Monday, 3 February 2025

2025 का बजट

 2025 का बजट महंगाई,विकास दर को बढ़ाने की बात , रोजगार को बढ़ाने बाबत, वेतन में बढ़ोतरी को ठीक करने बाबत तथा आयकर में ठीक-ठाक छूट देने बारे क्या कहता है यह देखने की बात है


Health Budget 2025: वित्त मंत्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र को दी बड़ी सौगात, पूरे देश में बनेंगे 200 कैंसर सेंटर

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार (1 फरवरी) को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट 2025-26 पेश किया। वित्तमंत्री ने बजट के दौरान कृषि, उद्योग, विकास, शिक्षा सहित तमाम क्षेत्रों ने लिए बड़ी घोषणाएं की हैं। आइए जानते हैं, स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए इस बार के बजट में सरकार ने क्या एलान किया है?
बजट 2025-26 में स्वास्थ क्षेत्र के लिए एलान
 

जीवन रक्षक दवाओं से कस्टम ड्यूटी हटाई गई।

पूरे देश के जिलों में 200 कैंसर डे केयर सेंटर खोले जाएंगे।

मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा

पीएम जनआरोग्य योजना के लिए घोषणा


जीवन रक्षक दवाओं से कस्टम ड्यूटी हटाई जाएगी
 

36 जीवनरक्षक दवाओं को बेसिक कस्टम ड्यूटी से पूरी छूट देने का एलान किया गया है। 6 जीवनरक्षक दवाएं को 5 प्रतिशत अट्रैक्टिव कंसेशनल कस्टम ड्यूटी की लिस्ट में शामिल किया गया है। साथ ही 37 अन्य दवाओं और 13 मरीज सहायता कार्यक्रमों को भी बेसिक कस्टम ड्यूटी से पूरी तरह से बाहर रखा गया है। 





****/
Budget Highlights

The Gross State Domestic Product (GSDP) of Haryana for 2024-25 (at current prices) is projected to be Rs 12,16,044 crore, amounting to growth of 11% over 2023-24.

Expenditure (excluding debt repayment) in 2024-25 is estimated to be Rs 1,55,832 crore, an increase of 13% over the revised estimate for 2023-24.  In addition, the state has estimated to repay debt worth Rs 64,044 crore.  In 2023-24, As per the revised estimates, expenditure is estimated to be 7.5% lower than the budget estimate.  

Receipts (excluding borrowings) for 2024-25 are estimated to be Rs 1,22,198 crore, an increase of 14% over the revised estimate of 2023-24.  In 2023-24, receipts are estimated to be 7.3% lower than budgeted.

Revenue Deficit in 2024-25 is estimated to be Rs 17,817 crore (1.5% of GSDP).   In 2023-24, as per revised estimates, revenue deficit is estimated to be 1.2% of GSDP, lower than budgeted (1.5% of GSDP).

Fiscal deficit for 2024-25 is targeted at 2.8% of GSDP (Rs 33,635 crore).  As per the revised estimates, fiscal deficit in 2023-24 is estimated to be 2.8% of GSDP, lower than budgeted (2.96% of GSDP).

Policy Highlights

Free travel:  Families earning less than one lakh rupees annually will be entitled to 1,000 km of free travel per year on Haryana Roadways buses.  Rs 600 crore is estimated to be spent on the scheme in 2024-25.

Assistance for solar rooftop:  The state government will provide additional assistance of Rs 50,000 to households installing rooftop solar under the PM Suroydaya Yojana.  Assistance will be made available to one lakh households with monthly consumption under 200 units and annual income below Rs 1.8 lakh.

Expansion of health insurance coverage: CHIRAYU-Ayushman Bharat scheme will be expanded to include families with income of above three lakh rupees.  These families may avail benefit by paying annual contribution in the range of Rs 4,000-Rs 5,000.   

Waiver on irrigation charges: Charges levied for the use of canal water will be stopped from April 1, 2024.  This is expected to provide annual relief of Rs 54 crore to farmers across 4,299 villages.



