जन स्वास्थय अभियान हरयाणा
हरियाणा में कीट नाशकों के अंधधुंध इस्तेमाल ने कई समस्याएं खड़ी कर दी हैं | मगर इसपर जनता का ध्यान बहुत काम है जिसके चलते स्वास्थय विभाग भी और पी जी आई एम एस रोहतक भी सक्रिय नहीं लगता |
कीटनाशक किस तरीके से शरीर में पहुँचता है?
1. पानी में कम घुलनशील कीटनाशक जो हैं वे वसा और कार्बनिक तेलों में आसानी से घुल जाते हैं। आसपास के जल स्रोतों में रहने वाले प्राणियों में और बनस्पति में भी इनके अंश संचित हो जाते हैं और जब ये जीव या बनस्पति दूसरे किसी जीव द्वारा खाये जाते हैं तो ये उनके शरीर की वसा में संचित हो जाते हैं।
2. ..पानी के जल स्रोतों के माध्यम से।
3. ..फलों, सब्जियों के माध्यम से
4. .. भूसे और पशु आहार से पशूओं में और फिर मनुष्य में।
5. ..हवा के माध्यम से- जब हम छिड़काव करते हैं तो कीटनाशक की छोटी-छोटी बूँदें हवा में मिल जाती हैं। इसी कारण हमें कीटनाशक की महक आती है। जब हम खुली हवा में साँस लेते हैं तो ये बूँदें हमारे फेफड़ों में पहुँच जाती हैं। फिर रासायन फेफड़े की गीली दीवारों से हो कर खून में पहुँच जाता है। इस से बचने के लिए मुँह पर कपड़ा बाँध कर रखें। बिना मुँह
6. .. त्वचा के द्वारा
हम सभी जानते हैं कि हमारी त्वचा में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से पसीना एवं तैलीय पदार्थ निकलता है। जब हम शारीरिक मेहनत करते हैं तो शरीर पर पसीने की एक पतली परत बन जाती है। यह परत कीटनाशक के अणुओं को घोल लेती है। फिर हमारी त्वचा इसे सोख लेती है। साँस के माध्यम से भी यह हमारे शरीर में जा सकता है । कभी-कभी कीटनाशक हमारे शरीर पर गिर जाता है। इस से वह और अधिक मात्रा में हमारे शरीर में पहुँच जाता है। हवा की दिशा के विपरीत छिड़काव करते समय खतरा और भी बढ़ जाता है। तब साँस द्वारा भी यह हमारे शरीर में पहुँचने लगता है।
इसलिए हमें शरीर को पूरी तरह
दूसरी बात, हमारे शरीर के विभिन्न अंग भिन्न-भिन्न गति से कीटनाशक को सोखते हैं
7. -मुँह के द्वारा
हमारे मुँह के रास्ते भी कीटनाशक बहुत जल्दी शरीर में पहुँच सकता है। बहुत से किसान या मज़दूर छिड़काव के दौरान बीड़ी इत्यादि पीते हैं। इस बीच वे पानी पीने या कुछ खाने के लिए भी एक-दो बार रुकते हैं। अगर छिड़काव शाम तक होना है तो वे उसी या बगल वाले खेत में खाना भी खाते हैं।
छिड़काव वाले खेत के आसपास काफ़ी मात्रा में कीटनाशक जमा हो जाते हैं। जहाँ सीधे छिड़काव नहीं किया जाता वहाँ भी कीटनाशक की सफे़द परत पौधों की पत्तियों पर देखी जा सकती है। उसी तरह की सफे़द परत वहाँ की सभी वस्तुओं पर जमी रहती है। इन में बरतन या खाने का सामान भी हो सकता है। अगर पानी खुला रखा है तो कीटनाशक के कुछ कण उस में भी घुल जाते हैं।
इसलिए खेत के पास खाते-पीते या धूम्रपान करते हुए हम ज़रूर कुछ कीटनाशक खा लेते हैं। बिना नहाए-धोए खाने-पीने से भी उस का कुछ भाग हमारे शरीर में पहुँच जाता है। धूम्रपान करते हुए या कुछ खाते हुए छिड़काव करने वालों को तो ईश्वर ही बचाये।
8. ..... बर्तन एवं कपड़ों से
अच्छा तो छिड़काव का काम खत्म हुआ। आप थके-भूखे घर जाते हैं। आप के साथ बर्तन, बाल्टी एवं उपकरण भी होता है, जिस से आपने दिन में काम किया है। अब आप बिस्तर पर लेट कर धूम्रपान करना चाहते हैं। पर रुक जाइये ! आप के साथ कुछ बिन बुलाये मेहमान भी हैं और धीरे से घर में प्रवेश कर गये हैं। कीटनाशक आप के शरीर पर, कपड़ों पर, बर्तनों तथा उपकरणों पर चढ़े हुए हैं। अब इन सब को पूरी साफ़-सफ़ाई की ज़रूरत
कीटनाशकों के प्रयोग से मनुष्य कई प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ सकता है। सबसे प्रमुख है -
1 -इम्यूनोपैथोलोजिकल इफैक्टस-आटो इम्युनिटी,अक्वायरड इम्युनिटी,
2 हाईपर सैंसिविटी के स्तर पर विकार अलग अलग
3 कारसिनोजैनिक इफैक्ट,
4 मुटाजेनिसिटी,
5 टैटराजैनिसिटी,
6 न्यूरोपैथी,
7 हैपेटोटोक्सीयिसटी
8 ,रिपरोडक्टिव डिस्आर्डर,
9 रिकरैंट इन्फैक्सन्ज। इन पर यहां विस्तार से चर्चा न करके कुछ बीमारियों के बारे चर्चा की जा रही है।
1-’तीव्र विषाक्तता (एक्यूट प्वॉयजनिंग)।
इसमें कीटनाशक प्रयोग करने वाला व्यक्ति ही इसकी चपेट में आ जाता है। हमारे देश में तो यह समस्या काफी देखने में आती है। इसमें सिर दर्द होना, जी मितलाना,चक्कर आना, पेट में दर्द, चमड़ी और आंखों में परेशानी, बेहोश हो जाना व म्ृत्यू तक शामिल हैं। आत्म हत्या के लिए भी इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। इनका इस्तेमाल करने वालों काफी लोगों में इनके इस्तेमाल के वक्त रखी जाने वाली सावधानियों की जानकारी का अभाव पाया गया है।
2-’कीटनाशक के प्रयोग से होने वाली दूसरी बड़ी बीमारियां हैं का्रेनिक डिजिज मसलनः
कैंसर:
विशेष रूप से खून और त्वचा के कैंसर इस कारण से काफी देखने में आते हैं । इनके प्रभाव में आने वाले लोगों में दिमाग के , स्तनों के, यकृत-जिगर - लीवर के, अग्न्याशया- पैर्न्कियाज के, फेफड़ों-लंग्ज के, कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है।
कैंसर के मरीजों की संख्या बहुत से प्रदेशों में बढ़ रही है।
मरीज/मौत
वर्ष 2011 2012 2013 2014 ट्रेंड
उतर प्रदेश 170013/74806 175404/77178 180945/79616 186638/82121
पंजाब 23506/10343 24006/10563 24512/10785 25026/11011
हरियाणा 21539/9477 22122/9734 22721/9998 23336/10268
चण्डीगढ़ 893/393 915/403 937/413 960/423
जम्मू कश्मीर 10668/4703 11052/4863 11428/5028 11815/5198
हिमाचल 5836/2568 5966/2625 6097/2683 6230/2741
उत्तराखंड 8663/3798 8899/3916 9173/4037 9455/4160
स्रोतः केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की और से लोक सभा में 11 जुलाई 2014 को पेश की गई रिपोर्ट
इसके अलावा श्वांस संबंधी बीमारियां और शरीर के अपने डिफैंस तंत्र के कमजोर होने की समस्या इसके कारण काफी देखने में आती है। कई बार यह नर्वस प्रणाली को चपेट में ले लेता है। इसी प्रकार चमड़ी की बीमारियां भी इनके प्रभाव के कारण ज्यादा होती हैं। नपुसंकता की संभावना बढ़ जाती है।
मां की औरनाल के रास्ते गर्भ में बच्चे में ये कीटनाशक प्रवेश पा जाते हैं और जन्म जात विकृतियों का रिस्क बढ़ जाता है खासकर तऩ्ि़त्रका तऩ्त्र -नरवस सिस्टम की।
इसी प्रकार पारकिन्सोनिज्म बीमारी का रिस्क 70 प्रतिशत बढ़ जाता है। बच्चों में अग्रेसिवनैस बढ़ने का कारन भी हो सकते हैं। किसानों में आत्म हत्याएं करने की मानसिकता पैदा करने में भी इनके कुप्रभावों की भूमिका हो सकती है।
कीटनाशकों के कारखानों, घर में, खाने में, पानी में , पशुओं में मौजूद कीटनाशक हमारे शरीर में पहुंच कर हमारे फैट में , खून में इक्ठ््ठा होते रहते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं।स्टॉक होम कन्वैंसन ऑन परसिस्टैंट आरगेनिक पोलुटैंटस के मुताबिक 12 में से 9 खतरनाक और परसिस्टैंट कैमिकल ये कीटनाशक हैं। कई सब्जियों और फलों में धोने के बावजूद कीटनाशकों के अवशेष पाये गये हैं। अंडों में , मीट में, भैंस और गाय के दूध में भी इन कीटनाशकों के अवशेष पाये गये हैं।आज कल के बच्चों में बढ़ता अग्रेसिव एटीच्यूड व किसानों में बढ़ती आत्म हत्या की मानसिकता में भी इन कीटनाशकों के अवशेषों की भूमिका देखी जा रही है।
लगभग 20 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में भारत में कीटनाशकों के अवशेष की मात्रा टोलरैंस लेवल से ज्यादा पाई गई है। जबकि अर्न्तराष्टीय स्तर पर यह 2 प्रतिशत ही है। महज 49 प्रतिशत भारतीय खाद्य पदार्थों में नो डिटैक्टेबल रेजिडयू पाये गये जबकि अर्न्तराष्टीय स्तर पर यह प्रतिशत 80 का था।
मेरे तीस पैंतीस साल के अनुभव मुझे यह सोचने पर मजबूर करते रहे कि पेट दर्द की लम्बी बीमारी जहाँ बाकी सभी टेस्ट नार्मल आते हैं उन मरीजों में पेट दर्द का कारण ये कीटनाशक ही होते हैं । रिसर्च के लिये सुविधा ना होने के कारण मेरा ये मिशन पूरा नहीं हो सका ।
कीटों और सूक्ष्म जीवों को मारने में प्रयुक्त होने वाला कीटनाशक मूल रूप से यह जहर ही है। अगर कीटनाशकों का दुरूपयोग किया जा रहा है तो इसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह उन सभी के लिए हानिकारक होता है जो कि इसके संपर्क में आता है। किसान, कर्मी, उपभोक्ता, जानवर सभी के लिए यह नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए, कीटनाशकों के इस्तेमाल पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं ?
हरियाणा में कीट नाशकों के अंधधुंध इस्तेमाल ने कई समस्याएं खड़ी कर दी हैं | मगर इसपर जनता का ध्यान बहुत काम है जिसके चलते स्वास्थय विभाग भी और पी जी आई एम एस रोहतक भी सक्रिय नहीं लगता |
कीटनाशक किस तरीके से शरीर में पहुँचता है?
1. पानी में कम घुलनशील कीटनाशक जो हैं वे वसा और कार्बनिक तेलों में आसानी से घुल जाते हैं। आसपास के जल स्रोतों में रहने वाले प्राणियों में और बनस्पति में भी इनके अंश संचित हो जाते हैं और जब ये जीव या बनस्पति दूसरे किसी जीव द्वारा खाये जाते हैं तो ये उनके शरीर की वसा में संचित हो जाते हैं।
2. ..पानी के जल स्रोतों के माध्यम से।
3. ..फलों, सब्जियों के माध्यम से
4. .. भूसे और पशु आहार से पशूओं में और फिर मनुष्य में।
5. ..हवा के माध्यम से- जब हम छिड़काव करते हैं तो कीटनाशक की छोटी-छोटी बूँदें हवा में मिल जाती हैं। इसी कारण हमें कीटनाशक की महक आती है। जब हम खुली हवा में साँस लेते हैं तो ये बूँदें हमारे फेफड़ों में पहुँच जाती हैं। फिर रासायन फेफड़े की गीली दीवारों से हो कर खून में पहुँच जाता है। इस से बचने के लिए मुँह पर कपड़ा बाँध कर रखें। बिना मुँह
6. .. त्वचा के द्वारा
हम सभी जानते हैं कि हमारी त्वचा में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से पसीना एवं तैलीय पदार्थ निकलता है। जब हम शारीरिक मेहनत करते हैं तो शरीर पर पसीने की एक पतली परत बन जाती है। यह परत कीटनाशक के अणुओं को घोल लेती है। फिर हमारी त्वचा इसे सोख लेती है। साँस के माध्यम से भी यह हमारे शरीर में जा सकता है । कभी-कभी कीटनाशक हमारे शरीर पर गिर जाता है। इस से वह और अधिक मात्रा में हमारे शरीर में पहुँच जाता है। हवा की दिशा के विपरीत छिड़काव करते समय खतरा और भी बढ़ जाता है। तब साँस द्वारा भी यह हमारे शरीर में पहुँचने लगता है।
इसलिए हमें शरीर को पूरी तरह
दूसरी बात, हमारे शरीर के विभिन्न अंग भिन्न-भिन्न गति से कीटनाशक को सोखते हैं
7. -मुँह के द्वारा
हमारे मुँह के रास्ते भी कीटनाशक बहुत जल्दी शरीर में पहुँच सकता है। बहुत से किसान या मज़दूर छिड़काव के दौरान बीड़ी इत्यादि पीते हैं। इस बीच वे पानी पीने या कुछ खाने के लिए भी एक-दो बार रुकते हैं। अगर छिड़काव शाम तक होना है तो वे उसी या बगल वाले खेत में खाना भी खाते हैं।
छिड़काव वाले खेत के आसपास काफ़ी मात्रा में कीटनाशक जमा हो जाते हैं। जहाँ सीधे छिड़काव नहीं किया जाता वहाँ भी कीटनाशक की सफे़द परत पौधों की पत्तियों पर देखी जा सकती है। उसी तरह की सफे़द परत वहाँ की सभी वस्तुओं पर जमी रहती है। इन में बरतन या खाने का सामान भी हो सकता है। अगर पानी खुला रखा है तो कीटनाशक के कुछ कण उस में भी घुल जाते हैं।
इसलिए खेत के पास खाते-पीते या धूम्रपान करते हुए हम ज़रूर कुछ कीटनाशक खा लेते हैं। बिना नहाए-धोए खाने-पीने से भी उस का कुछ भाग हमारे शरीर में पहुँच जाता है। धूम्रपान करते हुए या कुछ खाते हुए छिड़काव करने वालों को तो ईश्वर ही बचाये।
8. ..... बर्तन एवं कपड़ों से
अच्छा तो छिड़काव का काम खत्म हुआ। आप थके-भूखे घर जाते हैं। आप के साथ बर्तन, बाल्टी एवं उपकरण भी होता है, जिस से आपने दिन में काम किया है। अब आप बिस्तर पर लेट कर धूम्रपान करना चाहते हैं। पर रुक जाइये ! आप के साथ कुछ बिन बुलाये मेहमान भी हैं और धीरे से घर में प्रवेश कर गये हैं। कीटनाशक आप के शरीर पर, कपड़ों पर, बर्तनों तथा उपकरणों पर चढ़े हुए हैं। अब इन सब को पूरी साफ़-सफ़ाई की ज़रूरत
कीटनाशकों के प्रयोग से मनुष्य कई प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ सकता है। सबसे प्रमुख है -
1 -इम्यूनोपैथोलोजिकल इफैक्टस-आटो इम्युनिटी,अक्वायरड इम्युनिटी,
2 हाईपर सैंसिविटी के स्तर पर विकार अलग अलग
3 कारसिनोजैनिक इफैक्ट,
4 मुटाजेनिसिटी,
5 टैटराजैनिसिटी,
6 न्यूरोपैथी,
7 हैपेटोटोक्सीयिसटी
8 ,रिपरोडक्टिव डिस्आर्डर,
9 रिकरैंट इन्फैक्सन्ज। इन पर यहां विस्तार से चर्चा न करके कुछ बीमारियों के बारे चर्चा की जा रही है।
1-’तीव्र विषाक्तता (एक्यूट प्वॉयजनिंग)।
इसमें कीटनाशक प्रयोग करने वाला व्यक्ति ही इसकी चपेट में आ जाता है। हमारे देश में तो यह समस्या काफी देखने में आती है। इसमें सिर दर्द होना, जी मितलाना,चक्कर आना, पेट में दर्द, चमड़ी और आंखों में परेशानी, बेहोश हो जाना व म्ृत्यू तक शामिल हैं। आत्म हत्या के लिए भी इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। इनका इस्तेमाल करने वालों काफी लोगों में इनके इस्तेमाल के वक्त रखी जाने वाली सावधानियों की जानकारी का अभाव पाया गया है।
2-’कीटनाशक के प्रयोग से होने वाली दूसरी बड़ी बीमारियां हैं का्रेनिक डिजिज मसलनः
कैंसर:
विशेष रूप से खून और त्वचा के कैंसर इस कारण से काफी देखने में आते हैं । इनके प्रभाव में आने वाले लोगों में दिमाग के , स्तनों के, यकृत-जिगर - लीवर के, अग्न्याशया- पैर्न्कियाज के, फेफड़ों-लंग्ज के, कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है।
कैंसर के मरीजों की संख्या बहुत से प्रदेशों में बढ़ रही है।
मरीज/मौत
वर्ष 2011 2012 2013 2014 ट्रेंड
उतर प्रदेश 170013/74806 175404/77178 180945/79616 186638/82121
पंजाब 23506/10343 24006/10563 24512/10785 25026/11011
हरियाणा 21539/9477 22122/9734 22721/9998 23336/10268
चण्डीगढ़ 893/393 915/403 937/413 960/423
जम्मू कश्मीर 10668/4703 11052/4863 11428/5028 11815/5198
हिमाचल 5836/2568 5966/2625 6097/2683 6230/2741
उत्तराखंड 8663/3798 8899/3916 9173/4037 9455/4160
स्रोतः केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की और से लोक सभा में 11 जुलाई 2014 को पेश की गई रिपोर्ट
इसके अलावा श्वांस संबंधी बीमारियां और शरीर के अपने डिफैंस तंत्र के कमजोर होने की समस्या इसके कारण काफी देखने में आती है। कई बार यह नर्वस प्रणाली को चपेट में ले लेता है। इसी प्रकार चमड़ी की बीमारियां भी इनके प्रभाव के कारण ज्यादा होती हैं। नपुसंकता की संभावना बढ़ जाती है।
मां की औरनाल के रास्ते गर्भ में बच्चे में ये कीटनाशक प्रवेश पा जाते हैं और जन्म जात विकृतियों का रिस्क बढ़ जाता है खासकर तऩ्ि़त्रका तऩ्त्र -नरवस सिस्टम की।
इसी प्रकार पारकिन्सोनिज्म बीमारी का रिस्क 70 प्रतिशत बढ़ जाता है। बच्चों में अग्रेसिवनैस बढ़ने का कारन भी हो सकते हैं। किसानों में आत्म हत्याएं करने की मानसिकता पैदा करने में भी इनके कुप्रभावों की भूमिका हो सकती है।
कीटनाशकों के कारखानों, घर में, खाने में, पानी में , पशुओं में मौजूद कीटनाशक हमारे शरीर में पहुंच कर हमारे फैट में , खून में इक्ठ््ठा होते रहते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं।स्टॉक होम कन्वैंसन ऑन परसिस्टैंट आरगेनिक पोलुटैंटस के मुताबिक 12 में से 9 खतरनाक और परसिस्टैंट कैमिकल ये कीटनाशक हैं। कई सब्जियों और फलों में धोने के बावजूद कीटनाशकों के अवशेष पाये गये हैं। अंडों में , मीट में, भैंस और गाय के दूध में भी इन कीटनाशकों के अवशेष पाये गये हैं।आज कल के बच्चों में बढ़ता अग्रेसिव एटीच्यूड व किसानों में बढ़ती आत्म हत्या की मानसिकता में भी इन कीटनाशकों के अवशेषों की भूमिका देखी जा रही है।
लगभग 20 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में भारत में कीटनाशकों के अवशेष की मात्रा टोलरैंस लेवल से ज्यादा पाई गई है। जबकि अर्न्तराष्टीय स्तर पर यह 2 प्रतिशत ही है। महज 49 प्रतिशत भारतीय खाद्य पदार्थों में नो डिटैक्टेबल रेजिडयू पाये गये जबकि अर्न्तराष्टीय स्तर पर यह प्रतिशत 80 का था।
मेरे तीस पैंतीस साल के अनुभव मुझे यह सोचने पर मजबूर करते रहे कि पेट दर्द की लम्बी बीमारी जहाँ बाकी सभी टेस्ट नार्मल आते हैं उन मरीजों में पेट दर्द का कारण ये कीटनाशक ही होते हैं । रिसर्च के लिये सुविधा ना होने के कारण मेरा ये मिशन पूरा नहीं हो सका ।
कीटों और सूक्ष्म जीवों को मारने में प्रयुक्त होने वाला कीटनाशक मूल रूप से यह जहर ही है। अगर कीटनाशकों का दुरूपयोग किया जा रहा है तो इसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह उन सभी के लिए हानिकारक होता है जो कि इसके संपर्क में आता है। किसान, कर्मी, उपभोक्ता, जानवर सभी के लिए यह नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए, कीटनाशकों के इस्तेमाल पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं ?
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