियों का पुरजोर विरोध करते हैं, जैसे कि:

भारतीय संविधान में स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने के लिए संवैधानिक संषोधन करने में विफलता,

‚‚ स्वास्थ्य बजटों को वास्तविक मायनों में घटाना,

‚‚ जन-स्वास्थ्य सेवाओं की बिगड़ती स्थिति और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिषन से संबंधित विभिन्न बदतर कदम,

‚‚ बदनाम बीमा मॉडल पर आधारित प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना या राष्ट्रीय स्वास्थ्य रक्षा योजना को प्रारम्भ करना, जबकि प्राइवेट अस्पतालों के माध्यम से सेवाएँ देने की स्वास्थ्य बीमा योजनायों की असफलता के प्रयाप्त प्रमाण उपलब्ध हैं,

‚‚ जिला अस्पतालों और अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवायों का निजीकरण करने के प्रयास, मेडिकल शिक्षा का व्यवसायीकरण, जिसने छात्रों के शिक्षा सस्थानों में प्रवेश लेने में अधिक शुल्क की गुंजाइश पैदा की,

‚‚ निजी चिकित्सा क्षेत्र पर लगाम लगाने से लगातार इनकार करना, जिसके कारण मरीजों का शोषण कर निजी सेक्टर द्वारा, खास तौर पर कार्पोरेट अस्पताल द्वारा भयंकर मुनाफाखोरी करते जारी है,

‚निर्माण की लागत के आधार पर औषधियों की कीमतों को असरदार ढंग से नियंत्रित करने के प्रति अनिच्छुक होना,

‚‚ जरूरी दवायों के दामों और दवा उद्योग द्वारा की जा रही अनैतिक मार्केटिंग पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम और कानूनी आचार संहिता नहीं उठाया जाना, जनसंख्या के बड़े हिस्से को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं से लगातार वंचित रखा जाना

‚‚ सरकार द्वारा नव-उदारवादी मॉडल अपनाने से स्वास्थ्य के सामाजिक करकों की स्थिति बिगाडा है, जिसके कारण विभिन्न गैर-संक्रामक बीमारियों एवं कुपोषण में वृद्धि हुआ है और संक्रामक बीमारियां पुनः उभरे हैं। दूसरी तरफ, स्वास्थ्य सेवायों के क्षेत्र में नव-उदारवादी नीतियों से सार्वजनिक प्रणालियां कमजोर हुईं और स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त अविनियमित एवं व्यवसायीकरण में वृद्धि हुई है। 

सभीके स्वास्थ्य के अधिकार के लिए वृहद्सामाजिक

‚‚ कारकों को सुनिश्चित करना जरूरी है और साथ ही स्वास्थ्य सेवायों का सार्वभौमिकरण अनिवार्य है जिसकी रीढ़ और नेत्रित्व का काम सशक्त, लोकतान्त्रिकृत, और जवाबदेह सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र करता है।

‚‚ इस संदर्भ में हम विशेषकर आगामी लोक सभा चुनाव के मद्देनजर विभिन्न पार्टियों एवं उम्मीदवारों द्वारा प्रतिबद्धता प्रकट करने के लिए निम्नलिखित कदम प्रस्तावित करते हैं। यह इस अपेक्षा के साथ किया जा रहा है किसत्ता में आने वाली पार्टियां इन नीतिगत कदमों पर अमल करेंगी और विपक्ष की भूमिका निभाने वाली पार्टियां निर्वाचित निकायों के भीतर एवं उनके बाहर सभी उपलब्ध मंचों पर इन प्रस्तावों तथा मांगों को उठाएंगी। जन स्वास्थ्य अभियान इन प्रस्तावित अत्यावश्यक कदमों पर आम सहमति बनाने के लिए जनता के विभिन्न वर्गों में चर्चा को ले जाएगा और उन्हें एकजुट करके अभियान चलाएगा।

1. स्वास्थ्य के अधिकार को कानूनी अधिकार बनाना: केन्द्र और राज्य दोनों स्तर पर उपयुक्त कानूनों को बना कर स्वास्थ्य के अधिकार को न्यायोचित अधिकार बनाया जाए। इस प्रकार के कानून अच्छी गुणवत्ता वाली और व्यापक स्वास्थ्य सेवाओं को सुनिश्चित करे, जिसमें पूरी आबादी के लिए प्राथमिक (प्राइमरी), सेकेंडरी और टर्शिअरी सेवाएं भी शामिल हैं। साथ ही, एक जन-स्वास्थ्य कानून बनाया जाए, जो जनता के स्वास्थ्य के कारक तक पहुंच सुनिश्चित करे और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले प्रभावों से रक्षा करे। साथ ही स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवायों को भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार बनाने की प्रक्रिया में इनका योगदान होना चाहिए।

2. स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय में भारी वृद्धि: सामान्य कराधान के जरिए वित्तपोषण से स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय में भारी वृद्धि की जाए, जो तुरंत जी.डी.पी. के 3.5 प्रतिशत के बराबर हो (यह वर्तमान दरों पर वार्षिक रूप से प्रति व्यक्ति 4,000 रु. हो, जैसा कि 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में सिफारिश की गई है) और कुछ वर्षों में जी.डी.पी. के 5 प्रतिशत के बराबर हो। इसमें केन्द्र सरकार 60 प्रतिशत और राज्य सरकारें 40 प्रतिशत व्यय का योगदान करें। इसके अलावा, वर्तमान में व्यक्तियों की जेब से होने वाला व्यय अत्यंत ज्यादा है, इसलिए उसको तेजी से घटाया जाए और यह स्वास्थ्य के कुल व्यय का एक-चौथाई से भी कम किया जाना चाहिए। केन्द्र के हाथों में वित्तीय अधिकारों के केन्द्रीकरण के कारण राज्यों पर गंभीर वित्तीय दबाव रहते हैं, इसलिए इस समस्या पर काबू पाने के लिए केन्द्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों के अधिक विकेन्द्रीकरण पर ध्यान दिया जाना चाहिए। केन्द्र सरकार द्वारा अतिरिक्त मानव संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण मात्रा में वित्तीय योगदान की प्रतिबद्धता प्रकट की जानी चाहिए। उदाहरणार्थ, दावों के विपरीत, स्वास्थ्य एवं आरोग्य केन्द्रों के लिए 1200 करोड़ रु. का अतिरिक्त आवंटन नहीं किया गया है और यह राशि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बजट से घटा दी जाएगी और राज्यों को अतिरिक्त वित्तीय बोझ वहन करना पड़ेगा, जिससे जरूरतमंद हाशिए पर और धकेले जायेंगे। यह 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की प्रतिबद्धता से विश्वासघात होगा, जिसमे नब्बे के दशक में थोपा गया अत्यंत चयनात्मक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल से हट कर,एक व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था की दिशा में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधारकी बात राखी गयी है ।

3. जन-स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के सभी रूपों को रोकना: ई.एस.आई., रेलवे, और अन्य सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों, सरकारी अस्पताल, जिसमे समुचित ढंग से संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं जिला अस्पताल भी शामिल हैं, इनको निजी प्रबंधन को सौंपने की एक गुप्त योजना चल रही है। इसके बजाए, ये स्वास्थ्य केंद्र सरकारी स्वामित्व के अंतर्गत रखी जाएं। अधिकांश सरकारी-निजी साझेदारियों (पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप) चंद लोगों के लिए आकर्षक मुनाफा कमाने और शासकीय संस्थाओं के बजाए निजी संस्थाओं की स्थापना के लिए निर्माण किया गया है, न कि गुणवत्तायुक्त सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए । इसका दृढ़तापूर्वक विरोध करना आवश्यक है।

4. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का विस्तार और मजबूती: लोगों को पूर्ण रूप से निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ, प्राथमिक से टर्शिअरी स्तर तक, एवं सरकारी अस्पतालों में सभी आवश्यक औषधियां एवं जांच सेवाएं सुनिश्चित की जाएद्य । इसके साथ, इससे मेल खाने वाली मानव संसाधन नीति बनाई जाए और बेहतर गवर्नेंस तथा प्रबंधन किया जाए। चुनिन्दा सेवाओं के लिए निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों तक रेफरल की व्यवस्था की भी जरुरत पर सकती है, जहां उनकी इन-हाउस व्यवस्था संभव नहीं है। साथ ही कुछ अधीनस्थ और सहायक सेवाओं को प्रदान करने के लिए निजी एजेंसियों से मदद ली जा सकती हैद्य यह दिशा प्रस्तावित आयुष्मान भारत कार्यक्रम के रणनीति से विपरीत रहेगाद्य इसमें निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को अंधाधुंध तरीके से सार्वजनिक संसाधन सौपकर मजबूत करने की बजाय सार्वजनिक प्रणाली की मजबूती के लिए कुछ ही चुनिन्दा सेवायों के लिए निजी स्वास्थ्य प्रदयकर्ताओं को उपयोग करने की दिशा में कदम होगा।

5. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की क्षमता का संवर्धन: बीमारियों की रोकथाम और उनमें कमी लाने के उपायों की सिफारिश करने के लिए, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की स्वास्थ्य के नए उभरते सामाजिक कारकों की निगरानी एवं विश्लेषण करने की क्षमता का संवर्धन किया जाना चाहिए। अंतर-क्षेत्रीय तालमेल पर जोर देना होगा ताकि सरकारी विभाग स्वास्थ्य के इन सामाजिक कारकों में सुधार लाने के लिए विभिन्न स्तरों पर मिल-जुल कर कार्य करें।

6. सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस रोकना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

7. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अग्रणी और विनियामक भूमिका: मात्रा और गुणवत्ता दोनों की दृष्टि से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में युक्तिसंगत ढंग से आमूल-चूल सुधार किया जाए, उसको लोकतंत्रीकृत किया जाए और उसका विस्तार हो ताकि वह राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली में एक अग्रणी और विनियामक भूमिका निभाने में सक्षम हो। सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवाओं (‘कवरेज’ या ‘आश्वासन’ नहीं) के लिए एक सार्थक रूपरेखा-आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण किया जाए और उसको बढ़ावा दिया जाए। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के व्यापक विस्तार और मजबूती के साथ एक अंतरिम तंत्र के रूप में निजी प्रदाताओं को कुछ जिम्मेदारियां दिए जाएं ताकि स्वास्थ्य रक्षा में वर्तमान कमियों को भरा जा सके। ऐसा करते समय सार्वजनिक व्यवस्था की सीमा और पहुंच को अधिकाधिक बनाना उद्देश्य होगा।

8. ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ या ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य रक्षा मिशन’ जैसी योजनाओं को त्यागना: आयुष्मान भारत के तहत ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ या ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य रक्षा मिशन’ की योजना को त्याग दिया जाए क्योंकि ये बदनाम बीमा मॉडल पर आधारित हैं। विभिन्न अनुमानों के अनुसार इन योजनाओं पर 12,000-50,000 करोड़ रु. के वार्षिक परिव्यय का पूर्वानुमान लगाया गया है, जिसका सरकारी स्वास्थ्य तंत्र के विस्तार और स्थायी सार्वजनिक संपत्ती के सृजन में निवेश करके बेहतर उपयोग किया जा सकता है। वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को एक विस्तारित और मजबूत सार्वजनिक प्रणाली में समाहित किया जाना चाहिए।

9. ठेके पर कार्यरत सभी कर्मचारियों को नियमित करना: स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान करने वाली आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं सहित ठेके (कॉन्ट्रैक्ट) पर कार्यरत सभी कर्मचारियों को नियमित किया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि उन्हें श्रम कानूनों से संरक्षण प्राप्त हो। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के सभी स्तरों के स्टाफ को पर्याप्त कौशल प्रशिक्षण, समुचित वेतन और स्थान नियोजन देने की व्यवस्था की जाए एवं कार्यस्थल में समुचित परिस्थितियां उपलब्ध हो ।

10. व्यवसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के बारे में व्यापक नीति निर्माण और अमलः व्यावसायिक स्वास्थ्य को मेडिकल पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। व्यावसायिक स्वास्थ्य पर जवाबदेही और अवहेलनाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। बड़ी कंपनियों की जिन परियोजनाओं से स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ने की आशंका है, उन सभी के बारे में पहले पारदर्शी, सहभागी और गहन तकनीकी तरीके से स्वास्थ्य पर प्रभावों का संभावित मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इस आधार पर ही उनको स्वास्थ्य संबंधी हरी झंडी दी जाए।

11. स्वास्थ्य कर्मिया ंे की शिक्षा और प्रशिक्षण म ंे सार्वजनिक निवश्े ा की वृद्धिः सरकार द्वारा सचं ालित कॉलजे ा ंे म ंे क्षमता निर्माण क े लिए सभी तरह के स्वास्थ्यकर्मिया ंे की शिक्षा और प्रशिक्षण म ंे सार्वजनिक निवश्े ा की वृद्धि सुनिश्चित की जाए। पर्याप्त संख्या में स्थायी पद का सृजन कर सुप्रशासित और पर्याप्त जन-स्वास्थ्यकर्मिया ंे का बल स्थापित किया जाना चाहिए पारदर्शी तरीके से मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों जैसे वर्तमान निजी संस्थाओं क े विनियमन क े लिए सख्त तत्रं की स्थापना की जाए तथा नए निजी मेि डकल कॉलजे ा ंे की स्थापना या कैपिटश्े ान फीस की वसलू ी पर पाबदं ी लगाई जाए। भ्रष्टाचार और अनैतिक तौर तरीकों की समाप्ति के लिए भारतीय मेडिकल परिषद और भारतीय नर्सिंग परिषद में आमूल-चूल सुधार किए जाए।ं प्रत्याशिया ंे की भर्ती म ंे राज्य-विशष्े ा क े नियमा ंे और प्रक्रियाआ ंे के साथ योग्यता एवं पारदर्शिता को संयोजित किया जाए और साथ ही कठिन क्षेत्रों में काम करने के लिए उपयुक्त प्रत्याशियों को खोजा जाए।

12. सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में आवश्यक एवं जीवन रक्षक औषधियों और जांच सेवाओं तक पहुंच की गारंटी: सभी राज्य सरकारों की सक्रिय भागीदारी के साथ भारत सरकार को बिना किसी देरी के पूरे देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र में सभी आवश्यक एवं जीवन रक्षक औषधियों और जांच सेवाओं तक पहुंच की गारंटी प्रदान करनी चाहिए। इस योजना का दायरा और कवरेज तमिलनाडु, केरल एवं राजस्थान में चल रही योजनाओं से कम न हो, जिससे स्वास्थ्य सुविधाओं में सभी स्तरों पर बिना किसी शुल्क के सभी तरह की औषधियों तथा मेडिकल जांच पहुंच सुनिश्चित होगी। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सभी उपयुक्त, सुरक्षित और किफायती टीकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को पुनर्जीवित किया जाए और देश में औषधियों एवं टीकों के निर्माण के लिए नई शासकीय इकाइयों की स्थापना की जाए ताकि देश इनके निर्माण में आत्मनिर्भर बने। सभी सार्वजनिक औषधि अनुसंधान संस्थानों को पर्याप्त फंड्स दिए जाएं। ओपन सोर्स ड्रग डिसकवरी मॉडल के जरिए औषधि अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए।

13. वैज्ञानिक रूप से जन-हितैषी औषधीय नीति बनाना: सरकार को वैज्ञानिक

रूप से जन-हितैषी औषधीय नीति अपनानी चाहिए। इस लक्ष्य की प्राप्ति

के लिए वह निम्नलिखित उपाय करे रू

लल निर्माण लागत पर आधारित मूल्य निर्धारण प्रणाली के जरिए सभी

आवश्यक औषधियों और उनके अनुरूपों (एनोलोग्स) के साथ मेडिकल

उपकरणों को मूल्य नियंत्रण के अंतर्गत लाना,

लल सभी युक्तिसंगतहीन औषधियों और युक्तिसंगतहीन नियत खुराक औषधि

सम्मिश्रणों (फिक्स्ड दोस ड्रग कॉम्बिनेशन) पर प्रतिबंध लगाना,

लल औषधीय मार्केटिंग के तौर तरीकों के बारे में समान कानूनी आचार

संहिता (यूनिफार्म कोड फॉर फार्मास्युटिकल्स मार्केटिंग प्रक्टिसेस)

