नशे से हो रही मौतों के कारण पूरा पंजाब और दुनिया का विश्व पंजाबी भाईचारा और पूरे देश के बुद्धिजीवी काफी परेशान हैं | पिछले कुछ दशकों से खतरनाक नशों के इस्तेमाल के कारण नौजवानों की बिगड़ रही सेहत , परिवारों की आर्थिक तबाही और इसके साथ जुड़े सामाजिक और सभ्याचारक असरों ने हमारे समाज में दहसत फैला रखी है | अब इस तबाही के मंजर में एक आस की किरण दिख रही है कि पूरा पंजाब इस लड़ाई को आर पार की लड़ाई बनाने के लिए कमर कस चूका है | ऐसी स्थिति में जब इस मुद्दे पर लोक लहर बनने जा रही हो तो कुछ बातों पर गौर करना बहुत जरूरी हो जाता है |
1 नशों के मूल कारण क्या हैं ?
2 नशों के इतिहास क्या है ?
3 क्या नशे कुदरती आफत हैं ? या कुछ लोगों द्वारा पैदा की गयी समस्या |
4 क्या सरे नशे एक जैसे ही माड़े होते हैं ?
पंजाब के लोग इस बात को बात को भली भांति जानते हैं कि आज पंजाब खतरनाक नशों की जिस दलदल में फंस गया है उसमें मुख्य भूमिका नशे के व्यापारियों की है जिन्हें आम भाषा में स्मगलर कहा जाता है | पूरी दुनिया में हुई खोजें दर्शाती हैं कि नशों का व्यापर , गैर कानूनी तरीकों से किया जा रहा आम व्यापर नहीं | इसमें अंतराष्ट्रीय साम्राजी शक्तियां , बड़े व्यापारी , कोमी और राज्य सरकारें , अफसर और ख़ुफ़िया एजेंसियां शामिल हैं | सौखा और मोटा पैसा कमाने के लिए राजनैतिक नेता , पुलिस, अफसर और बड़े कद के व्यापारी यह धंधा मिलकर चलाते हैं | पंजाब में बहुत से नशे पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान से आते हैं | पाकिस्तान में जाने माने स्मग्लरों की लम्बी सूचि है | ये लोग बहुत शक्तशाली हैं | ये न कभी सामने आते हैं और न कोई इनको हाथ लगा सकता है | पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी --आई.एस. आई.स्मग्लरों का पूरा साथ ही नहीं देती बल्कि उसके अफसर इस व्यापर के हिस्सेदार भी हैं | इधर हमारे स्मगलर जो राजसी लीडरों और पुलिस अफसरों के साथ घी खिचड़ी हैं, इस धंधे में मौटे पैसे कमाते हैं | नशे का धंधा दुनिया का सबसे अधिक मुनाफे वाला धंधा है | जो हीरोइन अफगानिस्तान में एक करोड़ रूपये की एक किलो मिलती है वह भारत मैं आकर 7 करोड़ की एक किलो बिकती है | और पश्चिमी देशों में पहुँचते पहुँचते इसकी कीमत और 10 गुना बढ़ जाती है | मुनाफे का 20 -30 % हिस्सा आई.एस.आई. का होता है | नशे और अतवाद का भी नजदीक का संबंध है | नशो से कमाए पैसों के एक हिस्से के साथ अतवाद चलता है | सिर्फ अतवाद ही नहीं इस पैसे से इस धंधे में लिप्त मुजरमों की मदद से विरोधियों को डराया धमकाया और मरवाया न भी जाता है | इस पैसे से चुनाव भी लाडे जाते हैं और सरकारें भी बदली जाती हैं |
आज दुनिया में नशों का व्यापार , पैट्रोलियम पदार्थों और हथियारों के बाद तीसरा सब से बड़ा व्यापर है | पूरी दुनिया में अंदाजन 20 करोड़ लोग नशे कर रहे हैं और इस तरह यह 3 लाख करोड़ रूपये का व्यापर है | भारत में भी नशों का चलन बहुत ज्यादा है | एकेले भारती पंजाब में 60 हजार करोड़ रूपये का नशों का व्यापार होता है | पंजाब के राजसी लीडरों और पुलिस अफसरों में बड़े बड़े नाम नशों के व्यापार में शामिल हैं | मंत्रियों और इंस्पैक्टर जनरल तक के नाम इस व्यापार के साथ जुड़ते हैं | संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कम से कम 10 लाख लोग एकेली हीरोइन के आदि हैं | हीरोइन बेहद महंगी होने के कारण इसके अशुद्ध और नकली बदल उपलब्ध हैं | स्मैक हीरोइन की अशुद्ध बदल है और इससे काफी सस्ती है | चिंटा इसका नकली बदल है जो स्मैक से भी सस्ता है | नकली रसायनिक होने के करण यह सबसे ज्यादा खतरनाक है | पैसे के लालच में इसमें क्या क्या डाला जाता है इसका कोई हिसाब नहीं | कुछ लोग इसे देश के अंदर ही बना रहे हैं | पैसे की कंजूसी के चलते नशा करने वाले सूंघने की बजाये इसे घोलकर नाड़ (Vein ) में लगाते हैं | जिसके कारण यह और मारू सिद्ध होता है |
इतिहास इस बात का गवाह है कि दुनिया में नशों का बड़े पैमाने पर व्यापार सब से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया | रेशम , चाय और चीनी के बर्तनों की इंगलैंड में बहुत मांग थी जो अंग्रेज व्यापारी चीन से खरीदकर इंग्लैण्ड में बेचते थे | इन वस्तुओं के मूल उतरने के लिए इंग्लैण्ड के व्यापारियों के पास इनके मूल के बराबर की वस्तुएं उपलब्ध नहीं थी जो वो चीन में लेजाकर बेच सकते | ईस्ट इंडिया कंपनी ने बहुत ही कमिनी चाल चली उसने बंगाल में अफीम की खेती करवाके इसको चोरी से चीन में बेचना शुरू कर दिया | चीन के सम्राट के इतराज करने पर बाकायदा दो जंग हुई जिनको अफीम वार -1 और अफीम वार 2 का नाम दिया गया | पहली अफीम वार (1839 --42 ) ब्रिटिश इंडिया कंपनी और चीन के बीच हुई और दूसरी अफीम वार (1856--60 ) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रांस एक तरफ और चीन के बीच हुई | अफीम के स्मगल की जाने वाली मात्रा साल 1729 में डरमां ( हरेक में 63.5 किलो ) से बढ़ कर 1838 तक यह 40000 डरमां तक पहुँच गयी थी | चीन दोनों लड़ाईयां हार गया जिसके बाद अफीम के व्यापार को धक्के के साथ कानूनी घोषित कर दिया गया जिस कारण बेचीं जाने वाली अफीम की मात्रा कई गुना और बढ़ गयी | स्पस्ट है कि अफीम को न सिर्फ पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल किया गया बल्कि चीन के लोगों को नशेहड़ी बना के कमजोर भी करने की कोशिश की गयी ताकि वो साम्राज्य के खिलाफ लड़ ना सकें |
सरकारी अदारियों में एलान की जा रही नशों के खिलाफ जंग असल में आम लोगों के विरुद्ध नशों की जंग है | नशों के गैर कानूनी व्यापार के रास्ते जहाँ आम लोगों को आर्थिक तौर पर लूटा जा रहा है वहीँ इसे आम लोगों को कंट्रोल करने का यह सामाजिक --राजसी हथियार है | असल में यह राज करने का असरदार हथियार है | दो सौ साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से चीन के विरुद्ध इस्तेमाल किया गया | राज करने का यह हथियार आज तक बहुत ही कारगर ढंग से दुनिया के अलग अलग लोगों के विरुद्ध असरदार ढंग से इस्तेमाल किया जा रहा है |\ यह असल में उस बड़ी जंग का हिस्सा है जिसके तहत हमारे हवा, पानी , मिटटी और भोजन को जहरों के साथ भर दिया गया है | यह उसी जंग का हिस्सा है जिसके तहत हमारे पानी में जहर घोले जा रहे हैं | अब जब किसान , मजदूर, बेरोजगार नौजवान, विद्यार्थी और लुटे जाने वाले तबके इस विविस्ता को बदलने के लिए तैयार हो रहे हैं तो नशे उनको कमजोर करने का कारगर हथियार हैं |
आज अफीम से बनने वाले हेरोइन और स्मैक जैसे खतरनाक नशे अफगानिस्तान से आ रहे हैं | अफगानिस्तान में लगभग 8 लाख एकड़ भूमि पर अफीम की खेती हो रही है जिससे बनने वाले पदार्थों की लगभग 3 लाख 60 हजार करोड़ रूपये की गैरकानूनी आर्थक्ता है | इस पैसे का एक चौथाई हिस्सा किसानों के पास जाता है बाकि जंगबाजों , अफसरों, राजसी लीडरों , एजेंसियों और आतंकवादियों की जेबों में जाता है | लाखों लोगों का रोजगार इस धंधे पर निर्भर है | अफीम और भुकी की मात्रा ज्यादा होने के कारण इसको दूर दराज के हिस्सों में बेचना मुश्किल है इसलिए इसे हीरोइन और स्मैक में बदल दिया जाता है |
साल 1979 में जब रूसी फौजों ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो अमरीकन सी.आई.ए. ने रूष की फौजों को हराने के लिए जहाँ अंताक़वादियों को हथियार और ट्रेनिंग दी उसके साथ ही अफगानिस्तान जेहादियों के साथ मिलकर अफीम की खेती और इससे बनने वाले पदार्थों के व्यापार को खूब बढ़ावा दिया। अमरीकन सी.आई.ऐ. ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई. एस. आई. के साथ मिलकर अफीम के व्यापार को भारत और दुनिया के दूसरे देशों तक फैला दिया। नशों से कमाए पैसे के बल बूते पर अफगान जेहादियों ने जहां रूसी फौजों के पैर नहीं टिकने दिए वहीं अफगान को दुनिया का अफीम पदार्थों का सबसे बड़ा व्यापर केंद्र बना दिया। इसी ताकत के बल पर बाद में जेहादियों ने अमरीकी फ़ौज के भी पैर उखाड़ दिए। आज भी अफगानिस्तान को दुनिया का अफीम पदार्थों का सबसे बड़ा केंद्र है । भारत में भी ये खतरनाक नशे पाकिस्तान के रास्ते से अफगानिस्तान से ही स्मगल होकर आते हैं । इतिहास गवाह है कि अमरीकन सी आई ए ने नशों , नशों से पैदा हुए पैसों और इस धंधे में लगे खतरनाक मुजरिमों ने अमरीकी साम्राजी राजनीति को अनेकों देशों में लागू करने के लिए नँगे चिटे रूप में इस्तेमाल किया।
नशों के व्यापार के बड़े लाभ पात्र कौन हैं ?
दुनिया के नशों के इतिहास पर नजर मारें तो स्पस्ट हो जाता है कि साम्राजी सरकारों, देशों और प्रदेशों की सरकारें , बड़े सरमायेदार (जो दूसरे कानूनी व्यापार के साथ साथ नशों के गैर कानूनी व्यापार ) भी करते हैं और सरकारी तंत्र(राजसी लीडर और अफसर) नशों के व्यापार के बड़े लाभ पात्र हैं । ये लोग बहुत ही इज्जतदार और सामाजिक रुतबे वाले लोग होते हैं ।
ये लोग ना तो कभी सामने आते हैं और इसलिए ना ही कोई इनका कुछ बिगाड़ सकता है । जो लोग पकडे जाते हैं वे तो छोटे मोटे दलाल ही होते हैं ।
पूरी दुनिया में बहोत सी सरकारें नशों के खिलाफ होने का मुखौटा पहनकर ,इस व्यापार को गुप्त तरीकों से इसे चलाती रहती हैं । इस मुखौटे के नीचे लोगों द्वारा पैदा किये या अपने आप पैदा हुए कुदरती नशों (जो कि सेहत के लिए कम नुकसानदायक होते हैं और बेहद सस्ते होते हैं ) पर प्रतिबंध लगा देते हैं । बंदिशें लगाने और गैर- कानूनी घोषित करने से नशों की इस्तेमाल खिंच बढ़ जाती है। दूसरी तरफ वो नशों के व्यापार को इस ढंग से चलाते हैं कि जिससे उनकी जेबें भरती रहें । सरकारें नशों के व्यापार और उसमें से पैदा हुए दो नम्बर के पैसे और इस धंधे में लिप्त मुजरिमों को अपने विरोधियों को डराने, धमकाने और मरवाने के लिए तथा विरोधियों की सरकारोँ को कमजोर करने और उलटने के लिए इस्तेमाल करती हैं ।
