टीकाकरण प्रक्रिया शुरू करने पर एआईपीएसएन का वक्तव्य
15 जनवरी 2021
भारत में 16 जनवरी से शुरू हो रहे पहले चरण के सामूहिक टीकाकरण अभियान से ऑल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क (एआईपीएसएन) काफी अचंभित है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के टीकाकरण से शुरुआत करते हुए केंद्र सरकार, भारत बायोटेक-आईसीएमआर द्वारा विकसित कोवैक्सिन की 56 लाख और सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया-ऑक्सफ़ोर्ड एस्ट्राज़ेनेका द्वारा निर्मित कोवीशील्ड की 110 लाख खुराकें वितरित कर रही है। यह कोवैक्सिन को आपात स्वीकृति प्रदान करने के साथ केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा लागू की गईं शर्तों की खुली अवहेलना है। सीडीएससीओ और इसकी विषय विशेषज्ञ समिति (एसईसी) ने कोवीशील्ड और कोवैक्सिन के बीच स्पष्ट अंतर किया है। हालाँकि दोनों ही टीकों को “आपात परिस्थितियों में सशर्त उपयोग” की अनुमति दी गई है, जिसमें कोवैक्सिन को रातोंरात एसईसी पर दबाव बनाकर “नैदानिक परीक्षण (ज़ोर देते हुए) के रूप में” सशर्त स्वीकृति दी गई है।
देखा जाए तो 56 लाख ख़ुराक यानी 28 लाख व्यक्तियों का टीकाकरण किसी भी तरह से “परीक्षण” नहीं माना जा सकता है। विशेष रूप से जब कोवैक्सिन के तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षण के लिए पहले से ही लगभग 26000 वालंटियर्स शामिल किए जा रहे हों। ज़ाहिर है कि सरकार ने अब तक कोवैक्सिन और कोवीशील्ड को, कुल संख्या के अलावा, एक ही पायदान पर रखा है। गौरतलब है कि किसी भी “परीक्षण मोड” के टीकाकरण के लिए विशेष निगरानी, फॉलो-अप और संस्थागत व्यवस्था की आवश्यकता होती है। “परीक्षण” की नैतिक और वैज्ञानिक गुणवत्ता को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। यदि सरकार ने कोवैक्सिन टीकाकरण के लिए कोई विशेष प्रोटोकॉल जारी किया भी है तो इसकी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि नैदानिक परीक्षणों के लिए कोवैक्सिन प्राप्तकर्ताओं को सीडीएससीओ द्वारा निर्धारित शर्तों और तीसरे चरण के प्रभावकारिता डेटा की अनुपस्थिति के बारे में पूरी तरह से अवगत कराने के बाद ही टीकाकरण के लिए सहमति या असहमति की बात करनी चाहिए।
इसके विपरीत, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव ने एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से बताया कि प्राप्तकर्ताओं को दो टीकों के बीच चयन करने का कोई अधिकार नहीं है। इससे यह बात तो स्पष्ट है कि केंद्र सरकार सीडीएससीओ की शर्तों की परवाह किए बिना कोवैक्सिन को राज्य सरकारों और पहले चरण के टीकाकरण अभियान के तहत इसे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं एवं “कोविड योद्धाओं” पर ज़बरदस्ती थोपना चाहती है।
टीकाकरण प्रक्रिया में अपारदर्शिता और यहाँ उठाए गए सवालों की स्पष्ट जानकारी के अभाव में यदि जनता के बीच कोवैक्सिन और टीकों के प्रति संदेह बढ़ता है तो इसका पूरा दोष सरकार को जाता है। दुर्भाग्य से, सीडीएससीओ और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आपात उपयोग के लिए जारी किए गए अपने दिशानिर्देशों सहित टीकों के विनियमन के वैज्ञानिक मानदंडों के विरुद्ध निर्णय लिए हैं। ऐसा करना वास्तव में जनता के हितों और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फार्मा की विश्वसनीयता दोनों के साथ समझौता करना है। भारत बायोटेक के सीईओ ने टीके के आपात उपयोग पर सरकारी मंज़ूरी की आलोचना करने वालों पर अनुचित हमला किया है। इसके साथ ही उनके द्वारा दूसरे टीकों की आलोचना करने से भारत बायोटेक के टीकों की विश्वसनीयता में कोई बढ़ौतरी नहीं होगी।
एआईपीएसएन ज़ोर देता है कि:
केंद्र सरकार को कोवैक्सिन के “नैदानिक परीक्षण मोड” को प्रभाव में लाने के लिए विशेष प्रोटोकॉल जारी करना चाहिए जिसमें प्राप्तकर्ताओं की सूचित सहमति या असहमति के साथ सीडीएससीओ/ एसईसी की सभी अनुमोदन शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करना शामिल हो।
सीडीएससीओ और आईसीएमआर यह सुनिश्चित करे कि सभी नैदानिक परीक्षण उचित नैतिक, वैज्ञानिक और तकनीकी मानकों के अनुरूप हों।
सभी राज्यों को कठोर निर्णय लेते हुए यह तय करना चाहिए कि क्या उनको कोवैक्सिन का व्यापक रूप से परिनियोजन करना है या फिर सीमित “परीक्षण मोड” पर सीडीएससीओ/ एसईसी की शर्तों का सख्ती से पालन करते हुए टीकाकरण जारी रखना है।
अब तक राज्यों को वितरित किए गए कोवैक्सिन टीके की सभी खुराकों को राज्यों द्वारा स्टॉक करके रखना चाहिए और सरकार द्वारा अधिक स्पष्टता दिए जाने तक या फिर भारत बायोटेक के प्रभावकारिता डेटा पर आधारित सीडीएससीओ/ एसईसी की अनुमोदन शर्तों में संशोधन होने तक इसे वितरित नहीं किया जाना चाहिए।
स्पष्टीकरण के लिए संपर्क करें:
टी.सुंदररमन 99874388253 डी.रघुनंदन 9810098621 एस.कृष्णास्वामी 9442158638
पी. राजमनिकम, महासचिव, एआईपीएसएनgsaipsn@gmail.com, 9442915101 @gsaipsn
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