Tuesday, 21 April 2020

जीन चिकित्सा के नए औजार

जीन चिकित्सा के  नए औजार

              यदि आप बैक्टीरिया.संक्रमण के कारण ज्वर ग्रस्त हैं तो डॉक्टर उपयुक्त एंटिबायोटिक द्वारा आपका उपचार करेगा और एक सप्ताह की अवधि में आप ठीक हो जाऐंगे। ऐसा ही न्यूमोनिया जैसे अधिक गंभीर रोगों में भी होता है। ये उपार्जित रोग हैं। पर हीमोफीलिया, पुटीय तंतुशोध (सिस्टिक फाइब्रोसिस), सिकल सेल अरक्तता और कुछ प्रकार के कैंसर जैसे जन्मजात रोगों का क्या करें ? ये हमारे जीनों में दोष के कारण होते हैं। ये रोग इसलिए प्रकट होते हैं क्योंकि या तो कोई आवश्यक प्रोटीन उत्पन्न नहीं हो पाता या कोई संसाधित प्रोटीन उत्पन्न हो जाता है या फिर कुछ कोशिकीय नियंत्रण प्रकार्य नहीं हो पाते हैं। डॉक्टर इनमें से अधिकांश रोगों को ठीक नहीं कर पाते हैं, वे केवल उनका प्रबंधन करते हैं। तथापि 1970 के दशक के आरंभ में हुए जैव प्रौद्योगिकीय
प्रवर्तन के बाद से, अन्वेषक इन रोगों के मूल.दोषी जीनों पर प्रहार करने की तकनीकें विकसित कर रहे हैं। यह चिकित्सा प्रद्धति, जिसे उपयुक्त रूप से ही ‘‘जीन चिकित्सा’’ कहा जाता है  रोग के लिए प्रकार्यात्मक उपचार प्रदान करने के लिए दोषी जीन को हटाने, या उसकी मरम्मत करने या उसके प्रकार्य को सामान्य जीन से संपूरित
करने के प्रयास करती है। 1970 के दशक के शुरुआती वर्षों में एक निष्क्रिय वायरस या प्लाज़मिड में
सामान्य जीन डाल कर उपयोग में लाया जाता था। जब ऐसे वाहक को कोशिका में समाविष्ट किया जाता है तो अभिनव जीन अपने आपको विकृत जीन की क्षतिपूर्ति के लिए कोशिका के जीनोम में समेकित कर देती है। यद्यपि अनेक चिकित्सकीय परीक्षण किए जा चुके हैं और कुछ में सफलताएं भी मिली हैं, वाहक.आधारित जीन
थीरेपी में अनेक दोष हैं। इस प्रणाली में एक नई जीन को समाविष्ट किया जा सकता है किंतु विकृत जीन को सुधारा या शांत नहीं किया जा सकता। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि नई जीन परपोषी जीनोम में यादृच्छिकतः ही समाविष्ट की जा सकती है न कि विशिष्ट लक्ष्यित स्थल पर। इसके अन्य जीनों पर अनियंत्रित उत्प्रेरक या निरोधी प्रभाव हो सकते हैं या फिर यह भी हो सकता है कि नई स्थिति में यह अभिनव जीन अपेक्षा के अनुसार कार्य न करे। इसलिए कुछ और चाहिए था जो अधिक परिशु़द्ध और विश्वसनीय हो।
         गत दो दशकों में अन्वेषकों ने, विकृत जीनों की परिशुद्ध अभियांत्रिकी के लिए - उन्हें बाहर   निकालने, संशोधित करने अथवा किसी विशिष्ट स्थल पर नवीन जीन सन्निविष्ट करने के लिए - तीन विशिष्ट औजार विकसित किए हैं। सभी तीनों पद्धतियों में कुछ सामान्य यांत्रिक लक्षण विद्यमान हैं। प्रत्येक के दो प्रभाव क्षेत्र हैं - एक जीनोम में डी एन ए अनुक्रम के उन स्थलों को पकड़ना जहां परिवर्तन किए जाने हैं और दूसरा डी एन ए को
उस लक्ष्यित अनुक्रम में परिशुद्धता से काटना ताकि द्वि.तंतु भंजन हो सके जो कि जीन संशोधन के आगे के चरणों के लिए एक पूर्वापेक्षा है। अपनी परिशुद्धता के कारण इन औजारों को ‘‘आण्विक कैंची‘‘ नाम से अभिहित किया जाता है। इनके नामें की प्रसिद्धि इनके परिवर्णी शर्ब्दों .  ZFNs, TALENs तथा  CRISPRs  से है।