भारत में कई राज्यों में पोस्त(अफीम) की खेती , सरकारी इजाजत के साथ की जा सकती है। यह खेती किसलिए की जाती है ? खसखस का पौधा बहुत पुराना दवा का पौधा है। अफीम को अनेकों दवायें बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । पर किसी को भी इस बात की इजाजत नहीं है कि वह पोस्त के कुछ पौधे अपने परिवार के लिए अपने घर में लगा सके । पोस्त का पौधा हजारों सालों से हमारे सभ्याचार का हिस्सा है । इसकी भुर्जी बनाकै खाने को बढ़िया टॉनिक माना जाता है। इनके बीज जिन्हें खसखस कहा जाता है को अनेक ढंग से सेहत वर्धक माना जाता है। इसके फल जिनको डोडे कहा जाता है को सख्त काम करते वक्त और दर्द निवारक के तौर पर एक वरदान समझ जाता है ।
जहाँ अंग्रेजी दर्द निवारक दवाईयों के अनेकों दूरगामी गंभीर प्रभाव हैं वहीं डोडों के कोई दुष्प्रभाव नहीं । ला इलाज दर्द के लिए ये वास्तव में वरदान साबित हो सकते हैं । इसी प्रकार थोड़ी मात्रा(दवा डोज) के रूप में खाई अफीम के भी अनेकों लाभ हमारे सभ्याचार में मिलते हैं । आम लोगों को कोई हक नहीं है कि वे अपने निजी इस्तेमाल के लिए अपने घर में इसके कुछ पौधे लगा कर इस पौधे के दवा गुणों का लाभ उठा सकें । दूसरी तरफ दो नम्बर में (स्मलगरों के माध्यम से) हर चीज बड़ी कीमत पर उपलब्ध है । यह एक जाना पहचाना सच है कि बड़ी गिनती में अमीर लोग , राजसी नेता, और अफसर इस पौधे के कुदरती गुणों का लाभ उठा रहे हैं ।
इसी प्रकार भांग का पौधा हजारों सालों से हमारे सभ्याचार का हिस्सा है । यह शिवजी का प्रसाद है । सिख धर्म के साथ जुड़े निहंग सिख भी सैकड़ों सालों से इसका इस्तेमाल करते रहे हैं । पिछले कुछ सालों में वैज्ञानिक खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भांग का पौधा सेहत वर्धक है और इसे कैंसर समेत अनेक खतरनाक बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है । भांग का पौधा हमारे आस पास हर जगह पर खड़ा है पर अगर आपके बैग में भांग के पत्ते पकड़े गए तो आप पर गम्भीर केस बन जायेगा जिसमें शायद आपकी जमानत भी न हो सके । अभी अभी लोगों की मांग के चलते कैनेडा की सरकार ने भांग के पौधे को रखने और उगाने पर से पाबन्दी हटा ली है । अमरीका के कुछ राज्यों ने भी यह पाबंदी हटा ली है। बाकी मांगों के साथ साथ हमें इन दोनों पौधों को अपने निजी इस्तेमाल के लिए उगाने पर पाबंदी हटाने की मांग भी करनी चाहिए।
पंजाब में नशों की मांग बढ़ने के और भी कारण मौजूद हैं । पिछले 50 -60 साल से खेती में बेहद खतरनाक रसायनों के अधिक इस्तेमाल ने हवा, पाणी, मिट्टी और भोजन में जहरों से भर दिए हैं । धरती के नीचे के पानी के ज्यादा इस्तेमाल से हमारे वातावरण में जहरीले पदार्थों की मिक़्दार बहुत बढ़ गयी है । हमारी सनअतां ने भी हमारे पानी, मिट्टी, और हवा को पलित कर दिया है । हमारे शरीरों में इकट्ठे हुए इन जहरों ने हमारे शरीर , मन और सैक्स को कमजोर किया है। पुराणी और लाइलाज बीमारियां परिवारों की हिम्मत तोड़ रही हैं । काम करने की क्षमता का घटना , हाड पैर दुखते रहना ,हर वक्त थके थके रहना और कमजोरी महसूस करना आम बातें हो गयी हैं। कमजोर हुए शरीर, मन और सैक्स नशों के तरफ खींचे जाने का कारण बन रहे हैं ।
