सार्वजनिक स्वास्थ्य ..व्यक्तिगत स्वास्थ्य का आधार
जब भी समाज में स्वास्थ्य की बात होती है तो इसको थ्री डी के दायरे में रख कर देखा जाता है। मतलब डिजीज, डाक्टर और ड्रग्ज। मगर इस प्रकार स्वास्थ्य के मसले को देखना कतई भी सही नहीं है। असल में देखें तो कोई भी प्राणी अपनी जिन्दगी की षुरुआत का आधा वक्त ‘दौलत’ कमाने के लिए अपना ‘स्वास्थ्य’ खर्च करता है और बाकी आधी जिन्दगी में अपना स्वास्थ्य दोबारा हासिल करने हेतु अपनी काफी सारी दौलत खर्च कर देता है। मनुश्य प्राणी का यह तात्विक विचार इस बात पर जोर देता है कि स्वास्थ्य अर्थपूर्ण जीवन बसर करने का एक महत्वपूर्ण घटक है । यह भी एक सामान्य अनुभव है कि जब भी हमारा स्वास्थ्य खराब होता है तब व्यक्ति गत स्तर पर हमारा दैनंदिन कार्य और जीवन स्तर प्रभावित होता है तथा समाज के विकास पर भी इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष असर पड़ता है।
महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ सकते हैं, अतः पूरे जन समूह का या समुदाय का जीवन स्तर बड़े पैमाने पर घट सकता है और समाज के आर्थिक विकास में भी बाधक का काम करता है। इसी प्रकार अस्वास्थ्य या बीमारी का बारबार सामना करने से भी समुदाय या समूह का जीवन स्तर बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। गरीबी, भीड़, स्वच्छ पेयजल की कमी, उचित स्वच्छता का अभाव, निजी स्वच्छता के प्रति लापरवाही, पौश्टिक भोजन का अभाव, प्रदूशित-वातावरण का खाद्य पदार्थों आदि का भी हमारे स्वास्थ्य को खराब करने में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। पर्यावरण का प्रदूशण और ‘क्लाइमेट चेंज’ भी महत्वपूर्ण कारक के रूप में उभर कर सामने आये हैं। इनमें से कई बातें व्यक्ति के नियन्त्रण से परे की बातें हैं जिनको सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक स्तर पर ही सम्बोधित किया जा सकता है। संगठित प्रयास और वैज्ञानिक तकनीक के जनपक्षीय इस्तेमाल के जरिए हम इन कारकों को बड़े पैमाने पर कम कर सकते हैं। इसके साथ ही लिंग समानता, सभी के लिए स्तरीय गुणवता पूर्ण षिक्षा, सामाजिक न्याय तथा वर्तमान बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की सभी के लिए उपलब्धता आदि की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। एक विषेश पहलू और है कि स्वास्थ्य के मुद्दे को बाजार व्यवस्था में मुनाफा कमाने के क्षेत्र के रुप में देखा जाता है।
हमें यह समझना बहुत आवष्यक है कि स्वास्थ्य का मामला केवल बीमारी का न होना ही नहीं है। स्वास्थ्य की परिभाशा ‘ बीमारी का इलाज करके या करवाके बीमारी मुक्त होना ही स्वस्थ होना है’ इस संकुचित विचार से परे है। दूसरे ढंग से कहा जाए तो केवल डाक्टरों द्वारा दी गई दवाईयां लेकर ही हम स्वस्थ नहीं हो सकते। 1836 के दौर में ब्रिटेन में टी बी की बीमारी बहुत कम हो गई थी। तब तक टी बी की दवाईयां बाजार में नहीं आई थी। कारण साफ था कि इस दौर में ब्रिटेन ने विकास के नये आयाम हासिल किए थे। जिसके चलते श्ैवबपंस क्मजमतउपदंदजे व िीमंसजीश् के स्तर पर काफी सुधार हुआ और टी बी की बीमारी के जीवाणुओं के जिन्दा रहने के स्थल नहीं बचे तथा षारीरिक स्तर अच्छी खुराक के चलते बीमारी से लड़ने की क्षमता भी बढ़ी। इसलिए व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्वास्थ्य को ‘ केवल बीमारी का न होना ही नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण षारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तंदरुस्ती ’ के रुप में ही परिभाशित किया जाता है। सही मायने में ‘स्वास्थ्य’ पाना है तो स्वास्थ्य के सामाजिक घटकों का पूर्ण विकास करना और उनका संतुलन बनाए रखना बहुत जरुरी है क्योंकि इन घटकों का विकास किए बिना स्वस्थ समाज का सपना हासिल नहीं किया जा सकता। और यह सभी अलग-अलग समय पर अनेक कारणों से प्रभावित रहते हैं।
स्वास्थ्य को जैसे पहले कहा जा चुका है- षिक्षा, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण, कृशि, परिवहन, ग्रामीण और षहरी विकास- सम्बन्धित जैसे अनेक घटकों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिये। असल में देखा जाए तो सभी क्षेत्र स्वास्थ्य विकास से जुड़े हुए हैं। ऐसा कोई भी विकासात्मक घटक नहीं है जो स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ न हो। इस संदर्भ में , स्वास्थ्य को सामाजिक आर्थिक विकास के उद्येष्य के रुप में ही नहीं बल्कि माध्यम के रुप में भी देखा जाना बहुत जरुरी है। इसलिए व्यक्तिगत और समुदाय के स्तर पर स्वास्थ्य के प्रति सजगता के साथ जागरुक रहने से तथा जीवन षैली में वैज्ञानिक दृश्टिकोण का समावेष करने से समुदाय के जीवन स्तर में अप्रत्यक्ष वृद्धि होती है। बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से सम्बन्धित विज्ञान के सिद्धान्त और कार्यान्वयन को हम स्वास्थ्य की विचार की गई मूल संकल्पना के कारण अच्छी तरह समझ सकते हें। यह विज्ञान आज रोकथाम और सामाजिक स्वास्थ्य , समुदाय का स्वास्थ्य या सार्वजनिक स्वास्थ्य के रुप में अभिव्यक्त किया जा सकता है।
स्वास्थ्य सभी नागरिकों के लिए एक मौलिक एवं सार्वभौमिक अधिकार है। इस अधिकार के साथ-साथ स्वास्थ्य के सभी निर्णायक घटकों व अन्य कारकों जैसे - अच्छा भोजन, सुरक्षित व साफ पीने का पानी, बेहतर साफ-सफाई, षिक्षा, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, लिंग व वर्ग आधारित असमानता का निवारण, स्वच्छ पर्यावरण एवं परिवहन व्यवस्था आदि की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। समेकित स्वास्थ्य सेवाएं भी स्वास्थ्य के अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसकी पूर्ति हेतु सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर संसाधन-युक्त बनाने, उसे विस्तारित करने तथा जवाबदेह बनाने की घोर आवष्यकता है जिससे कि लोगों को उच्च गुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त प्रदान की जा सकें।
