स्वस्थ्य के स न्दर्भ मे केरल के बध ते कदम-- डॉक्टर बी इकबाल
नीति आयोग की रिपोर्ट ‘‘हेल्दी स्टेटस, प्रोग्रेसिव इंडिया‘‘ (स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत) में ताजा स्वास्थ्य
संबंधी रैकिंग में केरल एक बार फिर प्रथम स्थान पर रहा है। इस रिपोर्ट में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उनके वर्ष दर वर्ष बढ़ते बदलाव और साथ ही साथ नवजात शिशुओं की मृत्यु दर, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर, शिशुओं के जन्म के समय के कम वजन के प्रतिशत और जन्म के समय लैंगिक अनुपात आदि स्वास्थ्य संबंधी 23 संकेतकों के मामले में उनके सकल प्रदर्शन पर रैंक दिए जाते हैं। नीति आयोग ने अपनी स्वास्थ्य संबंधी राज्यवार रैंकिंग पहली बार फरवरी 2018 में पेश की थी जो वित्त वर्ष 2014-15 (आधार वर्ष) से 2015-16 (संदर्भ वर्ष) तक से संबंधित थी। स्वास्थ्य संकेतक के मौजूदा दूसरे चक्र की रिपोर्ट में वर्ष 2015-16 (आधार वर्ष)से वर्ष 17-18 (संदर्भ वर्ष) तक की अवधि की पड़ताल की गई है।
इन उपरोक्त दोनों ही रिपोर्टों में केरल का पहला स्थान रहा है और अपने सकल प्रदर्शन में वह दूसरे तमाम
राज्यों से बहुत आगे है।
’केरल--बेहतरीन प्रदर्शन वाला राज्य’
बड़े राज्यों में बेहतरीन प्रदर्शन वाले केरल का सकल स्वास्थ्य संकेतक स्कोर, उत्तर प्रदेश जैसे सबसे खराब
प्रदर्शन वाले राज्य के स्कोर से ढाई गुना ज्यादा है। सकल प्रदर्शन के आधार पर संदर्भ वर्ष में बेहतरीन प्रदर्शन वाले
सर्वोच्च पांच राज्यों का प्रदर्शन इस प्रकार रहाः
केरल (74.21),
आंध्र प्रदेश (65.13)
महाराष्ट्र (63.99)
गुजरात (63.52) तथा
पंजाब (63.01)
जबकि संदर्भ अवधि में सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्य इस प्रकार रहे:
उत्तर प्रदेश (28.61)
बिहार (32.11)
उड़ीसा (35.97) तथा
मध्य प्रदेश (38.39)
केरल का प्रदर्शन शानदार रहा है। यह राज्य पहले ही वर्ष 2020 के लिए रखे गए स्वास्थ्य क्षेत्र के दीर्घकालिक
विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पार कर चुका है। उदाहरण के लिए, रिपोर्ट के अनुसार नवजात शिशुओं की मृत्यु दर
पहले ही 6 पर आ चुकी है जबकि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर सिर्फ 11 है । स्वास्थ्य संबंधी ज्यादातर
संकेतकों में केरल श्रीलंका, क्यूबा तथा कोस्टा रिका जैसे विकासशील हिस्सों के स्वास्थ्य क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन
करने वाले देशों के दर्जे तक पहुंच चुका है और अनेक संकेतक तो यह दिखाते हैं कि वह विकसित देशों की
बराबरी करता है । स्वास्थ्य क्षेत्र में केरल की उपलब्धियों को दुनिया पहले ही मान चुकी है और अनेक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने स्वास्थ्य के केरल मॉडल को ‘‘कम कीमत पर बेहतर स्वास्थ्य‘‘ के रूप में बयान किया है जो सामाजिक न्याय तथा समानता पर आधारित है। केरल की अनेक सामाजिक आर्थिक स्थितियां अनोखी हैं, जो इस स्वास्थ्य मॉडल को संभव बनाने का आधार बनाती हैं । दूसरे भारतीय राज्यों के मुकाबले केरल में आबादी बेहद शिक्षित है। खासतौर से महिला साक्षरता की दर काफी ऊंची है और जब हम उदाहरणीय कारकों को देखते हैं तो इसी चीज को सारा श्रेय दिया जाना चाहिए। शिशु मृत्यु दर जैसे दुनिया भर के संकेतक यह दिखाते हैं कि महिला साक्षरता के साथ इसका उल्टा संबंध है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एक ऐसा राजनीतिक माहौल बना है जहां गरीब तथा कमजोर तबकों के अधिकारों को बुलंद रखा गया है तथा उनके लिए संघर्ष किया गया है। यह समाज सुधार के लिए चले दीर्घकालिक संघर्षों का परिणाम है जिसमें उन लोगों की गरिमा पर जोर रहा है , जिन्हें सामाजिक रूप से ‘‘कमतर‘‘ माना जाता है, जिसने बाद में उन धर्मनिरपेक्ष-जनतांत्रिक आंदोलनों में अपनी अभिव्यक्ति पाई जो राष्ट्रवादी तथा समाजवादी आंदोलनों में अपने उत्कर्ष पर पहुंचे । इन तमाम आंदोलनों में जिस चीज पर आमतौर पर जोर रहा है वह थी शिक्षा और दबे कुचले लोगों के संगठन। इसलिए जैसा कि अनेक समाज विज्ञानियों ने इस ओर इशारा किया है कि दूसरे भारतीय राज्यों की तुलना में केरल में कमजोर तबकों के शोषण की दर में भारी कमी आई । वर्ष 1957 में कम्युनिस्ट सरकार ने जो कृषि सुधार किए थे उन्होंने कृषि में सामंती संबंधों को खत्म कर दिया और जोतने वाले को जमीन दी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन गरीबों की सामाजिक जीवन स्थितियों में सुधार हुआ । इसने खेत मजदूरों के बीच गरीबी के खात्मे में अपना योगदान दिया जिसके चलते उनके स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार हुआ । राशन की दुकानों के जरिए पूरे केरल में खद्दानों की आधुनिक वितरण प्रणाली ने लोगों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती दरों पर न्यूनतम खाद्य सामग्री मिलना सुनिश्चित किया। इसने गरीबों के लिए पोषण की एक खास मात्रा सुनिश्चित की और गरीबी से संबंधित बीमारियों से बचे रहे।
ऊपर बताए गए सामाजिक आर्थिक कारकों के अलावा सार्वभौम रूप से उपलब्ध आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली ने भी लोगों के स्वास्थ्य की अच्छी स्थिति में अपना योगदान किया। केरल में स्वास्थ्य रक्षा की त्रिस्तरीय प्रणाली है- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र( पीएचसी) तथा सामुदायिक केंद्र (सीएचसी) तालुका तथा जिला अस्पताल और मैडिकल कॉलेज । इन सभी सुविधाओं का शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्र में समान रूप से वितरण हुआ है
आर्द्रम मिशन----
वाम जनतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार द्वारा शुरू किए गए आर्द्रम मिशन ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर मैडिकल कॉलेजों तक के अस्पतालों का कायाकल्प कर डाला है, जिसके चलते सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र में शानदार स्वास्थ्य सुधार हुआ है। आर्द्रम मिशन के जरिए राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र का रूपांतरण करने की कोशिश कर रहा है ताकि वह तमाम नागरिकों और खासतौर से गरीबों की पहुंच में आ जाए। इस मिशन के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाओं को बेहतर बनाया जा रहा है ताकि उन्हें मरीजों के अनुकूल पारिवारिक स्वास्थ्य केंद्रों के रूप में विकसित किया जा सके और जहां सभी को गुणवत्तापूर्ण इलाज मुहैया कराया जा सके। इस मिशन से जो अपेक्षाएं थी, उनको वह पहले ही पार कर चुका है। शुरू में यह मिशन 170 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लागू किया गया। फिर 2019 में 500 और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को इस मिशन के तहत लाया गया। इसके बाद सभी 940 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को इसमें शामिल कर दिया जाएगा । हर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काम करने वाले डॉक्टरों की संख्या पहले ही 2 से बढ़कर 3 हो चुकी है। ओपीडी का समय दोपहर 1ः00 बजे से बढ़ाकर 6ः00 बजे तक कर दिया गया है। फेफड़ों संबंधी बीमारियों, मानसिक बीमारियों और गैरसंक्रामक बीमारियों की देखभाल के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में खून की जांच की सुविधाएं शुरू की गई हैं। सभी आवश्यक दवाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। आर्द्रम मिशन के तत्वाधान में तालुका अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। जिला अस्पतालों में ‘‘कैथेटराइजेशन (नलिका डालना) प्रयोगशालाएं‘‘ भी स्थापित की गई हैं । टरशरी केयर तथा मैडिकल शिक्षा के लिए मैडिकल कॉलेजों को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (प्रतिभा के केंद्र) में तब्दील किया जा रहा है।
प्रमुख चुनौतियों से उबरते हुए ----
केरल की स्वास्थ्य प्रणाली की आंतरिक जीवंतता और उसकी जिजीविषा उन प्रमुख चुनौतियों के वक्त सामने आई जब राज्य को वर्ष 2017 में ओखी चक्रवात का और वर्ष 2018 में अभूतपूर्व बाढ़ का और इसी तरह वर्ष 2018 -19 में निपाह वायरस की महामारी के 2 प्रकरणों का सामना करना पड़ा। ओखी चक्रवात तथा बाढ़ के दौरान पानी से होने वाली संक्रामक बीमारियों की घटनाएं बहुत कम हुई । रैट फीवर के चलते कुछ मौतें अवश्य हुई। लेकिन जिस दक्षता के साथ निपाह, जिसने 6 महीने की अल्पावधि में ही पूरे राज्य को प्रभावित कर दिया था, को नियंत्रित करने में कामयाबी पाई, उसकी पूरी दुनिया में सराहना हुई।
स्वास्थ्य बीमा का बेहतरीन प्रदर्शन-----
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना को केरल में और विस्तार दिया गया और लाभार्थियों के रूप में और ज्यादा परिवारों को इसमें शामिल किया गया है। यह देश की सबसे बेहतरीन स्वास्थ्य बीमा प्रणाली है। राष्ट्रीय सिलेक्शन क्राइटेरिया के अनुसार केरल में बीमा कवरेज के लिए सिर्फ 28.5 लाख परिवार ही योग्य हैं लेकिन इसके तहत 42.5 लाख परिवारों को इसका लाभ दिया जा रहा है। आरएसबीवाई के अलावा थालोलाम तथा कारुण्य (सामाजिक सुरक्षा मिशन) जैसे दूसरे कार्यक्रम भी हैं जो बेहद खर्चीली मैडिकल स्थितियों में मुफ्त इलाज मुहैया कराती हैं। अभी केरल सरकार ने कारुण्य सर्वसमावेशी स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की है जिसमें केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना को शामिल कर लिया गया है । इसके अलावा राज्य सरकार कर्मचारियों और पेंशनधारियों के लिए भी राज्य में स्वास्थ्य बीमा योजनाएं चला रही हैं। इन तमाम योजनाओं के चलते केरल का हर परिवार स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत आ जाता है जिससे स्वास्थ्य संबंधी भारी खर्च घट गया है, जो कुछ वर्ष पहले तक राज्य में व्याप्त था।
के एस डी पी का पुनरूद्धार-----
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ ही साथ राज्य की मिल्कियत वाली दवा कंपनी - केरल स्टेट ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (केएसडीपी) का भी एलडीएफ सरकार ने पुनरुद्धार किया है। एसडीपी पहले ही कोई 150 करोड़ रूपये मूल्य की दवाओं का उत्पादन कर रहा है और उम्मीद है कि अगले 2 वर्षों के भीतर वह अपना उत्पादन बढ़ाकर 500 करोड़ रुपए मूल्य तक कि दवाओं के उत्पादन तक ले जाएगा । कंपनी ने पोस्ट ट्रांसप्लांट (चवेज जतंदेचसंदज) मरीजों के लिए आवश्यक दवाओं के उत्पादन के लिए और गठिया बुखार तथा पोस्ट रूमैट्रिक हर्ट डीजिजेज के प्रबंधन के लिए आवश्यक ओरल तथा इंजेक्शन पेन्सिलिन दवाओं के उत्पादन के लिए कदम उठाए हैं । उद्योग विभाग ने फार्मा पार्क की स्थापना करने की पहल की है जहां कम से कम 1000 करोड़ रुपये की दवाओं का उत्पादन होने की उम्मीद है। सरकारी अस्पतालों के चौतरफा सुधार के चलते सरकारी अस्पतालों की कवरेज आबादी के 28 फीसद से बढ़कर वर्ष 2018 के अंत तक 40 फीसद हो गई। स्वास्थ्य विभाग एलडीएफ सरकार के कार्यकाल के दौरान इसे बढ़ाकर 50 फीसदी तक ले जाने की अपेक्षा कर रहा है।
लेखक केरल राज्य योजना के सदस्य है।
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