Friday 11 June 2021

Haryana Rural Health Services

 चंडीगढ़,

*प्रैस विज्ञप्ति*

*सरकार को सभी स्वास्थ्य कर्मियों एवं नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन रक्षा का दायित्व निभाना चाहिए।*

हरियाणा में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) द्वारा तय मानकों के मुकाबले बहुत ही दयनीय है। इन मानकों अनुसार ग्रामीण इलाकों में हर नागरिक को संपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए 5000 की आबादी पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र, 30,000 की आबादी के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और 80 हजार से 1 लाख 20 की आबादी पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) होना चाहिए। इसी प्रकार हर उपमंडल व जिला मुख्यालय पर एक नागरिक हस्पताल भी होना चाहिए। लेकिन वर्तमान में हरियाणा के ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा (मार्च-जून 2020 के उपलब्ध आंकड़ों अनुसार) जितना होना चाहिए, उतना नहीं है और जितना है, उसमें भी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों, मेडिकल डॉक्टरों, स्टॉफ नर्सों, रेडियोग्राफरों, फार्मासिस्टों, लैब तकनीशियों और मल्टीपर्पज कैडर की भारी कमी है। फिलहाल प्रदेश में 2667 उप स्वास्थ्य केंद्र, 532 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 119 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। जबकि वर्तमान आबादी की जरूरतों के हिसाब से हमारे पास 634 उपस्वास्थ्य केंद्रों, 18 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और 18 सामुदायिक केंद्रों की कमी बनी हुई है।
(2011 की 1.65 करोड़ जनसंख्या के हिसाब से )

इसी प्रकार स्वास्थ्य ढांचे में डॉक्टरों, पेरामेडिक्स और अन्य स्टॉफ की स्थिति देखें तो फिलहाल ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 491 डॉक्टर हैं जबकि होने 1064 चाहिए। *यानि आधे से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एक भी डॉक्टर नहीं है।* इसी प्रकार एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 6 विशेषज्ञ डॉक्टरों (एक सर्जन, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, एक फिजिशियन, एक शिशु रोग विशेषज्ञ, एक हड्डी रोग विशेषज्ञ और एक बेहोशी देने वाला विशेषज्ञ ) होने चाहिए। इसके हिसाब से वर्तमान में 714 स्पेशलिस्ट डॉक्टर होने चाहिए। जबकि फिलहाल राज्य भर में केवल मात्र 27 स्पेशलिस्ट ही मौजूद हैं यानि *687* स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। ऐसे में कोरोना महामारी से लड़ने के बड़े-बड़े दावे भ्रामक करने वाले हैं।

इसी तरह पीएचसी और सीएचसी में नर्सिंग स्टाफ की हालत ज्यादा बेहतर नहीं है। हरियाणा की वर्तमान अनुमानित ग्रामीण जनसंख्या 1.81 करोड़ के अनुसार पीएचसी और सीएचसी में स्टाफ नर्सों की संख्या 2571 होनी चाहिए। जबकि मार्च/जून 2020 के उपलब्ध आंकड़ों अनुसार स्टाफ नर्सों की वर्तमान/वास्तविक स्थिति 2193 है। *यानी 378 नर्सों की कमी हो जायेगी।*
हर सीएचसी में एक रेडियोग्राफर की एक पोस्ट के हिसाब से 119 पोस्ट होनी चाहिए लेकिन इनकी संख्या केवल 38 हैं यानि 81 रेडियोग्राफर्स की कमी है। इसी प्रकार पीएचसी में एक और सीएचसी दो से तीन फार्मासिस्ट्स की पोस्ट अनुसार करीब 770 फार्मासिस्ट्स होने चाहिए लेकिन केवल 405 फार्मासिस्ट ही कार्यरत हैं। यानि आज 365 फार्मासिस्ट्स की कमी है। लैब टेक्नीशियन के 770 पदों के मुकाबले 400 लैब तकनीशियन ही कार्यरत हैं। यानि 370 लैब टेक्नीशियन की कमी बनी हुई है। उधर ग्रामीण आबादी तक वास्तविक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने और कोरोना मरीजों को होम आईशोलेशन तथा कोविड सेंटरों में देखभाल की जिम्मेदारी निभा रहे और जान जोखिम में डालकर काम करने वाले मल्टीपर्पज कैडर में एमपीएचडब्ल्यू (पुरूष और महिला) के स्वीकृत 5110 पदों के मुकाबले 3800 ही कार्यरत हैं जबकि एक उपस्वास्थ्य केंद्र पर 3 कर्मचारियों के हिसाब से करीब 10800 एमपीएचडब्ल्यू (पुरूष और महिला) होने चाहिए। वहीं स्वास्थ्य निरीक्षक(पुरूष व महिला) के 1100 पदों के मुकाबले करीब 700 ही कार्यरत हैं यानि 400 पद खाली पड़े हैं। इनके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 12000 से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत कर्मचारियों को नियमित तक नहीं किया जा रहा है। उधर आउटसोर्सिंग पॉलिसी के तहत भर्ती कॉन्ट्रैक्ट के स्टाफ का भारी शोषण विभाग और ठेकेदारों द्वारा किया जा रहा है। पिछले लंबे अरसे से कार्यरत करीब 14 हजार से ज्यादा ठेका कर्मियों की नए ठेकेदार द्वारा गत एक मई से हाजिरी ही नहीं लगवाई जा रही है।

कुल मिलाकर देखें तो ग्रामीण क्षेत्र की वर्तमान आबादी को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए वर्तमान आबादी के अनुपात में स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पदों में 95 प्रतिशत से ज्यादा विशेषज्ञ डॉक्टरों, 50 प्रतिशत से ज्यादा तथा पैरामेडीकल स्टॉफ के कुल नियमित स्वीकृत पदों 10371 पर 40 प्रतिशत से ज्यादा पद रिक्त पड़े हैं। जबकि आबादी के अनुपात में नियमानुसार अकेले पेरामेडिक्स स्टाफ के ही 25000 से ज्यादा नियमित पद स्वीकृत होने चाहिए। साथ ही मिनिस्ट्रियल स्टॉफ और चतुर्थ श्रैणी कर्मचारियों का भी बड़ा अमला शामिल किए जाने की जरुरत है। इनके अलावा विभिन्न स्वास्थ्य संस्थाओं का भी भारी पैमाने पर विस्तार होना चाहिए। लेकिन सरकारों की अमीर प्रस्त नीतियों के चलते अधिकतर पीएचसी/सीएचसी में न तो महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हैं और न ही बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हैं। इसी प्रकार अधिकतर सिविल हस्पतालों में भी न तो अल्ट्रासाउण्ड मशीनें हैं और न ही एक्स-रे मशीन व सी.टी. स्कैन। यदि कहीं पर ये मशीनें हैं भी तो उनके संचालक नहीं या ये अक्सर खराब रहती हैं। *या कुछ में पीपीपी मोड़ में हैं*
प्रदेश की एकमात्र पी.जी.आई.एम.एस. रोहतक में भी सी.टी. स्कैन, ई.ई.जी. व विभिन्न आप्रेशनों के लिये कई-कई महीनों बाद का समय मिलता है। जिससे मरीजों को मजबूरन निजी व मंहगे हस्पतालों में जांच व इलाज पर हजारों-लाखों की राशी खर्च करनी पड़ती है। ऐसे हालातों में हरियाणा सरकार द्वारा बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के दावे बेहद खोखले दिखाई देते हैं।

अब भले ही देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर धीरे-धीरे उतार पर दिखाई दे रही है मगर इस दूसरी लहर ने सरकार और स्वास्थ्य ढांचे की पोल खोल कर रख दी है। सभी लोगों को टीका लगाने के बड़े-बड़े दावों पर तो माननीय सुप्रीम कोर्ट तक ने देश में टीकाकरण की प्रक्रिया को मनमानी व तर्कहीन कहने को बाध्य होना पड़ा है। इसके अलावा पिछले दिनों हमने देखा कि देश-प्रदेश के अधिकांश प्रमुख शहरों और जिला मुख्यालयों पर मरीज अपने उपचार के लिए हस्‍पतालों में उपयुक्त बेड, ऑक्सीजन और आवश्यक दवाओं के लिए संघर्ष कर रहे थे। जाँच रिपोर्ट बहुत देरी से मिल रही थी और यहां तक ​​कि शमशानों में भी शवों के अंतिम संस्‍कार के लिए असाधारण रूप से लंबा इंतजार करना पड़ा था। ऐसे में सरकार को इससे सबक लेकर तमाम कमियों को दूर करने के लिए स्थाई समाधान निकालने की ओर आगे बढ़ना चाहिए। इसके लिए एक जरुरी कदम स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट में 10 प्रतिशत तक बढ़ौतरी करके सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करते हुए डॉक्टरों, पेरामेडिक्स और अन्य स्टाफ की बड़े पैमाने पर नियमित भर्ती करके उठाया जा सकता है। लेकिन सरकार द्वारा ऐसे ठोस कदम उठाने की बजाए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग की संसदीय स्थायी समिति की नवंबर 2020 में जारी 123 वीं रिपोर्ट *"कोविड -19 महामारी का प्रकोप और उसका प्रबंधन"* में चेतावनी देने के बावजूद बिना किसी शारीरिक दूरी की चिंता किए महाकुंभ में बड़ी संख्या मे लोगों के शामिल होने की अनुमति और विशाल चुनावी रैलियों ने महामारी का ग्राफ कई गुना तेजी से बढ़ाया। जबकि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे के चरमराने के कारण और कोविड -19 की गाइडलाइंस का ठीक से पालन न होने तथा नए म्यूटेंट/स्ट्रेन (वायरस का परिवर्तित रुप) का आना बताकर अपनी नाकामी पर पर्दा डाल रही है।


सुरेश कुमार
संपर्क सुत्र: 9416232339

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