पंजाब की उपजाऊ जमीन , साफ पानी के बहुत स्रोत , बढ़िया जलवायु, और पदार्थक अमीरी, सदियों से धाड़वियों को अपनी तरफ खींचते रहे हैं । आज अत के अमीर लोग, जिनके पास बहुत पैसा इकठ्ठा हो गया है , वे इस पैसे के बल बूते पर पंजाब के कुदरती स्रोतों ऊपर कब्जा करने की लालसा रखते हैं । पंजाबियों का आखड़ स्वभाव और आजादी प्रेम, इस लालसा की पूर्ति में बड़ा रोड़ा हैं । नशों का जाल फैलाके वो हमें इतना कमजोर कर देना चाहते हैं कि हम अपनी आजादी के लिए लड़ने लायक ही ना रहें ।
स्पष्ट है कि पंजाब में नशों की समस्या जहाँ बहुत विकराल है वहीं काफी उलझी हुई भी है। इसमें से निकलना इतना आसान काम नहीं है । पूरे समाज को इसके खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा तभी कोई सकारात्मक नतीजे निकल सकते हैं । कुछ बातें हमेशा याद रखनी पड़ेंगी:-
1. हम मांग करते हैं कि नशों के व्यापारियों के ऊपर सख्ती की जाये। जिन्होंने सख्ती करनी है वे तो खुद इस व्यापर में शामिल हैं । इसलिए जल्दी से अपने मिलन सार व्यापारियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं करेंगे। अगर लोक विरोध से डरते करेंगे तो वह सख्ती आधी अधूरी होयेगी और मौका मिलते ही फिर ढीली हो जायेगी।
2. हम सख्ती करने की मांग तो कर रहे हैं मगर क्या राज सरकार की औकात है कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रही स्मगलिंग को रोक सके । मुनाफा इतना ज्यादा है कि बड़ी मछलियां इस धंधे को बंद नहीं होने देंगी । बेरोजगरी इतनी ज्यादा विकराल है कि नशा- तश्करी में लगे आम लोग अपनी ज्याण पर खेल कर भी अपना रोजगार चलता रखेंगे ।
3. सरकारी राजदरबारों के द्वारा ऐलान की जाती ' नशों के विरुद्ध जंग' असल में 'आम लोगों के विरुद्ध नशे की ' जंग है ।
नशों के गैरकानूनी व्यापार के रास्ते लोगों को आर्थिक तौर पर लूटा जा रहा है वहीं यह आम लोगों को कण्ट्रोल करने का सामाजिक-राजसी हथियार है। असल में राज करने का यह असरदार हथियार है। ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से चीन के लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया । राज करने का यह हथियार आज तक बहुत ही कारगर ढंग से दुनिया के अलग अलग लोगों के विरुद्ध असरदार ढंग से इस्तेमाल किया जा रहा है ।
4. पंजाबियों का और खास करके सिखों का टी. एफ. आर. ( टोटल फर्टिलिटी रेट- जिस का मतलब है कि एक औरत अपने जीवन में औसतन कितने बच्चे पैदा करती है ) पहले ही बहुत घट रहा है। यह आज 1.6 है जो कि 2.1 से कम नहीं होना चाहिए। चिटे जैसे खतरनाक रसायनिक नशों के साथ यह और भी घट जायेगा। ये नशे पंजाबियों के बीज नाश का स्रोत हैं ।
5. यदि हम नशे के व्यापरियों का असली चेहरा लोगों को दिखा सकें क़ि कैसे हमरा दुश्मन अपने हित पूरे करने के लिए हमारा इस्तेमाल कर रहा है , हमारा बीज नाश कर रहा है और इन नशों के जरिये हम अपने दुश्मन के गुलाम बन रहे हैं । इस प्रकार नशे के पीड़ित के मन में नशा छोड़ने की इच्छा पैदा कर सकते हैं ।
