Wednesday, 25 September 2019

Haryna education and health

आज हरियाणा में चुनाव के दौर में जनता की तरफ से राजनितिक पार्टियों से अपेक्षाएं
आज कल की भयभीत करने वाली राजनीती व शंकट ग्रस्त आर्थिक हालातों के दौर में चनाव के वक्त जनता के वास्तविक मुद्दों पर बातचीत करना बहुत जरूरी है | इस वक्त शिक्षा और स्वास्थ्य जनता के दो अहम मुद्दे हैं ---
1. शिक्षा, विशेष कर स्कूली शिक्षा
  • शिक्षा को समीक्षा के शीर्ष पर रखने का एक खास कारण है । शिक्षा मानव के लिये समाज में व आर्थिक जगत में जगह बनाने की सबसे महत्त्वपूर्ण सीढी है ।
  • वो लोग जो बहुत बड़ी पूंजी के मालिक हैं और बैठे बिठाये ऐसो आराम या रुतबा पा सकते हैं वो भी लैजिटिमेशी के लिये नामी शिक्षण संस्थानों की डिग्री हाँसिल करते हैं । सामंतवादी नोबिलिटी जो अपने वंशानुगत धन पर  धार्मिक सामाजिक मान्यताओं के बल पर मोज मस्ती करती थी वहीं पूंजीवादी आका मेरिटोक्रेसी की दुहाई देकर कमेरे लोगों के आंशिक परिश्रम को हड़पते हैं । पूंजीवादी सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक आईडियोलोजी मैरिटोक्रेसी के दर्शन के माध्यम से राज करती है ।


  • मजदूरों व सीमान्तर किसानों के बच्चों के लिये शिक्षा का महत्व और भी ज्यादा है क्योंकि उनके पास और कोई साजो सामान नही जिसके बल पर वो अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य उज्ज्वल बना सकें ।
  • आजादी के बाद और खासकर हरियाणा के स्टेट के रूप में अलग अस्तित्व में आने के बाद में स्कूली शिक्षा की अच्छी शुरूवात हुई थी |गौर तलब है कि प्रदेश में स्कूली सिस्टम कामन स्कूलों (Universal School system) की तर्ज पर ही शुरू हुआ, सरकार की चेष्टा थी कि सभी स्कूलों में एक समान सुविधाएँ हों । यदि आने वाले दशकों में स्कूली शिक्षा वैसे ही सरकारी कर्तव्यों में रहती तो आज हमारे स्कूल विश्व स्तर के होते |नतीजतन आज के दिन 50% से भी ज्यादा छात्र सरकारी स्कूलों से पलायन कर निजि स्कूलों में जा चुके हैं, जहाँ उनके किसान मजदूर व निम्न मध्यम वर्ग के माता पिता को असहनीय मोटी फीस देनी पड़ रही है और वोभी ज्यादातर निजि स्कूलों के हर लिहाज से घटिया यानि सब सटैन्डर्ड है शिक्षा स्तर के लिये|
समाधान क्या हो सकते हैं :-
  • पब्लिक मोर्चा समस्या पर गहन विचार के बाद ईस निश्कर्ष पर पहूँचा है और मेरी भी व्यक्तिगत राय है कि हरियाणा की पीछले 50 सालों की प्रगति व आज की आर्थिक स्थिति (जब राज्य की SGDP 700,000 करोड़ तक पहुँच चुकी है व यहाँ की प्रतिव्यक्ति आय 205'00 रुपये  सालाना है) के हिसाब से प्रदेश के हर बच्चे के लिये सरकारी खर्च से चलने वाले एक जैसे उच्चतम स्तर के स्कूल (also called common schools or universal schools) उपलब्ध कराये जा सकते हैं ।
  • ऐसे टाप क्लास स्कूल परचूर.मात्रा में सिर्फ किताबी ज्ञान ही नही बल्कि खेल कूद, संगीत,गाना बजाना, सांग, फिल्म व जीवन यापन के लिये सभी प्रकार के हाथ के हूनर भी बच्चों को दे सकेंगे ।
  • टाप क्लास कामन स्कूली अनुभव बच्चों में किताबी ज्ञान के साथ सामाजिकता की भावना भरने व उनको स्वस्थ एवमं बलिष्ठ नागरिक बनाने में मील का पत्थर शाबित होंगे । प्रदेश के लिये  आर्थिक व तकनीकी दृष्टि से जापान व योरोपीय देशों की कतार में जगह बनाने में अहम भूमिका अदा करेंगे ।
