Thursday 16 May 2019

दबाव असंयति

दबाव असंयति -
अनैच्छिक मूत्रह्नास की लज्जाजनक स्थिति
डॉ. यतीश अग्रवाल
मूत्र असंयति - मूत्राशय का नियंत्रण खो बैठना -
एक आम किस्म की लज्जाजनक स्थिति पैदा करने वाली समस्या है। इस स्थिति की उग्रता कई स्तरों की हो सकती है - कभी.कभार खांसने, छींकने पर पेशाब हो जाने से लेकर मूत्रविसर्जन की प्रबल ज़रूरत का इतना आकस्मिक और तीव्र हो जाना कि मूत्र स्वतः ही शौचालय तक पहुंचने से पहले ही निकल जाए।
यह मर्ज़ कई प्रकार का हो सकता है, जिसमें सबसे आम है - दबाव असंयति। दबाव मूत्र असंयति,
कुछेक शारीरिक गतिविधियों के दौरान, जैसे कि खांसने, छींकने, दौड़ते समय या भारी वस्तु उठाते
समय मूत्राशय पर दबाव पड़ने के कारण होनी संभव है। हालांकि, इस प्रकार की समस्या को ‘स्ट्रेस
इन्कॉन्टिनेंस’ कहा जाता है किंतु इसका मनोवैज्ञानिक तनाव से किसी तरह का संबंध नहीं है।
दबाव असंयति अत्यावश्यकता से उत्प्रेरित मूत्र असंयति से पृथक है। अत्यावश्यकता उत्प्रेरित असंयति, मूत्राशय में पेशाब करने की उत्कट इच्छा के कारण होने वाले संकुचन से होती है। दबाव के कारण होने
वाली असंयति पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक देखी गई है। दबाव के कारण होने वाली इस समस्या के कारण व्यक्ति शर्मिंदगी महसूस करता है, बेचैन रहता है, समूह से अलग.थलग रहना चाहता है, बाहरी काम और
लोगों से मिलने.जुलने से कतराता है - खासतौर पर व्यायाम से और लंबी अवधि तक चलने वाली मनोरंजक गतिविधियों से। उपचार द्वारा इस परेशानी से राहत मिलनी संभव है और व्यक्ति के जीवन में हर तरह की खुशहाली लाना भी।
दबाव जनित मूत्र असंयति के कारण क्या हैं?
दबाव जनित मूत्र असंयति की परेशानी तब होने लगती है जब श्रोणि प्रदेश की पेशियां - वे पेशियां एवं ऊतक जिनसे मूत्राशय को संबल मिलता है; और साथ ही मूत्र अवरोधनी, या वे पेशियां जिनसे मूत्र विसर्जन का नियमन होता है - कमज़ोर पड़ जाती हैं।
मूत्र एकत्रित हो जाने पर मूत्राशय प्रसारित हो जाता है। सामान्यतः मूत्रमार्ग - छोटी सी नलिका जो मूत्र निकास का काम करती है - की वॉल्व जैसी पेशियां मूत्राशय के प्रसारित होने पर बंद रहती हैं ताकि शौचालय जाने तक मूत्र निकास न हो पाए, किंतु जब यही पेशियां दुर्बल पड़ जाती हैं तब किसी भी ऐसी चेष्टा से जिससे उदर या श्रोणि प्रदेश की पेशियों पर दबाव पड़ता है, मूत्र असंयति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी शारीरिक चेष्टाएं हैं - छींक आना, झुकना, भारी चीजें उठाना, जोरों से हंसना आदि। कुछ अन्य बातें भी हैं जो श्रोणिप्रदेश की पेशियों
तथा मूत्र अवरोधिनी की संवहन क्षमता के विरुद्ध जाती हैं और उन्हें दुर्बल कर देती हैं, वे हैंः -
*बार.बार गर्भधारण करना
*कई महिलाओं में, प्रसव के दौरान स्नायु अथवा ऊतक क्षति के कारण भी श्रोणिप्रदेश की पेशियां या मूत्र पथ
