Wednesday, 25 March 2020

कोरोना वायरस संक्रमण आपको कैसे बीमार करता है

                     कोरोना वायरस संक्रमण आपको कैसे बीमार करता है ?
               राज्य ज्ञान विज्ञान केन्द्र शिमला
आम मौसमी फ्लू की तरह ही कोरोना वायरस भी सांस की बीमारी का कारण बनता है। यह इसके जोखिम को कम करने की तरह लग सकता है लेकिन अधिक संभावना है कि आप हल्की सर्दी, छींक, गले में खराश से पीड़ित हों। लगभग 80 प्रतिशत  संक्रमित व्यक्ति अपने ही दम पर ठीक हो जाते हैं और उन्हें  डाक्टर के पास जाने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।
             
                      हालांकि, लगभग 5 प्रतिशत  को सांस लेने में कठिनाई विकसित हो सकती है और उन्हें  अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो सकती है। कुछ को निमोनिया हो सकता है। जैसे-जैसे यह संक्रमण बढ़ता है, गंभीर मामलों के लिए, आक्सीजन से समृद्ध हवा फेफड़ों में पंप की जाती है। उनका इम्यून सिस्टम वापस लड़ता है और वायरस के हमले को रोकता है, और वे धीरे-धीरे ठीक हो जाते हैं।

        गिने-चुने मरीजों में ही स्थिति और खराब होगी। यदि बुढ़ापे या अन्य बीमारियों के कारण, उनकी प्रतिरक्षा कम हुई, तो वायरस अपना प्रभाव बढ़ा लेगा। इस समय इम्यून सिस्टम बढ़-चढ़ कर लड़ता है। प्रतिरक्षा प्रणाली, अब तक, दोस्त कोशिकाओं और दुश्मन वायरस को अलग से पहचानने में सक्षम नहीं होता। एक साइटोकिन तूफान श् वायरस और स्वस्थ कोशिकाओं को मारने के लिए शुरू जाता है। सफेद रक्त कोशिकाएं फेफड़ों के ऊतकों को नष्ट कर देती हैं, छोटी अल्वेलर थैली (फेफड़ों में आक्सीजन और कार्बन डाइआक्साइड का आदान-प्रदान करने वाली थैली) तरल पदार्थ के साथ भर जाती हैं। वेंटिलेटर से आक्सीजन समृद्ध हवा पंप करने के बावजूद भी रक्त अब फेफड़ों से आक्सीजन को अवशोषित नहीं कर सकता। रोगी को एक्सट्राकर्पोरियल-झिल्ली- आक्सीजनेशन (ईसीएमओ) मशीन में डाल दिया जाता है।

          आटोइम्यून रोगों के इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले मोनोक्लोनल एंटीबाडी जैसी दवाएं उपलब्ध हैं। सबसे अधिक संभावना है की रोगी गहन उपचार के कुछ हफ्तों के बाद आईसीयू से पर वापस आ जाए। बहुत कम रोगियों को इलाज से लाभ नहीं होता है और वे मर सकते हैं। इन मौतों को रोका जाना चाहिए। यदि हमारी स्वास्थ्य सेवाएं समय पर रोगियों को इलाज प्रदान करें हैं तो मूल्यवान जीवन को बचाया जा सकता है।
कोरोना वायरस संक्रमण आपको कैसे बीमार करता है?

कोरोना वायरस संक्रमण
यह एक संक्रामक ( Infectious) बीमारी है, जिसका मतलब है कि यह प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से एक से दूसरे व्यक्ति को फैल सकती है। जब कोई खुले में खासंता और छींकता है तो वह अपनी नाक या मुंह से तरल बूंदों(Respiratory Droplets) का छिड़काव  करता है जिसमें वायरस हो सकता है। यदि आप उसके बहुत करीब हैं तो आप वायरस षामिल बूंदों को ( Direct droplet inhalation) अपनी सांस में ले सकते हैं।
          संक्रमित व्यक्ति के हाथों से या खांसी/छींक से तरल बूंदों के माध्यम से वायरस फर्श  या अन्य सतह पर जा सकता है। वायरस फर्श  पर कुछ घंटों के लिए ही सक्रिय रहता है। परंतु इससे पहले ही अगर कोई गैर-संक्रमित  व्यक्ति इस सतह को छू लेता है और फिर वह अपने चेहरे को बिना हाथ धोए छूता है (खासतौर पर आंख, नाक और मुंह) तो वायरस इस माध्यम से शरीर में प्रवेश  कर ( Indirect droplet contact) सकता है |

