जिस तरह आयु के साथ बालों में सफेदी आने लगती है और सिर पर गंजापन, उसी तरह आयु बढ़ने पर पुरुषों में प्रोस्टेट
ग्रंथि का बढ़ जाना भी एक आम आम बात है । चिकित्सक इसे बिनाइन प्रॉस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बीपीएच) अथवा
बिनाइन प्रॉस्टेटिक हाइपरट्रॉफी कहकर सीधे तौर पर यह समझाना चाहते हैं इस प्रकार की स्थिति कैंसर नहीं होती ।
हां इतना अवश्य है कि आपके असावधान रहने और ध्यान न देने पर यही स्थिति मूत्र के प्रवाह को अवरुद्ध कर सकती है
और मूत्राशय एवम गुर्दों की परेशानी पैदा हो सकती है।
प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ जाने पर कुछ एक उपचार काफी कारगर हैं । व्यक्ति के , सही उपचार का निर्णय लेने में
चिकित्सक उसके रोग लक्षणों , प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार , रोगी की अन्य स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों तथा उसकी अपनी
अभिरुचि को भी ध्यान में रखता है। आजकल उपचार की शुरुआत जीवन शैली के परिवर्तन तथा औषधियों से की जाती
है । कुछ लोगों को अवश्य सर्जरी करवाने की जरूरत पड़ती है वे ऐसे लोग होते हैं जिन्हें उपचार से लाभ नहीं मिल पाता
।
उपचार प्रक्रिया की शुरुआत परीक्षणों एवं निदानों से होती है । जिनका उद्देश्य समस्या के परिणाम का आकलन और
सही निदान तय करना होता है।
परीक्षण एवं निदान रू-
प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने के लक्षण पहले व्यक्ति के स्वयं ध्यान में आते हैं जिसके बाद वह चिकित्सक के पास जाता है ।इस प्रकार
की आशंका होने पर किसी सर्जन बल्कि किसी मूत्र रोग विशेषज्ञ (यूरोलॉजिस्ट) से परामर्श करना बेहतर है जो मूत्र पथ
की समस्याओं एवम की पुरुष प्रजनन प्रणाली की जानकारी रखता हो। चिकित्सक वास्तविक समस्या का पता लगाने
हेतु कुछ एक परीक्षण करवाता है। इस प्रकार के परीक्षण हर व्यक्ति के लिए भिन्न हो सकते हैं किंतु कुछ सामान्य परीक्षण
इस प्रकार हैं ।
’’ रोग लक्षणों के संबंध में विस्तृत सवाल रू-
चिकित्सक आपके रोग लक्षणों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहेगा, साथ ही यह भी कि आप कौन सी औषधियां ले
रहे हैं , यह भी कि क्या आपने इस बीच अल्ट्रासाउंड तो नहीं करवाया है । वह आपसे प्रश्नों की एक सूची भी भरवाना
चाहेगा । उदाहरण के लिए अमेरिकन यूरोलॉजिकल एसोसिएशन (एयूए) की -रु39;सिम्टम इंडैक्स फॉर बिनाइन प्रोस्टेटिक
हाइपरप्लेसिया-रु39; ’’डिजिटल रेक्टल परीक्षण
आम तौर पर यही पहला परीक्षण होता है । चिकित्सक हाथ में चिकित्सकीय दस्ताना पहनकर, मलद्वार में अपनी उंगली
को प्रवेश कराता है और उसके बगल में प्रोस्टेट ग्रंथि को महसूस करता है । उक्त परीक्षण से चिकित्सकों को ग्रन्थि के
आकार और स्थिति का मोटा अंदाजा हो जाता है ।
’’ प्रॉस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन (पीएसए) रुधिर परीक्षण रू-
प्रोस्टेट कैंसर की आशंका को निर्मूल करने के लिए चिकित्सक पीएसए रुधिर परीक्षण करवाने की सलाह देते हैं । पीएसए
प्रोस्टेट कोशिकाओं द्वारा बनाया गया एक प्रोटीन है जो प्रोस्टेट कैंसर के लोगों के रक्त में बड़ी हुई मात्रा में पाया जाता है
।
