बच्चों में मोटापे के परिणाम
ज्योति शर्मा एवं सार्थक शर्मा( साभार --ड्रीम 2047 अप्रैल 2018 )
बच्चे आजकल बहुत तेजी से शारीरिक स्तर पर निष्क्रिय जीवन शैली को अपना रहे हैं। अधिक मात्रा में ऊर्जा-घनित पोषण-रहित खाना खा रहे हैं। जिसकी वजह से आजकल बच्चों में मस्तिष्क वाहिकीय रोगों (स्ट्रोक्स) के अलावा कैंसर, टाइप-2 मधुमेह, आस्टियोआर्थराइटिस, हाइपरटेंशन और हाई कोलेस्ट्राल जैसी बीमारियाँ पाई जा रही हैं। भारतीय बच्चे अपने दैनिक भोजन में उचित मात्रा में फल या सब्जियाँ नहीं खाते हैं, जितनी उन्हें उनकी उम्र के अनुसार खानी चाहिए। ये सभी कारक उनके जीवन स्तर और भविष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
अग्रवाल परिवार ने डॉक्टर को दिखाने का निर्णय लिया क्योंकि आजकल उनका बेटा अनुज बहुत ही थका-थका और मानसिक रूप से अवसाद में दिख रहा था। उनके परिवार ने यह भी महसूस किया कि उसके अधिकांश दोस्त उसे उसकी उदास जीवनशैली की वजह से कॉमन पार्टियों में आमंत्रित नहीं करते हैं और उससे दूर ही रहते है। लेकिन उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था कि उनका 14 साल का बेटा टाइप-2 मधुमेह से ग्रसित है जिसके बारे में उन्हें डॉक्टर ने बताया। डॉक्टर ने बताया कि अनुज का वजन ज्यादा होना ही टाइप-2 मधुमेह का प्रमुख कारण है। अनुज के परिवार ने कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि उसका वजन पिछले केवल पाँच वर्षों मे ही 45 से बढ़कर अब 94 तक पहुँच चुका है। उसके वजन बढ्ने के संभावित कारण थे उसका पिज्जा, बर्गर, मसालेदार चिकन, तली हुई चीजें और वातित पेय के प्रति मोह। हालांकि डॉक्टर ने परिवार को बताया कि अतिरिक्त वजन को दूर करके खाने पीने की आदतों में सुधार करके और अकर्मण्य जीवनशैली को छोड़कर बच्चों में टाइप 2 मधुमेह को टाला जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता लगता है कि भारत में करीब 14. 4 मिलियन बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन अपेक्षा से अधिक (ओवरवेट) है। 2013 मे हुए एक अध्ययन “ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज” या “रोगों का वैश्विक बोझ” की रिपोर्ट के अनुसार यह कहा गया है कि 2025 तक भारत में करीब 17 मिलियन बच्चे मोटापे से ग्रस्त हो जाएंगे और भारत की स्थिति चीन के बाद 184 देशों में से दूसरे नंबर पर होगी। इस तरह के बच्चे हमेशा स्वास्थ्य के बुरे परिणामों की आशंका से घिरे रहते हैं जिसमंे शारिरिक एवं मानसिक दोनों ही तरह की परेशानियाँ शामिल हैं। यह पूरी तरह से स्थापित एवं प्रमाणित हो चुका है कि ज्यादा वजन और मोटापे से ग्रसित बच्चों में कई भयंकर बीमारिया जैसे टाइप-2 डायबिटीज मेलिटस, हाइपरटेंशन और मस्तिष्क वाहिकाओं से संबन्धित रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है। बॉडी मास इंडेक्स ( BMI) शरीर के फैट (वसा) का मापक होता है जो शारीरिक ऊंचाई के अनुपात में शारीरिक वजन पर आधारित होता है। यह एक प्राथमिक तरीका होता है जिससे पता लगता है कि व्यक्ति का वजन सामान्य से कम है, ज्यादा है या वह मोटा यानि ओबीस है। इसके अलावा यदि बीएमआई अधिक होता है तो इससे मृत्यु का खतरा भी अधिक हो जाता है। सामान्य रूप से स्वीकृत बीएमआई की सीमा हैः कम वजन
( 18.5 कि.ग्रा. /मी 2, सामान्य वजन: 18.5-25 किग्रा. अधिक; वजन (ओवर वेट): 25-30 कि. ग्रा. और
ओबीस 30 कि. ग्रा. से अधिक। ओबेसिटी यानि मोटापा तभी बढ़ता है जब ऊर्जा का शरीर में प्रवेश उसे खर्च करने से अधिक होता है। शारीरिक वजन का निर्धारण कई वंशानुगत और वायुमंडलीय कारकों के बीच पारस्परिक क्रिया द्वारा होता है। यह अनुमान लगाया गया है कि 40-70% तक बीएमआई में होने वाले उतार चढ़ाव आनुवांशिक होते हैं जबकि अन्य 30% का निर्धारण जीवनशैली के आधार पर होता है। चित्र-1 में यह भी दिखाया गया है कि केवल चीनी या वसा ही आजकल मोटापे के मामलों में हुई वृद्धि का कारण नहीं हैं बल्कि
जीन, वातावरण और भावनात्मक कारक, खाने की मात्रा और मानसिक स्तर को प्रभावित करते हैं; अक्सर देखा जाता है कि जब विपरीत भावनात्मक परिस्थितियाँ सामने आती हैं तब व्यक्ति स्वाद के लिए ज्यादा खाना खाता है। इस तरह बार-बार आराम से बैठकर कार्बोहाइड्रेट्स, वसा और शर्करायुक्त खाना खाते रहने से ही मोटापा बढ़ता है। मोटापा हमारे मूड को नियंत्रित करता है जिससे हमारे मस्तिष्क की गतिविधियां विचलित हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मूड, खाना और मोटापे के बीच एक द्वि-दिशीय चक्र स्थापित हो जाता है।
मोटापे से पोषक तत्वों का संबंध
शोधों से अभी तक ये पता नहीं लग पाया है
कि मोटापे के लिए वास्तव में कौन जिम्मेदार है।
आजकल पश्चिमी और विकासशील देशों दोनों तरफ
ही मुख्य भोजन के रूप में प्रसंसाधित (प्रोसेस्ड)
एवं अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों को शामिल किया
जा रहा है। विज्ञापनों में कम वसायुक्त खाद्य को
प्रचारित किया जाता है, फलतः कंपनियाँ अधिक
शर्करा युक्त खाद्य पदार्थों का प्रयोग करती हैं।
हाइपरटेंशन, मधुमेह और मोटापा (ओबेसिटी) के
मामले सबसे पहले (इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी) में पाये
गए वो स्थान है, जहां लोगों को सबसे पहले चीनी
या शर्करा खाने को मिली। इससे चीनी खाने और
मोटापे का आपसी संबंध स्थापित होता है। इसके
अलावा विकासशील देशों में चीनी की शुरुआत से
उन देशों में भी आगे चलकर मोटापे और हृदय रोग
के मामले देखे जाने लगे।
हाई फ्रूक्टोज कॉर्न सिरप (एचएफसीएस) एक
मीठा तरल पदार्थ है जो कॉर्न या मक्के के
स्टार्च से बनता है जिसकी रासायनिक बनावट
(ग्लूकोज और फ्रूक्टोज) सामान्य शर्करा या
चीनी की तरह ही होती है, जो कि सुक्रोज
(प्राकृतिक रूप से कई वनस्पतियों एवं इनके
अंशों में पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट)
कहलाता है। एचएफसीएस खाद्य पदार्थों से
जुड़े उद्योगों की प्रमुख पसंद है क्योंकि यह
अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता
है, अधिक स्वादिष्ट होता है तथा चीनी की
अपेक्षा इसका मूल्य काफी कम होता है।
चीनी या टेबल शुगर और एचएफसीएस
का संयोजन मिठास की खपत में अतिरिक्त
30ः की बढ़त करता है और यही मोटापा
या ओबेसिटी तथा कार्डियोवस्कूलर रोगों के
खतरे से जुड़े खतरनाक घटकों में से प्रमुख
है। ग्लूकोज की तुलना में फ्रूक्टोज की इंसुलिन और लेप्टिन हारमोन स्राव करने की क्षमता
काफी कम या न के बराबर होती है जिससे घ्रेलीन
का उत्पादन रुक जाता है। ये सभी कारक हमारे
मस्तिष्क के संतृप्ति केंद्र को प्रभावित करते हैं।
इंसुलिन हमारे शरीर में रक्त के ग्लूकोज स्तर को
नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है। लेप्टिन
फैट सैल्स से बना होता है जो भूख को कम करता
है और घ्रेलीन से हमारी भूख बढ़ती है जिससे हमारे
शरीर का वजन भी बढ़ता है।
फ्रूक्टोज की खपत से किडनी की कार्य क्षमता
भी प्रभावित होती है। फ्रूक्टोज एकमात्र ऐसी शर्करा
होती है जो यूरिक एसिड और घनत्व को बढ़ाती है,
यह गाउट के लिए संभावित खतरा माना जाता है
(गाउट एक ऐसा रोग है जो यूरिक अम्ल के दोषपूर्ण
उपापचय के कारण आर्थराइटिस या गठिया को
जन्म देता है)।
उच्च कार्बोहाइड्रेटयुक्त खाद्य भी ओबेसिटी के
कई कारणो में से एक हैं। कम कार्बोहाइड्रेटयुक्त
आहार लेने का एक सामान्य औचित्य यह है कि
मानव शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स को संचित करने की
क्षमता बहुत ही सीमित है और जो कार्बोहाइड्रेट्स
हमारे शरीर में संचित नहीं हो पाते, वे सीधे वसा
में बदल जाते हैं। स्रोतके आधार पर स्टार्च में
समान्यतः 20-25ः एमाइलोज और 75-80ः
एमायलोपेक्टिन होता है जो पाचन क्रिया के दौरान
एंजाइमों द्वारा मोनोसेक्राइड्स में टूट जाता है। यह
अस्थाई रूप से लीवर तथा कंकलीय मांसपेशियों
में ग्लाइकोजेन के रूप में संचित होता है और
धीमे-धीमे यह लिपिड में परिवर्तित होता है जो
अधिक मात्रा में लेने से एडिपोज ऊतक में जमा
हो जाता है।
ये लिपिड ऊर्जा संचय एवं जैवरासायनिक
प्रक्रियाओं के लिए अहम होते हैं और कोशिका
झिल्ली के संरचनात्मक घटकों का कार्य करते हैं।
ट्राइग्लिसराइड ऊर्जा संचय का प्रमुख रूप हैं जो
