Sunday, 26 June 2016

महिला सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण के दावों से टकराती सच्चाई

राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट में महिलाओं को लेकर कुछ चमकदार आंकड़े दिख रहे हैं. भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य और उनकी शिक्षा, वित्तीय स्थिति और निर्णय लेने की क्षमता में सुधार का दावा किया गया है.
Indien Studierende der Patna Frauen College

विपरीत हालात के बावजूद महिलाएं निजी और सार्वजनिक जीवन में लगातार आगे बढ़ रही हैं. सर्वेक्षण के अनुसार 15 से 49 वर्ष की महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ी है. गोवा में 89 फीसदी, सिक्किम में 86, हरियाणा में 75.4, और मध्यप्रदेश में 59.4 फीसदी महिला साक्षरता दर रेकॉर्ड की गई. वहीं प्रजनन दर यानि प्रति महिला संतानोत्पत्ति में कमी देखी गई है. ये इस बात का संकेत है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य और परिवार के आकार और गर्भ निरोधक प्रयासों को लेकर सचेत हैं जो कि भारत की विशाल आबादी को देखते हुए एक उत्साहजनक बात है.
वित्तीय अधिकार के लिहाज से देखा जाए तो अब प्राय: महिलाओं के खुद के नाम पर उनका बैंक खाता होता है यानि महिलाओं की वित्तीय आत्मनिर्भरता बढ़ी है. इसमें गोवा और तमिलनाडु का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा है. इस सर्वेक्षण में एक सूचकांक ये भी रखा गया था कि कितनी महिलाओं के नाम पर अचल संपत्ति है. दिलचस्प है कि बिहार में ऐसी महिलाओं का प्रतिशत सबसे ज्यादा था जिनके नाम पर संपत्ति थी. इसके बाद त्रिपुरा का नंबर था और पश्चिम बंगाल इसमें आखिरी पायदान पर था जहां महिला मुख्यमंत्री के हाथों में शासन की बागडोर है.
इस सर्वेक्षण के नतीजों से ये मिथक भी टूटा है कि भारत में पितृसत्तात्मक परिवार होने के कारण पारिवारिक निर्णयों में महिलाओं की भूमिका न के बराबर होती है. सिक्किम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में 70 से 90 फीसदी महिलाएं परिवार में निर्णायक भूमिका निभाती हैं. हालांकि तमिलनाडु और हरियाणा में महिलाओं की इस भूमिका में गिरावट आई है.
हर 20 मिनट में एक बलात्कार
इन आंकड़ों की रोशनी में महिला सशक्तिकरण की कमोबेश उत्साहजनक तस्वीर बनती दिखती है लेकिन इसके स्याह पहलू को भी रेखांकित करना जरूरी है. वास्तविकता देखें तो महिलाओं के लिए अब भी भारतीय समाज में चुनौतियां बनी हुई है. भारत में महिलाएं कुल जनसंख्या का करीब 48 फीसदी हैं लेकिन रोजगार में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 26 फीसदी की है. राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के रेकॉर्ड के अनुसार महिलाओं पर होने वाले अपराधों जैसे बलात्कार, घरेलू हिंसा और दहेज हत्या में 11 फीसदी की दर से सालाना वृद्धि दर्ज की गई. ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार हर 20 मिनट में एक महिला भारत में बलात्कार का शिकार होती है.
न्यायपालिका और केंद्र और राज्य सरकारों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है और 2013 के आंकड़ों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ दो महिला जज थीं. संसद में महिला आरक्षण विधेयक अभी भी लंबित है. पंचायतों में जहां महिलाओं के लिए आरक्षण किया गया वहां महिलाओं के नाम पर उनके पति और बेटे निर्वाचन से मिली ताकत का उपयोग कर रहे हैं. और इन सब चिंताओं के बीच यूएनडीपी की वह रिपोर्ट भी है जिसके मुताबिक महिलाओं के सशक्तिकरण में अफगानिस्तान को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देश भारत से बेहतर हैं.
ताकत और दबंगई का बोलबाला
अब एक तरफ ये आकर्षक आंकड़े हैं और दूसरी तरफ इन आंकड़ों के समांतर फैला यथार्थ. यह यथार्थ बना है महिला विरोधी मानसिकता और पुरुषवादी वर्चस्व से. बेशक स्त्रियां उठ रही हैं, लड़ रही हैं, आगे आई हैं लेकिन जितना ज्यादा उनकी आवाज और उनकी शख्सियत का दायरा बढ़ता जाता है, उतना ही ज्यादा उस दायरे को सिकोड़ने की कोशिशें की जाती रही हैं. इस तरह समाज में यह वर्गीय टकराव जारी है और अब इस टकराव के हम कुछ भयावह पहलू भी देख रहे हैं, जहां ताकत और दबंगई का बोलबाला है. एक ताकतवर पुरुष ही नहीं एक ताकतवर महिला भी अपने से कमजोर और असहाय महिला पर हिंसा आजमाती दिख जाती है और इस तरह समाज का यह विद्रूप बजाय मिटने के और सघन हो रहा है.
ऐसे विरोधाभासी और प्रतिकूल हालात से निपटने का सबसे पहला रास्ता घर से ही खुलता है. जहां परिवारों को बेटियों के प्रति अधिक समानुभूति और समझदारी के साथ पेश आना होगा. उन्हें इस किस्म का आधुनिक बनना होगा कि वे बेटियों और अपने घर की महिलाओं को बराबर की जगह दें और उनका सम्मान कर सकें. उन्हें धार्मिक और सामाजिक वितंडाओं से बाज आना होगा. अगर पुरुष ऐसा नहीं करते हैं तो महिलाओं को ही यह काम अपने हाथ में लेना होगा. उन्हें 'सेकंड सेक्स' की मान्यता को हर हाल में तोड़ना ही होगा. इस काम में स्वयंसेवी संगठन, मीडिया, अदालतों, मानवाधिकार संगठन और महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले व्यक्ति, राजनैतिक दल और समूहों को भी अपनी प्रोएक्टिव भूमिका निभानी होगी.
जुलूस, मोमबत्ती मार्च, नारे, धरनों से आगे परिवार और समाज में मौजूद उन जटिल संरचनाओं को तोड़ना होगा जो एक कदम आगे बढ़ती स्त्री को दो कदम पीछे खींचने पर विवश करती हैं. यही वजह है कि महिला सशक्तिकरण का एक आंकड़ा राहत पहुंचाता है तो महिला पर अपराध का दूसरा आंकड़ा उसी दौरान गहरी निराशा और अफसोस में डाल देता है.
ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी

1 comment:

Manisha Bapna said...

भारत में महिला सशक्तिकरण एक ऐसा विषय है जिस पर धियान देना ज्यादा जरुरी है और मनीषा बापना जी इस विषय पर अपनी तरफ से हर संभव मदद महिलाओ को देती है और उनकी हर संभव मदद करती है जायदा जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट पर देख सकते है भारत में महिला सशक्तिकरण