खानपान में प्लास्टिक कंटेनर के
इस्तेमाल से बचें!
सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए और बिस्फिनाल-ए (बीपीए) पर प्रतिबंध लगाकर पहला सबसे स्पष्ट और तर्कसंगत कदम उठाना चाहिए। समय-समय पर हानिकारक रसायनों के लिए प्लास्टिक पदार्थों की जांच करने और इससे संबंधित धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई हेतु सरकार के पास एक तंत्र होना चाहिए। दुर्भाग्यवश, ऐसी प्रणाली भारत में मौजूद नहीं है। ‘फूड ग्रेड प्लास्टिक‘ जैसे लेबल एक छलावा मात्र हैं और इनका कोई मतलब भी नहीं बनता है, क्योंकि कोई भी प्लास्टिक सुरक्षित नहीं है। हमें निरर्थक महत्वाकांक्षा में पड़ने के बजाय स्वास्थ्य और पर्यावरण की दिशा में प्राथमिकता तय करने वाली नई जीवन शैली से अगली पीढ़ी को सम्बल प्रदान करना चाहिए। क्योंकि हमारे पास केवल एक जीवन और एक पृथ्वी है।
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां हम वर्तमान प्रवृत्ति का पालन करते हैं, चाहे खानपान से जुड़ी आदतें हों, सामग्रियों का उपयोग या फैशन आदि हो। स्कूल में लंच बॉक्स का एक उदाहरण लेते हैं। दो दशक पहले अपने स्कूल के दिनों में, मैं गोल छोटे स्टील कंटेनर में अपना दोपहर का भोजन ले जाता था, जिसे हम ‘चोटू प्रथम‘ (राइस कंटेनर) कहते थे। तब के बाद, ये कंटेनर पुराने और अप्रचलित हो गए, इन दिनों स्कूलों में फैशन ट्रेडमार्क बन चुके मशहूर कार्टून पात्र और जानवरों की छवि वाले रंगीन लंच बॉक्स प्रचलन में है। हमें गुणी अभिभावक दर्शाने के लिए समाज मेरी बेटी को उन ट्रेंडी, रंगीन लंच बॉक्स खरीदने के लिए निर्देशित करता है। वे बच्चों के लिए लुभावने होते हैं, अगर मैं जोर देता हूं कि वह अपना खाना स्टील लंच बाक्स में ले जाए तो उसका स्कूल में उपहास उड़ाया जाएगा और उसे पुरानी सोच का ठहरा दिया जाएगा! वह निराश होगी और जल्द ही अपने लंच बॉक्स को और अधिक आधुनिक करने की मांग करेगी! हालांकि, हकीकत में, इसमें कोई बदलाव
नहीं होगा। इनमें से लगभग सभी प्लास्टिक स्कूल लंच बाक्स पॉलीकार्बोनेट नामक एक प्लास्टिक उप प्रकार से बने होते हैं। पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक (जिसमें ‘इपाक्सी’ रेजिन’ पाया जाता है) निरपवाद रूप से एक सिंथेटिक रसायन का श्राव करते हैं, जिसे बिस्फिनाल ए (बीपीए) कहा जाता है। इसकी रासायनिक संरचना महिलाओं के प्रजनन हार्मोन एस्ट्रोजन के समान दिखती है और यदि यह हमारे शरीर के अंदर आ जाए तो अंडाशय में गुणसूत्र का ह्रास सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, इसी तरह पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी आती है, हृदय संवहनी तंत्र क्षति, स्तन और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। बढ़ती सार्वजनिक जागरूकता और कानूनी हस्तक्षेप से विकसित देशों में बीपीए युक्त प्लास्टिक के उपयोग में कमी आई है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ईयू, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस, ताइवान, चीन और मलेशिया समेत कई विकासशील देशों में भी बीपीए पर प्रतिबंध लगा दिया गया है या पहले से ही प्रतिबंधित है। इन प्रवर्तनों की अवहेलना करने के लिए, प्लास्टिक निर्माताओं ने बीपीए को ‘‘बीपीएमुक्त‘‘ प्रमाणन प्राप्त करने के लिए बीपीएस (बिस्फिनाल एस) और बीपीएफ (बिस्फिनाल एफ) के साथ तेजी से बदल दिया है, हालांकि नए शोध से पता चला है कि बीपीएस
और बीपीएफ घातक हैं, और इसलिए इसकी खुराक पूरी तरह से टालना चाहिए। भारत में, अफसोस की बात है कि बीपीए पर प्रतिबंध नहीं है, न ही इसकी बिक्री पर कोई प्रतिबंध लागू है, जो वैज्ञानिक रूप से जागरूक नागरिकों के लिए एक निराशाजनक बात है। 2013 में, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा बीपीए की बोतलों को प्रतिबंधित करने के लिए एक मसौदा तैयार किया गया था लेकिन प्लास्टिक उद्योग के सहकर्मी दबाव के कारण, सरकार इन मसौदे के दिशा-निर्देशों को लागू करने से बचती रही। चाहे औद्योगिक विकास या नागरिकों के स्वास्थ्य का सवाल हो, विशेष रूप से कमजोर नागरिक, गर्भवती महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता, सरकार के लिए तर्कसंगत रूप से एक नैतिक सवाल है। नागरिकों और ग्राहकों को सूचित करने के लिए, कई कंपनियां स्वेच्छा से अपने उत्पादों को ‘बीपीएमुक्त’ लोगो के साथ चिह्नित करती हैं। 2014 में एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया कि इन घोषित ‘बीपीएमुक्त’ उत्पादों में से अधिकांश ने प्रसिद्ध ब्रांडों से शिशु आहार की बोतलों को बीपीए के लिए सकारात्मक परीक्षण किया। आप कैसे जानेंगे कि आप जो प्लास्टिक खरीदते हैं, वह बीपीए ध् बीपीएस ध् बीपीएफ मुक्त है? “फाइन प्रिंट” एक आसान तरीका है। अधिकांश प्लास्टिक
इस्तेमाल से बचें!
सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए और बिस्फिनाल-ए (बीपीए) पर प्रतिबंध लगाकर पहला सबसे स्पष्ट और तर्कसंगत कदम उठाना चाहिए। समय-समय पर हानिकारक रसायनों के लिए प्लास्टिक पदार्थों की जांच करने और इससे संबंधित धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई हेतु सरकार के पास एक तंत्र होना चाहिए। दुर्भाग्यवश, ऐसी प्रणाली भारत में मौजूद नहीं है। ‘फूड ग्रेड प्लास्टिक‘ जैसे लेबल एक छलावा मात्र हैं और इनका कोई मतलब भी नहीं बनता है, क्योंकि कोई भी प्लास्टिक सुरक्षित नहीं है। हमें निरर्थक महत्वाकांक्षा में पड़ने के बजाय स्वास्थ्य और पर्यावरण की दिशा में प्राथमिकता तय करने वाली नई जीवन शैली से अगली पीढ़ी को सम्बल प्रदान करना चाहिए। क्योंकि हमारे पास केवल एक जीवन और एक पृथ्वी है।
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां हम वर्तमान प्रवृत्ति का पालन करते हैं, चाहे खानपान से जुड़ी आदतें हों, सामग्रियों का उपयोग या फैशन आदि हो। स्कूल में लंच बॉक्स का एक उदाहरण लेते हैं। दो दशक पहले अपने स्कूल के दिनों में, मैं गोल छोटे स्टील कंटेनर में अपना दोपहर का भोजन ले जाता था, जिसे हम ‘चोटू प्रथम‘ (राइस कंटेनर) कहते थे। तब के बाद, ये कंटेनर पुराने और अप्रचलित हो गए, इन दिनों स्कूलों में फैशन ट्रेडमार्क बन चुके मशहूर कार्टून पात्र और जानवरों की छवि वाले रंगीन लंच बॉक्स प्रचलन में है। हमें गुणी अभिभावक दर्शाने के लिए समाज मेरी बेटी को उन ट्रेंडी, रंगीन लंच बॉक्स खरीदने के लिए निर्देशित करता है। वे बच्चों के लिए लुभावने होते हैं, अगर मैं जोर देता हूं कि वह अपना खाना स्टील लंच बाक्स में ले जाए तो उसका स्कूल में उपहास उड़ाया जाएगा और उसे पुरानी सोच का ठहरा दिया जाएगा! वह निराश होगी और जल्द ही अपने लंच बॉक्स को और अधिक आधुनिक करने की मांग करेगी! हालांकि, हकीकत में, इसमें कोई बदलाव
नहीं होगा। इनमें से लगभग सभी प्लास्टिक स्कूल लंच बाक्स पॉलीकार्बोनेट नामक एक प्लास्टिक उप प्रकार से बने होते हैं। पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक (जिसमें ‘इपाक्सी’ रेजिन’ पाया जाता है) निरपवाद रूप से एक सिंथेटिक रसायन का श्राव करते हैं, जिसे बिस्फिनाल ए (बीपीए) कहा जाता है। इसकी रासायनिक संरचना महिलाओं के प्रजनन हार्मोन एस्ट्रोजन के समान दिखती है और यदि यह हमारे शरीर के अंदर आ जाए तो अंडाशय में गुणसूत्र का ह्रास सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, इसी तरह पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी आती है, हृदय संवहनी तंत्र क्षति, स्तन और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। बढ़ती सार्वजनिक जागरूकता और कानूनी हस्तक्षेप से विकसित देशों में बीपीए युक्त प्लास्टिक के उपयोग में कमी आई है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ईयू, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस, ताइवान, चीन और मलेशिया समेत कई विकासशील देशों में भी बीपीए पर प्रतिबंध लगा दिया गया है या पहले से ही प्रतिबंधित है। इन प्रवर्तनों की अवहेलना करने के लिए, प्लास्टिक निर्माताओं ने बीपीए को ‘‘बीपीएमुक्त‘‘ प्रमाणन प्राप्त करने के लिए बीपीएस (बिस्फिनाल एस) और बीपीएफ (बिस्फिनाल एफ) के साथ तेजी से बदल दिया है, हालांकि नए शोध से पता चला है कि बीपीएस
और बीपीएफ घातक हैं, और इसलिए इसकी खुराक पूरी तरह से टालना चाहिए। भारत में, अफसोस की बात है कि बीपीए पर प्रतिबंध नहीं है, न ही इसकी बिक्री पर कोई प्रतिबंध लागू है, जो वैज्ञानिक रूप से जागरूक नागरिकों के लिए एक निराशाजनक बात है। 2013 में, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा बीपीए की बोतलों को प्रतिबंधित करने के लिए एक मसौदा तैयार किया गया था लेकिन प्लास्टिक उद्योग के सहकर्मी दबाव के कारण, सरकार इन मसौदे के दिशा-निर्देशों को लागू करने से बचती रही। चाहे औद्योगिक विकास या नागरिकों के स्वास्थ्य का सवाल हो, विशेष रूप से कमजोर नागरिक, गर्भवती महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता, सरकार के लिए तर्कसंगत रूप से एक नैतिक सवाल है। नागरिकों और ग्राहकों को सूचित करने के लिए, कई कंपनियां स्वेच्छा से अपने उत्पादों को ‘बीपीएमुक्त’ लोगो के साथ चिह्नित करती हैं। 2014 में एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया कि इन घोषित ‘बीपीएमुक्त’ उत्पादों में से अधिकांश ने प्रसिद्ध ब्रांडों से शिशु आहार की बोतलों को बीपीए के लिए सकारात्मक परीक्षण किया। आप कैसे जानेंगे कि आप जो प्लास्टिक खरीदते हैं, वह बीपीए ध् बीपीएस ध् बीपीएफ मुक्त है? “फाइन प्रिंट” एक आसान तरीका है। अधिकांश प्लास्टिक
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