कोरोना वायरस ने पूरे विश्व की अपनी चपेट में ले लिया है। वैज्ञानिक इसके टीके और दवा की खोज में दिन रात एक किए हुए हैं, ताकि किसी तरह से इसके प्रसार को रोका जा सके। द गार्जियन, नेचर रिसर्च सहित अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, इसकी कारगर दवा और टीका खोजने के लिए अभी पांच सवालों के जवाब बेहद जरूरी हैं।
1- दोबारा संक्रमण-
अभी तक इस बात संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया है कि एक बार कोरोना से संक्रमित होने वाले शख्स को यह दोबारा हो सकता है या नहीं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि एक बार संक्रमण हो जाने के बाद इंसानी शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। मगर चीन में कुछ केस ऐसे सामने आए हैं, जिनमें अस्पताल से छुट्टी होने के कुछ सप्ताह बाद लोगों को दोबारा संक्रमण हो गया। चीन के एक अध्ययन के मुताबिक, अभी तक बंदर की एक खास प्रजाति ही इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सफल हुई है।
अभी तक इस बात संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया है कि एक बार कोरोना से संक्रमित होने वाले शख्स को यह दोबारा हो सकता है या नहीं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि एक बार संक्रमण हो जाने के बाद इंसानी शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। मगर चीन में कुछ केस ऐसे सामने आए हैं, जिनमें अस्पताल से छुट्टी होने के कुछ सप्ताह बाद लोगों को दोबारा संक्रमण हो गया। चीन के एक अध्ययन के मुताबिक, अभी तक बंदर की एक खास प्रजाति ही इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सफल हुई है।
2- प्रतिरोधक क्षमता कब तक रहेगी-
अगर इंसान शरीर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है तो सवाल ये है कि यह क्षमता कितने दिन बरकरार रहेगी। अभी तक तो यही देखा गया है कि इस तरह के वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा समय तक नहीं रहती। यूनिवर्सिटी ऑफ लोवा के वैज्ञानिक स्टेनले परमैन ने कहा, जिन लोगों में बहुत एंटीबॉडीज होते हैं वो भी संक्रमित हो सकते हैं। सार्स के मामले में यह बात सामने आई कि एक बार ठीक हुए शख्स के शरीर में 15 साल तक भी प्रतिरोधक क्षमता रहती है। वहीं मर्स के मामले में प्रतिरोधक क्षमता बहुत तेजी से कम होती नजर आई। तो अब कुल मिलाकर बात ये है कि अगर मानव शरीर में कोरोना के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो भी जाती है तो वो दीर्घकालिक होगी या अल्पकालिक।
अगर इंसान शरीर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है तो सवाल ये है कि यह क्षमता कितने दिन बरकरार रहेगी। अभी तक तो यही देखा गया है कि इस तरह के वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा समय तक नहीं रहती। यूनिवर्सिटी ऑफ लोवा के वैज्ञानिक स्टेनले परमैन ने कहा, जिन लोगों में बहुत एंटीबॉडीज होते हैं वो भी संक्रमित हो सकते हैं। सार्स के मामले में यह बात सामने आई कि एक बार ठीक हुए शख्स के शरीर में 15 साल तक भी प्रतिरोधक क्षमता रहती है। वहीं मर्स के मामले में प्रतिरोधक क्षमता बहुत तेजी से कम होती नजर आई। तो अब कुल मिलाकर बात ये है कि अगर मानव शरीर में कोरोना के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो भी जाती है तो वो दीर्घकालिक होगी या अल्पकालिक।
3- फोकस एरिया-
अमेरिका में जिस टीके का परीक्षण चल रहा है उसका खास मकसद है, इंसानी के शरीर को इस बात के लिए तैयार करना कि वह उस स्पाइक प्रोटीन को पहचाने और रोके जिसकी बदौलत वायरस इंसानी शरीर में प्रवेश करता है। डॉक्टरों को इससे बहुत उम्मीद है। हालांकि डॉक्टरों का मकसद ऐसी दवा तैयार करना है जो इस वायरस से जुड़े अन्य किसी भी किस्म के प्रोटीन को पहचाने और उसे रोके। इसके अलावा इंसानी शरीर इस काबिल बने कि वह संक्रमित कोशिकाओं को खत्म कर पाए।
अमेरिका में जिस टीके का परीक्षण चल रहा है उसका खास मकसद है, इंसानी के शरीर को इस बात के लिए तैयार करना कि वह उस स्पाइक प्रोटीन को पहचाने और रोके जिसकी बदौलत वायरस इंसानी शरीर में प्रवेश करता है। डॉक्टरों को इससे बहुत उम्मीद है। हालांकि डॉक्टरों का मकसद ऐसी दवा तैयार करना है जो इस वायरस से जुड़े अन्य किसी भी किस्म के प्रोटीन को पहचाने और उसे रोके। इसके अलावा इंसानी शरीर इस काबिल बने कि वह संक्रमित कोशिकाओं को खत्म कर पाए।
4- समय कितना लगेगा-
किसी टीके को तैयार करने में काफी समय लगता है। अगर किसी भी तरह की कानूनी अड़चन न हो तो भी इसमें काफी वक्त लग जाता है क्योंकि टीके के दीर्घकालीन प्रभावों का भी अध्ययन जरूरी होता है। लंदन स्कूल ऑफ इाईजीन के प्रोफेसर विंडर स्मिथ कहते हैं कि किसी भी अन्य टीके की तरह, मुझे नहीं लगता कि न्यूनतम 18 माह से पहले हम कोविड का टीका लाने की स्थिति में हैं।
किसी टीके को तैयार करने में काफी समय लगता है। अगर किसी भी तरह की कानूनी अड़चन न हो तो भी इसमें काफी वक्त लग जाता है क्योंकि टीके के दीर्घकालीन प्रभावों का भी अध्ययन जरूरी होता है। लंदन स्कूल ऑफ इाईजीन के प्रोफेसर विंडर स्मिथ कहते हैं कि किसी भी अन्य टीके की तरह, मुझे नहीं लगता कि न्यूनतम 18 माह से पहले हम कोविड का टीका लाने की स्थिति में हैं।
5- टीका का प्रभाव कितना रहेगा-
किसी भी टीके को विकसित करने में कमजोर कड़ियों को हटाना जरूरी होता है। क्लीनिकल ट्रायल के दौरान कई लोगों पर दवा बिल्कुल असर नहीं करती, ऐसी कई चीजें परीक्षण के दौरान सामने आती हैं। कई तरह के फ्लू के टीके बाजार में पहले से मौजूद हैं। अब अगर उसी तरह का कोई नया फ्लू सामने आता है तो तुरंत उसका टीका इजाद कर लिया जाता है क्योंकि पहले ही काफी कुछ काम हो चुका होता है। बस नए वायरस की प्रकृति के हिसाब से पूराने टीके में बदलाव कर दिए जाते हैं। मगर यह बिल्कुल नए किस्म का है। इसके हर चरण को टेस्ट करना होगा।
किसी भी टीके को विकसित करने में कमजोर कड़ियों को हटाना जरूरी होता है। क्लीनिकल ट्रायल के दौरान कई लोगों पर दवा बिल्कुल असर नहीं करती, ऐसी कई चीजें परीक्षण के दौरान सामने आती हैं। कई तरह के फ्लू के टीके बाजार में पहले से मौजूद हैं। अब अगर उसी तरह का कोई नया फ्लू सामने आता है तो तुरंत उसका टीका इजाद कर लिया जाता है क्योंकि पहले ही काफी कुछ काम हो चुका होता है। बस नए वायरस की प्रकृति के हिसाब से पूराने टीके में बदलाव कर दिए जाते हैं। मगर यह बिल्कुल नए किस्म का है। इसके हर चरण को टेस्ट करना होगा।
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