साभार --ड्रीम 2047
अवसाद को अभिव्यक्ति चाहिए दमन या अवरोध नहीं( कुछ भाग )
अवसाद एक प्रकार का मानसिक असंतुलन होता है जो मुख्य रूप से इंसान के मूड या मनोदशा से संबन्धित होता है और यह विश्व भर में तेजी से फैलता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन या WHO द्वारा प्रदर्शित आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि सम्पूर्ण विश्व में 30 करोड़ (300 मिलियन) से अधिक लोग अवसादग्रस्त हैं और यह संख्या 2005 से लेकर 2015 के बीच में18प्रतिशत बढ़ी है। इसे मानव स्वास्थ्य के प्रति गंभीर चिंता के रूप में लेते हुए WHO ने इस वर्ष 7 अप्रैल को मनाए जाने वाले विश्व स्वास्थ्य दिवस की विषयवस्तु (थीम) को ही ‘अवसाद’ रख दिया थाए और अवसाद के ऊपर 1 वर्ष का वैश्विक अभियान (ग्लोबल कैम्पेन) भी शुरू किया है।
परिचय
पिछले कुछ दशकों में देश की अर्थव्यवस्था शारीरिक-कार्य आधारित से हटकर मानसिक-कार्य आधारित की ओर रुख कर चुकी है। जहां दिमागी गतिविधियां, शारीरिक गतिविधियों पर हावी हो चुकी हैं और ये ही विश्व की अर्थव्यवस्था को ऊंचाई तक ले जा रही हैं। अब हम एक ऐसे दशक से गुजर रहे हैं जहां मानसिक-कार्य आधारित अर्थव्यवस्था भी रूप बदल कर डिजिटल-गैजेट आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है जहां कृत्रिम बुद्धि एवं ज्ञान, काल्पनिक वास्तविकता, रोबोटिक्स आदि ही मुख्य प्रेरक शक्ति होंगे और ये मानव का स्थान लेंगे। निश्चित रूप से इन सभी विकास कार्यों ने विश्व की अर्थव्यवस्था को नए आयाम तक पहुंचाया है लेकिन इसमें मानव स्वास्थ्य को दांव पर लगाया गया है या हम कह सकते हैं किमानव स्वास्थ्य की कीमत पर अर्थव्यवस्था को ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया है। प्रत्येक मानव का शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से स्वस्थ्य एवं सुखी होना ही स्वास्थ्य की वास्तविक परिभाषा है जिसे WHO ने ही परिभाषित किया है। शारीरिक रोगों के लिए पर्याप्त
चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन मानसिक रोगों के लिए उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं पर्याप्त नहीं है, विशेषकर भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 13 प्रतिशत से अधिक लोग किसी न किसी तरह के मानसिक असंतुलन से पीड़ित हैं और 80-90ः मामलों मे ये लोग बिना इलाज के ही रहते हैं। ऐसा या तो जागरूकता के अभाव में होता है अथवा पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में। भारतीय सरकार इस मुद्दे पर बहुत गंभीर है और 27 मार्च 2017 को लोकसभा में इससे संबन्धित एक बिल ‘मेडिकल हैल्थ केयर बिल-2016ए को पास किया गया है। इस बिल में मानसिक बीमारी को इस तरह से परिभाषित किया गया है ‘‘मानसिक बीमारी वह होती है जब किसी व्यक्ति के सोचने, समझने, ध्यान देने या याद रखने की क्षमता अथवा उसकी मनोदशा
जो प्रमुख रूप से निर्णय लेने, सच पहचानने, जीवन की सामान्य जरूरतों को पूरा करने की क्षमता अथवा उसके स्वभाव में सहायक होती है, में यदि बहुत बड़ा असंतुलन पाया जाता हो। आम तौर पर मानसिक स्थितियां शराब और नशे की लत से जुड़ी होती है। इस बिल में कुछ अद्भुत प्रावधान किए गए हैं जैसे मेंटल हैल्थकेयर में भारत के समस्त नागरिकों को पहुंच का अधिकार, इसे भारत सरकार द्वारा चलाया जाना व आर्थिक अनुदान मिलना, सबके साथ बराबरी का व्यवहार व अमानवीय व्यवहार से सूरक्षा; और कानूनी सुविधाओं तक सबकी पहुंच। इसके अलावा यह बिल आत्महत्या के प्रयास को अपराध की क्षेणी से अलग करता है जबकि पहले आत्महत्या के प्रयास को भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध माना जाता था। भारत में अवसाद, मानसिक बीमारियों के कुल मामलों में से एक तिहाई लोगों में देखा जाता है। अतः इस पर उचित ध्यान देने की आवश्यकता है और इसकी चिकित्सा के बारे में अध्ययन एवं प्रावधान विकसित करने की भी अत्यंत आवश्यकता है।
अवसाद क्या है?
