सर्पदंश - प्रथम उपचार तथा निगरानी
डॉ. यतीश अग्रवाल
सर्पदंश के कारण मानव जीवन की हानि को बहुत हद तक कम किया जा सकता है अगर इस घटना के तुरंत बाद व्यर्थ के वैकल्पिक उपचारों में समय व्यर्थ न किया जाए। पीड़ित को नजदीकी स्वास्थ्य सुविधा केंद्र पर पहुंचना जरूरी होता है। वहां पर चिकित्सक पीड़ित की हालत की जांच करके आगे की उपयुक्त चिकित्सा
शुरू कर सकता है।
सर्पदंश से भारत में प्रति वर्ष 50,000 व्यक्तियों की जान जाती है। अगर पारम्परिक, परन्तु अनुपयोगी तरीकों में समय व्यर्थ न गंवाया जाए तथा पीड़ितों को समय रहते उचित उपचार उपलब्ध कराया जाए, तो उनमें से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। एक डॉक्टर ही पीड़ित की स्वास्थ्य स्थिति का आकलन कर उसके अनुरूप उपचार विधि तय कर सकता है। कई मामलों में सर्पदंश से जीवन को हानि नहीं हो सकती। आंकड़ों के मुताबिक सर्पदंश के 70 प्रतिशत मामले विषहीन सांपों द्वारा होते हैं। विषैले सांपों में भी सिर्फ 50 प्रतिशत मामलों में ही
पीड़ित की जान जाने का खतरा होता है। उपचार विधि स्वास्थ्य की स्थिति के आधार पर निर्भर करती है। अगर सांप का काटा गंभीर नहीं है, तो डॉक्टर सिर्फ घाव की सफाई कर टाइटेनस रोधी टीका दे सकते हैं। इसके विपरीत अगर स्थिति जानलेवा है तो डॉक्टर विषरोधी दवा देने के बारे में विचार कर सकते हैं। विषरोधी दवा सांप के विष की प्रतिरोधी दवा होती है। इसे तैयार करना काफी मशक्कत भरा काम होता है, जिसमें सर्पदंश को
जानवरों, विशेषकर घोड़ों में इंजेक्शन द्वारा डालकर, जानवर के प्रतिरक्षा तंत्र में पैदा हुए प्रतिरक्षी को निकाल कर इसे तैयार किया जाता है। जानवरों के खून में विष मिलने के करीब आठ से दस हफ्ते बाद विषरोधी दवा तैयार होती है। इसे निकालने के लिए जानवरों के शरीर से खून निकाला जाता है और उसे पेचीदी प्रक्रिया द्वारा साफ किया जाता है। विषरोधी दवाएं काफी कीमती होती हैं, लिहाजा उनका प्रयोग सोच.समझकर करना चाहिए। अगर विषरोधी दवा उचित तरीके से और समय रहते दी जाए, तो ये जिंदगी बचाने में मददगार हो सकती है। जिन हालात में इन्हें देना आवश्यक है, वहां जितनी जल्दी इन्हें दिया जाए, उतने ही अच्छे परिणाम मिलते हैं। अगर स्थिति बेकाबू न हो, तो जिन स्वास्थ्य केन्द्रों या अस्पतालों में विषरोधी दवा उपलब्ध है, वे इन गंभीर परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं। विवेकपूर्ण प्रथम उपचार विधि अगर आपके परिवार के किसी सदस्य, पड़ोसी या किसी परिचित को सर्पदंश का शिकार होना पड तो जितनी जल्दी हो सके निकटवर्ती स्वास्थ्य केन्द्र में आपातकालीन उपचार आवश्यक है।
अगर सांप काटे के स्थल का रंग परिवर्तित होने लगे, सूजन आ जाए, या दर्द हो, तो आपातकालीन उपचार अनिवार्य है। जब तक मुकम्मल उपचार शुरु नहीं होता, तब तक निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिएः
धीरज रखें
धीरज रखें और जिस स्थल पर सांप ने काटा है, वहां से पीड़ित को दूर हटाएं। पीड़ित को धीरज बंधाएं, और उसकी व्यग्रता दूर करने की कोशिश करें। उसे ये बताएं कि अधिकांश सांप विषहीन होते हैं। डर, तनाव तथा उत्तेजना से दिल की धड़कन और रक्त प्रवाह तेज होते हैं। ऐसा होने पर विष शरीर में तेजी से फैलता है।
