*स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य ढ़ांचे की मजबूतीे एवं विस्तार हेतु अभियान*
आदरणीय साथियों,
जैसा आप और हम जानते हैं कि मार्च 2020 से देश-दुनिया में शुरू हुई कोरोना महामारी ने भयंकर रूप लेते हुए दूसरी लहर के समय हमारे देश में विकराल रूप धारण कर लिया था। सरकारी आंकड़ों अनुसार 19 अगस्त 2022 तक कोरोना वायरस से दुनिया भर में करीब 60 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और 64 लाख 67 हजार लोग कोरोना से जिन्दगी की जंग हार चुके हैं। हमारे देश में भी अब तक 4.5 करोड़ लोग संक्रमित और 5 लाख 27 हजार मौत का शिकार हुए हैं। जबकि विभिन्न एजेंसियों ने हमारे देश में मौत के आँकड़े को 45 लाख से ज्यादा बताया है। अप्रैल-मई 2021 में तो कई दिनों तक 4 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो रहे थे और मरने वालों की संख्या भी प्रतिदिन 4 हजार के आसपास रही थी। अब भी हम कोरोना केसों में बार-बार उतार चढ़ावों को देख रहे हैं। हालांकि कोरोना की पहली लहर के समय ही वैज्ञानिकों एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने बचाव के अनेक उपाय बताए थे जिन्हें अमल में लाकर सरकार इस महामारी से हुए नुकसान को कम कर सकती थी। लेकिन अफसोस की बात है कि इन उपायों को खुद नीति निर्माताओं तक ने ही नहीं अपनाया। सरकार ने तो एक तरफ कोरोना से बचाव की समुचित व्यवस्था न करके लोगों को लगभग निहत्था छोड़कर अपना पल्ला झाड़ लिया था। दूसरी तरफ हमारा वर्तमान स्वास्थ्य ढ़ांचा लंबे समय से चिकित्सकों और अन्य स्टाफ एवं बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है। इसके बावजूद सरकारी चिकित्सकों और अन्य स्टाफ ने अपनी जान जोखिम में डालकर आम लोगों की भरपूर मदद की थी। जो बेहद काबिलेतारिफ थी। क्योंकि प्राईवेट क्षेत्र ने तो अपने हस्पतालों को बंद ही रखा था या भयंकर लूट मचाई थी।
*स्वास्थ्य की परिभाषा:*
ऐसे में स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना (समस्या-विहीन होना) ही स्वास्थ्य की परिभाषा है। किसी व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रुप से अच्छे होने की स्थिति को स्वास्थ्य कहते हैं। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक है। तीन डी (डिजीज, डॉक्टर और दवाई) के अलावा हमारे स्वास्थ्य के सामाजिक कारक भी हैं जिन पर सरकार का बहुत कम ध्यान है। चूँकि हम सामाजिक जीव हैं, अतः संतोषजनक रिश्ते का निर्माण करना और उसे बनाए रखना हमें स्वाभाविक रूप से आता है। सामाजिक रूप से सबके द्वारा स्वीकार किया जाना हमारे भावनात्मक खुशहाली के लिए और स्वास्थ्य के लिए अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। हमारे स्वास्थ्य के निम्नलिखित सामाजिक कारक हैं जो हम सबके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
ऽ प्रदूषणमुक्त वातावरण हो।
ऽ शुद्व पेयजल एवं पानी की टंकियों का प्रबंध हो।
ऽ मल-मूत्र एवं अपशिष्ट पदार्थों के निकासी की योजना हो।
ऽ सुलभ शैचालय हो।
ऽ समाज अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रहमचर्य एवं अपरिग्रही स्वभाव वाला हो।
ऽ वृक्षारोपण का अधिकाधिक कार्य हो।
ऽ सार्वजनिक स्थलों पर पूर्ण स्वच्छता हो।
ऽ जंनसंख्यानुसार पर्याप्त चिकित्सालय हों।
ऽ संक्रमण-रोधी व्यवस्था हो।
ऽ उचित शिक्षा की व्यवस्था हो।
ऽ भय एवं भ्रममुक्त समाज हो।
ऽ मानव कल्याण के हितों वाला समाज हो।
ऽ अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार समाज के कल्याण के लिए कार्य करना।