अवसाद एक मानसिक स्थिति है जिसमें लोग नकारात्मक विचारों के आदी हो जाते हैं अथवा उनकी स्मृति में स्थित पहले की किसी घटना या परिस्थिति के बारे में ही सोचते है या बातें करते है और जीवन के प्रति विश्वास खो देते हैं। ये सब उनके व्यवहार में भी झलकता है जैसे भूख कम लगना, नींद ठीक से न आना, किसी काम में मन ना लगना ध्यान भटकना और दैनिक कार्यों में रुचि न लेना आदि। एक अवसादग्रस्त व्यक्ति लगातार दुखी ही रहता है और लोगों से मिलना जुलना उसे पसंद नहीं आता है। अत्यधिक अवसाद की स्थिति में रोगी के भीतर कभी कभी आत्महत्या की ओर रुझान भी बढ़ता हुआ देखा गया है।
अवसाद के कारण
वास्तव में अवसाद का कोई कारण नहीं है बल्कि यह व्यक्ति के स्वभाव या व्यवहार पर निर्भर होता है। जीवन में घटी कोई अप्रिय घटना जैसे प्यार में धोखा या पारिवारिक सम्बन्धों में धोखा, कैरियर में असफलता, किसी प्रियजन की मृत्यु, संवेदनाओं का आहत होना, सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आना आदि कई ऐसे कारण हैं जो किसी व्यक्ति को अवसाद की ओर ले जाते हैं। आम तौर पर एक व्यक्ति तब अवसाद में आता है जब उसकी उम्मीदें पूरी नहीं हो पाती हैं या उनमे वह असफल हो जाता है, लेकिन उसे वह पाने की पूरी चेष्ठा करता है जिससे उसके मन में नकारात्मक विचार आते हैं और ये ही आगे चलकर चिंता और अवसाद का कारण बनते हैं। आधुनिक समय में स्मार्ट फोन, कम्प्यूटर, सोशल मीडिया या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर अत्यधिक निर्भरता भी लोगों को सामाजिक मेल मिलाप एवं पारिवारिक रिश्तों से दूर ले जा रही है जिसके परिणामस्वरूप मानसिक असंतुलन के मामले अधिक देखने में आ रहे हैं जैसे असंतुलित कार्य करना, ध्यान भटकना, किसी चीज में ध्यान केन्द्रित न कर पाना, अधिक उत्साहित हो जाना, अधिक गुस्सा आना आदि। इस डिजिटल प्रेरित मनोदशा असंतुलन से अवसाद, डिमेन्शिया (स्मरण क्षमता में कमी) और अन्य कई प्रकार की मानसिक बीमारियां होती हैं।
प्रारम्भिक अवस्था में नकारात्मक भावनाओं से मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न होता है जिसकी वजह न्यूरो केमिकल्स में आने वाले बदलाव होते हैं। लेकिन इनकी ओर ध्यान न देने की वजह से व्यक्ति को तनाव, चिंता और बेचैनी, क्लिनिकल डिप्रेशन या पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रेस डिसोर्डर (PTSD ) हो जाता है। यदि यह बहुत दिनों तक बिना चिकित्सा के चलता रहता है तो अवसाद के कारण बहुत से न्यूरोकेमिकल और न्यूरो-ऐनाटोमिकल परिवर्तन हमारे मस्तिष्क में होते हैं जो आगे चलकर व्यक्ति को असंतुलित संज्ञानात्मक कार्य तथा विचलित मानसिक स्थिति की ओर ले जाते हैं। अंतिम चरण में अवसाद से होने वाले लगातार नकारात्मक आवेगों के कारण व्यक्ति के भीतर आत्महत्या करने जैसे भी विचार आने लगते हैं। शुरुआती दौर मे जब व्यक्ति तनाव से होकर गुजरता है तब परिवार के लोगों की उचित सलाह और देखभाल के द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन एक बार जब
यह स्थिति बिगड़ जाती है तब हमें मनोचिकित्सक के परामर्श एवं चिकित्सा की आवश्यकता होती है। हालांकि
अवसाद एक न्यूरोबायोलोजिकल घटना है जिसकी वजह से हमारे शरीर के भीतर बहुत से न्यूरोकेमिकल,
न्यूरोऐनाटोमिकल और हार्मोनल परिवर्तन होते हैं। अवसाद की न्यूरोबायोलोजी को समझने के लिए यह
आवश्यक है कि हम मानव मस्तिष्क के बारे में संक्षिप्त रूप में जाने।
अवसाद के रोकथाम के उपाय एवं उपचार
यह अत्यंत आवश्यक है कि आप ऐसे किसी भी व्यक्ति की बदलती मनोदशा के प्रति पूर्णतः सचेत रहें। उचित देखभाल और जागरूकता के कारण अवसाद या अन्य मानसिक रोगों से लोगों को दूर रखा जा सकता है। हमारी शारीरिक गतिविधियां एक लयबद्ध तरीके से चलती हैं या शरीर की प्राकृतिक घड़ी के अनुसार चलती रहती हैं। अतः हमें एक अनुशासनपूर्ण जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए जिसमें सोने और जागने का समय निश्चित हो।
1. देर रात तक व्यस्तता और इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स पर अत्यधिक निर्भरता से भी बचना चाहिए।
2. हमें अपने परिवार के लोगों और मित्रों के साथ अच्छा समय बिताना चाहिए। सोशल मीडिया की अपेक्षा लोगों से मिलने जुलने को अधिक महत्व देना चाहिए।
3. शराब एवं नशे की लत से दूर रहना चाहिए।
4. नियमित व्यायाम, योगाभ्यास और ध्यान को हमारे दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए। हमें रोज कम से कम 30 मिनट तक इन अभ्यासों पर समय बिताना चाहिए।
5. हमें बिना शर्तों की खुशियों के साथ जीने का अभ्यास करना चाहिए और हमें यह एहसास होना चाहिए कि बाहरी घटनाओं पर किसी का नियंत्रण नहीं होता है, अतः हमें किसी भी परिस्थिति को संतोष के साथ अपना लेना चाहिए।
6. लगातार खुश होने की इच्छा रखने से ही व्यक्ति मूड-संबन्धित असंतुलनों से दूर रह सकता है। इस तरह से हमें खुशियों की आदत या खुश रहने की आदत डाल लेनी चाहिए और जीवन के प्रत्येक क्षण को कृतज्ञता के दृष्टिकोण के साथ जीना चाहिए।
7. यदि कोई व्यक्ति दुख महसूस करता है तो वह स्वयं को कुछ न कुछ रचनात्मक कार्यों जैसे बगीचे में पेड़ पौधों के साथ समय बिताना और उनकी देखभाल करना, अच्छा संगीत सुनना, नई जगहों पर घूमने जाना, प्रेरणा दायी पुस्तकें पढ़ना, प्रेरणात्मक वीडियो देखना और मस्तिष्क को नया कार्य देना आदि में व्यस्त कर सकता है। इस तरह के कार्यों का लगातार अभ्यास करने से नकारात्मक संवेदनाओं का दमन होगा और इसके बदले आत्म विश्वास, आत्म गौरव और सकारात्मक विचारों का जन्म होगा।