प्रदेश के जिलों गुड़गांव, रोहतक, हिसार, भिवानी, फरीदाबाद और सोनीपत में विषेश आर्थिक पैकेज के तहत 1500 करोड़ रुपये की परियोजनांए षुरु की गई हैं जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए इन जिलों के अस्पतालों को अपग्रेड करके सुपर स्पैषिलिटी अस्पताल बनाये जा रहे हैं। बहुत ही हाईटेक उपकरण पिछले सालों में खरीदे गए जो बहुत कम जगह और कमतर स्तर पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं। यहां पर उपयुक्त स्टाफ की कमी को पूरा करते हुए इसके लिए सम्बंधित विशेषज्ञों, डॉक्टरों, नर्सों व पैरामैडिकल स्टाफ को उपयुक्त ट्रेनिंग देने की भी आवश्यकता है। निषुल्क सर्जीकल पैकेज योजना के तहत 2009 से बी. पी. एल परिवारों एवं गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले व अधिसूचित झोंपड़ पट्टियों एवं बस्तियों के निवासियों के सभी आपरेषन मुफत करने की निषुल्क सर्जरी की सेवा ढ़ंग से लागू नहीं की जा रही। इंदिरा बाल स्वास्थ्य योजना 26 जनवरी 2010 से लागू की गई। जिसके तहत अठारह वर्श तक की आयु के बच्चों के स्वास्थ्य कार्ड बना कर सरकारी अस्पतालों में उनके स्वास्थ्य की निषुल्क जांच व ईलाज किया जाता है। बहुत से लोगों को इन सब योजनाओं से वाकिफ ही नहीं करवाया गया। प्रदेष में 2005 तक एम. बी.बी.एस.की कुल सीटें 350 थी जो वर्श 2013 में 850 हो गई। मगर इन विद्यार्थियों की गुणवता पूर्ण मैडीकल षिक्षा के लिए जरुरी फैकल्टी के साथ-साथ की इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी भारी कमी है जिसे पूरा करना बड़ी चुनौती है। इस समय सरकारी ढांचे में स्वास्थ्य सेवाओं में जरूरत के हिसाब से करीब 40 प्रतिषत सब सेंटर, पीएचसी एवं सीएचसी की कमी, 40 प्रतिषत हेल्थ वर्कर व असिसटेंट की कमी एवं करीब 95 प्रतिषत विषेशज्ञ चिकित्सकों की कमी है। सब-सेंटर व पीएचसी लेवल पर भी करीब 40 प्रतिषत स्टाफ की कमी है। स्वास्थ्य सुविधाएं मध्यम दर्जे के कार्यकर्ताओं (नर्स, ए. एन. एम., और पैरा मैडिकल कर्मी) ये कार्यकर्ता ही लोगों की समस्याओं के सम्पर्क में आते हैं। परन्तु खुद के स्वास्थ्य के क्षेत्र के काम के विष्लेशण में इनकी भागीदारी न के बराबर है। पहली बात तो यह कि निचले दर्जे मंे होने के कारण इनसे सिर्फ आदेषों के पालन की अपेक्षा की जाती है, निर्णयों में इनकी कोई भागीदारी नहीं होती। दूसरी बात यह है कि इनकी ट्रेनिंग भी इस तरह की नहीं होती कि ये अपने व्यवहारिक अनुभवों से अवधारणा या विचार विकसित कर सकें या उन्हें व्यवहार में बदल सकें।
जानकारी अपने आप बदलाव नहीं लाती परन्तु वह बदलाव की एक पूर्व षर्त जरूर है। जन स्वास्थ्य अभियान की यह कोषिष है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रहे बदलाव व विकास के ताजा घटनाक्रम को लेकर लोगों तक पहुंचा जाए ताकि स्वास्थ्य सेवाओं तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में जनपक्षीय आधार को मजबूत किया जा सके।
मौजूदा स्वास्थ्य परिस्थिति को पलटने तथा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां एवं स्वास्थ्य सेवाएं लागू करते हुए सबके लिए स्वास्थ्य के लिए निम्नवत प्रस्ताव रखे जाते हैंः-
1. लोक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाना जिसके तहत स्थानीय खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जाए।
2. राश्ट्रीय षिषु स्वास्थ्य एवं पोशण नीति बनाई जाए जिसके अर्न्तगत आई.सी.डी.एस. का सार्वभौमिकीकरण हो व तीन साल तक के बच्चों को पूर्ण रुप से षामिल करने हेतु सेवाओं तथा कार्यदल में विस्तार हो।
3. समस्त गावों व मोहल्लों में षुद्ध एवं सुरक्षित पेयजल की सार्वभौमिक उपलब्धता हो तथा हर गांव व मोहल्ले में स्वच्छ षौचालयों तक सार्वभौमिक पहुंच हो।
4. स्वास्थ्य से सम्बन्धित लैंगिक पहलूओं को सम्बोधित किया जाना आवष्यक है -इसके अंर्तगत समस्त महिलाओं तथा समलैंगिक नागरिकों को समेकित , आसानी से उपलब्ध उच्चगुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच व इसकी उपलब्धता की गारण्टी दी जाए जो कि केवल मातृत्व सवास्थ्य सेवाओं तक ही सीमित न हो।
5. उन समस्त कानून ,नीतियों तथा आचरणों को समाप्त किया जाए जो कि महिलाओं के प्रजनन, यौनिक तथा जनतांन्त्रिक अधिकारों का हनन करता है। उन विभिन्न प्रजनन प्रोद्योगिकियांे को जो कि महिलाओं के लिए हानिकारक हो सकती हैं , नियंत्रित किया जाए।
6. लिंग आधारित उत्पीड़न को एक लोक स्वास्थ्य समस्या माना जाए तथा इसके तहत षारीरिक एवम मानसिक रुप से पीड़ितों को तमाम आवष्यक स्वास्थ्य जांच, दस्तावेजिकरण, रेफरल का अधिकार दिया जाए तथा समन्वित नैतिक चिकित्सीय कानूनी प्रक्रियाओं के लिए भी उन्हें अधिकृत बनाया जाए।
7. स्वास्थ्य सेवाओं को किषोर किषोरियों के लिए मित्ऱतापूर्ण बनाया जाए तथा इस तबके को भी समेकित, उच्चगुणवता पूर्ण , आासनी से पहुंचने लायक स्वास्थ्य सेवाएं सुनिष्चित हो जो कि उनके विषेश प्रजनन तथा यौनिक स्वास्थ्य आवष्यकताओं को पूरा करती हों।
8. समस्त जाति आधारित भेदभाव तुरंत समाप्त किया जाए- जाति आधारित भेदभावों को, जो कि बुरे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है , पूर्णरुप से समाप्त करने हेतू त्वरित एवं प्रभावी कदम उठाये जाएं। मानव द्वारा मैला ढोने वाले समस्त मैनुअल कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबन्धित हों। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इस भेदभाव से पीड़ित तबकों को प्राथमिकता दी जाए । इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं का पुर्नगठन किया जाए।
