Monday 13 May 2019

हरयाणा में स्वास्थय सेवाओं की खस्ता हालत


अमर उजाला

हरियाणा के अस्पतालां का हाल देख ल्यो सरकार, 10 हजार पर एक डॉक्टर

हरियाणा में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं दयनीय हालत में हैं। अगर मुख्यमंत्री साहब इस रिपोर्ट को पढ़ लेंगे तो यकीं नहीं कर पाएंगे कि ऐसा है। प्रदेश में जहां एक मंत्री का दांत ठीक करने 12 सरकारी डाक्टरों की टीम जुट जाती है, वहां आम आदमी के लिए डाक्टरों की इतनी कमी है कि प्रसव के मामले भी ठीक से अटेंड न कर लौटा दिए जाते हैं और ऑटो में डिलीवरी हो जाती है। आंकड़ों की बात करें तो हरियाणा में प्रति दस हजार लोगों पर केवल एक सरकारी डाक्टर ही उपलब्ध है।
हालांकि प्राइवेट डाक्टरों के दम पर सरकार हर 1700 की आबादी पर एक डाक्टर होने का दावा करती है। फिर भी यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक प्रति हजार एक डाक्टर के लक्ष्य से काफी कम है। जिलों में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत कितनी बदतर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिलों में डाक्टरों के 50 से लेकर 135 तक पद खाली पड़े हैं।

2500 डाक्टर कार्यरत
हरियाणा सिविल मेडिकल सर्विस संगठन का दावा है कि प्रदेश में काफी पहले डॉक्टरों के 3250 पद स्वीकृत किए गए थे। अब आबादी ढाई करोड़ से ज्यादा है। लेकिन डाक्टरों के नए पद सृजित करना तो दूर, ये मंजूरशुदा पद भी पूरे नहीं भरे जा रहेे। फिलहाल 2500 के करीब डाक्टर ही कार्यरत हैं। इनमें मेडिकल अफसर और सीनियर मेडिकल अफसर भी शामिल हैं। इसके अलावा कई डाक्टर लंबे समय से एजुकेशन लीव पर हैं तो कुछ अन्य कारणों से अनुपस्थित रहते हैं। अमर उजाला की टीम के 79 सदस्यों ने पिछले दिनों 17 जिलों के सरकारी अस्पतालों का जायजा लिया तो पाया कि रोज औसतन 120 डाक्टर ओपीडी में समय पर नहीं पहुंचते या अनुपस्थित रहते हैं।

प्राइवेट प्रैक्टिस में मोटी कमाई

नए डाक्टर सरकारी सेवा में आने में बहुत कम रुचि दिखा रहे हैं। गुड़गांव फोर्टिस से जुड़े आद्या प्रकरण से यह साबित हुआ है कि प्राइवेट प्रैक्टिस में मोटी कमाई की जा सकती है। यही वजह है कि अनुभवी डाक्टरों में सरकारी सेवा में आने की इच्छा कम हो रही है।

हाल ही में फतेहाबाद में 29 डाक्टरों के ज्वाइन करने की सूची जारी हुई थी, लेकिन अभी तक सिर्फ 10 ने ही ज्वाइन किया है। फिर बड़े प्राइवेट अस्पतालों की तुलना में सरकारी वेतन भी कम मिलता है। एक मेडिकल अफसर (एमओ) को नई ज्वाइनिंग पर मासिक 70 से 80 हजार रुपये ही मिलते हैं। वहीं बड़े प्राइवेट अस्पताल में डेढ़ से दो लाख मासिक के पैकेज के साथ शुरुआत होती है।
 
सेवा शर्तें लगती हैं कठिन
सरकारी सेवा में नई ज्वाइनिंग के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने की अनिवार्यता है। प्रमोशन पॉलिसी भी सही नहीं है। इन्हीं डाक्टरों की सरकारी योजनाओं को देखने की भी ड्यूटी लगती है। उन्हें कई तरह के क्लेरिकल काम करने पड़ते हैं। इसके अलावा वीवीआईपी ड्यूटी, पोस्टमार्टम ड्यूटी और आपातकालीन विभाग को चलाने की भी जिम्मेदारी रहती है। कई जिलों में तो जेल में बंद कैदियों के उपचार का जिम्मा भी स्वास्थ्य विभाग के पास ही होता है।

एक उदाहरण से समझें - बहुत कुछ समझ आएगा

पानीपत में नौ डाक्टर ऐसे हैं, जो वर्षों से गैर हाजिर चल रहे हैं। कोई एजुकेशन लीव पर है, किसी ने अपना अस्पताल बना लिया है तो कोई विदेश या दूसरे संस्थानों में जाकर नौकरी कर रहा है। मगर उनका रिकॉर्ड भी स्वास्थ्य विभाग में दर्ज हो रहा है।

एमएस डॉक्टर आलोक जैन के अनुसार डॉ. रमेेंदर सिंह जुलाई 2004, डॉ. जतेंद्र कौर जून 2006, डॉ. तरुण नारंग जुलाई 2013, डॉ. सुमित सिंघल अक्टूूबर 2013, डॉ. नीति प्रवेश मई 2014, डॉ. विशाल राजन शर्मा जनवरी 2015, डॉ. दिव्या सारासवर जनवरी 2015 और डॉ. सुनैना पिछले एक साल से लगातार गैर हाजिर चल रही हैं। एमएस की ओर से विभाग को इनके संबंध में सूचना दी जाती है। कार्रवाई का अधिकार एमएस के पास नहीं है। कार्रवाई डायरेक्टर हेल्थ को ही करनी होती है।

जब हरियाणा बना तो उस समय की आबादी को देखते हुए डॉक्टरों के 3250 पद स्वीकृत किए गए थे। यह संख्या आज भी पूरी नहीं हो पाई है। जबकि पंजाब में छह हजार के करीब डॉक्टर काम कर रहे हैं और हरियाणा में 2500 से 2600 डॉक्टर ही हैं। नए डॉक्टर एचसीएमएस को ज्वाइन ही नहीं करना चाहते। क्योंकि यहां पीजी सीट के लिए आरक्षित कोटा भी अब नहीं है।
- डॉ. जसबीर परमार, राज्य प्रधान, हरियाणा सिविल मेडिकल सर्विस, स्वास्थ्य विभाग

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