Tuesday, 20 July 2021

मोदी सरकार की कोविड टीकाकरण नीति

 जेएस मजूमदार 


केंद्र सरकार की कोविड टीकाकरण नीति को उसकी स्वास्थ्य रक्षा नीति की पृष्ठभूमि  में ही देखा जाना चाहिए , जो मुख्यतः राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति तथा दवा नीति समेत , संपूर्ण स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली के निजीकरण की ही नीति है।
दवा नीति
सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कंपनियों की स्थापना 1970 के पेटेंट कानून और 1979 का दवा मूल्य(नियंत्रण) आदेश, तीन ऐसे उपकरण थे  जिनके बूते भारत आर्थिक रूप से वहनीय कीमतों पर, टीकों समेत तकरीबन सभी चिकित्सा उत्पादों  में आत्मनिर्भर बन सकता था और दुनिया के विभिन्न देशों के लिए जेनेरिक(गैर पेटेंटेड) दवाओं का प्रमुख आपूर्तिकर्ता हो सकता था।
      लेकिन नव उदारवादी नीति के साथ दवा नीति को भी इन तीनों क्षेत्रों में व्यवस्थित ढंग से कमजोर किया गया और अंततः मोदी सरकार द्वारा सभी सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कंपनियों को बेचा जा रहा है।
स्वास्थ्य नीति
१)पंचवर्षीय योजनाओं के साथ स्वास्थ्य की योजना को त्याग कर ,
२) वर्ष 2017 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को अपनाकर, जिसमें सरकारी स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली की अगल-बगल निजी स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली भी साथ साथ चल रही है,
३) आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण मिशन ( एबी-- एएनएचपीएम) के प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम --जेएवाई ) के रूप में नामांतरण, जिसकी 1 फरवरी 2018 के बजट भाषण में घोषणा की गई और जो निजी स्वास्थ्य रक्षा नेटवर्क की भागीदारी के साथ एक बीमा संचालित नीति है और
४) वर्ष 2020 में निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ टेलीमेडिसिन तथा ई-- फार्मेसी को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य रक्षा मिशन( एनडीएचएम) के नाम से एक सरकारी मंच शुरू करने के जरिए, मोदी सरकार ने संपूर्ण स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली के निजीकरण को एक जबरदस्त उछाल दिए दी है।
        मोदी सरकार को कोविड टीका नीति को, महामारी की स्थिति में मुफ्त सार्वजनिक सरभौम टीकाकरण की जरूरत के विपरीत उपरोक्त स्वास्थ्य तथा दवा नीतियों के अनुरूप ही तैयार किया गया है।
महामारी प्रबंधन में विफलता तथा टीकाकरण नीति:-
मोदी सरकार चौतरफा ढंग से महामारी से निपटने मैं यानी सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा क्षमता, चिकित्सा उपकरण, ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाने और चिकित्सा कर्मियों तथा पैरामेडिकल कर्मियों आदि को उपकरणों से लैस किए जाने को संगठित तथा निर्मित करने में विफल रही । टीके के मोर्चे पर उसकी विफलता तो बहुत ही बड़ी है ।
  कोविड की पहली लहर के बाद मोदी सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि कोविड-19 का हमला खत्म हो गया है और इसके आगे के हमले के खिलाफ रक्षात्मक कदम उठाने की अब कोई जरूरत नहीं है।
विफलता का निर्माण:-
      कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान, जनवरी 2020 से ही कोविड के टीके के विकास , उसके उत्पादन, खरीद, वितरण तथा टीकाकरण के लिए, एक रोडमैप तैयार किया जाना चाहिए था।
       सरकार ने
१) एडवांस आर्डर देकर
२)उत्पादन की क्षमता का विस्तार करने के लिए बैंक ऋण की सुविधाएं देकर
३) सार्वजनिक क्षेत्र के उत्पादन के लिए पहल करके और
४) कोवैक्सीन की तकनीक तकनीक को कोविड टीकों के दूसरे उत्पादकों से साझा करने के जरिए, टीका उत्पादन की घरेलू क्षमता बढ़ाने के लिए कोई भी फल नहीं की।
     कोवैक्सीन तकनीक, केंद्र सरकार के पास उपलब्ध है और यह निष्क्रिय वायरस से इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर ) और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी ( एनआईवी) द्वारा भारत में विकसित की गई और हैदराबाद में भारत बायोटेक इंडिया लिमिटेड (बीबीआईएल) द्वारा उत्पादित एकमात्र उपलब्ध टीका तकनीक  है ।
          हाल ही में सरकार ने कहा था कि वह कोविड सुरक्षा मिशन के तहत कोवैक्सीन की निर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए , सार्वजनिक क्षेत्र के तीन उद्यमों का इस्तेमाल करेगी। सार्वजनिक क्षेत्र के ये उद्यम हैं--
१)हाफकिन बायोफर्मास्युटिकल कार्पोरेशन लिमिटिड, जो महाराष्ट्र सरकार का एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है।
२) हैदराबाद स्थित नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड का इंडियन इम्युनोलॉजिकल  लिमिटेड और
३) बियोटेक्नॉलॉजी विभाग के तहत चलनेवाला बुलन्दशहर स्थित सार्वजनिक क्षेत्र का केंद्रीय , उद्यम भारत इम्युनोलॉजिकल्स कार्पोरेशन लिमिटिड।
उत्पादन का विविधीकरण नहीं किया गया --
सरकार ने भौगोलिक रूप से कोवैक्सीन के उत्पादन का विविधीकरण नहीं किया और न ही उसने सार्वजनिक क्षेत्र की और कम्पनियों और साथ ही साथ छोटे बॉयोलॉजीकल उत्पादकों को शामिल किया। अगर ऐसा किया गया होता तो कोवीशील्ड की मालिक एस्ट्राजेनेका जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी और उसकी एसआइआइ से सौदेबाजी करने में सरकार का पलड़ा भारी रहता
    इसके ठीक उलट स्पूतनिक टीके के मालिक रूसी डायरेक्ट इंवेन्स्टमेंट  फ़ंड (आरडीआईएफ) का उत्पादन मॉडल रहा , जो भारत में करीब 10 विभिन्न कंपनियों तक फैला हुआ है और इसमें ज्यादातर छोटे तथा मध्यम दर्जे के बायोलॉजिकल उत्पादक हैं। उसने ऐसा तकनीक के आसान हस्तांतरण के जरिये किया। डॉ रेड्डीज लेबोरटरी (डी आर एल) इसमें फैसेलिटेटर की भूमिका में है और वह इन कंपनियों के उत्पादन को समन्वित कर रही है ।

आर्थिक रूढ़िवाद की दरिद्रता 

 आर्थिक रूढ़िवाद की दरिद्रता 

एफिडेविट में सरकार ने कहा है कि कोविड-19 से हुई मौतों के लिए अनुकंपा भुगतान करने के लिए उसके पास पैसे ही नहीं हैं। अगर हम केंद्र सरकार के आंकड़ों से ही चलें और इन आंकड़ों को अपडेट भी कर लें तब भी कोविड- 19 के चलते जान गंवाने वालों की संख्या चार लाख से ज्यादा नहीं बैठेगी। 4 लाख प्रति व्यक्ति के हिसाब से हुई मौतों का कुल मुआवजा 16,000 करोड़ रुपये बैठता है। जो सरकार , सेंट्रल विस्टा जैसी आडंबरपूर्ण और गैरजरूरी तथा घोर कलाभजंक  परियोजना पर 20,000  करोड़ रुपये खर्च करने के लिए तैयार है,  उसके पास कोविड के शिकार हुए लोगों के परिवारों को देने के लिए कोई पैसा ही नहीं है -- इससे इस सरकार की नैतिक प्राथमिकताओं के बारे में बहुत कुछ पता चल जाता है।

किशन पुरा चौपाल

 आज 20 जुलाई 2021 मंगलवार किशनपुरा चौपाल में 9 से 12 बजे तक जन स्वास्थ्य अभियान हरियाणा द्वारा आयोजित फ्री हेल्थ परामर्श क्लिनिक में 7 मरीजों को फ्री परामर्श दिया गया और दवाएं भी दी गयी और बीपी और शुगर चेक अप किया गया ।

Monday, 19 July 2021

सार्वजनिक स्वास्थ्य* 

 *सार्वजनिक स्वास्थ्य* 

*"मनुष्य अपनी शुरुआत की आधी जिंदगी  में दौलत कमाने के लिए "स्वास्थ्य" खर्च करता है; परंतु बाद की आधी जिंदगी में अपना स्वास्थ्य दोबारा पाने हेतु अपनी सारी दौलत खर्च करता है।"*    *मनुष्य प्राणी का यह तात्विक विचार इस बात पर जोर देता है कि स्वास्थ्य , अर्थपूर्ण  जीवन बसर करने का एक महत्वपूर्ण घटक है* । *यह भी एक सामान्य अनुभव है कि जब भी हमारा स्वास्थ्य बिगड़ता है तो व्यक्तिगत स्तर पर, हमारा दैनिक कार्य और दैनंदिन कार्य और जीवन स्तर प्रभावित होता है।* *महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ सकते हैं ,अत: पूरे जन समूह का या समुदाय का जीवन स्तर, बड़े पैमाने पर घट सकता है । उसी तरह, अस्वास्थ्य या बीमारी का बारंबार सामना करने से भी समुदाय या जनसमूह का जीवन स्तर बड़े पैमाने पर घट सकता है । गरीबी, भीड़, स्वच्छ पेयजल की कमी,  उचित स्वच्छता का अभाव, निजी स्वच्छता के प्रति लापरवाही आदि इसके कारण हो सकते हैं। यह बातें शायद व्यक्ति के नियंत्रण से परे हों परंतु संगठित प्रयास और वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग के जरिए हम इसे बड़े पैमाने पर कम कर सकते हैं।*      *इसलिए वैज्ञानिक अर्थ में स्वास्थ्य की संकल्पना को समझना आवश्यक है।*