ऐसे परीक्षण को डिजिटल रेक्टल परीक्षण के साथ संयुक्त रूप से करने पर 50 वर्ष या ऊपर के पुरुषों के प्रोस्टेट कैंसर की
पहचान में मदद मिलती है। साथ ही प्रोस्टेट कैंसर का उपचार करवाने के बाद की स्थिति की जांच भी संभव हो पाती है
। इतना अवश्य है कि पीएसए के स्तर की व्याख्या, बढ़ी हुई प्रॉस्टेट और कलयुग का अंत आने के परीक्षण के बारे में बहुत
कुछ जानना अभी शेष है । साथ ही पीएसए के बढ़े हुए स्तर की स्थिति जान लेने के बाद की सर्वाेत्तम उपचार प्रक्रिया पर
भी शोध अभी बाकी है । हाल ही में करवाए गए रेक्टल डिजिटल परीक्षण,रेक्टल अल्ट्रासाउंड परीक्षण , सर्जरी अथवा
संक्रामक (प्रोसटेटाइटिस-रु39;)की स्थिति में भी बीएसए स्तर का बढ़ना संभव है।
’’ ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासाउंड रू- अल्ट्रासाउंड परीक्षण करवाने पर प्रोस्टेट ग्रंथि का मापन संभव है और साथ ही इससे
व्यक्ति की प्रोस्टेट ग्रंथि की रचना का भी पता लग जाता है । उक्त प्रक्रिया के अंतर्गत एक खोजी उपकरण सिगार के
आकार का और माप का एक अल्ट्रासाउंड उपकरण व्यक्ति के मलद्वार में प्रवेश कराया जाता है और अल्ट्रासाउंड तरंगें
प्रोस्टेट ग्रन्थि पर आघात कर उसका बिम्ब प्रस्तुत कर देती हैं ।
’’ पोस्ट वॉयड रेजिडयुएल वॉल्यूम परीक्षण रू-
उक्त परीक्षण द्वारा मूत्र विसर्जन प्रक्रिया की क्षमता को जांचा जाता है । प्रायः इसमें व्यक्ति के मूत्र विसर्जन के तुरंत
पश्चात मूत्राशय में रुके मूत्र की भी अल्ट्रासाउंड जांच की जाती है।
’’ प्रॉस्टेट बायोप्सी रू-
रेक्टल अल्ट्रासाउंड के निर्देश पर चिकित्सकों प्रॉस्टेट कैंसर की हल्की आशंका होने पर भी करवाने की सलाह दी जाती है
। उक्त प्रक्रिया के अंतर्गत एक खोजी उपकरण मलद्वार में डाला जाता है जो प्रोस्टेट ग्रंथि पर अल्ट्रासाउंड तरंगे छोड़ता है।
अल्ट्रासाउंड तरंगों की प्रतिध्वनि से डिस्प्ले स्क्रीन पर प्रोस्टेट ग्रंथि का प्रतिबिंब बन जाता है । स्क्रीन पर अपसामान्य
क्षेत्र के कैंसरग्रस्त होने की पुष्टि करने के लिए चिकित्सक खोजी उपकरण तथा अल्ट्रासाउंड प्रतिबिम्बों की सहायता से
बायोप्सी करने वाली सुई को संदिग्ध क्षेत्र तक पहुंचाने में सक्षम हो पाता है । सुई प्रोस्टेट ऊतकों के कुछ अंशों को बाहर
निकाल लेती है ताकि उनका पैथोलोजिकल (विकृति जन्य) परीक्षण , माईक्रोस्कोप के द्वारा किया जा सके ।
’’मूत्र प्रवाह परीक्षणरू-
उक्त परीक्षण द्वारा मूत्र प्रवाह की क्षमता एवम मात्रा की जांच की जाती है । व्यक्ति को मूत्र विसर्जन के लिए कहा जाता
है । मूत्र विसर्जन हेतु एक विशेष मशीन से जुड़े पात्र का प्रयोग किया जाता है जिससे मूत्र प्रवाह की गति की जांच हो
और पाती पाती है । मूत्र प्रवाह में अवरोध इस बात का सूचक है कि संभवत प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ी हुई है । इस परीक्षण से
यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि व्यक्ति की स्थिति में सुधार आ रहा है या विकृति बढ़ रही है।
’’ सिस्टोस्कॉपी
इस परीक्षण के अंतर्गत चिकित्सक मूत्रमार्ग के मुख से एक छोटी सी नलिका को शिश्न के भीतर पहुंचाता है । इस प्रक्रिया
से पूर्व एक द्रव द्वारा शिश्न के भीतरी भाग को सुन कर दिया जाता है जिससे किसी प्रकार का संवेदन नहीं होता । भीतर
