देश की स्वास्थ्य व्यवस्था खुद बीमार है
दिल्ली में समय-समय पर डेंगू की महामारी का फूटना, उस और बड़ी बीमारी का लक्ष्य है, जिसकी गिरफ्त में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था है। ऐसा हर्गिज नहीं है कि हमारे देश के दूसरे इलाकों के मामले में दिल्ली पर महामारियों का ज्यादा हमला होता हो। बात सिर्फ इतनी है कि जब भी स्वास्थ्य संबंधी कोई गंभीर चुनौती सामने आती है, दिल्ली में स्वास्थ्य व्यवस्था के बैठ जाने पर मीडिया का और राजनीतिज्ञों का भी कहीं ज्यादा ध्यान जाता है। बेशक, दिल्ली में इस समय चल रही डेंगू की महामारी की गंभीरता को किसी भी तरह से कम कर के नहीं आंका जा सकता है, फिर भी यह याद दिलाना जरूरी है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों के सामने स्वास्थ्य व्यवस्था की भारी विफलता, हमारे देश में अपवाद न होकर एक नियम ही है। सचाई यह है कि हमारे देश में फ्लू, चिकुनगुनिया, एन्सिफेलाइटिस, मलेरिया तथा दूसरे अनेक संक्रमणों जो हजारों मौतें होती हैं, उनमें से अधिकांश मौतें नहीं होतीं, अगर चुनौतियों के प्रति संवेदी तथा साधनों से सुसज्जित सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था काम कर रही होती। हमारे देश में टीबी जैसी बीमारियां साल-दर-साल चलती आ रही हैं और एक तरह से लोगों की जिंदगी का एक सामान्य हिस्सा ही बन गयी हैं।
दिल्ली में हम जो देखते हैं, वास्तव में लघु रूप में पूरे देश की ही तस्वीर है। यह तस्वीर, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाहीभरी उदासीनता के चलते स्वास्थ्य व्यवस्था के पूरी तरह से बैठ ही जाने की है। यह स्थिति दशकों से चली आ रही सरकारी उपेक्षा तथा उदासीनता से पैदा की है और तेजी से फैलते निजी स्वास्थ्य रक्षा क्षेत्र के लुटेरे तथा अनैतिक आचरण ने उसे और घातक बना दिया है।
दिल्ली में समय-समय पर डेंगू की महामारी का फूटना, उस और बड़ी बीमारी का लक्ष्य है, जिसकी गिरफ्त में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था है। ऐसा हर्गिज नहीं है कि हमारे देश के दूसरे इलाकों के मामले में दिल्ली पर महामारियों का ज्यादा हमला होता हो। बात सिर्फ इतनी है कि जब भी स्वास्थ्य संबंधी कोई गंभीर चुनौती सामने आती है, दिल्ली में स्वास्थ्य व्यवस्था के बैठ जाने पर मीडिया का और राजनीतिज्ञों का भी कहीं ज्यादा ध्यान जाता है। बेशक, दिल्ली में इस समय चल रही डेंगू की महामारी की गंभीरता को किसी भी तरह से कम कर के नहीं आंका जा सकता है, फिर भी यह याद दिलाना जरूरी है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों के सामने स्वास्थ्य व्यवस्था की भारी विफलता, हमारे देश में अपवाद न होकर एक नियम ही है। सचाई यह है कि हमारे देश में फ्लू, चिकुनगुनिया, एन्सिफेलाइटिस, मलेरिया तथा दूसरे अनेक संक्रमणों जो हजारों मौतें होती हैं, उनमें से अधिकांश मौतें नहीं होतीं, अगर चुनौतियों के प्रति संवेदी तथा साधनों से सुसज्जित सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था काम कर रही होती। हमारे देश में टीबी जैसी बीमारियां साल-दर-साल चलती आ रही हैं और एक तरह से लोगों की जिंदगी का एक सामान्य हिस्सा ही बन गयी हैं।
दिल्ली में हम जो देखते हैं, वास्तव में लघु रूप में पूरे देश की ही तस्वीर है। यह तस्वीर, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाहीभरी उदासीनता के चलते स्वास्थ्य व्यवस्था के पूरी तरह से बैठ ही जाने की है। यह स्थिति दशकों से चली आ रही सरकारी उपेक्षा तथा उदासीनता से पैदा की है और तेजी से फैलते निजी स्वास्थ्य रक्षा क्षेत्र के लुटेरे तथा अनैतिक आचरण ने उसे और घातक बना दिया है।
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