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कोरोना वायरस बीमारी
कोविड-19
भारत ज्ञान विज्ञान समिति
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कोरोना वायरस बीमारी
कोविड-19
विषेषज्ञ सहयोगः
डॉ. टी. सुंदरामन
समन्वक, जन स्वास्थ्य आंदोलन, पूर्व डीन, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, पूर्व कार्यकारी निदेषक राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली स्रोत केन्द्र, स्वास्थ्य एव परिवार कल्याण मत्रालय, भारत सरकार
डॉ. आर.एस. दहिया
पूर्व विभागाध्यक्ष, सर्जरी विभाग, स्नातकोत्तर चिकित्सा विज्ञान संस्थान, रोहतक
सकंलनः
डॉ. ओम प्रकाष भूरेटा
सहयोग राषि 5 रूपये
भारत ज्ञान विज्ञान समिति के लिए हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति द्वारा शिमला से प्रकाशित
20 मार्च 2020
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दो शब्द
जन विज्ञान आन्दोलन का पहला और मुख्य कार्यभार वैज्ञानिक सोच का प्रचार-प्रसार करना और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर लोगों में जागरुकता पैदा करना है। 1984 की गैस त्रासदी के बाद हमारे आन्दोलन ने सीख ली कि अगर लोगों के पास आम जीवन में साधारण विज्ञान के तरीकों और तकनीकों को इस्तेमाल करने की जानकारी और ज्ञान हो तो कई बहुमूल्य जानें बचाई जा सकती हैं या उन्हें चिकित्सा सुविधा मिलने तक बचाए रखा जा सकता है। इसी उद्देश्य के साथ जन विज्ञान आन्दोलन ने साक्षरता को केवल अंक और अक्षर ज्ञान तक सीमित न रखकर इसे आगे बढ़ाया और जन स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, महिला-पुरुष समानता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार सहित अनेक सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक मुद्दों तक अपने आन्दोलन के काम के दायरे का विस्तार किया।
जन विज्ञान आन्दोलन अपना दायित्व मानता है कि समाज में किसी भी ऐसी घटना घटने पर जिसके बारे में समाज में भय और भ्रांतियां पैदा हो रही हांे उसमें वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर तुरन्त प्रभाव से हस्तक्षेप करना चाहिए फिर वह चाहे सामाजिक,परिस्थिति, घटना हो या कोई खगोलीय या चिकित्सीय घटना।
कोरोना वायरस बीमारी को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित किया जा चुका है। इस पर अभी तक के उपलब्ध प्रामाणिक तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर विज्ञान आन्दोलन का दायित्व बनता है कि इस महामारी पर न केवल प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए बल्कि इसे वैज्ञानिक आधार पर जनता के बीच ले जाकर जनता को भ्रम, भय और असमंजस की स्थिति से बाहर निकाला जा सके।
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कोरोना वायरस बीमारी के बारे में इस समय आम आदमी के मन में काफी डर का माहौल बन चुका है। अन्य देशों में इसके बढ़ते मामलों की वजह से केन्द्र और राज्य सरकारों ने भी सतर्कता और सावधानी के तौर पर कई कदम उठाए हैं। सोशल मीडिया में कोरोना वायरस को लेकर संदेश, उपचार और इसके बारे में जानकारी की बाढ़ सी आ गई है। लोगों के डर का फायदा उठाते हुए मास्क और सेनेटाइज़र की कालाबाज़ारी होने लगी है। रोज़मर्रा कमाकर खाने वालों की मुसीबतें बढ़ गई हैं। अगर समय रहते इस मुद्दे पर जनता की जागरुकता नहीं होगी तो चिकित्सीय कम सामाजिक समस्या अधिक हो जाएगी।
इन सभी तथ्यों के मद्देनजर कोरोना पर तैयार पुस्तिका ‘कोरोना वायरस बीमारी कोविड-19’ बहुत ही सरल तरीके और सरल शब्दों में तैयार की गई है जिसमें इतिहास के साथ-साथ, कोरोना के वैज्ञानिक पक्ष, इसके सामाजिक प्रभावों का आकलन किया गया है और सरकार, समुदाय, व्यक्तिगत तौर पर किये जाने वाले प्रयासों के बारे में सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं।
विभिन्न प्रामाणिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी का मर्म लेते हुए इसे वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में तैयार किया गया है। इसके लिए हम जन विज्ञान आन्दोलन की ओर से उन सभी का आभार व्यक्त करना चाहते हैं।
डॉ. काशीनाथ चटर्जी
स्चिव भारत ज्ञान विज्ञान समिति
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कोविड-19 (Covid-19) कोरोना वायरस बीमारी (Corona Virus Disease 2019) का संक्षिप्त नाम है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 11 फरवरी 2020 को फ्लू की महामारी के बढ़ते प्रकोप के बाद दिया था। इस बीमारी को सबसे पहले चीन के वुहान प्रांत में दिसम्बर 2019 में पहचाना गया था। नोवल कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) को तकनीकी तौर पर फ्लू नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह इन्फलुएंजा वायरस ( Influenja Virus) के कारण नहीं होता। परन्तु यह इस फ्लूमहामारी की तरह ही है। कोरोना वायरस से जुड़ी सांस की गंभीर बीमारियों ( Severe respiratory disease) के दो प्रकोप पिछले कुछ समय में हो चुके हैं। 2003-04 में सबसे पहले सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) (Severe Acute Respiratory Syndrome) (जो सार्स कोरोना नामक वायरस से फैला था) का प्रकोप तकरीबन 30 देशों में हुआ था। इसकी मृत्यु दर 9 फीसद थी और इससे 813 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद कोरोना वायरस का प्रकोप सऊदी अरब में हुआ था जिसे मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome-MERS) के तौर पर जाना गया। इसकी मृत्यु दर 34 फीसद से ज्यादा थी और इससे 858 मौतें हुई थी।
10 मार्च तक यह बीमारी 109 देशों में फैल चुकी थी। 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे सर्वव्यापी महामारी घोषित कर दिया गया। कोविड-19 का प्रकोप अभी तक 176 देशों में हो चुका है। अभी तक ज्ञात मरीजों में से तकरीबन 90 फीसद सिर्फ 7 देशों में ही हैं। इनमें से 48 फीसद चीन में, 15 फीसद इटली में, 9 फीसद ईरान में, 5 फीसद कोरिया में, 4 फीसद जापान में, 3 फीसद फ्रांस में और 3 ही फीसद जर्मनी में हैं। बाकि के 10 फीसद 169 देशों में से हैं।
कोविड-19 वायरस से जुडी मृत्यु दर ( Death Rate) (2 से 3 फीसद) तो काफी कम है परन्तु इसकी संक्रामकता (Infectiousness) बहुत ज्यादा है। 2003 के सार्स बीमारी की मृत्यु दर 10 फीसद की थी। संक्रामकता की वजह से वायरस बहुत ज्यादा लोगों में फैल सकता है। इसलिए कम मृत्यु दर के होते हुए भी इससे ज्यादा मौतें हो सकती हैं।
पिछले 100 सालों में दुनिया ने लगभग 5 फ्लू आधारित महामारियों को झेला है। 1918 में फैली ‘स्पैनिष फ्लू" (Spanish Flu) मानव इतिहास की सबसे भयानक महामारी थी। इस महामारी से 50 करोड़ लोग या लगभग एक तिहाई दुनिया की आबादी संक्रमित हो गई थी। 5 से 10 फीसद मृत्यु दर के कारण 8 से 10 करोड़ मौतें हुई थी जो दोनों विश्व युद्धों में मारे गए लोगों की संख्या से भी ज्यादा थी। भारत में इस बीमारी से लगभग 1.8 करोड़ लोग मारे गए थे। भारतीय कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपने संस्मरण में लिखा था, कि ‘‘गंगा भी लाशों से भर गई थी। यह मेरे जीवन का सबसे असामान्य समय था और मेरा पूरा परिवार पलक झपकते ही गायब हो गया। मैं जिस तरफ भी देखता था उसी तरफ अंधेरा छाया था।’’
‘स्पैनिष फ्लू’ ने बुजुर्गों के बजाए 5 साल से नीचे के बच्चों व युवाओं को अपना षिकार बनाया था। इस बीमारी का प्रहार पहले बसंत ऋतु में, फिर पतझड़ में और उसके बाद सर्दियों में हुआ था। इस बार भी इस तरह की पुनरावृति देखने को मिल सकती है।
1957-58 के ‘एषियन फ्लू’ (Asian Flu) के प्रकोप से 20 लाख से ज्यादा मौतें हुई थी। 1968-69 के हांगकांग फ्लू (Hong Kong Flu) में भी 10 लाख के करीब मौतें हुई थी। 1997 में ‘बर्ड फ्लू’ से भी भारी संख्या में मौतें हुईं। 2009 में ‘स्वाइन फ्लू’ (Swine Flu) से 6 लाख के करीब मौतें हुईं।
हालांकि ‘स्पैनिष फलू’ जैसी स्थिति के दोहराव की संभावना आज की बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियों के चलते काफी कम है, परन्तु असंभव नहीं है। स्पर्षोन्मुख (Asymptomatic) बीमारी के फैलाने वालों के बढ़ने और अपेक्षाकृत नये वायरस के प्रति आबादी की कम प्रतिरक्षा के चलते मृत्यु दर काफी बढ़ सकती है। एक अनुमान के अनुसार यह बीमारी यदि अपनी संक्रामकता के कारण वर्तमान आबादी के 50 फीसद को भी संक्रमित कर गई तो 600 करोड़ की आबादी में 30 लाख के करीब मौतें हो सकती हैं। इसकी कल्पना करना भी भयावह है।
इस बीमारी का सामुदायिक संचारण (Community Transmission) जब होगा तो भारत में स्थिति भयानक हो जाएगी। सामाजिक अलगाव (Social Isolation) के कारण बीमारी की चरम सीमा तक पहुचने में देर तो होगी परंतु इसकी भयावहता से बचा नहीं जा सकता। हमारे अस्पताल बीमारों की बढ़ती संख्या के भार को सहन नहीं कर पाएंगे। भारत के लिए यह आपदा अभूतपूर्व हो सकती है और हम इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।
इतिहास से हमें सबक मिलता है कि हमें किसी भी महामारी एवं आमतौर पर होने वाली बीमारियां जैसे मौसमी फ्लू (जिसमें 3 से 6 लाख लोग सालाना मर जाते हैं) को गंभीरता से लेना चाहिए और इससे बचाव की तैयारी हमेशा वैश्विक प्राथमिकता में रहनी चाहिए।
कोविड-19 बीमारी क्या है?
कोविड-19 एक संक्रामक बीमारी है, जिसका मतलब है कि यह प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से एक से दूसरे व्यक्ति को फैल सकती है। इसका प्रभाव ऊपरी सांस लेने वाली प्रणाली ;न्चचमत तमेचपतंजवतल जतंबजद्ध (नाक, गले, वायु मार्ग, फेफड़ों आदि) ;छवेमए जीतवंजए ंपतूंलेए सनदहेद्ध पर पड़ता है।
पहला चरण
कोविड-19 के वायरस का हमला नाक से षुरू होता है।
यह षरीर की सबसे ऊपरी सांस लेने वाली प्रणाली ;त्मेचपतंजवतल जतंबजद्ध की कोषिकाओं पर हमला करता है।
यदि वायरल संक्रमण को इसी स्तर पर नियंत्रित किया जा सके तो बचाव हो सकता है क्योंकि तब तक रोग कम गंभीर अवस्था में होता है।
80 फीसद संभावित बीमार इसी श्रेणी में आते हैं और यह चरण 3 से 4 दिनों तक रहता है और यह अपने आप ठीक भी हो जाता है।
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दूसरा चरण
जब यह वायरस सांस की नली ;ॅपदक चपचमद्ध के नीचे फेफड़ों के उत्तकों ;स्नदह जपेेनमद्ध में चला जाता है तो रोग और भी अधिक गंभीर हो सकता है और बीमारी व्यक्ति को निमोनिया हो जाता है।
इस समय षरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली काम ;प्उउनदम ेलेजमउद्ध करना षुरू कर देती है और सफेद रक्त कोषिकाएं ;ॅीपजम इसववक बमससेद्ध रोगजनकों ;च्ंजीवहमदेद्ध को खत्म करने का प्रयास करती है जिससे षरीर स्वस्थ हो सके।
परन्तु, यदि षरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत नहीं है तो न सिर्फ वायरस संक्रमित कोषिकाएं ;टपतने पदमिबजमक बमससेद्ध बल्कि स्वस्थ कोषिकाएंभी बड़े पैमाने परनष्ट होना षुरू हो जाती हैं।
इस समय एपिथेलियम लाइनिंग ;म्चपजीमसपनउ सपदपदहद्ध को पहुंचे नुकसान की वजह से सुरक्षात्मक बलगम उत्पादक कोषिकाओं ;च्तवजमबजपअम उनबने.चतवकनबपदह बमससेद्ध तथा उन छोटे बालों ;ब्पसपंद्ध को भी नुकसान पहंुचाता है जो फेफड़ों से धूल भरी गंदगी एवं ष्वसन स्राव ;त्मेचपतंजवतल ेमबतमजपवदेद्ध को बाहर करती है।
इन सबसे फेफड़े कमजोर पड़ जाते हैं और वे बैक्टीरियल संक्रमण ;ठंबजमतपंस पदमिबजपवदद्ध के षिकार बन सकते हैं और रोगी को मषीनी वैंटिलेटर ;डमबींदपबंस अमदजपसंजवतद्ध की मदद की जरूरत पड़ सकती है।
जीवाणु संक्रमण का मतलब है कि ष्वसन तंत्र ;त्मेचपतंजवतल जतंबजद्ध में मौजूद स्टेम कोषिकाओं ;ैजमउ बमससेद्ध का खत्म होना, जो कि क्षतिग्रस्त उत्तकों को ठीक करने में मदद करती है।
इसके बाद फेफड़े काम करने में अक्षम हो जाते हैं और षरीर के महत्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन की पूर्ति रुक/कम हो जाती है और रोगी की हालत नाजुक हो जाती है। इसके चलते षरीर के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं।
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लक्षण एवं प्रभाव क्या हेेैं
इस बीमारी के सबसे आम लक्षण बुखार, थकान और सुखी खांसी व सांस लेेने में दिक्कत ;थ्मअमतए जपतमकदमेेए कतल बवनही ंदक कपििपबनसजल पद इतमंजीपदहद्ध हैं। कुछ रोगियों में दर्द, बंद नाक, बहता नाक, गले में खराष या दस्त भी हो सकते हैं। यह लक्षण पहले-पहले कम होते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते हैं। साधारण मौसमी फ्लू के भी तकरीबन यही लक्षण हैं इसलिए इसकी पहचान अलग से करना मुष्किल है।
कुछ लोग संक्रमित तो हो जाते हैं लेकिन उनमें कोई भी लक्षण विकसित नहीं होते हैं और वे अस्वस्थ भी महसूस नहीं करते हैं। अधिकतर बिना विषेड्ढ उपचार के ठीक भी हो जाते हैं। 6 में से 1 व्यक्ति ही गंभीर रूप से बीमार होता है।
जनवरी से फरवरी के बीच में चीन में सामने आए मामलों में से 80 फीसद रोगी कम गंभीर, 14 फीसद गंभीर और सिर्फ 5 फीसद ही नाजुक रूप से बीमार हुए थे। यह वे मामले थे जिनमें सांस लेने में दिक्कत ;त्मेचपतंजवतल ंिपसनतमद्ध और उनके एक से ज्यादा अंगों ने काम ;क्लेनिदबजपवदध्ंिपसनतमद्ध करना बंद कर दिया था।
इस बात को तो हम अच्छी तरह जानते हैं कि जिन लोगों को इस बीमारी के लक्षण हैं वे इसे फैला सकते हैं। परन्तु जिन लोगों में इसके लक्षण विकसित नहीं हुए हैं वे भी इस बीमारी को फैला रहे हैं या नहीं, इस बारे में भी पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता।
वैज्ञानिक अभी बता पाने में अक्षम हैं कि कौन सबसे ज्यादा इस बीमारी के प्रति संवेदनषील ;ैनेबमचजपइसमद्ध हैं। बढ़ती आयु, अनुवांषिकी ;ळमदमजपबेद्ध मुख्य कारण हो सकते हैं।
वैसे तो यह बीमारी किसी भी आयु के लोगों को हो सकती है परन्तु इसका ज्यादा प्रभाव बड़ी आयु के लोगों पर पड़ता है। इस बीमारी से उन लोगों को ज्यादा खतरा है जिनकी प्रतिरक्षण क्षमता ;प्उउनदपजलद्ध वृद्धावस्था या बीमारी (मधुमेह, उच्च रक्तचाप, एच.