अवरोधिनी (स्फिंक्टर) दुर्बल पड़ जाती हैं। इस क्षति के कारण होने वाली दबाव असंयति या तो प्रसव के
तुरंत बाद आरंभ हो जाती है अथवा वर्षों बाद भी उभर सकती है।
*वे महिलाएं इस कष्ट का शिकार अधिक बनती हैं जो कम अंतराल पर बार.बार गर्भधारण करती हैं,
खासतौर पर वे महिलाएं जो प्रसव के तुरंत बाद कामकाज की शारीरिक गतिविधियों में जुट जाती हैं।
प्रोस्टेट सर्जरी
पुरुषों में मूत्र असंयति का सर्वाधिक आम कारण है - ऑपरेशन द्वारा प्रोस्टेट ग्लैण्ड हटा दिया जाना या
प्रोस्टेट के किसी विकार के उपचार हेतु ‘प्रोस्टेटेक्टॅमी’ किया जाना। मूत्र अवरोधिनी (स्फिंक्टर) ठीक पुरस्थ
(प्रोस्टेट) ग्रंथि के नीचे अवस्थित होती है और मूत्रमार्ग को घेरे रहती है - इस कारण ‘प्रोस्टेटेक्टॅमी’ करवाने
के बाद मूत्रपथ अवरोधिनी दुर्बल पड़ जाती है।
दोषी कारकः
कई अन्य ऐसे कारक हैं जिनसे दबाव मूत्र असंयति की शुरुआत हो जाती है या फिर उसमें अधिक विकार आ जाता है, उनमें सम्मिलित हैं -
आयु
हालांकि दबाव मूत्र असंयति का आयुवृद्धि के साथ सीधा जुड़ाव नहीं है किंतु आयु बढ़ने के साथ कुछ शारीरिक बदलाव भी होते हैं, जैसे कि हार्मोन परिवर्तन एवं पेशी दौर्बल्य जिनसे स्त्रियां दबाव मूत्र असंयति का शिकार बन सकती हैं। हालांकि कभी.कभार होने वाली दबाव मूत्र असंयति किसी भी आयु की महिला में होना संभव है।
प्रसव का नैरंतर्य
स्त्रियों में बार.बार सामान्य प्रसव भी कालांतर में होने वाली दबाव मूत्र असंयति की दर में बढ़ोतरी के लिए काफी हद तक जिम्मेदार कहा जा सकता है। कई महिलाएं ऐसी भी होती हैं जिन्हें ‘फॉरसेप्स’ प्रसव कराया जाता है
और वे स्वस्थ शिशु को जन्म भी देती हैं किंतु कालांतर में यही कृत्रिम साधनों से कराया गया प्रसव दबाव मूत्र असंयति का कारण बन जाता है।
मोटापा
अधिक वज़न वाले या मोटे लोगों में भी दबाव मूत्र असंयति होने की काफी आशंका बनी रहती है। वज़न
अधिक होने से भी उदर एवं श्रोणिप्रदेश के अवयवों पर ज़ोर पड़ता है तथा परिणामस्वरूप खांसी या अन्य
किसी चेष्टा का अतिरिक्त दबाव न होने पर भी, मूत्राशय पर दबाव बना रह सकता है। वज़न कम कर
लेने पर समस्या से निज़ात मिलना संभव है।
पूर्व में की गई श्रोणिप्रदेश की सर्जरी
स्त्रियों में हिस्टेरेक्टमी (गर्भाशय हटाना) तथा पुरुषों में ऑपरेशन द्वारा पुरस्थ ग्रंथि हटा देने के बाद, मूत्राशय एवं मूत्रमार्ग को संबल प्रदान करने वाले अवयवों में बदलाव आ जाता है और दबाव मूत्र असंयति होने की आशंका काफी हद तक बढ़ जाती है। ऐसा सर्जरी के तुरंत बाद भी हो सकता है और कुछ समय बीत जाने पर भी।
अन्य रोग
कुछेक बीमारियों में, व्यक्ति की खांसी या छींकें बिगड़ जाने पर व्यक्ति के लिए दबाव मूत्र असंयति का जोख़िम बढ़ जाता है। धूम्रपान करना भी वही काम करता है क्योंकि ऐसा करने पर भी व्यक्ति को बार.बार खांसी उठ आती है।
रोगलक्षणों की पहचान
दबाव मूत्र असंयति होने पर निम्न स्थितियों में असंयत पेशाब निकल जाने पर, व्यक्ति के रोग का संज्ञान संभव हैः
* खांसी उठना
* छींक आना
* हंसना
* बैठी मुद्रा से उठना
* भारी वस्तु उठाना
* किसी वाहन से उतरना
* व्यायाम के बाद
* यौन संसर्ग के पश्चात
ऐसा नहीं है कि उपर्युक्त गतिविधियों के दौरान हर बार स्वतः मूत्र निकल जाता हो लेकिन किसी भी प्रकार की दबावयुक्त गतिविधि से मूत्र असंयति की आशंका बढ़ जाती है, खासतौर पर तब जब इस दौरान मूत्राशय पूरी तरह मूत्र से भर गया हो।
जटिलताएं
सबसे बड़ी वह व्यक्तिगत तकलीफ है जिसका सामना ऐसे रोगी को करना पड़ता है। ऐसी समस्या होने पर व्यक्ति के लिए सामान्य काम.काज निभाना मुश्किल हो जाता है, मन में घुटन होती है और शर्मिंदगी उठानी पड़ती है सो अलग। काम.काज में, सामाजिक गतिविधियों में, व्यक्तिगत संबंधों में और यहां तक कि यौन संबंधों में भी दिक्कत आने लगती है। कई लोगों को इस बात में शर्मिंदगी महसूस होती है कि उन्हें पैड इस्तेमाल करने या डायपर पहनने पड़ते हैं। ऐसा होने पर, त्वचा में विक्षोभ या खुजली भी हो जाती है क्योंकि लगातार मूत्र के संपर्क में रहने से त्वचा छिल जाती है। सावधानी न रखने - जैसे कि नमी सोखने के साधनों या पैड का इस्तेमाल न करने - पर त्वचा की यह तकलीफ अधिक उग्र हो जाती है।
चिकित्सक से कब मिलें?
मूत्र असंयति से दैनंदिन काम.काज में बाधा पहुंचने पर चिकित्सक से मिलने में देर न करें। व्यक्ति को किसी मूत्र विशेषज्ञ (यूरोलॉजिस्ट) से परामर्श लेने का सुझाव दिया जा सकता है जो स्त्री व पुरुषों दोनों के मूत्र संबंधी विकारों
का उपचार करता है अथवा किसी स्त्रियों के मूत्र संबंधी रोगों के विशेषज्ञ (यूरोगायनेकोलॉजिस्ट) चिकित्सक के पास भेजा जाता है। चिकित्सक से मिलने से पूर्व अपने रोगलक्षणों की एक सूची तैयार कर लें।
सभी रोगलक्षण लिखें - सामान्य एवं असंयत रूप से मूत्र निकलने के दौरान होने वाले। डॉक्टर को सही.सही बताएंः कितनी बार मूत्र असंयति होती है; क्या कुछ बूंदें ही निकलती हैं या फिर कपड़े ख़राब हो जाते हैं? क्या ऐसा भी होता है कि पहले से पता लग जाए बस पेशाब निकलने ही वाला है? क्या व्यायाम करते समय मूत्र निकल जाता है? क्या रात में पेशाब करने के लिए उठना पड़ता है? कितनी बार? दिन भर में कितना तरल पदार्थ लेते हैं? क्या कुछ ऐसा है जिससे इस तकलीफ में राहत मिलती हो? किन बातों से तकलीफ बढ़ती है? इस बीमारी के कारण आपको कौन सी समस्या सबसे बड़ी दिखती है? क्या इस तरह मल भी स्वतः निकल जाता है? कितनी बार? क्या इस कारण अपनी गतिविधियों पर अंकुश लगाना पड़ता है? क्या ऐसा लगता है कि योनिमार्ग या
गुदा से कुछ ‘गिर रहा’ है? ये सभी प्रश्न चिकित्सक को रोग का सुसंगत संज्ञान लेने में सहायक हो
सकते हैं।
चिकित्सक द्वारा क्या किया जाना संभव है?
