बहुत से सबक सिखा रही कोरोना वायरस -- एक सबक यह भी जन स्वास्थ्य के बारे में ----
भविष्य की दुनिया की व्यवस्था में शायद जन स्वास्थ्य सेवा नीति निर्धारक बहस की आधारशिला के रूप में उभरेंगे । पिछले कुछ दशकों में दुनिया की व्यवस्था स्वास्थ्य सोवा ढांचे के छोटा होने, विनिवेश होने और नीजिकरण की साक्षी है जिसने कि स्वास्थ्य सेवाओं के व्यवसायिकरण की राह को ही आगे बढ़ाया है । महामारी के इस संकट में जब वो देश जिसके पास मजबूत जन स्वास्थ्य सेवा प्रणाली है जिसमें चीन, सिंगापुर और ताइवान शामिल हैं ने महामारी पर प्रभावी तरीके से काबू पा लिया तो वहीं जिनकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बाजार आधारित थी जैसे अमेरिका और यूरोपीय यूनियन वे बुरी तरह से तबाह हो गये।
यहीं पर केरल की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली वैश्विक रूप से प्रासंगिक हुई है।
केरल ने महामारी पर प्रभावी तरीके से काबू किया है, सक्षमता से सार्वजनिक एक्शन के उपयोग, जन केन्द्रीत स्थानीय प्रशासन, और व्यापक राजनीतिक चेतना के माध्यम से जिसने राज्य के सामाजिक परदिृश्य को परिभाषित किया है। भविष्य की वैश्विक व्यवस्था में स्वास्थ्य को एक बुनियादी अधिकार और एक वैश्विक सार्वजनिक वस्तु की तरह लिया जायेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वास्थ्य का उत्पादन नही किया जा सकता है और उसे कामेडिटी की तरह बेचा भी नही जा सकता है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य को एक सार्वजनिक वस्तु की अवधारणा को मान्यता दी है और विश्व बैंक उससे पहले ही ऐस कर चुका है, फिर भी मौजूदा संकट फिर से पूरी दुनिया में इस अवधारणा को जिंदा कर रहा है। स्वास्थ्य के एक सार्वजनिक वस्तु की अवधारणा के साथ ही इसमें राष्ट्र राज्य की भूमिका पर और इसकी नैतिक जिम्मेदारी पर भी पुनर्विचार होगा। इस उभरते हुए रूझान के दो आयाम हैं। इनमें से एक है शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान, प्रोद्यौगिकी और सामाजिक सुरक्षा में अधिक निवेश के साथ एक कल्याण राज्य के मॉडल को पुनर्जीवित करना। हम फैलती हुई महामारी को प्रभावी तरीके से नियंत्रित करने में बाजार राज्य के मॉडल की नाकामी को देख चुके हैं। पॉल मेसोन के अनुसार यह एक ऐसे कल्याण राज्य की जरूरत को बना सकता है जिसका फोकस सामाजिक न्याय, समानता और सार्वजनिक वस्तुओं के समान वितरण पर हो सकता है।
भविष्य की दुनिया की व्यवस्था में शायद जन स्वास्थ्य सेवा नीति निर्धारक बहस की आधारशिला के रूप में उभरेंगे । पिछले कुछ दशकों में दुनिया की व्यवस्था स्वास्थ्य सोवा ढांचे के छोटा होने, विनिवेश होने और नीजिकरण की साक्षी है जिसने कि स्वास्थ्य सेवाओं के व्यवसायिकरण की राह को ही आगे बढ़ाया है । महामारी के इस संकट में जब वो देश जिसके पास मजबूत जन स्वास्थ्य सेवा प्रणाली है जिसमें चीन, सिंगापुर और ताइवान शामिल हैं ने महामारी पर प्रभावी तरीके से काबू पा लिया तो वहीं जिनकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बाजार आधारित थी जैसे अमेरिका और यूरोपीय यूनियन वे बुरी तरह से तबाह हो गये।
यहीं पर केरल की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली वैश्विक रूप से प्रासंगिक हुई है।
केरल ने महामारी पर प्रभावी तरीके से काबू किया है, सक्षमता से सार्वजनिक एक्शन के उपयोग, जन केन्द्रीत स्थानीय प्रशासन, और व्यापक राजनीतिक चेतना के माध्यम से जिसने राज्य के सामाजिक परदिृश्य को परिभाषित किया है। भविष्य की वैश्विक व्यवस्था में स्वास्थ्य को एक बुनियादी अधिकार और एक वैश्विक सार्वजनिक वस्तु की तरह लिया जायेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वास्थ्य का उत्पादन नही किया जा सकता है और उसे कामेडिटी की तरह बेचा भी नही जा सकता है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य को एक सार्वजनिक वस्तु की अवधारणा को मान्यता दी है और विश्व बैंक उससे पहले ही ऐस कर चुका है, फिर भी मौजूदा संकट फिर से पूरी दुनिया में इस अवधारणा को जिंदा कर रहा है। स्वास्थ्य के एक सार्वजनिक वस्तु की अवधारणा के साथ ही इसमें राष्ट्र राज्य की भूमिका पर और इसकी नैतिक जिम्मेदारी पर भी पुनर्विचार होगा। इस उभरते हुए रूझान के दो आयाम हैं। इनमें से एक है शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान, प्रोद्यौगिकी और सामाजिक सुरक्षा में अधिक निवेश के साथ एक कल्याण राज्य के मॉडल को पुनर्जीवित करना। हम फैलती हुई महामारी को प्रभावी तरीके से नियंत्रित करने में बाजार राज्य के मॉडल की नाकामी को देख चुके हैं। पॉल मेसोन के अनुसार यह एक ऐसे कल्याण राज्य की जरूरत को बना सकता है जिसका फोकस सामाजिक न्याय, समानता और सार्वजनिक वस्तुओं के समान वितरण पर हो सकता है।
No comments:
Post a Comment