9. स्वास्थ्य सेवाओं के अधिकार को संवैधानिक बनाया जाए- देष में और प्रदेष में स्वास्थ्य के अधिकार का कानून लागू किया जाए जो कि समेकित, उच्चगुणवतापूर्ण, आसानी से उपलब्ध सेवाओं को सुनिष्चित करता हो तथा प्राथमिक, द्वितीय एवं तृतीय स्तरीय सेवायें आवष्यकतानुसार सबको उपलब्ध करता हो। सेवा प्रदाता को सेवाओं को उपलब्ध नहीं कराने या मना करने पर ;चाहे गुणवता,पहुंच या खर्च से जुड़े हुए कारणों से भी हो उसे कानूनी अपराध घोशित किया जाए।
10. स्वास्थ्य के उपर सार्वजनिक व्यय को बढ़ाया जाए-सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 3.6 प्रतिषत को स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित किया जाए जो कि 2014 की स्थिति में प्रति व्यक्ति 3000 रुपये बनता है।
11. इस व्यय में कम से कम एक तिहाई केन्द्रिय सरकार से राज्यों को उपलब्ध हो। हरियाणा सरकार का प्रति व्यक्ति खर्च 1786 के लगभग है। एक मध्य सीमा के तहत स्वास्थ्य के उपर किये जाने वाले समस्त सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 5 प्रतिषत तक बढ़ाया जाए।
12. प्रत्येक जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता एवं गुणवता सुनिष्चित की जाए-समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में सेवाओं की गुणवता सुनिष्चित की जाए जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावी , सुरक्षित , गैर षोशणीय बनायें तथा लोगों को सम्मानपूर्वक सेवायें उपलब्ध हों। मरीजों के अधिकारों का आदर हो एवं मरीजों की आराम तथा संतुश्टि पर ध्यान दिया जाता हो। गुणवता का मानक केवल भौतिक या चिकित्सकीय संरचना पर आधारित न हो जो कि प्रायः बड़े कार्पोरेट अस्पतालों या मैडीकल टूरिज्म के लोग को बढ़ावा देते हैं तथा यह कम खर्च में सही एवं प्रभावी सेवाओं के प्रदाय को बढ़ावा नहीं देता है। समस्त सरकारी स्वास्थ्य संस्थान अपने स्तर पर गारन्टी की गई सभी स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान करने हेतू बाध्य हों।
13. समस्त लोक स्वास्थ्य सुविधाओं को किसी भी प्रकार के उपभोग्ता षुल्क से मुक्त किया जाए तथा सेवाएं षासन द्वारा संचालित सुविधाओं के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएं न कि निजी सार्वजनिक सहयोग (पीपीपी)व्यवस्था से।
14. स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण बंद हो- सक्रीय निजीकरण के तरीके ; जैसे सार्वजनिक संसाधन या पूंजी को निजी संस्थानों को वाणिज्यिक तौर पर हस्तान्तरण करना ,पूर्ण रुप से बंद करने हेतु आवष्यक कदम उठाये जाएं। निश्क्रिय रुप से हो रहे निजीकरण को रोकने के लिए लोक सुविधाओं में निवेष बढ़ाया जाए।
15. सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों से प्रदत सेवाएं केवल प्रजनन स्वास्थ्य, टीकाकरण एवं अन्य चुनिन्दा बीमारियों के नियन्त्रण पर सीमित न होकर समेकित स्वास्थ्य सेवाओं पर आधारित हों।
16. स्वास्थ्य कार्यदल का बेहतर प्रषिक्षण होः स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत सभी कर्मचारियों की बेहतरीन षिक्षा एवं प्रषिक्षण के लिए सार्वजनिक निवेष को बढ़ाया जाए।
17. सरकार द्वारा चलाई जा रही सभी षिक्षण संस्थानों द्वारा उन जरुरत मंद इलाकों से चिकित्सकों, नर्सों तथा स्वास्थ्य कर्मचारियों को आवष्यक संख्या में चयनित कर षिक्षा/प्रषिक्षण दिया जा रहा है यह सुनिष्चित किया जाए।
18. प्रषिक्षण नीति में बदलाव लाया जाए जिससे कि स्वास्थ्य कार्यदल द्वारा स्थानीय आवष्यकताओं को पूरा करने हेतू समस्त जरुरी दक्षताएं दी जा सकें।
19. चिकित्सा तथा संबन्धित क्षेत्र के उच्च षिक्षा व्यवस्था के वाणिज्यिकरण बंद हों तथा निजी षिक्षण संस्थाओं के व्यवस्थित नियन्त्रण हेतू प्रभावी एवं पारदर्षी तन्त्र लागू किया जाए।
20. स्वास्थ्य प्रणाली में समस्त सेवाओं के लिए आवष्यक सभी पद एवं स्थान प्रर्याप्त रुप से सृजित किये जाएं एवं इन पदों को समय समय पर भरा जाये। ठेके पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमित किया जाए तथा आषाओं , बहुउद्येषीय कार्यकर्ताओं तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों का प्रयाप्त रुप से क्षमता निर्माण किया जाए एवं उन्हें अपने कार्य के लिए सही मानदेय दिया जाए व उपयुक्त कार्य करने का माहौल प्रदान किया जाए।
21. कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए तथा महिला कर्मचारियों के लिए विषेश व्यवस्था बनाई जाए।
22. हर स्तर के लिए ऐसे स्वास्थ्य कैडर का गठन हो जिसमें प्रयाप्त संख्या में चिकित्सक, नर्सें तथा स्वास्थ्यर्किर्मयों का दल सम्मिलित हो जिसको प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में, लोक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में एवं एक दल के रुप में बेहतर कार्य करने में प्रषिक्षण प्राप्त हो।
23. सभी आवष्यक दवाओं का एवं जांच सुविधाओं की मुफ्त एवं गुणवतापूर्ण उपलब्धता तामिलनाडु, केरल एवं राजस्थान राज्य के मॉडल अनुसार सुनिष्चित हो।
24. स्वायत, पारदर्षी एवं आवष्यकता आधारित दवा एवं अन्य सामग्रियों के लिए खरीद एवं वितरण प्रणाली गठित एवं लागू हो।
25. समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में जेनेरिक दवाओं के प्रिस्क्रिप्षन एवं उपयोग को अनिवार्य करार दिया जाये।
