Saturday 4 February 2017

Negligence

यह घटना बस्ती जिले में घटित हुयी थी इसे संस्था के तरफ से सोसल मिडिया पर जिन शब्दों में शेयर किया गया था उसे यथा स्थिति आप को प्रेषित किया जा रहा है 
घटना विवरण 3  दिसंबर 2016
मेडिकल सेण्टर ने नकद पैसे न होने से दवा देने से किया इनकार जिससे इलाज में देरी की वजह से नवजात की हुयी मौत I जब की परिजन डेबिट कार्ड व इंटरनेट बैंकिंग से पेमेंट करने को थे तैयारI लेकिन मेडिकल के लोग नकद रूपये लेनें को अड़े रहे I बस्ती जिले में एक प्रतिष्ठित चाइल्ड स्पेशलिस्ट के मेडिकल सेण्टर की असवेंदनशीलता के चलते जिस तरह एक नवाजत की जान चली गयी उससे डाक्टरी पेशे और रूपये को लेकर लिए निर्णय से उपजे हालात पर सवाल तो खड़े कर ही दिए है I मामला बस्ती जिले में मालवीय रोड पर स्थित चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ एस पी चौधरी के कर्मचारियों के असंवेदन शीलता से जुड़ा है सिद्धार्थनगर जिले के के त्रिलोकपुर थाना अंतर्गत गनवारिय खुर्द गाँव के निवासी अशोक मिश्रा की पत्नी पूजा को 29 नवम्बर की रात में बच्चा पैदा हुआ तो घर वालों के ख़ुशी का ठिकाना न रहा लेकिन 2 दिन बाद बच्चे की तबियत अचानक बिगड़ गयी और यहाँ के डाक्टरों ने उस बच्चे को चाइल्ड स्पेशलिट डॉ एस पी चौधरी को दिखाने की सलाह दीI जब परिजनों ने डॉ एस पी चौधरी को बच्चे को दिखाया तो उन्होंने कुछ दवाएं लिख दी और वह बाहर निकल गए जब परिजन उन्ही के मेडिकल स्टोर पर दवा लेने गए तो मेडिकल स्टोर वाले ने दवा के कुल 1100 रूपये का बिल बनाया और उसके लिए नकद पैसे की मांग की इस पर अशोक मिश्र ने मेडिकल वाले से नेट बैंकिंग, डेबिट कार्ड ,paytm के जरिये भुगतान करने की बात कही लेकिन मेडिकल स्टोर संचालक किसी भी हालत में खाते में पैसा लेने को तैयार नहीं था उसने कहा की नकद पैसा लेकर आओ तभी दवा मिलेगी परिजन लाख दुहाई देते रहे लेकिन मेडिकल संचालक नहीं माने थक हार कर नवजात के पिता ए टी एम् से पैसा निकालने के लिए लाइन में लगे तब तक परिजनों ने कहा की जब तक नकद पैसा नहीं आ जाता तब तक मेरे परिवार का कोई सदस्य आप के मेडिकल स्टोर पर बैठ जाता है लेकिन दवा दे दीजिये जिससे बच्चे का इलाज शुरु किया जा सके I इस बात पर भी मेडिकल संचालक नहीं माना इसके बाद परिजन हार मान कर दुसरे मेडिकल स्टोर पर दवा लेने गए वहां पर यह कहा गया की यह दवाएं सिर्फ उसी डाक्टर की दूकान पर मिलेंगी I थक हार कर परिवार के लोग पैसे की व्यवस्था में लगे रहे और जब जब पैसे की व्यवस्था हुयी और ये लोग दवा लेने पहुंचे तो मेडिकल संचालक अपनी दूकान बंद करके जा चुके थे ऐसे में दवा न मिलने से इलाज में देरी होने की वजह से नवजात की मौत हो गयी I इस घटना के बाद परिजनों ने भारी आक्रोश देखने को मिला जिसको लेकर परिजनों ने बस्ती कोतवाली में तहरीर भी दी है लेकिन अभी तक दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो पायी है I अब सवाल यहाँ यह उठता है की की आज भी लोग अपनी कमाई को छुपाने की कोशिश कर रहें है इस लिए लोग अपने बैंक खातों में पैसे जमा करने से पीछे हट रहें है उन्हें लग रहा है की बैंक में पैसे जमा करने से सरकार को कमाई पता चल जायेगी ऐसे में चाहे कीसी की जान चली जाये पैसे के लिए ये मानवता को भी तार तार करने से पीछे नहीं हटाने वाले है डाक्टरों के कमीशन के चक्कर में ऐसी दवाएं लिखी जा रही है जो सिर्फ उन्ही की दूकान पर मिलती है अब तो जनपद के ज्यादा तर डाक्टरों ने अपने अस्पताल के अन्दर ही अल्ट्रासाउंड, पैथालोजी,एक्सरे , आदि के साथ चाय तक की दूकान खुलवा र है जिससे उनके वहां इलाज के लिए आने वाले लोगों का कोई भी पैसा बाहर न जाए I
रिपोर्ट- बृहस्पति कुमार पाण्डेय ( सचिव ) युवा विकास समिति 





प्रवेश - 9235888222 

धन्यवाद !! 
हेल्थवॉच फोरम की ओर से 

Wednesday 1 February 2017

HEALTH BUDGET 2017

Let’s look at the health budget as a case in point. Of the total HFW budget of Rs 47352.51
crore National Health Mission (NHM) gets a share of 56 per cent or Rs. 26690.70 crore and
this was 31 per cent more than the previous years budget estimate. Within NHM the largest
share goes to National Rural Health Mission (NRHM) of Rs. 21188.65 crore but only Rs.725
crore for National Urban Health Mission (NUHM) and the latter saw a decline of 24 per cent
from the previous fiscal year. The upgradation of district hospitals as teaching hospitals gets a
huge increase from Rs 445 crore in 2016-17 to Rs 3300 crore in 2017-18. Similarly the
allocation for new AIIMS in states gets a 62 per cent jump from Rs. 2450 crore in 2016-17 to
Rs. 3975 crore in 2017-18.
So these are the highlights of the Union health budget but overall the Centre’s contribution is
a mere 0.28 per cent of GDP and this is certainly not adequate for moving towards universal
access to healthcare. The HLEG and 12th Plan had envisaged a minimum of 2.5 per cent of
GDP for health with at least 50 per cent or 1.25 per cent of GDP coming from the Centre, a
clear shortfall of 1 per cent of GDP. So while we can feel good about the 28 per cent jump we
should not forget the stark reality of the huge underinvestment in public health. Indeed miles
to go for universal health care for all.