Tuesday, 21 April 2020

चिकित्सा पद्धति का विकास

चिकित्सा पद्धति का विकास
    मानव के होमोसेपियंस रूप में विकास होने पर उसकी बुद्धि के दौरान होने वाले संघर्षों का सामना वह अब शारीरिक शक्तियों के साथ-साथ बुद्धि से भी करने लगा।          समय के साथ मानव झुंड बनाकर या समूह में रहने लगा, जिससे 'हम' की भावना का विकास हुआ। इसके कारण उस समूह के सदस्यों की सुरक्षा सभी की जिम्मेदारी बन गई । इस सुरक्षा में जंगली जानवरों के हमले से लेकर बीमारिया रोगों का उपचार तक शामिल थे।
     समय के साथ प्रयोगों संयोगों एवं अनुभवों  के आधार पर मनुष्य का ज्ञान संग्रहित होता गया एवं कालांतर में यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता गया। इस प्रकार नई पीढ़ी अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान में अपने अनुभवों से प्राप्त ज्ञान जोड़ते गई एवं इस क्षेत्र का विशेष क्षेत्र के रूप विकास हुआ । श्रम विभाजन एवं वर्ण व्यवस्था के विकसित होने के साथ ही उपचार करना वैध का काम माना जाने लगा । इसके लिए इस ज्ञान को लिखित रूप में भी सहेज कर रखा जाने लगा । इस विषय अर्थात चिकित्सा शल्य क्रिया  का विकास इन उदाहरणों से स्पष्ट समझा जा सकता है:-
1.सर्वप्रथम मनुष्य या मानव ने बीमार होने पर जंगली जड़ी-बूटियों के सेवन से उपचार करना सीखा ।
2.किसी प्रकार की चोट लगने पर इसे दबाकर या बांधकर घाव से खून बहना बंद करना एक सामान्य बात हो गई जो आज भी किया जाता है ।
3.किसी नुकीली वस्तु से कट जाने पर चींटे को इस घाव के दोनों हिस्सों को पकड़ाकर उसका सिर काट दिया जाता था जिससे चींटे का सिर टांके  की तरह काम करता था। यह तरीका आज भी आदिवासियों एवम आदिम जनजातियों में प्रयोग में लिया जाता है ।
4.चरक ऋषि चीरा लगाते समय अनावश्यक रक्तस्राव  को रोकने के लिए विषहीन जोंक का उपयोग किया करते थे ।जिससे आवश्यक चीरा बिना किसी व्यवधान के लगाया जा सके।
5. विष हीन जोंक का उपयोग दूषित रक्त को शरीर के किसी भाग से निकालने के लिए किया जाता था ।
    कालांतर में यूरोप में पुनर्जागरण के परिणाम स्वरूप अध्ययन क्षेत्र का प्रचार प्रसार हुआ जिसके कारण ऐसे रोगों के उपचार के तरीके खोजे जाने लगे जो अभी तक लाइलाज थे । इसी क्रम में लुइस पाश्चर ने जीवाणु सिद्धांत की खोज की । एडवर्ड जेनर ने टीके का निर्माण किया। सर रोनाल्ड रॉस ने मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र को समझाया। 
   इन सभी के कारण स्वच्छता की महत्ता का विकास हुआ जिसका प्रयोग सुश्री फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने क्रीमिया युद्ध (1853) में कर अनेक सैनिकों की जान बचाई।

No comments: