सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए और बिस्फिनाल-ए (बीपीए) पर प्रतिबंध लगाकर पहला सबसे स्पष्ट और तर्कसंगत कदम उठाना चाहिए। समय-समय पर हानिकारक रसायनों के लिए प्लास्टिक पदार्थों की जांच करने और इससे संबंधित धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई हेतु सरकार के पास एक तंत्र होना चाहिए। दुर्भाग्यवश, ऐसी प्रणाली भारत में मौजूद नहीं है। ‘फूड ग्रेड प्लास्टिक‘ जैसे लेबल एक छलावा मात्र हैं और इनका कोई मतलब भी नहीं बनता है, क्योंकि कोई भी प्लास्टिक सुरक्षित नहीं है। हमें निरर्थक महत्वाकांक्षा में पड़ने के बजाय स्वास्थ्य और पर्यावरण की दिशा में प्राथमिकता तय करने वाली नई जीवन शैली से अगली पीढ़ी को सम्बल प्रदान करना चाहिए। क्योंकि हमारे पास केवल एक जीवन और एक पृथ्वी है।
Saturday, 25 May 2019
खानपान में प्लास्टिक कंटेनर के इस्तेमाल से बचें!
सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए और बिस्फिनाल-ए (बीपीए) पर प्रतिबंध लगाकर पहला सबसे स्पष्ट और तर्कसंगत कदम उठाना चाहिए। समय-समय पर हानिकारक रसायनों के लिए प्लास्टिक पदार्थों की जांच करने और इससे संबंधित धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई हेतु सरकार के पास एक तंत्र होना चाहिए। दुर्भाग्यवश, ऐसी प्रणाली भारत में मौजूद नहीं है। ‘फूड ग्रेड प्लास्टिक‘ जैसे लेबल एक छलावा मात्र हैं और इनका कोई मतलब भी नहीं बनता है, क्योंकि कोई भी प्लास्टिक सुरक्षित नहीं है। हमें निरर्थक महत्वाकांक्षा में पड़ने के बजाय स्वास्थ्य और पर्यावरण की दिशा में प्राथमिकता तय करने वाली नई जीवन शैली से अगली पीढ़ी को सम्बल प्रदान करना चाहिए। क्योंकि हमारे पास केवल एक जीवन और एक पृथ्वी है।
भारत में अस्पतालजनित संक्रमण का आंकलन
भारत में अस्पतालजनित संक्रमण का आंकलन
विश्व के तमाम स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में अस्पतालजनित संक्रमणों की समस्या बनी रहती है। वयस्क की तुलना में, नए बच्चों में इन संक्रमणों का अधिक जोखिम होता है। स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए एक सहकारी प्रयास की आवश्यकता है। हर अस्पताल को एक ‘संक्रमण नियंत्रण समिति‘ का गठन करना चाहिए। अस्पतालों से उत्पन्न अपशिष्ट वस्तु संक्रमण का एक बड़ा स्रोत होता है। अस्पताल के कचरे के उचित निपटारे के लिए जरूरी कदम उठाने की आवश्यता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अपने एंटीमाइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रोग्राम के तहत अस्पतालजनित संक्रमण नियंत्रण दिशा निर्देश जारी किए हैं।
मरीज स्वस्थ होने के लिए अस्पताल जाते हैं, लेकिन अक्सर वे संक्रमित होकर, लंबे समय तक
अस्पताल में रहने, वित्तीय तनाव, रुग्णता और मृत्यु दर जैसे कारकों में अतिशय वृद्धि के साथ वापस आते हैं। मरीजों, डॉक्टरों और स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों के लिए नोसोकोमियल या अस्पताल जनित संक्रमण गंभीर चिंता का विषय है। अस्पतालजनित संक्रमण दुनिया भर में उच्च और निम्न.आय वाले दोनों प्रकार के देशों को