अपनाकर अनैतिक मार्केटिंग को असरदार ढंग से विनियमित और

उन्मूलन करना,

लल युक्तिसंगत औषधियों, टीकों, निदानों और मेडिकल उपकरण संबंधी

नीति बनाना,

लल पर्याप्त संख्या में जेनेरिक औषधि बिक्री केन्द्र खोलने को बढ़ावा देना।

सरकार को एक जेनेरिक औषधि नीति तैयार करनी चाहिए और

जेनेरिक औषधियों की आसान उपलब्धता सुनिश्चित करते हुए डॉक्टरी

नुस्खे में जेनेरिक नाम लिखने को अनिवार्य बनाना होगा,

लल औषधियों तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए भारतीय पेटेन्ट अध्

िानियम में सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी उपायों को स्थान देना। पेटेन्ट

के दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए और आवश्यक

औषधियों के निर्माण के लिए स्थानीय निर्माताओं को अनिवार्य लाइसेंस

दिए जाएं। उस नवोन्मेषी पारिस्थितिकी प्रणाली का निर्माण किया जाए,

जो हमारी बदलती स्वास्थ्य-जरूरतों, विशेषकर जिन बीमारियों के

इलाज पर कम ध्यान दिया जाता है, के लिए आवश्यक निदानों और

उपचार को सुनिश्चित करने के लिए औषधियों एवं नैदानिक नवोन्मेष

को सक्रिय रूप से बढ़ावा देती है।

14. पारदर्शी नीतियों से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में भ्रष्चाचार की समाप्तिः

पारदर्शिता अधिनियम के जरिए नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानांतरण, वस्तुओं एवं

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जन स्वास्थ्य घोषणा पत्र-2019

सेवाओं की खरीद और इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए पारदर्शी नीतियों

से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में भ्रष्टाचार की समाप्ति तथा मजबूत

शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना, जिसको कार्यक्रम एवं नीतियों पर

अमल में शामिल प्रणालियों की निश्चित स्वायत्तता के साथ प्रबंधित करना।

केन्द्र और राज्यों में अलग-अलग खाद्य एवं औषधि कोर्ट की स्थापना की

जाए।

15. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के समुदाय-आधारित नियोजन एवं निगरानी

को सार्वभौमिक बनाना: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की जवाबदेही और

अनुकूलता को सुनिश्चित करने के लिए सभी स्तरों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य

सेवाओं के समुदाय-आधारित नियोजन एवं निगरानी को सार्वभौमिक बनाया

जाए। समय बीतने के साथ एक लोकतंत्रीकृत, समुदाय-संचालित स्वास्थ्य

प्रणाली और एक स्वास्थ्य देखभाल रूपरेखा की ओर कदम बढ़ाया जाए,

जिसमें विविध सामुदायिक जरूरतों तथा संवेदनाओं का ध्यान रखा जाना

चाहिए।

16. ई.एस.आई. प्रणाली का विस्तार और मजबूती: कर्मचारी राज्य बीमा

अधिनियम (ई.एस.आई.) अधिनियम, 1948 के विस्तार और पुनर्जीवन से

संबद्ध संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए एक

व्यापक स्वास्थ्य देखभाल रक्षा प्रणाली का समावेश सुनिश्चित करना।

असंगठित क्षेत्र और कृषि क्षेत्र में विशेषकर उन कर्मचारियों को सम्मिलित

किया जाए, जो वर्तमान में सामाजिक सुरक्षा तंत्र के अंतर्गत नहीं हैं।

17. निजी मेडिकल क्षेत्र का नियंत्रण और राष्ट्रीय नैदानिक प्रतिष्ठान अधिनियम

(क्लिनिकल एस्टाब्लिश्मेंट्स एक्ट) में संशोधन: मरीजों के अधिकारों के

अनुपालन, विभिन्न सेवाओं की दरों एवं उनकी गुणवत्ता के विनियमन,

डॉक्टरों द्वारा निदाननऔर रेफरल में घूसखोरी को रोकने और मरीजों की

शिकायतों का निपटारा सुनिश्चित करने के लिए निजी क्षेत्र के असरदार

ढंग से नियंत्रण एवं राष्ट्रीय नैदानिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 2010 में

