बुखार से संबंधित जानकारियां
डॉ रवि मोहन ( MD Medicine)
डॉ लक्ष्मी नारायण ( MD Medicine)
**बुखार क्या है?**
मनुष्य का सामान्य तापमान 36.8± 0.4°c या 98.4± 0.7°f होता है। इससे ऊपर मुँह के अन्दर का तापमान बुखार माना जाएगा।
सामान्य तापमान क्या है? और यह क्यों हैं?
* जैविक प्रक्रियाएँ सबसे जटिल रसायनिक प्रक्रियाएँ होती हैं।
* ज्यादा विकसित जीवों में (जैसे की स्तनधारी जीव) ये ज्यादा जटिल होती हैं।
* सभी प्रकार की रसायनिक प्रक्रियाओं के इष्टतम रूप के लिए एक उचित वातावरण जरूरी है।
* तापमान इन रसायनिक प्रक्रियाओं के लिए वातावरण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
* ये इष्टतम तापमान ही इन रसायनिक प्रक्रियाओं के लिए सबसे उचित है- सामान्य तापमान माना जाएगा। मनुष्य का सामान्य तापमान 36.8± 0.4°c या 98.4± 0.7°f होता है।
**मनुष्य तापमान को सामान्य कैसे रखता है?**
* मानव मस्तिष्क का एक हिस्सा जिसे हाईपोथैलेमस कहते है-थर्मोस्टैंट के रूप में काम करता है. यानि की एक सामान्य तापमान को बनाए रखना।
* यह कार्य वह शरीर द्वारा ऊष्मा उत्पादन तथा उष्मा निकासी के सतुलन को बना कर करता है।
* शरीर में ऊष्मा उत्पादन मुख्य रूप से मांसपेशियों के काम के दौरान एवं जिगर द्वारा होती है।
* ऊष्मा निकासी त्वचा द्वारा सतह से सीधी एवं पसीने से होती है।
* कुछ ऊष्मा हम सांस द्वारा भी शरीर से निकालते है।
* इसी ऊष्मा उत्पादन एवं निकासी का सतुलन ही तापमान को सम बनाए रखता है।
**शरीर के तापमान मापने का सही तरीका क्या है?**
* शरीर का तापमान थर्मामीटर द्वारा ही नापा जाता है।
* थर्मामीटर को हमेशा धो कर ही प्रयोग करें।
* तापमान नापने से पहले थर्मामीटर के पारे को झटका देकर नीचे उतार लें।
* फिर थर्मामीटर को कम से कम दो से तीन मिनट तक जीभ के नीचे रखें।
* और बुखार देख लें।
*बच्चों एवं बेहोश मरीजों में बगल में भी बुखार देखा जा सकता है एवं जो तापमान आए उसमें एक डिग्री फॉरन्हाईट जोड़ लें।
*आजकल डिजिटल थर्मामीटर ज्यादा प्रयोग में होते हैं। जिसमें पारा नही होता सीधा धोने के बाद प्रयोग किया जा सकता है।
**बुखार क्यों होता है?**
* बुखार कई प्रकार के हानिकारक उत्तेजक के खिलाफ शरीर की एक प्रक्रिया है।
*हानिकारक तत्वों से हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली उत्तेजित हो जाती है ताकि उसके दुष्प्रभाव को दूर किया जा सके।
* बुखार भी उसी प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण काम है- उस हानिकारक तत्व को खत्म करने के लिए।
* परन्तु कई बार यह संतुलन नही बन पाता एवं बुखार ही स्वयं के शरीर पर दुष्प्रभाव डाल देता है।
**बुखार कैसे होता है?**
* जब भी कोई हानिकारक उत्तेजक हमारे शरीर में दाखिल होता है तो हमारे खून की सफेद कोशिकाओं से कुछ ऐसे रसायन निकलते है जो मस्तिष्क में हाईपोथैलेमस स्थित थर्मोस्टेट को ऊपर वाले तापमान पर निर्धारित कर देती है।
*इस स्थिति में हमारा शरीर इस तरह से काम करता है-
*जिससे ऊष्मा अधिक उत्पन्न हो,।
* क्योंकि मांसपेशियां ही ऊष्मा उत्पादन का मुख्य स्त्रोत हैं।
*वह तेजी से सिकुड़नी शुरू हो जाती हैं और व्यक्ति को कम्पन होने लगती है।