प्रभावित करने वाली एक सामान्य घटना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी भी समय अस्पताल में भर्ती 100 मरीजों में से 7 विकसित देशों के और 10 विकासशील देशों के मरीजों में कम से कम एक स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े संक्रमण की सम्भावना रहती है। विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों (जैसे भारत) में
लगभग 20 गुना अधिक घटनाओं के साथ नवजातों को अस्पताल अस्पतालजनित संक्रमणों का जोखिम अधिक
विश्व के तमाम स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में अस्पतालजनित संक्रमणों की समस्या बनी रहती है। वयस्क की तुलना में, नए बच्चों में इन संक्रमणों का अधिक जोखिम होता है। स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए एक सहकारी प्रयास की आवश्यकता है। हर अस्पताल को एक ‘संक्रमण नियंत्रण समिति‘ का गठन करना चाहिए। अस्पतालों से उत्पन्न अपशिष्ट वस्तु संक्रमण का एक बड़ा स्रोत होता है। अस्पताल के कचरे के उचित निपटारे के लिए जरूरी कदम उठाने की आवश्यता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अपने एंटीमाइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रोग्राम के तहत अस्पतालजनित संक्रमण नियंत्रण दिशा निर्देश जारी किए हैं।
मरीज स्वस्थ होने के लिए अस्पताल जाते हैं, लेकिन अक्सर वे संक्रमित होकर, लंबे समय तक
अस्पताल में रहने, वित्तीय तनाव, रुग्णता और मृत्यु दर जैसे कारकों में अतिशय वृद्धि के साथ वापस आते हैं। मरीजों, डॉक्टरों और स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों के लिए नोसोकोमियल या अस्पताल जनित संक्रमण गंभीर चिंता का विषय है। अस्पतालजनित संक्रमण दुनिया भर में उच्च और निम्न.आय वाले दोनों प्रकार के देशों को
प्रभावित करने वाली एक सामान्य घटना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी भी समय अस्पताल में भर्ती 100 मरीजों में से 7 विकसित देशों के और 10 विकासशील देशों के मरीजों में कम से कम एक स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े संक्रमण की सम्भावना रहती है। विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों (जैसे भारत) में
लगभग 20 गुना अधिक घटनाओं के साथ नवजातों को अस्पताल अस्पतालजनित संक्रमणों का जोखिम अधिक
होता है.
अस्पतालजनित संक्रमणों के प्रकार-----
केंद्रीय शिरा कैथेटर से जुड़े रक्तप्रवाह संक्रमण::
इन संक्रमणों के परिणामस्वरूप हर साल हजारों लोगों की मौत 12.25 प्रतिशत की दर से होती है ।
सेन्ट्रल लाइन या सेन्ट्रल वेनस कैथेटर एक ट्यूब है जिसे डाक्टर अक्सर गर्दन, छाती या कमर क्षेत्र
की बड़ी नस में दवाई देने या विभिन्न परीक्षणों के दौरान रक्त एकत्र करने के लिए प्रविष्ट करते हैं । ये कैथेटर हृदय के पास मौजूद प्रमुख नसों तक पहुँचते हैं और लम्बे समय तक रखे जाते हैं ।
उनका उपयोग ज्यादातर गहन देखभाल इकाइयों (आई सी यू ) में किया जाता है। लम्बे समय तक उपयोग के कारण वे गंभीर रक्तप्रवाह संक्रमण का कारण बन सकते हैं। 2017 में इंटरनेशनल जर्नल फॉर क्वालिटी इन हेल्थ केयर में प्रकाशित एक शोध के अनुसार उत्तरी भारत में आई सी यू में रोगियों की केंद्रीय लाइन से जुड़े रक्तप्रवाह संक्रमण की कुल दर 17. 04 प्रति 1000 कैथेटर दिन और 14 .21 प्रति 1000 अंत : मरीज दिन थी। अस्पताल में भर्ती रहने की औसत अवधि 23 . 5 दिन और और वेनस कैथेटर को रखने की औसत अवधि 17 . 5 दिन रखी गई थी।
कैथेटर से जुड़े मूत्र मार्ग के संक्रमण--------
विश्व स्तर पर अस्पतालजनित संक्रमण का यह सबसे प्रचलित संक्रमण है। अस्सी फीसदी मामले मूत्राशय के कैथेटर से जुड़े होते हैं। डाला गया ट्यूब जीवाणुओं के प्रवेश के लिए चैनल के रूप में कार्य करता है और जैसा कि कुछ मूत्र नली में बचा रहता है, जो जीवाणुओं के निर्वाह में मदद करता है। भारत में, कैथेटर से जुड़े मूत्र मार्ग के संक्रमण अस्पतालों द्वारा सूचित कुल संक्रमणों का 30 प्रतिशत से अधिक होते हैं।
सर्जरी वाली जगह के संक्रमण-----
कैथेटर से जुड़े मूत्र मार्ग के संक्रमण के बाद, सर्जरी वाली जगह का संक्रमण अस्पतालजनित संक्रमण का दूसरा सबसे प्रचलित संक्रमण होता है। इस प्रकार का संक्रमण इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी किस तरह की सर्जरी से गुजर रहा है और उसकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति कैसी है। सर्जरी के स्थान वाले संक्रमण ज्यादातर शरीर में पहले से मौजूद जीवाणुओं के कारण होते हैं।
वेंटीलेटर संबंधी निमोनिया------
अस्पतालजनित निमोनिया काफी हद तक गहन देखभाल इकाइयों (आईसीयू) में भर्ती और वेंटिलेटर पर रखे मरीजों को प्रभावित करता है। श्वासनली (विंडपाइप) में लचीली प्लास्टिक ट्यूब लगाने के 48 घंटों के बाद संक्रमण आ जाता है। संक्रमित जीवाणुओं अंतर्जात या बहिर्जात हो सकता है। ये आमाशय, ऊपरी वायुमार्ग और श्वासनली में बसते हैं। उपरोक्त अस्पतालजनित संक्रमणों के अलावा, अन्य संक्रमण भी होते हैं; त्वचा और कोमल ऊतकों को प्रभावित कर सकते हैं; साइनस (साइनसाइटिस) की सतह में सूजन आ सकती है; गर्भाशय (एंडोमेट्रैटिस) की अंदरूनी परत में सूजन आना; वायरस, बैक्टीरिया या परजीवी के कारण
आंतों के अस्तर की सूजन।
भारत में अस्पतालजनित संक्रमणों की औसत दर 5 प्रतिशत से 10प्रतिशत है, इसमे आईसीयू में भर्ती रोगियों की अधिकता है। कैथेटर से जुड़े मूत्र मार्ग के संक्रमण 28प्रतिशत , सर्जरी वाले स्थान के संक्रमण 19प्रतिशत , वेंटिलेटर संबद्ध निमोनिया 17प्रतिशत और सेन्ट्रल लाइन से जुड़े रक्तप्रवाह का संक्रमण
7प्रतिशत से 16प्रतिशत है।
एक कुशल निगरानी रणनीति की जरूरत है-------
अस्पताल में संक्रमण दर इसकी देखभाल और सुरक्षा उपायों की गुणवत्ता का एक सूचक है जो संक्रमण को नियंत्रण में रखता है और संक्रमण की दर के न्यूनतम स्तर पर होने के लिए यह आवश्यक है कि एक जांच स्तर विकसित किया जाए। जांच एक सूचना आधारित गतिविधि है जिसमें विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न डेटा के बड़े संस्करणों का संग्रह, विश्लेषण और व्याख्या शामिल हैं।