परामर्श के दौरान चिकित्सक यह भी जानने का प्रयास करता है कि क्या कुछ अन्य सहायक कारक भी हैं जो विकार के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। इनमें सम्मिलित हैंः
* व्यक्ति की आरोग्य पृष्ठभूमि
* शारीरिक परीक्षण - खासतौर पर उदरीय एवं योनि तथा गुदा प्रदेश का
* पेशाब का नमूना ताकि किसी प्रकार के संक्रमण, रक्त के अंश या अन्य
अपसामान्यताओं की जांच हो सके
* संक्षिप्त तंत्रिका संबंधी परीक्षण ताकि श्रोणि प्रदेश के स्नायुओं की स्थिति
जानी जा सके
* मूत्र दबाव का परीक्षण - इस दौरान चिकित्सक खांसने या झटका लगने पर असंयत रूप से निकलने वाले मूत्र का प्रेक्षण करते हैं।
चिकित्सक हालांकि व्यक्ति को कुछ विशेष परीक्षण करवाने का भी परामर्श देते हैं किंतु अधिकांश मामलों में विस्तृत आरोग्य पृष्ठभूमि जान लेने एवं सावधानीपूर्वक किए गए शारीरिक परीक्षणों से इस असंयति का संज्ञान संभव है।
मूत्र असंयतिः परीक्षण एवं उपचार
डाक्टर यतीश अग्रवाल
मूत्र असंयति, मूत्राशय का नियंत्रण न रहना, जो कि एक आम और लज्जाजनक स्थिति है - के रोगलक्षण काफी सुस्पष्ट होते हैं और व्यक्ति के खांसने, छींकने या हंसने मात्र से मूत्र निकल जाता है। ऐसी स्थिति में चिकित्सक अनेक यूरोडायनैमिक परीक्षण करवाने का सुझाव दे सकता है ताकि मूत्राशय की कार्यप्रणाली का सुसंगत आकलन संभव हो सके।
यह जान लेना भी जरूरी है कि अधिकांश महिलाओं में मूत्र असंयति
की समस्या होते हुए भी उसके जटिल न होने के कारण इन परीक्षणों की
जरूरत नहीं रहती।
मूत्राशय की कार्यप्रणाली के परीक्षण-----
रिक्ति पश्च (पोस्ट.वॉइड) अवशिष्ट मूत्र का मापन-----
व्यक्ति की, मूत्राशय को पूरी तरह रिक्त कर सकने की क्षमता पर संदेह होने पर, खासतौर पर वृद्ध व्यक्तियों में, मूत्राशय की सर्जरी करवा चुके व्यक्तियों अथवा मधुमेहग्रस्त रोगियों में, इस प्रकार की क्षमता की जांच करने के लिए उक्त परीक्षण की जरूरत पड़ती है।
        पेशाब कर चुकने के बाद बचे हुए मूत्र का मापन करने के लिए विशेषज्ञ मूत्राशय का अल्ट्रासाउंड स्कैन करवाने का परामर्श देते हैं जिसमें ध्वनि तरंगें मूत्राशय एवं उसमें विद्यमान पदार्थ को प्रतिबिंबों में बदल देती है।
मूत्राशय के दबाब का मापन इस प्रकार की समस्या से ग्रस्त कुछ लोगों को सिस्टोमीट्री करवाने की आवश्यकता
पड़ती है जिसके अंतर्गत मूत्राशय और मूत्र संचय के दौरान आसपास के क्षेत्र के दबाब का मापन किया जाता है। प्रक्रिया के अंतर्गत कैथेटर का उपयोग कर मूत्राशय को धीरे.धीरे गर्म जल से भरा जाता है। इसी संभरण के दौरान, दबाब जनित मूत्र असंयति की जांच की जाती है।
