Thursday, 20 September 2018

स्वास्थ्य बीमा योजना

सरकारों द्वारा अपने फायदे के लिए खेल-खेला जाता है। हेल्थ बीमा के उपयोग के लिए सरकारी हॉस्पिटलों को कम और प्राइवेट हॉस्पिटलों को अधिक से अधिक मान्यता दी जाती है I           "25 सितम्बर से पूरे देश में  प्रधानमंत्री जन आरोग्य अभियान लॉन्च कर दिया जाएगा।  इसका परिणाम ये होने वाला है कि देश के गरीब व्यक्ति को अब बिमारी के संकट से जूझना नहीं पड़ेगा उसको साहूकार से पैसा ब्याज पर नहीं लेना पड़ेगा।  उसका परिवार तबाह नहीं होगा। '' यह मुक्तिदायी शब्द प्रधानमंत्री के भाषण के हैं। उस भाषण के हैं, जिसे लालकिले के प्राचीर से इस पंद्रह अगस्त को पूरे भारत में आजादी का एहसास पैदा करने के लिए दिया गया था। 
आरोग्य भारत योजना के तहत 10 करोड़ परिवार यानी कि 50 करोड़ लोगों को बीमा दिया जाना है। इन परिवारों को सालाना 5 लाख का हेल्थ कवरेज देने की बात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पूरी सरकार यह दमखम के साथ कह रही है कि आरोग्य भारत योजना दुनिया के इतिहास में लागू की जा रही, हेल्थ के क्षेत्र में पहली ऐसी योजना होगी, जिससे एक साथ तकरीबन 50 करोड़ लोगों को हेल्थ सम्बन्धी परेशानियों से मुक्ति मिल जाएगी।जबकि सच्चाई यह है कि जिनकी राजनीति परम्परागत होती है उनकी नीतियों और योजनाओं में ऐतिहासिक कुछ भी नहीं होता,सबकी जड़ें पहले से ही मौजूद होती है। इस आधार पर एक बार आरोग्य जैसी बीमा कवर योजनाओं का इतिहास देखने की कोशिश करते हैं।  
साल 2009 में केंद्र सरकार ने पूरे भारत के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की शुरुआत की थी। इसका मेनडेट पूरे भारत में दर्दनाक हालत में पहुँच चुके मरीजों का सहयोग करना था ताकि उनके हॉस्टिपल खर्चों को कम किया जा सके। इस योजना का आधार आंध्र प्रदेश में लागू राजीव आरोग्य श्री योजना थी। केंद्र सरकार के आलावा राज्य सरकार द्वारा भी बीमा योजनाएं चलाई जाती है। साल 2010 तक तकरीबन 25 करोड़ यानी कि देश की एक चौथाई आबादी बीमा कवर के अंतर्गत आ चुकी थी और इसके बाद भी कम या अधिक दर से इसमें इजाफा ही हुआ है।  बीमा के प्रीमियम का भुगतान केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मिलकर उठाया जाता है।  इस राशि के उपयोग के लिए सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटलों  को सरकारी मान्यता दी जाती है। यहीं पर पेंच है। और यहीं पर सरकारों द्वारा अपने फायदे के लिए  खेल-खेला जाता है। हेल्थ बीमा के उपयोग के लिए सरकारी हॉस्पिटलों को कम और प्राइवेट हॉस्पिटलों को अधिक से अधिक मान्यता दी जाती है। उदाहरण के तौर पर 2007 से 2013 के बीच आंध्रा में आरोग्य श्री योजना के तहत तकरीबन 47 बिलियन राशि का भुगतान किया गया।  इसमें से तकरीबन 11 बिलियन राशि का भुगतान सरकारी सुविधा प्रदाताओं और 37 बिलियन राशि का भुगतान प्राइवेट सुविधा प्रदाताओं को किया गया। इस लिहाज से ऐसी कई संभावनाएं पनपती है जिससे गरीबों को मुक्ति देने के नाम पर चलाई जा रही यह योजना गऱीबों तक नहीं पहुँच पाती है। जैसे कि अगर भारत के सुदूर इलाकों में जहां सौ - दो सौ किलोमीटर की दूरी पर अमूमन  1 या 2 सरकारी हॉस्पिटल हो तो हो सकता है कि बीमा कवर का इन्हें कोई फायदा नहीं मिले। हो सकता है कि भारत के सुदूर इलाकों में बसने वाले भयावह गरीबी से इनका पाला न पड़े। 
इन योजनाओं के तहत कुछ विशिष्ट तरह की बीमारियों के इलाज के लिए ही बीमा कवर का नियम होता है। और यह बीमारियां अधिकांशतः हेल्थ सेक्टर के द्वितीय और तृतीय स्तर के हॉस्पिटलों से ही जुड़ी होती हैं। इसके बाद भी बीमा कवर से इन बीमारियों से जुड़े पूरे खर्चे को हासिल करने का नियम नहीं होता है।  इसकी पहले से ही बनी बनाई एक लिमिट होती है। इस लिमिट से ज्यादा खर्चा होने पर बीमा कवर का साथ नहीं मिलता है। इसकी अलावा  टीवी ,मधुमेह, ह्रदय रोग,कैंसर जैसी अधिकांश बीमारीयां सरकारी सहयोग से अछूती रह जाती है। ऐसा केवल इसलिए होता है कि इन बीमारियों में हॉस्पिटल में भर्ती हुए बिना लम्बें समय तक इलाज चलता रहता है। इसलिए इन बीमारियों से जूझ रहे गरीब मरीजों का कोई सरकारी माई बाप नहीं होता। उदाहरण के तौर पर  आंध्र प्रदेश की आरोग्य श्री योजना के तहत खर्च 25 फीसदी राशि से बीमारियों के भार का केवल 2 फीसदी कवर हो पाया। इस तरह की संकीर्ण नीति से पूरा हेल्थ सिस्टम  चरमरा गयाऔर सरकारी धन का उपयोग पहले से ही मजबूत कॉर्पोरेट हेल्थ सेक्टर में  ही हो पाया। 
सिद्धांततः एक बेहतर हेल्थ सिस्टम एक पिरामिड की तरह काम करता है। स्तर बढ़ने के साथ मरीजों की संख्या कम होती जाती है। पहले स्तर पर सबसे अधिक मरीज होते हैं। यह स्थानीय स्तर होता है । यहां पर इलाज न हो पाने के हालत में दूसरे स्तर की तरफ बढ़ना होता है। दूसरा स्तर सामुदायिक केंद्रों से जुड़ा होता है। यह पहले से ज्यादा  विशिष्ट होता है। यहां न इलाज हो पाने के हालत में तीसरे स्तर की तरफ बढ़ा जाता है। यह सबसे अधिक विशिष्ट होता है। यहां पर बहुत कम लोग पहुँचते हैं। लेकिन यह स्तिथि  तभी सम्भव है ,जब हेल्थ सिस्टम के तीनों स्तर मजबूत हों। स्वास्थ्य बीमा तंत्र ने इस पिरामिड को उल्टा कर दिया है।सरकारी बीमा तंत्र की वजह से केवल तीसरे स्तर के हेल्थ सेक्टर को फायदा पहुँचता है। पहले स्तर का हेल्थ सेक्टर पैसे की कमी की वजह से मरता है। जिसका परिणाम यह होता है कि अधिक से अधिक लोग जबरन महंगे अस्पतालों की तरफ बढ़ते हैं।  
सबसे अधिक परेशान करने वाली बात  यह है कि प्राइवेट लोगों के साथ साझदारी कर लागू किये जाने वाले इन स्वास्थ्य बीमा योजनाओं ने कई तरह के भ्रष्टाचार भी पैदा कियें  है। इस तरह के भ्रष्टाचारों के किस्मों की सम्भवनाएँ अनंत है। साल 2010 तक ही तकरीबन 25 करोड़ लोग पहले से चल रहे बीमा योजनाओं के तहत कवर हैं। इसलिए पहला भ्रष्टाचार तो इस वक्तव्य से ही निकल जाता है कि यह एक ऐतिहासिक योजना है  जिसमें तकरीबन 50 करोड़ लोग शामिल होंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकी जिन राज्यों में पहले से ऐसी बीमा योजनाएं चल रही हैं,वह केंद्र सरकार के साथ जुड़ने से हिचकिचा रही हैं जैसे कि बंगाल। इसके बाद चूँकि बीमा राशि के उपयोग के लिए मान्यता देने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है,इसलिए मिलीभगत की संभावनाएं अनंत है। नौकरशाही से लेकर सरकार तक इन मिलिभगतों में शामिल रहती है। यह भी हो सकता है कि चुनावों में जो हैलीकॉप्टर उड़ते हैं ,उनके खर्चे  इन योजनाओं को बनाकर पूँजीपत्तियों से निकाले जाते हो और स्वास्थ्य क्षेत्र की बदतर हालत में सुधार की संभावनाएं केवल कागजी रह जाती हों।
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