Friday, 30 March 2018

JSA

सार्वजनिक स्वास्थ्य ..व्यक्तिगत स्वास्थ्य का आधार

     जब भी समाज में स्वास्थ्य की बात होती है तो इसको थ्री डी के दायरे में रख कर देखा जाता है। मतलब डिजीज, डाक्टर और ड्रग्ज। मगर इस प्रकार स्वास्थ्य के मसले को देखना कतई भी सही नहीं है। असल में देखें तो कोई भी प्राणी अपनी जिन्दगी की षुरुआत का आधा वक्त ‘दौलत’ कमाने के लिए अपना ‘स्वास्थ्य’ खर्च करता है और बाकी आधी जिन्दगी में अपना स्वास्थ्य दोबारा हासिल करने हेतु अपनी काफी सारी दौलत खर्च कर देता है। मनुश्य प्राणी का यह तात्विक विचार इस बात पर जोर देता है कि स्वास्थ्य अर्थपूर्ण जीवन बसर करने का एक महत्वपूर्ण घटक है । यह भी एक सामान्य अनुभव है कि जब भी हमारा स्वास्थ्य खराब होता है तब व्यक्ति गत स्तर पर हमारा दैनंदिन कार्य और जीवन स्तर प्रभावित होता है तथा समाज के विकास पर भी इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष असर पड़ता है।

      महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ सकते हैं, अतः पूरे जन समूह का या समुदाय का जीवन स्तर बड़े पैमाने पर घट सकता है और समाज के आर्थिक विकास में भी बाधक का काम करता है। इसी प्रकार अस्वास्थ्य या बीमारी का बारबार सामना करने से भी समुदाय या समूह का जीवन स्तर बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। गरीबी, भीड़, स्वच्छ पेयजल की कमी, उचित स्वच्छता का अभाव, निजी स्वच्छता के प्रति लापरवाही, पौश्टिक भोजन का अभाव, प्रदूशित-वातावरण का खाद्य पदार्थों आदि का भी हमारे स्वास्थ्य को खराब करने में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। पर्यावरण का प्रदूशण और ‘क्लाइमेट चेंज’ भी महत्वपूर्ण कारक के रूप में  उभर कर सामने आये हैं। इनमें से कई बातें व्यक्ति के नियन्त्रण से परे की बातें हैं जिनको सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक स्तर पर ही सम्बोधित किया जा सकता है। संगठित प्रयास और वैज्ञानिक तकनीक के जनपक्षीय इस्तेमाल के जरिए हम इन कारकों को बड़े पैमाने पर कम कर सकते हैं। इसके साथ ही लिंग समानता, सभी के लिए स्तरीय गुणवता पूर्ण षिक्षा, सामाजिक न्याय तथा वर्तमान बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की सभी के लिए उपलब्धता आदि की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। एक विषेश पहलू और है कि स्वास्थ्य के मुद्दे को बाजार व्यवस्था में मुनाफा कमाने के क्षेत्र के रुप में देखा जाता है।

हमें यह समझना बहुत आवष्यक है कि स्वास्थ्य का मामला केवल बीमारी का न होना ही नहीं है। स्वास्थ्य की परिभाशा ‘ बीमारी का इलाज करके या करवाके बीमारी मुक्त होना ही स्वस्थ होना है’ इस संकुचित विचार से परे है। दूसरे ढंग से कहा जाए तो केवल डाक्टरों द्वारा दी गई दवाईयां लेकर ही हम स्वस्थ नहीं हो सकते। 1836 के दौर में ब्रिटेन में टी बी की बीमारी बहुत कम हो गई थी। तब तक टी बी की दवाईयां  बाजार में नहीं आई थी। कारण साफ था कि इस दौर में ब्रिटेन ने विकास के नये आयाम हासिल किए थे। जिसके चलते श्ैवबपंस क्मजमतउपदंदजे व िीमंसजीश् के स्तर पर काफी सुधार हुआ और टी बी की बीमारी के जीवाणुओं के जिन्दा रहने के स्थल नहीं बचे तथा षारीरिक स्तर अच्छी खुराक के चलते  बीमारी से लड़ने की क्षमता भी बढ़ी। इसलिए व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्वास्थ्य को ‘ केवल बीमारी का न होना ही नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण षारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तंदरुस्ती ’ के रुप में ही परिभाशित किया जाता है। सही मायने में ‘स्वास्थ्य’ पाना है तो स्वास्थ्य के सामाजिक घटकों का पूर्ण विकास करना और उनका संतुलन बनाए रखना बहुत जरुरी है क्योंकि इन घटकों का विकास किए बिना स्वस्थ समाज का सपना हासिल नहीं किया जा सकता। और यह सभी अलग-अलग समय पर अनेक कारणों से प्रभावित रहते हैं।

स्वास्थ्य को जैसे पहले कहा जा चुका है- षिक्षा, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण, कृशि, परिवहन, ग्रामीण और षहरी विकास- सम्बन्धित जैसे अनेक घटकों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिये। असल में देखा जाए तो सभी क्षेत्र स्वास्थ्य विकास से जुड़े हुए हैं। ऐसा कोई भी विकासात्मक घटक नहीं है जो स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ न हो। इस संदर्भ में , स्वास्थ्य को सामाजिक आर्थिक विकास के उद्येष्य के रुप में ही नहीं बल्कि माध्यम के रुप में भी देखा जाना बहुत जरुरी है। इसलिए व्यक्तिगत और समुदाय के स्तर पर स्वास्थ्य के प्रति सजगता के साथ जागरुक रहने से तथा जीवन षैली में वैज्ञानिक दृश्टिकोण का समावेष करने से समुदाय के जीवन स्तर में अप्रत्यक्ष वृद्धि होती है। बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से सम्बन्धित विज्ञान के सिद्धान्त और कार्यान्वयन को हम स्वास्थ्य की विचार की गई मूल संकल्पना के कारण अच्छी तरह समझ सकते हें। यह विज्ञान आज रोकथाम और सामाजिक स्वास्थ्य , समुदाय का स्वास्थ्य या सार्वजनिक स्वास्थ्य के रुप में अभिव्यक्त किया जा सकता है।

स्वास्थ्य सभी नागरिकों के लिए एक मौलिक एवं सार्वभौमिक अधिकार है। इस अधिकार के साथ-साथ स्वास्थ्य के सभी निर्णायक घटकों व अन्य कारकों जैसे - अच्छा भोजन, सुरक्षित व साफ पीने का पानी, बेहतर साफ-सफाई, षिक्षा, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, लिंग व वर्ग आधारित असमानता का निवारण, स्वच्छ पर्यावरण एवं परिवहन व्यवस्था आदि की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। समेकित स्वास्थ्य सेवाएं भी स्वास्थ्य के अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसकी पूर्ति हेतु सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर संसाधन-युक्त बनाने, उसे विस्तारित करने तथा जवाबदेह बनाने की घोर आवष्यकता है जिससे कि लोगों को उच्च गुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त प्रदान की जा सकें।  

प्रदेश के जिलों गुड़गांव, रोहतक, हिसार, भिवानी, फरीदाबाद और सोनीपत में विषेश आर्थिक पैकेज के तहत 1500 करोड़ रुपये की परियोजनांए षुरु की गई हैं जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए इन जिलों के अस्पतालों को अपग्रेड करके सुपर स्पैषिलिटी अस्पताल बनाये जा रहे हैं। बहुत ही हाईटेक उपकरण पिछले सालों में खरीदे गए जो बहुत कम जगह और कमतर स्तर पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं। यहां पर उपयुक्त स्टाफ की कमी को पूरा करते हुए इसके लिए सम्बंधित विशेषज्ञों, डॉक्टरों, नर्सों व पैरामैडिकल स्टाफ को उपयुक्त ट्रेनिंग देने की भी आवश्यकता है। निषुल्क सर्जीकल पैकेज योजना के तहत 2009 से बी. पी. एल परिवारों एवं गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले व अधिसूचित झोंपड़ पट्टियों एवं बस्तियों के निवासियों के सभी आपरेषन मुफत करने की निषुल्क सर्जरी की सेवा ढ़ंग से लागू नहीं की जा रही। इंदिरा बाल स्वास्थ्य योजना 26 जनवरी 2010 से लागू की गई। जिसके तहत अठारह वर्श तक की आयु के बच्चों के स्वास्थ्य कार्ड बना कर सरकारी अस्पतालों में उनके स्वास्थ्य की निषुल्क जांच व ईलाज किया जाता है। बहुत से लोगों को इन सब योजनाओं से वाकिफ ही नहीं करवाया गया। प्रदेष में 2005 तक एम. बी.बी.एस.की कुल सीटें 350 थी जो वर्श 2013 में 850 हो गई। मगर इन विद्यार्थियों की गुणवता पूर्ण मैडीकल षिक्षा के लिए जरुरी फैकल्टी के साथ-साथ की इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी भारी कमी है जिसे पूरा करना बड़ी चुनौती है। इस समय सरकारी ढांचे में स्वास्थ्य सेवाओं में जरूरत के हिसाब से करीब 40 प्रतिषत  सब सेंटर, पीएचसी एवं सीएचसी की कमी, 40 प्रतिषत  हेल्थ वर्कर व असिसटेंट की कमी एवं करीब 95 प्रतिषत विषेशज्ञ चिकित्सकों की कमी है। सब-सेंटर व पीएचसी लेवल पर भी करीब 40 प्रतिषत स्टाफ की कमी है। स्वास्थ्य सुविधाएं मध्यम दर्जे के कार्यकर्ताओं (नर्स, ए. एन. एम., और पैरा मैडिकल कर्मी) ये कार्यकर्ता ही लोगों की समस्याओं के सम्पर्क में आते हैं। परन्तु खुद के स्वास्थ्य के क्षेत्र के काम के विष्लेशण में इनकी भागीदारी न के बराबर है। पहली बात तो यह कि निचले दर्जे मंे होने के कारण इनसे सिर्फ आदेषों के पालन की अपेक्षा की जाती है, निर्णयों में इनकी कोई भागीदारी नहीं होती। दूसरी बात यह है कि इनकी ट्रेनिंग भी इस तरह की नहीं होती कि ये अपने व्यवहारिक अनुभवों से अवधारणा या विचार विकसित कर सकें या उन्हें व्यवहार में बदल सकें।

जानकारी अपने आप बदलाव नहीं लाती परन्तु वह बदलाव की एक पूर्व षर्त जरूर है। जन स्वास्थ्य अभियान की यह कोषिष है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रहे बदलाव व विकास के ताजा घटनाक्रम को लेकर लोगों तक पहुंचा जाए ताकि स्वास्थ्य सेवाओं तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में जनपक्षीय आधार को मजबूत किया जा सके।

मौजूदा स्वास्थ्य परिस्थिति को पलटने तथा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां एवं स्वास्थ्य सेवाएं लागू करते हुए सबके लिए स्वास्थ्य के लिए निम्नवत प्रस्ताव रखे जाते हैंः-

1.     लोक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाना जिसके तहत स्थानीय खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जाए।

2.     राश्ट्रीय षिषु स्वास्थ्य एवं पोशण नीति बनाई जाए जिसके अर्न्तगत आई.सी.डी.एस. का सार्वभौमिकीकरण हो व तीन साल तक के बच्चों को पूर्ण रुप से षामिल करने हेतु सेवाओं तथा कार्यदल में विस्तार हो।

3.     समस्त गावों व मोहल्लों में षुद्ध एवं सुरक्षित पेयजल की सार्वभौमिक उपलब्धता हो तथा हर गांव व मोहल्ले में स्वच्छ षौचालयों तक सार्वभौमिक पहुंच हो।

4.     स्वास्थ्य से सम्बन्धित लैंगिक पहलूओं को सम्बोधित किया जाना आवष्यक है -इसके अंर्तगत समस्त महिलाओं तथा समलैंगिक नागरिकों को समेकित , आसानी से उपलब्ध उच्चगुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच व इसकी उपलब्धता की गारण्टी दी जाए जो कि केवल मातृत्व सवास्थ्य सेवाओं तक ही सीमित न हो।

5.     उन समस्त कानून ,नीतियों तथा आचरणों को समाप्त किया जाए जो कि महिलाओं के प्रजनन, यौनिक तथा जनतांन्त्रिक अधिकारों का हनन करता है। उन विभिन्न प्रजनन प्रोद्योगिकियांे को जो कि महिलाओं के लिए हानिकारक हो सकती हैं , नियंत्रित किया जाए।

6.     लिंग आधारित उत्पीड़न को एक लोक स्वास्थ्य समस्या माना जाए तथा इसके तहत षारीरिक एवम मानसिक रुप से पीड़ितों को तमाम आवष्यक स्वास्थ्य जांच, दस्तावेजिकरण, रेफरल का अधिकार दिया जाए तथा समन्वित नैतिक चिकित्सीय कानूनी प्रक्रियाओं के लिए भी उन्हें अधिकृत बनाया जाए।

7.     स्वास्थ्य सेवाओं को किषोर किषोरियों के लिए मित्ऱतापूर्ण बनाया जाए तथा इस तबके को भी समेकित, उच्चगुणवता पूर्ण , आासनी से पहुंचने लायक स्वास्थ्य सेवाएं सुनिष्चित हो जो कि उनके विषेश प्रजनन तथा यौनिक स्वास्थ्य आवष्यकताओं को पूरा करती हों।

8.     समस्त जाति आधारित भेदभाव तुरंत समाप्त किया जाए- जाति आधारित भेदभावों को, जो कि बुरे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है , पूर्णरुप से समाप्त करने हेतू त्वरित एवं प्रभावी कदम उठाये जाएं। मानव द्वारा मैला ढोने वाले समस्त मैनुअल कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबन्धित हों। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इस भेदभाव से पीड़ित तबकों को प्राथमिकता दी जाए । इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं का पुर्नगठन किया जाए।

9.     स्वास्थ्य सेवाओं के अधिकार को संवैधानिक बनाया जाए- देष में और प्रदेष में स्वास्थ्य के अधिकार का कानून लागू किया जाए जो कि समेकित, उच्चगुणवतापूर्ण, आसानी से उपलब्ध सेवाओं को सुनिष्चित करता हो तथा प्राथमिक, द्वितीय एवं तृतीय स्तरीय सेवायें आवष्यकतानुसार सबको उपलब्ध करता हो। सेवा प्रदाता को सेवाओं को उपलब्ध नहीं कराने या मना करने पर ;चाहे गुणवता,पहुंच या खर्च से जुड़े हुए कारणों से भी हो उसे कानूनी अपराध घोशित किया जाए।

10.   स्वास्थ्य के उपर सार्वजनिक व्यय को बढ़ाया जाए-सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 3.6 प्रतिषत को स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित किया जाए जो कि 2014 की स्थिति में प्रति व्यक्ति 3000 रुपये बनता है।

11.   इस व्यय में कम से कम एक तिहाई केन्द्रिय सरकार से राज्यों को उपलब्ध हो। हरियाणा सरकार का प्रति व्यक्ति खर्च 1786 के लगभग है। एक मध्य सीमा के तहत स्वास्थ्य के उपर किये जाने वाले समस्त सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 5 प्रतिषत तक बढ़ाया जाए।

12.   प्रत्येक जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता एवं गुणवता सुनिष्चित की जाए-समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में सेवाओं की गुणवता सुनिष्चित की जाए जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावी , सुरक्षित , गैर षोशणीय बनायें तथा लोगों को सम्मानपूर्वक सेवायें उपलब्ध हों। मरीजों के अधिकारों का आदर हो एवं मरीजों की आराम तथा संतुश्टि पर ध्यान दिया जाता हो। गुणवता का मानक केवल भौतिक या चिकित्सकीय संरचना पर आधारित न हो जो कि प्रायः बड़े कार्पोरेट अस्पतालों या मैडीकल टूरिज्म के लोग को बढ़ावा देते हैं तथा यह कम खर्च में सही एवं प्रभावी सेवाओं के प्रदाय को बढ़ावा नहीं देता है। समस्त सरकारी स्वास्थ्य संस्थान अपने स्तर पर गारन्टी की गई सभी स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान करने हेतू बाध्य हों।

13.   समस्त लोक स्वास्थ्य सुविधाओं को किसी भी प्रकार के उपभोग्ता षुल्क से मुक्त किया जाए तथा सेवाएं षासन द्वारा संचालित सुविधाओं के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएं न कि निजी सार्वजनिक सहयोग (पीपीपी)व्यवस्था से।

14.   स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण बंद हो- सक्रीय निजीकरण के तरीके ; जैसे सार्वजनिक संसाधन या पूंजी को निजी संस्थानों को वाणिज्यिक तौर पर हस्तान्तरण करना ,पूर्ण रुप से बंद करने हेतु आवष्यक कदम उठाये जाएं। निश्क्रिय रुप से हो रहे निजीकरण को रोकने के लिए लोक सुविधाओं में निवेष बढ़ाया जाए।

15.   सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों से प्रदत सेवाएं केवल प्रजनन स्वास्थ्य, टीकाकरण एवं अन्य चुनिन्दा बीमारियों के नियन्त्रण पर सीमित न होकर समेकित स्वास्थ्य सेवाओं पर आधारित हों।

16.   स्वास्थ्य कार्यदल का बेहतर प्रषिक्षण होः स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत सभी कर्मचारियों की बेहतरीन षिक्षा एवं प्रषिक्षण के लिए सार्वजनिक निवेष को बढ़ाया जाए।

17.   सरकार द्वारा चलाई जा रही सभी षिक्षण संस्थानों द्वारा उन जरुरत मंद इलाकों से चिकित्सकों, नर्सों तथा स्वास्थ्य कर्मचारियों को आवष्यक संख्या में चयनित कर षिक्षा/प्रषिक्षण दिया जा रहा है यह सुनिष्चित किया जाए।

18.   प्रषिक्षण नीति में बदलाव लाया जाए जिससे कि स्वास्थ्य कार्यदल द्वारा स्थानीय आवष्यकताओं को पूरा करने हेतू समस्त जरुरी दक्षताएं दी जा सकें।

19.   चिकित्सा तथा संबन्धित क्षेत्र के उच्च षिक्षा व्यवस्था के वाणिज्यिकरण बंद हों तथा निजी षिक्षण संस्थाओं के व्यवस्थित नियन्त्रण हेतू प्रभावी एवं पारदर्षी तन्त्र लागू किया जाए।

20.   स्वास्थ्य प्रणाली में समस्त सेवाओं के लिए आवष्यक सभी पद एवं स्थान प्रर्याप्त रुप से सृजित किये जाएं एवं इन पदों को समय समय पर भरा जाये। ठेके पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमित किया जाए तथा आषाओं , बहुउद्येषीय कार्यकर्ताओं तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों का प्रयाप्त रुप से क्षमता निर्माण किया जाए एवं उन्हें अपने कार्य के लिए सही मानदेय दिया जाए व उपयुक्त कार्य करने का माहौल प्रदान किया जाए।

21.   कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए तथा महिला कर्मचारियों के लिए विषेश व्यवस्था बनाई जाए।

22.   हर स्तर के लिए ऐसे स्वास्थ्य कैडर का गठन हो जिसमें प्रयाप्त संख्या में चिकित्सक, नर्सें तथा स्वास्थ्यर्किर्मयों का दल सम्मिलित हो जिसको प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में, लोक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में एवं एक दल के रुप में बेहतर कार्य करने में प्रषिक्षण प्राप्त हो।

23.   सभी आवष्यक दवाओं का एवं जांच सुविधाओं की मुफ्त एवं गुणवतापूर्ण उपलब्धता तामिलनाडु, केरल एवं राजस्थान राज्य के मॉडल अनुसार सुनिष्चित हो।

24.   स्वायत, पारदर्षी एवं आवष्यकता आधारित दवा एवं अन्य सामग्रियों के लिए खरीद एवं वितरण प्रणाली गठित एवं लागू हो।

25.   समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में जेनेरिक दवाओं के प्रिस्क्रिप्षन एवं उपयोग को अनिवार्य करार दिया जाये।

26.   प्रत्येक स्तर पर सामुदायिक सहभागिता, सहभागी योजना निर्माण एवं समुदाय आधारित निगरानी को बढ़ावा दिया जाये। स्वास्थ्य सेवायें जनता के प्रति जवाबदेह हों। इसके लिए समुदाय आधारित निगरानी एवं योजना निर्माण प्रक्रिया को समस्त लोक स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं सेवाओं का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाये जिससे कि सेवा प्रदान में उतरदायित्व एवं पारदर्षिता बढे।

27.   षिकायत निवारण की प्रक्रियाओं को सुचारु रुप से चलाने के लिए संस्थागत व्यवस्थायें बनाई जायें जिसके लिए प्रयाप्त धन राषि के साथ साथ आवष्यक प्रबंधन स्वायतता भी प्राप्त हो।

28.   निजी अस्पतालों द्वारा किये जाने वाले षोशण को समाप्त किया जाये।

29.   राश्ट्रीय क्लिनिकल एस्टेब्लिष्मैंट एक्ट के अंर्तगत मरीजों के अधिकार हर संस्थाओं में सुरक्षित हों । विभिन्न सेवाओं के दाम नियंत्रित हों। प्रिस्क्रिप्षन, जांच तथा रेफरल के पीछे चलने वाली घूसखोरी को बंद किया जाए, एवं इसके लिए षासन द्वारा पर्यवेक्षित लेकिन स्वतंत्र षिकायत निवारण व्यवस्था लागू की जाये। मानक निर्माण का प्रकार ऐसा हो जिसमें कारपोरेट हित का बढ़ावा न हो सके। इन तमाम व्यवस्थाओं पर यह भी विषेश ध्यान हो कि नैतिक एवं गैर वाणिज्यिक सेवा प्रदान करने वाले निजी प्रदाताओं को संपमूर्ण परिरक्षा मिल रहा है।

30.   समस्त सार्वजनिक बीमा योजनाओं को समय सीमा के अर्न्तगत लोक सेवा व्यवस्था में विलीन किया जायेः आर एस बी वाई जैसे तथा अन्य राज्य संचालित बीमाएं कर-आधारित सार्वजनिक वितीय व्यव्स्था से पोशित लोक स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में समय सीमा के अंर्तगत विलीन हो । इन बीमा योजनाओं के अंर्तगत प्राप्त सभी सेवायें लोक स्वास्थ्य प्रणाली में भी सम्मिलित हों एवं इसके लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को लोक स्वास्थ्य प्रणाली में पूर्ण रुप से षामिल किया जाये जिससे कि उनके लिए समेकित स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो।

31.   मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज ‘योजना’, जननी सुरक्षा योजना आदि सभी स्वास्थ्य योजनाओं को ठीक प्रकार से लागू किया जाए। इसके लिए जिला स्तर पर सामाजिक संस्थाओं व जन संगठनों के कार्यकर्ताओं की एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाई जाए जिसकी सिफारिशों पर सम्बंधित विभाग उचित कार्यवाही तुरन्त करे।

32.   इंडियन पेटैंट एक्ट के अंर्तगत लोक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए की गई व्यवस्थाओं का दवाईयों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए उपयोग हो तथा ज्यादातर दवाईयों एवं उपकरणों के देषी निर्माण को बढावा मिले।

33.   जैव चिकिस्तकीय षोध तथा क्लिनिकल ट्रायलों की सषक्त विनियामक व्यवस्था होः क्लिनिकल ट्रायलों के नैतिक संचालन हेतु स्पश्ट रुपरेखा तैयार एवं लागू हो जिससे समस्त हितग्राहियों के सषक्त विनियम के लिए व्यवस्थायें बंधित हों चाहे वे वितीय प्रदाता हंो , षोध संस्थाएं हों या नैतिक समितियां हों। सी.डी.एस.सी.ओ. तथा आई.सी. एम. आर. द्वारा समस्त क्लिनिकल ट्रायलों की तथा ट्रायल स्थानों की सषक्त निगरानी की जाये तथा ट्रायल संस्थानों के आंवटन के दौरान वहां पर आवष्यक सभी आपातकालीन स्थिति के निपटारे हेतु व्यवस्थायें सुनिष्चित हों । क्लिनिकल ट्रायलों में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को प्रयाप्त क्षतिपूर्ण राषि उपलब्ध कराने हेतू एवं उनको हो सकने वाले समस्त बुरे प्रभाव निपटारे के लिए प्रयाप्त व्यवस्था के साथ निर्देष विकसित और लागू हों। क्लिनिकल ट्रायल प्रतिभागियों के लिए उनके अधिकार पत्र विकसित किये जायें जिसकी कानूनी रुप में भी वैधता हो।

34.   सभी मानसिक रुप से पीड़ित मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं एवं रक्षा सुनिष्चित की जायेंः जिला स्तरीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को राश्ट्रीय स्वास्थ्य मिषन के अंर्तगत षामिल किया जाये। राश्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति पर अमल हो तथा मानसिक स्वास्थ्य कानून पास किया जाये।