उक्त प्रक्रिया को दबाब.प्रवाह के अध्ययन से जोड़ कर यह देखा जाता है कि व्यक्ति के मूत्राशय को पूरी तरह खाली होने के लिए कितना दबाब प्रयुक्त करना पड़ता है।
वॉयडिंग सिस्टो.यूरेथ्रोग्राफी----
मूत्राशय की क्रिया संपादन के दौरान रेडियोलॉजिस्ट प्रतिबिंबन प्रणाली का प्रयोग करते हैं। मूत्राशय के भरने और खाली होने के दौरान वीडियो यूरोडायनेमिक्स द्वारा प्रतिबिंबन विधि से मूत्राशय के चित्र लिए जाते हैं।
प्रक्रिया अत्यंत सरल है। कैथेटर के माध्यम से परिशुद्ध किए गए द्रव को विपरीत रंग के घटक में मिलाकर जो एक्स.रे में दिखाई देता है, व्यक्ति के मूत्राशय में प्रविष्ट कराया जाता है और साथ ही एक्स.रे छवियां रिकार्ड की जाती हैं। ये प्रतिबिंब मूत्राशय भरने पर भी लिए जाते हैं एवं मूत्राशय खाली करने के दौरान भी।
सिस्टोस्कोपी----
इस प्रक्रिया के अंतर्गत एक सूक्ष्मदर्शी यंत्र को मूत्राशय में प्रविष्ट करा कर मूत्राशय एवं मूत्र मार्ग का परीक्षण किया जाता है। यह प्रविधि सामान्यतः प्रयोगशाला में ही संपन्न होती है। रोगी एवं चिकित्सक के बीच परीक्षणों की जरूरत को लेकर चर्चा अवश्य होनी चाहिए और साथ ही उपचार रणनीति पर उनके प्रभाव की भी।
अधिकांश मामलों में रोग की विस्तृत पृष्ठभूमि एवं सतर्क शारीरिक परीक्षण से दबाव मूत्र असंयति का सुस्पष्ट संज्ञान हो जाता है।
स्वयं की जाने योग्य उपचार विधियां----
श्रोणि की पेशियों को सशक्त बनाएं
श्रोणिप्रदेश की पेशियों को बल प्रदान करने वाले सरल व्यायाम (केगल के नाम से व्याख्यायित) करने से श्रोणिप्रदेश की पेशियों एवं मूत्र संवरणी (यूरीनरी स्फिंक्टर) में आश्चर्यजनक लाभ होता है। पारिवारिक चिकित्सक अथवा शरीर विज्ञानी इस संबंध में व्यक्ति की सहायता कर, सही तरीके से व्यायाम करने में सहायता दे सकता
है। अन्य किसी व्यायामचर्या की तरह ही केगल व्यायाम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति उन्हें कितनी नियमितता से करता है।
शुरुआत करें------
सही पेशियां पहचानें - श्रोणिप्रदेश की पेशियों की पहचान के लिए मूत्र विसर्जन आधे में रोक लें। यदि ऐसा करने में सफल हों तो समझिए आपने सही पेशियां पहचान ली हैं। एक बार ऐसा हो जाने पर किसी भी स्थिति में व्यायाम करना संभव हो जाता है हालांकि शुरुआत में व्यक्ति लेटकर व्यायाम करने में सहजता महसूस करता है।
व्यायाम तकनीक का कौशल बढ़ाएं - श्रोणिप्रदेश की पेशियां तान लें, संकुचन पांच सेकंड तक रोकें और फिर पांच सेकंड तक शिथिल करें। इस क्रिया को एक बार में चार से पांच बार दोहराएं। कोशिश कर संकुचन अवधि को दस सेकंड तक पहुंचाएं और संकुचनों के बीच दस सेकंड तक ही शिथिल करें।
एकाग्र रहें - परिणाम की बेहतरी के लिए सिर्फ श्रोणिप्रदेश की पेशियों के संकुचन पर ध्यान दें। कोशिश यह रहे कि, उदर, जांघों और नितंब की पेशियों तक खिंचाव न फैले। व्यायाम करते समय सहज भाव से सांस लेते रहें - रोकें नहीं।
दिन में तीन बार दोहराएं - दिन में 10.10 बार किए गए व्यायाम तीन बार दोहराएं।
सावधानी - केवल व्यायाम द्वारा मूत्र प्रवाह को रोकने और छोड़ने की आदत न डालें। पेशाब करते समय केगल व्यायाम विधि अपनाने से दुष्परिणाम स्वरूप पेशाब पूरी तरह निकलने में दिक्कत खड़ी हो सकती है - ऐसा होने पर मूत्र नलिका में संक्रमण संभव है।
जीवनशैली में आरोग्यकारी परिवर्तन लाएं
धूम्रपान छोड़ने, अतिरिक्त वज़न घटाने या बिगड़ी हुई खांसी से निज़ात पा लेने पर दबाव जनित मूत्र असंयति से तो छुटकारा मिलता ही है सामान्य स्वास्थ्य में भी सुधार आता है।
अतिरिक्त वज़न घटाएं
वज़न बढ़ने पर - बॉडी मास इंडेक्स (बी एम आई) 25 या उससे अधिक होने पर - वज़न में कमी लाने से मूत्राशय और श्रोणिप्रदेश की पेशियों पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव कम होता है। वज़न में सामान्य कमी लाने से ही मूत्र असंयति में फर्क आना शुरू हो जाता है। वज़न घटाने की समस्या में चिकित्सक से परामर्श
किया जाना चाहिए।
रेशेदार (फाइबरयुक्त) आहार अपनाएं
कई बार कब्ज की पुरानी परेशानी भी मूत्र असंयति का कारण बनती है - मल नियमित और मृदु हो जाने से भी श्रोणिप्रदेश पर पड़ने वाला दबाव कम होता है। रेशेदार भोजन अपनाएं - साबुत अनाज, फलियों, फलों और सब्जियों में भरपूर फाइबर होता है जिससे कब्ज में आराम भी मिलता है और उससे बचाव भी होता है।
धूम्रपान त्यागें
धूम्रपान करने से गंभीर किस्म की उग्र खांसी होती है और वह मूत्र असंयति के लक्षणों में इज़ाफा करती है। धूम्रपान के कारण व्यक्ति में ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह अक्षमता मूत्राशय को अधिक सक्रिय कर देती है। धूम्रपान का संबंध मूत्राशय के कैंसर से भी जोड़ा
जाता है। मूत्र विसर्जन को एक चर्या बना लें चिकित्सक रोगी को यह परामर्श भी दे सकता है कि वह मिश्रित असंयति होने पर पेशाब करने की एक नियमावली बना लें। बार.बार पेशाब कर लेने से दबाव मूत्रअसंयति की स्थितियों में कमी लाई जा सकती है।
तरल पदार्थों के सेवन का नियमन करें
चिकित्सक व्यक्ति द्वारा लिए जाने वाले तरल पदार्थों की मात्रा और समय के संबंध में परामर्श भी दे सकता है।
कैफ़ीनयुक्त एवं अल्कोहलयुक्त पेय पदार्थों को उत्तेजक माना जाता है और व्यक्ति का मूत्राशय भी उससे प्रभावित होकर बार बार पेशाब करने के लिए उत्प्रेरित करता है एवं मूत्र असंयति की आशंका भी बढ़ती है। चिकित्सक इसी कारण ऐसे पदार्थों से बचने की सलाह देते हैं खास तौर पर उन दिनों में जब व्यक्ति मूत्र
असंयति से बचना चाहता हो। ऐसी सावधानी रखने पर मूत्र असंयति की परेशानी में लाभ होना संभव है।
त्वचा की अच्छी देखभाल करें
काफी देर तक गीले कपड़ों में रहने से त्वचा विक्षोभित होती है या छिल जाती है। कपड़े गीले होने पर बदल लें ताकि त्वचा सूखी रहे। यदि गीलेपन से बचाव मुश्किल हो तो किसी त्वचा रक्षक क्रीम का उपयोग करना जरूरी है।
यौन प्रवृत्ति एवं मूत्र असंयति
यौन संपर्क के दौरान पेशाब निकल जाना खासा परेशानी का सबब बन सकता है। किंतु इसे यौन अंतरंगता और आनंद में बाधा बनने देना जरूरी नहीं। अपने संगी से इसकी चर्चा करें। शुरुआत में ऐसा करना मुश्किल होगा पर अपने साथी को रोगलक्षणों के बारे में जरूर बताएं। आपसी समझ और विवेक से इस तरह की
परेशानियों से निपटा जा सकता है।
मूत्र विसर्जन पहले ही कर लें
इस तरह की असंयति से बचने के लिए यौन संपर्क के लगभग एक घंटा पहले से तरल पदार्थ न लें और यौन संबंध से पूर्व पेशाब कर लें।
पृथक मुद्रा अपनाएं
यौन मुद्रा बदलने से मूत्र असंयति की दिक्कतों में कमी लाई जा सकती है। स्त्रियों के लिए ऊपरी स्थिति में रहने की मुद्रा से श्रोणिप्रदेश की पेशियों पर बेहतर नियंत्रण संभव हो पाता है।
केगल व्यायाम करें
श्रोणिप्रदेश की पेशियों के व्यायाम (केगल व्यायाम) करने से श्रोणिप्रदेश की पेशियां मजबूत होती हैं और मूत्र असंयति में कमी आती है।
पूर्व तैयारी रखें
यौन संपर्क से पूर्व मूत्र सोखने के लिए तौलिए तैयार रखने या फिर डिसपोज़ेवल पैड बिस्तर पर रखने से चिंता में कमी हो सकती है और मूत्र असंयति होने पर उसे सोख पाना संभव हो जाता है।
आरोग्य उपचार
यह जरूरी नहीं कि उम्र बढ़ने के साथ मूत्र असंयति की शिकायत होने ही लगे। ऐसे उपचार सुलभ हैं जिनसे मूत्र असंयति से जिंदगी पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से काफी हद तक बचाव संभव है। दबाव मूत्र असंयति में आम तौर पर सुधार लाया जा सकता है।
              ऐसा चिकित्सक खोजें जो व्यक्ति के साथ सहयोग कर मूत्र असंयति उपचार का सर्वोत्तम तरीका चुनने में मदद कर पाए। चिकित्सक कई उपचारों की मिश्रित रणनीति अपनाकर मूत्र असंयति की स्थितियों में उससे निज़ात दिलाने या फिर कमी लाने में मददगार सिद्ध हो सकते हैं।
उपकरण
कुछ ऐसे उपकरण हैं जो खास तौर पर महिलाओं के लिए तैयार किए गए हैं जिनसे दबावजनित मूत्र असंयति
का नियंत्रण संभव है। इनमें शामिल हैं -
वेजाइनल पेसरी
इस प्रविधि में एक खास तौर पर तैयार की गई मूत्र असंयति पेसरी चिकित्सक द्वारा योनि में सही जगह पर अवस्थित कर दी जाती है। यह पेसरी अंगूठी जैसे आकार की होती है जिसमें दो उभार होते हैं जिन्हें मूत्र
मार्ग के दोनों तरफ टिका दिया जाता है। इस पेसरी से मूत्राशय के आधार को संबल मिलता है और गतिविधियों के दौरान असंयत मूत्र नहीं निकलता, खासतौर पर तब जब मूत्राशय लटक (प्रोलेप्स्ड) गया हो। सर्जरी से बचाव के लिए यह एक अच्छा तरीका है जिसे अपनाया जा सकता है। पेसरी को बीच.बीच में बाहर निकालने और उसकी सफाई करने की जरूरत पड़ती है। पेसरियों को सामान्यतः उन रोगियों में प्रयुक्त किया जाता है जिन्हें श्रोणिप्रदेश के अवयवों के ढलक जाने की भी शिकायत रहती हो।
मूत्रमार्ग में प्रविष्ट कराया जाने वाला उपकरण
मूत्रमार्ग में प्रविष्ट कराया जाने वाला यह उपकरण एक छोटा सा टैम्पून जैसा होता है जो असंयत मूत्र के रिसाव में अवरोधक का काम करता है। वैसे तो इसे किसी खास गतिविधि में प्रयुक्त किया जाता है किंतु इसे दिनभर लगाया जा सकता है। इतना जरूर है कि बहुत कम प्रसंगों में इनकी जरूरत पड़ती है।
सर्जरी
मूत्र असंयति के उपचार में सर्जरी विकल्पों की संरचना का उद्देश्य मूत्रमार्ग के अवरोधक या फिर संवरणी के मुख के संबल रूप में रहता है।
सर्जरी के इन विकल्पों में प्रमुख हैः
इंजेक्शन द्वारा प्रविष्ट कराए जाने वाले ऐसे घटक जो मूत्राशय का आयतन बढ़ाते हैं।
सिंथेटिक पॉलीसेकेराइड्स या जेल को मूत्रमार्ग के ऊपरी भाग के ऊतकों तक इंजेक्शन द्वारा प्रविष्ट कराया जाता है। इस प्रकार के पदार्थ मूत्रमार्ग के आसपास का क्षेत्र बढ़ा देते हैं जिससे संवरणी की अवरोधन क्षमता में सुधार होता है। इस विकल्प में बाहरी सर्जरी की जरूरत न होने के कारण, अन्य सर्जरी विकल्पों से पूर्व इसका चयन किया जा सकता है। हालांकि यह प्रक्रिया समस्या का
स्थायी समाधान नहीं है। अधिकांश लोगों के लिए इस प्रविधि में बहुविध इंजेक्शनों की जरूरत पड़ती है।
रेट्रोप्यूबिक कॉल्पो सस्पेंशन
सर्जरी की यह प्रक्रिया लेप्रोस्कोपिक विधि से या उदर में छिद्र कर, संपन्न की जा सकती है। इसके अंतर्गत मूत्रमार्ग के ऊपरी भाग एवं मूत्राशय के मुख के ऊतकों को संबल देने और उन्हें ऊपर उठाने के लिए स्नायुओं या फिर अस्थियों में टांके लगाए जाते हैं। इस सर्जरी विकल्प का प्रयोग सामान्यतः अन्य प्रक्रियाओं के साथ
संयुक्त रूप में, उन महिलाओं के लिए किया जाता है जिनमें मूत्र असंयति के साथ.साथ मूत्राशय भी नीचे की ओर ढलक गया हो।
स्लिंग प्रक्रिया
अधिकांश प्रसंगों में मूत्र असंयति ग्रस्त महिलाओं के लिए इसी प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत सर्जन रोगी के स्वयं के ऊतक या सिंथेटिक वस्तु (जाली) की सहायता से एक पाश या लटकन बना देता है जिससे मूत्र मार्ग को संबल मिलने लगता है। स्लिंग प्रक्रिया उन पुरुषों के लिए भी प्रयुक्त की जाती है जिनमें संवरणी से मूत्र निकास की समस्या हो।
(अनुवादः कुंकुम जोशी)
ड्रीम 2047 

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