Monday 2 January 2017

हमारी सेहत का संकट

हमारी सेहत का संकट
यदि गम्भीरता से विचार किया जाये तो भारतवर्प की स्वास्थ्य सेवाओं की हालत का मसला काफी चिन्ता में डालने वाला है।भारतवर्प का सरकारी स्वास्थ्य व प्राईवेट स्वास्थ्य ढांचा बहोत व्यापक है जिसका 2002 में खर्च लगभग 108,732 करोड़ रुपये था- 24 बिलियन डालर जोकि भारत के जी डी पी का 4 प्रतिषत बैठता है।इस ढांचे के दो टायर हैं- एक सरकारी और दूसरा प्राईवेट। एक एन जी ओ द्वारा विकसित क्षेत्र भी उभर कर आया है।इसके अलावा तीसरी दुनिया के देषों की तरह हिन्दुस्तान का लक्ष्य सबके लिये अच्छा स्वास्थ्य मुहैया करवाने का है।विडम्बना ही है कि हमारा स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा उपर से भारी भरकम ,जरुरत से कम संसाधनों वाला, अति केन्द्रित, उच्च तकनीक वाला, ज्यादा ब्यूरोक्रेटाइज्ड ,कम लचीलेपन वाला और घटिया प्रबन्धन वाला ढांचा है।सरकारी अस्पताल और हैल्थ सैंटर जो पूरे भारतवर्प में फैले हुए हैं जनता को मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने में नाकामयाब रहे हैं जिसके चलते पिछले पन्दरा सालों में बहुत अधिक प्राईवेट अस्पताल खासकर कारपोरेट क्षेत्र में खुलते जा रहे हैं । उपर से सरकारी अस्पतालों में‘यूजर चार्जिज’ लगाकर हालात को और अधिक जटिल बना दिया गया है।हालांकि आल इडिया इन्स्टीच्यूट ऑॅफ मैडीकल साईंसिज,दिल्ली ने यूजर चार्जिज वापिस ले लिये हैं। लगभग 20,000 प्राईवेट अस्पताल भारत में मौजूद हैं।पिछले दस सालों में 70 प्रतिषत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। आज स्वास्थ्य क्षेत्र ने एक बड़े व्यापार की षक्लो सूरत अख्तियार करली है मगर इसकी निगरानी के लिये कोई कानून नहीं है।बीतते समय के साथ स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा परम्परागत,संस्थाओं से बाहर प्रषिक्षित,परिवार पर आधारित छोटे उत्पादक कर्ता के स्वरुप् से दूर होता चला गया।आज के समय में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वाले लालची, षातिर,संस्थाओं में प्रषिक्षित और वस्तुओं के लिए  बाजार व्यवस्था पर निर्भर करने वाले हैं। इस क्षेत्र की सेवाओं ने पूरी तरह से कारपोरेट और संस्थागत रुप धारण कर लिया है। नई और विकसित चिकित्सा तकनीक जिसको मुहैया करवाने में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा अक्षम है,ने इस प्रकार के हालात पैदा कर दिये हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं का मूलभूत चरित्र ही बदल गया है। हमारे सरकारी स्वास्थ्य ढांचे के इतना व्यापक होते हुए भी काफी कमजोर और नाकाफी होने के बहोत से कारण हैं-उपर से नीचे तक भ्रप्टाचार,गल्त षासन या षासन में कमजोरी,प्राथमिक सेवाओं की उपेक्षा, नेतिकता का हास और कानूनों की अवहेलना,परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों के प्रति पूर्वाग्रह,मानव संसाधन विकास की तरफ बहुत ही कम ध्यान देना,मूलभूत रिसर्च की अनदेखी,इनटेग्रेटिड स्वास्थ्य सेवाएं जिनमें संक्रामक बीमारियों का रोक थाम भी षामिल थी का धीरे धीरे हास होना,लम्बरुप् से तकनीक केन्द्रित विषेप पैकेज आधारित स्वरुप को प्राथमिकता आदि आदि।टी बी, अन्धता की रोकथाम, प्रजनन सम्बन्धी स्वास्थ्य तथा एच आई वी/एड्स के लिये प्रचारित विषेप पैकेज की प्रक्रिया ने इनटेग्रेटिड स्वास्थ्य सुविधाओं की परिकल्पना पर कड़ा हमला किया है तथा इसे विस्थापित कर दिया है। गड़बड़ वाली अस्पप्ट नीतियों व योजनाओं, वितिय संसाधनों की कमी,पारदर्षिता व जवाब देही की कमी, राजनैतिक इच्छाषक्ति की कमी,प्रषासनिक स्तर का भ्रप्टाचार तथा गड़बड़ियां व चालाकियां, सरकार का पत्थर दिल होना इस फहरिस्त को एक हद तक पूरा करते हैं। जब भी आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक ढांचों में बदलाव आयें हैं उन्होंने स्वास्थ्य के क्षेत्र को जरुर प्रभावित किया है।भ्रप्टाचार भारत में सभी सीमाएं लांघ चुका है या यूं कहिये कि यह जीवन के हर पक्ष को संचालित कर रहा है। यह हमारे सिस्टम का अभिन्न अंग बन चुका है। मगर योजनाबद्ध ढंग से इसके खिलाफ संघर्प करके इस पर लगाम तो अवष्य ही कसी जा सकती है। सरकारी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं पर किया गया बड़े पैमाने का निवेष गल्त प्राथमिकताओं व लचर नीतियों के चलते व्यर्थ हो रहा है।हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र का संकट मूलभूत सुधारों की मांग करता है। यह जटिल जगह है। यहां से गल्त योजनाएं भी बनती हैं और सही जनपक्षीय योजनाएं भी बन सकती हैं। एक तरीका है कि सरकारी क्षे़त्र के स्वास्थ्य ढांचे में ज्यादा पारदर्षिता और जवाब देही सुनिष्चित की जाए,भ्रप्टाचार पर अंकुष लगाया जाये, कार्य्ररत डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की समस्याओं पर सकारात्मक रुख अपनाया जाये व प्राईवेट क्षेत्र पर लगाम कसी जाये। दूसरा तरीका है कि प्राईवेट पब्लिक पारर्टनरसिप के नाम पर बचे खुचे सरकारी ढांचे को भी प्राईवेट हाथों में सौंप दिया जाये।हमारी नीतियां इस क्षेत्र से पल्ला झाड़ लेने की तरफ जा रही प्रतीत होती हैं।मगर कुछ प्रान्तों में इस पहली प्रकार के तरीकों से जनपक्षीय स्वास्थ्य सेवाएं विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। तमिलनाडू का ‘मितातिन’ 100 खंडों का कार्यक्रम काफी चर्चा में रहा है। उड़ीसा, केरल,तमिलनाडू,कर्नाटक आदि में सकारात्मक प्रयत्नों की हवा चली है। वास्तव में यह एक यक्ष प्रष्न है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के ढा़चे का जन पक्षीय इस्तेमाल कैसे बढ़े तथा तथा क्वालिटी स्वास्थ्य सेवाएं आम मरीज को भी मिल सकें। काष! इस प्रकार के प्रयास उतर भारत में भी किये जा सकें। व्यापक स्तर के प्रयासों की आवष्यकता है ताकि स्वास्थ्य एक बाजार में खरीदी जाने वाली कोमोडिटी के बजाय हर हिन्दुस्तानी के मौलिक अधिकार के रुप में स्थापित हो सके।। यदि हर बच्चे, हर औरत, हर दलित, हर युवा लड़के लड़की तथा पूरे समाज को अच्छा स्वास्थ्य देना है तो मूलभूत न कि महज दिखावे वाले सुधारों की स्वास्थ्य क्षेत्र को आवष्यकता है। यह कैसे सम्भव हो। हां यह तब संभव है जब समाज के हर तबके खासकर वंचित तबके एक मंच से अच्छी पढ़ाई, अच्छी सेहत, अच्छी नौकरी, सामाजिक सुरक्षा व षान्ति के लिए, एक जुट होकर संघर्प करेंगे, अपनी आवाज उठायेंगे। पंचायत से लेकर ब्लाक स्तर तक, जिला , राज्य और फिर एक नवजागरण आन्दोलन की जरुरत है तथा इस नवजागरण के लिए काम करने वाली संस्थओं, आन्दोलनों तथा व्यक्तियों का एक व्यापक नेटवर्क उभर कर आये। हरियाणा में इसकी षुरुआत हुई है। एक निरन्तरता के साथ बिना निराष हुए लगातार ईमानदारी से जतन करना समय की मांग है। अच्छी सेहत भी तभी संभव है।

रणबीर सिंह दहिया