पहले चरण में डेटा का संग्रह शामिल है। एक विशाल डेटा पूल प्रशिक्षित डेटा संग्राहकों द्वारा बनाया गया है। वे जनसांख्यिकीय जोखिम कारकों, प्रक्रियाओं और उपकरणों का रिकॉर्ड जो संक्रमण के स्रोत हो सकते हैं, रोगी के विवरण जैसे प्रवेश तिथि, नैदानिक पृष्ठभूमि, प्रयोगशाला रिपोर्ट, चिकित्सा और नर्सिंग चार्ट की समीक्षा, संक्रमण की उपस्थिति या अनुपस्थिति, लक्षणों की शुरुआत, कारक सूक्ष्मजीव, रोगाणुरोधी संवेदनशीलता और अन्य नैदानिक परीक्षणों को एकत्र करती है। वर्तमान पर्यावरणीय परिस्थितियों, खराब वायु और जल की गुणवत्ता, जनसंख्या वृद्धि और रोगाणुरोधी प्रतिरोध के मद्देनजर, अस्पताल से प्राप्त संक्रमणों की घटनाओं को खत्म करने का काम असंभव लगता है। लेकिन, उचित अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति, जैव सुरक्षा विनियमन, नर्सिंग स्टाफ का
प्रशिक्षण, उचित स्वच्छता प्रथाओं और अधिक से अधिक सार्वजनिक जागरूकता रोगियों को गुणवत्ता युक्त देखभाल प्रदान करने के उद्देश्य में सहायक हो सकते हैं।
जन स्वास्थय अभियान हरयाणा अस्पतालजनित संक्रमणों के प्रकार-----
केंद्रीय शिरा कैथेटर से जुड़े रक्तप्रवाह संक्रमण::
इन संक्रमणों के परिणामस्वरूप हर साल हजारों लोगों की मौत 12.25 प्रतिशत की दर से होती है ।
सेन्ट्रल लाइन या सेन्ट्रल वेनस कैथेटर एक ट्यूब है जिसे डाक्टर अक्सर गर्दन, छाती या कमर क्षेत्र
की बड़ी नस में दवाई देने या विभिन्न परीक्षणों के दौरान रक्त एकत्र करने के लिए प्रविष्ट करते हैं । ये कैथेटर हृदय के पास मौजूद प्रमुख नसों तक पहुँचते हैं और लम्बे समय तक रखे जाते हैं ।
उनका उपयोग ज्यादातर गहन देखभाल इकाइयों (आई सी यू ) में किया जाता है। लम्बे समय तक उपयोग के कारण वे गंभीर रक्तप्रवाह संक्रमण का कारण बन सकते हैं। 2017 में इंटरनेशनल जर्नल फॉर क्वालिटी इन हेल्थ केयर में प्रकाशित एक शोध के अनुसार उत्तरी भारत में आई सी यू में रोगियों की केंद्रीय लाइन से जुड़े रक्तप्रवाह संक्रमण की कुल दर 17. 04 प्रति 1000 कैथेटर दिन और 14 .21 प्रति 1000 अंत : मरीज दिन थी। अस्पताल में भर्ती रहने की औसत अवधि 23 . 5 दिन और और वेनस कैथेटर को रखने की औसत अवधि 17 . 5 दिन रखी गई थी।
कैथेटर से जुड़े मूत्र मार्ग के संक्रमण--------
विश्व स्तर पर अस्पतालजनित संक्रमण का यह सबसे प्रचलित संक्रमण है। अस्सी फीसदी मामले मूत्राशय के कैथेटर से जुड़े होते हैं। डाला गया ट्यूब जीवाणुओं के प्रवेश के लिए चैनल के रूप में कार्य करता है और जैसा कि कुछ मूत्र नली में बचा रहता है, जो जीवाणुओं के निर्वाह में मदद करता है। भारत में, कैथेटर से जुड़े मूत्र मार्ग के संक्रमण अस्पतालों द्वारा सूचित कुल संक्रमणों का 30 प्रतिशत से अधिक होते हैं।
सर्जरी वाली जगह के संक्रमण-----
