"महामारी ने उजागर किया हरियाणा का सार्वजनिक ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा"
हरियाणा की कमज़ोर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली महामारी की पहली और दूसरी लहर से ठीक से नहीं निपट पाई-मजबूत करने की जरूरत है सम्भावित तीसरी लहर से जूझने के लिए ।भारत की और हरियाणा के स्वास्थ्
सेवाओं के ढांचे में भी व्यापक
पुर्नगठन की प्रक्रियाएं जारी
पैमाने पर प्राईवेट मैडीकल सैक्
फैलाव , स्वास्थ्य सेवाओं में
इंशोरैंस कम्पनियों की दखलन्दा
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में मै
सर्विसिज के लिए पेमैंट सिस्टम
शुरुआत आदि कई बातें गम्भीर अध्ययन की मांग करती हैं ।
दूसरी ओर मैडीकल एजुकेशन का बड़े पैमाने पर व्यापारिकरण साफ नजर
मैडीकल कालेजों में एम बी बी
भी एक करोड़ की फीस बताई जा रही
इतनी महंगी शिक्षा के बाद सेवा भावना वाली स्वास्थ्य सेवा की उम्मीद करना कितना वाजिब है ?
पाले बन्दी साफ होती जा रही है।
बल्कि कितनी विचित्र बात है कि हमारे देश में लाखों लोग लम्बी भूख के
बहुत पीछे न जाकर भी करीब दो महीने से भारत के और हरियाणा के लोगों को बेहद दुखद और चिंतनीय हालात का सामना कोरोना महामारी के चलते करना पड़ा है। बहुत से अस्पतालों में कोविड मरीजों के ऑक्सीजन की कमी से दम घुटने वाले दृश्य लंबे समय तक इंसानी स्मृति से भुलाए नहीं जा सकेंगे। न जाने कितनी त्रासदियां हैं जिनका वर्णन किया जा सकता है। लेकिन जो सबसे बड़ा सवाल है: वह यह कि आखिर ऐसा क्या गलत हुआ? दूसरा सवाल है कि क्यों हुआ ?
इन सवालों के संदर्भ से कहा जा सकता है कि आखिरकार, स्वास्थ्य क्षेत्र या दूसरे क्षेत्रों में मौजूद कमियां जो महामारी से निपटने में सामने आई थी, वह करीब करीब एक साल पहले की बात थी। पहले से मौजूद इस चेतावनी के बावजूद, सरकार दूसरी लहर से पनपे कहर का सामना करने के करीब भी नहीं पहुंच पाई और आवश्यक जीवन रक्षक उपकरणों, दवाओं, ऑक्सीज़न आदि की संभावित कमी को दूर करने में विफल रही, नतीजतन बड़ी संख्या में हर तरफ मौतें देखने को मिली ।
असल में समस्या कोरोना महामारी के साथ साथ तीन अन्य ऐसी घनघोर गड़बडियों की भी हैं जो स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को प्रभावित पहले से ही करती रही हैं। ये समस्याएँ हाल के दिनों में और बढ़ गई हैं , जिसने हमें दहशत भरे संकट की तरफ मोड़ दिया जहां आज हम खड़े हैं।
1.सबसे पहली समस्या, सरकारें सभी को न्यूनतम स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित करने में विफल रहीं है।
2. दूसरा, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में असमानताएं काफी ऊंची और बड़ी हैं। हमारे देश में धनी लोगों के लिए पांच सितारा सुविधाओं वाले अस्पताल हैं जबकि गरीब समुदायों के लिए बने सार्वजनिक अस्पतालों, सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में आवश्यक दवाओं, बुनियादी उपकरणों, डॉक्टरों आदि की प्रचुर मात्रा में कमी है।
3. तीसरा, आम लोगों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के लिए मंत्रालय से आवंटन काफी कम है।
यही बातें कोविड-19 महामारी के दौरान असमानताओं पर ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट (द इनइक्वलिटी वायरस एंड इट्स इंडिया सप्लीमेंट) इस बात पर प्रकाश डालती है कि एक तो कम आवंटन और कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली किसी भी महामारी को नियंत्रित नहीं कर सकती है। दूसरी बात ये है कि बीमारों को उचित और समय पर देखभाल प्रदान नहीं कर सकती है। सरकारी खर्च के मामले में भारत का स्वास्थ्य बजट सबसे कम है। यह भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की नाज़ुक, कमजोर और स्वास्थ्य कर्मी की संख्या में भारी कमी को दर्शाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 15-20 प्रतिशत के मानदंड के विपरीत, भारतीय अपने स्वास्थ्य व्यय का 58.7 प्रतिशत अपनी जेब से खर्च करते हैं।
यह भी देखने में आया कि महामारी के दौरान, गैर-कोविड रोगियों की नियमित चिकित्सा बंद हो गई है। इसके बावजूद, सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बजट आवंटन में कोई खास या महत्वपूर्ण बढ़ोतरी नहीं की है। वास्तव में, हाल के वर्षों में, केंद्र और राज्य सरकारों, दोनों ने स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.35 प्रतिशत ही आवंटित किया है। यह आश्चर्यजनक रूप से कम है और सरकार ने स्वीकार भी किया है कि उसे इसे बढ़ाकर 2.50 प्रतिशत करने की जरूरत है।
इसलिए यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सरकार तत्काल स्वास्थ्य जरूरतों के लिए संसाधन जुटाने में नाकामयाब रही है
कोविड-19 संकट का सामना करने में लाभ-संचालित निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का योगदान काफी कम और महंगा रहा लगता है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के 22,000 बेड की तुलना में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में 48,000 बेड हैं और सभी ओपीडी (बाहरी रोगी विभाग) का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा भी निजी क्षेत्र के पास है। इस दौर में कोविड-19 को भूल जाओ, यहां तक कि नियमित सेवाएं भी उपलब्ध नहीं हो पाई लगती हैं।"
ऑक्सफैम की रिपोर्ट यह भी बताती है कि महामारी के दौरान कई निजी अस्पतालों ने भारी मुनाफाखोरी की है।
करीब एक साल बीत गया है, महामारी में कुछ महीनों की राहत को छोडकर, मध्यम वर्ग और गरीब तबका अपने बीमार दोस्तों, परिवार के सदस्यों को अस्पताल में बेड दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे , जबकि अमीर और शक्तिशाली तबका आईसीयू बेड “बुक” किए अस्पताल में पड़े थे भले ही उनमें कोविड-19 के लक्षण कुछ खास नहीं थे। हर तरह से देखा जाए तो, एम्बुलेंस, बेड, आईसीयू, वेंटिलेटर, जीवन रक्षक दवाओं और साधारण दवाओं की कमी आज भी स्वास्थ्य प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इन सभी वस्तुओं की काला बाज़ारी फल-फूल रही है।
हरियाणा की ग्रामीण क्षेत्र की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की काफी जर्जर हालात थी और है। शहरी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं भी बेहतर नहीं हैं, लेकिन इस लेख में हरियाणा की ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को थोड़ा नजदीक से देखने की कोशिश की गई है।
हरियाणे के ग्रामीण वर्तमान स्वास्थ्य ढांचे की जर्जर हालत :-
हरियाणा में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति सरकार के मानकों के अनुसार बहुत दयनीय है। भारत की । 5000 की आबादी पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए। 30,000 की आबादी के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) की आवश्यकता है ।
यह अनुशंसा की जाती है कि एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) होना चाहिए (80000 पहाड़ों के लिए और 1,20000 मैदानों के लिए )
वर्तमान में हरियाणा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा मार्च जून 2020 के अनुसार जितना होना चाहिए उतना नहीं है और जितना है उसमें भी स्पेशलिस्ट डाकटरों , मेडिकल अफसरों , नर्सों , रेडियोग्राफरों, फार्मासिस्टों तथा लैब तकनीशियों की भारी कमी है। आज 2667 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं ,532 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं और 119 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं।
आज की जन संख्या की जरूरतों के हिसाब से हमारे पास 972 उप स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है, 74 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है और 32 सामुदायिक केंद्रों की कमी है।
इसी प्रकार से स्टाफ के बारे में देखें तो वर्तमान ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 491 मेडिकल अफसर हैं जबकि होने 1064 मेडिकल अफसर चाहियें ।
एक ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 6 विशेषज्ञ (एक सर्जन, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, एक फिजिशियन, एक शिशु रोग विशेषज्ञ, एक हड्डी रोग विशेषज्ञ और एक बेहोशी देने वाला विशेषज्ञ ) होने चाहिए। इसके हिसाब से आज वर्तमान सामुदायिक केंद्रों में 714 स्पेशलिस्ट होने चाहिए जबकि आज के दिन 27 स्पेशलिस्ट ही मौजूद हैं ।
पीएचसी और सीएचसी में नर्सिंग स्टाफ:
इसी तरह पीएचसी और सीएचसी में नर्सिंग स्टाफ की हालत ज्यादा बेहतर नहीं है। हरियाणा की 1.65 करोड़ (2011 सेंसेस) ग्रामीण जनसंख्या के अनुसार पीएचसी और सीएचसी में स्टाफ नर्सों की संख्या 2333 होनी चाहिए। जबकि मार्च/जून 2020 के उपलब्ध आंकड़ों अनुसार स्टाफ नर्सों की वर्तमान/वास्तविक स्थिति 2193 है। *यानी 140 नर्सों की कमी है।
रेडियोग्राफर आज के दिन सीएचसी में एक रेडियोग्राफर की पोस्ट है। आज इनकी संख्या 38 हैं जबकि जरूरत 119 की है। 81 रेडियोग्राफर्स की कमी है।
इसी प्रकार आज के दिन पीएचसी में एक और सीएचसी दो फार्मासिस्ट्स की पोस्ट हैं । आज जरूरत है 770 फार्मासिस्ट्स कि जबकि मौजूद हैं 405 फार्मासिस्ट। आज की जरूरत के हिसाब से 365 फार्मासिस्ट्स की कमी है।
