Sunday 26 June 2016

ALTERNATIVE

आज जब एक तरफ तो अर्न्तराष्ट्रीय  स्तर के ट्रेंड  डाक्टरों की बहुतायत हमारे है तो क्या हम उन तथाकथित सब सटैंडर्ड लासैंसियेट डाक्टरों की गरीबों के इलाज के लिए बात कर सकते हैं? जब हमने हमारी जनसंख्या के हिसाब से सफिसियैंट नम्बर डाक्टरों का तैयार कर लिया है तो हम रोजाना ओर मैडीकल कालेज किस लिए खोलते जा रहे हैं? विश्व बैंक (1993) जिसने हमारे देश के स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे को दिशा दिये वह सरप्लस डाक्टरों के बारे में चुप्पी क्यों साधे हुए है? दूसरी तरफ सच्चाई यह है कि कई पश्चिमी देशों में भारत के डाक्टर बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हमारे देश की  राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति इस पर चुप क्यों है? उपनिवेशवाद की लिगेशी इसका जवाब नहीं हो सकती क्योंकि इसको पलटने के लिए हमारे पास 69  साल का समय रहा है। महज इतना भर कह देना काफी नहीं है कि ‘ पब्लिक हैल्थ केयर सिस्टम ’ पर हमला बोला जा रहा है या इसे डिसमैंटल किया जा रहा है बल्कि वास्तव में किया क्या जा रहा है इसे भी परिभाषित करना बहुत आवश्यक हो गया है। असल में किस चीज पर हमला किया जा रहा है और क्या डिसमैंटल किया जा रहा हैइसे व्याख्यायित किया जाना बहुत जरुरी हो गया है। साथ ही यह भी देखना है कि किस तरह से यह सब गरीब लोगों के स्वास्थ्य को प्रभवित करेगा हालांकि गरीब लोग इन सब चीजों  को एक इनडिफरैंस ,क्रोध और बेचैनी के साथ देख रहे हैं। जब टूटी फूटी बिखरी उपस्वास्थ्य केन्द्रों की इमारतों से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की इमारतों तक ,स्वास्थ्य क्षेत्र का नीचे से लेकर उपर जिला स्तरीय अस्पताल के डाक्टर द्वारा इन गरीब मरीजों का का शोषण इनकी अज्ञानता का फायदा उठाकर उनके दुखों की मजबूरी के चलते , उपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार के चलते, गरीब विरोधी , जातिगत, लिंग भेद वाले  मैडीकल प्रोफैसनल के व्यवहार के कारण और खासकर डाक्टर बतौर टीम लीडर के, दवाईयां उपलब्ध नहीं,उपकरणों की कमी,सरकारी अस्पतालों में ढीली सेवाओं के चलते खासकर जिला स्तर पर ए गरीब विरोधी, महिला विरोधी जनसंख्या विभाग के हमलों के चलते- गरीब लोग जमीनी स्तर पर मौजूद स्वास्थ्य सेवाओं के भ्रष्टीकरण के चश्मदीद गवाह हैं और उन पर ज्यादा प्रभव नही पड़ने वाला जब उनको बताया जाता हे कि यह सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा खत्म किया जा रहा है क्योंकि उसके लिए तो एक तरह से यह पहले ही बन्द हो चुका है। आगे क्या आने वाला है पस बात पर उन लोगों के बीच में भी जो इस स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे के बारे में गम्भीरता से सोचते हैं , एक चुप सहमति है कि अब इन बाजार की ताकतों को आगे बढने से नहीं रोका जा सकता है। किसी भी व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत विश्व दृष्टिकोण के हिसाब से सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में बदलाव के लिए जो सोचा जा रहा है वह कुछ इस प्रकार कि विश्व बैंक और ट्रांस  नेशनल पूंजी ने जो ढांचा और जगह देशों की सरकारों के माध्यम से तैयार किया है उसी में गरीब मरीजों की जगह कैसे बनाई जाए ? साथ ही इस ढांचे को कोई चुनौती देने की बात गौण हो जाती है। असल में मूलभूत से इन तबकों की नजर से देखकर वैकल्पिक स्वास्थ्य  ढांचे की परिकल्पना एक रणनीतिक काम है ताकि स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच उन तबकों तक हो सके।

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