6. हम लोगों को चेतन करें कि वो नशा करें ही ना । यह बेशक मुश्किल रास्ता है पर मुमकिन है ।अगर जो नशे करने लग चुके हैं उन्हैँ प्यार से और माहिर इलाज के साथ इस लत से छुटकारा दिलवाएं। सूबा सरकार से मांग करें की वो नाश छुड़ाऊ केंद्र में मुफ्त और बढ़िया इलाज घरों के आस पास उपलब्ध करवाए।
7. गाँवों, कस्बों, और शहरों में जो नशे बेचने वाले छोटे दलाल हैं उनको पहले प्यार से समझाएं और नहीं मानते तो सामाजिक बायकाट किया जाये। अगर फिर भी नहीं मानते तो सामूहिक सख्ती की जाये । अगर पुलिस अफसर और राजसी नेता शामिल हों तो उनका भी बायकाट किया जाये और उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की मांग की जाये।
8. पंजाब और पंजाबी इस बड़े संकट का शिकार हो रहे हैं । खेती घाटे का धंधा बन गयी है । कर्जों के नीचे किसान डूब रहे हैं । बदले में रोजगार है नहीं । पढ़े लिखे बच्चे बेरोजगार फिरते हैं । खेती का मौजूदा मॉडल किसानों और मानव की सेहत का बैरी है। खेती रसायनिकों के अन्धधुन्ध इस्तेमाल , प्रदूषण, धरती के नीचे के गहरे पानी का ज्यादा इस्तेमाल, प्लास्टिक का कहर, और पैट्रोल डीजल का बहुतायत इस्तेमाल, ने हमारे हवा, पाणी , मिट्टी और भोजन जहरों से भर दिए हैं । ये जहर हमारे शरीरों में रच गए हैं जिसके कारण हम खतरनाक , लाइलाज शारीरिक, मानसिक और प्रजनन क्रिया की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं । खतरनाक रसायनिक नशे से बची खुची कसर पूरी कर रहे हैं । जहर मुक्त कुदरती खेती को हरमन प्यारा करना , प्रदूषण को नकेल लगाना , कोले से बिजली बनाने की बजाय हवा, धूप और पानी से बिजली बनाना । प्लास्टिक के इस्तेमाल को बंद करना और पेट्रोल डीजल की खपत घटाना।
9. नशों से बचने के लिए सकारात्मक कामों के तरफ ध्यान लगाना बहुत जरूरी है। अनेक मशले हल करने वाले हैं । खेती को लाभकारी बनाने के लिए कुदरती खेती को हरमन प्यारा बनाने का एक बड़ा चैलेंज है। अपने कमजोर हो चुके शरीर , मन और सैक्स को फिर से तन्दरूस्त करने के लिए हवा, पाणी, मिट्टी और भोजन को जहर मुक्त करना। इसके लिए खेती में जहरों का इस्तेमाल बन्द करें । वातावरण प्रदूषण के विरोध में डटकर खड़े होना,धरती के नीचे के पानी का इस्तेमाल कम करके नहरी और मींह के पानी का इस्तेमाल बढ़ाना,पानी और भोजन स्टोर करने के लिए प्लास्टिक के बरतन का प्रयोग नहीं करना, तथा प्लस्टिक का उपयोग बन्द करना, कोले वाले भाप बिजली घरों से तौबा करना, पैट्रोल डीजल का इस्तेमाल घटाना, पंजाब के मुख्य मुद्दे हैं ।
10. वर्जिश, योगा, ध्यान, खेल, सभ्याचारक चर्चा घर, हंसने का ग्रुप, सामूहिक गायन ग्रुप, सामूहिक डांस ग्रुप, आदि सकारात्मक गतिविधियां नशों से बचाव के लिए कारगर हो सकती हैं ।
11. ट्रेड यूनियनों , विद्यार्थी संगठनों, नौजवान सभाओं , महिला संगठनों, में सक्रिय भूमिका निभाना भी कारगर हो सकता है ।
12. समाज सुधार, समाज सेवा और कुदरत सेवा में सक्रिय भूमिका निभाना ।
13. अपनी आस्था मुताबिक अध्यात्मक सरगर्मियों में शामिल होना - पाठ करना, भजन गाना, और मंत्र जाप करना ।
14. छोटे बच्चों के साथ खेलना और कुदरत के नजदीक रहना भी काफी कारगर हो सकता है ।
15. खसखस और भांग के पौधे दवा पौधे हैं । अपने निजी इस्तेमाल के लिए इन पौधों को उगाने पर लगी पाबंदी हटाई जाये। भुकी और अफीम के इस्तेमाल को मंजूरी दी जाये।
डॉ अमर सिंह आजाद
पंजाब