* दूसरा शरीर से ऊष्मा निकासी कम हो। यह कार्य वह त्वचा में स्थित खून की नसों में सिकुड़न पैदा कर के करता है। यही कारण है कि जब बुखार होता है तो व्यक्ति को ठण्ड महसूस होती है।
* अपने आप या दवाओं के प्रभाव से जब बुखार में सुधार होता है तो मस्तिष्क स्थित हाईपोथैलेमस अपने सामान्य तापमान पर निर्धारित हो जाता है तो ऐसी स्थिति में ऊष्मा का उत्पादन सामान्य जैसा हो जाता है और शरीर से ऊष्मा की निकासी बढ़ जाती है। इस स्थिति में शरीर से ऊष्मा की निकासी पसीने द्वारा होती है।
**बुखार के लक्षण**
* शरीर का गर्म महसूस होना।
* शरीर में दर्द होना।
* शारीरिक क्षमता में कमी आना।
* मानसिक रूप से भी कमजोर महसूस करना।
* बुखार के ये सभी लक्षण हर प्रकार के बुखार में होंगे चाहे वो किसी भी कारण से क्यों न हो।
**बुखार होने की स्थिति में क्या करें?**
* सबसे पहले थर्मामीटर द्वारा बुखार का सही आकलन करें।
* बुखार महसूस होना एवं बुखार होना अलग-अलग बाते हैं।
* कई बार व्यक्ति किसी और कारण से ठीक महसूस न होने को ही बुखार मान लेता है-जबकि उसका निदान बिल्कुल अलग है।
* समय के अनुसार बुखार की तालिका बनाई जाए जिससे बुखार का कारण जानने में डाक्टर को मदद मिलती है।
*स्वयं औषधि लेने में जल्दी न करें, मुख्य रूप से एटीबायोटिकस ।
*एंटीबायोटिकस एक दो खुराक लेने से कोई फायदा तो नही होता लेकिन डाक्टर के लिए बुखार का कारण जानना मुश्किल एवं कई बार असभव हो जाता है।
* इस तरह दवाई लेने से आसानी से ठीक होने वाले संक्रमण का इलाज भी काफी मुश्किल हो जाता है।
*स्वयं मरीज को केवल पैरासिटेमोल ही लेनी चाहिए।
* ठण्डे पानी से शरीर की टकोर कर सकते हैं।
*यदि मरीज ज्यादा ही बीमार दिखता है. बड़-बड़ा रहा है, सांस लेने में दिक्कत है. बहुत ज्यादा ट्टी एवं उल्टी है, इस स्थिति में तो डाक्टर को दिखाना और भी जरूरी है।
*ऐसा मानना है कि केवल मलेरिया की दवाई मरीज ले सकता है। वह भी गांव के किसी स्वास्थ्य कर्मचारी द्वारा पहले अपने खून की स्लाइड बनवा कर या ई०डी०टी०ए० की शीशी में थोड़ा सा खून का सैम्पल ले लिया जाए। उसके बाद ही मलेरिया की दवाई ली जा सकती है। इस सैंपल को अगले दिन टैस्ट किया जा सकता है।
**बुखार के कारण**
*बुखार के कारणों को हम मुख्य रूप से तीन कारणों में विभाजित करेंगें।
* संक्रमण (Infections)
* प्रतिरक्षा विकिरण (Autoimmune/Inflammatory)
* कैसर (Cancer)
* संक्रमण बुखार का सबसे मुख्य कारण है एवं कम अवधि से होने वाले बुखार मुख्यतः संक्रमण की वजह से ही होते हैं।
*संक्रमण से होने वाले बुखार पूरे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के परिणाम का ही एक हिस्सा हैं, फिर भी हम अनेक संक्रमणों को दो प्रकार से अध्ययन कर सकते हैं।
*शरीर के प्रभाव होने के अनुसार*
एकल अंग तंत्र संक्रमण (Single Organ System Infections)
सामान्यीकृत सक्रमण (Generalised Infections)
संक्रमण के अनुसार: बैक्टीरिया संक्रमण, वायरस संक्रमण
परजीवी संक्रमण (प्रोटोजुआ एवम् शरीर को सक्रमण करने वाले कीडे) फफूंदी
**एकल अंग तंत्र संक्रमण (Single Organ System Infection)**
* किसी एक विशेष अंग प्रणाली के संक्रमण इस में बुखार के लक्षणों के साथ विशिष्ट प्रभावित अंग प्रणाली के लक्षण मुख्य होते हैं।