26. प्रत्येक स्तर पर सामुदायिक सहभागिता, सहभागी योजना निर्माण एवं समुदाय आधारित निगरानी को बढ़ावा दिया जाये। स्वास्थ्य सेवायें जनता के प्रति जवाबदेह हों। इसके लिए समुदाय आधारित निगरानी एवं योजना निर्माण प्रक्रिया को समस्त लोक स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं सेवाओं का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाये जिससे कि सेवा प्रदान में उतरदायित्व एवं पारदर्षिता बढे।
27. षिकायत निवारण की प्रक्रियाओं को सुचारु रुप से चलाने के लिए संस्थागत व्यवस्थायें बनाई जायें जिसके लिए प्रयाप्त धन राषि के साथ साथ आवष्यक प्रबंधन स्वायतता भी प्राप्त हो।
28. निजी अस्पतालों द्वारा किये जाने वाले षोशण को समाप्त किया जाये।
29. राश्ट्रीय क्लिनिकल एस्टेब्लिष्मैंट एक्ट के अंर्तगत मरीजों के अधिकार हर संस्थाओं में सुरक्षित हों । विभिन्न सेवाओं के दाम नियंत्रित हों। प्रिस्क्रिप्षन, जांच तथा रेफरल के पीछे चलने वाली घूसखोरी को बंद किया जाए, एवं इसके लिए षासन द्वारा पर्यवेक्षित लेकिन स्वतंत्र षिकायत निवारण व्यवस्था लागू की जाये। मानक निर्माण का प्रकार ऐसा हो जिसमें कारपोरेट हित का बढ़ावा न हो सके। इन तमाम व्यवस्थाओं पर यह भी विषेश ध्यान हो कि नैतिक एवं गैर वाणिज्यिक सेवा प्रदान करने वाले निजी प्रदाताओं को संपमूर्ण परिरक्षा मिल रहा है।
30. समस्त सार्वजनिक बीमा योजनाओं को समय सीमा के अर्न्तगत लोक सेवा व्यवस्था में विलीन किया जायेः आर एस बी वाई जैसे तथा अन्य राज्य संचालित बीमाएं कर-आधारित सार्वजनिक वितीय व्यव्स्था से पोशित लोक स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में समय सीमा के अंर्तगत विलीन हो । इन बीमा योजनाओं के अंर्तगत प्राप्त सभी सेवायें लोक स्वास्थ्य प्रणाली में भी सम्मिलित हों एवं इसके लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को लोक स्वास्थ्य प्रणाली में पूर्ण रुप से षामिल किया जाये जिससे कि उनके लिए समेकित स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो।
31. मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज ‘योजना’, जननी सुरक्षा योजना आदि सभी स्वास्थ्य योजनाओं को ठीक प्रकार से लागू किया जाए। इसके लिए जिला स्तर पर सामाजिक संस्थाओं व जन संगठनों के कार्यकर्ताओं की एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाई जाए जिसकी सिफारिशों पर सम्बंधित विभाग उचित कार्यवाही तुरन्त करे।
32. इंडियन पेटैंट एक्ट के अंर्तगत लोक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए की गई व्यवस्थाओं का दवाईयों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए उपयोग हो तथा ज्यादातर दवाईयों एवं उपकरणों के देषी निर्माण को बढावा मिले।
33. जैव चिकिस्तकीय षोध तथा क्लिनिकल ट्रायलों की सषक्त विनियामक व्यवस्था होः क्लिनिकल ट्रायलों के नैतिक संचालन हेतु स्पश्ट रुपरेखा तैयार एवं लागू हो जिससे समस्त हितग्राहियों के सषक्त विनियम के लिए व्यवस्थायें बंधित हों चाहे वे वितीय प्रदाता हंो , षोध संस्थाएं हों या नैतिक समितियां हों। सी.डी.एस.सी.ओ. तथा आई.सी. एम. आर. द्वारा समस्त क्लिनिकल ट्रायलों की तथा ट्रायल स्थानों की सषक्त निगरानी की जाये तथा ट्रायल संस्थानों के आंवटन के दौरान वहां पर आवष्यक सभी आपातकालीन स्थिति के निपटारे हेतु व्यवस्थायें सुनिष्चित हों । क्लिनिकल ट्रायलों में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को प्रयाप्त क्षतिपूर्ण राषि उपलब्ध कराने हेतू एवं उनको हो सकने वाले समस्त बुरे प्रभाव निपटारे के लिए प्रयाप्त व्यवस्था के साथ निर्देष विकसित और लागू हों। क्लिनिकल ट्रायल प्रतिभागियों के लिए उनके अधिकार पत्र विकसित किये जायें जिसकी कानूनी रुप में भी वैधता हो।
34. सभी मानसिक रुप से पीड़ित मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं एवं रक्षा सुनिष्चित की जायेंः जिला स्तरीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को राश्ट्रीय स्वास्थ्य मिषन के अंर्तगत षामिल किया जाये। राश्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति पर अमल हो तथा मानसिक स्वास्थ्य कानून पास किया जाये।
35. कीटनाशक दवाओं के अन्धाधुन्ध इस्तेमाल के चलते हर क्षेत्र, मानवीय, पशु व खेती में इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मानवीय स्तर पर इन कीटनाशकों की मात्रा पता लगाने के टैस्टों की सुविधा इस प्रदेश के इकलौते पीजीआईएमएस में भी नहीं है। कई तरह की बीमारियां इसके चलते बढ़ रही हैं या पैदा हो रही हैं। यह सुविधा तत्काल मुहैया करवाई जाए।
36. सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर - एक सर्जन, एक फिजिसियन, एक शिशु रोग विशेषज्ञ व एक महिला रोग विशेषज्ञ के प्रावधान के मानक केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा तय किये गए हैं। इसके साथ यदि मरीज बेहोशी का विशेषज्ञ नहीं है तो सर्जन और गायनकॉलोजिस्ट तो अपंग हो जाते हैं। इसलिए इन पांचों विशेषज्ञों की नियुक्तियां प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों मंे की जाए।
37. राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत ’दाल रोटी योजना‘ को सही ढं़ग से सबके लिए लागू किया जाए।
38. कुपोषण नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे तीन के अनुसार हरियाणा में बढ़ा है। इसके लिए कारगर कदम उठाये जायें। इसी प्रकार गर्भवती महिलाओं में नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे तीन के अनुसार नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे दो के मुकाबले 10 प्रतिशत खून की कमी बढ़ी है। इसके साथ-साथ लड़कियों में किये गये सरकारी सर्वे में भी खून की कमी का प्रतिशत काफी पाया गया है। उचित कदम उठाये जाने की जरूरत है।
39. पी एन डी टी एक्ट के तहत उचित कार्यवाही की जाएं।
जब भी समाज में स्वास्थ्य की बात होती है तो इसको थ्री डी के दायरे में रख कर देखा जाता है। मतलब डिजीज, डाक्टर और ड्रग्ज। मगर इस प्रकार स्वास्थ्य के मसले को देखना कतई भी सही नहीं है। असल में देखें तो कोई भी प्राणी अपनी जिन्दगी की षुरुआत का आधा वक्त ‘दौलत’ कमाने के लिए अपना ‘स्वास्थ्य’ खर्च करता है और बाकी आधी जिन्दगी में अपना स्वास्थ्य दोबारा हासिल करने हेतु अपनी काफी सारी दौलत खर्च कर देता है। मनुश्य प्राणी का यह तात्विक विचार इस बात पर जोर देता है कि स्वास्थ्य अर्थपूर्ण जीवन बसर करने का एक महत्वपूर्ण घटक है । यह भी एक सामान्य अनुभव है कि जब भी हमारा स्वास्थ्य खराब होता है तब व्यक्ति गत स्तर पर हमारा दैनंदिन कार्य और जीवन स्तर प्रभावित होता है तथा समाज के विकास पर भी इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष असर पड़ता है।
महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ सकते हैं, अतः पूरे जन समूह का या समुदाय का जीवन स्तर बड़े पैमाने पर घट सकता है और समाज के आर्थिक विकास में भी बाधक का काम करता है। इसी प्रकार अस्वास्थ्य या बीमारी का बारबार सामना करने से भी समुदाय या समूह का जीवन स्तर बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। गरीबी, भीड़, स्वच्छ पेयजल की कमी, उचित स्वच्छता का अभाव, निजी स्वच्छता के प्रति लापरवाही, पौश्टिक भोजन का अभाव, प्रदूशित-वातावरण का खाद्य पदार्थों आदि का भी हमारे स्वास्थ्य को खराब करने में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। पर्यावरण का प्रदूशण और ‘क्लाइमेट चेंज’ भी महत्वपूर्ण कारक के रूप में उभर कर सामने आये हैं। इनमें से कई बातें व्यक्ति के नियन्त्रण से परे की बातें हैं जिनको सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक स्तर पर ही सम्बोधित किया जा सकता है। संगठित प्रयास और वैज्ञानिक तकनीक के जनपक्षीय इस्तेमाल के जरिए हम इन कारकों को बड़े पैमाने पर कम कर सकते हैं। इसके साथ ही लिंग समानता, सभी के लिए स्तरीय गुणवता पूर्ण षिक्षा, सामाजिक न्याय तथा वर्तमान बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की सभी के लिए उपलब्धता आदि की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। एक विषेश पहलू और है कि स्वास्थ्य के मुद्दे को बाजार व्यवस्था में मुनाफा कमाने के क्षेत्र के रुप में देखा जाता है।
हमें यह समझना बहुत आवष्यक है कि स्वास्थ्य का मामला केवल बीमारी का न होना ही नहीं है। स्वास्थ्य की परिभाशा ‘ बीमारी का इलाज करके या करवाके बीमारी मुक्त होना ही स्वस्थ होना है’ इस संकुचित विचार से परे है। दूसरे ढंग से कहा जाए तो केवल डाक्टरों द्वारा दी गई दवाईयां लेकर ही हम स्वस्थ नहीं हो सकते। 1836 के दौर में ब्रिटेन में टी बी की बीमारी बहुत कम हो गई थी। तब तक टी बी की दवाईयां बाजार में नहीं आई थी। कारण साफ था कि इस दौर में ब्रिटेन ने विकास के नये आयाम हासिल किए थे। जिसके चलते श्ैवबपंस क्मजमतउपदंदजे व िीमंसजीश् के स्तर पर काफी सुधार हुआ और टी बी की बीमारी के जीवाणुओं के जिन्दा रहने के स्थल नहीं बचे तथा षारीरिक स्तर अच्छी खुराक के चलते बीमारी से लड़ने की क्षमता भी बढ़ी। इसलिए व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्वास्थ्य को ‘ केवल बीमारी का न होना ही नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण षारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तंदरुस्ती ’ के रुप में ही परिभाशित किया जाता है। सही मायने में ‘स्वास्थ्य’ पाना है तो स्वास्थ्य के सामाजिक घटकों का पूर्ण विकास करना और उनका संतुलन बनाए रखना बहुत जरुरी है क्योंकि इन घटकों का विकास किए बिना स्वस्थ समाज का सपना हासिल नहीं किया जा सकता। और यह सभी अलग-अलग समय पर अनेक कारणों से प्रभावित रहते हैं।
स्वास्थ्य को जैसे पहले कहा जा चुका है- षिक्षा, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण, कृशि, परिवहन, ग्रामीण और षहरी विकास- सम्बन्धित जैसे अनेक घटकों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिये। असल में देखा जाए तो सभी क्षेत्र स्वास्थ्य विकास से जुड़े हुए हैं। ऐसा कोई भी विकासात्मक घटक नहीं है जो स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ न हो। इस संदर्भ में , स्वास्थ्य को सामाजिक आर्थिक विकास के उद्येष्य के रुप में ही नहीं बल्कि माध्यम के रुप में भी देखा जाना बहुत जरुरी है। इसलिए व्यक्तिगत और समुदाय के स्तर पर स्वास्थ्य के प्रति सजगता के साथ जागरुक रहने से तथा जीवन षैली में वैज्ञानिक दृश्टिकोण का समावेष करने से समुदाय के जीवन स्तर में अप्रत्यक्ष वृद्धि होती है। बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से सम्बन्धित विज्ञान के सिद्धान्त और कार्यान्वयन को हम स्वास्थ्य की विचार की गई मूल संकल्पना के कारण अच्छी तरह समझ सकते हें। यह विज्ञान आज रोकथाम और सामाजिक स्वास्थ्य , समुदाय का स्वास्थ्य या सार्वजनिक स्वास्थ्य के रुप में अभिव्यक्त किया जा सकता है।
स्वास्थ्य सभी नागरिकों के लिए एक मौलिक एवं सार्वभौमिक अधिकार है। इस अधिकार के साथ-साथ स्वास्थ्य के सभी निर्णायक घटकों व अन्य कारकों जैसे - अच्छा भोजन, सुरक्षित व साफ पीने का पानी, बेहतर साफ-सफाई, षिक्षा, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, लिंग व वर्ग आधारित असमानता का निवारण, स्वच्छ पर्यावरण एवं परिवहन व्यवस्था आदि की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। समेकित स्वास्थ्य सेवाएं भी स्वास्थ्य के अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसकी पूर्ति हेतु सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर संसाधन-युक्त बनाने, उसे विस्तारित करने तथा जवाबदेह बनाने की घोर आवष्यकता है जिससे कि लोगों को उच्च गुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त प्रदान की जा सकें।
प्रदेश के जिलों गुड़गांव, रोहतक, हिसार, भिवानी, फरीदाबाद और सोनीपत में विषेश आर्थिक पैकेज के तहत 1500 करोड़ रुपये की परियोजनांए षुरु की गई हैं जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए इन जिलों के अस्पतालों को अपग्रेड करके सुपर स्पैषिलिटी अस्पताल बनाये जा रहे हैं। बहुत ही हाईटेक उपकरण पिछले सालों में खरीदे गए जो बहुत कम जगह और कमतर स्तर पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं। यहां पर उपयुक्त स्टाफ की कमी को पूरा करते हुए इसके लिए सम्बंधित विशेषज्ञों, डॉक्टरों, नर्सों व पैरामैडिकल स्टाफ को उपयुक्त ट्रेनिंग देने की भी आवश्यकता है। निषुल्क सर्जीकल पैकेज योजना के तहत 2009 से बी. पी. एल परिवारों एवं गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले व अधिसूचित झोंपड़ पट्टियों एवं बस्तियों के निवासियों के सभी आपरेषन मुफत करने की निषुल्क सर्जरी की सेवा ढ़ंग से लागू नहीं की जा रही। इंदिरा बाल स्वास्थ्य योजना 26 जनवरी 2010 से लागू की गई। जिसके तहत अठारह वर्श तक की आयु के बच्चों के स्वास्थ्य कार्ड बना कर सरकारी अस्पतालों में उनके स्वास्थ्य की निषुल्क जांच व ईलाज किया जाता है। बहुत से लोगों को इन सब योजनाओं से वाकिफ ही नहीं करवाया गया। प्रदेष में 2005 तक एम. बी.बी.एस.की कुल सीटें 350 थी जो वर्श 2013 में 850 हो गई। मगर इन विद्यार्थियों की गुणवता पूर्ण मैडीकल षिक्षा के लिए जरुरी फैकल्टी के साथ-साथ की इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी भारी कमी है जिसे पूरा करना बड़ी चुनौती है। इस समय सरकारी ढांचे में स्वास्थ्य सेवाओं में जरूरत के हिसाब से करीब 40 प्रतिषत सब सेंटर, पीएचसी एवं सीएचसी की कमी, 40 प्रतिषत हेल्थ वर्कर व असिसटेंट की कमी एवं करीब 95 प्रतिषत विषेशज्ञ चिकित्सकों की कमी है। सब-सेंटर व पीएचसी लेवल पर भी करीब 40 प्रतिषत स्टाफ की कमी है। स्वास्थ्य सुविधाएं मध्यम दर्जे के कार्यकर्ताओं (नर्स, ए. एन. एम., और पैरा मैडिकल कर्मी) ये कार्यकर्ता ही लोगों की समस्याओं के सम्पर्क में आते हैं। परन्तु खुद के स्वास्थ्य के क्षेत्र के काम के विष्लेशण में इनकी भागीदारी न के बराबर है। पहली बात तो यह कि निचले दर्जे मंे होने के कारण इनसे सिर्फ आदेषों के पालन की अपेक्षा की जाती है, निर्णयों में इनकी कोई भागीदारी नहीं होती। दूसरी बात यह है कि इनकी ट्रेनिंग भी इस तरह की नहीं होती कि ये अपने व्यवहारिक अनुभवों से अवधारणा या विचार विकसित कर सकें या उन्हें व्यवहार में बदल सकें।
जानकारी अपने आप बदलाव नहीं लाती परन्तु वह बदलाव की एक पूर्व षर्त जरूर है। जन स्वास्थ्य अभियान की यह कोषिष है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रहे बदलाव व विकास के ताजा घटनाक्रम को लेकर लोगों तक पहुंचा जाए ताकि स्वास्थ्य सेवाओं तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में जनपक्षीय आधार को मजबूत किया जा सके।
मौजूदा स्वास्थ्य परिस्थिति को पलटने तथा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां एवं स्वास्थ्य सेवाएं लागू करते हुए सबके लिए स्वास्थ्य के लिए निम्नवत प्रस्ताव रखे जाते हैंः-
1. लोक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाना जिसके तहत स्थानीय खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जाए।
2. राश्ट्रीय षिषु स्वास्थ्य एवं पोशण नीति बनाई जाए जिसके अर्न्तगत आई.सी.डी.एस. का सार्वभौमिकीकरण हो व तीन साल तक के बच्चों को पूर्ण रुप से षामिल करने हेतु सेवाओं तथा कार्यदल में विस्तार हो।
3. समस्त गावों व मोहल्लों में षुद्ध एवं सुरक्षित पेयजल की सार्वभौमिक उपलब्धता हो तथा हर गांव व मोहल्ले में स्वच्छ षौचालयों तक सार्वभौमिक पहुंच हो।
4. स्वास्थ्य से सम्बन्धित लैंगिक पहलूओं को सम्बोधित किया जाना आवष्यक है -इसके अंर्तगत समस्त महिलाओं तथा समलैंगिक नागरिकों को समेकित , आसानी से उपलब्ध उच्चगुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच व इसकी उपलब्धता की गारण्टी दी जाए जो कि केवल मातृत्व सवास्थ्य सेवाओं तक ही सीमित न हो।
5. उन समस्त कानून ,नीतियों तथा आचरणों को समाप्त किया जाए जो कि महिलाओं के प्रजनन, यौनिक तथा जनतांन्त्रिक अधिकारों का हनन करता है। उन विभिन्न प्रजनन प्रोद्योगिकियांे को जो कि महिलाओं के लिए हानिकारक हो सकती हैं , नियंत्रित किया जाए।
6. लिंग आधारित उत्पीड़न को एक लोक स्वास्थ्य समस्या माना जाए तथा इसके तहत षारीरिक एवम मानसिक रुप से पीड़ितों को तमाम आवष्यक स्वास्थ्य जांच, दस्तावेजिकरण, रेफरल का अधिकार दिया जाए तथा समन्वित नैतिक चिकित्सीय कानूनी प्रक्रियाओं के लिए भी उन्हें अधिकृत बनाया जाए।
7. स्वास्थ्य सेवाओं को किषोर किषोरियों के लिए मित्ऱतापूर्ण बनाया जाए तथा इस तबके को भी समेकित, उच्चगुणवता पूर्ण , आासनी से पहुंचने लायक स्वास्थ्य सेवाएं सुनिष्चित हो जो कि उनके विषेश प्रजनन तथा यौनिक स्वास्थ्य आवष्यकताओं को पूरा करती हों।
8. समस्त जाति आधारित भेदभाव तुरंत समाप्त किया जाए- जाति आधारित भेदभावों को, जो कि बुरे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है , पूर्णरुप से समाप्त करने हेतू त्वरित एवं प्रभावी कदम उठाये जाएं। मानव द्वारा मैला ढोने वाले समस्त मैनुअल कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबन्धित हों। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इस भेदभाव से पीड़ित तबकों को प्राथमिकता दी जाए । इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं का पुर्नगठन किया जाए।
9. स्वास्थ्य सेवाओं के अधिकार को संवैधानिक बनाया जाए- देष में और प्रदेष में स्वास्थ्य के अधिकार का कानून लागू किया जाए जो कि समेकित, उच्चगुणवतापूर्ण, आसानी से उपलब्ध सेवाओं को सुनिष्चित करता हो तथा प्राथमिक, द्वितीय एवं तृतीय स्तरीय सेवायें आवष्यकतानुसार सबको उपलब्ध करता हो। सेवा प्रदाता को सेवाओं को उपलब्ध नहीं कराने या मना करने पर ;चाहे गुणवता,पहुंच या खर्च से जुड़े हुए कारणों से भी हो उसे कानूनी अपराध घोशित किया जाए।
10. स्वास्थ्य के उपर सार्वजनिक व्यय को बढ़ाया जाए-सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 3.6 प्रतिषत को स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित किया जाए जो कि 2014 की स्थिति में प्रति व्यक्ति 3000 रुपये बनता है।
11. इस व्यय में कम से कम एक तिहाई केन्द्रिय सरकार से राज्यों को उपलब्ध हो। हरियाणा सरकार का प्रति व्यक्ति खर्च 1786 के लगभग है। एक मध्य सीमा के तहत स्वास्थ्य के उपर किये जाने वाले समस्त सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 5 प्रतिषत तक बढ़ाया जाए।
12. प्रत्येक जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता एवं गुणवता सुनिष्चित की जाए-समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में सेवाओं की गुणवता सुनिष्चित की जाए जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावी , सुरक्षित , गैर षोशणीय बनायें तथा लोगों को सम्मानपूर्वक सेवायें उपलब्ध हों। मरीजों के अधिकारों का आदर हो एवं मरीजों की आराम तथा संतुश्टि पर ध्यान दिया जाता हो। गुणवता का मानक केवल भौतिक या चिकित्सकीय संरचना पर आधारित न हो जो कि प्रायः बड़े कार्पोरेट अस्पतालों या मैडीकल टूरिज्म के लोग को बढ़ावा देते हैं तथा यह कम खर्च में सही एवं प्रभावी सेवाओं के प्रदाय को बढ़ावा नहीं देता है। समस्त सरकारी स्वास्थ्य संस्थान अपने स्तर पर गारन्टी की गई सभी स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान करने हेतू बाध्य हों।
13. समस्त लोक स्वास्थ्य सुविधाओं को किसी भी प्रकार के उपभोग्ता षुल्क से मुक्त किया जाए तथा सेवाएं षासन द्वारा संचालित सुविधाओं के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएं न कि निजी सार्वजनिक सहयोग (पीपीपी)व्यवस्था से।
14. स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण बंद हो- सक्रीय निजीकरण के तरीके ; जैसे सार्वजनिक संसाधन या पूंजी को निजी संस्थानों को वाणिज्यिक तौर पर हस्तान्तरण करना ,पूर्ण रुप से बंद करने हेतु आवष्यक कदम उठाये जाएं। निश्क्रिय रुप से हो रहे निजीकरण को रोकने के लिए लोक सुविधाओं में निवेष बढ़ाया जाए।
15. सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों से प्रदत सेवाएं केवल प्रजनन स्वास्थ्य, टीकाकरण एवं अन्य चुनिन्दा बीमारियों के नियन्त्रण पर सीमित न होकर समेकित स्वास्थ्य सेवाओं पर आधारित हों।
16. स्वास्थ्य कार्यदल का बेहतर प्रषिक्षण होः स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत सभी कर्मचारियों की बेहतरीन षिक्षा एवं प्रषिक्षण के लिए सार्वजनिक निवेष को बढ़ाया जाए।
17. सरकार द्वारा चलाई जा रही सभी षिक्षण संस्थानों द्वारा उन जरुरत मंद इलाकों से चिकित्सकों, नर्सों तथा स्वास्थ्य कर्मचारियों को आवष्यक संख्या में चयनित कर षिक्षा/प्रषिक्षण दिया जा रहा है यह सुनिष्चित किया जाए।
18. प्रषिक्षण नीति में बदलाव लाया जाए जिससे कि स्वास्थ्य कार्यदल द्वारा स्थानीय आवष्यकताओं को पूरा करने हेतू समस्त जरुरी दक्षताएं दी जा सकें।
19. चिकित्सा तथा संबन्धित क्षेत्र के उच्च षिक्षा व्यवस्था के वाणिज्यिकरण बंद हों तथा निजी षिक्षण संस्थाओं के व्यवस्थित नियन्त्रण हेतू प्रभावी एवं पारदर्षी तन्त्र लागू किया जाए।
20. स्वास्थ्य प्रणाली में समस्त सेवाओं के लिए आवष्यक सभी पद एवं स्थान प्रर्याप्त रुप से सृजित किये जाएं एवं इन पदों को समय समय पर भरा जाये। ठेके पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमित किया जाए तथा आषाओं , बहुउद्येषीय कार्यकर्ताओं तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों का प्रयाप्त रुप से क्षमता निर्माण किया जाए एवं उन्हें अपने कार्य के लिए सही मानदेय दिया जाए व उपयुक्त कार्य करने का माहौल प्रदान किया जाए।
21. कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए तथा महिला कर्मचारियों के लिए विषेश व्यवस्था बनाई जाए।
22. हर स्तर के लिए ऐसे स्वास्थ्य कैडर का गठन हो जिसमें प्रयाप्त संख्या में चिकित्सक, नर्सें तथा स्वास्थ्यर्किर्मयों का दल सम्मिलित हो जिसको प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में, लोक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में एवं एक दल के रुप में बेहतर कार्य करने में प्रषिक्षण प्राप्त हो।
23. सभी आवष्यक दवाओं का एवं जांच सुविधाओं की मुफ्त एवं गुणवतापूर्ण उपलब्धता तामिलनाडु, केरल एवं राजस्थान राज्य के मॉडल अनुसार सुनिष्चित हो।
24. स्वायत, पारदर्षी एवं आवष्यकता आधारित दवा एवं अन्य सामग्रियों के लिए खरीद एवं वितरण प्रणाली गठित एवं लागू हो।
25. समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में जेनेरिक दवाओं के प्रिस्क्रिप्षन एवं उपयोग को अनिवार्य करार दिया जाये।
26. प्रत्येक स्तर पर सामुदायिक सहभागिता, सहभागी योजना निर्माण एवं समुदाय आधारित निगरानी को बढ़ावा दिया जाये। स्वास्थ्य सेवायें जनता के प्रति जवाबदेह हों। इसके लिए समुदाय आधारित निगरानी एवं योजना निर्माण प्रक्रिया को समस्त लोक स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं सेवाओं का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाये जिससे कि सेवा प्रदान में उतरदायित्व एवं पारदर्षिता बढे।
27. षिकायत निवारण की प्रक्रियाओं को सुचारु रुप से चलाने के लिए संस्थागत व्यवस्थायें बनाई जायें जिसके लिए प्रयाप्त धन राषि के साथ साथ आवष्यक प्रबंधन स्वायतता भी प्राप्त हो।
28. निजी अस्पतालों द्वारा किये जाने वाले षोशण को समाप्त किया जाये।
29. राश्ट्रीय क्लिनिकल एस्टेब्लिष्मैंट एक्ट के अंर्तगत मरीजों के अधिकार हर संस्थाओं में सुरक्षित हों । विभिन्न सेवाओं के दाम नियंत्रित हों। प्रिस्क्रिप्षन, जांच तथा रेफरल के पीछे चलने वाली घूसखोरी को बंद किया जाए, एवं इसके लिए षासन द्वारा पर्यवेक्षित लेकिन स्वतंत्र षिकायत निवारण व्यवस्था लागू की जाये। मानक निर्माण का प्रकार ऐसा हो जिसमें कारपोरेट हित का बढ़ावा न हो सके। इन तमाम व्यवस्थाओं पर यह भी विषेश ध्यान हो कि नैतिक एवं गैर वाणिज्यिक सेवा प्रदान करने वाले निजी प्रदाताओं को संपमूर्ण परिरक्षा मिल रहा है।
30. समस्त सार्वजनिक बीमा योजनाओं को समय सीमा के अर्न्तगत लोक सेवा व्यवस्था में विलीन किया जायेः आर एस बी वाई जैसे तथा अन्य राज्य संचालित बीमाएं कर-आधारित सार्वजनिक वितीय व्यव्स्था से पोशित लोक स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में समय सीमा के अंर्तगत विलीन हो । इन बीमा योजनाओं के अंर्तगत प्राप्त सभी सेवायें लोक स्वास्थ्य प्रणाली में भी सम्मिलित हों एवं इसके लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को लोक स्वास्थ्य प्रणाली में पूर्ण रुप से षामिल किया जाये जिससे कि उनके लिए समेकित स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो।
31. मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज ‘योजना’, जननी सुरक्षा योजना आदि सभी स्वास्थ्य योजनाओं को ठीक प्रकार से लागू किया जाए। इसके लिए जिला स्तर पर सामाजिक संस्थाओं व जन संगठनों के कार्यकर्ताओं की एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाई जाए जिसकी सिफारिशों पर सम्बंधित विभाग उचित कार्यवाही तुरन्त करे।
32. इंडियन पेटैंट एक्ट के अंर्तगत लोक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए की गई व्यवस्थाओं का दवाईयों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए उपयोग हो तथा ज्यादातर दवाईयों एवं उपकरणों के देषी निर्माण को बढावा मिले।
33. जैव चिकिस्तकीय षोध तथा क्लिनिकल ट्रायलों की सषक्त विनियामक व्यवस्था होः क्लिनिकल ट्रायलों के नैतिक संचालन हेतु स्पश्ट रुपरेखा तैयार एवं लागू हो जिससे समस्त हितग्राहियों के सषक्त विनियम के लिए व्यवस्थायें बंधित हों चाहे वे वितीय प्रदाता हंो , षोध संस्थाएं हों या नैतिक समितियां हों। सी.डी.एस.सी.ओ. तथा आई.सी. एम. आर. द्वारा समस्त क्लिनिकल ट्रायलों की तथा ट्रायल स्थानों की सषक्त निगरानी की जाये तथा ट्रायल संस्थानों के आंवटन के दौरान वहां पर आवष्यक सभी आपातकालीन स्थिति के निपटारे हेतु व्यवस्थायें सुनिष्चित हों । क्लिनिकल ट्रायलों में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को प्रयाप्त क्षतिपूर्ण राषि उपलब्ध कराने हेतू एवं उनको हो सकने वाले समस्त बुरे प्रभाव निपटारे के लिए प्रयाप्त व्यवस्था के साथ निर्देष विकसित और लागू हों। क्लिनिकल ट्रायल प्रतिभागियों के लिए उनके अधिकार पत्र विकसित किये जायें जिसकी कानूनी रुप में भी वैधता हो।
34. सभी मानसिक रुप से पीड़ित मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं एवं रक्षा सुनिष्चित की जायेंः जिला स्तरीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को राश्ट्रीय स्वास्थ्य मिषन के अंर्तगत षामिल किया जाये। राश्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति पर अमल हो तथा मानसिक स्वास्थ्य कानून पास किया जाये।
35. कीटनाशक दवाओं के अन्धाधुन्ध इस्तेमाल के चलते हर क्षेत्र, मानवीय, पशु व खेती में इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मानवीय स्तर पर इन कीटनाशकों की मात्रा पता लगाने के टैस्टों की सुविधा इस प्रदेश के इकलौते पीजीआईएमएस में भी नहीं है। कई तरह की बीमारियां इसके चलते बढ़ रही हैं या पैदा हो रही हैं। यह सुविधा तत्काल मुहैया करवाई जाए।
36. सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर - एक सर्जन, एक फिजिसियन, एक शिशु रोग विशेषज्ञ व एक महिला रोग विशेषज्ञ के प्रावधान के मानक केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा तय किये गए हैं। इसके साथ यदि मरीज बेहोशी का विशेषज्ञ नहीं है तो सर्जन और गायनकॉलोजिस्ट तो अपंग हो जाते हैं। इसलिए इन पांचों विशेषज्ञों की नियुक्तियां प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों मंे की जाए।
37. राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत ’दाल रोटी योजना‘ को सही ढं़ग से सबके लिए लागू किया जाए।
38. कुपोषण नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे तीन के अनुसार हरियाणा में बढ़ा है। इसके लिए कारगर कदम उठाये जायें। इसी प्रकार गर्भवती महिलाओं में नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे तीन के अनुसार नैषनल फैमिली हैल्थ सर्वे दो के मुकाबले 10 प्रतिशत खून की कमी बढ़ी है। इसके साथ-साथ लड़कियों में किये गये सरकारी सर्वे में भी खून की कमी का प्रतिशत काफी पाया गया है। उचित कदम उठाये जाने की जरूरत है।
39. पी एन डी टी एक्ट के तहत उचित कार्यवाही की जाएं।