Sunday, 8 May 2016

52715.

As per MCI's records and report there are 412 medical colleges in India for MBBS course and Total Seats : 52715.
This analysis excludes AIIMS About includes JIPMER.  This also includes all government medical colleges as well as private. Some medical colleges have requested MCI to upgrade their number of seats. Final approval by MCI is awaited and will be known by September 2016.
This answer is per MCI list of colleges and seats. Information last updated on 28th April, 2016.

MBBS

THE MINISTER OF HEALTH AND FAMILY WELFARE (SHRI GHULAM NABI AZAD)
(a) to (d) A Statement is laid on the Table of the House.
STATEMENT REFERRED TO IN REPLY TO LOK SABHA STARRED QUESTION NO. 37 FOR 23rd NOVEMBER, 2012
(a) At present, there are 362 medical colleges in the country, out of which 168 are in Government sector and 194 in private sector. The intake capacity for MBBS course of these medical colleges is 45629 annually and 22503 for postgraduate courses. The state-wise details of MBBS seats and Post Graduate (PG) seats are at Annexure-I & II.

2013

STATE/UT WISE DETAILS OF GOVERNMENT MEDICAL COLLEGES & MBBS SEATS

Sl. No.
State
No. of College
Seats
1
Andhra Pradesh
15
2450
2
Assam
5
626
3
Bihar
9
950
4
Chandigarh
1
100
5
Chhattisgarh
4
450
6
Delhi
5
800
7
Goa
1
150
8
Gujarat
9
1530
9
Haryana
3
400
10
Himachal Pradesh
2
200
11
Jammu & Kashmir
3
400
12
Jharkhand
3
350
13
Karnataka
12
1500
14
Kerala
7
1100
15
Madhya Pradesh
6
800
16
Maharashtra
19
2600
17
Manipur
2
200
18
Meghalaya
1
50
19
Odisha
3
550
20
Puducherry
1
150
21
Punjab
3
400
22
Rajasthan
6
1200
23
Sikkim
0
0
24
Tamil Nadu
21
2715
25
Tripura
2
200
26
Uttar Pradesh
14
1849
27
Uttarakhand
2
200
28
West Bengal
14
2050
29
AIIMS*
7
677
30
JIPMER*
1
127
Total
181
24774


Annexure Source: http://164.100.47.132/Annexture/lsq15/15/au2845.htm

अब डॉक्‍टरों ने पैदा की मोदी सरकार के लिए नई मुसीबत?