औद्योगिक विकास, शेयर बाजार और रुपया डूब रहे हैं, और अधिकांश उपभोक्ता इतनी कम कमाई कर पा रहे हैं कि वे उन्हें सहारा न दे सकें , जिससे भारत की विकसित अर्थव्यवस्था बनने की कोशिशें बाधित हो रही हैं। एक साल पहले, भारत कोविड-19 के कारण आई मंदी से तेजी से उबर रहा था।6 days ago

भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक मंदी: कारण और उपाय

10 Jan 2020

 औद्योगिक विकास, शेयर बाजार और रुपया डूब रहे हैं, और अधिकांश उपभोक्ता इतनी कम कमाई कर पा रहे हैं कि वे उन्हें सहारा न दे सकें , जिससे भारत की विकसित अर्थव्यवस्था बनने की कोशिशें बाधित हो रही हैं। एक साल पहले, भारत कोविड-19 के कारण आई मंदी से तेजी से उबर रहा था।6 days ago

सामान्य अध्ययन-III

वृद्धि एवं विकास

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में NSO द्वारा जारी हालिया GDP आँकड़ों और आर्थिक मंदी के कारणों तथा उपाय पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने चालू वित्त वर्ष (2019-20) के लिये देश की अर्थव्यवस्था संबंधी आँकड़ों का पहला अग्रिम अनुमान (FAE) जारी किया है। आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) घटकर 5 प्रतिशत पर पहुँच सकता है। ज्ञातव्य है कि पिछले वित्त वर्ष (2018-19) में भारत की GDP वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत थी। यदि चालू वित्त वर्ष में GDP की विकास दर 5 प्रतिशत ही रहती है तो यह बीते 11 वर्षों की सबसे न्यूनतम विकास दर होगी। आर्थिक संकेतकों की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अनुमानित दर में ज़्यादा फेर-बदल संभव नहीं है। ऐसे में यह प्रश्न भी उठने लगा है कि क्या भारत एक व्यापक मंदी की कगार पर है?

दूसरी तिमाही में भी निराशाजनक थे आँकड़े

बीते वर्ष नवंबर माह में NSO द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (Q2) में देश की GDP वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत पर पहुँच गई थी, जो कि बीती 26 तिमाहियों का सबसे निचला स्तर था।

चालू वित्त वर्ष (2019-20) की दूसरी तिमाही में देश की GDP का कुल मूल्य लगभग 35.99 लाख करोड़ रुपए था, जो कि इसी वर्ष की पहली तिमाही (Q1) में 34.43 लाख करोड़ रुपए था।

दूसरी तिमाही के निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) में भी कमी देखी गई है। जहाँ एक ओर पिछले वित्तीय वर्ष (2018-19) की दूसरी तिमाही में PFCE 9.8 प्रतिशत था, वहीं चालू वर्ष की दूसरी तिमाही में गिरकर यह 5.1 प्रतिशत पर जा पहुँचा था।

दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन सबसे खराब रहा और वह पिछले दो वर्षों के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। आँकड़ों के अनुसार, Q2 में विनिर्माण क्षेत्र ने (-) 1 प्रतिशत की दर से वृद्धि की थी, वहीं पिछले वर्ष (2018-19) की दूसरी तिमाही (Q2) में यह दर 6.9 प्रतिशत थी।

चालू वित्त वर्ष के अनुमानित आँकड़े

वित्त वर्ष 2019-20 में स्थिर मूल्‍यों (आधार वर्ष 2011-12) पर GDP 147.79 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में यह 140.78 लाख करोड़ रुपए था। इस प्रकार चालू वित्त वर्ष में GDP वृद्धि दर 5 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

वित्त वर्ष 2019-20 में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 2.0 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि यह वित्त वर्ष 2018-19 में 6.9 प्रतिशत थी।

वित्त वर्ष 2019-20 में निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत अनुमानित की गई है, जबकि यह वित्त वर्ष 2018-19 में 8.7 प्रतिशत थी।

चालू वित्त वर्ष में ‘कृषि, वानिकी एवं मत्‍स्‍य पालन’ क्षेत्र की वृद्धि दर 2.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि यह बीते वित्त वर्ष 2.9 प्रतिशत थी।

चालू वित्त वर्ष के दौरान स्थिर मूल्‍यों पर प्रति व्‍यक्ति आय बढ़कर 96,563 रुपए हो जाने का अनुमान लगाया गया है, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में यह आँकड़ा 92,565 रुपए था। इस प्रकार वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान प्रति व्‍यक्ति आय में वृद्धि दर 4.3 प्रतिशत रह सकती है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह वृद्धि दर 5.6 प्रतिशत थी।

क्या हैं कारण?

भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति के लिये कुछ चक्रीय कारकों के साथ संरचनात्मक मांग की समस्या को भी ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।

आय स्थिर होने के बावजूद निजी उपभोग, जो कि विकास का सबसे बड़ा चालक है, को बीते कुछ वर्षों में कम बचत, आसान ऋण और सातवें वेतन आयोग जैसे कुछ माध्यमों से वित्तपोषित किया जा रहा है, किंतु यह लंबे समय तक कारगर साबित नहीं हो सकता है।

वित्त वर्ष 2018-19 में घरेलू बचत दर GDP के 17.2 प्रतिशत तक गिर गई है, जो वित्त वर्ष 2013-14 में 22.5 प्रतिशत थी।

हाल ही में सामने आए NBFC संकट से देश का क्रेडिट सिस्टम काफी प्रभावित हुआ है, जिससे उसके ऋण देने की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है।

देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर किसानों की स्थिर आय की समस्या से जूझ रही है। आँकड़ों के मुताबिक, बीते पाँच वर्षों में ग्रामीण मज़दूरी वृद्धि दर औसतन 4.5 प्रतिशत रही है, किंतु मुद्रास्फीति के समायोजन से यह मात्र 0.6 प्रतिशत रह जाती है।

आर्थिक विकास के प्रमुख चालक यह स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि निकट भविष्य में तेज़ी से विकास करने की गुंजाइश काफी सीमित है।

निजी उपभोग में कमी एक संरचनात्मक विषय है, जो कि निम्न घरेलू आय वृद्धि से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है और निम्न घरेलू आय कम रोज़गार सृजन एवं स्थिर आय जैसी बुनियादी समस्याओं से संबंधित है। इनमें से किसी भी समस्या को अल्पकाल में संबोधित करना थोड़ा मुश्किल है।

आँकड़ों को देखते हुए निजी निवेश के तेज़ी से बढ़ने की भी कोई संभावना नहीं है। NSO द्वारा जारी Q2 से संबंधित आँकड़ों के अनुसार, निजी निवेश पिछली 29 तिमाहियों के सबसे निचले स्तर पर आ पहुँचा था।

इसके अलावा सार्वजनिक निवेश, जो कि पिछले कई वर्षों से आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था, भी तनाव में है।

आयकर कटौती नहीं है उपाय

अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति से निपटने के लिये आयकर में कटौती को एक उपाय के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि कई विश्लेषकों का मानना है कि आयकर में कटौती अर्थव्यवस्था की माली स्थिति को सुधारने के लिये एक अच्छा विकल्प नहीं है।

इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में आयकरदाताओं की संख्या काफी कम है और जो लोग आयकर देते हैं उन्हें आयकर में मामूली कटौती का कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इस प्रकार यदि आयकर में कटौती को एक उपाय के रूप में अपनाया जाता है तो इसका फायदा काफी सीमित लोगों तक पहुँचेगा।

आयकर में कटौती के स्थान पर ग्रामीण क्षेत्र के अधिक-से-अधिक वित्तपोषण को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर और रोज़गार (जैसे- मनरेगा और पीएम-किसान) आदि में निवेश करने से इस क्षेत्र को मंदी के प्रभाव से उभरने में काफी मदद मिलेगी।

आगे की राह

अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये देश के वित्तीय क्षेत्र मुख्यतः NBFC में सुधार किया जाना आवश्यक है। सार्वजनिक क्षेत्रों के स्वास्थ्य में सुधार के काफी प्रयास किये जा रहे हैं, परंतु MSMEs जैसे कुछ विशेष क्षेत्रों के लिये NBFCs से ऋण के प्रवाह की ज़रूरत है।

गत कुछ वर्षों में किये गए आर्थिक सुधारों ने देश के शीर्ष कुछ लोगों की ही क्षमता निर्माण का कार्य किया है, परंतु आवश्यक है कि आने वाले सुधारों से समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को भी लाभ मिल सके।

इसके अलावा देश में बुनियादी ढाँचे के अंतर को देखते हुए यह आवश्यक है कि बुनियादी ढाँचे के निर्माण में निजी क्षेत्र की भूमिका को और अधिक बढ़ाया जाए।

प्रश्न: क्या भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति में आयकर कटौती एक उपाय हो सकता है?

 



 

Drishti Learning App - Learn Smar

Copyright © 2018-2025 Drishti The Vision Foundation, India. All rights reserved


 

No comments: