Friday, 20 March 2020

महामारी कोविड -19 पर जारी कथन

महामारी कोविड  -19 पर जारी कथन
 सरकार से मांग है कि वह तुरंत हरकत में आए ताकि लोगों का जीवन बचाया जा सके इसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करें तथा जीवन यापन की सुविधाओं की सुरक्षा करें ।
अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क तथा जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा जारी।
 30 जनवरी सन 2020 को जब कोविड - 19 का पहला केस रिपोर्ट हुआ तब से आज 15 मार्च 2020 तक भारत में इनकी संख्या 107 तक पहुंच चुकी है और 2 की मृत्यु हो चुकी है ।भारत में इस महामारी को रोकने के लिए जो कदम उठाए हैं वह हैं अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर प्रतिबंध, बाहर से आने वालों की छानबीन तथा उनके संपर्क से बचाव आदि। यदि पॉजिटिव पाए जाते हैं तो उन्हें स्पर्श से अलग रखना आदि ।निस्संदेह इससे महामारी में विलंब हुआ है ।लेकिन सरकार जानती है कि बहुत बुरा होना अभी आगे है| 
 तुरंत हरकत में आना, ऐसे रोगियों को पृथक करना, और उनसे स्पर्श न होने देना स्वागत योग्य है। लेकिन यह काफी नहीं होगा, जब समुदाय का संचारण बढ़ेगा और महामारी पुरजोर पर होगी। 
      देश पहले से ही निजीकरण के चलते स्वास्थ्य सेवाओं में काफी उपेक्षित है देश इस मामले में भी काफी नाजुक हैं कि कई दशकों से बड़ी आबादी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं हुई हैं । आर्थिक व सामाजिक नीतियों ने उन्हें तोड़ कर रख दिया है। इस आर्थिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में यह महामारी उनके लिए अंतिम कारण होगी जो  उनके सर्वनाश का कारण बनेगी ,यदि सरकार इन मांगों की तरफ ध्यान नहीं देती है तो जिन्हें हम नीचे कह रहे हैं :-
कोविड -19 महामारी की लाक्षणिक विशेषताएं---
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कोविड - 19 उस बीमारी का नाम है जो कोरोना वायरस के विशेष प्रभाव से दुनिया में फैल रहा है | इसके लक्षण मौसमी से मिलते जुलते हैं लेकिन इसकी मृत्यु दर मौसमी फ्लू से मरने वालों की अपेक्षा कहीं अधिक है, परंतु दूसरे फ्लू से मरने वालों की अपेक्षा काफी कम है। प्रभावितों में 81% से अधिक में लक्षण दिखाई देते हैं ,15% में बहुत ज्यादा दिखाई देते हैं जिन्हें तुरंत इलाज व चिकित्सीय परामर्श की आवश्यकता है और 4% में गहन चिकित्सा सुविधा की जरूरत है, इनमें वेंटिलेटर व आईसीयू शामिल हैं  ।मृत्यु दर 80 वर्ष से अधिक आयु वालों की ज्यादा है तथा उम्र के कम होने के साथ-साथ यह घटती है। बच्चे अपेक्षाकृत  बच जाते हैं ।
        ऐसा समझा जाता है कि हालात 1918 के फ्लू जैसे नहीं होंगे क्योंकि चिकित्सा सुविधाएं अच्छी हैं । मगर यह असंभव नहीं है |  अगले कुछ महीनों में भी न ही कोई उचित टीका और न ही कोई उचित दवा उपलब्ध होने की संभावना है|  एकमात्र सहारा यही है कि अलग-थलग रहा जाए और सामुदायिक दूरियां बनाई जाएँ ।
      जैसे ही सामाजिक संचारण बढ़ेगा वैसे ही इनकी संख्या बढ़ेगी और यह फैलता जाएगा क्योंकि लक्षणग्रस्त रोगी जनता संख्या में बढ़ जाएंगे। यह बीमारी देश की बड़ी उम्र की आबादी को 30 से 51% तक प्रभावित कर सकती है।  उचित इलाज के बिना यदि मृत्यु दर 1% से 4% तक भी मानी जाये और हमारे यहां तो स्वास्थ्य जांचा कमजोर है ही तो आने वाले वर्ष में मृतकों की संख्या लाखों में हो जाएगी ।
       हमें नहीं पता कि सामुदायिक संचारण स्थापित होता है या नहीं और न  ही बीमारी फैलने की सही सही स्थिति का पता क्योंकि हमारे पास इसके वायरस की जांच के बहुत सीमित साधन हैं । जांच के अभाव में बीमारी फैल जाएगी और इस सीमा तक बढ़ जाएगी कि पता चलने से पहले ही खतरनाक स्तर पर आ जाएगी।
     यह भी सोचने की बात है कि सामुदायिक दूरियां बढ़ाने के नाम से बीमारी का बचाव और जीवन यापन की सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी लोगों पर लाद दी गई है और इनमें भी सबसे ज्यादा चपेट में आने वाले तबकों पर  । इस महामारी के नियंत्रण के लिए पूरी अप्रोच के रूप में काफी हद तक आर्थिक व सामाजिक नाकेबंदी अरक्षणीय  है तथा अधिक से अधिक स्थाई लाभ तक सीमित है ।महामारी अब नहीं कुछ मास बाद चरम पर  आ सकती है|  महामारी में यह देरी या महामारी वक्र का समतल होना  जैसे हमें पता है लाभप्रद होगी क्योंकि इससे सरकारी अस्पतालों को दुरुस्त करने के लिए समय मिलेगा। यदि अस्पतालों में जांच सुविधाएं नहीं बढ़ाई गई या देर कर दी गई तो यह महामारी को फैलने में सहायक होगा और अधिकांश समुदाय स्वास्थ्य संकट में फंस जाएगा, इससे समस्या टलेगी नहीं आगे सरक जाएगी ।
         मुख्य बात यह है कि समुदाय इतना ही कर सकता है कि वह अपनी स्वच्छ्ता  एवं सफाई की कोशिशों में सुधार कर ले। समुदायों को एक दूसरे की मदद में आना चाहिए विशेषकर उनके साथ जो महामारी से ग्रस्त हैं या आर्थिक रूप से जरूरतमंद हैं। जन आंदोलन इस भूमिका को पहचानता है, वह स्वच्छता एवं भाईचारे को बनाने में भूमिका अदा कर सकता है । 
     हम राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारों से यह आह्वान करते हैं कि वह प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों तथा नियंत्रण उपायों के प्रतिकूल प्रभाव लोगों के जीवन और आजीविका पर बना रहे हैं जो सामान रूप से हानिकारक हैं , इनके दुरुस्तीकरण की आवश्यकता है | 
जनता का मांग पत्र -- जीवन बचाएं, जीवन यापन की सुविधाएं 
बचाएं तथा मानव अधिकारों का सम्मान करें ।
        जैसा ऊपर कहा गया है, इसी समझ के तहत  कोविद 19 महामारी पर स्वास्थ्य अभियान हरियाणा इस  मांग पत्र के द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित तथा दूसरे क्षेत्रों से संबंधित निम्नलिखित मांग रखता है ---  
1.  सरकार कोविड -19 स संबंधित जांच सुविधाओं को बढ़ाएं और इसके लिए क्राइटेरिया भी तय करें ।जांच केवल विशेष देशों से आए लक्षण ग्रस्त रोगियों पर ही  या जो उनके संपर्क  में आये हों तक ही सीमित न हो | हर संदेह वाला रोगी जांच के दायरे में आए । जो इस बीमारी से  ग्रस्त हैं  उनको  अलग रखा जाए |  उनके संपर्क भी  ढूंढे जाएं । अलग थलग करने विदेश के उन देशों से, जहाँ महामारी हुई है , आये लोगों को लंबे समय तक अलग रखना वाजिब हो सकता है| परन्तु इसके साथ ही व्यवस्था को सामुदायिक संचारण के बारे अपने आप को गियर अप करना चाहिए |  
2.  सरकार को जन स्वास्थ्य सेवाओं की तैयारी करनी चाहिए जिन्हें उनकी जरूरत है। सरकारी अस्पतालों को मजबूत किया जाए ताकि महामारी के मरीजों की देखभाल ठीक तरह से की जा सके ।इसके लिए हर 5 से 10 लाख की जनसंख्या पर कम से कम एक अस्पताल में एक आईसीयू हो, ऑक्सीजन सप्लाई हो। इससे संबंधित सभी दवाइयां एवं व्यवस्थाएं ऑक्सीजन एवं मानव संसाधन आदि पर्याप्त मात्रा में हों ।हम यह दोहराना चाहते हैं कि यह पीछे का छूटा  हुआ कार्य हैं और इस महामारी के हमले के समय इस को पूरा कर दिया जाए।
3.  उस समय जब यह महामारी हमारे  देश के किसी कोने में पूरी आपात स्थिति में आ जाए तब यह जरूरी है कि सभी वर्तमान चिकित्सा सुविधाएं जिसमें प्राइवेट अस्पताल भी शामिल हों जिला प्रशासन के अधीन हो जाएँ । इन स्वास्थ्य सुविधाओं की देखभाल व् संचालन जिला अधिकारी करें न कि बाजारी नियंत्रण के तरीकों से हो |  इस महामारी की तैयारियों हेतु सभी प्रोटोकॉल , प्रशासनिक नियम व आर्थिक संसाधन महामारी के संदर्भ में प्रस्थापित कर  दिए जाएँ | 
4 सभी निजी एवं सरकारी क्षेत्रों में दूसरे बुखार व मौसमी फ्लू से मरने वालों की रिपोर्ट तैयार हो और बड़े स्तर पर इस बीमारी की जांच के लिए इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलेंस प्रोग्राम मजबूत किया जाए।इस फैलाव के अभाव में हम चेताना चाहते हैं कि देश महामारी में 
धंस जाएगा और हमें पता भी नहीं चलेगा। कोई आश्चर्य नहीं यह इन इलाकों में भी दूर तक फैल जाएगा जहां इसकी न्यूनतम उम्मीद है | 
5 . एक दीर्घ कलिक उपाय के रूप में हम हर जिले में रोग नियंत्रण के लिए एक सरकारी केंद्र स्थापित करने का आह्वान करते हैं , जो मौजूदा कोविड -19 महामारी की तरह रोगजनक हमलों के लिए अलर्ट करने , सलाह देने  , परिक्षण करने ,और  पहचानने  के लिए काम करे | इसके लिए  स्टाफ सभी सुविधा प्रदान  करता हो।
6.   स्वास्थ्य सुविधाओं व इनके सहायक स्टाफ की उचित कार्य व्यवस्था तथा पर्याप्त सुरक्षात्मक सुविधाएं सुनिश्चित की जाएँ |  यह केवल अस्पतालों में ही नहीं अपितु उन आगे बढ़कर कार्य करने वाले कर्मियों के लिए भी हो जो अलग-थलग रह रहे स्थलों पर कार्य कर रहे हैं ।इसके लिए एक चिकित्सीय टूल बनाने की जरूरत होगी जिसमें चेहरे के मास्क, कीटाणु रहित द्रव प्राथमिकता पर हों ।
7. यह भी सुनिश्चित किया जाए की बीमारी फैलने की अवस्था में दुर्लभ  संसाधनों का वितरण जन स्वास्थ्य की आवश्यकताओं के साफ-सुथरे मूल्यांकन के अनुसार  शासित होना चाहिए  न की ऊँची दर की बोली के हिसाब से ।यह समस्या तमिल फ्लू के दौरान 2009 H I N  1 इन्फ्लूएंजा महामारी के समय हुई थी ।दवाओं व टीकों  के विकास में अंतर्राष्ट्रीय मेलजोल  निहायत जरूरी है ।इस बात का ध्यान रहे की पेटेंट आदि के एकाधिकार लेने से बचा जाए जिससे प्रभावी इलाज का उत्पादन सीमित न  हो ।
8.  सामाजिक अलगाव (दूरी) जन शिक्षा व सहमति से हो और जरूर हो । जबरदस्ती की जाने वाले तरीके अनुचित होंगे और सहायक नहीं होंगे|  जन समूह में जन घटनाएं चाहे सामाजिक, धार्मिक, खेलकूद, सांस्कृतिक या राजनीतिक हों  कुछ समय के लिए टाली जा सकती हैं परंतु इन पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
9.   सक्रिय सामुदायिक सहायता और आगे बढ़ी हुई सेवाएं बढ़ाई जाएँ  उन व्यक्तियों के लिए जरूर जिन्हें घरों में अलग-थलग किया गया है और जिनकी सामाजिक सुरक्षा एवं लाभ रोक दिए गए हैं तथा आवश्यक सेवाएं जिनकी पहुंच से कठिन है। बहुत से बच्चों को अतिरिक्त पोषण कार्यक्रमों की जरूरत होगी व उस अवस्था में तो और भी ज्यादा  जबकि  इनके माता-पिता जीवन यापन  की प्रकिर्या प्रभावित हो रही हो। बिना विकल्प की तैयारी के ऐसी सेवाओं को बंद कर देना अनुचित होगा।
10  जब विशेष प्रावधानों के जरिए नाकेबंदी की जाती है या अलग करके रखा  जाता है तो  यह सुनिश्चित किया जाए कि यह सब माननीय तरीके से हो , इसमें कुछ अशिष्ट  न हो तथा मानवाधिकार बने रहें  ।सरकारों को मानवाधिकार संगठनों, नागरिक समाज की संस्थाओं व श्रम संगठनों को साथ लेना चाहिए जो निरीक्षण करें और रिपोर्ट लें  कि जरूरतमंद वर्गों की क्या समस्याएं हैं तथा उन्हें मिलने वाली सहायता के स्तर क्या हैं ।
11 इस महामारी व इसके परिणामों की रिपोर्ट के लिए हर समय प्रचार माध्यमों की स्वतंत्रता की सुरक्षा हो । प्रचार माध्यम जब भी इसके फैलने के, संक्रमण के स्रोत या इलाज के समाचार दें तो उन्हें प्रोत्साहित किया जाए लेकिन वह उन मापदंडों के अनुसार कार्य करें जो सरकारी चैनलों , अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन चैनल या विश्वविद्यालयों व शोध संस्थानों द्वारा स्थापित हों ।यदि सूचना किसी अन्य स्रोत से मिली हो तो उसके साथ अस्वीकरण दिया जाए कि यह सत्यापित नहीं है और झूठी हो सकती है ।प्रचार माध्यमों की स्वतंत्रता पर पूरा प्रतिबंध निषेध हैऔर इसका विरोध होना चाहिए ।
*कारण और परिणाम के रूप में आर्थिक असमानता को कम करना :-
12 रोजमर्रा की आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखना जोकि अधिकांश की जीवन यापन की प्राथमिकता है सुरक्षित रहें ।इस बात को जन स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में स्वीकार किया जाए। ऐसे समय में जन शिक्षा के द्वारा एकजुटता की जरूरत को संबोधित किया जाए। जिनके पास अधिक धन है या जो वेतनभोगी हैं उनकीअपेक्षा मजदूरी करने वाले व गरीब लोग ज्यादा आर्थिक व जीवनयापन की मार में आते हैं ।इस बात को स्वीकार किया जाए ।ऐसी नाके बंदियों के द्वारा जो अलग-थलग कर दिए गए हैं और जो जीवन यापन से समझौता कर रहे हैं , नौकरशाहों द्वारा तथा समुदाय के द्वारा उनकी सक्रिय सहायता की जाए।
 13 जन खर्च को तुरंत बढ़ाया जाए जिससे जन वितरण प्रणाली, नगद भुगतान के लिए ज्यादा पैसा मिल सके ताकि लोगों की  ज्यादा सामाजिक सुरक्षा वह खाद्य सुरक्षा की मांग पूरी हो सके ।अधिकांश लोगों के जीवनयापन पर जो हमला है उसे तुरंत संबोधित किए जाने की जरूरत है। क्योंकि पहले ही दशकों की आर्थिक नीतियों के चलते पूंजी संग्रहित हो चुकी है। इसलिए जिनका जीवनयापन नष्ट हो चुका है उन्हें तुरंत संबोधित किया जाए ।कारपोरेट उद्योगों को और ज्यादा छूट देना कि वह भी संकट को झेल रहे हैं तथा श्रमिक वर्ग पर और ज्यादा ज्यादतियां करना बहुत ही भारी उल्टी प्रतिक्रिया होगी और उन पर अन्याय होगा।

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