एडिपोज ऊतक (ढीले संयोजी ऊतक जो वसा के
रूप मे ऊर्जा संचय करते हैं) में स्थित
रहते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स की तुलना में वसा
दुगुनी कैलोरी प्रति ग्राम प्रदान करते हैं।
संतृप्त वसा एक प्रकार की वसा है जो
मूल रूप से हमारी धमनियों में रुकावट
लाने और कोलेस्ट्ररॉल के स्तर को बढ़ाने
के लिए जिम्मेदार होती है। आजकल
खाद्य उद्योग हाइड्रोजीनेटेड या ट्रांस फैट
का प्रयोग कर रहे हैं जो उनके खाद्य
प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) की जरूरतों को
पूरा करता है। ट्रांस फैट का प्रयोग बहुत
आसान है, उत्पादन सस्ता है और इसे कई
बार व्यावसायिक फ्राएर्स में (तलने के लिए)
इस्तेमाल किया जा सकता है।
ये खाने को एक वांछित स्वाद और
स्वरूप प्रदान करते हैं और इनका प्रयोग
अधिकांश फास्ट फूड और फ्राइड फूड जैसे फ्रेंच फ्राइज, डोनट्स, केक्स, पाई क्रस्ट्स,
बिस्किट, फ्रोजन पिज्जा, कुकीज, क्रैकर्स और
स्टिक मारग्रेन्स में होता है। नकली ट्रांस फैट (या
ट्रांस फैटी एसिड) एक औद्योगिक प्रक्रिया द्वारा
बनाए जाते हैं जिसमें लिक्विड वेजीटेबल ऑइल में
हाइड्रोजन मिलाया जाता है ताकि उन्हें अधिक ठोस
बनाया जा सके।ये ट्रांस फैट अधिक खतरनाक
होते हैं एवं हृदय को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। ये
खराब कोलेस्ट्ररॉल (एलडीएस) के स्तर को बढ़ाते
हैं और अच्छे कोलेस्ट्ररॉल (एचडीएल) के स्तर को
घटाते हैं। उच्च वसायुक्त खाद्य पदार्थ से एडीपोज
ऊतकों के जमा होने में बदलाव आता है और ये
ओबेसिटी या मोटापे के कारणों में एक महत्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं। व्यायाम और अधिक मात्रा में
संतृप्त वसायुक्त पदार्थों को लेना (जो अधिकतर
वनस्पति तेलों में पाई जाती है), मोटापे को घटाने
में या मोटापा प्रबंधन में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रोटीनों की आवश्यकता नई कोशिकाओं और
ऊतक निर्माण में होती है, जो एमिनो अम्ल में
टूट जाते हैं। प्रोटीन मांसपेशियों तथा अंग प्रत्यंगों
को ढांचा प्रदान करता है। प्रोटीन रोग प्रतिरोधी
कोशिकाओं, रक्त कोशिकाओं और हार्मोन्स के लिए
आधारभूत घटक होते हैं। खाद्य प्रोटीन की मात्रा
में वृद्धि होने से शरीर का वजन नियंत्रित होता है,
क्योंकि इसका सीधा असर संतृप्ति, शारीरिक ताप
को नियमित रखने और इंसुलिन के उत्पादन एवं
गतिविधि पर पड़ता है। जब कम वसायुक्त आहार
में प्रोटीन से कार्बोहाइड्रेट को प्रतिस्थापित कर दिया
जाता है तो यह ग्लूकोज की उपस्थिति को घटाने
और रक्त में इंसुलिन के अत्यंत उच्च घनत्व को
कम करने में मदद करता है। जबकि साथ-साथ
यह वसा आक्सीकरण को बढ़ाता है।
खाद्य मनोविज्ञानः खाद्य
पारितोषिक, आदतें और मोटापा
हमारे मनोभाव, भावनात्मक स्थिति और खाने
के स्वभाव बहुत जटिल होते हैं और ये माना
गया है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं
मनोदशा को खाने की पसंद और मात्रा के अनुसार
नियंत्रित करता है। कृतज्ञता या भावुकतावश अधिक
खाना खाने के कारण कुछ रसायन जिन्हे हार्मोन्स
कहा जाता है हमारे मस्तिष्क मे जाकर आनंद केंद्र
विकसित कर देते है जिससे इसी तरह का खाना
खाने की आदत या लत लग जाती हैं जिससे हमारा
वजन बढ़ता है और मोटापा भी।
खाने की प्रक्रिया में कई न्यूरो ट्रांसमीटर
प्रणालियां होती हैं, जैसे, सिरोटोनिन, डोपामाइन,
ओपिओड्स और गाम्मा एमिनोब्यूटरीक एसिड,
जिनमे से सिरोटोनिन और डोपामाइन बड़े नजदीक
से खाने के स्वभाव के साथ जुड़े होते है। इनमें
चाहत या चाहना या इच्छा करना और पसंद करना या खुश होकर या आनंद के साथ खाने के बीच
डोपामाइन मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।
जीवनशैली
बच्चे आजकल तेजी से शारीरिक रूप से निष्क्रिय
जीवन शैली अपना रहे है और वे अपनी आरामतलबी,
टेलीविजन, कंप्यूटर तथा मोबाइल फोनों पर बढ़ती
निर्भरता, फास्ट और प्रोसेस्ड फूड की उपलब्धता,
मशीनी जिंदगी, आधुनिकीकरण इत्यादि कारणों कि
वजह से अधिक ऊर्जा-घनत्व, कम पोषकतत्वों वाला
खाना खा रहे हैं। इन सबकी वजह से भारतीय बच्चों
मे जहां एक ओर मस्तिष्क वाहिकीयरोगों (स्ट्रोक्स)
का खतरा बढ़ा है वहीं कैंसर, टाइप-प्प् मधुमेह,
ओस्टियो- अर्थराइटिस, हाइपरटेंशन और उच्च
कोलेस्ट्रॉल के मामले काफी बढ़े हैं जिनका मूल
कारण है अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उचित मात्रा
में फलों और सब्जियों का सेवन ना करना। इन सभी
कारकों का उनके जीवन स्तर एवं भविष्य के स्वास्थ्य
पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सारांश
वर्तमान आलेख यह इशारा करता है कि भारतीय
बच्चों और किशोरों मे सामान्य मोटापा या ओबेसिटी
का बोझ कुछ ज्यादा ही है जिसमें सामाजिक-आर्थिक
अंतर भी निश्चित रूप से परिलक्षित होता है। विश्व
स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एशिया की जनसंख्या
के लोगों में मोटापे का स्तर और मोटापे का वितरण
कौकासियन जनसंख्या की अपेक्षा बहुत अलग पाया
गया है। एशियाई-भारतीय बच्चे प्रतिकूल शारीरिक
संरचना तथा क्षेत्रीय विविधता से अधिक प्रभावित होते हैं। मोटापा ग्रस्त भारतीय बच्चे युवा आयु में ही
सामान्य बच्चों की तुलना में कई भयंकर बीमारियों
का बोझ झेल रहे हैं। अभी तक हुए अनुसंधानों
से पता लगता है कि भारत में कम उम्र में ही
लाखों लोग टाइप-2 मधुमेह के शिकार होते जा रहे
हैं। ये कारक भारत में मधुमेह जैसी महामारी और
बच्चों मे होने वाला मोटापे के बीच एक सीधा संपर्क
दर्शाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एशिया
महाद्वीप के वे लोग जिन्हें टाइप-2 मधुमेह और हृदय
सबंधित रोगों का खतरा अधिक होता है, का अनुपात
ॅभ्व् के अतिभार (ओवर वेट) वर्तमान कटऑफ
पॉइंट (बीएमआई 25 से ज्यादा) से नीचे क स्तर पर
भी बहुत अधिक है।
आधुनिक चिकित्सा के जनक हिप्पोक्रेटिस के
अनुसार “आपका भोजन ही आपकी दवा ही और
आपकी दवा आपका भोजन है। ‘‘आधुनिक समाज में
आनुवांशिक और जनसांख्यिकीय कारकों के अलावा
मोटापे का प्रमुख कारण है अक्रिय जीवनशैली जिसमें
शारीरिक गतिविधियों की कमी और खाने की प्रचुरता
है जिससे डोपामाइन आकर्षी केंद्र अधिक सक्रिय
हो जाते हैं। मूड परिवर्तन के अलावा, उच्च वसा
भोजन से भार में वृद्धि, कमर का घेरा बढ़ना, और
हृदय रोगों से मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है। इन
परिवर्तनों से हुई न्यूरो-बायोलोजिकल गड़बड़ी के
कारण मूड में बिगाड़ आ जाता है जैसे अवसाद या
चिंता या तनाव का बढ़ना, जिसे फल स्वरुप फिर से
ज्यादा भोजन करने और मोटापे की वृत्ति बढ़ती है।
परिष्कृत या रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स और शर्करा की
मात्रा की अधिकता वाला भोजन उच्चवसायुक्त आहार
की तरह ही अस्वास्थ्यकारी हो सकता है, क्योंकि
यह भी मधुमेह और हृदय संबन्धित रोगों के खतरे
को बढ़ाता है।
जीवन शैली में किए जाने जाले समग्र प्रयासों
में शामिल हैं- शारीरिक गतिविधि, उचित भोजन
मानसिक और मनोवैज्ञानिक युक्तियां इच्छा शक्ति,
प्रेरणात्मक बातचीत और संग्यानात्मक व्यवहारपरक
चिकित्सा। खाने की पसंद को प्रभावित करने वाले
कारकों में शामिल है, भूख, खाने की इच्छा, स्वाद,
लागत, आय और भोजन की उपलब्धता। स्वस्थ्य
जीवन के लिए आवश्यक है एक संतुलित आहार,
नियमित व्यायाम और तनाव प्रबंधन।
मोटापे के प्रबंधन के लिए नीतियाँ भी बराबर
महत्वपूर्ण हैं। कुपोषण के अलावा सरकार को
ओबेसिटी पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए। इससे
भविष्य की पीढ़ियों को अपने भविष्य में आने वाले
रोगों से बचाव में मदद मिलेगी। स्कूल भी मोटापे
जैसी महामारी की रोकथाम में अहम भूमिका निभा
सकते हैं जिसमें स्कूल की कैन्टीन मे प्रोसेस्ड फूड
की बिक्री को बंद करना, गैस युक्त पेय पदार्थों
की बिक्री पर रोक लगाना और नियमित रूप से
बच्चों के साथ बातचीत करना शामिल होने चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘‘असंक्रामक रोगों की
रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए वैश्विक क्रिया योजना
2013-2020‘‘ तैयार की है जिसमें शामिल है 2010
की दरों को लक्ष्य करके वैश्विक मोटापे में हो रही
वृद्धि को रोकना।