डाली जाने वाली नलिका एक प्रकाशमय लचीला टेलीस्कोप होता है जिसे -रु39;सिस्टोस्कोप -रु39;कहा जाता है साथ ही, उसमें
लेंस लगा होता है और प्रकाश की व्यवस्था रहती है ताकि चिकित्सक मूत्रमार्ग के भीतरी तथा मूत्राशय की भलीभांति
जांच कर सके। इस परीक्षण से चिकित्सक प्रोस्टेट ग्रंथि ग्रंथि के आकार का अनुमान लगा पाता है और किसी प्रकार की
रुकावट होने पर उसका भी पता लगा सकता है।
राहत कैसे पाएं रू--
जीवन शैली के कतिपय परिवर्तनों परिवर्तनों के कतिपय परिवर्तनों परिवर्तनों द्वारा सामंथा प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि के
लक्षणों पर नियंत्रण पाया जा सकता है तथा स्थिति को और अधिक बिगड़ने से भी बचाया जा सकता है निमन तरीके
आजमा कर देखें रू--
’’ सायं काल पेय पदार्थ सीमित मात्रा में लें ।
सोने से पहले 1 या 2 घंटे तक किसी प्रकार का पेय पदार्थ न लें ताकि आप को रात्रि में बार बार मूत्र विसर्जन के लिए ना
उठाना पड़े ।
’’ अधिक मात्रा में कैफीनयुक्त पेय अथवा मदिरा सेवन से बचें इनसे भी होती है सेक्स होता है और रोग लक्षण में
विकार आता है।
’’ यदि मूत्र औषधियाँ ले रहे हो तो चिकित्सकों से सूचित करेंरू-
सामान्यता ऐसे रोगियों को जो उच्च रक्तचाप ,ह्वदयाघात तथा जिगर संबंधी व्याधि से ग्रस्त हों उन्हें मूत्रल औषधियाँ ।
यदि आप भी उनमें से एक हैं तो प्रयास करें कि उनकी मात्रा कुछ कम हो या फिर वे केवल सुबह के समय ली जा सकें
अथवा मंद प्रभाव वाली औषधि का विकल्प चुना जाए , या फिर दवा लेने के समय में बदलाव किया जा सके। ऐसा
करने पर मूत्र संबंधी दिक्कतें कम होंगी। इतना जरूर करें कि बिना चिकित्सक की राय के मूत्रल औषधि बंद न की जाए ।
’’ डीकन्जेस्टेंट अथवा एंटीहिस्टामिणों का प्रयोग सीमित रखें
ऐंटीहिस्टामिन अक्सर एलर्जी, सामान्य सर्दी जुकाम, खांसी, खुजली तथा कुछेक त्वचा संबंधी रोगों में लेने की सलाह दी
जाती है । इस प्रकार की औषधियों से मूत्र मार्ग की उन पेशियों में कसावट उत्पन्न होती है जो मूत्र प्रवाह को नियंत्रित
करती हैं, जिसके कारण मूत्र विसर्जन में दिक्कत उत्पन्न हो जाती है ।
’’ हाजत महसूस होने पर तुरंत जाएंरू- जैसे ही ऐसा लगे , तुरंत मूत्र विसर्जन करें । काफी देर तक मूत्र रोके रहने से
मूत्राशय की पेशियां फैल जाती हैं और उसे नुकसान हो सकता है ।
’’शौचालय जाने की समय सारणी नियंत्रित करें रू-
नियमित समय पर मूत्र विसर्जन के लिए जाएं ताकि मूत्राशय को प्रशिक्षित किया जा सके
’’सक्रिय रहें रू-
निष्क्रियता के कारण हो मूत्र अवरुद्ध हो जाता है । थोड़ा सा व्यायाम करने लेने से प्रोस्टेट ग्रन्थि से होने वाली समस्याएं
कम होने लगती हैं ।
’’ यह नुस्खा आजमा कर देखें रू-
मूत्र विसर्जन करें-- फिर थोड़ी देर बाद दुबारा जाएं। इस तरीके को डबल वायरिंग कहा जाता कहा जाता वायरिंग कहा
जाता को -रु39;डबल वायडिंग -रु39;कहा जाता है । इस प्रक्रिया से मूत्राशय अच्छी तरह से खाली हो पाएगा और मूत्र विसर्जन के
बाद शेष रह जाने वाली मात्रा कम होगी।
’’ स्वयं को गर्म रखें
ठंड से शरीर में मूत्र अधिक नहीं रुकता इसलिए आपको बार-बार मूत्र विसर्जन की जरूरत महसूस होने लगती है।
’’ उपचार के विकल्प रू-