संशोधन आवश्यक है। सभी राज्यों द्वारा राष्ट्रीय अधिनियम या राज्य-विशेष

अधिनियम को अपनाया जाए, जिसमें राष्ट्रीय अधिनियम की सभी विशेषताएं

सम्मिलित हों। एक जन-प्रबंधित प्रवेश प्रणाली और सरकारी अस्पतालों

एवं चेरिटेबल ट्रस्ट के अस्पतालों के बीच नियमित रेफरल व्यवस्था स्थापित

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जन स्वास्थ्य घोषणा पत्र-2019

की जाए। जिन ट्रस्टों के अस्पतालों तथा निजी अस्पतालों को सब्सिडीकृत

दरों पर अस्पताल के लिए जमीन दी गई है, उनमें आर्थिक रूप से कमजोर

वर्गों के लिए बेड्स का बेहतर उपयोग हो ।

18. सार्वजनिक सेवाओं को कमजोर बनाने वाली सरकारी-निजी भागीदारियों

(पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) की समाप्ति: सार्वजनिक सेवाओं को कमजोर

बनाने वाली सभी सरकारी-निजी भागीदारियों को समाप्त किया जाना

चाहिए। जहां सरकारी व्यवस्था में कमियों को भरना जरूरी है, वहां मरीजों

को इस तरीके से पहले से सहमत- मूल्यों पर निजी स्वास्थ्य प्रदाताओं को

रेफर किया जा सकता है, जिससे व्यापक जन-स्वास्थ्य के उद्देश्य की पूर्ति

हो।

19. मेडिकल बहुलता को समर्थन: मेडिकल बहुलता को समर्थन दिया जाए

ताकि लोगों के पास गैर-एलोपैथिक चिकित्सा का विकल्प उपलब्ध रहे,

जिसमें घर प्रसूति संबंधी सुरक्षित तरीका भी शामिल है। गैर-एलोपैथिक

प्रणालियों से संबंधित अनुसंधान और दस्तावेजीकरण को भारी बढ़ावा दिया

जाना चाहिए।

20. स्वास्थ्य तक पहुंच में कमजोर वर्गों और विशेष जरूरतों वाले समूहों के

लिए विशेष उपाय: सभी स्तरों पर स्वास्थ्य तक पहुंच में कमजोर वर्गों और

विशेष जरूरतों वाले समूहों के लिए विशेष उपायों की व्यवस्था आवश्यक

है। इन वर्गों की कमजोरी का कारण सामाजिक स्थिति (जैसे- महिलाएं,

दलित, आदिवासी), स्वास्थ्य स्थिति (जैसे- एच.आई.वी. से पीड़ित), पेशा

(शारीरिक रूप से मैला ढोने वाले), सक्षमता, उम्र या कोई अन्य हो सकता

है। सभी महिलाओं, बेघरों, सड़कों पर भटकने वाले बच्चों, विशेषकर कमजोर

आदिवासी समूहों, शरणार्थियों, प्रवासी लोगों तथा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को

स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति की गारंटी दी जानी चाहिए।

21. जेंडर-आधारित हिंसा को एक जन-स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा माननाः जेंडर-आध्

ाारित हिंसा को एक जन-स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा माना जाए और सुनिश्चित

किया जाना चाहिए कि आवश्यकता पड़ने पर शीघ्र बचाव एवं स्वास्थ्य

देखभाल, व्यापक मेडिकल देखभाल और पीड़ित व्यक्तियों को लगातार

सहायता पहुंचे। सभी पृष्ठभूमि और हिंसा की सभी स्थितियों में महिलाओं,

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जन स्वास्थ्य घोषणा पत्र-2019

बच्चों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पूरी आबादी की न्यायोचित, निरंतर

गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित की जाए।

22. सभी गर्भवती और धात्री माताओं के लिए मातृत्व भत्ता को सार्वभौमिक

बनाना: सभी गर्भवती और धात्री माताओं के लिए मातृत्व भत्ता को

सार्वभौमिक बनाया जाए, जिनमें ठेके पर कार्यरत महिलाएं, दिहाड़ी पर

कार्यरत महिलाएं, असंगठित क्षेत्र और कृषि क्षेत्र में कार्यरत महिलाएं

भी शामिल हैं। सभी कार्यस्थलों में क्रेच (झूलाघर) और विश्राम कक्ष की

सुविधा प्रदान की जाए।

23. जाति और समुदाय/धर्म-आधारित भेदभाव के सभी रूपों की समाप्ति

के लिए तत्काल एवं असरदार कदम: जाति और समुदाय/धर्म-

आधारित भेदभाव के सभी रूपों का शीघ्र उन्मूलन किया जाए। जनजाति

या नृजातीयता के आधार पर स्वास्थ्य क्षेत्र तथा उसके बाहर किसी भी

भेदभाव के खिलाफ तत्काल एवं असरदार कदम उठाए जाएं।

24. मानसिक स्वास्थ्य के मसलों से संबंधित व्यक्तियों का व्यापक इलाज और

देखभाल: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में संशोधित जिला स्वास्थ्य कार्यक्रम

और समुचित कार्यान्वयन के जरिए मानसिक स्वास्थ्य के मसलों से

संबंधित व्यक्तियों के व्यापक इलाज और देखभाल को सुनिश्चित किया

जाना चाहिए।

25. बहुपक्षीय और द्विपक्षीय वित्तपोषण एजेंसियों तथा कॉरपोरेट कन्सलटेंसी

संगठनों के हस्तक्षेप का उन्मूलन: बहुपक्षीय और द्विपक्षीय वित्तपोषण

एजेंसियों तथा कॉरपोरेट कन्सलटेंसी संगठनों (जैसे- विश्व बैंक, यू.एस.ए.

आई.डी., गेट्स फाउंडेशन, डिलोइट और मेकिन्जी आदि) का सभी राष्ट्रीय

स्वास्थ्य नीति निर्माण और रणनीति विकास में हस्तक्षेप समाप्त किया जाए।

सुनिश्चित करें कि भारतीय अनुसंधान संस्थानों के पास वित्तपोषण के लिए

वैकल्पिक राष्ट्रीय स्रोत हों और इन्हें उपरोक्त संगठन पर निर्भर न रहना

पड़े।

26. नैदानिक परीक्षणों के अनुमोदन और आयोजन के लिए कड़े विनियमन पर

अमल: सुनिश्चित करें कि सी.डी.एस.सी.ओ. और आई.सी.एम.आर. परीक्षण

स्थलों पर नैदानिक परीक्षणों के आयोजन पर निगरानी रखी जाए। निष्पक्ष

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जन स्वास्थ्य घोषणा पत्र-2019

और परीक्षण के उन प्रतिभागियों को समय पर प्रतिपूर्ति सुनिश्चित की जाए,

जो प्रतिकूल प्रभावों से पीड़ित होते हैं। नैदानिक परीक्षण के प्रतिभागियों के

अधिकारों का एक न्यायोचित चार्टर तैयार किया जाना चाहिए।

27. उपयुक्त जन-स्वास्थ्य और स्वास्थ्य प्रणाली के बारे में अनुसंधान को बढ़ावा

देना: जन-स्वास्थ्य और स्वास्थ्य प्रणालियों के विभागों और केन्द्रों की

अनुसन्धान करने की क्षमता निर्माण आवश्यक है। इस प्रकार के अध्ययनों

के नतीजे भावी कार्यों में मार्गदर्शन करते हैं। इनसे सामाजिक कारकों और

स्वास्थ्य प्रणालियों के बारे में बेहतर समझ उत्पन्न होती है और सार्वजनिक

स्वास्थ्य प्रणालियों एवं सरकारी कार्रवाई की कार्यप्रणाली में सुधार के

नवोन्मेषी तरीकों का मार्ग प्रशस्त होता है। ऐसे अनुसंधानों की फंडिंग में

संभावित मतों के टकराव का नियंत्रण होद्य

28. स्वास्थ्य के सामाजिक कारकों में पारम्परिक और नए/उभरते रोग-विज्ञान,

दोनों के बारे में व्यवस्थित योजना: स्वास्थ्य के सामाजिक कारकों में

पारम्परिक और नएध्उभरते रोग-विज्ञान, दोनों के बारे में व्यवस्थित ढंग

से योजना बनाई जानी चाहिए। यह खाद्य सुरक्षा एवं पोषण, स्वच्छता के

अलावा पर्यावरणीय प्रदूषण, तनावपूर्ण कार्य परिस्थितियों, सड़क सुरक्षा

की उपेक्षा, तम्बाकू, अल्कोहल आदि जैसे व्यसनकारी पदार्थों और जेंडर-

आधारित हिंसा सहित अन्य प्रकार की हिंसा जैसे सामाजिक कारकों में नई

उभरती सामाजिक हानियों पर ध्यान देकर किया जाना चाहिए। इन क्षेत्रों

में वर्तमान कानूनों पर असरदार अमल किया जाए और जनता के अधिकारों

की दिशा में कुछ अधिनियमों में आवश्यक संशोधन किया जाना चाहिए।

29. आई.सी.डी.एस. कार्यक्रम का सार्वभौमिकीकरण और विस्तार: आंगनवाडी

कार्यक्रम में खास तौर से तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चों को असरदार ढंग

से शामिल करना और सामुदायिक आधारित सी.एम.ए.एम. (कुपोषण का

समुदाय-आधारित प्रबंधन) कार्यक्रम और दिन में देखभाल संबंधी सेवाएं

महिलाओं एवं बच्चों दोनों के स्वास्थ्य तथा आरोग्य के अलावा कुपोषण पर

काबू पाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

30. स्वास्थ्य एवं अन्य सेवाओं तक पहुंच के लिए आधार ल की अनिवार्यता की

समाप्ति: स्वास्थ्य सेवाओं या स्वास्थ्य से संबंधित सार्वजनिक किसी भी

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जन स्वास्थ्य घोषणा पत्र-2019

सेवा या योजना तक पहुंच के लिए आधार लिंक की अनिवार्यता को समाप्त

किया जाए।

31. लोकतंत्र की व्यापक रक्षा और विस्तार में सार्वजनिक स्वास्थ्य के कार्यों

का एकीकरण: सभी स्तरों पर लोकतंत्र की व्यापक रक्षा और विस्तार

में सार्वजनिक स्वास्थ्य के कार्यों का एकीकरण किया जाना चाहिए। यह

सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य नीति और वर्तमान प्रणालियों की समीक्षा

की जाएगी कि इससे किसी भी प्रकार के बहुमत के रूढ़िवाद, अल्पसंख्यकों

के प्रति भेदभाव, संघर्ष की स्थितियों में देखभाल से इंकार और लांछन

लगाने या ‘अन्य’ या बाहरी व्यक्तियों के रूप में चिन्हित व्यक्तियों की

देखभाल से इंकार को रोका जाएगा। सुनिश्चित किया जाए कि सभी स्तरों

पर स्वास्थ्य प्रणालियों को समावेशी एवं न्यायोचित बनाया जाएगा तथा

लोकतांत्रिक समावेशन, धर्मनिरपेक्षता, मानवता एवं शांति के लोकोचार के

संदेश दिए जाएंगे।

हमारी सभी राजनीतिक पार्टियों और इच्छुक चुनावी उम्मीदवारों से अपील है कि

वे अपने एजेंडे में जन-स्वास्थ्य को सर्वोच्च राजनीतिक प्राथमिकता दें। ‘सभी के

लिए स्वास्थ्य’ की घोषणा करने वाले अल्मा आटा सम्मेलन के 40वें वर्ष में हमें

स्वास्थ्य की अवधारणा में अंतर-क्षेत्रीय कार्रवाई और सामुदायिक सशक्तीकरण

को पुनः शामिल करके नई जान डालनी होगी।

जन स्वास्थ्य अभियान, जन स्वास्थ्य आंदोलन का भारतीय इकाई है, जो व्यापक

प्राथमिक स्वास्थ्य सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों पर कार्य करते हुए

स्वास्थ्य और न्यायसंगत विकास को सर्वोच्च प्राथमिकताओं के रूप में स्थापित

करने के लिए एक विश्वव्यापी आंदोलन है और इसमें 20 से अधिक नेटवर्क और

1000 संगठन और बड़ी संख्या में व्यक्ति विशेष भी शामिल हैं।

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