(अनुवादः संगीता चतुर्वेदी)
ज्योति शर्मा एवं सार्थक शर्मा( साभार --ड्रीम 2047 अप्रैल 2018 )
बच्चे आजकल बहुत तेजी से शारीरिक स्तर पर निष्क्रिय जीवन शैली को अपना रहे हैं। अधिक मात्रा में ऊर्जा-घनित पोषण-रहित खाना खा रहे हैं। जिसकी वजह से आजकल बच्चों में मस्तिष्क वाहिकीय रोगों (स्ट्रोक्स) के अलावा कैंसर, टाइप-2 मधुमेह, आस्टियोआर्थराइटिस, हाइपरटेंशन और हाई कोलेस्ट्राल जैसी बीमारियाँ पाई जा रही हैं। भारतीय बच्चे अपने दैनिक भोजन में उचित मात्रा में फल या सब्जियाँ नहीं खाते हैं, जितनी उन्हें उनकी उम्र के अनुसार खानी चाहिए। ये सभी कारक उनके जीवन स्तर और भविष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
अग्रवाल परिवार ने डॉक्टर को दिखाने का निर्णय लिया क्योंकि आजकल उनका बेटा अनुज बहुत ही थका-थका और मानसिक रूप से अवसाद में दिख रहा था। उनके परिवार ने यह भी महसूस किया कि उसके अधिकांश दोस्त उसे उसकी उदास जीवनशैली की वजह से कॉमन पार्टियों में आमंत्रित नहीं करते हैं और उससे दूर ही रहते है। लेकिन उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था कि उनका 14 साल का बेटा टाइप-2 मधुमेह से ग्रसित है जिसके बारे में उन्हें डॉक्टर ने बताया। डॉक्टर ने बताया कि अनुज का वजन ज्यादा होना ही टाइप-2 मधुमेह का प्रमुख कारण है। अनुज के परिवार ने कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि उसका वजन पिछले केवल पाँच वर्षों मे ही 45 से बढ़कर अब 94 तक पहुँच चुका है। उसके वजन बढ्ने के संभावित कारण थे उसका पिज्जा, बर्गर, मसालेदार चिकन, तली हुई चीजें और वातित पेय के प्रति मोह। हालांकि डॉक्टर ने परिवार को बताया कि अतिरिक्त वजन को दूर करके खाने पीने की आदतों में सुधार करके और अकर्मण्य जीवनशैली को छोड़कर बच्चों में टाइप 2 मधुमेह को टाला जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता लगता है कि भारत में करीब 14. 4 मिलियन बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन अपेक्षा से अधिक (ओवरवेट) है। 2013 मे हुए एक अध्ययन “ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज” या “रोगों का वैश्विक बोझ” की रिपोर्ट के अनुसार यह कहा गया है कि 2025 तक भारत में करीब 17 मिलियन बच्चे मोटापे से ग्रस्त हो जाएंगे और भारत की स्थिति चीन के बाद 184 देशों में से दूसरे नंबर पर होगी। इस तरह के बच्चे हमेशा स्वास्थ्य के बुरे परिणामों की आशंका से घिरे रहते हैं जिसमंे शारिरिक एवं मानसिक दोनों ही तरह की परेशानियाँ शामिल हैं। यह पूरी तरह से स्थापित एवं प्रमाणित हो चुका है कि ज्यादा वजन और मोटापे से ग्रसित बच्चों में कई भयंकर बीमारिया जैसे टाइप-2 डायबिटीज मेलिटस, हाइपरटेंशन और मस्तिष्क वाहिकाओं से संबन्धित रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है। बॉडी मास इंडेक्स ( BMI) शरीर के फैट (वसा) का मापक होता है जो शारीरिक ऊंचाई के अनुपात में शारीरिक वजन पर आधारित होता है। यह एक प्राथमिक तरीका होता है जिससे पता लगता है कि व्यक्ति का वजन सामान्य से कम है, ज्यादा है या वह मोटा यानि ओबीस है। इसके अलावा यदि बीएमआई अधिक होता है तो इससे मृत्यु का खतरा भी अधिक हो जाता है। सामान्य रूप से स्वीकृत बीएमआई की सीमा हैः कम वजन
( 18.5 कि.ग्रा. /मी 2, सामान्य वजन: 18.5-25 किग्रा. अधिक; वजन (ओवर वेट): 25-30 कि. ग्रा. और
ओबीस 30 कि. ग्रा. से अधिक। ओबेसिटी यानि मोटापा तभी बढ़ता है जब ऊर्जा का शरीर में प्रवेश उसे खर्च करने से अधिक होता है। शारीरिक वजन का निर्धारण कई वंशानुगत और वायुमंडलीय कारकों के बीच पारस्परिक क्रिया द्वारा होता है। यह अनुमान लगाया गया है कि 40-70% तक बीएमआई में होने वाले उतार चढ़ाव आनुवांशिक होते हैं जबकि अन्य 30% का निर्धारण जीवनशैली के आधार पर होता है। चित्र-1 में यह भी दिखाया गया है कि केवल चीनी या वसा ही आजकल मोटापे के मामलों में हुई वृद्धि का कारण नहीं हैं बल्कि
जीन, वातावरण और भावनात्मक कारक, खाने की मात्रा और मानसिक स्तर को प्रभावित करते हैं; अक्सर देखा जाता है कि जब विपरीत भावनात्मक परिस्थितियाँ सामने आती हैं तब व्यक्ति स्वाद के लिए ज्यादा खाना खाता है। इस तरह बार-बार आराम से बैठकर कार्बोहाइड्रेट्स, वसा और शर्करायुक्त खाना खाते रहने से ही मोटापा बढ़ता है। मोटापा हमारे मूड को नियंत्रित करता है जिससे हमारे मस्तिष्क की गतिविधियां विचलित हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मूड, खाना और मोटापे के बीच एक द्वि-दिशीय चक्र स्थापित हो जाता है।
मोटापे से पोषक तत्वों का संबंध
शोधों से अभी तक ये पता नहीं लग पाया है
कि मोटापे के लिए वास्तव में कौन जिम्मेदार है।
आजकल पश्चिमी और विकासशील देशों दोनों तरफ
ही मुख्य भोजन के रूप में प्रसंसाधित (प्रोसेस्ड)
एवं अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों को शामिल किया
जा रहा है। विज्ञापनों में कम वसायुक्त खाद्य को
प्रचारित किया जाता है, फलतः कंपनियाँ अधिक
शर्करा युक्त खाद्य पदार्थों का प्रयोग करती हैं।
हाइपरटेंशन, मधुमेह और मोटापा (ओबेसिटी) के
मामले सबसे पहले (इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी) में पाये
गए वो स्थान है, जहां लोगों को सबसे पहले चीनी
या शर्करा खाने को मिली। इससे चीनी खाने और
मोटापे का आपसी संबंध स्थापित होता है। इसके
अलावा विकासशील देशों में चीनी की शुरुआत से
उन देशों में भी आगे चलकर मोटापे और हृदय रोग
के मामले देखे जाने लगे।
हाई फ्रूक्टोज कॉर्न सिरप (एचएफसीएस) एक
मीठा तरल पदार्थ है जो कॉर्न या मक्के के
स्टार्च से बनता है जिसकी रासायनिक बनावट
(ग्लूकोज और फ्रूक्टोज) सामान्य शर्करा या
चीनी की तरह ही होती है, जो कि सुक्रोज
(प्राकृतिक रूप से कई वनस्पतियों एवं इनके
अंशों में पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट)
कहलाता है। एचएफसीएस खाद्य पदार्थों से
जुड़े उद्योगों की प्रमुख पसंद है क्योंकि यह
अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता
है, अधिक स्वादिष्ट होता है तथा चीनी की
अपेक्षा इसका मूल्य काफी कम होता है।
चीनी या टेबल शुगर और एचएफसीएस
का संयोजन मिठास की खपत में अतिरिक्त
30ः की बढ़त करता है और यही मोटापा
या ओबेसिटी तथा कार्डियोवस्कूलर रोगों के
खतरे से जुड़े खतरनाक घटकों में से प्रमुख
है। ग्लूकोज की तुलना में फ्रूक्टोज की इंसुलिन और लेप्टिन हारमोन स्राव करने की क्षमता
काफी कम या न के बराबर होती है जिससे घ्रेलीन
का उत्पादन रुक जाता है। ये सभी कारक हमारे
मस्तिष्क के संतृप्ति केंद्र को प्रभावित करते हैं।
इंसुलिन हमारे शरीर में रक्त के ग्लूकोज स्तर को
नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है। लेप्टिन
फैट सैल्स से बना होता है जो भूख को कम करता
है और घ्रेलीन से हमारी भूख बढ़ती है जिससे हमारे
शरीर का वजन भी बढ़ता है।
फ्रूक्टोज की खपत से किडनी की कार्य क्षमता
भी प्रभावित होती है। फ्रूक्टोज एकमात्र ऐसी शर्करा
होती है जो यूरिक एसिड और घनत्व को बढ़ाती है,
यह गाउट के लिए संभावित खतरा माना जाता है
(गाउट एक ऐसा रोग है जो यूरिक अम्ल के दोषपूर्ण
उपापचय के कारण आर्थराइटिस या गठिया को
जन्म देता है)।
उच्च कार्बोहाइड्रेटयुक्त खाद्य भी ओबेसिटी के
कई कारणो में से एक हैं। कम कार्बोहाइड्रेटयुक्त
आहार लेने का एक सामान्य औचित्य यह है कि
मानव शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स को संचित करने की
क्षमता बहुत ही सीमित है और जो कार्बोहाइड्रेट्स
हमारे शरीर में संचित नहीं हो पाते, वे सीधे वसा
में बदल जाते हैं। स्रोतके आधार पर स्टार्च में
समान्यतः 20-25ः एमाइलोज और 75-80ः
एमायलोपेक्टिन होता है जो पाचन क्रिया के दौरान
एंजाइमों द्वारा मोनोसेक्राइड्स में टूट जाता है। यह
अस्थाई रूप से लीवर तथा कंकलीय मांसपेशियों
में ग्लाइकोजेन के रूप में संचित होता है और
धीमे-धीमे यह लिपिड में परिवर्तित होता है जो
अधिक मात्रा में लेने से एडिपोज ऊतक में जमा
हो जाता है।
ये लिपिड ऊर्जा संचय एवं जैवरासायनिक
प्रक्रियाओं के लिए अहम होते हैं और कोशिका
झिल्ली के संरचनात्मक घटकों का कार्य करते हैं।
ट्राइग्लिसराइड ऊर्जा संचय का प्रमुख रूप हैं जो
