Tuesday, 24 September 2019

जन स्वास्थ्य अभियान के सामने कार्य

डॉ सुन्दररमन
जन स्वास्थ्य अभियान के सामने कार्य 

1 आयुष्मान भारत : प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ( मोदी केयर )

2. आयुष्मान भारत : स्वास्थ्य एवं अच्छा होने के केंद्र 

3. स्वास्थ्य व्यवसायिक बनाना : स्वास्थ्य लाभ शिक्षा तथा व्यवसायिक नियमों की बदलती नीतियां 

4. निजीकरण : पब्लिक --प्राईवेट सांझेदारी तथा स्वास्थ्य उद्योग का विकास ; नीति आयोग का काम 

5. दवाओं , पेटेंटों तथा नवाचारों तक पहुंच का विकास 

6. स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य लाभ से जुड़े लैंगिक मुद्दे 

7. स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारक 

 1. आयुष्मान भारत : 

 एन डी ए सरकार के अंतर्गत शुरू किया गया यही मुख्य कार्यक्रम है।  यह सन 2019 में शुरू किया गया।  इस कार्यक्रम के दो पक्ष हैं - स्वास्थ्य  व स्वास्थ्य लाभ केंद्र और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना।  पहला पक्ष सम्यक प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच का तथा दूसरा पक्ष सरकार द्वारा स्वास्थ्य बीमा योजनाऐं उपलब्ध कराना है तथा गरीबी रेखा से नीचे परिवारों की सुरक्षा निश्चित करना , जिन्हें द्वितीय और तृतीय स्टार की स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है।  

            हम यहाँ हर योजना का वर्णन कर रहे हैं।  हम उन समस्याओं को  भी लेना चाहते हैं कि ये योजनाएं किस तरह बनायीं गई हैं और किस तरह काम कर रही हैं।  इसके साथ साथ हम  यह भी बताना चाहते हैं कि जन स्वास्थ्य अभियान तथा जन विज्ञानं आंदोलन तथा सभी जनवादी शक्तियों को इन नीतियों तथा इनके क्रियान्वन  देखना चाहिए।  

       प्रधान मंत्री की जन आरोग्य योजना ( मोदी केयर )

* यह योजना है क्या ?

एक वर्णन 

         यह सरकार द्वारा अनुदान प्रदत्त स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है, जो जनगणना के अनुसार सामाजिक-आर्थिक  जातियां हैं , जो विशेष पेशों से जुडी हैं वो ही इस योजना के लिए योग्य हैं।  एक अनुमान के अनुसार 10. 74  करोड़ परिवार यानि लगभग 50 करोड़ व्यक्ति इस योजना के लिए पात्र हैं।  


          इस योजना में कोई भी पात्र व्यक्ति  द्वितीय या तृतीय स्तर की स्वास्थ्य सेवा की जरूरत हो , अपने  इलाज हेतु किसी भी मंजूर पैनल के हस्पताल में जा सकता है।  हस्पताल बिना कुछ लिए उन्हें भर्ती करेगा और उनका इलाज करेगा।  सभी दवाइयां यहाँ तक की टैस्ट और कुछ हद तक यातायात सुविधा भी मरीज को मुफ्त मिलेंगी।  सरकार एक  अनुसार हस्पताल को वह खर्च दे  देगी।  एक परिवार एक साल में 5 लाख रूपये तक भी ऐसी सुविधाएँ ले सकता है।  इसमें पुराणी बीमारियां भी हो सकती हैं तथा हस्पताल के पहले और बाद तक के भी कुछ खर्चे शामिल  हैं।  

      प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में 1350 चिकित्सीय पैकेज शामिल हैं, जिनमें सर्जरी व प्रतिदिन के इलाज भी शामिल हैं। 

     इस योजना के तहत सरकारी एवं प्राइवेट दोनों प्रकार के हस्पताल पैनल पर हैं।  लगभग 60 % दावेदारों का और कुल खर्च  का लगभग 75 % प्राइवेट सैक्टर के हस्पताल अदा करते हैं। 

         इसमें प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रूपये का लाभ दिया जाता है। 

2. प्रचार माध्यमों में इस योजना का बहुत स्वागत किया गया है।  जनता और देनदारों ने भी इसका स्वागत किया है।  इस योजना का इतना स्वागत क्यों है ? 

       १. मुफ्त या रियायती हिसाब से प्राइवेट हस्पतालों में सुविधा सुनिश्चित करना ताकि उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाएं सभी को मिल सकें।  
              यद्यपि सरकारी चिकित्सा सुविधाओं की क्षमता बहुत सीमित है , इसलिए लोगों को मजबूर होकर इलाज के लिए निजी क्षेत्र में जाना पड़ता है। निजी स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हैं,इनके आर्थिक बोझ से पूरा परिवार प्रभावित होता है । इससे बचने के लिए बीमा योजनाएं हैं । यहां जनता का स्वागत है। 
ii) निजी हस्पतालों के पास बिना प्रयोग होने वाली बड़ी क्षमता है। उनके पास बीमारों की कमी नहीं है, अपितु उनकी कमी है जो पैसे दे सकें। आधुनिक हस्पतालों को बड़ा लाभ इसी बात से हो जाता है कि वे उच्च तकनीक के जांच, तरीके या सर्जरी सुझाते हैं। इनकी जरूरत जिनको है उन्हें मना लिया जाता है, बेशक सीमित ही सही सरकार द्वारा दिये पैसे से बीमा योजना को भारत का निजी स्वास्थ्य उद्योग कहा जा सकता है।
iii) मीडिया, समाज या बुद्धिजीवी तबके में इसका स्वागत इसलिये है कि निजी क्षेत्र की ओर जाने को वे समय के साथ जरूरी सुधार के रूप में देखते हैं। निजी सेवाओं में वे सरकारी सेवाओं की अपेक्षा अच्छी गुणवत्ता देखते हैं।ऐसा केवल गरीब या कमजोर तबके का ही   मानना नहीं है अपितु मध्यम वर्ग भी ऐसा ही मानता है। ये भिन्न भिन्न सोच इसलिए है कि निजी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर असमानताएं हैं। इसके चलते इन तबकों में सरकार के विरुद्ध तथा निजी क्षेत्र के प्रति अच्छा प्रभाव बनता है।