ZFNs (जिंक फिंगर न्यूक्लिएजे़ज)--
               1990 के दशक में  विकसिर्त ZFNs लक्ष्यित जीनोम संशोधन के सबसे पहले अभियांत्रित औजार हैं। इस डी एन ए बंधनकारी डोमेन में एक प्रोटीन.संरचना होती है जिसमें प्रत्येक प्रोटीन का जिंक आयनों द्वारा स्थायीकृत, उंगली की तरह बाहर निकला हुआ उद्वर्तन होता है (इसी कारण इनको यह नाम दिया गया है)। प्रत्येक उद्वर्तन, डी एन ए में तीन न्यूक्लिओटाइड आधारों के अनुक्रम से बंधित हो सकता है। जिंक फिंगर प्रोटीन (ZFP) की बंधनकारी विशिष्टता को अमीनो अम्ल अनुक्रम को प्रभावित करके बदला जा सकता है। डी एन ए की किसी लम्बाई की बंधनकारी विशिष्टता में सुधार के लिए कई  ZFPs  एक साथ टांके जा सकते हैं। आम तौर पर तीन से छ ZFPs का एक मोटिफ, लक्ष्यित डी एन ए में, न्यूक्लिओटाइड आधारों के एक विशिष्ट अनुक्रम को बंधित करने के लिए अभियांत्रिक किया जाता है।
डी एन ए विभाजक क्षेत्र, FoKI नामक एक   निर्बंधन एंज़ाइम है जिसमें अविशिष्टीकृत रूप से डी एन ए से बंधित होकर उसे विभाजित करने की क्षमता होती है। FoKI एक मंदकर है। यह तभी प्रभावी होता है जब दोनों भाग उपस्थित हों। इसलिए, र्दो ZFN मोटिफों में प्रत्येक जिसके बंधनकारी गुण लक्ष्पित डी एन ए विशिष्ट हों, FoKI  एंज़ाइम से युग्मित होकर एक जिंक फिंगर न्यूक्लिएज निर्मित करता है। ZFN  की उत्पत्ति के संबंध में एक रोचक कहानी है।) जब यह तंत्र किसी कोशिका में सन्निविष्ट किया जाता है तो दोनों बंधनकारी एकक लक्ष्यित स्थल के पार्श्वों में आ जाते हैं और FoKI  एंज़ाइम दोहरे DNA  तंतुओं के पास आते जाते हैं और इसे काट कर दोहरे भंजित तंतु उत्पन्न करते हैं।
TALENs (प्रंतिलिपि सक्रियक - वत् प्रभावक न्यूक्लिएजेज) ।TALENs के  DNA  बंधनकारी क्षेत्र प्रतिलिपि सक्रियक.वत् प्रभावक TALEN  प्रोटीनों से बने होते हैं जो जैंथोमोनास बैक्टीरिया द्वारा स्रावित किए जाते हैं। इन प्रोटीनों का प्रेक्षण पहली बार मार्टिन लूथर किंग विश्वविद्यालय, जर्मनी में जीवविज्ञान संस्थान के यूबोनैस द्वारा 2009 में किया गया था। (जैंथोमोनास बैक्टीरिया पादप रोगकारी हैं और वे TALEs  का उपयोग अपने परपोषियों में विशिष्ट जीनों को सक्रिय बनाने के लिए करते हैं ताकि संदूषण के प्रति परपोषी की संवेदनशीलता को अधिकतम किया जा सके। TALE  प्रोटीन में आगे पीछे जुड़े अमीनो अम्ल पुनरावर्त क्षेत्रों की विभिन्न संख्याएं विद्यमान होती हैं और प्रत्येक क्षेत्र, डी एन ए  के  एक विशिष्ट न्यूक्लिओटाइड आधार से बंधित होता है। बंध के लिए उत्तरदाई अमीनो अम्ल को परिवर्तित करके प्रोटीन के बंधनकारी गुण में बदलाव लाया जा सकता है ताकि वह किसी भी डी एन ए अनुक्रम के लिए उपयुक्त रहे। ZFNs  की तरह ही TALE  प्रोटीनों का एक युग्म भी डी एन ए.विभाजक एण्डोन्यूक्लिएज FoKI  मंदक के साथ जुड़ कर एक TALEN  एकक निर्मित करता है जो जीन संशोधन का एक प्रभावी औजार होता है। क्योंकि प्रत्येक TALEN
17 या अधिक न्यूक्लिओटाइड आधारों से बंध बना सकता है, इसके द्वार्रा ZFNs  की तुलना में अधिक विशिष्टता प्राप्त करना आसान होता है।