यदि लैब टेक्नीशियन का जायजा लें तो 770 लैब तकनीशियन की जरूरत है जबकि वर्तमान में 400 फार्मासिस्ट ही हैं। 370 फार्मासिस्ट आज कम हैं ।
नेत्र चिकित्सा सहायकों की संख्या भी 128 होनी चाहिए मगर कार्यरत 35 ही हैं। मल्टीपर्पज कैडर में एमपीएचडब्ल्यू (पुरूष और महिला) की संख्या करीब 3800 है जबकि 10800 होने चाहिए। वहीं स्वास्थ्य निरीक्षक(पुरूष व महिला) के 1100 पदों के मुकाबले करीब 700 ही कार्यरत हैं यानि 400 पद खाली पड़े हैं। इनके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कार्यरत करीब 14 हजार कर्मचारियों को नियमित तक नहीं किया जा रहा है। उधर आउटसोर्सिंग पॉलिसी के तहत भर्ती ठेकाकर्मियों का भारी शोषण स्वास्थ्य विभाग और ठेकेदारों द्वारा किया जा रहा है।
हरियाणा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के इन हालातों को देखते हुए, जनता के स्वास्थ्य के लिये कुछ सुझाव और मांग बनती हैं ,जिन्हें एक स्वास्थ्य जन अभियान के तहत जन जन तक ले जाने की जरूरत है :
1. हरियाणा के नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं प्रदान करने के लिए और कोविड की पहली लहर के दौर की कमजोरियों के चलते दूसरी लहर के गम्भीर परिणामों के समाधान के लिए और कोविड महामारी की संभावित तीसरी लहर का सामना करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के सरकारी बुनियादी ढांचे को तुरंत मजबूत किया जाना चाहिए ।
2. स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए तत्काल अधिक धनराशि आवंटित करें।
3. सभी, कोविड और गैर-कोविड रोगियों के लिए व्यापक, सुलभ, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी करे सरकार। 4. इसके साथ ही कोविड 19 मानदंड और पोस्ट कोविड 19 स्थितियों का सामना करने के लिए स्वास्थ्य कार्यबल का ऑनलाइन या अन्यथा उचित और तत्काल प्रशिक्षण होना चाहिए।
5. सरकार को स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों पर काम करना चाहिए जिसमें शामिल हैं :
ए) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सार्वभौमिकरण और विस्तार द्वारा खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना।
बी) सभी के लिए सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था करना।
सी) शैचालय और स्वच्छता सुविधाएं सभी के लिए
डी) सभी को पूर्ण रोजगार
ई) सभी के लिए शिक्षा
एफ) सभ्य और पर्याप्त आवास का प्रबंध करे सरकार।
छ) स्वास्थ्य के लिंग आयामों को भी पर्याप्त रूप से संबोधित किया जाना चाहिए।
6. सभी महिलाओं को उनकी सभी स्वास्थ्य जरूरतों के लिए व्यापक, सुलभ, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी दें जिसमें मातृ देखभाल शामिल है लेकिन यहीं तक सीमित नहीं है।
7. नवीनतम जनसंख्या आवश्यकताओं के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में स्वास्थ्य कर्मियों की पूरी श्रृंखला के लिए और अधिक पद सृजित करें।
8. स्वास्थ्य विभाग के सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित करना और आशा एएनएम और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के सभी स्तरों के कर्मचारियों को पर्याप्त कौशल, वेतन और काम करने की अच्छी स्थिति प्रदान करना।
स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच में अत्यधिक असमानता और लोगों की रहने की खराब स्थिति भारत और हरियाणा में भी स्वास्थ्य की खराब स्थितियों के लिए जिम्मेदार है। इसी कारण जो लोग भुगतान कर सकते हैं वे विश्व स्तरीय उपचार सुविधाएं प्राप्त करने में सक्षम हैं। दूसरी तरफ राज्य में अधिकांश लोगों के लिए परिवार में बस एक बड़ी बीमारी परिवार ही अत्यधिक गरीबी और अभाव में डुबो देती है। कोरोना महामारी के कोविड मामलों के प्रबंधन में इस अमीर गरीब का अंतर और भी दिखाई देता है जब अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है।
सरकार को इन असमानताओं के समाधान के लिए भी उपाय देखना चाहिए।
नीति आयोग की रिपोर्ट "हेल्दी स्टेटस, प्रोग्रेसिव इंडिया" (स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत) में ताजा स्वास्थ्य संबंधी रैकिंग में केरल एक बार फिर प्रथम स्थान पर रहा है। और कोरोना महामारी का सामना भी बहुत बेहतर ढंग से किया गया है। नियत और नीति का मसला बहुत गंभीर है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए दीर्घकालिक प्रयास जरूरी हैं ताकि अधिक संसाधन दिए जा सके। यदि भारत और हरियाणा को अपनी किसी भी किस्म की आकांक्षा को पूरा करना है तो इन मांगों और जरूरतों का कोई शॉर्टकट नहीं है।
डॉ रणबीर सिंह दहिया।
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