35.   कीटनाशक दवाओं के अन्धाधुन्ध इस्तेमाल के चलते हर क्षेत्र, मानवीय, पशु व खेती में इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मानवीय स्तर पर इन कीटनाशकों की मात्रा पता लगाने के टैस्टों की सुविधा इस प्रदेश के इकलौते पीजीआईएमएस में भी नहीं है। कई तरह की बीमारियां इसके चलते बढ़ रही हैं या पैदा हो रही हैं। यह सुविधा तत्काल मुहैया करवाई जाए।

36.   सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर - एक सर्जन, एक फिजिसियन, एक शिशु रोग विशेषज्ञ व एक महिला रोग विशेषज्ञ के प्रावधान के मानक केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा तय किये गए हैं। इसके साथ यदि मरीज बेहोशी का विशेषज्ञ नहीं है तो सर्जन और गायनकॉलोजिस्ट तो अपंग हो जाते हैं। इसलिए इन पांचों विशेषज्ञों की नियुक्तियां प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों मंे की जाए।

37.   राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत ’दाल रोटी योजना‘ को सही ढं़ग से सबके लिए लागू किया जाए।

38.   कुपोषण नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे तीन के अनुसार हरियाणा में बढ़ा है। इसके लिए कारगर कदम उठाये जायें। इसी प्रकार गर्भवती महिलाओं में नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे तीन के अनुसार नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे दो के मुकाबले 10 प्रतिशत खून की कमी बढ़ी है। इसके साथ-साथ लड़कियों में किये गये सरकारी सर्वे में भी खून की कमी का प्रतिशत काफी पाया गया है। उचित कदम उठाये जाने की जरूरत है।

39.   पी एन डी टी एक्ट के तहत उचित कार्यवाही की जाएं।

Indian Healthcare

The Drama and The Tragedy of  Indian Healthcare
DrSachin Landage , Anaesthesiologist ,Ahmednagar
Translation : Dr Rajas Despande 
Courtesy Dr Anant K Singh 

“One doesn’t need to be a doctor to start a hospital, just as one can start a hotel without knowing how to cook”.
Big businessmen and corporates who must invest their money in profitable ventures knew this very well. Up came gigantic buildings under the title ‘advanced / world class healthcare’, where much was invested in the infrastructure and technology, but the quality of doctors was kept to bare minimum necessary: junior most who are willing to accept the atrocious sharing conditions. These new ‘Money Making Machines’ picked up very well, because they gave the rich class an illusion that they can buy health with money, but also attracted the middle and lower classes under the ever-coveted term ‘cashless’. The fear of illness and death was exploited with aggressive marketing. Many things started to change after 1992.
When one invests in many hundred crores, the profits must match. To maintain, there must be continuous patient flow, admissions, tests, procedures and surgeries. Indian society is quite vulnerable to advertising as well as corruption. All the marketing strategies and skills were aggressively employed in that direction. To catch patients for paying procedures and surgeries, to develop a patient base, free camps were arranged in the interiors. 'Free' is a universally loved term, most people blindly fall for it.
The idiotic term ‘whole body check up’ was invented to attract the illiterate, ignorant and hyperanxious crowds. Unnecessary tests were suggested and done happily under the false sense of health security. PROs and marketing teams of various hospitals started visiting private doctors for the obvious: commissions on admission / tests / surgery.
Patients with even simple illnesses that can be treated at primary healthcare center were taken to bigger cities now, and they proudly boasted how much land they sold to get the right treatment.
The perpetual inadequacy or absence of federal / state healthcare infrastructure was never questioned.
Those who had insurance cover started thinking that they now own all the hospitals and doctors. They started behaving as if they are obliging the doctor / hospital by choosing them. ‘Only a good outcome is must because I am paying money’ became a universal expectation, and thanklessness, threats and vandalism started with almost every bad outcome.
Applying the consumer protection act in India, with high illiteracy, poverty and political interference was the final straw. Doctors now could not treat patients based upon only clinical judgement, because the patient and the courts would demand proofs. So tests became necessary, to the point of finding a proof. Evidence based medicine defeated the need for clinical judgement to treat simple conditions without having to do the tests. Doctors and patients both started to suspect each other, and grew apart.
Still some really patriotic doctors, clinics, smaller nursing homes and hospitals continued what was essential for the society, giving excellent healthcare at the lowest cost, based upon their patient base generated over decades of faith and trust. The ‘Clinical Establishment Act” broke the very spine of such hospitals, because it made western standards blindly mandatory for Indian hospitals. More licensing, over 30 permissions (bribes everywhere), and so much paperwork and infrastructure investment, that it was now impossible to keep healthcare low cost. The only thing that was excluded from such westernization was costing. As the doctor is the only face of healthcare for the patient, the ultimate blame for higher costs was conveniently placed upon his/ her shoulder. All doctors turned villains now.
The hidden plans to eradicate small hospitals and private practitioners are being successful now, given the hardships involved in running one’s own hospital. Thousands of small hospitals / clinics have closed down. Doctors now must join corporate hospitals if they want to continue as specialists. They have no control over billing and hospital policies, and are thrown out if they question anything. Most people do not know that a doctor’s payment is less than 10 percent of most hospital bills, a standard corporate protocol all over India, and if the doctor wants to help the patient, it is his own bill that he/ she will have to sacrifice.
Mediclaim (Medical Insurance) is still at a fraudulent stage in India, with many deserving patients being denied insurance, while many patients being allowed to misuse it. Mediclaim companies now have two fatal policies; to encourage the accreditation business, thereby making it difficult for smaller hospitals to survive, and to dictate lowest healthcare costs for hospitals and doctor’s fees, whereby their own profit margin stays high. In such a scenario, the corporates either must inflate the bills or cut down on the quality of healthcare provided.
The big corporates required specialists who worked at the lowest salaries and accepted all their conditions. Those who had passed out without much merits from less academic medical colleges, those who had lower confidence and / or experience became easily available. Instead of increasing govt medical colleges and seats, private medical education was encouraged, because the highest in the land prifited from that policy. The society never objected, because the dream of ‘buying a medical seat and ability of becoming a doctor even without merit’ had become a reality. Only a few exceptional students benefit from private medical education.
To pay for electricity and water and land and building with commercial rates, to get no subsidies, to pay full taxes, and then to be told to “subsidise” patient bills for charity (whereas the govt hospitals keep on increasing it regularly), is atrocious. At every stage a hospital / doctor must bribe for permissions. Very few exceptions. In fact, people expect doctors to pay higher bribes. Doctors belong to the same society as you, and mirror the same good and bad that the society has, there cannot be one-way blame game here. This does not mean there weren't greedy doctors, in fact the corporate policies helped some such doctors flourish too.
There indeed were days when doctors earned too much money, some with good and some with deceptive means. Gone are those days. Now in each specialty there are a few who do well, and some who don’t. Most doctors struggle to maintain the incomes to continue offering good healthcare. Many have quit the profession.
Even patients are mostly not happy with only honest and good treatment. They want multiple facilities and luxuries, trained staff, accreditations, cashless facility, no marketing/ referral/ cut practice, but still the lowest rates. How will smaller hospitals compete in such a scenario with the giant corporates?
In a few months / years, small hospitals and private medical practice will have been completely eradicated, the only healthcare options will be government or corporate. After defaming the entire medical profession and creating wide rifts between the society and doctors, the marketeers of health and life corporates and insurance companies, will keep on freely filling their coffers while providing compromised healthcare at all stages.

PHA-4








Fourth People’s Health Assembly (PHA-4), November 15-19, 2018, in Savar (Dhaka), Bangladesh

Civil society mobilization and policy dialogue for health equity and accountable national and global governance for health.



A concept note by:
The Global Secretariat,
People’s Health Movement (PHM)



February, 2018
Introduction
The Fourth People’s Health Assembly (PHA4) will be organized in Dhaka, Bangladesh, on November 15-19, 2018. The associated planned events include a 2-week training course (IPHU) on the topic of ‘Struggle for Health’ (8-14 November, 2018).
PHM looks forward to partnering with the Open Society Foundation. The partnerships sought entail:
-  providing partial financial support for  PHHA4, its associated events and follow up activities at country level;
-  planning for and sponsoring one or a series of workshops before or during the Assembly on issues that OSF is focusing on; and
-  sponsoring partners from across the world to participate in the Assembly and its workshops.
Background to the Assembly
We are faced today with a global health crisis that is characterized by inequities related to a range of social determinants of health and in access to health services within countries and between countries. In many regions of the world, health systems are poorly designed, under-resourced, and of poor quality, thereby contributing to unacceptable rates of morbidity and mortality.  In large measure, the poor and the vulnerable are being pushed further to the margins due to pitifully inadequate measures to address the social determinants of health. They are also denied access to quality health services as a consequence of unfair economic structures and social conditions that lock people into poverty and ill-health. In recent years, austerity measures in both the global South and the North have further compromised access, often as a consequence of the dismantling of public services and the increasing reliance on private provision of healthcare. The achievement of universal and secure access to comprehensive healthcare services can be a reality only through the revitalization of comprehensive primary health care, as envisioned in the Alma-Ata Declaration of 1978. The People's Charter for Health endorses the Alma Ata declaration, and   affirms that health is a social, economic and political issue -- but above all, a fundamental and inalienable human right.
Health and healthcare in different regions face additional challenges brought on by the effects of Climate Change and by the deteriorating social and political environment, such as the massive humanitarian crisis brought on by a rise in forced migrations. The promises held out by the Sustainable Development Goals need to be questioned given that these goals, many of them laudable, are proposed to be attained by the same neoliberal model of development and economic growth that has pushed the globe to the brink of multiple crises – social, political, ecological and economic.
Recent decades have witnessed major shifts in the global governance for health, which is currently  characterized and shaped by multiple agencies and by multiple interest groups, most of them working independently of national governments or of intergovernmental agencies. An analysis of structures and dynamics of global decision-making reveals the dominance of entrenched power structures – through the agency of more powerful nations, the Bretton Woods institutions, private philanthropies and large transnational corporations –resulting in a democratic deficit in the structures and dynamics of global health. These power structures operate through the UN system, the Bretton Woods system and a plethora of global public private partnerships.  They also operate directly through bilateral and regional trade agreements; through the operations of bilateral health-related assistance; and through direct advice and influence.  In many respects, the regulatory, financing and policy outcomes of this system reflect an imbalance between the interests of a limited number of country governments and global institutions, many of them private, and the needs and priorities of a majority of the world’s population. Local and national policies are often captive to policies and decisions that are negotiated at global and regional levels.  New actors, especially non-state actors such as private foundations, public-private partnerships, consultancy organizations play an increasingly important role in shaping polices at the global, as well as local and national levels, thereby making the task of holding institutions of health governance accountable, much more challenging.
About the People’s Health Movement (PHM)
PHM is a global network bringing together grassroots health activists, academics, policymakers and practitioners, civil society organizations and academic institutions from around the world, particularly from low and middle income countries (L&MIC). PHM currently has a presence in over 80 countries.
The PHM governance structure includes the Global Secretariat (the main executive body), the Coordinating Commission (an extended executive body) and the Steering Council that is the principal decision making body. The PHM Secretariat rotates periodically, having been based sequentially in Dhaka (Bangladesh, 2001-2002), Bangalore (India, 2003-2006), Cairo (Egypt, 2006-2009) and Cape Town (South Africa, 2009 - present). The Cape Town Secretariat is supported by an additional Secretariat office in New Delhi.
The core work of PHM is informed by that of its constituent-parts, in particular, country circles and international networks. PHM provides communication channels and opportunities that link the diverse elements that are part of the movement for health rights and equity, at global, regional and local levels.  At the global level, PHM supports actions, advocacy and dialogue around campaigns that seek to influence the global policy agenda. A principal facet of PHM’s work is to build capacity among partners in country circles and networks, to develop analysis on key issues and thereby inform the content of such campaigns. On an ongoing basis, PHM is involved in preparing and disseminating a large number of publications, submissions and statements that strengthen and enrich civil society engagement with health policy making at all levels.
PHM supports a number of activities at global and regional levels that integrate the efforts of  its country circles and its global and regional networks. These include:
ú  The Global Health Watch (GHW) is a critical alternative to [the] WHO’s World Health report. Four reports have been published (GHW1, GHW2, GHW3 and GHW4) in 2005, 2008, 2011 and 2014 respectively. Preparation for the 5th edition of GHW began in late 2014 and it was published in December 2017.
ú  The International People’s Health University (IPHU) is PHM’s principal educational and research program. IPHU has organized over 40 short courses entitled ‘The Struggle for Health’ most of them of 2-weeks duration each. The courses have been organized in about 20 countries in 9 languages and attended by more than 1500 health activists from more than 60 countries. Many of these young participants now form the core of country PHM circles.
ú  The Health for All Campaign (HFAC) is a global organising framework for different mobilisation actions by civil society networks and social movements around the world. It aims to inform and influence governments to address structural and systemic weaknesses in the health system. The campaign platform incorporates several thematic axes including: health systems (including defense of public systems and anti-privatisation campaigns), access to medicines, food and nutrition, gender and health, trade and health, extractive industries, and labour and health.
ú   Democratizing Global Health Governance (including WHO Watch) is an initiative that aims to improve the global environment for health by changing information flows and power relations that frame global health decision-making and implementation. The project was launched as an initiative of [the] PHM, the South Center, the Third World Network and other international organizations and networks. The focus is currently on ‘watching’ and providing critical support to the World Health Organizations (WHO). As part of this project, since January 2011, a systematic monitoring and analysis of meetings of the WHO (Executive Board and World Health Assembly) are organized.  The ‘watchers’ are young activists drawn from different civil society organizations and selected from applications received before each event through a global call. ‘Watchers’ go through a week-long training course before each event and, till date, about 100 activists have been involved directly in the process of the ‘WHO watch’ while many more support and follow the Watch from remote locations.
Since 2014, PHM has undertaken an action-research, funded by the International Development Research Centre (IDRC), focused on the engagement of civil society organisations in achieving health for all through action on healthcare and the social determinants of health (CSE4HFA). The research is being conducted in six study countries (Brazil, Colombia, DR Congo, India, Italy, South Africa) and at the global level. The action research will be concluded in 2018, but the ongoing analysis is already informing change in PHM programs, and fostering stronger alliances with other civil society actors at the country, regional and global level.
Fourth People’s Health Assembly
As on earlier occasions, the Fourth People’s Health Assembly (PHA 4), will draw on civil society organizations and networks, social movements, academia and other  actors from around the globe. PHA4 will provide a unique space for strengthening solidarity, sharing experiences, mutual learning and joint strategizing for future actions. The first PHA was held in Savar, Bangladesh in 2000 and was attended by more than 1500 people. The People’s Charter for Health -- the PHM’s founding document -- was developed and endorsed at this Assembly. The second Assembly was held in Cuenca, Ecuador in 2005 and attended by 1492 people. The Cuenca Declaration, issued at the conclusion of this Assembly, was designed to provide a strategic vision for PHM. The third Assembly was held in Cape Town, South Africa, in July 2012 and culminated with the adoption of the Cape Town Declaration.
Proposed activities
The Fourth People’s Health Assembly (PHA4) is to be held in Dhaka, Bangladesh, in November 2018. It will be hosted by PHM Bangladesh and Gonoshasthaya Kendra (GK) at its campus in Savar, Dhaka. GK has agreed to assist the Assembly with a huge in-kind contribution by making available the venue and accommodation facilities available at the GK Campus at no cost.
The program of PHA4 will be informed by the key findings and challenges identified through PHM’s ongoing action research on civil society engagement for health for all.
The objectives of the Assembly and associated activities include:

-  To evaluate and critically analyze current processes and policies that impact on health and healthcare at global, regional and local levels;

-  To undertake a collective assessment of PHM’s organizational and programmatic activities and to provide a renewed mandate for the years to come;

-  To enhance the capacity of health civil society activists to engage with and intervene in the policy making process, to monitor and drive policy implementation and to ensure accountability in the functioning of health systems;

-  To foster and support constructive dialogue, planning and mobilization around health and the broader social determinants of health, involving the widest possible range of practitioners; and

-  To   launch renewed sustainable structures and dynamics, both within and outside the health sector, that will continue to drive coordinated action to secure universal and equitable access to health and health care.
Around 1500 participants from across the globe, including a substantial number of young activists, are expected to attend the Assembly, particularly from low and middle income countries. Participants will be mobilized through country and regional mobilization processes leading up to the Assembly. Participants will include representatives of civil society organizations/networks (including non-governmental organization, community-based organizations, trade unions, professional associations, etc.); governments, intergovernmental bodies, academic institutions, and others. The pre-Assembly mobilization process aims to engage civil society especially at the grassroots level. The PHM global structures are seeking  resources to support around 30% of participants, especially from Low and Middle income countries. This financial sponsorship will allow the representation of local movements and community based organizations, indigenous populations and other marginalized groups.
The details regarding PHA3 in Cape Town (organized in 2012), including those about the process leading to the organisation of the People’s Health Assembly and its programme, are available here
The main thematic axes of PHA-4 are:
Axis 1: The political and economic landscape of development and health

Political and economic policies and trends determine whether people are able to lead healthy lives. Insecure conditions of living and consequent negative impact on health are also engendered by conflicts and forced migration.
This axis will address issues ranging from the examination of the dominant economic model of development, power relations between and within countries, trade agreements, and the role of powerful actors such as the Bretton Wood Institutions, multinational corporations, private foundations and global partnerships and religious fundamentalist forces. It will also address the underlying factors, global and regional, which are driving forced migrations and precipitating a humanitarian crisis in many regions of the world. Deeply embedded in these contexts and worsening as a result, is gender inequality with its intersections with race, caste, ethnicity, disability, sexuality, religion, etc., that determines the development and health of a majority of the people globally. The axis will also critically examine the gendered implications of macroeconomic and policies and the current developmental paradigm, that in conflation with domestic policies and laws, are discriminatory and unjust and continue to acutely impede the realisation of health and development.  
The axis will also interrogate the promises of the SDGs and will explore some of their key contradictions in an attempt to fashion progressive alternatives that civil society can promote. Concerns about reinforcement of dominant development paradigms and indicators that are barriers to gender and social justice, will be discussed.

Axis 2: Social and physical environments that destroy or promote health
Superimposed on existing layering of society through differences in power dynamics related to class, gender, ethnicity, caste, etc. are global trends of rising xenophobia, war-mongering and intolerance. These, perhaps more than ever before, contribute to inequity in access to healthcare services and to a worsening of many social determinants such as food security and sovereignty, secure employment and decent housing. Forced migration, conflict, gender violence, climate change and environmental degradation are increasingly responsible for their profound impact on health outcomes. The axis will examine a range of issues related to these trends, including their gendered impact on people’s ability to lead healthy lives.
Issues related to these trends will be examined, especially their impact on people’s ability to lead healthy lives.
Axis 3: Strengthening health systems to make them just, accountable, comprehensive, integrated and networked

Universal health coverage (UHC) is the slogan du jour in global health systems policy, but its meaning is highly contested. The differences in emphasis between the Primary Health Care (PHC) and UHC approaches are significant. The former involves a focus on building and supporting the primary healthcare sector and envisages a prominent role for community health workers and community involvement in planning, accountability and prevention, as well as attention to the social determinants of health. In contrast, the UHC discourse starts with a focus on financial protection and essentially argues for care that is ‘purchased’ from a range of private and public providers. In many parts of the world, this has legitimized the dismantling of public services and the increased participation of private providers in the delivery of healthcare. Forty years after the Alma Ata declaration the visionary approach of PHC is a reminder of an alternative approach that should not be allowed a silent burial.
While public systems are under threat, compromised access to medicines leads to the unnecessary loss of millions of lives. The way research on new products is organised, the dominance of a few Northern corporations over the global medicines market and the perverse incentives of the Intellectual Property  regime contribute to a situation where political and economic decisions override health and welfare.
Health systems are deeply gendered institutions that reinforce inequalities. The costs of health care are increasingly impoverishing the people that need them the most.    Discriminatory policies and practices by the health system remain huge barriers to access to health information and care globally.  Gender plays a critical role in the health workforce and determines the location and experiences of women and men as health workers.
Within this  context, the Assembly will debate  alternative models of healthcare delivery that are  better suited to promote equity in access, that are fair, and that promote accountable systems built around popular participation, particularly women and others who are socio-economically and politically marginalised.
Axis 4: Organizing and mobilizing  for Health for All
While the struggle for Health has myriad dimensions, a key aspect is related to the numerous examples of struggles and actions by groups, peoples, movements, NGOs, community based organizations. PHA4 will provide space for the stories of these actions and struggles to be told, as sources of inspiration and as a platform for sharing experiences, mutual learning and strategizing for future action.
Broad structure of activities at PHA4
The program for PHA4 will be spread over 5 days and will include:
-  Opening ceremony, designed as a curtain raiser to the different thematic axes, interspersed with cultural expressions by participating countries.

-  Plenary sessions: Plenary session on each day will focus on the major themes of the Assembly. Each plenary will include: testimonies, key-note speeches and space for open discussion. An additional plenary session on the last day will debate and finalize the Assembly's Declaration.

-  Special Plenary Sessions: On specific areas such as on the 40th anniversary of the Alma Ata Declaration

-  Sub-plenary sessions: each plenary will be followed by 4-6 concurrent sub-plenary sessions designed to further deepen the discussions on each of the thematic axes.

-  Thematic strategy discussions: Parallel discussions on different thematic axes of PHM’s Health for All campaign to develop strategies to align and co-ordinate activities and struggles across continents

-  Self-organized events: space will be provided for civil society organizations/networks and other participating groups to organize workshops on topics related to their own priorities within the framework of the Assembly themes. The self-organized events are designed to widen the ownership of the Assembly and also to provide opportunities to the largest possible number of partners to build alliances within the large number of participants around their own priority and issues of concern. We expect to have around 10-15 concurrent self organized workshops every day.

-  Cultural events and a film festival that will reflect the diversity of cultural traditions represented, in the Assembly.

-  Display space will provide an opportunity for participant organizations to promote their publications, products, etc.

The closing event will reflect the resolve of the Assembly and the broader movements represented by the participants to take and translate the deliberations in the Assembly into concrete actions for decisive change.

Training course ‘Struggle for Health’: The Assembly will be preceded by a 2-week training course on ‘The Struggle for Health’. The course will be organized within the framework of [the] PHM's International People's Health University (IPHU) and  will accommodate over 50 young health activists from across the world.
Expected Outcomes
As in the case of previous People’s Health Assemblies presentations, discussions and debates in the Assembly, will provide guidance and direction to PHM to conduct a range of activities. These include giving new impetus to  PHM’s Global Health for All Campaign, to PHM’s policy dialogues and interventions to strengthen health systems, to activities that address the social determination of health and to the PHM’s global initiative on ‘Democratising Governance for Health’.
It is expected that, through the various debates, the Assembly’s exchanges and collective strategizing will enhance PHM’s capacity to organize and mobilize for health. Concrete actions and medium and long term plans are expected to emerge from the deliberations of the Assembly in major thematic and program areas.
Past Assemblies have been occasions for organisational stock-taking, sharpening of PHM’s positions on key issues, and importantly, for providing a vision and direction – both organisational and programmatic -- for the future. The first Assembly (PHA1) in 2000 set in motion a process for the formation of the People’s Health Movement in 2001. The People’s Health Charter, adopted at the Assembly, continues to be the founding document for the PHM. PHA-II, organised in Cuenca in 2005, discussed in detail PHM’s engagement with the Right to Health campaign, and led to the expansion of activities related to Right to Health in many countries. Organisationally, a major expansion of PHM was possible subsequent to the second Assembly, especially in Africa. The Third People’s Assembly in Cape Town in 2012 culminated in the adoption of the Cape Town Declaration, which deepened the discussions in the People’s Health Charter regarding the social and structural determinants of health. The Assembly also included spaces for different regional structures of PHM to debate on strategies for organisational strengthening at the regional level. Several outcomes of the Third Assembly are reflected in fresh perspectives that have strengthened PHM’s global programmes. PHM’s organisational reach and activities have grown significantly in the European region. The Third assembly also saw a transition in PHM’s organisational structures with introduction of the principles of continuity and change in PHM’s governance structure. This has resulted in the inclusion of new and young activists at all levels of PHM’s governance structure. The emphasis on involving young activists is also reflected in PHM’s global programmes such as the WHO Watch and IPHU, both of which involve capacity building of youth with a view to engendering their involvement in PHM’s activities.
The Fourth People’s Health Assembly is being designed to facilitate discussions and debates on policies and core positions of the health movement, to advance activities and build and strengthen common activities and struggles related to PHM’s ‘Health for All’ programme around different thematic axes -- such as health systems, food and nutrition, Gender and health, access to medicines, trade and health, extractive industries, labour and health, etc. – and will be preceded by capacity building modules (through PHM’s IPHU programme) for young health activists. The assembly will also have space for several workshops, which will allow issues and experiences to be share and debated. The Assembly will also be about celebration of a counter culture on health and healthcare and about a reaffirmation of solidarity involving activists from over 80 countries of the world. It will be an unique opportunity to exchange experiences of working in different countries, and importantly of building common agendas for interventions and struggles on a range of issues.
The Assembly will be preceded by regional and local Assemblies and other forms of mobilisations in different countries. Special attention would be directed at supporting young activists to attend and participate in the Assembly in Dhaka and in pre-Assembly activities.