वायरस नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश  करता है परतुं यह आंख या मुंह से भी शरीर में प्रवेश  कर सकता है
बुखार, खांसी प्रारंभिक लक्षण---
वायरस के शरीर में प्रवेष करते ही इसका हमला शुरू हो जाता है। इसका प्रभाव सांस लेने वाली प्रणाली (नाक, गले, वायु मार्ग एवं फेफडों आदि) पर पड़ता है।
वायरस के साथ व्यक्ति के प्रारंभिक संपर्क (First  Contact)के बाद इसके लक्षण विकसित होने में 2 से 14 दिन लग सकते हैं। लक्षण विकसित होने की औसत अवधि करीब 5 दिन है। सबसे पहले इसका संक्रमण गले में होता है और यहां 3 से 4 दिनों तक रहता है।
विष्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 80 फीसद मरीजों को इस संक्रमण का हल्का प्रकोप ही होता है और इस समय उसे बुखार और खांसी, मौसमी फ्लू की तुलना में थोड़ा ही ज्यादा होता है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती। यह इसलिए भी होता है कि उन मरीजों के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ( Immune System) संक्रमण को रोक पाने में सक्षम रहती है।

लक्षण --- सूखी खांसी ,बुखार व सिर दर्द  , थकान , साँस लेने में दिक्कत 
    शरीर के अंदर पहुँच  कर यह वायरस एपिथिलियल कोषिकाओं 
( Epithelial Cells  ) को संक्रमित करना शुरू कर देता हैं। वायरस शरीर की कोषिकाओं पर आक्रमण कर अपने आपको बढ़ाने लगता है। वायरस सबसे पहले उपरी सांस लेने वाली प्रणाली (Upper Respiratory Tract) (नाक, गला, वायुमार्ग) पर आक्रमण करता है।
इस समय मरीज बीमारी के हल्के लक्षण महसूस करने लगता हैं--
सूखी  खांसी, सांस लेने में दिक्कत, बुखार और सिर एवं मासपेशियों में दर्द आदि। कुछ मरीजों को दस्त भी लग सकते हैं। हालांकि यह सामान्यत कम ही देखा गया है।
गंभीर मामलों में संक्रमण सांस की नली में नीचे की तरफ फैल जाता है| 
निमोनिया----

