महामारी कोविड-19 पर जारी कथन
सरकार से तुरन्त मांग करें ताकि लोगों का जीवन बचाया जाए। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की मांग तथा जीवन यापन की सुविधाओं की सुरक्षा करने की मांग
::अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क तथा जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा जारी::
30 जनवरी सन 2020 को जब कोविड-19 का पहला केस रिपोर्ट हुआ तब से आज 15 मार्च 2020 तक भारत में इस महामारी के केसों की संख्या 107 पहुंच चुकी है और दो की मृत्यु हो चुकी है । raaz in ka 0
भारत में इस महामारी को रोकने के लिए जो कदम उठाए गए हैं वह हैं --
--अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर प्रतिबंध
--बाहर से आने वालों की छानबीन तथा उनके संपर्क से बचाव आदि
--यदि वे पॉजिटिव (बीमारी ग्रस्त ) पाए जाते हैं तो इन्हें किसी से स्पर्श से अलग रखना
--निसन्देह इससे महामारी में आगे बढ़ने में विलंब हुआ।
--लेकिन सरकार जानती है कि बहुत बुरा आगे होने वाला है ---तुरंत हरकत में आना, ऐसे रोगियों को पृथक करना और उनके स्पर्श न होने देना , स्वागत योग्य है, लेकिन यह काफी नहीं होगा।
जन समुदाय का संक्रमण बढ़ेगा और महामारी पुरजोर पर होगी। देश पहले से ही निजीकरण के चलते स्वास्थ्य सेवाओं में काफी उपेक्षित है। देश इस मामले में भी नाजुक है कि कई दशकों से बड़ी आबादी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं हुई हैं। आर्थिक व सामाजिक नीतियों ने उन्हें तोड़ कर रख दिया है। इस आर्थिक व सामाजिक परिवेश में यह महामारी उनके लिए अंतिम कारण होगी जो उनके सर्वनाश का कारण बनेगी यदि सरकार इन मांगों की तरफ ध्यान नहीं देती है , जिन्हें हम नीचे दे रहे हैं--
कोविड -19 महामारी की लाक्षणिक विशेषताएं:--
कोविड -19 उस बीमारी का नाम है जो कोरोना वायरस के विशेष प्रभाव से दुनिया में फैल रहा है ।
इसके लक्षण मौसमी फ्ल्यू से मिलते -जुलते हैं, लेकिन इसकी मृत्यु दर मौसमी फ्ल्यू से मरने वालों की अपेक्षा कहीं अधिक है , परन्तु दूसरे फ्ल्यूओं से मरने वालों की अपेक्षा काफी कम है।
प्रभावितों में 81% से अधिक में लक्षण कम दिखाई देते हैं, 15% में बहुत ज्यादा दिखाई देते हैं , जिन्हें तुरन्त इलाज व चिकित्सीय परामर्श की जरूरत है और 4% में गहन चिकित्सा सुविधा की जरूरत है जिसमें वेंटिलेटर व आइसीयू
शामिल हैं
मृत्यु दर 20 वर्ष से अधिक आयु वालों में ज्यादा है तथा उम्र के कम होने के साथ यह कम है। बच्चे अपेक्षकृत बच जाते हैं ।
ऐसा समझा जाता है कि हालात 1918 के फ्लू जैसे नहीं होंगे क्योंकि चिकित्सा सुविधाएं अच्छी हैं । यह आसंभव है ।अगले कुछ महीनों में भी न ही कोई उचित टीका और ना
ही कोई उचित दवा उपलब्ध होने की संभावना लगती है। एकमात्र सहारा यही है कि अलग थलग रहा जाए और सामुदायिक दूरियां बनाएं।
जैसे ही सामाजिक संचारण बढ़ेगा वैसे ही इसकी संख्या बढ़ेगी और यह और ज्यादा इसलिए होगा यदि उस जगह बिना लक्षणों वाले संक्रमित रोगी ज्यादा होंगे । या जनता में रोग होने का संशय ज्यादा होगा। यह बीमारी देश की वयस्क आबादी को 30 से 51% तक प्रभावित कर सकती है । हालांकि मृत्यु दर 1 % होते हुए भी 4% मरीजों को गहन देखभाल चिकित्सा की जरूरत रहेगी । हमारे यहां तो स्वास्थ्य ढांचा कमजोर है ही तो आने वाले वर्ष में मृतकों की संख्या लाखों में हो जाएगी।
हमें नहीं पता कि सामुदायिक संक्रमण स्थापित होता है या नहीं और न ही बीमारी फैलने की सही सही स्थिति का पता, क्योंकि हमारे पास इसके वायरस की जांच के बहुत सीमित साधन हैं। इस तरह जांच के अभाव में बीमारी फैल जाएगी और इस सीमा तक बढ़ जाएगी कि पता चलने से पहले ही खतरनाक स्तर तक बढ़ जाएगी ।
यह भी सोचने की बात है कि सामुदायिक दूरियां करने के नाम से बीमारी का बचाव और जीवन यापन की सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी लोगों पर खासकर कमजोर तबकों पर लाद दी गई है । इस महामारी के नियंत्रण के लिए फौरी अप्रोच के रूप में काफी हद तक आर्थिक व सामाजिक नाकेबंदी टिकाऊ नहीं है चाहे इसका तुरन्त कितना ही फायदा हो। महामारी की पीक अब नहीं कुछ मास बाद में आ सकती है। महामारी में इस उग्रता तक आने का ग्राफ टाइम ज्यादा होता है तो हमें पता है लाभप्रद है क्योंकि इससे सरकारी अस्पतालों को दुरुस्त करने के लिए समय मिलेगा। यदि अस्पतालों में जांच सुविधाएं नहीं बढ़ाई गई या देर कर दी गई तो यह महामारी को फैलने में सहायक होगा और अधिकांश समुदाय स्वास्थ्य संकट में फंस जाएगा ।
मुख्य बात यह है कि समुदाय इतना ही कर सकता है कि वह अपनी स्वच्छता एवं सफाई की कोशिशों में सुधार कर ले ।समुदायों को एक दूसरे की मदद में आना चाहिए, विशेषकर उनके साथ जो महामारी से ग्रस्त हैं या आर्थिक रूप से जरूरतमंद हैं। जन आंदोलन इस भूमिका को पहचानता है , वह स्वच्छता एवं भाईचारे को बनाने में भूमिका अदा कर सकता है।
हम राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारों से यह आह्वान करते हैं कि वे स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों तथा लोगों के जीवन पड़ने वाले प्रभावों पर ध्यान दें। इन दोनों बातों को शीघ्र पूरा करने की जरूरत है।
जनता का मांग पत्र
जीवन बचाएं, जीवन यापन की सुविधाएं बचाएं तथा मानवाधिकारों का सम्मान करें ।
जैसा ऊपर कहा गया है ,इसी समझ पर जन स्वास्थ्य
अभियान हरयाणा यह मांग पत्र रखते हैं :-
1.सरकार कोविड-19 से संबंधित जांच सुविधाओं को बढायें और क्राइटेरिया भी तय करे। जांच केवल विशेष देशों से आये लक्षणग्रस्त रोगियों पर ही या जो उनके संपर्क में आये हों तक ही सीमित न हो। हर सन्देह वाला रोगी जांच के दायरे में आये। जो इस बीमारी से ग्रस्त हैं उनको अलग रखा जाए व उनके सम्पर्क ढूंढे जाएं, विदेश से उन देशों से जहां यह महामारी हुई है से आये लोगों आये लोगों को लंबे समय तक अलग रखना वाजिब हो सकता है, इसके साथ ही व्यवस्था को सामुदायिक संक्रमण का सामना करने के लिए तैयारी करनी चाहिए।
2.सरकार को जन स्वास्थ्य सेवाओं को शीघ्रता से तैयार, सरकारी अस्पतालों को मजबूत करते हुए, करना चाहिए ताकि महामारी के मरीजों की देखभाल की जा सके और दाखिल किया जा सके। इसके लिए 5 से 10 लाख की जन्सनसँख्या पर कम से कम एक अस्पताल में एक ICU हो, अलग रखने के सक्षम वार्ड हों , वेंटिलेटर हों व ऑक्सीजन सप्लाई हो। इनसे सम्बंधित सभी दवाइयां एवम व्यवस्थाएं जैसे ऑक्सीजन एवम मानव संसाधन पर्याप्त मात्रा में हों । हम यहां यह कहना चाहते हैं कि यह पीछे का छुटा हुआ कार्य है और इस महामारी के हमले के समय पर इसको पूरा कर लिया जाए ।
3.उस समय जब यह महामारी देश के किसी कोने में पूरी आपात स्थिति में आ जाये तब यह जरूरी है कि सभी वर्तमान चिकित्सा सुविधाएं जिसमें प्राइवेट अस्पताल भी शामिल हों, जिला प्रशासन के द्वारा संचालित हों । इन स्वास्थ्य सुविधाओं की देखभाल व संचालन जिला अधिकारी करें न कि बाजारी नियंत्रण के तरीकों से हो। इस महामारी की तैयारियों हेतु सभी प्रोटोकॉल, प्रशासनिक नियम व आर्थिक संचालन को महामारी के संदर्भ में प्रस्थापित कर दिए जाएं।
4.शीघ्र से शीघ्र डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम को मजबूत किया जाए-इस बीमारी के टेस्ट करने की क्षमता बढ़ाकर, और सभी सीज़नल फ्ल्यू और दूसरे बुखारों से सम्बंधित मृत्यु की सूचना इकट्ठी करके सभी पब्लिक या प्राइवेट स्रोतों से। यदि हम ये तैयारियां नहीं करते तो हम चेता रहे हैं कि ऐसा हो सकता है कि देश बिना जानकारी के इस महामारी को झेल सकता है या यह महामारी ऐसे जगहों पर कलस्टर आउट ब्रेक्स के जहां हम उम्मीद नही करते हमें अचंभित कर सकती है।
5.एक दीर्घकालिक उपाय के रूप में हम हर जिले में रोग नियंत्रण के लिए एक सरकारी केंद्र स्थापित करने का आह्वान करते हैं, जो मौजूदा कोविड -19 महामारी की तरह रोगजनक हमलों के लिए अलर्ट, सलाह और परीक्षण करने, पहचानने और सलाह देने के लिए स्टाफ और सुविधा प्रदान करता है।
6.सुरक्षित काम करने की स्थिति और स्वास्थ्य और सहायक कर्मचारियों के लिए पर्याप्त सुरक्षात्मक उपकरण सुनिश्चित करें। ये न केवल अस्पतालों में, बल्कि होम क्वारंटाइन और अलगाव का समर्थन करने वाले फ्रंटलाइन श्रमिकों के लिए भी प्रदान किए जाने हैं। इसके लिए जरूरी है कि चिकित्सा उपकरण जैसे कि प्रभावी फेसमास्क और स्टरलाइज़िंग तरल पदार्थ फ्रंट-लाइन हेल्थकेयर श्रमिकों और रोगियों के लिए प्राथमिकता दी जाती है।
7.यह सुनिश्चित करें कि व्यापक प्रकोप की स्थिति में दुर्लभ संसाधनों के वितरण को सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के स्पष्ट मूल्यांकन द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए, न कि उच्चतम बोली लगाने वाले को बिक्री पर (यह समस्या Oseltamivir (Tamiflu) के साथ 2009 H1N1 इन्फ्लूएंजा महामारी के दौरान सामने आई। )। दवा और वैक्सीन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की दृष्टि से विकास एक आवश्यक है, और पेटेंट मोनोपॉली को संभावित उपचार के उत्पादन को सीमित करने से रोकने के लिए देखभाल की जानी चाहिए।
सामाजिक दूरी और मानव अधिकार::
8.सार्वजनिक शिक्षा और अनुनय द्वारा सामाजिक दूरी पर काम आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। जबरदस्ती के उपायों का उपयोग अनुचित और अपवित्र होगा। सामूहिक समारोहों, सार्वजनिक आयोजनों, चाहे सामाजिक, धार्मिक, खेल से संबंधित, सांस्कृतिक या राजनीतिक, कुछ समय के लिए स्थगित हो सकते हैं - लेकिन प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए।
9.
घरेलू संगरोध में उन लोगों के लिए सक्रिय सामुदायिक समर्थन और आउटरीच सेवाओं का निर्माण किया जाना चाहिए, जिनके सामाजिक सुरक्षा काम बंद होने या आवश्यक सेवाओं तक पहुँचने में कठिनाइयों के कारण प्रभावित होती है । होम संगरोध के तहत कई सह-रुग्णताएं होंगी जिन्हें देखभाल और दवा का पालन करने की आवश्यकता होगी। कई बच्चों को पूरक पोषण कार्यक्रमों तक पहुंच की आवश्यकता होगी, ऐसा तब, जब उनके माता-पिता की आजीविका प्रक्रिया प्रभावित हो रही होती हैं । विकल्प प्रदान किए बिना ऐसी सेवाओं को बंद करना अनुचित होगा।
10
जब आबादी को लॉकडाउन या संगरोध के तहत रखा जाता है, तो यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता होगी कि यह मानवीय तरीके से किया जाए और मूल मानव अधिकारों के दुरुपयोग के बिना किया जाए। सरकारों को मानवाधिकार संस्थाओं और सिविल सोसाइटी संगठनों और सक्रिय संघों की सक्रिय भागीदारी और देखभाल के मानकों और सबसे कमजोर वर्गों के सामने आने वाली समस्याओं पर वापस फीड बैक रिपोर्ट करने की आवश्यकता है।
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महामारी पर रिपोर्ट करने की मीडिया की स्वतंत्रता और उसके परिणामों को हर समय सुरक्षित रखा जाना चाहिए। हालांकि जब प्रसार की प्रकृति, संक्रमण के स्रोत या उपचार पर संदेश ले जाते हैं, तो समाचार मीडिया को सरकारी चैनलों, अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान चैनलों, या विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों द्वारा निर्धारित मापदंडों को रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
जहां जानकारी किसी अन्य स्रोतों से है, समाचार को एक अस्वीकरण के साथ होना चाहिए कि यह असत्यापित है और नकली हो सकता है। मीडिया स्वतंत्रता पर कोई भी कंबल प्रतिबंध अनुचित है और इसका विरोध किया जाना चाहिए।
**कारण और परिणाम के रूप में आर्थिक असमानता को कम करना:::
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नियमित आर्थिक गतिविधि का रखरखाव, जिसका मुख्य रूप से बहुमत की आजीविका की सुरक्षा करना है, को भी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। सार्वजनिक शिक्षा को ऐसे समय में एकजुटता बनाने की आवश्यकता पर भी ध्यान देना चाहिए। वेतनभोगी वर्ग और संपन्न लोगों की तुलना में आजीविका बाधित होने के कारण कामकाजी लोग और गरीब बहुत अधिक आर्थिक मार झेलते हैं और इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।घरेलू संगरोध में सैलरीड लोगों से सक्रिय सामुदायिक सहायता और समर्थन प्राप्त करना होगा और उनके लिए जिनकी आजीविका इन तालाबंदी से प्रभावित है।
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सार्वजनिक व्यय में तत्काल वृद्धि होनी चाहिए जो सामाजिक वितरण और खाद्य सुरक्षा उपायों के रूप में व्यापक मांग-पक्ष समर्थन की ओर ले जाती है, जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत हकदारी में वृद्धि और नकद हस्तांतरण। इसके लिए आवश्यक है कि बहुमत की आजीविका पर हमले को संबोधित किया जाए जो पहले से ही एक दशक की आर्थिक नीतियों से प्रभावित हो चुके हैं जो पूंजी संचय को तेज करती हैं, लेकिन आजीविका को नष्ट कर देती हैं। संकट से जूझ रहे कॉरपोरेट उद्योग को और रियायतें देने के साथ-साथ काम करने वाले लोगों के लिए आगे की तपस्या सबसे अधिक प्रति-उत्पादक और मुश्किल होगी।
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