CRISPRs  (क्लस्टर्ड रेम्युलरली इन्टरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट्स)
        1980 के दशक के आखिरी वर्षों में, बैक्टीरिया ई. कोली के जीनोम का अनुक्रमण करते हुए जापानी वैज्ञानिक योशिजुमिल्शिने और उनके सहयोगियों ने एक असाधारण डी एन ए अनुक्रम देखा जिसमें पांच सर्वसम किंतु पैलिंड्रोमिक डी एन ए पुनरावर्त्त अनुक्रम थे जिनमें से प्रत्येक में 29 न्यूक्लिओटाइड आधार थे। ये पुनरावर्त्त अनुक्रम, देखने में यादृच्छिक 32 आधार अनुक्रमों द्वारा, परस्पर पृथक्कृत थे, जिन्हें ‘‘स्पेसर्स‘‘ कहा गया।
पुनरावर्त्त अनुक्रमों के विपरीत प्रत्येक स्पेसर का अपना एक अनन्य आधार अनुक्रम था। बाद में अन्य वैज्ञानिकों ने अत्यंत विविध सूक्ष्मजीवों में इसी प्रकार के अनुक्रम खोजे। तथापि इन मध्यवर्ती अनुक्रमों का जीव वैज्ञानिक महत्व स्पष्ट नहीं था और इन्हें ‘‘क्लस्टर्ड रेग्युलरली इन्टरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिनड्रॉमिक रिपीट्स‘‘ अथवा CRISPRs कह कर पुकारा गया। यह भी प्रेक्षित किया गया कि CRISPR  अनुक्रम के साथ जीनों का एक संकलन संलग्नित था जिसे CRISPR  जीन अथवा Cas  जीन नाम दिया गया। ये जीन उस डी एन ए न्यूक्लिएज़ को कोडित करते हैं जो डी एन ए तंतु को काट सकता है। वैज्ञानिकों के अन्य दलों ने देखा कि स्पेसर डी एन ए वायरस जीनोम के खंडों के सदृश्य है। जानकारी के इन अलगअलग टुकड़ों को जोड़कर वैज्ञानिकों ने सुझाया कि बैक्टीरिया CRISPR-Cas तंत्र का उपयोग सभवतः आक्रमणकारी वायरसों  और प्लास्मिडों से अपनी रक्षा के लिए करते हैं। जब कोई वायरस हमला करता है तो बैक्टीरिया वायरस डी एन ए का एक टुकड़ा CRISPR  क्षेत्र में स्पेसर के रूप में सन्निविष्ट कर देता है। अगली बार जब बैक्टीरिया का सामना उस वायरस से होता है तो वे स्पेसर में मौजूद डी एन ए का उपयोग करके एक RNA  निर्मित करते है जो वायरस के डी एन ए में मौजूद उस जैसे अनुक्रम को पहचान कर उससे बंधित हो जाता है। एक Cas  प्रोटीन RNA  के साथ जुड़ कर वायरस के डी एन ए को काट देता है और इसके प्रतिकृतिकरण को रोक देता है। 2012 में, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले की जेनिफर दौडना और उनके सहकर्मियों ने (अनेक Cas  एन्जाइम में से एक) Cas9  नामक विशिष्ट एन्जाइम के साथ युग्मित एक एकल RNA  अभिकल्पित किया जो परखनलियों में मेल खाते डी एन ए अनुक्रमों की परतें उतार सकता था। अगले वर्ष MIT  के फेंक झांग तथा हार्वर्ड मेडिकल कॉलेज  के जॉर्ज चर्च ने स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट किया कि CRISPR/Cas9 का उपयोग मानव सहित सभी प्रकार की जंतु कोशिका में जीन संशोधन के लिए
किया जा सकता है। व्यवहार में  किसी जीन में सुधार हेतु CRISPR/Cas9 प्रणाली का उपयोग करने के लिए जीन में विद्यमान विशिष्ट डी एन ए अनुक्रम से मेल खाते RNA  को संश्लेषित किया जाता है और इसे Cas 9 एंज़ाइम के साथ मिला दिया जाता है। जब यह संरचना परपोषी कोशिका में सन्निहित की जाती है तो RNA  एंज़ाइम को लक्ष्यित अनुक्रम तक ले जाता है जहां Cas 9  एंज़ाइम डी एन ए के दोहरे तंतु में विभाजन करता है। और क्योंकि लक्ष्यित अनुक्रम कोई भी हो विभाजक एंज़ाइम वही इस्तेमाल किया जाता है, यह संभव है कि केवल
Cas 9  और संगत RNA  गाइडों का उपयोग करके परपोषी कोशिका में बहुजीनों को चुनौती दी जा सके।
        जीन संपादन में आगे के चरण 
डी एन ए को होने वाली कोई भी क्षति कोशिका में प्राकृतिक मरम्मत के काम को उद्दीपित कर देती है। लक्ष्यित स्थल पर दोहरे तंतु के भंजन की मरम्मत ‘नॉन होमोजीनस एण्ड जोयनिंग  NHEJ  नाम के प्रक्रम से होती है जो टूटे शिरों को जोड़ देता है। किंतु यह विधि त्रृटिपूर्ण होती है जिससे इसमें कुछ आधार  जुड़ या घट जाते हैं और जीन दुष्क्रियात्मक हो जाता है। विकल्प के रूप में जीन पर प्रहार करने के बजाय एक अन्य प्रक्रम जिसे समांग
पुनर्योजन निदर्शित (HD ) मरम्मत कहते हैं जीन मरम्मत के लिए उद्दीपित किया जा सकता है। यदि एक ‘दाता‘
डी एन ए अनुक्रम जो सही जीन अनुक्रम निरूपित करता है प्रस्तुत किया जाए तो कोशिका इसका उपयोग मूल जीन को सुधारने के लिए सांचे के रूप में कर सकती है। दूसरी ओर यदि कोई एक दम नया जीन अनुक्रम प्रस्तुत किया जाता है तो परपोषी, जीनेाम में पूर्वनिर्धारित स्थिति पर एक नया जीन निविष्ठित हो जाता है। सामान्यतः निष्क्रिय किए गए वायरसों और प्लास्मिडों का उपयोग वाहकों के रूप में जीन.संपादन औजारों को कोशिका में पहुंचाने के लिए किया जाता है। यहां तक कि कुछ अन्वेषक विद्युत कण संचलन - निम्न वोल्टता विद्युत विसर्जन - का उपयोग कोशिका झिल्ली में औजार प्रविष्ट कराने के लिए छिद्र बनाने के लिए करते हैंर्। ZFNs  एवं
TALENs  पिछले कुछ वर्षों से प्रयोग में हैं और इनकी दक्षता, सुरक्षा, संभावित साइड प्रभावों आदि की जांच के लिए व्यापक परीक्षण, सवंर्धित मानव कोशिकाओं और विभिन्न जंतु मॉडलों पर किए जाते रहे हैं। इनका अनुसरण करते हुए अनेक चिकित्सा.पूर्व परीक्षण रक्त संबंधी (जैसे सिकेल सेल अरक्तता) एवं प्रतिरक्षा तंत्र संबंधी (HIV / AIDS)रोगों के उपचार के लिए किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के अन्वेषकों ने सिकेल सेल अरक्तता ग्रस्त रोगियों की संबंधित अस्थि.मज्जा से स्टेम.कोशिकाएं लेकर उर्न्हें ZFNs  से उपचारित किया और उत्परिवर्तन को सुधारने में सफल हुए। उन्होंने मूषक.मॉडलों में यह भी प्रदर्शित किया कि संशोधित अस्थि.मज्जा स्टेम कोशिकाओं में सफल प्रतिकृतिकरण तथा सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं  को उत्पन्न करने की क्षमता होती है। अभी हाल ही में यू. के. के चिकित्सकों ने एक 1 वर्ष आयु की
लड़की के श्वेतरक्तता रोग (एक प्रकार के रक्त कैंसर) के उपशमन में सफलता प्राप्त की, इसके लिए TALENs  द्वारा संपादित प्रतिरक्षा कोशिकाओं से उसे उपचारित किया ताकि कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर नष्ट किया जा सके।
       CRISPR/Cas9 प्रणाली केवल 2013 से ही अन्वेषकों को उपलब्ध रही है। तथापि  ZENs  और