*स्वास्थ्य ढ़ांचे की स्थिति:*
हरियाणा में 12 मेडिकल कॉलेज हैं जो पूर्णकालिक मोड में एमबीबीएस पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, इनमें से 7 कॉलेज निजी हैं, 4 सरकारी हैं, और 1 सार्वजनिक-निजी कॉलेज है। भारत में सभी अस्पतालों के 93 प्रतिशत अस्पताल, 64 प्रतिशत बिस्तर, 85 प्रतिशत डॉक्टर, 80 प्रतिशत आउट पेशेंट और 57 प्रतिशत मरीज निजी क्षेत्र में हैं। लगभग यही स्थिति हरियाणा में भी है। निजी क्षेत्र पर सरकार के रेगुलेट करने के नियम भी बहुत ढीले हैं। स्वास्थ्य पर होने वाले भारी-भरकम खर्च के चलते हर साल औसतन चार करोड़ भारतीय परिवार गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की हालत भी हरियाणा में बहुत ही दयनीय है। 80 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में खून की कमी और 72 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है।
हमारा स्वास्थ्य ढ़ांचा वर्तमान जनसंख्या के अनुमान से काफी कम है और जो है उसमें भी डॉक्टरों, नर्सों, फार्मसिस्टों, लैब तकनीशियों, रेडियोग्राफरों, मल्टीपरपज स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और बाकी स्टाफ की भी आंकड़े बहुत कमी दर्शाते हैं। इसके साथ ही दवा, मशीनों, लैब टैस्टों की भी उचित आवश्यक उपलब्धता बहुत से पीएचसी और सीएचसी और दूसरे अस्पतालों में नहीं है। कोरोना के संकट के समय सार्वजनिक सेवाओं की कमी खलने वाली थी और निजि क्षेत्र के अस्पतालों में मरीजों का इलाज उम्मीदों से परे महंगा रहा। कुछ केसों में बहुत ही नाजायज वसूली भी सामने आई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के मानकों अनुसार वर्ष 2011 की जनसंख्या के आधार पर ग्रामीण इलाकों में हर नागरिक को संपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए 5000 की आबादी पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र, 30,000 की आबादी के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और 80 हजार से 1 लाख 20 की आबादी पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) होना चाहिए। फिलहाल प्रदेश में 2667 उप स्वास्थ्य केंद्र, 532 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 128 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैं। जबकि वर्तमान आबादी की जरूरतों के हिसाब से हमारे पास 634 उपस्वास्थ्य केंद्रों, 81 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और 53 सामुदायिक केंद्रों की कमी बनी हुई है। न केवल स्वास्थ्य ढांचों बल्कि स्टाफ की भी भारी कमी बनी हुई है।
एक सीएचसी में 6 विशेषज्ञ डॉक्टर (जिनमें एक सर्जन, एक स्त्री रोग, एक फिजिशियन, एक शिशु रोग, एक हड्डी रोग और एक बेहोशी देने वाला) होने चाहिए। इसके हिसाब से वर्तमान आबादी अनुसार 714 स्पेशलिस्ट डॉक्टर होने चाहिए। जबकि जनवरी 2022 तक राज्य भर में केवल मात्र 27 स्पेशलिस्ट ही मौजूद हैं यानि 687 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 491 डॉक्टर हैं जबकि होने 1064 चाहिए यानि आधे से ज्यादा में एक भी डॉक्टर नहीं है। उधर रेडियोग्राफरों की संख्या 128 होनी चाहिए लेकिन कार्यरत केवल 38 हैं यानि 90 की कमी है। फार्मासिस्ट्स की संख्या करीब 770 होनी चाहिए लेकिन केवल 405 ही कार्यरत हैं यानि 365 की कमी है। नेत्र चिकित्सा सहायकों की संख्या भी 128 होनी चाहिए मगर कार्यरत 35 ही हैं। लैब टेक्नीशियन के 770 पदों के मुकाबले 400 लैब तकनीशियन ही कार्यरत हैं यानि 370 की कमी बनी हुई है। मल्टीपर्पज कैडर में एमपीएचडब्ल्यू (पुरूष और महिला) की संख्या करीब 3800 है जबकि 5100 होने चाहिए। वहीं स्वास्थ्य निरीक्षक (पुरूष व महिला) के 1100 पदों के मुकाबले करीब 700 ही कार्यरत हैं यानि 400 पद खाली पड़े हैं। इनके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कार्यरत करीब 14 हजार कर्मचारियों को नियमित तक नहीं किया जा रहा है। दूसरी तरफ आउटसोर्सिंग पॉलिसी के तहत भर्ती करीब 12 हजार ठेकाकर्मियों का भारी शोषण स्वास्थ्य विभाग और ठेकेदारों द्वारा किया जा रहा है।
कुल मिलाकर देखें तो वर्तमान आबादी के अनुपात में स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पदों में 85 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टरों, 50 प्रतिशत से ज्यादा डॉक्टरों तथा पैरामेडीकल स्टॉफ के 40 प्रतिशत से ज्यादा पद रिक्त पड़े हैं। हालांकि अभी पिछले कुछ महीनों में करीब ढ़ाई हजार पैरामेडिकल स्टॉफ व मिनिस्टीरियल स्टॉफ और 840 डॉक्टरों की रेगुलर भर्ती विभाग द्वारा की गई है। जिससे कुछ हद तक राहत मिलने की सम्भावना बनी है। लेकिन सरकारों की निजीकरण, उदारीकरण और अमीरप्रस्त नीतियों के चलते अधिकतर सिविल हस्पतालों में भी न तो अल्ट्रासाउण्ड मशीनें हैं और न ही एक्स-रे मशीन व सी.टी. स्कैन। यदि कहीं पर ये मशीनें हैं भी तो उनके संचालक नहीं या ये अक्सर खराब रहती हैं। कुछ जिलों में पीपीपी मोड़ में अवश्य कुछ मशीनें हैं जिनकी अच्छी-खासी फीस अदा करनी पड़ती है। प्रदेश की एकमात्र पी.जी.आई.एम.एस. रोहतक में भी सी.टी. स्कैन, ई.ई.जी. व विभिन्न आप्रेशनों के लिये कई-कई महीनों बाद का समय मिलता है। इससे मरीजों को मजबूरन निजी व मंहगे हस्पतालों में जांच व इलाज पर हजारों-लाखों रूपए खर्च करना पड़ता है।
आप समझ सकते हैं कि जब हमारा मौजूदा स्वास्थ्य ढांचा सामान्य अवस्था में ही सभी लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देने में नाकाम है तो ऐसे में कोरोना जैसी महामारी की स्थिति में तो बेहद लाचार और बेबस होना ही था। यही वजह है कि दूसरी लहर के समय लोगों को अस्पतालों में ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और बेड की सुविधाएं नहीं मिल पाई। ऐसे में भी कोरोना महामारी से लड़ने के बड़े-बड़े दावे भ्रमित करने वाले हैं। इसके बावजूद ये सच है कि तुलनात्मक रूप में कोरोना महामारी ने विकसित और अमीर देशों को ही सबसे ज्यादा प्रभावित किया। जबकि अनेक कमजोरियों के बावजूद हमारे देश में सरकारी चिकित्सकों और अन्य स्टाफ ने लोगों की भरपूर मदद की। हमें यह भी ध्यान होगा कि लॉकडाउन के चलते अनेकानेक परिवारों का रोजगार छिनने से उनकी रोजी-रोटी की व्यवस्था ठप्प हो गई है। इसकी व्यवस्था करना नीतिकारों की जिम्मेदारी बनती है लेकिन उनकी अभी भी इसके प्रति गंभीरता नहीं दिखाई देती।
कोरोना महामारी ने सरकारों और स्वास्थ्य ढांचे की पोल खोल कर रख दी है। सभी लोगों को टीका लगाने के बड़े-बड़े दावों पर तो माननीय सुप्रीम कोर्ट तक ने देश में टीकाकरण की प्रक्रिया को मनमानी व तर्कहीन कहने को बाध्य होना पड़ा है। इस स्थिति में पिछले वर्ष सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा और जन स्वास्थ्य अभियान हरियाणा जैसे संगठनों नेेेे संयुक्त रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मौजूदा जरूरत के हिसाब से विकसित करने व स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सेवाओं को मौलिक अधिकारों में शामिल करने को लेकर राज्य स्तरीय स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को जागरूक करने और सरकार पर दबाव बनाने का काम किया था जो आज भी जारी है। इसी अभियान को आगे बढ़ाते हुए आशा वर्कर्स यूनियन हरियाणा की पहल पर उनके सितम्बर माह में कुरुक्षेत्र में होने वाले राष्ट्रीय स्तर के स्थापना सम्मेलन के मौके पर सभी जिलों में स्वास्थ्य के मुद्दे पर सेमिनार करने का निर्णय लिया है। जिसमें स्वास्थ्य विभाग की सभी यूनियनों और संगठनों से सहयोग की अपील की है। जो हम सबके लिए एक बेहतर अवसर है ताकि हम स्वास्थ्य के ढांचे को मजबूत करने की मांग को जोर-शोर से उठा सकें। ऐसे में आप सभी से इस अभियान और आंदोलन में बढ़चढ़कर भाग लेने की पुरजोर अपील की है ताकि सरकार पर जनता के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं व सुविधाएं प्रदान करने के लिए दबाव बनाया जा सके।
*मांग पत्र:*
*1. हरियाणा के नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल एवं सुविधाएं प्रदान करने के लिए और कोविड महामारी की संभावित तीसरी लहर का सामना करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे को तुरंत अद्यतन किया जाना चाहिए।*
*2. स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए तत्काल अधिक धनराशि आवंटित की जाए।*
*3. सभी, कोविड और गैर-कोविड रोगियों के लिए व्यापक, सुलभ, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी।*
*4. इसके साथ ही कोविड-19 के मानदंड और पोस्ट कोविड-19 की स्थितियों से निपटने के लिए स्वास्थ्य कार्यबल का ऑनलाइन एवं उचित और तत्काल प्रशिक्षण होना चाहिए।*
*5. साथ ही सरकार को स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों पर काम करना चाहिए जिसमें शामिल हैं जिनमें ए) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सार्वभौमिकरण और विस्तार द्वारा खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना। बी) सभी के लिए सुरक्षित पेयजल, सी) स्वच्छता सुविधाएं, डी) सभी को पूर्ण रोजगार, ई) सभी के लिए शिक्षा, एफ) सभ्य और पर्याप्त आवास, छ) स्वास्थ्य के लिंग आयामों को भी पर्याप्त रूप से संबोधित किया जाना चाहिए।*
*6. सभी महिलाओं को उनकी सभी स्वास्थ्य जरूरतों के लिए व्यापक, सुलभ, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी दें, जिसमें मातृ देखभाल शामिल है।*
*7. नवीनतम जनसंख्या की आवश्यकताओं के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में स्वास्थ्य कर्मियों की सभी श्रेणियों के लिए अधिक पद सृजित करें।*
*8. ठेका कर्मचारियों को नियमित करना और आशा, एएनएम और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के सभी स्तरों के कर्मचारियों को पर्याप्त कौशल, वेतन और काम करने की अच्छी स्थिति प्रदान करना।*
*9. स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच में अत्यधिक असमानता और लोगों की खराब रहने की स्थिति भारत और हरियाणा में भी स्वास्थ्य की खराब स्थितियों के लिए जिम्मेदार है। इसमें सुधार किए जाएं।*
*10. जो लोग भुगतान कर सकते हैं, वे विश्व स्तरीय उपचार सुविधाएं प्राप्त करने में सक्षम हैं, जबकि राज्य में अधिकांश लोगों के लिए परिवार में एक बड़ी बीमारी होने पर परिवार को अत्यधिक गरीबी और अभाव में डुबो देती है। सरकार को इन असमानताओं के लिए भी उपाय करने चाहिए।*
*11. कोरोना महामारी कोविड मामलों के प्रबंधन में इस अमीर-गरीब के अंतर को भी दिखाती है। जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। सरकार को इन असमानताओं के लिए भी उपाय करने चाहिए।*
*अपील कर्ता:* जन स्वास्थ्य अभियान हरियाणा
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