1 श्वास प्रणाली के संक्रमण (Respiratory tract infections)
2. पेट और आत्र संक्रमण (Gastro intestinal tract infections)
3. गुर्दे एवं मूत्र प्रणाली के संक्रमण (Kidney and Urinary tract infections)
4. त्वचा के संक्रमण (Skin infections)
5. मस्तिष्क के संक्रमण (Meningitis and encephalitis infections)
**सामान्यीकृत संक्रमण (Generalised Infection)**
ऐसे संक्रमण जो किसी एक अंग प्रणाली को विशेष रूप से प्रभावित नहीं करते बल्कि पूरे शरीर को एक जैसा ही प्रभावित करते हैं। मुख्य हैं -
* मलेरिया
*टायफाइड
कई तरह के वायरस से होने वाले बुखार -
जिसमें चिकन गुनिया एवं डेंगू भी दो प्रकार के वायरस से होने वाले संक्रमण हैं।
* रिक्टेशियल बुवार-जैसे कि टाइफस बुखार
**तापघात (Heat Stroke) यह बुखार अन्य बुखारों से भिन्न है--
* यह संक्रमण नहीं है।
*यह वातावरण में बड़ी गर्मी की वजह से होता है।
* इस में शरीर अपनी ऊष्मा अधिक नही बनाता परन्तु वातावरण का तापमान अधिक होने की वजह से शरीर से ऊष्मा निकासी नही कर पाता, बल्कि वातावरण से ऊष्मा ग्रहण करनी शुरू कर देता है।
* इसमें यदि उपचार समय पर न हो तो बहुत ही घातक सिद्ध होता है।
*हमारे देश में इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है क्योंकि हमारे देश मुख्यतः गर्म प्रदेश है।
* हमारे देश की आधी से ज्यादा आबादी खेत के काम से जुड़ी हुई है।
* तेज गर्मी का शुरू होना एवं खेतों में काम अधिक हो जाना दोनों इक्ट्ठे ही शुरू होते है। इसलिए हमारे देश की बहुत बड़ी आबादी इस बीमारी के जोखिम में रहती है।
*तापघात में शुरू में केवल थकावट महसूस होती है जिसका कारण शरीर में पानी तथा नमक की कमी होता है। (Heat Exhaustion)
*इसके उपरान्त शरीर में जकड़न आने लग जाती है जो पोटाशियम एवं मैगनिशयम जैसे लवणों की कमी की वजह से होती है। (Heat Cramps)
* इसके बाद मरीज को तेजी से बुखार होने लगता है। (Heat Pyrexia)
*तेज बुखार होने के बाद मरीज की स्थिति बहुत जल्दी ही खराब होने लगती है और उसके शरीर के महत्वपूर्ण अंग जैसे की गुर्दे, फेफडे, हृदय एवं जिगर काम करना बन्द कर देते हैं और जल्दी ही मरीज बेहोशी की हालत में पहुँच जाता है। (Heat Stroke)
*कुछ बीमारियां तापघात से होने वाले खतरों को बढ़ा देती हैं। जैसे की मलेरिया, आंत्रों का संक्रमण, टी० बी०, खून की कमी, शुगर व थायरायड की बीमारी इत्यादि ।
* शराब एवं अन्य नशे भी तापघात के लिए बहुत हानिकारक हैं।
**तापघात की रोकथाम**
* हल्के और सूती कपड़े पहनें।
* ज्यादा से ज्यादा पानी व तरल पदार्थ लें।
*बाहर जाते समय चश्में, टोपी या छतरी और चप्पल का प्रयोग करें।
* पहले आधे दिन में ही बाहर या मजदूरी के कामों का निपटारा करें।
* लस्सी, नींबू पानी, छाछ, सीत और बाहर जाते समय पानी लेकर जाएं।
*छोटे बच्चों या पालतू जानवरों को खड़े किए गए वाहनों पर नहीं छोड़ें।
* 12 से 3.30 बजे तक बाहर जाने से बचें।
घर के खिड़की व दरवाजे खोल कर खाना बनाएं।
**तापघात का इलाजः** उए तापघात के इलाज के मुख्य नियम हैं -
* इलाज शीघ्र ही शुरू कर देना चाहिए, क्योंकि शुरू में इलाज आसान है और कहीं भी हो सकता है।
* मरीज को ठण्डे स्थान पर ले जाया जाए।
* ठण्डे पानी व बर्फ की पट्टी पूरे शरीर व मुख्य रूप से सिर पर जरूर की जाए।
* पानी एवं अन्य लवण जैसे कि सोडियम, पोटाशियम, मैगनिशयम की कमी को पूरा किया जाए।
*जब बीमारी ज्यादा बढ़ जाए यानि कि हीट स्ट्रोक की हालत में जब मरीज के मुख्य अंग काम करना बन्द कर देते हैं उस स्थिति में इलाज बड़े अस्पताल में ही संभव हो पाता है।
*इस दौरान भी ठंडे पानी व बर्फ की पट्टी करना न भूलें।
* तापघात में मलेरिया का इलाज साथ में ही कर देना गलत बात नहीं है।
**वायु सबन्धी रोगों की रोकथाम (Prevention of Air Borne diseases)**
उदाहरणः साधारण सर्दी, निमोनिया, इन्फ्लूएंजा, खसरा, तपेदिक, कनपेड़, छोटी माता (चिकनपोक्स)
**रोकथाम**
* ताजी हवा में सांस लें।
* छींकने या खाँसी करते समय रूमाल का उपयोग करें।
* दूसरों को रोगग्रस्त व्यक्ति से दूर रखें।
* संक्रमण रोकने के लिए चेहरे पर पट्टी लगाएं।
* यहाँ-वहाँ थूकना नही चाहिए।
* टी० बी० के मरीज की बलगम को जला दें।
* मरीज से हाथ मिलाने से बेहतर नमस्कार करना बेहतर है।
*कम से कम 20 सैकड के लिए पानी व साबुन से हाथ धोना चाहिए।
**जलजनित रोगों की रोकथाम (Prevention of Water Borne diseases)**
उदाहरण:
दस्त, खूनी दस्त, हैजा, टाइफाइड, पीलिया (हेपेटाइटिस), पोलियों पेट के कीडे आदि।
*रोकथाम:
* फिल्टर किया हुआ / उबाला हुए पानी का प्रयोग करें।
* खाना खाने से पहले हाथ अवश्य धोएं।
* बर्तनों को नियमित रूप से साफ करें।
*अच्छी तरह धोकर ही फल खायें और खाना अच्छी तरह पका कर ही खाना चाहिए।
*नाखूनों को नियमित रूप से काटें और साफ रखें।
*साफ शौचालय का प्रयोग करें।
नोट:
ऐसा माना गया है कि जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा साफ या फिल्टर किया गया पानी ही बीमारियों को दूर करने में लाभ दायक होता है. यदि जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिया गया पानी शुद्धता के मापदंड पर उचित नहीं है तो भी पारिवारिक या व्यक्तिगत तौर पर साफ (फिल्टर) किया गया पानी बीमारियां दूर करने में ज्यादा लाभदायक नहीं रहता। पीने के पानी और रोजमर्रा की जरूरत के पानी को अलग-अलग रख पाना आम व्यक्ति के लिए बहुत ही कठिन है।
**मच्छरों से होने वाली बीमारियों की रोकथाम**
(मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया)
*मच्छरों से होने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए व्यक्ति, समाज और सरकार को सबको मिलकर समन्वय के साथ कार्य करना पड़ता है।
*सरकार का काम स्वास्थ्य संबंधी जानकारी उपलब्ध करवाना।
*नगरपालिका व पंचायत का काम साफ वातावरण उपलब्ध करवाना एवं मच्छरों के पैदा होने की जगह अनचाहे पानी को इकट्ठा होने से रोकना।
*पारिवारिक जिम्मेदारी घर के अदर सफाई रखना एवं मच्छरों को पैदा होने से रोकना।
*व्यक्तिगत तौर पर स्वयं को कपडों तथा रहन-सहन के तरीके से मच्छरों से काटे जाने से खुद को रोकना।
**मच्छरों के पैदा होने की जगह व उनका समाधान**
(मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया)
पानी का बहाव में कोई रूकावट तो नहीं है।