आबादी के हिसाब से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश भारत में स्वास्थ्य सेवाएं भयावह रूप से लचर हैं और यह लगभग अराजकता की स्थिति में पहुंच चुकी है। भारत उन देशों में अग्रणीय है जिन्होंने अपने सावर्जनिक स्वास्थ्य का तेजी से निजीकरण किया है और सेहत पर सबसे कम खर्च करने वाले देशो की सूची में बहुत ऊपर है।
doctor
इधर, दूसरी तरफ ‘‘विश्व स्वास्थ्य संगठन” के मानकों के अनुसार प्रति 1000 आबादी पर एक डॉक्टर होने चाहिए, लेकिन भारत इस अनुपात को हासिल करने में बहुत पीछे है और यह अनुपात 2.5 के मुकाबले मात्र 0.65 ही है। पिछले 10 सालों में यह कमी तीन गुना तक बढ़ी है।  केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्ढा ने फरवरी 2015 को राज्यसभा में बताया था कि देश भर में 14 लाख डॉक्टरों की कमी है और प्रतिवर्ष लगभग 5500 डॉक्टर ही तैयार हो पाते हैं।’’ विशेषज्ञ डॉक्टरों के मामले में तो स्थिति और भी बदतर है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार सर्जरी, स्त्री रोग और शिशु रोग जैसे चिकित्सा के बुनियादी क्षेत्रों में 50 फीसदी डॉक्टरों की कमी है। ग्रामीण इलाकों में तो यह आंकड़ा 82 फीसदी तक पहुंच जाता है। यानी कुल मिलाकर हमारा देश ही बहुत बुनियादी क्षेत्रों में भी डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। यह स्थिति एक चेतावनी की तरह है।
शायद इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने अगस्त 2015 में यह फैसला लिया था कि वह विदेशों में पढ़ाई करने वाले डाक्टरों को 'नो ऑब्लिगेशन टू रिटर्न टू इंडिया (एनओआरआई)' सर्टिफिकेट जारी नहीं करेगी, जिससे वो हमेशा के लिए विदेशों में रह सकते थे।
इसके बाद महाराष्ट्र के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने सरकार के इस फैसले को मानवीय अधिकार और जीने के अधिकार का उल्लंघन बताकर हाईकोर्ट में फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। एसोसिएशन द्वारा दायर की गई इसी याचिका के जवाब में स्वास्थ मंत्रालय हलफनामा दायर कर कहा है कि 'देश खुद डॉक्टरों की भारी कमी का सामना कर रहा है। ऐसे में सरकार से उम्मीद नहीं की जा सकती है कि डॉक्टरों को विदेश में बसने की अनुमति दे और यह सर्टिफाई करेगी कि देश को उनकी सेवा की जरूरत नहीं है।
Doctors Seek Higher Fees From Health Insurers
भू-मंडलीकरण के बाद विदेश जाकर पढ़ने वाले भारतीयों की तादाद भी बढ़ी है। चीन के बाद भारत से ही सबसे ज्यादा लोग पढ़ने के लिए विदेश जाते हैं। एसोचैम के अनुसार हर साल करीब चार लाख से ज्यादा भारतीय विदेशों में पढ़ाई के लिए जा रहे हैं। उनका मकसद केवलविदेशों से डिग्री लेकर लेना ही नहीं, बल्कि डिग्री मिलने के बाद उनकी प्राथमिकता दुनिया के किसी भी हिस्से में ज्यादा पैकेज और चमकीले कॅरियर की होती है।
सरकार का यह निर्णय देश से प्रतिभा पलायन 2012 में लिए गए नीतिगत फैसले की एक कड़ी हैएक अनुमान के मुताबिक देश के करीब32% इंजीनियर, 28% डॉक्टर और 5% वैज्ञानिक विदेशों में काम कर रहे हैं। भारत दुनिया के प्रमुख देशोंको सबसे अधिक डॉक्टरों की आपूर्ति करता है। इंटरनैशनल माइग्रेशन आऊटलुक (2015)’ के अनुसार विदेशों में कार्यरत भारतीय डॉक्टरों की संख्या साल 2000 में56,000 थी, जो 2010 में 55 प्रतिशत बढ़कर 86,680 हो गई। इनमें से 60 प्रतिशत भारतीय डाक्टर अकेले अमेरिका में ही कार्यरत हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय डॉक्टरों की कमी को देखते हुए अपने इस फैसले से विदेशों में बसने वाले डॉक्टरों पर रोक लगाना चाहती थी, लेकिन डॉक्टरों की कमी का एक मात्र कारण यह नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक देश में इस समय 412 मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें से 45 प्रतिशत सरकारी क्षेत्र में और 55 प्रतिशत निजी क्षेत्र में हैं। हमारे देश के कुल 640 जिलों में से मात्र 193 जिलों में ही मेडिकल कॉलेज हैं और शेष 447 जिलों में चिकित्सा अध्ययन की कोई व्यवस्था ही नहीं है।
इधर, मौजूदा समय में डॉक्टर बनना बहुत महंगा सौदा हो गया है, और एक तरह से यह आम आदमी की पहुंच से बाहर ही हो गया है। सीमित सरकारी कालेजों में एडमीशन पाना एवेरस्ट पर चढ़ने के बराबर हो गया है और प्राइवेट संस्थानों में दाखिले के लिए डोनेशन करोड़ों तक चुकाया गया है, ऐसे में अगर कोई कर्ज लेकर पढ़ाई पूरी कर भी लेता है, तो वह इस पर हुए खर्चे को ब्याज सहित वसूलने की जल्दी में रहता है। यह एक तरह से निजीकरण को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि इस वसूली में उसे दवा कंपनियां पूरी मदद करती हैं, डॉक्टरों को लालच दिया जाता है या उन्हें मजबूर किया जाता है कि कि महंगी और गैर-जरूरी दवाईया और जांच लिखें।
निजी अस्पतालों के क्या सरोकार हैं, उसे पिछले दिनों हुई एक खबर से समझा जा सकता है, घटना बिलासपुर की है, जहां इसी साल मार्च में तीरंदाजी की राष्ट्रीय खिलाड़ी शांति घांघी की मौत के बाद उनका शव एक मशहूर अस्पताल ने इसलिए देने से मना कर दिया था, क्योंकि उनके इलाज में खर्च हुए 2 लाख रुपये का बिल बकाया था। दुर्भाग्य से भारत के नीति निर्माताओं ने स्वास्थ्य सेवाओं को इन्हें मुनाफा पसंदों के हवाले कर दिया है।
हमारे देश में आजादी के बाद के दौर में निजी अस्पताल संख्या के लिहाज से 8 से बढ़कर 93 फीसदी हो गई है, चूंकि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं या अक्षम बना दी गई हैं, इसलिए आज ग्रामीण इलाकों में कम से कम 58 फीसदी और शहरी इलाकों में 68 फीसदी भारतीय निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भर है। आंकड़े बताते हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं पर बढ़ते खर्च की वजह से हर साल 3.9 करोड़ लोग वापस गरीबी में पहुंच जाते हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, फिर भी इसके बजट में कटौती की जाती है। केंद्र सरकार द्वारा अपने मौजूदा बजट में स्वास्थ्य में 20 फीसदी की कटौती की है। जानकार बताते हैं कि इस कटौती से नये डॉक्टरों की नियुक्ति करना और स्वास्थ्य केंद्रों को बेहतर सुविधाओं कराने जैसे कामों पर असर पड़ेगा।
patna-medical
विदेशों में कार्यरत भारतीय मूल के डॉक्टरों को वापस लाना एक अच्छा कदम हो सकता है लेकिन यह कोई हल नहीं है। बुनियादी समस्याओं पर ध्यान रखना होगा और यह देखना होगा कि समस्या की असली जड़ कहां पर है? भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र पर्याप्त और अच्छी चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के मामले में गहरे संकट के दौर से गुजर रहा है।
अभी तक कोई ऐसी सरकार नहीं आई है जिसके प्राथमिकताओं में सावर्जनिक स्वास्थ्य का क्षेत्र हो, आने वाली सरकारों को जरूरत के मुताबिक नए मेडिकल कॉलेजों में सार्वजनिक निवेश करके इनकी संख्या बढ़ाकर नये डॉक्टर तैयार करने वाली व्यवस्था का विस्तार करना होगा। निजी मेडिकल और अस्पतालों को भी किसी ऐसे व्यवस्था के अंतर्गत लाना होगा जिससे उन पर नियंत्रण रखा जा सके।
(इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं , एवं आईबीएन खबर डॉट कॉम इसमें उल्‍लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है। इस लेख को लेकर अथवा इससे असहमति के विचारों का भी आईबीएन खबर डॉट कॉम स्‍वागत करता है । इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है। आप लेख पर अपनी प्रतिक्रिया  blogibnkhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं। ब्‍लॉग पोस्‍ट के साथ अपना संक्षिप्‍त परिचय और फोटो भी भेजें।)
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