Monday, 11 June 2018

ब्लू बेबी सिंड्रोम

 1 -कृषि       
          कृषि  से उत्पादित नाइट्रोजन प्रदूषण बच्चों के लिए खतरनाक पीने के पानी में नाइट्रेट से छह महीने के तक बच्चों को ब्लू बेबी सिंड्रोम हो सकता है। इस बीमारी से ग्रसित बच्चों के खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है क्योंकि नाइट्रेट हीमोग्लोबिन के प्रभाव को बाधित कर देता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का वाहक है। इससे बच्चों को बार-बार डायरिया हो सकता है। यह श्वसन क्रिया को भी बाधित करता है। यह स्कूली बच्चों में उच्च रक्तचाप और ब्लड प्रेशर भी बढ़ा देता है।
2 -मवेशी
         मवेशी छोड़ते हैं अमोनिया और नाइट्रस ऑक्साइड मवेशी भारत में अमोनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक हैं। कुल उत्सर्जन में मवेशियों का योगदान 79.7 प्रतिशत है। अमोनिया एरोसोल के जरिए वातावरण को प्रभावित करता है जो सांस संबंधी बीमारियों का कारक है। यह मिट्टी को अम्लीय बनाता है और उसकी उत्पादकता घटा देता है। मवेशी नाइट्रस ऑक्साइड का भी उत्सर्जन करते हैं जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। इसके कुल उत्सर्जन में मवेशी 70.4 प्रतिशत योगदान देते हैं। भारत में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा अमोनिया (12.7 प्रतिशत) और नाइट्रस ऑक्साइड (13.1 प्रतिशत) छोड़ता है।
3 -वाहनों का योगदान
     सड़कों से नाइट्रोजन भारत में परिवहन क्षेत्र नाइट्रोजन ऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक है। ये भी सांस संबंधी बीमारियों के कारण हैं। 2007 में सड़क परिवहन से इसका 86.8 प्रतिशत उत्सर्जन हुआ है। सड़क पर चलने वाले वाहन ट्रक और लॉरी से सबसे ज्यादा 39 प्रतिशत नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। भारतीय शहरों में चेन्नै सबसे ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड (353.67 मिलीग्राम प्रति वर्ग किलोमीटर) छोड़ता है। दूसरे नंबर पर बैंगलोर (323.75 मिलीग्राम प्रति वर्ग किलोमीटर) है। ये आंकड़े 2009 के हैं।

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