TALENs  की तुलना में यह औजार अधिक आसानी से अभियंत्रित किए जा सकने और उपयोग में लाए जा सकने के कारण इसका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। CRISPR/Cas9 का अन्य लाभ यह है कि इसका उपयोग एक से अधिक जीनों को लक्ष्यित करने के लिए किया जा सकता है जो उन रोगों के उपचार में बहुत लाभकारी है जो अनेक जीनों में उत्परिवर्तन के कारण होती हैं। MIT  के अन्वेषकों ने CRISPR/Cas9 औजार का उपयोग मूषक मॉडल में FAH  जीन (जो एंज़ाइम फ्यूमैराइलएसिटो एसिटेट हाइड्रोलेज को कोडित करता है) में उत्परिवर्तन को संशोधित करने के लिए किया। मानवों में  इस उत्परिवर्तन के परिणाम स्वरूप टायरोसिनेमिया नामक रोग हो जाता है जिसमें अतिरिक्त टायरोसिन - एक अमीनो अम्ल - शरीर में संचयित हो जाता है जिससे यकृत काम करना बंद कर देता है और मृत्यु तक हो जाती है। एडिटास मैडिसिन, जो कैम्ब्रिज मैसाचुसेट्स की जैव प्रौद्योगिकीय कंपनी है, 2017 तक उत्परिवर्तन जीन द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले रेटिना के एक दुर्लभ रोग
का उपचार CRISPR/Cas9 के उपयोग द्वारा कर पाने के प्रति आशावान है। अधिकांश मामलों में, रक्त कोशिकाओं से उभरने वाले रोगों के उपचार की रणनीति है: रक्तकोशिकाओं की पूर्ववर्ती जिन्हें हेमेटोपोइटिक स्टेम कोशिका कहा जाता है, रोगी की अस्थि.मज्जा से निकालते हैं, उनका उपचार चुने गए जीन.संपादन औजार से प्रहार करके संशोधित करके नया जीन सन्निविष्ट करके करते हैं, संवर्ध में उनकी वृद्धि  करते हैं, सफल संपादन सुनिश्चित करने के लिए जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से उनकी जांच करते हैं और फिर वापस उन्हें रोगी में (बहजीवै) इंजैक्शन द्वारा पहंुचा देते हैं। नियम यह है कि कोशिकाओं की पर्याप्त संख्या में संशोधन से रोगी को दीर्घकालिक रोगहर उपचार प्राप्त हो सकता है। यकृत जैसे अंगों में जहां से कोशिकाओं को निकाला ओर वापस पहंुचाया नहीं जा सकता जीन संपादन औजार युक्त वाहक पर्याप्त संख्या में सीधे उस अंग तक इंजेक्शन द्वारा पहुँचा दिए जाते हैं (अंतः जीवै) CRISPR/Cas9 एक कदम और आगे बढ़ रहा है - जर्म.लाइन संपादन अथवा भु्रण संपादन के माध्यम से जन्म से भी पहले जीनीय दोषों को दूर करना। उदाहरण के लिए एक चीनी अन्वेषक दल ने भ्रूण की एक.कोशिकीय अवस्था में CRISPR/Cas9 संरचना को इंजेक्शन द्वारा प्रविष्ट कराके दो जीनों का पुनर्लेखन किया और इस प्रकार जीनीय रूप से परिवर्तित वानर निर्मित किए। एक अन्य विकास क्रम में रिकंबिनेटिक्स नाम की कंपनी ने CRISPR/Cas9 प्रोद्योगिकी का उपयोग करके वृषभों के वीर्य जीनोम को संपादित किया और सींग विहीन मवेशी विकसित किए। इससे दूसरे जानवर और फार्म के कर्मचारी घावों से बच जाएंगे और पशुकल्याण होगा।
            अप्रैल 2015 में एक अन्य चीनी दल ने बीटा थैलेसीमिया नामक आनुवंशिक रुधिर रोग जो हीमोग्लोबिन का उत्पादन कम कर देता है, के लिए उत्तरदाई उत्परिवर्तित बीटा.ग्लोबिन जीन को शरण देने वाले मानव भ्रूण के संपादन प्रयासों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। अंतः जीन संपादन अब विज्ञान कथा नहीं रह गई है यह एक वास्तविकता बनने जा रही है।
एम एस एस मूर्ति --ड्रीम  2047, फरवरी 2017, खंड 19 अंक 5
(अनुवादकः रामशरण दास)

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