3. सरकार इस योजना को बड़ी सफलता मानती है और इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि समझती है । इसमें सच्चाई कितनी है और ढकोसला कितना?
i) सरकार का दावा है कि 'मोदीकेयर' दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना है । यह सत्य से दूर है । बजट देने के हिसाब से देखा जाय तो यह छोटी योजनाओं में से एक है । यहां तक कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से भी छोटी तथा बहुत से राज्यों द्वारा स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च से भी कम । बीमा कवरेज में भी ये बहुत पीछे रहती है बनिस्बत दूसरे देशों की योजनाओं के । जनसंख्या के हिसाब से भी ये चीन से भी कम कवर करती है।
ii) संख्या की दृष्टि से इसमें 3 करोड़ इसमें शामिल हैं,जबकि स्मार्ट कार्ड की दृष्टि से 12 करोड़ इसके योग्य हैं। 
iii) जिन अधिकतर राज्यों में प्रधानमंत्री 
जन आरोग्य योजना प्रभावी दिखाई दे रही है , ये वे राज्य हैं जो पहले  से अपनी योजनाओं पर काम कर रहे हैं , केंद्र ने तो उन पर अपने नाम का ठप्पा लगाया है। सरकार केवल 60%खर्च वापसी पर प्रतिबद्ध है,जबकि यह भी पूरी तरह किया नहीं गया है। राज्य सरकारों को अपने नियमों को बदलने के लिए कहा जा रहा है,जहाँ पहले से ही प्रभावी योजनाएं काम कर रही हैं ।फ़लस्वरूप केरल जैसे राज्य इससे दुखी हैं। 
iv) सरकार का दावा इस बात पर आधारित है कि राज्यों से कितने क्लेम आये, कितनों को पैसे मिले। इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि इनसे स्वास्थ्य परिणामों में कितनी बेहतरी हुई है तथा स्वास्थ्य सेवाओं के खर्चों की मुशीबत से कितने गरीबों को बचाया जा सका है। पूर्व सरकार की बीमा योजनाओं पर बहुत से अध्ययनों से निम्नलिखित बातें सामने आई हैं :-
a) सूचनाओं का अभाव - बहुत से योग्य व्यक्तियों को इन योजनाओं का पता ही नहीं होता और वे इसका लाभ नहीं ले पाते ।
b) सेवा देने से इन्कार:- 
वे जो योग्य  भी हैं और इन्हें जानते भी हैं ,उनकी बड़ी संख्या तकनीकी आधारों पर लाभों से वंचित कर दी जाती है। राज्य सबसे ज्यादा यह बहन करते हैं कि इसमें अमुक बीमारी या प्रक्रिया शामिल नहीं है ,और यहां हस्पताल में यह विशेष सेवा है ही नहीं ।
c) दोहरे बिल :-
जो किसी भी तरह इस योजना के तहत सेवा लेने में सफल हो जाते हैं , उनमें से अधिकांश से किसी न किसी तरह उनकी जेबों से इन सेवाओं के लिए निकलवा लिया जाता है।मुफ्त व नकद रहित सेवाएं तो एक मिथ है । ज्यादा  से ज्यादा उनको 20% कम देना पड़ता है उनकी अपेक्षा जिनके पास कार्ड होता है। मरीज से ले लिया जाता है और फिर हस्पताल सरकार से भी भुगतान कर लेता है ।
d) सप्लाई आधारित सेवाएं:-
हस्पताल प्रायः वे प्रकिर्याएँ अपनाते हैं जिनसे उन्हें लाभ ज्यादा होता है और उन सेवाओं से इनकार कर देते हैं जहां मुनाफा कम रहता है। बहुत बार वे ऐसे मरीजों को ज्यादा भर्ती करते हैं जो उनकी सप्लाई व प्रकिर्याओं पर खरे उतरते हों । यदि हम जिलों पर किये गए क्लेम का पैटर्न दीखें तो पाएंगे कि इनका महामारियों से कोई ज्यादा रिश्ता नहीं बनता अपितु उस बात से ज्यादा रहता है जिन्हें ये निजी वाहक ज्यादा आगे धकेलते हैं। 
e) सरकारी सेवाओं के सहायक के रूप में नहीं अपितु विकल्प के रूप में:- 
       निजी क्षेत्र लाने का उद्देश्य यह था कि उन प्रकिर्याओं तक पहुंचा जाए जो इस समय सरकारी हस्पतालों में उपलब्ध नहीं हैं। यदि हम हर राज्य के क्लेम की पड़ताल करें तो पाएंगे कि या वही सामान्य क्षेत्र हैं जहां सरकार पहले ही सेवाएं दे रही हैं।उदाहरण के लिए यू.पी.,बिहार व छत्तीसगढ़ में आंखों की वही सामान्य सर्जरी सेवा है जो सरकारी सेवा जैसी ही हैं । यदि गुर्दे की पथरी , आंखों की गम्भीर बीमारी , पेट में अधिक जलन जैसी बातों पर आये तो पता चलता है कि इस बीमा योजना का योगदान बहुत कम है।
f) ठीक से देखभाल नहीं व दवाना :-
पहले किसी निजी हस्पताल में गरीब मरीज के लिए सेवाएं नहीं होती थी तो उसे रेफर कर देता था। आज वही हस्पताल उस मरीज को दाखिल करता है , उस मरीज के स्मार्ट कार्ड का सारा पैसा चूस लेता है औए फिर आगे रैफर करता है। इससे इलाज में विलंब होता है , जब तक मरीज सरकारी हस्पताल में पहुंचता है , वह सभी संसाधनों से विहीन हो जाता है । मरीजों द्वारा अपनी बीमा रकम को सरकारी हस्पताल में डुबो देना सामान्य बात है।