कैथेटर से जुड़े मूत्र मार्ग के संक्रमण के बाद, सर्जरी वाली जगह का संक्रमण अस्पतालजनित संक्रमण का दूसरा सबसे प्रचलित संक्रमण होता है। इस प्रकार का संक्रमण इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी किस तरह की सर्जरी से गुजर रहा है और उसकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति कैसी है। सर्जरी के स्थान वाले संक्रमण ज्यादातर शरीर में पहले से मौजूद जीवाणुओं के कारण होते हैं।
वेंटीलेटर संबंधी निमोनिया------
अस्पतालजनित निमोनिया काफी हद तक गहन देखभाल इकाइयों (आईसीयू) में भर्ती और वेंटिलेटर पर रखे मरीजों को प्रभावित करता है। श्वासनली (विंडपाइप) में लचीली प्लास्टिक ट्यूब लगाने के 48 घंटों के बाद संक्रमण आ जाता है। संक्रमित जीवाणुओं अंतर्जात या बहिर्जात हो सकता है। ये आमाशय, ऊपरी वायुमार्ग और श्वासनली में बसते हैं। उपरोक्त अस्पतालजनित संक्रमणों के अलावा, अन्य संक्रमण भी होते हैं; त्वचा और कोमल ऊतकों को प्रभावित कर सकते हैं; साइनस (साइनसाइटिस) की सतह में सूजन आ सकती है; गर्भाशय (एंडोमेट्रैटिस) की अंदरूनी परत में सूजन आना; वायरस, बैक्टीरिया या परजीवी के कारण
आंतों के अस्तर की सूजन।
भारत में अस्पतालजनित संक्रमणों की औसत दर 5 प्रतिशत से 10प्रतिशत है, इसमे आईसीयू में भर्ती रोगियों की अधिकता है। कैथेटर से जुड़े मूत्र मार्ग के संक्रमण 28प्रतिशत , सर्जरी वाले स्थान के संक्रमण 19प्रतिशत , वेंटिलेटर संबद्ध निमोनिया 17प्रतिशत और सेन्ट्रल लाइन से जुड़े रक्तप्रवाह का संक्रमण
7प्रतिशत से 16प्रतिशत है।
एक कुशल निगरानी रणनीति की जरूरत है-------
अस्पताल में संक्रमण दर इसकी देखभाल और सुरक्षा उपायों की गुणवत्ता का एक सूचक है जो संक्रमण को नियंत्रण में रखता है और संक्रमण की दर के न्यूनतम स्तर पर होने के लिए यह आवश्यक है कि एक जांच स्तर विकसित किया जाए। जांच एक सूचना आधारित गतिविधि है जिसमें विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न डेटा के बड़े संस्करणों का संग्रह, विश्लेषण और व्याख्या शामिल हैं।
पहले चरण में डेटा का संग्रह शामिल है। एक विशाल डेटा पूल प्रशिक्षित डेटा संग्राहकों द्वारा बनाया गया है। वे जनसांख्यिकीय जोखिम कारकों, प्रक्रियाओं और उपकरणों का रिकॉर्ड जो संक्रमण के स्रोत हो सकते हैं, रोगी के विवरण जैसे प्रवेश तिथि, नैदानिक पृष्ठभूमि, प्रयोगशाला रिपोर्ट, चिकित्सा और नर्सिंग चार्ट की समीक्षा, संक्रमण की उपस्थिति या अनुपस्थिति, लक्षणों की शुरुआत, कारक सूक्ष्मजीव, रोगाणुरोधी संवेदनशीलता और अन्य नैदानिक परीक्षणों को एकत्र करती है। वर्तमान पर्यावरणीय परिस्थितियों, खराब वायु और जल की गुणवत्ता, जनसंख्या वृद्धि और रोगाणुरोधी प्रतिरोध के मद्देनजर, अस्पताल से प्राप्त संक्रमणों की घटनाओं को खत्म करने का काम असंभव लगता है। लेकिन, उचित अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति, जैव सुरक्षा विनियमन, नर्सिंग स्टाफ का
प्रशिक्षण, उचित स्वच्छता प्रथाओं और अधिक से अधिक सार्वजनिक जागरूकता रोगियों को गुणवत्ता युक्त देखभाल प्रदान करने के उद्देश्य में सहायक हो सकते हैं।
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