समय नोट करें
सांप के काटने का समय नोट करें। ये छोटी सी सूचना इलाज में डॉक्टर के लिए काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है।
सांप का पीछा न करें
सांप को पकड़ने, मारने या उसका पीछा करने में समय बर्बाद न करें। हो सके, तो सांप की तस्वीर ले लें। या उसका रंग और आकार याद कर लें, जिसे डॉक्टर को बताया जा सके। अगर कोई सांप को मार भी देता है, तो उसे भी अस्पताल ले जाएं। इससे डॉक्टर को सांप का प्रकार पहचानकर उसके अनुरूप उपचार विधि सुनिश्चित करने में आसानी होगी। सभी तरह की शारीरिक क्रिया बंद कर दें आदर्श तो ये होता है कि सर्पदंश के शिकार
व्यक्ति को बिलकुल शांत बैठना चाहिए। उसे टहलना नहीं चाहिए। अगर सुरक्षित हो तो फर्श पर सीधा लेट जाना चाहिए तथा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि शरीर के काटे हुए हिस्से को छाती से ऊपर न ले
जाएं, अन्यथा विष तेजी से शरीर में फैलने लगेगा। पीड़ित को किसी वाहन में निकटवर्ती स्वास्थ्य केन्द्र में ले जाना चाहिए। पीड़ित के शरीर में किसी भी प्रकार की गतिशीलता से विष शरीर में तेजी से फैलेगा।
घाव मत धोएं
अक्सर काटे गए अंग की सतह से विष हटाने के लिए पीड़ित व्यक्ति, परिवार का सदस्य या मददगार पहले घाव को धोने के विषय में सोचता है। ये घातक है। इससे शरीर में विष फैलने की प्रक्रिया तेज होती है। लिहाजा ऐसा करने से परहेज करना चाहिए।
चुस्त कपड़े और गहने हटाएं
अगर सांप के काटने के स्थल पर चुस्त कपड़े, जूते, अंगूठी, घड़ी या आभूषण हैं तो सूजन से पहले ही उन्हें हटा लेने की कोशिश करें। सांप के काटने के कारण आसपास की जगह में सूजन हो सकती है और ये वस्तुएं रक्त प्रवाह अवरुद्ध कर सकती हैं।
पीड़ित अंग को गतिहीन बनाएं
शरीर के जिस अंग में सांप ने काटा है, उसे तख्ती (स्प्लिंट) या गल.पट्टी (स्लिंग) बांधकर गतिहीन बनाएं। इसके लिए पट्टी या कपड़े का प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन ये सावधानी बरतनी चाहिए कि इससे काटे हुए अंग पर दबाव न पड़े और रक्त प्रवाह न रुके। चुस्त बंधन द्वारा किसी तरह का दबाव न बनाएं। इससे कोई लाभ नहीं होता, उल्टे हानि हो सकती है। स्प्लिंट के प्रयोग का उद्देश्य गति तथा मांसपेशियों में संकुचन रोकना है। क्योंकि इससे रक्त और लसीका तंत्र में विष का घुलना बढ़ सकता है।
काटे हुए अंग को न बांधें
काटे हुए अंग के आसपास बांधकर रक्त प्रवाह को न रोकें। पारम्परिक तरीकों में लोग सांप के विष
को शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलने से रोकने के लिए काटे हुए अंग के आसपास रस्सी, बेल्ट, सुतली या
कपड़ा बांध देते हैं। उपचार के ऐसे पारम्परिक तरीके के प्रयोग की अनुमति नहीं दी जाती। इससे कोई लाभ नहीं होता। अक्सर ये विष को फैलने से रोकने में नाकाम रहते हैं। दूसरी बात, कि इससे पीड़ित और उसके परिजनों में सुरक्षा की झूठी भावना घर करती है, जिससे अस्पताल पहुंचने में देरी होती है। तीसरी बात, कि इस प्रक्रिया में कई तरह के जोखिम और पेचीदगी का भय होता है। अगर पट्टी को अधिक कसकर बांधा गया तो प्रभावित अंग में रक्त प्रवाह पूरी तरह बंद हो सकता है, जिससे वह अंग गल सकता है। भारत में सर्पदंश के मामलों में ये बात