8. जब लगातार नकारात्मक विचार दिमाग में चलते रहते हैं तो व्यक्ति को स्वयं उसे समझ लेना चाहिए और अपना ध्यान वहां से हटकर सकारात्मक विचारों तथा जीवन के महत्वपूर्ण लक्ष्य की तरफ केन्द्रित करने की कोशिश करनी चाहिए।
9. समाज में इस बात की जागरूकता जरूर फैलानी चाहिए कि किसी भी तरह की मानसिक बीमारी किसी भी अन्य शारीरिक बीमारी की तरह ही होती है और उचित इलाज एवं देखभाल से इसे पूर्णतः ठीक किया जा सकता है। इसे छिपाना नहीं चाहिए और न ही इसे किसी प्रकार की शर्म की बात समझना चाहिए, बल्कि इसका इलाज भी संभव है यह मानते हुए तुरंत डॉ से संपर्क करना चाहिए। अवसाद से ग्रसित रोगी को परिवार वालों की उचित देखभाल की आवश्यकता होती है।
10. जब क्लीनिकल या नैदानिक लक्षण दिखाई देने लगें तब आपको किसी मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए और उसके निर्देशानुसार नियमित रूप से दवाएं लेनी चाहिए। केवल एक प्रशिक्षित मनोचिकित्सक के प्रेसक्रिप्शन या पर्चे पर ही दवाएं लिखी या बदली या उनकी डोज में परिवर्तन किया गया स्वीकार करना चाहिए अन्यथा नहीं।
11. लगातार व्यायाम का अभ्यास, योगाभ्यास, गहरी सांसे लेना छोड़ना, और अन्य विश्राम अभ्यास जैसे संगीत, कला, ध्यान आदि करने चाहिए जिससे अवसाद के रोगी जल्दी ही ठीक होने लगते हैं। लेकिन ये सभी अभ्यास उचित दवाओं के साथ साथ करने चाहिए।
12. कई प्राकृतिक उत्पाद और अभ्यास भी अवसाद को कम करने में मदद करते है जैसे सूर्य की रोशनी में बैठने से सिरोटोनिन का स्तर बढ़ता है, दूध भी सिरोटोनिन का एक अच्छा स्त्रोत है। गहरी सांस लेना-छोड़ना और प्राणायाम का अभ्यास भी चिंता और तनाव के स्तर को घटता है। इसका कारण है कि इनसे एंडोर्फिंस और
ऑक्सीटोसिन का रिसाव होता है और कोर्टिसोल का स्तर घटाता है। पानी पीना, खट्टे फल जैसे संतरा, स्ट्राबेरी आदि खाने से भी मनोदशा या मूड अच्छा रहता है और अवसाद के स्तर में कमी आती है। इस तरह से यह पूरी तरह से ठीक हो सकने वाला असंतुलन है और इसे केवल उचित चिकित्सा और देखभाल की ही आवश्यकता होती है। अवसाद से जो व्यक्ति ग्रसित है या जिस व्यक्ति को तनाव महसूस हो रहा है वह अपने विचार अवश्य व्यक्त करे और स्वयं को किसी सामाजिक गतिविधि अथवा रचनात्मक कार्य में अवश्य व्यस्त रखे। इस प्रकार
हम कह सकते हैं कि अवसाद को अभिव्यक्ति चाहिए, अवरोध या दमन नहीं।
लेखक
अनुराग त्रिपाठी
अनुवाद --श्रीमती संगीता चतुर्वेदी