              जैसे ही संक्रमण सांस लेने की नली (Lower Respiratory Tract) में नीचे की तरफ बढ़ता है तो रोग के लक्षण गंभीर हो जाते हैं। इस समय शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली काम करना शुरू कर देती है और सफेद रक्त कोषिकाएं (White Cells) रोगजनकों (Pathogens) को खत्म करने का प्रयास करती हैं  जिससे शरीर स्वस्थ हो सके। परन्तु, यदि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत नहीं है तो न सिर्फ वायरस संक्रमित कोषिकाएं बल्कि स्वस्थ कोषिकाएं भी बड़े पैमाने पर नष्ट होना शुरू हो जाती हैं।
             13.8 प्रतिशत गंभीर मामलों में तथा 6.1 प्रतिशत अति गंभीर मामलों में संक्रमण सांस लेने की प्रणाली में नीचे तक फैल जाता है जहां यह अपने को और ज्यादा बढ़ाना शुरू कर देता है और मरीज को ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) और निमोनिया (Pneumonia) जैसी सांस की गंभीर समस्याएं हो जाती हैं ।
संक्रमण का प्रमुख लक्ष्य फेफडे़----
         निमोनिया की वजह से सांस लेने में दिक्कत और खांसी होती हैं और यह फेफड़ों में मौजूद हवा की छोटी थैली, अल्विओलाई (Alveoli) को प्रभावित करता है। अल्विओलाई  वह जगह है जहां ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है।
              जब निमोनिया बहुत बढ़ जाता है तो अल्विओलाई  की कोषिकाओं (Alveolar Cells) की पतली परत वायरस के संक्रमण से क्षतिग्रस्त हो जाती है और शरीर इस संक्रमण से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक कोषिकाओं को भेजता है। इस वजह से यह परत सामान्य से ज्यादा मोटी हो जाती है। जैसेश्जैसे यह परत मोटी से मोटी होती जाती है वैसे वैसे  यह मोटी परत खून में ऑक्सीजन जाने ( little air pocket)  की जगह को घोंट या दबा देती है।
                     खून के प्रवाही तंत्र (Blood Streams) को ऑक्सीजन की कम आपूर्ति की वजह से लीवर, गुर्दे और दिमाग में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। कुछ मरीजों में सांस लेने में बहुत ज्यादा दिक्कत (Acute Respiratory Distress Syndrome) हो जाती है और मरीज को ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए वेंटिलेटर पर रखा जाना पड़ता है।
अगर फैफड़ों का बहुत ज्यादा हिस्सा नष्ट हो गया हो तो शरीर के और अंगो को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है। सांस लेने में दिक्कत की वजह से (Respiratory failure) और  कई अंग काम करना बंद कर देते हैं (Organ Failure) और मृत्यु हो सकती है।
मूल रूप से यह मेजबान शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता और वायरस के बीच की लड़ाई है। 
                रोगी ठीक होगा या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस लड़ाई में कौन जीतता है। यदि वायरस जीत गया तो स्थिति गंभीर हो जाती है यदि नहीं तो रोगी ठीक हो जाता है। इसलिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का ठीक होना जरूरी है और इसके लिए स्वस्थ रहना और पौष्टिक भोजन जरूरी है। युवाओं में बुजुर्गों की तुलना में अधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है इसलिए इस बीमारी का षिकार अधिकतर बुजुर्ग (70 साल से उपर के) बनते हैं। इसके अलावा बीमार लोगों (मधुमेह, उच्च रक्तचाप, एड्स, कैंसर फेफड़ों की बीमारी एवं गुर्दे की बीमारी) की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है और वे इस वायरस के प्रकोप का शिकार बन सकते हैं।
          शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भरपूर पौष्टिक भोजन तथा स्वस्थ जीवन जीने के तौर तरीकों पर निर्भर करता हैं । परन्तु भारत जैसे देश  में जहां अधिकतर महिलाएं एवं बच्चे कुपोषण का शिकार हैं  और लोग प्रदूषण एवं अस्वस्थ्य वातावरण में जीने को मजबूर हैं इस तरह की बीमारियों का प्रकोप भयावह हो सकता है।
      कोरोना वायरस बीमारी
क्या करें? क्या न करें?
धोएं
अपने हाथों को बार-बार साबुन व पानी से धोएं। हाथ और उंगलियों के सारे हिस्से अच्छे से साफ करें। आंखों, नाक और मुंह को बगैर धोएं हाथों से छूने से बचें क्योंकि हाथ कई सतहों को छूते हैं और उनमें वायरस लग सकता है और छूने से वायरस आंखों, नाक और मुंह में जा सकता है।
ढकें
सांस लेने के तौर तरीकों में साफ-सफाई बनाए रखें। खांसी या छींक आने पर तुरंत अपने मुंह और नाक को अपनी मुड़ी हुई कोहनी या रूमाल/टिष्यू पेपर से ढक लें। इसके बाद टिष्यू पेपर को तुरंत सुरक्षित जगह पर फैंक दें। रूमाल को षाम को गर्म पानी से धोकर सुखा लें।
बचें
ऐसी सभी सार्वजनिक उपयोग की जगहों को छूने से बचें जहां वायरस के होने की संभावना है। जैसे सड़क व सीढ़ियों की रेलिंग, दरवाजों के हैंडिल, दुकानों के काउंटर, शौचालय, बसें, रेल और टैक्सियां, प्रतीक्षालय, कुर्सी के आर्मरेस्ट, लिफ्ट के बटन, टीवी रिमोट, डिजिटल उपकरण जैसे माउस, की-बोर्ड आदि।
दूरी बनाएं
सामाजिक दूरी बनाए रखें। भीड़ मंे जाने से बचें। यदि जाना बहुत ही जरूरी हो तो साफ-सफाई का ध्यान रखें। सामाजिक दूरी का मतलब घर में अलग हो कर बैठना नहीं है बल्कि जब आप सार्वजनिक जगहों में हांे तो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच दूरी हो। सार्वजनिक धार्मिक, सांस्कृतिक, खेल-कूद एवं राजनीतिक कार्यक्रमों को कुछ समय के लिए टालें।

यदि आपको बीमारी के लक्षण (बुखार, ठंड, खराब गला, सांस लेने में भी दिक्कत आदि) हो तो तुरंत अस्पताल में जाएं और जांच करवाए

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