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आई.वी-एड्स, कैंसर एवं गुर्दे की बीमारी) की वजह से या फिर अल्प पोड्ढण ;डंसदवनतपेीमकद्ध से कम हो गई हो। अभी तक जिन लोगों की इस बीमारी से मौत हुई हैं उनमें से 67 फीसद पहले से ही किसी न किसी रूप में बीमार थे, 48 फीसद को उच्च रक्तचाप था और 31 फीसद को मधुमेह था। इन मरीजों की औसत आयु 69 वर्ड्ढ थी। (लैंसट द्वारा चीन के हुवाई प्रांत में किए गए षोध पर आधारित)।
इस वायरस की उद्भवन ;प्दबनइंजपवदद्ध की अवधि (संक्रमित होने और उसके बाद बीमारी के लक्षण दिखने के बीच की अवधि) 1 से 7 दिन की होती है तथा जिन लोगों को भी यह बीमारी हुई है उनमें यह अवधि औसतन 5.1 दिन की रही है, परंतु ऐहतियातन इसकी उद्भवन अवधि को 14 दिन माना जा रहा है।
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कोविड-19 कैसे फैलता है?
वायरस दो तरह से फैलता है:
सीधे तौर पर वायरस युक्त बूंदों के सांस में जाने से ;क्पतमबज कतवचसमज पदींसंजपवदद्ध: जब कोई खुले में खासंता और छींकता है तो वह अपनी नाक या मुंह से तरल बूंदों का छिड़काव करता है जिसमें वायरस हो सकता है। यदि आप उसके बहुत करीब हैं तो आप उन बूंदों के माध्यम से वायरस षामिल बूंदों को अपनी सांस में ले सकते हैं।
अप्रत्यक्ष तौर पर तरल बूंदों के संपर्क में आने पर;प्दकपतमबज कतवचसमज बवदजंबजद्ध: वायरस युक्त तरल बूंदों के माध्यम से वायरस फर्ष या अन्य सतह पर (संक्रमित व्यक्ति के हाथों से या खांसी/छींक से) जा सकता है। वायरस हाथों या फर्ष पर कुछ घंटों के लिए ही सक्रिय रहता है इसके बाद गर्मी, धूप या कीटनाषक वायरस कोमार सकते हैं। परंतु इससे पहले ही अगर कोई गैर संक्रमित व्यक्ति इस सतह को छू लेता है और फिर वह अपने चेहरे को बिना हाथ धोए छूता है (खासतौर पर आंख, नाक और मुंह) तो वायरस इस माध्यम से षरीर में प्रवेष कर सकता है। यह सतह सांझें तौर पर इस्तेमाल किया गया तौलिया, दरवाजे की कुंडी, लिफ्ट के बटन, नल या फर्ष हो सकता है।
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सामान्य भ्रांतियां एवं बेबुनियाद डर
यह बीमारी संक्रमित देषों से आई वस्तुओं से नहीं फैलती है। क्योंकि अगर उनकी सतह पर वायरस होगा भी तो अपने लम्बे सफर के दौरान यह वायरस खत्म हो चुका होगा।
यह बीमारी भोजन के माध्यम से नहीं फैलती है जैसा कि सार्स एवं मिडिल ईस्ट सार्स के समय के अनुभव हमें बताते हैं।
यह बीमारी अंडे या चिकन के खाने से नहीं फैलती। परन्तु फिर भी अच्छी तरह से पके हुए मीट एवं अंडों का ही इस्तेमाल करे।
अदरक, हल्दी, लहसून स्वस्थ भोजन हैं, क्योंकि इनका लबें समय तक सेवन षरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है। परन्तु इनके खाने से इस वायरस के प्रकोप से फौरी तौर पर बचाव के कोई भी सबूत मौजूद नहीं हैं और न ही षराब के सेवन से ही इस वायरस से कोई बचाव हो सकता है।
एंटी-बायोटिक दवाओं के सेवन से इसकी रोकथाम नहीं होती है क्योंकि यह दवाएं बैक्टीरिया के खात्मे के लिए बनी है न कि वायरस के। अभी तक इसके इलाज की कोई दवाई नहीं बनी है।
दुनियाभर में इस पर षोध चल रहा है और अनुमान है कि अगले 5 से छह माह में इसकी दवाई बाजार में आ जाएगी। इस बीमारी की वैक्सीन के बनने में एक साल तक का समय लग सकता है।
यह भी कहा जा रहा है कि भारत की गर्मी में यह अपने आप ठीक हो जाएगा परंतु गर्मी से इस वायरस के रोकथाम का कोई पुख्ता सबूत अभी तक नहीं है।
मच्छरों के काटने से भी यह बीमारी नहीं फैलती है क्योंकि यह सांस संबंधी बीमारी है और यह खांसी एवं छींक से बाहर निकली तरल बूंदों से ही फैलती है।
यह वायरस मृत षरीर से कभी भी नहीं फैलता है और न ही यह पालतु जानवरों से फैलता है।
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क्या करें?
व्यक्तिगत स्तर पर
अपने हाथों को बार-बार साबुन व पानी से धोएं। यह कम से कम 20 सैकंड तक के लिए होना चाहिए और यह भी सुनिष्चित करें कि हाथ और उंगलियों के सारे हिस्से अच्छे से साफ हो जाएं।
अपनी आंखों, नाक और मुंह को बगैर धोएं हाथों से छूने से बचें क्योंकि हाथ कई सतहों को छूते हैं और उनमें वायरस लग सकता है और इससे वायरस आंखों, नाक और मुंह में जा सकता है।
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यदि आप सीधे हाथ से काम करते हैं तो दरवाजे या हैंडल की सतह को छूने लिए बायें हाथ से और यदि बायें हाथ से काम करते हैं तो सीधे हाथ का इस्तेमाल करें। आमतौर पर देखा यह गया है कि इस्तेमाल में आने वाले हाथ से ही मुह आंख साफ किया जाता है। इस आदत से कुछ बचाव हो सकता है।
बीमार के निकट न जाएं। अगर घर में कोई बीमार है तो-यदि संभव हो तो-एक मीटर (3 फीट) की दूरी बनाए रखें।
सांस लेने के तौर तरीकों से साफ-सफाई ;ळववक तमेचपतंजवतल ीलहपमदमद्ध बनाए रखें। इसका भी ध्यान रखें कि आपके आसपास के लोग सांस लेने के समय सफाई का ध्यान रख रहे हैं। इसका मतलब है कि आप खांसी या छींक आने पर तुरंत अपने मुंह और नाक को अपनी मुड़ी हुई कोहनी या रूमाल/टिष्यू पेपर से ढक लें। इसके बाद टिष्यू पेपर को तुरंत फैंक दें। रूमाल को षाम को गर्म पानी से धोकर सुखा लें।
मास्क का प्रयोग जरूरी नहीं है। बेजरूरी इस्तेमाल से बाजार में मास्क की कमी हो रही है। अगर जरूरत हो तो साधारण तीन सतही डिस्पोजेबल सर्जिकल मास्क का ही इस्तेमाल करें। इस बीमारी के लिए एन-95 ;छ.95द्ध या एन-99 ;छ.99द्ध मास्क के प्रयोग की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है जिसे वायु से फैलने वाली बीमारियों में पहना जाता है।
दरवाजों के हैंडिल, पेन, टिषु, कप, लिफ्ट बटन, डिजिटल उपकरण जैसे माउस, की-बोर्ड आदि, सीढ़ियों की रेलिंग, कुर्सी, आर्मरेस्टऔर आमतौर पर ऐसी जगहों को छूने से बचें जहां वायरस के होने की संभावना है। यदि छूना ही पड़े तो तुरंत हाथों को साबुन व पानी से धो लें। इन जगहों को साफ और कीटाणु रहित रखें।
यदि आपको बीमारी के लक्षण (बुखार, ठंड, खराब गला, सांस लेने में भी दिक्कत आदि) हांे तो तुरंत अस्पताल में जाएं और जांच करवाएं।
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सामुदायिक स्तर पर
सामाजिक दूरी ;ैवबपंस कपेजंदबपदहद्ध बनाए रखें। सामाजिक दूरी का मतलब घर में अलग हो कर बैठना नहीं है बल्कि जब आप सार्वजनिक जगहों में हांे तो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच कम दूरी न हो। सार्वजनिक समारोहों, कार्यक्रमों, धार्मिक- सांस्कृतिक, खेल-कूद एवं राजनीतिक आयोजनों को कुछ समय के लिए टालें। यदि बहुत ही जरूरी हो तो साफ-सफाई का ध्यान रखें।
सामूहिक तौर पर अफवाहों का सामना करें। संयम बनाए रखें और मजदूर वर्ग, प्रवासी लोगों और समाज के वंचित वर्गों के प्रति भेदभाव न बरतते हुए सामूहिक तौर पर इस आपदा का सामना करें।
सार्वजनिक उपयोग की वस्तु जैसे लिफ्ट के बटन, दरवाजों के हेंडल, टीवी रिमोट, सीढ़ियों की रेलिंग और अन्य सभी को स्वच्छ और संक्रमण रहित रखें।
बाजार में इस मौके का फायदा उठाने वाली ताकतें भी सक्रिय हो चुकी हैं। चाहे वह मास्क हो या सेनिटाईजर, इन्हें बढ़े हुए दामों में बेचा जा रहा है। इन सबसे सावधान रहें। साधारण रूमाल से भी काम चल सकता है और साधारण साबुन से भी हाथों को धोया जा सकता है।
सरकारों के स्तर पर
इस बीमारी से ग्रस्त लोगों की पहचान करना व उन्हें इलाज के लिए अलग रखना जब तक वे ठीक नहीं हो जाते। उन लोगों की पहचान करना जो संक्रमित रोगी के संपर्क में आए हों या फिर उस क्षेत्र में रह रहे हों जहां पर बीमारी का संक्रमण हो। उनका परीक्षण करना और ऐहतियातन 14 दिनों तक उन्हें सबसे अलग रखना।
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सरकार को जन स्वास्थ्य सेवाओं की तैयारी करनी चाहिए जिन्हें उनकी जरूरत है। सरकारी अस्पतालों को मजबूत किया जाए ताकि महामारी के मरीजों की देखभाल ठीक तरह से की जा सके। इसके लिए हर 5 से 10 लाख की जनसंख्या पर कम से कम एक अस्पताल में एक आईसीयू हो, आक्सीजन सप्लाई हो। इससे संबंधित सभी दवाइयां एवं व्यवस्थाएं आक्सीजन एवं मानव संसाधन आदि पर्याप्त मात्रा में हों। हम यह दोहराना चाहते हैं कि यह पीछे का छूटा हुआ कार्य हैं और इस महामारी के हमले के समय इस को पूरा कर दिया जाए।
उस समय जब यह महामारी हमारे देश के किसी कोने में पूरी आपात स्थिति में आ जाए तब यह जरूरी है कि सभी वर्तमान चिकित्सा सुविधाएं जिसमें प्राइवेट अस्पताल भी शामिल हों जिला प्रशासन के अधीन हो जाएँ। इन स्वास्थ्य सुविधाओं की देखभाल व् संचालन जिला अधिकारी करें न कि बाजारी नियंत्रण के तरीकों से हो।
सभी निजी एवं सरकारी क्षेत्रों में दूसरे बुखार व मौसमी फ्लू से मरने वालों की रिपोर्ट तैयार हो और बड़े स्तर पर इस बीमारी की जांच के लिए इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलेंस प्रोग्राम मजबूत किया जाए। इस फैलाव के अभाव में हम चेताना चाहते हैं कि देश महामारी में धंस जाएगा और हमें पता भी नहीं चलेगा। कोई आश्चर्य नहीं यह इन इलाकों में भी दूर तक फैल जाएगा जहां इसकी न्यूनतम उम्मीद है।
एक दीर्घ कलिक उपाय के रूप में हम हर जिले में रोग नियंत्रण के लिए एक सरकारी केंद्र स्थापित करने का आह्वान करते हैं, जो मौजूदा कोविड-19 महामारी की तरह रोगजनक हमलों के लिए अलर्ट करने, सलाह देनंे, परिक्षण करने, और पहचानने के लिए काम करे।
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स्वास्थ्य सुविधाओं व इनके सहायक स्टाफ की उचित कार्य व्यवस्था तथा पर्याप्त सुरक्षात्मक सुविधाएं सुनिश्चित की जाएँ यह केवल अस्पतालों (डॉक्टर, नर्सें व अन्य स्टाफ) में ही नहीं अपितु उन आगे बढ़कर कार्य करने वाले कर्मियों के लिए भी हो जो अलग-थलग रह रहे स्थलों पर कार्य कर रहे हैं। जैसे कि सफाई कर्मी, यातायात सेवा में काम कर रहे लोग (वायुसेना, रेलवे, बस एवं टैक्सी चालक), पुलिसकर्मी एवं सेना के लोग।
सामाजिक अलगाव (दूरी) जन शिक्षा व सहमति से हो और जरूर हो । जबरदस्ती की जाने वाले तरीके अनुचित होंगे और सहायक नहीं होंगे। जन समूह में जन घटनाएं चाहे सामाजिक, धार्मिक, खेलकूद, सांस्कृतिक या राजनीतिक हों कुछ समय के लिए टाली जा सकती हैं परंतु इन पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
अब इस महामारी के फैलाव से समाज में झाड़-फूंक, टोना-टोटका से इस बीमारी से इलाज के तरीके बाजार में आने षुरू हो गए हैं। इस षोषण से बचाव के लिए इन तरीकों पर सख्ती से कानूनी तौर पर लगाम/रोक लगानी चाहिए।
सक्रिय सामुदायिक सहायता और सेवाएं बढ़ाई जाएँ उन व्यक्तियों के लिए जरूर जिन्हें घरों में अलग-थलग किया गया है और जिनकी सामाजिक सुरक्षा एवं लाभ रोक दिए गए हैं तथा आवश्यक सेवाएं जिनकी पहुंच से कठिन है। बहुत से बच्चों को अतिरिक्त पोषण कार्यक्रमों की जरूरत होगी व उस अवस्था में तो और भी ज्यादा जबकि इनके माता-पिता जीवन यापन की प्रकिर्या प्रभावित हो रही हो। बिना विकल्प की तैयारी के ऐसी सेवाओं को बंद कर देना अनुचित होगा।
जब विशेष प्रावधानों के जरिए नाकेबंदी की जाती है या अलग करके रखा जाता है तो यह सुनिश्चित किया जाए कि यह सब माननीय तरीके से हो, इसमें कुछ अशिष्ट न हो तथा मानवाधिकार बने रहें। सरकारों को मानवाधिकार संगठनों, नागरिक समाज की
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संस्थाओं व श्रम संगठनों को साथ लेना चाहिए जो निरीक्षण करें और रिपोर्ट लें कि जरूरतमंद वर्गों की क्या समस्याएं हैं तथा उन्हें मिलने वाली सहायता के स्तर क्या हैं।
इस महामारी के चलते हो रही कामबंदी का विपरीत प्रभाव असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों पर पड़ेगा। महामारी से ज्यादा रोजगार पर मार गरीबों को नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह असंगठित क्षेत्र की मदद के लिए तुरंत ठोस योजना (कम दामों पर भोजन एवं राषन उपलब्ध करवाना, मनरेगा में रोजगार के अवसर बढ़ाना इत्यादि)।
रोजमर्रा की आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखना जोकि अधिकांश की जीवन यापन की प्राथमिकता है सुरक्षित रहें। इस बात को जन स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में स्वीकार किया जाए। ऐसे समय में जन शिक्षा के द्वारा एकजुटता की जरूरत को संबोधित किया जाए। जिनके पास अधिक धन है या जो वेतनभोगी हैं उनकीअपेक्षा मजदूरी करने वाले व गरीब लोग ज्यादा आर्थिक व जीवनयापन की मार में आते हैं। इस बात को स्वीकार किया जाए। ऐसी नाके बंदियों के द्वारा जो अलग-थलग कर दिए गए हैं और जो जीवन यापन से समझौता कर रहें हैं, नौकरशाहों द्वारा तथा समुदाय के द्वारा उनकी सक्रिय सहायता की जाए।
जन खर्च को तुरंत बढ़ाया जाए जिससे जन वितरण प्रणाली, नगद भुगतान के लिए ज्यादा पैसा मिल सके ताकि लोगों की ज्यादा सामाजिक सुरक्षा वह खाद्य सुरक्षा की मांग पूरी हो सके। अधिकांश लोगों के जीवनयापन पर जो हमला है उसे तुरंत संबोधित किए जाने की जरूरत है। जिनका जीवनयापन नष्ट हो चुका है उन्हें तुरंत संबोधित किया जाए। कारपोरेट उद्योगों को और ज्यादा छूट देना कि वह भी संकट को झेल रहे हैं तथा श्रमिक वर्ग पर और ज्यादा ज्यादतियां करना बहुत ही भारी उल्टी प्रतिक्रिया होगी और उन पर अन्याय होगा।
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इस महामारी को चुनौती के तौर पर लेकर सरकार को चाहिए कि वह देष के स्वास्थ्य ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन लाएं। खाली पड़े पदों को भरे, प्राथमिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करें। स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय में बढ़ोतरी करें और स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच को दूर-दराज के इलाकों और समाज के वंचित तबकों तक पहुंचाएं। इससे न केवल हम फौरी तौर पर इस महामारी से बच पाएंगे बल्कि आमतौर पर होने वाली अन्य मारक बीमारियों से भी समाज मुक्ति पा सकेगा।
अधिक जानकारी के लिए
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के
हैल्पलाइन नंबर
91-11-23978046
पर या फिर टोल फ्री नंबर
1075 पर कॉल करें।
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59ध्5ए 3तक थ्सववत छमंत ज्ञ. ठसवबाए त्ंअपकंे डंतहए
ज्ञंसांरप छमू क्मसीप. 110019
ज्मसण्रू 011.41022141
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कोरोना वायरस बीमारी
कोविड-19
भारत ज्ञान विज्ञान समिति
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कोरोना वायरस बीमारी
कोविड-19
विषेषज्ञ सहयोगः
डॉ. टी. सुंदरामन
समन्वक, जन स्वास्थ्य आंदोलन, पूर्व डीन, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, पूर्व कार्यकारी निदेषक राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली स्रोत केन्द्र, स्वास्थ्य एव परिवार कल्याण मत्रालय, भारत सरकार
डॉ. आर.एस. दहिया
पूर्व विभागाध्यक्ष, सर्जरी विभाग, स्नातकोत्तर चिकित्सा विज्ञान संस्थान, रोहतक
सकंलनः
डॉ. ओम प्रकाष भूरेटा
सहयोग राषि 5 रूपये
भारत ज्ञान विज्ञान समिति के लिए हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति द्वारा शिमला से प्रकाशित
20 मार्च 2020
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दो शब्द
जन विज्ञान आन्दोलन का पहला और मुख्य कार्यभार वैज्ञानिक सोच का प्रचार-प्रसार करना और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर लोगों में जागरुकता पैदा करना है। 1984 की गैस त्रासदी के बाद हमारे आन्दोलन ने सीख ली कि अगर लोगों के पास आम जीवन में साधारण विज्ञान के तरीकों और तकनीकों को इस्तेमाल करने की जानकारी और ज्ञान हो तो कई बहुमूल्य जानें बचाई जा सकती हैं या उन्हें चिकित्सा सुविधा मिलने तक बचाए रखा जा सकता है। इसी उद्देश्य के साथ जन विज्ञान आन्दोलन ने साक्षरता को केवल अंक और अक्षर ज्ञान तक सीमित न रखकर इसे आगे बढ़ाया और जन स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, महिला-पुरुष समानता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार सहित अनेक सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक मुद्दों तक अपने आन्दोलन के काम के दायरे का विस्तार किया।