अमेरिका तक में ऐसा ही है।
4. क्या सरकार इन समस्याओं से अवगत नहीं ?
     इन्हें ठीक करने के लिए क्या किया गया है? क्या इससे ज्यादा नहीं किया जा सकता? यदि सरकार इन मुद्दों पर गंभीर हो तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि बीमा कार्यक्रमों से राहत मिलेगी?
  सरकार को इन समस्यों का पता है। सरकार के पास परेशानियां दूर करने तथा मॉनिटरिंग करने के तरीके हैं। परेशानियां दूर करने का पूर्ण प्रयोग नहीं किया जाता ,क्योंकि दावेदार ही अपने दावों को पूरी तरह से नहीं समझते। जो दावों के लिए जाते भी हैं , उन्हें अनुभव कम है । समस्या वह है कि यदि कोई कष्ट उठा कर अपनी परेशानियां आगे ले भी जाता है ,तो निजी हस्पतालों को नाममात्र की सजा मिलती है । इसी प्रकार मानीटरिंग करने के तरीके बहुत कमजोर हैं । यदि वे थोड़ा बहुत काम करते भी हैं तो सरकार भी ऐसे गलत हस्पतालों पे कार्यवाही करने की इच्छुक नहीं दिखती । अंदरखाने इनके बीच एक समझ बनी हुई है कि इस प्रकार की धोखा धोखा धड़ी जायज है , वरना ये निजी हस्पताल इसमें शामिल नहीं होंगे । 
     इस प्रकार हस्पतालों को अदा करने की दर आजकल कम चल रही है। लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं है। यह तो एक आसान बहाना है, जिससे दोहरे बिल लिए जा रहे हैं। मानीटरिंग करने वाले भी इससे सहमत रहते हैं , बेशक नियमों की अनदेखी हो। अदायगी में देर होना भी अनैतिक है और इसके लिये तो खासकर जो अदायगी में देरी या अनिश्चितता को सम्भाल नहीं पाता।
   क्या सरकार इन विकृतियों को दूर करने के लिए गंभीर थी?
यदि सरकार इन योजनाओं की ठीक मानीटरिंग , परेशानियां दूर करने के ठीक प्रबन्ध करती तो निजी हस्पतालों की इनमें  भागीदारी घट जाती। वर्तमान
दरों पर भी निजी हस्पताल इनमें आने के इच्छुक नहीं हैं। वह स्वयं में कोई बुरी बात नहीं है, क्योंकि सरकारी हस्पताल रहेंगे , बेशक लाभ के लिए नहीं, इन दरों पर वे भी नैतिक आधार पर कुछ प्रबन्ध करेंगे।
   जब ऐसा दृश्य है कि बीमा व खरीद के लिये प्राइवेट क्षेत्र सरकारी क्षेत्र में खानापूर्ति ही कर रहा है , तो इसके भी वैचारिक कारण हैं जिन्हें हमारे नीति निर्माता स्वीकार करने को तैयार नहीं ।
    यदि मानीटरिंग ठीक की जाये तो दोहरे बिल और अदायगी न देने को सम्भाला जा सकता है। यदि नियमों में सख्ती कर दी जाये तो सप्लाई आधारित देखभाल दुरुस्त की जा सकती है। यहां फैंसले व देखभाल इस बात से प्रभावित होती हैं कि धन कहां से आता है न कि इस बात से कि भला होने वालों के दृष्टिकोण से।
5. बहुत से देशों में बीमा योजनाएं ठीक चल रही हैं । ये देश ठीक कैसे चल रहे हैं? 
इन रणनीतियों को अपनाने में हमारी सरकार को कौन रोकता है?
  जर्मनी और जापान में ऐसे उदाहरण हैं जहां सेवा देने वाले प्राइवेट हैं तथा भुगतान बीमा प्रक्रिया से होता है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसा ही है । यद्यपि सरकारी सेवा का अनुपात काफी ज्यादा है।
   इनका सबसे प्रमुख फीचर ही यही है कि ये आपसी सहयोग के सिद्धांत पर बने हैं । इस बात की ओर ज्यादा ध्यान दिया जाता है कि सेवा दाता सुनिश्चित हो कि भुगतान तुरन्त हो जाये। जापान में कानून है कि स्वास्थ्य सेवाओं से आप लाभ नहीं लेंगे। इसीलिए इसके लिए सीधे या कारपोरेट द्वारा सहायता नहीं ली जाती , क्योंकि लाभांश दिया ही नहीं जाता । जर्मनी में बीमा कंपनियों का लाभ लेना मना है , यदि नुकसान होता है तो उसकी भरपाई सरकार करती है और बराबरी सुनिश्चित करती है।
   जिन देशों में भी यह बीमा योजना आधारित है , उनके कड़े कानून हैं , जहां स्वास्थ्य सेवाओं के बदले कीमत दी जाती है । जहां बीमा नहीं है वहां भी सरकारी हिसाब से कीमत दी जाती है ।ऑस्ट्रेलिया व कनाडा में सारा भुगतान सरकार करती है । वे अमीर गरीब सब से टैक्स इकट्ठा करती हैं, लेकिन इलाज सभी का एक समान।

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