  • समान स्कूल का अनुभव बच्चों को जाति उँच-नीच, लिंगभेद व साम्प्रदायिक भेदों के संकुचित दायरे से बाहर निकालकर उनको सच्ची देशभक्ती से ओतप्रोत भी करेगा ।
उच्च शिक्षा: प्रदेश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी ज्यादातर सार्वजनिक व पब्लिक बजट से चलने वाली शिक्षा व्यवस्था होना लाज्मी है । सरकारी क्षेत्र के कालेजों व विश्वविद्यालयों में प्रयाप्त रगूलर प्राध्यापकों की भर्ती करके सभी सब-सटैन्डर्ड निजि संस्थानों बन्द किया जाना चाहिये ।
  • सभी शिक्षा संस्थानों में सामाजिक महत्व के अनुसंधान करने वाले संकाय जोड़े जाने की आवश्यकता हैं । ईन सभी संस्थानों को सिर्फ शिक्षाविदों द्वारा (अध्यापकों, छात्रों, उनके अभिभावकों व फील्ड में काम कर रहे गण्य मान्य लोगों की सलाह से) बिना किसी  पार्टी प्रेरित राजनितिक दखल के संचालित किया जाना चाहिए ।
सरकार की मदद से चलने वाले व शिक्षण संगठनों द्वारा संचालित कालेजों की मदद बन्द करने की हाली सरकारी सोच का पब्लिक मोर्चा पूरजोर विरोध करता है ।

दूरगामी परिणाम
  • पब्लिक मोर्चे का मानना है कि उच्चतम कोटी के कामन स्कूलों की व्यवस्था व उच्च शिक्षा के लिये दिये गये ऊपरलिखित सुधारों से प्रदेश में युवाओं के लिये 3-4 लाख नये व रैगुलर रोजगार भी सृजित होंगे और अगले 15 साल में हमारा प्रदेश पढाई,  रिसर्च व आर्थिक विकास में, विकसित देशों के साथ मेज पर बैठ सकेगा ।
  • आखिरकार युनिवर्शल स्कूल सभी वर्गों के बच्चों के विकास के लिये लेवल पलेईंग फील्ड तैयार करेंगे ।
  • कामन व गुणवत्ता पूर्ण स्कूलों का अनुभव बच्चों को संवेदनशील नागरिकों में परिवर्तित करने का और फलस्वरूप समाज में हर तरह के सामाजिक न्याय (औरत मरद की बराबरी की भावना, जाति उत्पीणन का उन्मूलन व धार्मिक द्वेस का अन्त) को परमोट करने का सबसे कोस्ट ईफैक्टिव माध्यम है ।
2. स्वास्थ्य सेवायें-युनिवर्शल स्वास्थ्य सेवा
  • आदमी के जीवन में सेहत की देखरेख व चिकित्सा को सविंधान के जीने के अधिकार को साक्षात करने की दृष्टि से देखा जाना चाहिए । जब तक आधुनिक मैडिकल सांईस वजुद में नही थी तब तक मृत्यु दर अनियंत्रित जन्म दर के बराबर थी,  जीवन अनिस्चितता से भरा पड़ा था, यानि जीने. का अधिकार तरह तरह बीमारियों से लड़ाई करने की क्षमता का मुहताज था । आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था के बिना आज भी जीवन उतना ही अनिश्चित होता और ऐसे में जीने का अधिकार भी अधुरा होता ।
  • शूरूवात: आजादी के बाद और विशेष कर हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद सरकार की जिला स्तर के हस्पतालों, पीएचसी व सीएचसी हस्पतालों की की स्थापना करने की एक बहुत ही सकारात्मक पहल थी ।

  • काबिले जिक्र है कि तत्कालिक सरकारों ने बहुत बड़े पैमाने पर टीकाकरण के कार्यक्रम माध्यम से लाखों बच्चों की जिन्दगी बचाने की बड़ी महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की थी । 1950 के आसपास पैदा होने वाले बच्चों की ऐसी पहली पीढ़ी थी जिनमें से 90% के आस पास जिन्दा रहे और फले फुले।
  • हरियाणा में स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा(2016-17) सोचने का विषय :
             सरकार द्वारा निश्चित किये गए मापदंडों के हिसाब से 5000 की जनसंख्या पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए, 30000 की जनसंख्या पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए और 1,20,000 की जनसंख्या पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए। 
    हरयाणा की 2016-17 की अनुमानित जनसंख्या 2 करोड़ 79 लाख के लगभग है। 
    इसके हिसाब से हरियाणा में जो ढांचा होना चाहिए और जो है वह नीचे दिया जा रहा है--
    संस्था         जो हैं      जो चाहियें 
    उपस्वास्थ्य   2603     5580
    केंद्र
    पीएचसी       498       930
    सीएचसी।      123       232
    हॉस्पिटल्स       125
    टीबी सेन्टर        15
    पोस्ट पार्टम।      37
    केंद्र
    शहरी स्वास्थ्य     16
    केंद्र
    नोट -- एक सीएचसी में निम्लिखित विशेषज्ञ होने चाहिए
    सर्जन........  1
    शिशु रोग विशेषज्ञ....1
    स्त्री रोग विशेषज्ञ....1
    फिजिशियन....1
    बेहोशी विशेषज्ञ ...1 ( हो सके तो)
        अफसोस की बात है कि हरियाणा की 123 सीएचसी में से एकाध में ही ये सारे विशेषज्ञ होंगे। 
    सिविल अस्पतालों की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं हैं ।
    जनता का भी उसका अपना स्वास्थ्य अभी एजेंडा बनना बाकी है। 
  • यदि ऊपरलिखित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का लगातार विकास हुआ होता तो हरियाणा आज स्वास्थ्य सेवाओं की दृष्टि से भारत की अग्रणी स्टेट होती, जबकि आज हम 12वें स्थान पर हैं, बंगाल व जम्मु काश्मिर से भी  नीचे, जबकि आर्थिक दृष्टि से बड़े राज्यों की तालिका में हम शीर्ष स्थान पर हैं ।
  • राज्य का रोहतक में स्थित परिमियर मैडिकल कालेज हस्पताल भी डाक्टरों (एक तिहाई तो अधिकारिक स्थान ही खाली पड़े हैं) व साजोसामान की भारी कमी की दृष्टि से खुद बीमार है ।
जिला, तहसील या ब्लाक स्तर के हसपताल तो बिना प्रयाप्त डाक्टरों, नर्सों, दवाईयों व टेस्टिंग व्यवस्थाओं के मरणासन्न पर हैं ।
  • पूरे हरियाणा के स्तर पर मात्र 2100 डाकटर हैं और कुल 21000 के आसपास स्टाफ हैं । WHO के मानकों के हिसाब से तो 2.8 करोड़ की आबादी के लिये 28000 डाक्टर चाहियें । सरकारी व्यवस्था के नकारा होने के चलते ज्यादातर पब्लिक को निजि हस्पतालों में अपनी जेब खाली करवाने और ज्यादातर सब-स्डैन्डर्ड चिकित्सा व्यवस्था पर निर्भर रहने के ईलावा और कोई चारा नही । रोज सैंकड़ो  हरियाणा वासी सम्मुचित ईलाज की व्यवस्था के ईलाजी बीमारियों (curable diseases) से मर रहे हैं ।
  • हरियाणा का कोई मन्त्री या बड़ा ब्यूरोक्रेट सरकारी हस्पतालों में ईलाज नही करवाता बल्की गुड़गांव के 7 सितारा निजि हस्पतालों में पब्लिक टैक्स को खर्च पर अपना ईलाज करवाते हैं ।
  • सरकारी खर्च पर निजि हस्पतालों में ईलाज की अनुमती सरकार के ईस ईरादे को जाहिर करती है कि वे सरकारी हस्पतालों को साजोसामान से सुसज्जित करने का ईरादा भी छोड़ चुके और पुरी बेशर्मी से पब्लिक हैल्थ केयर की जिम्मेवारी से मूकर गये ।
