Sunday, 1 January 2023

कोविड की वापसी या इसकी राजनीति की

 वापसी कोविड के खतरे की हुई है या

उसके राजनीतिक इस्तेमाल की ?
आपकी राय???
0 राजेंद्र शर्मा
क्या भारत में कोविड की वापसी हो गयी है? इस सवाल का जवाब तो बिना किसी अगर-मगर के देना  अभी मुश्किल होगा, पर एक बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है-भारत में कोविड की राजनीति या कोविड के राजनीतिक इस्तेमाल की वापसी हो गयी है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के पूर्वाद्र्ध के छोर पर राजधानी दिल्ली में प्रवेश करने से पहले ही जिस तरह से यकायक नरेंद्र मोदी की सरकार ने कोविड के खतरे की चिंता का प्रदर्शन शुरू कर दिया; जैसे धड़ाधड़ राज्यों के उच्चाधिकारियों के साथ बैठकें करने से लेकर, एडवाइजरियां जारी करने तक के कदम उठाए गए; जैसे संसद के एक बार फिर समय से पहले ही खत्म कर दिए गए सत्र के आखिरी दो दिनों में, एक दिन मं़ित्रगण बिना मास्क के और दूसरे दिन मास्क से सज्जित नजर आए; उससे सरकार समर्थकों को छोडक़र आम लोगों के बीच इसका खास भरोसा नहीं पैदा हुआ है कि यह सारी कवायद वाकई, कोविड-19 के एक और धावे से देश को बचाने के लिए ही है, न कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को लेकर लोगों के मन में आशंकाएं पैदा करने के लिए।
हैरानी की बात नहीं है कि कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, मनसुख मंडाविया की राजस्थान के मुख्यमं़त्री गहलोत तथा राहुल गंाधी को इस या़त्रा के सिलसिले में लिखी गयी इस आशय की एक प्रकार से मीडिया के माध्यम से भेजी गयी चि_ी को नामंजूर कर दिया है कि कोरोना के खतरे को देखते, या तो यात्रा में कोरोना प्रोटोकॉलों का पालन सुनिश्चित करें या फिर देश के हित में या़़त्रा को ही रोक दें! कांग्रेस का स्पष्ट रूप से यही कहना था कि सरकार, उनकी यात्रा के असर से घबराकर, उसे रुकवाने के लिए ही इस समय कोरोना के खतरे का हौवा खड़ा कर रही थी। वैसे इस सिलसिले में एक और नोट करने वाला दिलचस्प तथ्य यह भी है कि कोविड के संभावित खतरे की गंभीरता साबित करने के लिए, केंद्र सरकार द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र के छोर पर उठाए गए कदमों को देखते, भाजपा की राजस्थान इकाई ने अपने चुनाव अभियान के हिस्से के तौर पर प्रस्तावित ‘जनाक्रोष यात्रा’ कार्यक्रम को स्थगित करने का एलान भी कर दिया था, लेकिन चंद घंटों में ही इस स्थगन के ही वापस लिए जाने का एलान आ गया! जाहिर है कि भाजपा, चुनाव प्रचार का कोई भी मौका तब तो हर्गिज नहीं छोडऩे वाली है, जब मुख्य विपक्षी पार्टी अपनी कोई गतिविधि जारी रखे रहे, भले ही उस गतिविधि का संबंध सीधे किसी चुनाव या चुनावी राजनीति से नहीं हो।
पर कोविड संबंधी कदमों तथा पाबंदियों का अपने फौरी राजनीतिक नफा-नुकसान के हिसाब से उपयोग करने का वर्तमान सत्ताधारी पार्टी का पिछले करीब तीन साल का जो रिकार्ड रहा है, उसे देखते हुए कोविड की नयी लहर के खतरे को लेकर उसकी गंभीरता पर संदेह होना स्वाभाविक है। यहां यह याद दिला दें कि 2020 के आरंभ में भारत में कोविड-19 की पहली लहर के आरंभ में, पहले दिल्ली के विधानसभाई चुनावों में धुंआधार चुनाव प्रचार और उसके बाद, फरवरी के मध्य में गुजरात में ‘नमस्ते ट्रम्प’ प्रचार के बाद, मोदी सरकार ने लॉकडाउन समेत प्रमुख पाबंदियों के कदम मार्च के तीसरे हफ्ते के बाद, यह सुनिश्चित करने के बाद ही उठाए थे कि मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर दलबदल के जरिए, कांग्रेस की सरकार गिराने के बाद, दलबदलुओं को संतुष्ट करने वाले फार्मूले के साथ, वहां भाजपा की सरकार का शपथग्रहण कार्यक्रम जो जाए।
इसी प्रकार, 2021 के पूर्वाद्र्ध में, कोरोना की दूसरी भयंकर लहर के बीच, खासतौर प0 बंगाल में चले सबसे लंबे चुनाव में, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने, अपनी रैलियों में कोरोना की रत्तीभर परवाह नहीं की थी और पहले वाम मोर्चा व कांग्रेस और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस द्वारा बड़ी चुनावी सभाएं न करने की घोषणा किए जाने के बाद, आखिरी चरणों में ही कहीं जाकर प्रधानमंत्री की सभाएं भी न करने का एलान किया गया था। और यह सब कोरोना के लिए सहायता के ज्यादा से ज्यादा स्रोत तथा नीतिगत व टीकाकरण आदि के निर्णय केंद्र सरकार द्वारा अपने हाथों में ही केंद्रित करने के जरिए, सारा श्रेय खुद लेने तथा सारी कमजोरियों का दोष विशेष रूप से विपक्षी सरकारों पर डालने के मोदी सरकार के आम खेल के अतिरिक्त था। इस सब को देखते हुए, यह आशंका होना अस्वाभाविक नहीं था कि ऐन क्रिसमस-नव वर्ष की पूर्व-संध्या में कोविड की वापसी का हल्ला, वास्तव में राजनीतिक खेल ही ज्याद लगता है।
फिर भी इन संदेहों के पीछे सिर्फ  भाजपा के राजनीतिक खेल का आशंका ही नहीं है। इसका संबंध, कोरोना की नयी और संभावित रूप से बहुत भयावह लहर के आ रहे होने की अफवाहों के विपरीत, अब तक सामने आये तथ्यों और उनके आधार पर महामारी विशेषज्ञों द्वारा अब तक लगाए गए कच्चे मोटे-मोटे अनुमानों से भी है। वैसे यहां इसका जिक्र करना भी अप्रासांगिक नहीं होगा कि कोविड की नयी भयावह लहर के अनुमानों के पीछे, सिर्फ  मोदी राज के राजनीतिक स्वार्थों का ही नहीं, पश्चिमी शक्तियों तथा उनके प्रचार माध्यमों का खेल भी नजर आता है। दरअस्ल, भारत में नयी जबर्दस्त कोविड लहर के खतरे का प्रचार, दिसंबर के मध्य तक खूब जोर पकड़ चुके पश्चिमी मीडिया के इसके अतिरंजित प्रचार से सीधे जुड़ा हुआ है कि चीन मेें, कोरोना के विस्फोट से हालात बेकाबू हो चुके हैं। दिलचस्प है कि वही पश्चिमी प्रचार माध्यम इससे चंद रोज पहले तक, चीन की कोविड रोक-थाम की पाबंदियों को अतिवादी, दमनकारी, तानाशाहीपूर्ण आदि, आदि बताकर, इन पाबंदियों के खिलाफ  जहां-तहां हुए विरोध प्रदर्शनों का चीन की समाजवादी व्यवस्था के खिलाफ  प्रचार के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।
इसी बीच भारत-चीन के बीच सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुई अपेक्षाकृत मामूली झड़प के संबंध में विशेष रूप से संसद में जवाबदेही से मोदी सरकार को बचाने के लिए, कोविड के खतरे का तो इस्तेमाल किया ही गया, इसके साथ ही चीन में कोरोना के विस्फोट के अतिरंजित आख्यानों ने, चीन-विरोधीभावनाओं के प्रदर्शन के लिए एक वैकल्पिक मोर्चे का भी काम किया। हैरानी नहीं कि इसने सिर्फ चीन में कोरोना के वर्तमान विस्प ोट की घातकता को बढ़ाकर चित्रित करने का ही काम नहीं किया है, खुद भारत के लिए इसके खतरे को बढ़ाकर दिखाने का भी काम किया है।
