बवासीर से संबंधित जानकारी
रोगलक्षण, कारण एवं रोगनिदान
आम बोलचाल में ‘पाइल्स’ कही जाने वाली बवासीर व्याधि - मलाशय एवं गुदाक्षेत्र के आसपास एवं अंतर्गत संवर्धित तथा शोथयुक्त शिराओं को कहा जाता है। पृष्ठमार्ग के निम्नतर सिरे पर बवासीर की शिराओं में सूजन हो जाती है तथा मलत्याग करते समय उनमें खिंचाव होता है, वे संकरी पड़ जाती हैं और साथ ही उनमें क्षोभण होने लगता है। इसी कारण मलत्याग करना कष्टकर बन जाता है और मलद्वार मंे दर्द तथा रुधिर स्राव की शिकायत होने लगती है।
बवासीर एक आम रोग है। अनुमानतः 50 प्रतिशत व्यक्ति जीवन में कभी
न कभी इससे ग्रस्त होते हैं। रोग वैसे तो किसी भी आयु में होना संभव है किंतु
प्रायः बुजुर्ग व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएं इससे अधिक ग्रस्त देखे गए हैं।
रोग लक्षण की पहचान
अधिकांश मामलों में बवासीर के किसी प्रकार के रोगलक्षण व्यक्त नहीं होते और कई लोगों को तो रोग होने का आभास भी नहीं होता। ऐसे में निम्न रोगलक्षण व्यक्त होना संभव हैः
ऽ मलत्याग करने के पश्चात
रुधिरस्राव। रुधिर आमतौर पर
गाढ़ा लाल रंग का होता है।
ऽ ऐसा प्रतीत होता है मानों मांस का कोई टुकड़ा गुदा से लटक रहा हो जिसे
मलत्याग के बाद भीतर करना पड़ता हो।
ऽ मलत्याग के पश्चात श्लेष्मा निकास
ऽ गुदाद्वार के निकट छिलन, लाली और शोथ
ऽ मल के स्थान पर श्लेष्मा निकलना
ऽ मलत्याग के बाद भी पूरी तसल्ली न होना
बवासीर के मस्सों में हमेशा तकलीफ नहीं होती बशर्ते वे मलाशय संवरणी में न फंसे हों और उनमें रुधिर संचालन मंद या बाधित हो गया हो। गुदा से रुधिर स्रोत का मुख्य कारण बवासीर ही है। ऐसा होने या मलाशय
में दर्द होने पर रोग लक्षणों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। हालांकि बवासीर बहुत कम मामलों में घातक रोग है किंतु चिकित्सक द्वारा रोगनिदान करवाना ज़रूरी है। ऐसा भी बहुत कम स्थितियों मंे देखा गया है कि बवासीर के पीछे कोई घातक रोग छिपा हो, जैसे कि वृहतआंत्र.मलाशय कैंसर।
चिकित्सीय परामर्श
बवासीर के संकेतक लगातार बने रहने अथवा उग्र रोगलक्षण व्यक्त होने अथवा गुदा से रुधिर स्राव होने की स्थिति में बिना विलम्ब किए चिकित्सक से परामर्श ज़रूरी है। ऐसे में, पारिवारिक चिकित्सक, सामान्य सर्जन अथवा वृहदांत्र.गुदाक्षेत्र सर्जन से परामर्श किया जाना चाहिए। ऐसा करना जरू़री है क्योंकि बवासीर के
पीछे कहीं अधिक बड़ी तथा घातक बीमारी भी छिपी होनी संभव है। कई बार बवासीर खुद ही ठीक हो जाती है। प्रायः बिना किसी चिकित्सीय निर्देश के फार्मेसी से मिलने वाली आम दवाओं से ही आराम आ जाता है। वैसे रोगलक्षणों में आराम न मिलने पर या दर्द अथवा रुधिर स्राव होने पर चिकित्सक से परामर्श लेने में हिचकिचाना
उचित नहीं। कुछ लोगों को बवासीर जैसे शरीर के अंतरंग स्थान मंे होने वाले रोग की वजह से चिकित्सक के पास जाने में संकोच महसूस होता है किन्तु ऐसा करना उचित नहीं है क्योंकि बवासीर भी अन्य व्याधियों के समान शरीर का एक शारीरिक कष्ट ही है।
------सबसे ज़रूरी बात - चिकित्सक को अपने सभी रोगलक्षण बतलाने चाहिए।
उदाहरण के लिए क्या व्यक्ति का वज़न हाल में ही कम हुआ है, नित्यकर्म की प्रवृत्ति में बदलाव आया है या फिर क्या मल गहरे रंग का और लेसदार होने लगा है।
****चिकित्सक द्वारा बवासीर का रोग निदान।
प्रायः चिकित्सक द्वारा गुदा जांच से ही बवासीर की पुष्टि हो जाती है।
---मलाशय परीक्षण
-गुदा के बाहरी भाग का परीक्षण कर इस तथ्य की पुष्टि करता है कि बवासीर के मस्से बाहर की तरफ दिखाई दे रहे हैं अथवा नहीं। तत्पश्चात आंतरिक परीक्षण भी किया जाना संभव है। सरलतम परीक्षण डिजिटल गुदाक्षेत्रीय
परीक्षण है। कुछ लोग, धार्मिक या सांस्कृतिक कारणों से गुदा परीक्षण नहीं करवाना चाहते। इसी तरह कुछ चाहते हैं कि उनका परीक्षण महिला या पुरुष द्वारा ही किया जाए जो कि वे स्वयं हैं या फिर कुछ चाहते हैं कि परीक्षण के दौरान कोई रिश्तेदार या मित्र भी उपस्थित रहे। किसी भी प्रकार की प्राथमिकताएं रहने पर चिकित्सक को पूर्व में सूचित किया जाना चाहिए।
----परीक्षण प्रक्रिया
गुदा क्षेत्र का परीक्षण करने से पूर्व चिकित्सक रोगी को प्रक्रिया की पूर्व जानकारी प्रदान करता है। रोगी को अपने
अधोवस्त्र उतारकर, एक पलंग पर बांई करवट लेकर तथा अपने घुटने वक्ष की तरफ उठा कर लिटाया जाता है। चिकित्सक परीक्षण की शुरुआत, सावधानी से गुदा के बाहरी भाग से करता है तथा अपसामान्यताओं का परीक्षण किया जाता है जैसे कि फूली हुई मलाशय एवं गुदा के आस.पास की रुधिर वाहिकाएं।
निरीक्षण के पश्चात चिकित्सक अपने एक हाथ में रबड़ का दस्ताना पहन कर एवं अपनी अंगुली में जैल लगाकर उसे धीरे से मलाशय की ओर प्रविष्ट करता है। ऐसा करते समय रोगी को हल्की पीड़ा या असहजता अनुभव कर
सकना संभव है।
मलाशय परीक्षण के दौरान रोगी से गुदा क्षेत्र की पेशियों को चिकित्सक की अंगुली की तरफ खींचने के लिए कहा जाता है। ऐसा करने से चिकित्सक के लिए यह जांच करना सहज हो पाता है कि व्यक्ति की गुदा एवं मलाशय की
पेशियां किस सीमा तक सुसंगत रूप से काम कर पा रही हैं।
मलाशय परीक्षण में आमतौर पर एक से पांच मिनट का समय लगता है जो चिकित्सक द्वारा किसी अपसामान्यता के नज़र आने पर निर्भर करता है। मलाशय परीक्षण हो जाने के बाद चिकित्सक सावधानीपूर्वक अपनी अंगुली गुदाद्वार से बाहर निकाल लेता है। इस प्रक्रिया में हल्का रुधिर स्राव हो सकता है, खासतौर पर बवासीर होने की स्थिति में, इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है।
*****प्रॉक्टोस्कोपी
कुछ मामलों में अपना आंतरिक परीक्षण करवाने के लिए प्रॉक्टोस्कोप (मलाशयदर्शी उपकरण) की ज़रूरत पड़ती है। प्रॉक्टोस्कोप एक पतली, खोखली नली जैसा उपकरण होता है जिसके एक सिरे पर रोशनी रहती है। इस उपकरण को गुदा मार्ग से मलाशय मंे प्रविष्ट कराया जाता है। इसके माध्यम से चिकित्सक समग्र गुदानाल का पर्यवेक्षण करने में और बवासीर के मस्सों का संज्ञान लेकर उनकी गंभीरता का आकलन करने में सक्षम हो पाता है।
*****बवासीर के प्रकार
गुदा परीक्षण या प्रॉक्टोस्कोपी करने के पश्चात चिकित्सक के लिए रोगी के बवासीर का प्रकार निर्धारण करना संभव हो जाता है। बवासीर के मस्से बाहर और भीतर दोनों तरफ हो सकते हैं। आंतरिक मस्से गुदानाल के ऊपरी हिस्से के दो तिहाई भाग में होते हैं जबकि बाहरी मस्से आखिरी तीसरे हिस्से में जो गुदा द्वार के निकट होता है। निचले भाग के स्नायु दर्द का अहसास कराने में सक्षम होते हैं, ऊपरी भाग के नहीं। बवासीर के भीतरी मस्से बवासीर के आंतरिक मस्से मलाशय में इतने अंदर होते हैं कि उनका संज्ञान या उन्हें महसूस कर पाना रोगी के लिए संभव नहीं होता। उनसे तकलीफ भी नहीं होती क्योंकि मलाशय में बहुत कम दर्द संचारक स्नायु होते हैं। रुधिर स्राव ही एकमात्र ऐसा संकेत है जो उनका संज्ञान कराता है। कभी.कभी भीतरी बवासीर के मस्से लटक जाते हैं या फिर बढ़ जाते हैं और गुदा से बाहर निकलने लगते हैं। ऐसे में वे गीले, गुलाबी त्वचा की पट्टी की तरह प्रतीत होते हैं। लटकने वाले बवासीर के मस्से तकलीफ देते हैं क्योंकि कपड़ों से रगड़ने और बैठने के कारण उग्र हो जाते हैं। आमतौर पर वे खुद ब खुद गुदा के भीतर चले जाते हैं, और यदि स्वयं न भी जा पाएं तो हल्के हाथ से
उन्हें भीतर किया जा सकता है।
****बाहरी बवासीर.मस्से
बाहरी मस्से गुदा में रहते हैं और अक्सर तकलीफ देते हैं। बाहरी मस्सों के लटक जाने पर ऐसा लगता है मानों मांस का कोई लोथड़ा गुदा से लटक रहा है। ऐसा आमतौर पर मलत्याग के दौरान होता है। बाहरी लटकने वाले मस्सों में कभी कभार खून के थक्के जम जाते हैं जिसके कारण एक अत्यंत कष्टकर स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसे ‘थ्रोम्बोसिस‘ (घनास्रता) कहते हैं। बाहरी बवासीर का मस्सा घनास्रित होने पर डरावना लगता है, जामुनी या नीला पड़ जाता है और कई बार उससे खून भी रिसने लगता है। बाहर से चाहे ऐसे मस्से कितने ही भयावह क्यों न लगें घनास्रित मस्से आमतौर पर गंभीर स्थिति के नहीं होते और स्वतः लगभग एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं। दर्द यदि असह्य हो जाए तो ऐसे मस्सों को सर्जरी से हटाया जा सकता है ताकि रोगी को आराम आ सके।
उग्रता मापन बवासीर के मस्सों के आकार और उनकी उग्रता के आधार पर सर्जन उन्हें कुछ और वर्गों में विभाजित करते हैं, जो निम्न है ---
**प्रथम स्तर के बवासीर मस्से
प्रथम डिग्री के मस्से गुदा के भीतरी अस्तर में छोटे.छोटे उद्भेदों के रूप में उभरते हैं और बाहरी तौर पर दृश्य नहीं होते।
*द्वितीय स्तरीय मस्से
द्वितीय स्तरीय मस्से बड़ी शोथ युक्त होते हैं जो मलत्याग के समय बाहर की ओर निकल आते हैं और कुछ समय बाद स्वतः भीतर चले जाते हैं।
*तृतीय स्तर के मस्से
तृतीय स्तरीय मस्से एक या अधिक छोटी मुलायम गांठों की तरह होते हैं जो गुदा से बाहर लटकने लगते हैं और उन्हें व्यक्ति हल्के हाथों से भीतर कर देता है। ये तथाकथित प्रोलैप्सिंग एण्ड रिड्यूसिबल पाइल्स कहलाते हैं।
*चतुर्थ स्तर के मस्से
चतुर्थ स्तरीय मस्से बड़े मांस के लोथड़े होते हैं जो गुदा से बाहर लटकते हैं और जिन्हें भीतर नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार ये ‘इर्रिड्यूसिबल’ कहलाते हैं। चिकित्सक के लिए यह जानना बेहतर रहता है कि रोगी किस प्रकार के बवासीर से ग्रस्त है। इस जानकारी से उपचार विधि का चयन सहज हो जाता है।
**बवासीर होने के कारण
बवासीर का सुनिश्चित कारण तो अनिश्चित है किंतु इसका सम्बंध गुदा के भीतर व बाहरी क्षेत्र की रुधिर वाहिकाओं पर अतिरिक्त दाब से जोड़ा जा सकता है। इस दबाव के कारण पृष्ठ भाग की रुधिर वाहिकाएं सूजकर फूल जाती हैं। किसी व्यक्ति को बवासीर होने के निम्न कारक संभाव्य हो सकते हैंः
बवासीर की पारिवारिक पृष्ठभूमि-----
वैसे यह तथ्य सुनिश्चित तौर पर अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है किंतु परिवार में किसी को बवासीर रहने पर व्यक्ति के रोग से प्रभावित होने की आशंका बढ़ जाती है।
कब्ज--
लम्बे समय से कब्ज बने रहने पर भी मल त्याग करते समय काफी प्रयास करना पड़ता है जो बवासीर का कारण बन जाता है।
मोटापा--
जरूरत से ज्यादा वज़्ान या फिर मोटापे के कारण श्रेाणि क्षेत्र की रुधिर वाहिकाओं का दबाव पड़ता है जिससे वे संवर्द्धित हो जाती हैं और बाद में बवासीर का
कारण भी बन जाती हैं।
गर्भावस्था---
गर्भ धारण करने पर बढ़ता हुआ शिशु भी श्रोणि क्षेत्र की रुधिर बाहिकाओं पर अतिरिक्त दबाव डालने लगता है जिससे वे संवर्द्धित हो जाती हैं। गर्भावस्था के हारमोनों के कारण भी शिराएं शिथिल होकर संवर्द्धित होने लगती हैं और क्षोभग्रस्त हो जाती हैं। गर्भावस्था में हो जाने वाली बवासीर व्याधि आमतौर पर प्रसव के पश्चात कुछ ही हफ्तों में स्वयं समाप्त हो जाती है।
आयु---
आयु बढ़ने के साथ शरीर के सम्बलकारक ऊतक कमजोर पड़ने लगते हैं और इसी कमी के कारण बवासीर की आशंका बढ़ जाती है।
उदर का दबाव बढ़ाने वाली स्थितियां---
लम्बे समय तक एक ही मुद्रा मंे बैठे रहने वाले लोग, अक्सर लम्बे समय तक चलने वाली खांसी या बारबार मतली आने की शिकायत वाले व्यक्ति अथवा भारी वस्तु उठाने वाले लोगों को उदर में अधिक दबाव सहना पड़ता है और नतीजतन बवासीर की आशंका बढ़ जाती है।
जीर्ण दस्त---
लम्बे समय तक बनी रहने वाली दस्त की प्रकृति से भी व्यक्ति का बवासीर ग्रस्त होना संभव है।
*****स्वयं आजमायें
----जीवनशैली के कुछ एक बदलावों से गुदा क्षेत्र एवं मलाशय की रुधिर वाहिकाआंे पर दबाव कम किया जा सकता है और ऐसा करने पर बवासीर की तकलीफ में राहत मिलती है।
----आहारपरक बदलाव
बवासीर होने का कारण कब्ज है तो कोशिश करें कि मल ढीला रहे ताकि मलत्याग में ज़ोर न लगाना पड़े?
ऐसा करने के लिए धीरे.धीरे अपने आहार में रेशेयुक्त पदार्थ शामिल करें। फाइबर के मुख्य स्रोत हैं . गेहूं का चोकर युक्त आटा, दालें और फलियां, मेवे, जई, फल और सब्जियां। अधिक से अधिक तरल पदार्थ लें। खासतौर पर पानी।
----कब्ज का कारण बनने वाली दवाएं न लें जैसे कि दर्दनिवारक औषधियां जिनमें कोडीन विद्यमान रहता है।
---वज़न अधिक होने पर घटाने का प्रयास करें। वजन को सीमित मात्रा में भोजन और नियमित व्यायाम करने से घटाया जा सकता है। ऐसा करने से कब्ज कम होता है और बवासीर होने की आशंका भी घट जाती है।
----नित्यकर्म प्रशिक्षण
मल त्याग करते समय गुदा की शिराओं पर जोर न डालें। जोर डालने पर बवासीर और बिगड़ जाती है।
मलत्याग की इच्छा को टालें नहीं, निवृत्त होने की बजाय मल रोक लेने से वह सख्त पड़ जाता है और सूख भी जाता है जिससे नित्यकर्म से निवृत्त होनेमें जोर लगाना पड़ता है।
इन सभी सावधानियों को अपनाने से भविष्य में दोबारा बवासीर होने से बचाव संभव है।
(अगले माहः ‘बवासीर का उपचार - घरेलू उपाय तथा सर्जरी विधियां’)
लेखक ---डॉ यतीश अग्रवाल
(अनुवादः कुंकुम जोशी)
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