Wednesday, 5 July 2017

बीमारियों का इतिहास और आज का दौर

 बीमारियों का इतिहास और आज का दौर
मेडिकल सर्जिकल नर्सिंग का इतिहास मनुष्यों के जन्म या विकास के साथ ही शुरू हो गया लगता है ा  यह  है कि आज के  दौर की चिकित्सा एवं उपचार विधियां उस समय प्रचलित नहीं थी | मनुष्य के होमोसेपियन्स रूप में विकसित होने के पर उसके हाथ ने श्रम करना सीखा और पकड़ने की ताकत उसकी मुट्ठी में आई और उसके साथ साथ उसके दिमाग का भी विकास हुआ और पत्थर से हथियार बनाए  | इस दौर में उसे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष अब शारीरिक ताकत के साथ साथ  बुद्धि  से भी करना शुरू किया |  समय के साथ इंसान झुण्ड बनाकर या समूह में रहने लगा जिससे हम की भावना का विकास हुआ |  इसके कारण उस समूह की सुरक्षा सभी की जिम्मेदारी बन गयी  |  इस सुरक्षा में जंगली जानवरों के हमले से लेकर बीमारी या रोगों का उपचार तक शामिल थे |
 समय के साथ प्रयोगों एवं अनुभवों के आधार पर मनुष्य का ज्ञान संग्रहित होता गया एवं कालांतर में  यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता गया | इस प्रकार नयी पीढ़ी अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान में अपने अनुभवों से प्राप्त नया ज्ञान जोड़ती गयी एवं हमारे देश में वर्ण व्यवस्था के विकसित होने के साथ ही उपचार वैद्य का काम माना जाने लगा एवं इसके लिए इस ज्ञान को लिखित रूप में भी सहेज कर रखा जाने लगा |  इस विषय अर्थात चिकित्सा और शल्य क्रिया का विकास इन उदाहरणों से स्पष्टत: समझा जा सकता है ा
1  सबसे पहले मानव ने बीमार होने पर जंगली जड़ी बूटियों  के सेवन से उपचार करना सीखा |
2  किसी  प्रकार की चोट लगने पर इसे दबाकर या बांधकर घाव से खून बहना बंद करना एक सामान्य बात हो गयी जो आज भी ऐसा किया जाता है |
3  किसी नुकीली वस्तु  से कट जाने पर चींटे को इस के दोनों हिस्सों को पकड़कर उसका सिर काट दिया जाता था जिससे चींटे का सिर टांके की तरह काम करता था |  यह तरीका आज भी कहीं कहीं आदिवासियों में व् आदि जनजातियों में प्रयोग में लिया जाता है |
4  चरक ऋषि चीरा लगते समय अनावश्यक  रक्तस्राव को रोकने के लिए विषहीन जोंक का इस्तेमाल करते थे जिससे आवश्यक चीरा बिना किसी व्यवधान के लगाया जा सक
5    विषहीन जोंक का उपयोग दूषित रक्त को शरीर के किसी भाग से निकलने के लिए किया जाता था |
    कालांतर में यूरोप में जन जागरण के परिणाम स्वरूप अध्ययन क्षेत्र का प्रचार प्रसार हुआ जिसके कारण ऐसे रोगों के उपचार के तरीके खोजे जाने लगे जो अभी तक लाइलाज थे ा इसी कर्म में पाश्चर ने जीवाणु सिद्धांत की खोज की |  एडवर्ड जैनर ने टीके का निर्माण किया |  सर रोनाल्ड रॉस ने मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र को समझाया |
    इन सभी के कारण स्वच्छता की महत्ता का विकास हुआ जिसका उपयोग सुश्री फ्लोरेंस नाईटींगेल ने क्रीमिया युद्ध अठारा सौ तरेपन में कर कई सैनिकों की जान बचाई |
 रोग उत्पत्ति की विचारधाराएं
रोग उत्पति की विचारधाराएं किसी समय या काल के लोगों के ज्ञान पर आधारित होती हैं |  जिस प्रकार मनुष्य का ज्ञान बढ़ता गया इन रोग उत्पत्ति कारकों की शृंखला विस्तृत होती गयी |  समय के विकास कर्म के साथ इन विचारधाराओं को निम्न प्रकार से रखा जा सकता है |
1   दैवीय प्रकोप विचारधारा
2    पाश्चर का जीवाणु सिद्धांत
3    जैवचिकित्सकीय विचारधारा
4     बहुकारण विचारधारा
5     मनो सामाजिक विचारधारा
आज हमारी धारणा है की रोग उत्पत्ति के अनेक कारण  होते हैं |  इन्हें निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है ---
1  शारीरिक कारण
2  मानसिक कारण
3  सामाजिक कारण
4  वातावरणीय कारण
5  अन्य कारण
1 शारीरिक कारण
यह वह कारन होते हैं जो प्रत्यक्षत: शारीरिक रोग उत्पन्न करते हैं
A   आनुवांशिक कारक
इन परिस्थितियों में रोग उत्पन्न माता पिता से प्राप्त आनुवांशिक  विकार के कारण रोग उत्पन्न होते हैं |  इनमें जीन या गुणसूत्रों की बुन्तर में विकृतियां होती हैं
१  उत्परिवर्तन ----म्युटेशन
२  विलोपन -- डेलीशन
३ द्वि लिपीकरण --डबलिंग
जैसे
मंगोलिज्म या
डाउन्स सिंड्रोम
trisomy 13
Patau syndrome
हीमोफिलिया -- AHF कारक की अनुपस्थिति
सिकल सेल अनीमीया --सिस्टिन के स्थान पर वेलिन अमीनों अम्ल  का हीमोग्लोबिन निर्माण में भाग लेना |
थैलैसीमिया
वर्णान्धता इत्यादि
B. पोषण संबंधी कारण
शरीर की ऊर्जा एवं विकास संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए  सही पोषण की आवश्यकता होती है |  यदि शरीर को आवशयक पदार्थों की आपूर्ति सुचारू रूप से नहीं होती है तो इसे कुपोषण कहते हैं एवं इसके कारण निम्न रोग हो सकते हैं --
* कार्बोहाईड्रेट की कमी ---Hypoglycemia,मेरास्मस क्षमता
* प्रोटीन की कमी --- कवाशिआरेकर,Hypoproteinemia, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी
* वसा की कमी -- शरीर में संचित भोजन की कमी
* लोहे की कमी --एनीमिया
* कैल्सियम की कमी --ऑस्टियोपोरोसिस
* मैग्निशियम की कमी -- एनजाइम क्रियाविधि कम हो जाना
* जल की कमी --Dehydration
विटामिन की कमी 
A-----रतौंधी 
B1---बेरी बेरी 
B2---होंठ फटना एवं मुख प्रदाह 
B5---जनन क्षमता में कमी --बंध्यता 
B6---जीभ में प्रदाह होना
B12---पर्नीसियस एनीमिया 
C------स्कर्वी 
D-----रिकेट्स 
E-----जनन क्षमता में कमी --बंध्यता 
H----रक्त निर्माण कम होना 
K---रूधिर का अविरल बहना 
C --संक्रमण --Infection 
संक्रमण से तात्पर्य शरीर में रोगकारक का प्रवेश एवं गुणन होने से संपूर्ण शरीर या शरीर का कोई भाग कार्य नहीं कर पाता है |  संक्रमण निम्न रोग कारकों से हो सकता है ---
१  जीवाणु -- बैक्टीरिआ 
विब्रियो कोलेरी --- हैजा 
बोर्डीटेला परटुसिस --काली खांसी 
माईकोबैक्टीरियम लेप्रे -- कुष्ठ रोग 
माईकोबैक्टीरियम ट्युबरकुलोसिस --क्षय या तपेदिक 
डिप्लोको कस निमोनियाई -- निमोनिया 
साल्मोनेला टाईफी ---टायफाईड 
२  वाईरस -- वाईरस आधे जीवित आधे निर्जीव जीव होते हैं |  एच आई वी --एड्स , ह्यूमन पेपीलोमा वाइरस --सर्वाईकल कैंसर ,हिपे टाईटस A --E , रोटा वाईरस , वेरिसेला वाईरस , मिक्सो वाईरस , हरपीज सिम्प्लेक्स वाईरस ,
३ कवक --FUNGI -- एलबुगो  कैनडिडा , कलेमाईडिया एलबीकेन्स 
४ प्रोटोजोआ --  Antamoeba histolytica, plasmodium vivax, antamoeba gigivalis 
५ परजीवी कृमि 
D स्वत: प्रतिरोधक क्षमता विकार 
E  Addiction
2  मानसिक कारक -- उन्माद या अवसाद , सिजोफ्रेनिया ,आत्महत्या ,नींद न आना , नींद में चलना , हीं भावना का शिकार
3 सामाजिक कारक --यह कारक सामाजिक प्रथाओं , रीति रिवाज , विश्वास या मान्यताओं से जुड़े होते हैं एवं कई बार यह रोग उत्पत्ति का कारण बन जाते हैं | 
* दंगा 
* हिंसा 
* बलात्कार 
* युद्ध 
* आतंकी घटनाएं 
* दहेज़ प्रथा 
* बाल विवाह या बहु विवाह 
* गरीबी 
* अशिक्षा 
* तलाक 
4 वातावरणीय कारक --वातावरण संबंधित 
* जलना 
* विकिरण से त्वचीय रोग हो जाते हैं 
* प्रदूषण से अनेक रोग हो जाते हैं 
अत्यधिक गर्मी या शीत वातावरण 
* बाढ़ 
* भूकंप 
* बिजली से चिपकना 
* अकाल 
* न्यूक्लियर हथियार 
5 अन्य व् अज्ञात 
* कैंसर 
* माई ग्रेन 
* अस्थमा 
* एलर्जी 

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