  • बी जे पी का 2014 का चुनाव घोषणा पत्र ---
  • हेल्थ 12 स्वास्थ्य घोषणा पत्र बीजेपी 2014 हरियाणा :
    1 प्रत्येक बालक - बालिका , महिला एवं वृद्धों को अनिवार्य स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जायगा और उन्हें कुपोषण से मुक्त रखने के सन्दर्भ में बजट में विशेष तौर पर धन राशि का प्रावधान किया जाएगा।
    2 मौसमी बीमारियों के लिए स्वास्थ्य विभाग को अपडेट किया जाएगा।
    3 स्टेट लिकर पालिसी का पुनरवलोकन कर इसमें जन -स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सुधार किया जाएगा।
    4 प्राइवेट हस्पताल जिन्होंने सरकार से भूमि सस्ती दर पर ली है , उन द्वारा 25 प्रतिशत मरीजों का निःशुल्क इलाज , स्वास्थ्य सेवाएं, (विभिन्न टेस्टों सहित) प्रदान करने की नीति लागू की जाएगी।
    5 सरकारी अस्पताल , प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आदि मरीजों को अनुदान प्राप्त हस्पतालों को रेफर कर सकेंगे ।
    6 दो लाख रुपये तक वार्षिक आय वाले परिवारों के लिए चिकित्सा मुफ्त दवाई योजना लागू की जाएगी। 
    7 शिशु एवम 70 वर्ष से अधिक के बुजुर्गों के लिए सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त specialisation  बेस्ड विशिष्टीकरण पर आधारित प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र में एक हस्पताल खोला जाएगा।
  • जनता देखे कितना पूरा हुआ यह घोषणा पत्र | मेरे हिसाब से शायद ही किसी विधान सभा में स्पेशलिस्ट हस्पताल खुला हो | 
समाधान:
  • युनिवर्शल हैल्थ केयर व्यवस्था ही ईसका एकमात्र जवाब है,  जहाँ सभी गरीब अमीर नागरिकों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवा जेब से कुछ दिये बिना मिले । यह सेवा बर्तानिया की नेशनल हैल्थ सर्विस की तरज पर स्थापित की जा सकती है । बाकी योरोप के देशों जैसे जर्मनी फ्रांस की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं तथा क्युबा (जो आर्थिक दृष्टि से भारत जैसा ही है) व दुसरे सफल व किफायती (पूरे राज्य के स्तर पर) स्वास्थ्य सेवाओं के सकारात्मक पहलुओं को शामिल करके ।
  • ऐसी युनिवर्शल स्वास्थ्य सेवा को सृजित करने के लिये राज्य सरकार को राज्य की SGDP का 5-6% खर्च करना पड़ेगा और यह खर्च अति आवश्यक व लाभदायक है ।
  • कूल खर्च का एक छोटा हिस्सा नागरिकों से   भी उनकी ईन्कम के हिसाब से एक मुस्त सालाना या माहवार स्वास्थ्य सेवा शुल्क के रूप में लिया जा सकता है ।
  • बर्तानिया (जहाँ 6.5 करोड़ आबादी की स्वास्थ्य सेवाओं के लिये NHS में 15 लाख लोग काम करते हैं) व दुसरे विकसित देशों के आंकड़ों से पता लगता है कि युनिवर्शल स्वास्थ्य सेवाएँ देने के लिये 4-5 लाख युवाओं को रैगुलर व लाभप्रद रोजगार भी मिलेंगे ।
  • युनिवर्शल स्वास्थ्य सेवाओं से नागरिकों के जीवन में जो सिक्योरिटी आती है उसका कोई और दुसरा उपाय नही । यह जीने के मौलिक आधार को साकार बनाने का सबसे बड़ा स्तम्भ सिद्ध हो सकता है  ।
रणबीर सिंह दहिया
रिटायर्ड सीनियर प्रोफेसर सर्जरी
पी जी आई एम एस रोहतक

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