लेकिन, सचाई यह है कि चीन की वास्तविक स्थिति की बात अगर हम फिलहाल छोड़ भी दें तो, क्योंकि पश्चिमी मीडिया के प्रचार के सामने, चीन द्वारा आधिकारिक रूप से दी जाने वाली जानकारियों को बहुत विश्वास के साथ आधार बनाना मुश्किल है और पश्चिमी मीडिया की खबरों पर भी ज्यों का त्यों विश्वास करना संभव नहीं है, भारत में कम से कम फिलहाल कोविड की किसी भयंकर लहर के आसार नहीं हैं। संक्षेप में इसके कारण तीन हैं। पहला यह कि चीन, जापान तथा अन्य पूर्वी देशों में कोविड वाइरस का जो वैरिएंट इस समय अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है, वह कोरोना का कोई नया वैरिएंट नहीं है बल्कि अब चल रहे वैरिएंट का ही कुछ और परिवर्तित उपरूप है। इसका अर्थ यह है कि 2021 में आयी भयंकर डेल्टा लहर जैसी किसी लहर के दुहराए जाने की कम से कम अब तक कोई वजह नहीं है।
दूसरे, भारत में और वास्तव मेें चीन में भी, बड़े पैमाने पर आबादी का टीकाकरण दो-खुराकों के साथ हो चुका है और यह टीकाकरण, जैसाकि हमने पिछली लहर में देखा था, वाइरस के संक्रमण से उतना बचाव मुहैया नहीं कराता है, जितना बचाव संक्रमण से गंभीर रूप से रोगग्रसित होने से मुहैया कराता है। चीन के कोविड के टीकों के प्रभावीपन के संबंध में मीडिया में आयीं अनेक अधकचरी टिप्पणियों में अगर सचाई का जरा सा अंश मान भी लिया जाए तब भी, भारत में हुए बड़े पैमाने पर टीकाकरण से, जो प्रमुखत: ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के टीके, कोवीशील्ड पर पर आधारित रहा है, हमारा देश कोविड की किसी नयी घातक लहर की तबाही से और भी सुरक्षित है।
  तीसरे, और यहीं चीन की स्थिति भारत से काफी भिन्न है, पिछली लहर के दौरान भारत में, आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा, कुछ अनुमानों के अनुसार 80 फीसद तक या उससे भी ज्यादा, इस संक्रमण के असर में आने के चलते, इस वाइरस के प्रति प्राकृतिक रोग प्रतिरोधकता विकसित कर चुका है। चीन में चूंकि पिछली डेल्टा वैरिएंट की लहर के दौरान सफलता के साथ आबादी को संक्रमण से बचाया जा सका था, यह प्राकृतिक प्रतिरोधकता वहां आबादी के अपेक्षाकृत कम हिस्से को ही हासिल हुई है और इसलिए मौजूदा लहर में चीन ही नहीं जापान आदि में भी, भारत के मुकाबले बहुत बड़ी संख्या में लोग इस बार की लहर में संक्रमित हो रहे हैं। और जाहिर है कि इस लहर में अस्पताल में भर्ती होने वालों और यहां तक मौतों की संख्या भी, चीन के रिकार्ड के लिहाज से कहीं ज्यादा है। लेकिन, भारत में और चीन में भी, कोविड की नयी लहर की भीषण तबाही की, आशंकाएं कम से कम अब तक के लक्षणों के हिसाब से निराधार हैं।
फिर भी, महामारी के वाइरस के मामले में जोखिम नहीं लिया जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह कि वाइरस जब तक बना हुआ है, उसके किसी नये वैरिएंट के आने और तबाही मचाने की संभावना हमेशा ही रहेगी। इसीलिए, टीकाकरण तथा टीकों के बूस्टर के अलावा भीड़-भाड़ की जगहों पर मास्क या अन्य रोगों से पहले ही पीडि़त लोगों के लिए अतिरिक्त बचाव जैसे न्यूनतम बचाव उपाय हमेशा जरूरी हैं। लेकिन, न्यूनतम बचाव उपाय ही, न कि लॉकडाउन जैसे अधिकतम बचाव के उपाय। और सत्ताधारियों के राजनीतिक फायदे के लिए ऐसे राजनीतिक बचाव उपायों की तो हर्गिज जरूरत नहीं है।                 0
देशबंधु अखबार से साभार

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