Saturday 12 June 2021

ग़रीबों के स्वास्थ्य देखभाल की हालत दयनीय

 

ग़रीबों के स्वास्थ्य देखभाल की हालत दयनीय, इससे असमानता बढ़ती है: संसदीय समिति

BY भाषा ON 07/01/2018 •

 

संसद की एक समिति ने कहा, केंद्र सरकार को यह बहाना बनाना बंद कर देना चाहिए कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है और मिशन मोड में काम करना चाहिए.

नई दिल्ली: देश में नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मिशन मोड में काम करने की जरूरत बताते हुए संसद की एक समिति ने कहा है कि केंद्र सरकार को बार बार यह बहाना बनाना बंद कर देना चाहिए कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है.

 

देश में चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य परिचर्या पर प्राक्कलन समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 71वें दौर के मुताबिक देश में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बीमारियों के लगभग 70 प्रतिशत से अधिक मामलों में उपचार के स्रोत के रूप में निजी चिकित्सक और निजी क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक बनकर उभरा है.

 

शुक्रवार को समाप्त हुए संसद के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में प्रस्तुत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से संबंधित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके चलते ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं में भारत एक ऐसा देश बनकर उभरा है जहां स्वास्थ्य देखभाल पर प्रति व्यक्ति अपनी जेब से किया जाने वाला खर्च सबसे ज्यादा है जिससे यह स्पष्ट होता है कि देश में गरीबों की स्वास्थ्य देखभाल संबंधी कितनी दयनीय है क्योंकि स्वास्थ्य पर अपनी जेब से किया जाने वाला खर्च समाज के गरीब तबके को और अधिक निर्धन बना देता है और इससे सामाजिक असमानता बढ़ती है.

 

भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि स्वास्थ्य के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुसार सरकार को सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2030 तक स्वास्थ्य देखभाल संबंधी सुविधाएं सभी को सुलभ हों जिससे कि सभी आयुवर्गों के लोगों का जीवन बेहतर हो सके.

 

समिति की रिपोर्ट में कहा गया, विभिन्न राज्यों के साथ विचार विमर्श करते हुए स्वास्थ्य देखभाल के लिए आवश्यक, आधारभूत संरचना की स्थापना के लिए सही ढंग से योजना बनाने की अत्यंत आवश्यकता है ताकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और सतत विकास लक्ष्यों के तहत निर्धारित लक्ष्यों को हासिल किया जा सके.

 

समिति ने कहा, नीति क्रियान्वयन के विभिन्न स्तरों पर सशक्त निगरानी प्रणाली की स्थापना के लिए शीघ्र कार्रवाई भी करने की जरूरत है. अत: केंद्र सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय को मिशन मोड में काम करना चाहिए और यह बहाना नहीं बनाना चाहिए जो वे बार बार बनाते हैं कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है.

 

साथ ही उसने यह भी कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत निर्धारित लक्ष्यों की सही ढंग से तय समयसीमा में प्राप्ति के लिए सभी राज्य सरकारों को उपयुक्त कार्यक्रम बनाने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए तथा वित्तीय मामले में कमजोर राज्यों को आवश्यक सुविधाओं के निर्माण के लिए अतिरिक्त धनराशि प्रदान की जानी चाहिए.

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