जन विज्ञान आन्दोलन अपना दायित्व मानता है कि समाज में किसी भी ऐसी घटना घटने पर जिसके बारे में समाज में भय और भ्रांतियां पैदा हो रही हांे उसमें वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर तुरन्त प्रभाव से हस्तक्षेप करना चाहिए फिर वह चाहे सामाजिक,परिस्थिति, घटना हो या कोई खगोलीय या चिकित्सीय घटना।
कोरोना वायरस बीमारी को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित किया जा चुका है। इस पर अभी तक के उपलब्ध प्रामाणिक तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर विज्ञान आन्दोलन का दायित्व बनता है कि इस महामारी पर न केवल प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए बल्कि इसे वैज्ञानिक आधार पर जनता के बीच ले जाकर जनता को भ्रम, भय और असमंजस की स्थिति से बाहर निकाला जा सके।
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कोरोना वायरस बीमारी के बारे में इस समय आम आदमी के मन में काफी डर का माहौल बन चुका है। अन्य देशों में इसके बढ़ते मामलों की वजह से केन्द्र और राज्य सरकारों ने भी सतर्कता और सावधानी के तौर पर कई कदम उठाए हैं। सोशल मीडिया में कोरोना वायरस को लेकर संदेश, उपचार और इसके बारे में जानकारी की बाढ़ सी आ गई है। लोगों के डर का फायदा उठाते हुए मास्क और सेनेटाइज़र की कालाबाज़ारी होने लगी है। रोज़मर्रा कमाकर खाने वालों की मुसीबतें बढ़ गई हैं। अगर समय रहते इस मुद्दे पर जनता की जागरुकता नहीं होगी तो चिकित्सीय कम सामाजिक समस्या अधिक हो जाएगी।
इन सभी तथ्यों के मद्देनजर कोरोना पर तैयार पुस्तिका ‘कोरोना वायरस बीमारी कोविड-19’ बहुत ही सरल तरीके और सरल शब्दों में तैयार की गई है जिसमें इतिहास के साथ-साथ, कोरोना के वैज्ञानिक पक्ष, इसके सामाजिक प्रभावों का आकलन किया गया है और सरकार, समुदाय, व्यक्तिगत तौर पर किये जाने वाले प्रयासों के बारे में सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं।
विभिन्न प्रामाणिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी का मर्म लेते हुए इसे वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में तैयार किया गया है। इसके लिए हम जन विज्ञान आन्दोलन की ओर से उन सभी का आभार व्यक्त करना चाहते हैं।
डॉ. काशीनाथ चटर्जी
स्चिव भारत ज्ञान विज्ञान समिति
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कोविड-19 (Covid-19) कोरोना वायरस बीमारी (Corona Virus Disease 2019) का संक्षिप्त नाम है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 11 फरवरी 2020 को फ्लू की महामारी के बढ़ते प्रकोप के बाद दिया था। इस बीमारी को सबसे पहले चीन के वुहान प्रांत में दिसम्बर 2019 में पहचाना गया था। नोवल कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) को तकनीकी तौर पर फ्लू नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह इन्फलुएंजा वायरस ( Influenja Virus) के कारण नहीं होता। परन्तु यह इस फ्लूमहामारी की तरह ही है। कोरोना वायरस से जुड़ी सांस की गंभीर बीमारियों ( Severe respiratory disease) के दो प्रकोप पिछले कुछ समय में हो चुके हैं। 2003-04 में सबसे पहले सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) (Severe Acute Respiratory Syndrome) (जो सार्स कोरोना नामक वायरस से फैला था) का प्रकोप तकरीबन 30 देशों में हुआ था। इसकी मृत्यु दर 9 फीसद थी और इससे 813 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद कोरोना वायरस का प्रकोप सऊदी अरब में हुआ था जिसे मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome-MERS) के तौर पर जाना गया। इसकी मृत्यु दर 34 फीसद से ज्यादा थी और इससे 858 मौतें हुई थी।
10 मार्च तक यह बीमारी 109 देशों में फैल चुकी थी। 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे सर्वव्यापी महामारी घोषित कर दिया गया। कोविड-19 का प्रकोप अभी तक 176 देशों में हो चुका है। अभी तक ज्ञात मरीजों में से तकरीबन 90 फीसद सिर्फ 7 देशों में ही हैं। इनमें से 48 फीसद चीन में, 15 फीसद इटली में, 9 फीसद ईरान में, 5 फीसद कोरिया में, 4 फीसद जापान में, 3 फीसद फ्रांस में और 3 ही फीसद जर्मनी में हैं। बाकि के 10 फीसद 169 देशों में से हैं।
कोविड-19 वायरस से जुडी मृत्यु दर ( Death Rate) (2 से 3 फीसद) तो काफी कम है परन्तु इसकी संक्रामकता (Infectiousness) बहुत ज्यादा है। 2003 के सार्स बीमारी की मृत्यु दर 10 फीसद की थी। संक्रामकता की वजह से वायरस बहुत ज्यादा लोगों में फैल सकता है। इसलिए कम मृत्यु दर के होते हुए भी इससे ज्यादा मौतें हो सकती हैं।
पिछले 100 सालों में दुनिया ने लगभग 5 फ्लू आधारित महामारियों को झेला है। 1918 में फैली ‘स्पैनिष फ्लू" (Spanish Flu) मानव इतिहास की सबसे भयानक महामारी थी। इस महामारी से 50 करोड़ लोग या लगभग एक तिहाई दुनिया की आबादी संक्रमित हो गई थी। 5 से 10 फीसद मृत्यु दर के कारण 8 से 10 करोड़ मौतें हुई थी जो दोनों विश्व युद्धों में मारे गए लोगों की संख्या से भी ज्यादा थी। भारत में इस बीमारी से लगभग 1.8 करोड़ लोग मारे गए थे। भारतीय कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपने संस्मरण में लिखा था, कि ‘‘गंगा भी लाशों से भर गई थी। यह मेरे जीवन का सबसे असामान्य समय था और मेरा पूरा परिवार पलक झपकते ही गायब हो गया। मैं जिस तरफ भी देखता था उसी तरफ अंधेरा छाया था।’’
‘स्पैनिष फ्लू’ ने बुजुर्गों के बजाए 5 साल से नीचे के बच्चों व युवाओं को अपना षिकार बनाया था। इस बीमारी का प्रहार पहले बसंत ऋतु में, फिर पतझड़ में और उसके बाद सर्दियों में हुआ था। इस बार भी इस तरह की पुनरावृति देखने को मिल सकती है।
1957-58 के ‘एषियन फ्लू’ (Asian Flu) के प्रकोप से 20 लाख से ज्यादा मौतें हुई थी। 1968-69 के हांगकांग फ्लू (Hong Kong Flu) में भी 10 लाख के करीब मौतें हुई थी। 1997 में ‘बर्ड फ्लू’ से भी भारी संख्या में मौतें हुईं। 2009 में ‘स्वाइन फ्लू’ (Swine Flu) से 6 लाख के करीब मौतें हुईं।
हालांकि ‘स्पैनिष फलू’ जैसी स्थिति के दोहराव की संभावना आज की बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियों के चलते काफी कम है, परन्तु असंभव नहीं है। स्पर्षोन्मुख (Asymptomatic) बीमारी के फैलाने वालों के बढ़ने और अपेक्षाकृत नये वायरस के प्रति आबादी की कम प्रतिरक्षा के चलते मृत्यु दर काफी बढ़ सकती है। एक अनुमान के अनुसार यह बीमारी यदि अपनी संक्रामकता के कारण वर्तमान आबादी के 50 फीसद को भी संक्रमित कर गई तो 600 करोड़ की आबादी में 30 लाख के करीब मौतें हो सकती हैं। इसकी कल्पना करना भी भयावह है।
इस बीमारी का सामुदायिक संचारण (Community Transmission) जब होगा तो भारत में स्थिति भयानक हो जाएगी। सामाजिक अलगाव (Social Isolation) के कारण बीमारी की चरम सीमा तक पहुचने में देर तो होगी परंतु इसकी भयावहता से बचा नहीं जा सकता। हमारे अस्पताल बीमारों की बढ़ती संख्या के भार को सहन नहीं कर पाएंगे। भारत के लिए यह आपदा अभूतपूर्व हो सकती है और हम इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।
इतिहास से हमें सबक मिलता है कि हमें किसी भी महामारी एवं आमतौर पर होने वाली बीमारियां जैसे मौसमी फ्लू (जिसमें 3 से 6 लाख लोग सालाना मर जाते हैं) को गंभीरता से लेना चाहिए और इससे बचाव की तैयारी हमेशा वैश्विक प्राथमिकता में रहनी चाहिए।
कोविड-19 बीमारी क्या है?