अक्सर होती है। सबसे बुरा तो तब होता है, जब चुस्त बंधन को ढीला किया जाता है। विष मिले हुए तेज रक्त प्रवाह से तंत्रिका पक्षाघात हो सकता है, रक्त दाब कम हो सकता है या रक्त का थक्का जम सकता है दृप्रभाव की विशिष्टता विष के प्रकार के अनुसार होती है।
काटी हुई जगह पर बर्फ के प्रयोग से परहेज
काटी हुई जगह को ठंडा करने के लिए बर्फ का प्रयोग न करें।
विष दूर करने की कोशिश न करें
सांप के काटे हुए स्थल पर कट न लगाएं और मुंह से चूसकर विष निकालने की कोशिश न करें। चूषण कार्य के लिए पम्प का भी इस्तेमाल न करें। पहले सांप का जहर निकालने के लिए चूषण विधि का प्रयोग किया जाता था, लेकिन ये उपयोगी नहीं है और इस विधि से लाभ के बजाय नुकसान हो सकता है। पीड़ित के दंश प्रभावित अंग में कट लगाने से रक्तस्राव बढ़ सकता है और विष के कारण रक्त का थक्का जमने की सामान्य प्रक्रिया रुक सकती है। साथ ही कट लगाने से पीड़ित में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
कैफीन या अल्कोहल से परहेज
पीड़ित को चाय, कॉफी या एल्कोहल का पान नहीं करना चाहिए। इससे शरीर में विष फैलने की प्रक्रिया तेज हो सकती है।
पारम्परिक उपचारक लाभदायक
नहीं हो सकते
पारम्परिक उपचारकों पर वक्त बर्बाद करने का कोई लाभ नहीं है। उन उपचारों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। उनके क्रियाकलाप मनोवैज्ञानिक स्तर पर लाभदायक हो सकते हैं, लिहाजा विषहीन सांपों के काटे जाने पर वो कारगर साबित हो सकते हैं।
बेवजह दवाएं न लें
पीड़ित को बिना डॉक्टर के निर्देश के कोई दवा न दें। जब तक डॉक्टर न कहें, तब तक पीड़ित को कोई दवा न दें। घरेलू तथा पारम्परिक दवाएं संक्रमण बढ़ा सकती हैं और इलाज के रास्ते में भी परेशानियां खड़ी कर सकती हैं।
निकटवर्ती अस्पताल पहुंचें
जिस व्यक्ति को सांप ने काटा है उसे तुरंत निकटवर्ती सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र या अस्पताल पहुंचाना चाहिए।पारम्परिक दवाएं देने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। सर्पदंश के उपचार में वे लाभदायक साबित नहीं हुए हैं और प्रभावशाली उपचार में बिला वजह विलम्ब खतरनाक साबित हो सकता है।
अस्पताल ले जाते समय मरीज पर नजर रखें
जिस समय मरीज को निकटवर्ती अस्पताल ले जाया जा रहा हो, उसकी शारीरिक गतिविधियों पर लगातार नजर बनाए रखें। अगर उसके शरीर में कोई नया लक्षण दिखे, जैसे पलकें बंद होना, तो अस्पताल पहुंचने पर तुरंत उसके बारे में डॉक्टर को बताएं। अस्पताल के रास्ते में मरीज को अगर सदमा पहुंचने का संकेत मिलता है तो स्वास्थ्य कार्यकर्ता उसे जिन्दा रखने के लिए प्रथम उपचार की मदद ले सकते हैं। एक बात याद रखनी चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके अस्पताल पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए। व्यर्थ बिताए गए हर पल से वांछित परिणाम
प्राप्त करने में परेशानी बढ़ेगी। सर्पदंश से होने वाली कई मौतें स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचने में देरी की वजह से होती हैं।
निरीक्षण करना -
इन लक्षणों पर निगाह रखें
परिदृश्य 1ः जब शरीर में विष नहीं पहुंचा हो कुछ लोगों को शक होता है या वे कल्पना कर लेते हैं कि उन्हें सांप ने काट खाया है, या उन्हें वास्तव में सांप ने काटा हो, तो उनमें कुछ विशेष लक्षण दिख सकते हैं, इसके बावजूद कि उनके शरीर में विष नहीं गया हो।
भय तथा उत्तेजना के कारण दिखने वाले लक्षण
अधिक उत्तेजना के कारण मरीज तेज सांस लेने लगता है। चरम स्थिति में उसे सुई चुभोने सरीखा महसूस होता है, हाथों और पैरों में अकड़न होती है, और आंखें उनींदी होने लगती हैं। कुछ मरीजों को वैसोवेगल सदमा हो सकता है, जिसके कारण उन्हें चक्कर आने लगता है और दिल की धड़कन बहुत धीमी होने के कारण बेहोशी छा जाती है। कुछ मरीजों में झुंझलाहट पैदा होती है, जिसके कारण भ्रामक लक्षण दिख सकते हैं। रक्त दबाव और
स्पंदन दर बढ़ सकती है, जिसके कारण पसीना होना तथा सिहरन हो सकती है। ये लक्षण विशुद्ध रूप से
उस भय के कारण पैदा होते हैं, कि एक विषैले सांप ने काट खाया है।
गलत प्रथम उपचार तथा पारम्परिक इलाज के कारण उत्पन्न होने वाले लक्षण----
गलत प्रथम उपचार तथा पारम्परिक इलाज के कारण भी महत्त्वपूर्ण लक्षण पैदा हो सकते हैं। पट्टी या तख्ती के दबाव के कारण दर्द तथा सूजन पैदा हो सकती है एवं रक्त प्रवाह रुक सकता है। आयुर्वेदिक दवाएं खाने से उल्टियां हो सकती हैं। पौधों का रस आंख में डालने पर नेत्र.शोथ की बीमारी हो सकती है। श्वसन नलिका में जबरदस्ती तेल प्रवाहित करने से न्यूमोनिया या ब्रोन्कोस्पाज्म हो सकते हैं, कानों के ड्रम को नुकसान पहुंच सकता है और न्यूमोथ्रैक्स हो सकता है। काटने, दागने, गर्म तरल में डुबोने और आग पर सेंकने के कारण भयानक जख्म हो सकता है।
परिदृश्य 2ः
जब शरीर में विष का प्रवेश हुआ हो
प्रारम्भिक लक्षण
सर्पदंश से त्वचा पर तुरंत दर्द शुरु हो सकता है, जिसके बाद सर्पदंश की जगह जलन, दरार और तेज दर्द हो सकते हैं। सर्पदंश की जगह सूज सकती है, जो धीरे.धीरे बढ़कर दूसरे अंगों में भी फैल सकती है । दर्द भरी सूजन से लसिका पर्व यानि लिम्फ नोड में गांठ पड़ सकती है। हालांकि करैत, समुद्री सांप और कोबरा के कुछ प्रकारों के सर्पदंश में दर्द नहीं भी हो सकता है तथा सर्पदंश की जगह सूजन भी काफी कम हो सकती है। अक्सर करैत के काटने पर सोया हुआ व्यक्ति नींद से जागता भी नहीं और हो सकता है कि सर्पदंश के स्थान पर काटे का कोई निशान भी न दिखे।
विष फैलने के लक्षण------
सांपों की प्रजाति तथा शरीर में गए विष केआधार पर सर्पदंश के लक्षण भिन्न हो सकते हैं। कभी.कभार मृत सांप की जांच कर उनकी पहचान कर ली जाती है। मरीज के दिये विवरण, या सर्पदंश की परिस्थितियों अथवा उस सांप की प्रजाति के विष की जानकारी होने से भी कुछ अंदाजा लग सकता है।
काटने वाले सांप के बारे में दी गई सूचना-------
डॉक्टर के लिए सही विषरोधी दवा चुनने में मददगार साबित हो सकती है। वह आगामी परिस्थितियों का आकलन कर सकता है, तथा उसके आधार पर उपचार विधि सुनिश्चित कर सकता है। अगर काटने वाले सांप के बारे में जानकारी नहीं मिलती, तो मरीज और उसके लक्षणों की गहन निगरानी की जानी चाहिए तथा प्रयोगशाला में जांच के नतीजों का आकलन करना चाहिए। इन परिणामों को दूसरे सबूतों के साथ संयोग कर अनुमान लगाया
जा सकता है कि सांप की किस प्रजाति ने काटा है।
काटी गई जगह पर स्थानीय लक्षण------
- दंत छिद्र का निशान
- काटे गए अंग पर दर्द
- काटे गए स्थान से रक्तस्राव तथा जलन
- लसिका वाहिनी शोथ या लिम्फैन्जाइटिस (काटे
गए अंग पर लाल धारी बनना)
- लिम्फ नोड में सूजन
- सूजन, लाल पड़ना, जलन
स तेज दर्द, संक्रमण, पस बनना तथा उतकों का
गलना
सामान्यीकृत लक्षण और चिह्न-------
सामान्य।--
उबकाई आना, उल्टी होना, बेचौनी, पेट में दर्द,
कमजोरी, उनींदापन, तथा खिन्नता।
परिसंचारी लक्षण---
वाइपराइड प्रजाति के विषैले सांप के काटने से
देखने में परेशानी, धुंधलापन, चक्कर आना, बेहोशी छाना, सदमा पहुंचना, रक्त दाब कम होना, दिल की धड़कन में अनियमितता, फेफड़ों में पानी भरना और आंखों का लाल होकर सूजना जैसे लक्षण दिखते हैं।
रक्त स्राव और थक्का जमने में परेशानी---
वाइपराइड प्रजाति के विषैले सांपों के काटने पर सर्पदंश के स्थान से लगातार रक्तस्राव होता है, नसें कट जाती हैं, और अगर पुराने घाव हों तो उनसे भी रक्तस्राव शुरु हो जाता है। इनके अलावा पीड़ित के मसूड़ों से नियमित
रूप से खून आ सकता है, नाक बह सकती है, दिमाग और फेफड़ों से रक्तस्राव हो सकता है, खून की उल्टियां हो सकती हैं, गुदा से खून आ सकता है, रक्तमेह हो सकता है, योनि से खून आ सकता है, आंखों, त्वचा तथा रेटिना में भी खून आ सकता है।
वेस्टर्न रशेल वाइपर या डैबोइरसली के काटने पर कभी.कभी दिमाग की धमनी जाम हो जाती है।
तंत्रिका लक्षण---
विषैले सांपों, जैसे एलापिडा प्रजाति के कोबरा और रशेल वाइपर के काटने पर तंत्रिका से जुड़ी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे उनींदापन, अकड़न तथा सिहरन, स्वाद तथा गंध में अनियमितता, आंखों में भारीपन, पुतलियों का गिरना, पुतलियों की बाहरी मांसपेशियों में पक्षाघात, चेहरे की मांसपेशियों में पक्षाघात, कपाल की नसों से संचालित मांसपेशियों में पक्षाघात, नाक से आवाज निकलना, बोलने में परेशानी, नाक से पानी बहना, स्राव निगलने में परेशानी, सांस लेने में परेशानी तथा शिथिलता।
कंकालीय मांसपेशियों के लक्षण----
समुद्री विषैले सांप तथा करैत की कुछ प्रजातियों जैसे बंगरास्नाइगर और बी कैंडिडस, वेस्टर्न रशेल वाइपर दबोइआ रसेली के काटने पर मांसपेशियों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। तेज दर्द हो सकता है, मांसपेशियों में कभी अकड़न तो कभी शिथिलता हो सकती है, जबड़ों में अकड़न हो सकती है, मूत्र में मायोग्लोबिन आ सकता है, रक्त में पोटैशियम का अनुपात सामान्य से काफी अधिक हो सकता है, हृदय गति रुक सकती है तथा गुर्दा काम करना बंद कर सकता है।
गुर्दे से जुड़े लक्षण----
वाइपराइड प्रजाति या समुद्री सांप के काटने पर पीठ में दर्द हो सकता है, मूत्र में खून आ सकता है, मूत्र में हीमोग्लोबिन बढ़ सकता है, मूत्र में मायोग्लोबिन आ सकता है, मूत्र बनना बंद हो सकता है तथा गुर्दे की प्रक्रिया बंद होने के लक्षण देखने को मिलते हैं। इनमें पीड़ित को अम्लता की शिकायत, सांस लेने में परेशानी, हिचकी आना, नाक बहना और छाती में दर्द की शिकायत हो सकती है। अंतरूस्रावी लक्षण रशेल वाइपर के काटने पर कफ ग्रंथि और गुर्दे की कार्यक्षमता कम हो जाती है। गंभीर स्थिति में सदमा लग सकता है तथा रक्त शर्करा में अत्यधिक कमी आ सकती है। सर्पदंश के महीनों और सालों बाद तक पीड़ित को कमजोरी, पशम बालों का झड़ना, नपुंसकता, मासिक धर्म में अनियमितता, अंडकोष का आकार घटना तथा हायपोथायरायडिज्म की शिकायत रहती है।
सर्पदंश का उपचार----------
सर्पदंश के शिकार व्यक्ति का विस्तृत नैदानिक आकलन और जांच के पश्चात डॉक्टरों की टीम उपचार का सर्वश्रेष्ठ उपाय सुनिश्चित कर सकती है। कुछ जहरीले सांपों का काटना जानलेवा नहीं होता। सर्पदंश की गंभीरता काटे गए अंग, शरीर में विष की मात्रा, उम्र तथा पीड़ित के स्वास्थ्य पर निर्भर करती है।
अगर स्थिति जान लेने जैसी गंभीर हो, तो डॉक्टर विषरोधी दवा दे सकते हैं। विषरोधी उपचार से विष के फैलने से रुकने तथा शरीर के अन्य अंगों के प्रभावित होने से बचने के कारण स्वास्थ्यलाभ की उम्मीद की जाती है। हालांकि इस प्रक्रिया म समय लगता है तथा सांप के जहर से गंभीर रूप से पीड़ित व्यक्ति को जीवन समर्थक प्रणाली, जैसे सदमे का उपचार, वेंटिलेशन की सहायता, तथा गुर्दे का डायलिसिस जैसी प्रक्रियाओं की उस समय तक मदद लेनी पड़ सकती है, जब तक प्रभावित अंगों का नुकसान दूर नहीं हो जाता।
सर्पदंश के शिकार व्यक्ति का बाहरी अवलोकन------
सर्पदंश के शिकार व्यक्ति का बाहरी अवलोकन परिवर्तनीय होता है। विषहीन सांपों के काटने पर बाहरी अवलोकन में कोई अन्तर नहीं आता, अगर घाव की सफाई कर उसका उचित इलाज किया जाता है। जहरीले सांप के काटने पर भी बाहरी अवलोकन ठीक रह सकता है, अगर पीड़ित को सर्पदंश के तुरंत बाद आपात उपचार उपलब्ध कराया जाए। बच्चों, कमजोर प्रतिरोधी क्षमता वाले व्यक्तियों और गहराई तक दंश का शिकार होने वालों की तुलना में सर्पदंश का हलका शिकार होन वाले, स्वस्थ वयस्कों का बाहरी अवलोकन बेहतर रहता है।
सर्पदंश से बचाव----
कई मामलों में सर्पदंश से बचा जा सकता है। बीहड़ स्थल में सांपों के करीब नहीं आना चाहिए तथा उन्हें नहीं छेड़ना चाहिए। जिन जगहों पर सांपों के होने की आशंका हो, वहां जाने से बचना चाहिए, जैसे लम्बी घास से भरे मैदान, पत्तियों का जमावड़ा, चट्टान और लकड़ियों के गट्ठर इत्यादि। फिर भी सामने सांप आ जाएं तो उन्हें निकलने के लिए जगह देनी चाहिए और उन्हें छिपने देना चाहिए। सांपों की प्रकृति इंसानों से दूर रहने की होती है। जब घर के बाहर कार्य करना पड़े, जहां सांपों के छिपे होने की संभावना हो, तो ऊंचे जूते, पूरी लम्बाई की पैंट और चमड़े के दस्ताने पहनें। रात में गर्मियों में घर के बाहर काम करने से बचें, क्योंकि यही वो समय है, जब सांप सर्वाधिक सक्रिय होते हैं।
(अनुवादः अगस्त्य अरूणाचल)
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