सुरक्षित मातृत्व स्वास्थ्य की चुनौतियां : मदर्स डे
आज 10 मई को मदर्स डे के रुप में मनाया जा रहा है। आज बाजार गिफ्टों से भरा पड़ा है। इस दिन के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडि़या ने भी खास तैयारी की है। कहते हैं कि जब महिला बच्चे को जन्म देती है तो वह इतनी पीड़ा से गुजरती है कि एक तरह से उसका पुनः जन्म होता है, लेकिन क्या देश में इन माताओं की स्थिति अच्छी है?
किसी भी महिला की प्रसव के दौरान या अगर गर्भपात हुआ है तो उसके 42 दिनों बाद तक उस महिला की मृत्यु न हुई हो, यही सुरक्षित मातृत्व है। यह हमारा दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश अभी भी पूर्ण सुरक्षित मातृत्व के लक्ष्य को प्राप्त नही कर पाया है। भारत दुनिया के उन 10 देशों में शामिल है, जहाँ दुनिया की 58 प्रतिशत मातृ मृत्यु होती हैं। 2014 में आई संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013 में दुनिया में 2.89 लाख महिलाओं की मृत्यु प्रसव और शिशु जन्म के समय आयी जटिलताओं के कारण हुई है, इन कुल मौतों का 17 प्रतिशत यानी 50 हजार मातृ मृत्यु अकेले भारत में हुई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, विश्व बैक और संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग की इंटर एजेंसी ग्रुप रिपोर्ट 2013 के अनुसार भारत को मातृ मृत्यु दर के ट्रेंड के आधार पर एक सौ अस्सी देशों में एक सौ छब्बीसवें स्थान पर रखा है। रिपोर्ट में भारत में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) को लेकर भी चिंता है। भारत में गर्भधारण के दौरान औसत महिलाओं का वजन केवल सात किलोग्राम बढ़ता है, जबकि सामान्यतया गर्भवती महिला का वजन इस दौरान 9 से 11 किलोग्राम तक बढ़ना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान वजन कम बढ़ने ना केवल गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरे का सूचक है बल्कि मां के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है। मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण देश में महिलाओं का प्रसव पूर्व, प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं का उपलब्धता और उस तक पहुंच का ना हो पाना है। यह मातृ मृत्यु की स्थिति को भयावह बना देती है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांव में निवास करती है। लेकिन विडंबना यह है कि देश में उपलब्ध कुल चिकित्सा सेवाओं का केवल 30 प्रतिशत ही ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध है। देश में स्त्री रोग विशेषज्ञों और चिकित्सकों के 40 प्रतिशत पद खाली हैं और वो भी ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र में। अगर 2011 के ग्रामीण स्वास्थ्य आंकड़ों को देखें तो पाते हैं कि गांवों में 88 फीसदी विशेषज्ञ डाक्टरों तथा 53 फीसदी नर्सो की कमी है। शहरों में 6 डाक्टर प्रति दस हजार जनसंख्या में हैं वही ग्रामीण में यह 3 डाक्टर प्रति दस हजार जनसंख्या में हो जाती है। आजादी के इतने सालों बाद भी महिलाओं को ऐसी सुविधा नहीं मिल पा रही है जहां वह सुरक्षित डिलिवरी करवा सकें। उन्हें पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा मिल सके, कहने को हम 21 वीं सदी में हैं लेकिन आज भी महिलाओं को इंसान के बतौर नही देखा जाता है। महिलाओं के साथ जाति, धर्म, लिंग, रंग के आधार पर भेदभाव और हिंसा अभी भी जारी है। महिलाओं को केवल बच्चा पैदा करने वाला माध्यम ना समझा जाये। उसे भी मातृत्व स्वास्थ्य का अधिकार मिले। मदर्स डे असल मायनों में तब ही सार्थक माना जायेगा जब देश की सभी महिलाओं को न केवल शत प्रतिशत सुरक्षित मातृत्व स्वास्थ्य मिल सके। बल्कि स्वास्थ्य सुविधाओं तक उसकी पहुंच हो और महिला को अपने बारे में निर्णय लेने का अधिकार हो। समाज और सरकार को मातृत्व हक की जरूरत और जिम्मेदारी को महसूस करना पडेगा। इसके लिए समाज और सरकार को मिल कर सघन रूप से काम करने की जरूरत है। सुरक्षित मातृत्व हक को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण एवं माहौल बनाए। |
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