कोविड-19 एक संक्रामक बीमारी है, जिसका मतलब है कि यह प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से एक से दूसरे व्यक्ति को फैल सकती है। इसका प्रभाव ऊपरी सांस लेने वाली प्रणाली ;न्चचमत तमेचपतंजवतल जतंबजद्ध (नाक, गले, वायु मार्ग, फेफड़ों आदि) ;छवेमए जीतवंजए ंपतूंलेए सनदहेद्ध पर पड़ता है।
पहला चरण
कोविड-19 के वायरस का हमला नाक से षुरू होता है।
यह षरीर की सबसे ऊपरी सांस लेने वाली प्रणाली ;त्मेचपतंजवतल जतंबजद्ध की कोषिकाओं पर हमला करता है।
यदि वायरल संक्रमण को इसी स्तर पर नियंत्रित किया जा सके तो बचाव हो सकता है क्योंकि तब तक रोग कम गंभीर अवस्था में होता है।
80 फीसद संभावित बीमार इसी श्रेणी में आते हैं और यह चरण 3 से 4 दिनों तक रहता है और यह अपने आप ठीक भी हो जाता है।
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दूसरा चरण
जब यह वायरस सांस की नली ;ॅपदक चपचमद्ध के नीचे फेफड़ों के उत्तकों ;स्नदह जपेेनमद्ध में चला जाता है तो रोग और भी अधिक गंभीर हो सकता है और बीमारी व्यक्ति को निमोनिया हो जाता है।
इस समय षरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली काम ;प्उउनदम ेलेजमउद्ध करना षुरू कर देती है और सफेद रक्त कोषिकाएं ;ॅीपजम इसववक बमससेद्ध रोगजनकों ;च्ंजीवहमदेद्ध को खत्म करने का प्रयास करती है जिससे षरीर स्वस्थ हो सके।
परन्तु, यदि षरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत नहीं है तो न सिर्फ वायरस संक्रमित कोषिकाएं ;टपतने पदमिबजमक बमससेद्ध बल्कि स्वस्थ कोषिकाएंभी बड़े पैमाने परनष्ट होना षुरू हो जाती हैं।
इस समय एपिथेलियम लाइनिंग ;म्चपजीमसपनउ सपदपदहद्ध को पहुंचे नुकसान की वजह से सुरक्षात्मक बलगम उत्पादक कोषिकाओं ;च्तवजमबजपअम उनबने.चतवकनबपदह बमससेद्ध तथा उन छोटे बालों ;ब्पसपंद्ध को भी नुकसान पहंुचाता है जो फेफड़ों से धूल भरी गंदगी एवं ष्वसन स्राव ;त्मेचपतंजवतल ेमबतमजपवदेद्ध को बाहर करती है।
इन सबसे फेफड़े कमजोर पड़ जाते हैं और वे बैक्टीरियल संक्रमण ;ठंबजमतपंस पदमिबजपवदद्ध के षिकार बन सकते हैं और रोगी को मषीनी वैंटिलेटर ;डमबींदपबंस अमदजपसंजवतद्ध की मदद की जरूरत पड़ सकती है।
जीवाणु संक्रमण का मतलब है कि ष्वसन तंत्र ;त्मेचपतंजवतल जतंबजद्ध में मौजूद स्टेम कोषिकाओं ;ैजमउ बमससेद्ध का खत्म होना, जो कि क्षतिग्रस्त उत्तकों को ठीक करने में मदद करती है।
इसके बाद फेफड़े काम करने में अक्षम हो जाते हैं और षरीर के महत्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन की पूर्ति रुक/कम हो जाती है और रोगी की हालत नाजुक हो जाती है। इसके चलते षरीर के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं।
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लक्षण एवं प्रभाव क्या हेेैं
इस बीमारी के सबसे आम लक्षण बुखार, थकान और सुखी खांसी व सांस लेेने में दिक्कत ;थ्मअमतए जपतमकदमेेए कतल बवनही ंदक कपििपबनसजल पद इतमंजीपदहद्ध हैं। कुछ रोगियों में दर्द, बंद नाक, बहता नाक, गले में खराष या दस्त भी हो सकते हैं। यह लक्षण पहले-पहले कम होते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते हैं। साधारण मौसमी फ्लू के भी तकरीबन यही लक्षण हैं इसलिए इसकी पहचान अलग से करना मुष्किल है।
कुछ लोग संक्रमित तो हो जाते हैं लेकिन उनमें कोई भी लक्षण विकसित नहीं होते हैं और वे अस्वस्थ भी महसूस नहीं करते हैं। अधिकतर बिना विषेड्ढ उपचार के ठीक भी हो जाते हैं। 6 में से 1 व्यक्ति ही गंभीर रूप से बीमार होता है।
जनवरी से फरवरी के बीच में चीन में सामने आए मामलों में से 80 फीसद रोगी कम गंभीर, 14 फीसद गंभीर और सिर्फ 5 फीसद ही नाजुक रूप से बीमार हुए थे। यह वे मामले थे जिनमें सांस लेने में दिक्कत ;त्मेचपतंजवतल ंिपसनतमद्ध और उनके एक से ज्यादा अंगों ने काम ;क्लेनिदबजपवदध्ंिपसनतमद्ध करना बंद कर दिया था।
इस बात को तो हम अच्छी तरह जानते हैं कि जिन लोगों को इस बीमारी के लक्षण हैं वे इसे फैला सकते हैं। परन्तु जिन लोगों में इसके लक्षण विकसित नहीं हुए हैं वे भी इस बीमारी को फैला रहे हैं या नहीं, इस बारे में भी पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता।
वैज्ञानिक अभी बता पाने में अक्षम हैं कि कौन सबसे ज्यादा इस बीमारी के प्रति संवेदनषील ;ैनेबमचजपइसमद्ध हैं। बढ़ती आयु, अनुवांषिकी ;ळमदमजपबेद्ध मुख्य कारण हो सकते हैं।
वैसे तो यह बीमारी किसी भी आयु के लोगों को हो सकती है परन्तु इसका ज्यादा प्रभाव बड़ी आयु के लोगों पर पड़ता है। इस बीमारी से उन लोगों को ज्यादा खतरा है जिनकी प्रतिरक्षण क्षमता ;प्उउनदपजलद्ध वृद्धावस्था या बीमारी (मधुमेह, उच्च रक्तचाप, एच.