एडिपोज ऊतक (ढीले संयोजी ऊतक जो वसा के
रूप मे ऊर्जा संचय करते हैं) में स्थित
रहते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स की तुलना में वसा
दुगुनी कैलोरी प्रति ग्राम प्रदान करते हैं।
संतृप्त वसा एक प्रकार की वसा है जो
मूल रूप से हमारी धमनियों में रुकावट
लाने और कोलेस्ट्ररॉल के स्तर को बढ़ाने
के लिए जिम्मेदार होती है। आजकल
खाद्य उद्योग हाइड्रोजीनेटेड या ट्रांस फैट
का प्रयोग कर रहे हैं जो उनके खाद्य
प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) की जरूरतों को
पूरा करता है। ट्रांस फैट का प्रयोग बहुत
आसान है, उत्पादन सस्ता है और इसे कई
बार व्यावसायिक फ्राएर्स में (तलने के लिए)
इस्तेमाल किया जा सकता है।
ये खाने को एक वांछित स्वाद और
स्वरूप प्रदान करते हैं और इनका प्रयोग
अधिकांश फास्ट फूड और फ्राइड फूड जैसे फ्रेंच फ्राइज, डोनट्स, केक्स, पाई क्रस्ट्स,
बिस्किट, फ्रोजन पिज्जा, कुकीज, क्रैकर्स और
स्टिक मारग्रेन्स में होता है। नकली ट्रांस फैट (या
ट्रांस फैटी एसिड) एक औद्योगिक प्रक्रिया द्वारा
बनाए जाते हैं जिसमें लिक्विड वेजीटेबल ऑइल में
हाइड्रोजन मिलाया जाता है ताकि उन्हें अधिक ठोस
बनाया जा सके।ये ट्रांस फैट अधिक खतरनाक
होते हैं एवं हृदय को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। ये
खराब कोलेस्ट्ररॉल (एलडीएस) के स्तर को बढ़ाते
हैं और अच्छे कोलेस्ट्ररॉल (एचडीएल) के स्तर को
घटाते हैं। उच्च वसायुक्त खाद्य पदार्थ से एडीपोज
ऊतकों के जमा होने में बदलाव आता है और ये
ओबेसिटी या मोटापे के कारणों में एक महत्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं। व्यायाम और अधिक मात्रा में
संतृप्त वसायुक्त पदार्थों को लेना (जो अधिकतर
वनस्पति तेलों में पाई जाती है), मोटापे को घटाने
में या मोटापा प्रबंधन में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रोटीनों की आवश्यकता नई कोशिकाओं और
ऊतक निर्माण में होती है, जो एमिनो अम्ल में
टूट जाते हैं। प्रोटीन मांसपेशियों तथा अंग प्रत्यंगों
को ढांचा प्रदान करता है। प्रोटीन रोग प्रतिरोधी
कोशिकाओं, रक्त कोशिकाओं और हार्मोन्स के लिए
आधारभूत घटक होते हैं। खाद्य प्रोटीन की मात्रा
में वृद्धि होने से शरीर का वजन नियंत्रित होता है,
क्योंकि इसका सीधा असर संतृप्ति, शारीरिक ताप
को नियमित रखने और इंसुलिन के उत्पादन एवं
गतिविधि पर पड़ता है। जब कम वसायुक्त आहार
में प्रोटीन से कार्बोहाइड्रेट को प्रतिस्थापित कर दिया
जाता है तो यह ग्लूकोज की उपस्थिति को घटाने
और रक्त में इंसुलिन के अत्यंत उच्च घनत्व को
कम करने में मदद करता है। जबकि साथ-साथ
यह वसा आक्सीकरण को बढ़ाता है।
खाद्य मनोविज्ञानः खाद्य
पारितोषिक, आदतें और मोटापा
हमारे मनोभाव, भावनात्मक स्थिति और खाने
के स्वभाव बहुत जटिल होते हैं और ये माना
गया है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं
मनोदशा को खाने की पसंद और मात्रा के अनुसार
नियंत्रित करता है। कृतज्ञता या भावुकतावश अधिक
खाना खाने के कारण कुछ रसायन जिन्हे हार्मोन्स
कहा जाता है हमारे मस्तिष्क मे जाकर आनंद केंद्र
विकसित कर देते है जिससे इसी तरह का खाना
खाने की आदत या लत लग जाती हैं जिससे हमारा
वजन बढ़ता है और मोटापा भी।
खाने की प्रक्रिया में कई न्यूरो ट्रांसमीटर
प्रणालियां होती हैं, जैसे, सिरोटोनिन, डोपामाइन,
ओपिओड्स और गाम्मा एमिनोब्यूटरीक एसिड,
जिनमे से सिरोटोनिन और डोपामाइन बड़े नजदीक
से खाने के स्वभाव के साथ जुड़े होते है। इनमें
चाहत या चाहना या इच्छा करना और पसंद करना या खुश होकर या आनंद के साथ खाने के बीच
डोपामाइन मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।
जीवनशैली
बच्चे आजकल तेजी से शारीरिक रूप से निष्क्रिय
जीवन शैली अपना रहे है और वे अपनी आरामतलबी,
टेलीविजन, कंप्यूटर तथा मोबाइल फोनों पर बढ़ती
निर्भरता, फास्ट और प्रोसेस्ड फूड की उपलब्धता,
मशीनी जिंदगी, आधुनिकीकरण इत्यादि कारणों कि
वजह से अधिक ऊर्जा-घनत्व, कम पोषकतत्वों वाला
खाना खा रहे हैं। इन सबकी वजह से भारतीय बच्चों
मे जहां एक ओर मस्तिष्क वाहिकीयरोगों (स्ट्रोक्स)
का खतरा बढ़ा है वहीं कैंसर, टाइप-प्प् मधुमेह,
ओस्टियो- अर्थराइटिस, हाइपरटेंशन और उच्च
कोलेस्ट्रॉल के मामले काफी बढ़े हैं जिनका मूल
कारण है अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उचित मात्रा
में फलों और सब्जियों का सेवन ना करना। इन सभी
कारकों का उनके जीवन स्तर एवं भविष्य के स्वास्थ्य
पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सारांश
वर्तमान आलेख यह इशारा करता है कि भारतीय
बच्चों और किशोरों मे सामान्य मोटापा या ओबेसिटी
का बोझ कुछ ज्यादा ही है जिसमें सामाजिक-आर्थिक
अंतर भी निश्चित रूप से परिलक्षित होता है। विश्व
स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एशिया की जनसंख्या
के लोगों में मोटापे का स्तर और मोटापे का वितरण
कौकासियन जनसंख्या की अपेक्षा बहुत अलग पाया
गया है। एशियाई-भारतीय बच्चे प्रतिकूल शारीरिक
संरचना तथा क्षेत्रीय विविधता से अधिक प्रभावित होते हैं। मोटापा ग्रस्त भारतीय बच्चे युवा आयु में ही
सामान्य बच्चों की तुलना में कई भयंकर बीमारियों
का बोझ झेल रहे हैं। अभी तक हुए अनुसंधानों
से पता लगता है कि भारत में कम उम्र में ही
लाखों लोग टाइप-2 मधुमेह के शिकार होते जा रहे
हैं। ये कारक भारत में मधुमेह जैसी महामारी और
बच्चों मे होने वाला मोटापे के बीच एक सीधा संपर्क
दर्शाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एशिया
महाद्वीप के वे लोग जिन्हें टाइप-2 मधुमेह और हृदय
सबंधित रोगों का खतरा अधिक होता है, का अनुपात
ॅभ्व् के अतिभार (ओवर वेट) वर्तमान कटऑफ
पॉइंट (बीएमआई 25 से ज्यादा) से नीचे क स्तर पर
भी बहुत अधिक है।
आधुनिक चिकित्सा के जनक हिप्पोक्रेटिस के
अनुसार “आपका भोजन ही आपकी दवा ही और
आपकी दवा आपका भोजन है। ‘‘आधुनिक समाज में
आनुवांशिक और जनसांख्यिकीय कारकों के अलावा
मोटापे का प्रमुख कारण है अक्रिय जीवनशैली जिसमें
शारीरिक गतिविधियों की कमी और खाने की प्रचुरता
है जिससे डोपामाइन आकर्षी केंद्र अधिक सक्रिय
हो जाते हैं। मूड परिवर्तन के अलावा, उच्च वसा
भोजन से भार में वृद्धि, कमर का घेरा बढ़ना, और
हृदय रोगों से मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है। इन
परिवर्तनों से हुई न्यूरो-बायोलोजिकल गड़बड़ी के
कारण मूड में बिगाड़ आ जाता है जैसे अवसाद या
चिंता या तनाव का बढ़ना, जिसे फल स्वरुप फिर से
ज्यादा भोजन करने और मोटापे की वृत्ति बढ़ती है।
परिष्कृत या रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स और शर्करा की
मात्रा की अधिकता वाला भोजन उच्चवसायुक्त आहार
की तरह ही अस्वास्थ्यकारी हो सकता है, क्योंकि
यह भी मधुमेह और हृदय संबन्धित रोगों के खतरे
को बढ़ाता है।
जीवन शैली में किए जाने जाले समग्र प्रयासों
में शामिल हैं- शारीरिक गतिविधि, उचित भोजन
मानसिक और मनोवैज्ञानिक युक्तियां इच्छा शक्ति,
प्रेरणात्मक बातचीत और संग्यानात्मक व्यवहारपरक
चिकित्सा। खाने की पसंद को प्रभावित करने वाले
कारकों में शामिल है, भूख, खाने की इच्छा, स्वाद,
लागत, आय और भोजन की उपलब्धता। स्वस्थ्य
जीवन के लिए आवश्यक है एक संतुलित आहार,
नियमित व्यायाम और तनाव प्रबंधन।
मोटापे के प्रबंधन के लिए नीतियाँ भी बराबर
महत्वपूर्ण हैं। कुपोषण के अलावा सरकार को
ओबेसिटी पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए। इससे
भविष्य की पीढ़ियों को अपने भविष्य में आने वाले
रोगों से बचाव में मदद मिलेगी। स्कूल भी मोटापे
जैसी महामारी की रोकथाम में अहम भूमिका निभा
सकते हैं जिसमें स्कूल की कैन्टीन मे प्रोसेस्ड फूड
की बिक्री को बंद करना, गैस युक्त पेय पदार्थों
की बिक्री पर रोक लगाना और नियमित रूप से
बच्चों के साथ बातचीत करना शामिल होने चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘‘असंक्रामक रोगों की
रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए वैश्विक क्रिया योजना
2013-2020‘‘ तैयार की है जिसमें शामिल है 2010
की दरों को लक्ष्य करके वैश्विक मोटापे में हो रही
वृद्धि को रोकना।
(अनुवादः संगीता चतुर्वेदी)