जिन लोगों में प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि रोग लक्षण व्यक्त होते हैं उन्हें आमतौर पर किसी न किसी समय उपचार की
जरूरत पड़ती है । हालांकि कुछ एक एक शोधार्थियों ने प्रारंभिक अवस्था में ही प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि के उपचार पर
प्रश्नचिन्ह खड़े किए हैं । उनके शोध निष्कर्षों के अनुसार किसी प्रकार का प्रारंभिक उपचार अआवश्यक है क्योंकि ऐसे
रोगियों में से एक तिहाई के रोग लक्षण ,मंद गति के रोग में स्वयं ही समय के साथ दूर हो जाते हैं । तात्कालिक उपचार
के बजाय उन शोध निष्कर्षों में नियमित शारीरिक परीक्षण को महत्वपूर्ण माना गया है । उसी स्थिति उपचार को
जरूरी समझा गया है जब स्थिति रोगी के स्वास्थ्य की दृष्टि से घातक बन जाए या काफी असुविधाजनक हो जाए ।
’’औषधि उपचार रू-
प्रोस्टेट ग्रंथि की सामान्य वृद्धि के उपचार के लिए सामान्यतः ओषधि सुझाई जाती जाती हैं । ऐसी राह देने वाली
औषधियां हैं रू-
।. अल्फा ब्लॉकर्स
इस प्रकार की औषधियां लेने से मूत्राशय ग्रीवा की पेशियां एवम प्रोस्टेट ग्रन्थि के अपने पेशी तन्तु शिथिल हो जाते हैं
और मूत्र विसर्जन सरल हो जाता है । इस प्रकार की औषधियां हैं रू--
टेराजोसिन,
डॉक्साजोसिन
टेम्सुलोसिन
अल्फुजोसिन तथा
साइलोडोसिन
अल्फा ब्लॉकर्स तुरन्त असर करती हैं । 1 या 2 दिन के भीतर ही मूत्र परवाह बढ़ना संभव है। और मूत्र विसर्जन की
बारंबारता में भी कमी आ जाती है । इनसे एक स्थिति उत्पन्न होती है-- वीर्य शिश्नसे के सिरे से बाहर होने के बजाय
वापस मूत्राशय में में चला जाता है । जो किसी भी रूप से हानिकारक नहीं है।
ठ. अल्फा रिडक्टेज इनहिबिटर्स
इस प्रकार की औषधियां प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि करने वाले हार्माेन संबंधी बदलाव पर रोक लगाती हैं । इनमें
फिनास्टेरॉयड तथा ड्यूटासटेराइड सम्मिलित हैं जो सामान्यतः अत्यधिक बढ़ी हुई प्रॉस्टेट ग्रंथि के लिए अत्यंत
लाभकारी होती है। सुधार दिखाई देने में कई हफ्ते या कई महीने लग सकते हैं । उक्त औषधियां लेने के दौरान यौन
संबंधी अनुषंगी प्रभाव दिखाई दे सकते हैं जिनमें नपुसंकता (इरेक्टाइल डिस्फंक्शन), यौनेच्छा में कमी अथवा प्रतिगामी
स्खलन गांव सम्मिलित हैं ।
ब्.
मिला-जुला औषधि उपचार रू-
अल्फा ब्लॉकर तथा 5 अल्फा रिडक्टेज अलग अलग लेने के बजाय एक साथ लेने से उपचार अधिक प्रभावी हो जाता है ।
हाल ही में यूनाइटेड स्टेट्स नेशनल इंस्टीट्यूट आफ डायबिटीज एंड किडनी डिजीज (छप्क्क्ज्ञ) तथा मेडिकल थेरैपी
ऑफ प्रोस्टेटिक सिम्पटम्स (डज्व्च्ै) परीक्षणों में यह पाया गया कि फिनासटेरायड तथा डॉक्साजोसिन दवाओं का एक
साथ लेना , पृथक रूप से लेने की बजाय अधिक राहत देता है और बीपीएच वृद्धि को रोकता है दो औषधियों का यह
विधान पृथक रूप में सीमाओं का एक साथ लेना का एक साथ लेना रूप से लेने की बजाय अधिक रहा देता है और
बीपीएस वीर जी जी को रोकता है दोषियों का यह विधान प्रत्यक्ष रूप में डॉक्साजोसिन की 39ः तक और
फिनासटेरायड की 34ः तक की कमी ला पाने की तुलना में बीपीएच वृद्धि को 67ः तक कम कर पाने में सक्षम सिद्ध
हुआ है ।
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