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आई.वी-एड्स, कैंसर एवं गुर्दे की बीमारी) की वजह से या फिर अल्प पोड्ढण ;डंसदवनतपेीमकद्ध से कम हो गई हो। अभी तक जिन लोगों की इस बीमारी से मौत हुई हैं उनमें से 67 फीसद पहले से ही किसी न किसी रूप में बीमार थे, 48 फीसद को उच्च रक्तचाप था और 31 फीसद को मधुमेह था। इन मरीजों की औसत आयु 69 वर्ड्ढ थी। (लैंसट द्वारा चीन के हुवाई प्रांत में किए गए षोध पर आधारित)।
इस वायरस की उद्भवन ;प्दबनइंजपवदद्ध की अवधि (संक्रमित होने और उसके बाद बीमारी के लक्षण दिखने के बीच की अवधि) 1 से 7 दिन की होती है तथा जिन लोगों को भी यह बीमारी हुई है उनमें यह अवधि औसतन 5.1 दिन की रही है, परंतु ऐहतियातन इसकी उद्भवन अवधि को 14 दिन माना जा रहा है।
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कोविड-19 कैसे फैलता है?
वायरस दो तरह से फैलता है:
सीधे तौर पर वायरस युक्त बूंदों के सांस में जाने से ;क्पतमबज कतवचसमज पदींसंजपवदद्ध: जब कोई खुले में खासंता और छींकता है तो वह अपनी नाक या मुंह से तरल बूंदों का छिड़काव करता है जिसमें वायरस हो सकता है। यदि आप उसके बहुत करीब हैं तो आप उन बूंदों के माध्यम से वायरस षामिल बूंदों को अपनी सांस में ले सकते हैं।
अप्रत्यक्ष तौर पर तरल बूंदों के संपर्क में आने पर;प्दकपतमबज कतवचसमज बवदजंबजद्ध: वायरस युक्त तरल बूंदों के माध्यम से वायरस फर्ष या अन्य सतह पर (संक्रमित व्यक्ति के हाथों से या खांसी/छींक से) जा सकता है। वायरस हाथों या फर्ष पर कुछ घंटों के लिए ही सक्रिय रहता है इसके बाद गर्मी, धूप या कीटनाषक वायरस कोमार सकते हैं। परंतु इससे पहले ही अगर कोई गैर संक्रमित व्यक्ति इस सतह को छू लेता है और फिर वह अपने चेहरे को बिना हाथ धोए छूता है (खासतौर पर आंख, नाक और मुंह) तो वायरस इस माध्यम से षरीर में प्रवेष कर सकता है। यह सतह सांझें तौर पर इस्तेमाल किया गया तौलिया, दरवाजे की कुंडी, लिफ्ट के बटन, नल या फर्ष हो सकता है।
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सामान्य भ्रांतियां एवं बेबुनियाद डर
यह बीमारी संक्रमित देषों से आई वस्तुओं से नहीं फैलती है। क्योंकि अगर उनकी सतह पर वायरस होगा भी तो अपने लम्बे सफर के दौरान यह वायरस खत्म हो चुका होगा।
यह बीमारी भोजन के माध्यम से नहीं फैलती है जैसा कि सार्स एवं मिडिल ईस्ट सार्स के समय के अनुभव हमें बताते हैं।
यह बीमारी अंडे या चिकन के खाने से नहीं फैलती। परन्तु फिर भी अच्छी तरह से पके हुए मीट एवं अंडों का ही इस्तेमाल करे।
अदरक, हल्दी, लहसून स्वस्थ भोजन हैं, क्योंकि इनका लबें समय तक सेवन षरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है। परन्तु इनके खाने से इस वायरस के प्रकोप से फौरी तौर पर बचाव के कोई भी सबूत मौजूद नहीं हैं और न ही षराब के सेवन से ही इस वायरस से कोई बचाव हो सकता है।
एंटी-बायोटिक दवाओं के सेवन से इसकी रोकथाम नहीं होती है क्योंकि यह दवाएं बैक्टीरिया के खात्मे के लिए बनी है न कि वायरस के। अभी तक इसके इलाज की कोई दवाई नहीं बनी है।
दुनियाभर में इस पर षोध चल रहा है और अनुमान है कि अगले 5 से छह माह में इसकी दवाई बाजार में आ जाएगी। इस बीमारी की वैक्सीन के बनने में एक साल तक का समय लग सकता है।
यह भी कहा जा रहा है कि भारत की गर्मी में यह अपने आप ठीक हो जाएगा परंतु गर्मी से इस वायरस के रोकथाम का कोई पुख्ता सबूत अभी तक नहीं है।
मच्छरों के काटने से भी यह बीमारी नहीं फैलती है क्योंकि यह सांस संबंधी बीमारी है और यह खांसी एवं छींक से बाहर निकली तरल बूंदों से ही फैलती है।
यह वायरस मृत षरीर से कभी भी नहीं फैलता है और न ही यह पालतु जानवरों से फैलता है।
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क्या करें?
व्यक्तिगत स्तर पर
अपने हाथों को बार-बार साबुन व पानी से धोएं। यह कम से कम 20 सैकंड तक के लिए होना चाहिए और यह भी सुनिष्चित करें कि हाथ और उंगलियों के सारे हिस्से अच्छे से साफ हो जाएं।
अपनी आंखों, नाक और मुंह को बगैर धोएं हाथों से छूने से बचें क्योंकि हाथ कई सतहों को छूते हैं और उनमें वायरस लग सकता है और इससे वायरस आंखों, नाक और मुंह में जा सकता है।
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यदि आप सीधे हाथ से काम करते हैं तो दरवाजे या हैंडल की सतह को छूने लिए बायें हाथ से और यदि बायें हाथ से काम करते हैं तो सीधे हाथ का इस्तेमाल करें। आमतौर पर देखा यह गया है कि इस्तेमाल में आने वाले हाथ से ही मुह आंख साफ किया जाता है। इस आदत से कुछ बचाव हो सकता है।
बीमार के निकट न जाएं। अगर घर में कोई बीमार है तो-यदि संभव हो तो-एक मीटर (3 फीट) की दूरी बनाए रखें।
सांस लेने के तौर तरीकों से साफ-सफाई ;ळववक तमेचपतंजवतल ीलहपमदमद्ध बनाए रखें। इसका भी ध्यान रखें कि आपके आसपास के लोग सांस लेने के समय सफाई का ध्यान रख रहे हैं। इसका मतलब है कि आप खांसी या छींक आने पर तुरंत अपने मुंह और नाक को अपनी मुड़ी हुई कोहनी या रूमाल/टिष्यू पेपर से ढक लें। इसके बाद टिष्यू पेपर को तुरंत फैंक दें। रूमाल को षाम को गर्म पानी से धोकर सुखा लें।
मास्क का प्रयोग जरूरी नहीं है। बेजरूरी इस्तेमाल से बाजार में मास्क की कमी हो रही है। अगर जरूरत हो तो साधारण तीन सतही डिस्पोजेबल सर्जिकल मास्क का ही इस्तेमाल करें। इस बीमारी के लिए एन-95 ;छ.95द्ध या एन-99 ;छ.99द्ध मास्क के प्रयोग की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है जिसे वायु से फैलने वाली बीमारियों में पहना जाता है।
दरवाजों के हैंडिल, पेन, टिषु, कप, लिफ्ट बटन, डिजिटल उपकरण जैसे माउस, की-बोर्ड आदि, सीढ़ियों की रेलिंग, कुर्सी, आर्मरेस्टऔर आमतौर पर ऐसी जगहों को छूने से बचें जहां वायरस के होने की संभावना है। यदि छूना ही पड़े तो तुरंत हाथों को साबुन व पानी से धो लें। इन जगहों को साफ और कीटाणु रहित रखें।
यदि आपको बीमारी के लक्षण (बुखार, ठंड, खराब गला, सांस लेने में भी दिक्कत आदि) हांे तो तुरंत अस्पताल में जाएं और जांच करवाएं।
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सामुदायिक स्तर पर
सामाजिक दूरी ;ैवबपंस कपेजंदबपदहद्ध बनाए रखें। सामाजिक दूरी का मतलब घर में अलग हो कर बैठना नहीं है बल्कि जब आप सार्वजनिक जगहों में हांे तो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच कम दूरी न हो। सार्वजनिक समारोहों, कार्यक्रमों, धार्मिक- सांस्कृतिक, खेल-कूद एवं राजनीतिक आयोजनों को कुछ समय के लिए टालें। यदि बहुत ही जरूरी हो तो साफ-सफाई का ध्यान रखें।
सामूहिक तौर पर अफवाहों का सामना करें। संयम बनाए रखें और मजदूर वर्ग, प्रवासी लोगों और समाज के वंचित वर्गों के प्रति भेदभाव न बरतते हुए सामूहिक तौर पर इस आपदा का सामना करें।
सार्वजनिक उपयोग की वस्तु जैसे लिफ्ट के बटन, दरवाजों के हेंडल, टीवी रिमोट, सीढ़ियों की रेलिंग और अन्य सभी को स्वच्छ और संक्रमण रहित रखें।
बाजार में इस मौके का फायदा उठाने वाली ताकतें भी सक्रिय हो चुकी हैं। चाहे वह मास्क हो या सेनिटाईजर, इन्हें बढ़े हुए दामों में बेचा जा रहा है। इन सबसे सावधान रहें। साधारण रूमाल से भी काम चल सकता है और साधारण साबुन से भी हाथों को धोया जा सकता है।
सरकारों के स्तर पर
इस बीमारी से ग्रस्त लोगों की पहचान करना व उन्हें इलाज के लिए अलग रखना जब तक वे ठीक नहीं हो जाते। उन लोगों की पहचान करना जो संक्रमित रोगी के संपर्क में आए हों या फिर उस क्षेत्र में रह रहे हों जहां पर बीमारी का संक्रमण हो। उनका परीक्षण करना और ऐहतियातन 14 दिनों तक उन्हें सबसे अलग रखना।
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सरकार को जन स्वास्थ्य सेवाओं की तैयारी करनी चाहिए जिन्हें उनकी जरूरत है। सरकारी अस्पतालों को मजबूत किया जाए ताकि महामारी के मरीजों की देखभाल ठीक तरह से की जा सके। इसके लिए हर 5 से 10 लाख की जनसंख्या पर कम से कम एक अस्पताल में एक आईसीयू हो, आक्सीजन सप्लाई हो। इससे संबंधित सभी दवाइयां एवं व्यवस्थाएं आक्सीजन एवं मानव संसाधन आदि पर्याप्त मात्रा में हों। हम यह दोहराना चाहते हैं कि यह पीछे का छूटा हुआ कार्य हैं और इस महामारी के हमले के समय इस को पूरा कर दिया जाए।
उस समय जब यह महामारी हमारे देश के किसी कोने में पूरी आपात स्थिति में आ जाए तब यह जरूरी है कि सभी वर्तमान चिकित्सा सुविधाएं जिसमें प्राइवेट अस्पताल भी शामिल हों जिला प्रशासन के अधीन हो जाएँ। इन स्वास्थ्य सुविधाओं की देखभाल व् संचालन जिला अधिकारी करें न कि बाजारी नियंत्रण के तरीकों से हो।
सभी निजी एवं सरकारी क्षेत्रों में दूसरे बुखार व मौसमी फ्लू से मरने वालों की रिपोर्ट तैयार हो और बड़े स्तर पर इस बीमारी की जांच के लिए इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलेंस प्रोग्राम मजबूत किया जाए। इस फैलाव के अभाव में हम चेताना चाहते हैं कि देश महामारी में धंस जाएगा और हमें पता भी नहीं चलेगा। कोई आश्चर्य नहीं यह इन इलाकों में भी दूर तक फैल जाएगा जहां इसकी न्यूनतम उम्मीद है।
एक दीर्घ कलिक उपाय के रूप में हम हर जिले में रोग नियंत्रण के लिए एक सरकारी केंद्र स्थापित करने का आह्वान करते हैं, जो मौजूदा कोविड-19 महामारी की तरह रोगजनक हमलों के लिए अलर्ट करने, सलाह देनंे, परिक्षण करने, और पहचानने के लिए काम करे।
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स्वास्थ्य सुविधाओं व इनके सहायक स्टाफ की उचित कार्य व्यवस्था तथा पर्याप्त सुरक्षात्मक सुविधाएं सुनिश्चित की जाएँ यह केवल अस्पतालों (डॉक्टर, नर्सें व अन्य स्टाफ) में ही नहीं अपितु उन आगे बढ़कर कार्य करने वाले कर्मियों के लिए भी हो जो अलग-थलग रह रहे स्थलों पर कार्य कर रहे हैं। जैसे कि सफाई कर्मी, यातायात सेवा में काम कर रहे लोग (वायुसेना, रेलवे, बस एवं टैक्सी चालक), पुलिसकर्मी एवं सेना के लोग।
सामाजिक अलगाव (दूरी) जन शिक्षा व सहमति से हो और जरूर हो । जबरदस्ती की जाने वाले तरीके अनुचित होंगे और सहायक नहीं होंगे। जन समूह में जन घटनाएं चाहे सामाजिक, धार्मिक, खेलकूद, सांस्कृतिक या राजनीतिक हों कुछ समय के लिए टाली जा सकती हैं परंतु इन पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
अब इस महामारी के फैलाव से समाज में झाड़-फूंक, टोना-टोटका से इस बीमारी से इलाज के तरीके बाजार में आने षुरू हो गए हैं। इस षोषण से बचाव के लिए इन तरीकों पर सख्ती से कानूनी तौर पर लगाम/रोक लगानी चाहिए।
सक्रिय सामुदायिक सहायता और सेवाएं बढ़ाई जाएँ उन व्यक्तियों के लिए जरूर जिन्हें घरों में अलग-थलग किया गया है और जिनकी सामाजिक सुरक्षा एवं लाभ रोक दिए गए हैं तथा आवश्यक सेवाएं जिनकी पहुंच से कठिन है। बहुत से बच्चों को अतिरिक्त पोषण कार्यक्रमों की जरूरत होगी व उस अवस्था में तो और भी ज्यादा जबकि इनके माता-पिता जीवन यापन की प्रकिर्या प्रभावित हो रही हो। बिना विकल्प की तैयारी के ऐसी सेवाओं को बंद कर देना अनुचित होगा।
जब विशेष प्रावधानों के जरिए नाकेबंदी की जाती है या अलग करके रखा जाता है तो यह सुनिश्चित किया जाए कि यह सब माननीय तरीके से हो, इसमें कुछ अशिष्ट न हो तथा मानवाधिकार बने रहें। सरकारों को मानवाधिकार संगठनों, नागरिक समाज की
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संस्थाओं व श्रम संगठनों को साथ लेना चाहिए जो निरीक्षण करें और रिपोर्ट लें कि जरूरतमंद वर्गों की क्या समस्याएं हैं तथा उन्हें मिलने वाली सहायता के स्तर क्या हैं।
इस महामारी के चलते हो रही कामबंदी का विपरीत प्रभाव असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों पर पड़ेगा। महामारी से ज्यादा रोजगार पर मार गरीबों को नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह असंगठित क्षेत्र की मदद के लिए तुरंत ठोस योजना (कम दामों पर भोजन एवं राषन उपलब्ध करवाना, मनरेगा में रोजगार के अवसर बढ़ाना इत्यादि)।
रोजमर्रा की आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखना जोकि अधिकांश की जीवन यापन की प्राथमिकता है सुरक्षित रहें। इस बात को जन स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में स्वीकार किया जाए। ऐसे समय में जन शिक्षा के द्वारा एकजुटता की जरूरत को संबोधित किया जाए। जिनके पास अधिक धन है या जो वेतनभोगी हैं उनकीअपेक्षा मजदूरी करने वाले व गरीब लोग ज्यादा आर्थिक व जीवनयापन की मार में आते हैं। इस बात को स्वीकार किया जाए। ऐसी नाके बंदियों के द्वारा जो अलग-थलग कर दिए गए हैं और जो जीवन यापन से समझौता कर रहें हैं, नौकरशाहों द्वारा तथा समुदाय के द्वारा उनकी सक्रिय सहायता की जाए।
जन खर्च को तुरंत बढ़ाया जाए जिससे जन वितरण प्रणाली, नगद भुगतान के लिए ज्यादा पैसा मिल सके ताकि लोगों की ज्यादा सामाजिक सुरक्षा वह खाद्य सुरक्षा की मांग पूरी हो सके। अधिकांश लोगों के जीवनयापन पर जो हमला है उसे तुरंत संबोधित किए जाने की जरूरत है। जिनका जीवनयापन नष्ट हो चुका है उन्हें तुरंत संबोधित किया जाए। कारपोरेट उद्योगों को और ज्यादा छूट देना कि वह भी संकट को झेल रहे हैं तथा श्रमिक वर्ग पर और ज्यादा ज्यादतियां करना बहुत ही भारी उल्टी प्रतिक्रिया होगी और उन पर अन्याय होगा।
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इस महामारी को चुनौती के तौर पर लेकर सरकार को चाहिए कि वह देष के स्वास्थ्य ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन लाएं। खाली पड़े पदों को भरे, प्राथमिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करें। स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय में बढ़ोतरी करें और स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच को दूर-दराज के इलाकों और समाज के वंचित तबकों तक पहुंचाएं। इससे न केवल हम फौरी तौर पर इस महामारी से बच पाएंगे बल्कि आमतौर पर होने वाली अन्य मारक बीमारियों से भी समाज मुक्ति पा सकेगा।
अधिक जानकारी के लिए
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के
हैल्पलाइन नंबर
91-11-23978046
पर या फिर टोल फ्री नंबर
1075 पर कॉल करें।
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