पीपल 24 घण्टे ऑक्सीजन नहीं छोड़ता
हरित प्रणाम, इन दिनों दैनिक भास्कर में छपी एक फ़ोटो काफी वायरल हो रही है इस फ़ोटो में एक व्यक्ति पीपल के पेड़ पर कुर्सी लगाकर बैठा हुआ है इस फ़ोटो के साथ जो विवरण दिया हुआ है उसमें अखबार ने लिखा है कि पीपल 24 घंटे ऑक्सीजन देता है I इस खबर के अलावा भी हम अक्सर यह सुनते- पढ़ते हैं कि पीपल 24 घंटे ऑक्सीजन देता है बरगद के बारे में भी कई लोग ऐसा दावा करते हैं कुछ दिन पहलें राजस्थान के जालोर जिले से दैनिक भास्कर में ऐसी ही एक और खबर छपी जिसमें एक डॉक्टर कोरोना मरीजों को खेजड़ी के पेड़ के नीचे सुलाकर उनका ऑक्सीजन स्तर सुधारने की बात कह रहे हैं I इस खबर में भी अखबार ने दावा किया है कि खेजड़ी का पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है हालांकि डॉक्टर के हवाले से यह दावा नहीं किया गया बल्कि अखबार ने अपनी तरफ से इसे लिखा है लेकिन डॉक्टर के हवाले से भी इस खबर में एक दूसरी बात लिखी गयी है, डॉक्टर ने यह दावा किया है कि खेजड़ी का पेड़ नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करता है इस कारण खेजड़ी अधिक ऑक्सीजन छोड़ती है I
अगर हम वैज्ञानिक आधार पर देखें तो ये तीनों ही बातें गलत और अवैज्ञानिक है क्योंकि इन तीनों दावों को एक भी वैज्ञानिक शोध प्रमाणित नहीं करता है I आज की पोस्ट में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि कोई भी पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन क्यों नहीं छोड़ सकता I
पेड़ हमारी तरह ही श्वसनक्रिया करते हैं यानि वे जब सांस लेते हैं तो ऑक्सीजन अंदर खींचते हैं व जब सांस छोड़ते हैं तो कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं और वे ऐसा 24 घण्टे करते हैं यानि पेड़ कार्बनडाइऑक्साइड तो 24 घण्टे छोड़ता है जहां तक ऑक्सीजन छोड़ने की बात है तो पेड़ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन बनाते है यह क्रिया सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में होती है यानि दिन के समय , इस क्रिया में पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड अंदर खींचते हैं और उसमें से कार्बन को स्थिर कर लेते हैं व ऑक्सीजन को बाहर छोड़ देते हैं I पेड़-पौधे तीन तरह से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते हैं ये तीन तरीके हैं - C3, C4 और CAM, अधिकांश पेड़-पौधे C3 व C4 मार्ग का इस्तेमाल करते हैं इन दोनों में भी C3 (Calvin cycle) ही ज्यादातर द्वारा इस्तेमाल किया जाता है I लेकिन रेगिस्तान में उगने वाले कुछ पादप जैसे कैक्टस व सकलेंट्स (खेजड़ी, जाल आदि नहीं) और epiphyte (ऐसे पादप जो किसी दूसरे पादप पर उगते हैं लेकिन परभक्षी नहीं होते ) वे CAM ( Crassulacean Acid Metabolism) मार्ग का अनुसरण करते हैं ये पादप दिन के समय अपने रन्ध्र बंद रखते हैं और रात के समय इन्हें खोलकर कार्बन डाइऑक्साइड को malate के रूप में फ़िक्स करते हैं व ऑक्सीजन छोड़ते हैं I वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि दिन में सूर्य के प्रकाश के कारण होने वाली जल की क्षति को रोका जा सके I जो पौधे CAM मार्ग का अनुसरण करते हैं वे दिन में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं करते हैं केवल सूर्योदय के समय व शाम ढलते समय ही उनके रन्ध्र खुले रहते हैं यानि वे दिन में ऑक्सीजन नहीं छोड़ते I इस प्रकार जो पादप C3 व C4 मार्ग का अनुसरण करते हैं वे दिन में ऑक्सीजन छोड़ते हैं और जो CAM मार्ग का अनुसरण करते हैं वे रात में व सूर्योदय-सूर्यास्त के समय कुछ देर के लिए I
अब बात करते हैं पीपल की - अगर पीपल का बीज किसी दूसरे पेड़ पर (कुँए या तालाब की मुंडेर पर नहीं ) ऊग जाता है तो जब तक उसकी जड़ें जमीन में नहीं पहुंच जाती तब तक वह epiphyte यानि अधिपादप का जीवन जीता है और इस दौरान वह CAM मार्ग का अनुसरण करता है यानि रात में रन्ध्र खोलकर कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और ऑक्सीजन छोड़ता है लेकिन दिन में नहीं I परन्तु जैसे ही उसकी जड़ें जमीन में पहुंच जाती है वह CAM मार्ग को छोड़कर C3 मार्ग पर आ जाता है यानि दिन में ही प्रकाश संश्लेषण करने लगता है I हमारे आस-पास जितने भी पीपल हैं उनमें से अधिकतर जमीन में लगे हुए हैं हम जो भी पीपल लगाते हैं वे सभी जमीन में ही लगाते हैं बाकी कुएं व तालाब आदि की मुंडेर पर भी अक्सर पीपल ऊगते रहते हैं लेकिन दूसरे पेड़ के ऊपर ऊगे हुए पीपल कम ही नजर आते हैं और जो ऊगते हैं वे भी दूसरे पेड़ के ऊपर ही विशाल वृक्ष नहीं बन जाते बल्कि थोड़े समय के लिए ही वे CAM मार्ग पर रह पाते हैं क्योंकि जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं उनकी जड़ें जमीन में चली जाती हैं और वे C3 मार्ग पर आ जाते हैं I इस वैज्ञानिक प्रक्रिया को हम एक और चीज से भी समझ सकते हैं वो ये कि हमारे बुजुर्ग हमेशा ही रात में पीपल के पेड़ के नीचे सोने से मना करते रहे हैं वो ये कहते थे कि पीपल में भूत का वास होता है इसलिए रात को इसके नीचे नहीं सोना चाहिए दर असल रात में कार्बन छोड़ने के कारण पीपल के नीचे ऑक्सीजन की कमी से दम सा घुटने लगता है इस कारण वे ऐसा कहते थे क्योंकि उनके पास किसी वैज्ञानिक शोध के नतीजे तो उपलब्ध थे नहीं इसलिए उन्होंने अनुमान लगाया कि ऐसा काम कोई भूत करता होगा जबकि वास्तव में यह भूत कार्बन डाइऑक्साइड थी I कुछ लोग यह भी कहते हैं कि पीपल चाँद की रोशनी में भी प्रकाश संश्लेषण करता है हालाँकि किसी भी पेड़ के सम्बंध में ऐसा कोई प्रामाणिक शोध उपलब्ध नहीं है।
अब अगर खेजड़ी की बात करें तो खेजड़ी की जड़ों में पाया जाने वाला जीवाणु जिसका नाम Ensifer sp. PC2 है वह जमीन के अंदर नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करता है पहली बात तो यह कि नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले अधिकतर जीवाणुओं को बेहद कम ऑक्सीजन या बिल्कुल ऑक्सीजन रहित वातावरण चाहिए वरना ये नाइट्रोजन स्थिरीकरण कर नहीं पाते इसलिए ये अपने आस-पास जमीन में मौजूद ऑक्सीजन को खत्म या कम करते हैं दूसरी बात यह कि नाइट्रोजन स्थिरीकरण की सारी प्रक्रिया जमीन के अंदर होती है उसका बाहर की ऑक्सीजन से कोई लेना- देना नहीं है I
निष्कर्ष यह है कि न तो पीपल या कोई भी दूसरा पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है और न ही खेजड़ी की जड़ों में पाए जाने वाले जीवाणु की वजह से होने वाली नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया के कारण खेजड़ी के नीचे ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है अपितु उन डॉक्टर साहब की बात पढ़कर मुझे अफसोस हुआ कि उन्हें नाइट्रोजन स्थिरीकरण की सामान्य सी प्रक्रिया की भी जानकारी नहीं है I
अब दो सवाल यह पैदा होते हैं पहला तो यह कि जो कोरोना मरीज खेजड़ी या पीपल के पेड़ के नीचे लेटे हुए थे उनका ऑक्सीजन स्तर कैसे बढ़ा ? इस सवाल का जवाब बड़ा सीधा और स्पष्ट है- हमारे घर के अंदर के मुकाबले दिन के समय पेड़ों के नीचे ऑक्सीजन की मात्रा व शुद्धता दोनों ही ज्यादा होती है अब चाहे वो कौनसा भी पेड़ क्यों न हो इसलिए अगर आप शीशम, करंज, नीम, जाल आदि के नीचे लेटेंगे तो भी ऑक्सीजन स्तर सुधर जाएगा I दूसरा सवाल यह कि अगर ऐसी बात है तो फिर लोग 24 घण्टे वाले ऑक्सीजन की बात क्यों करते हैं ? दर असल जो व्यक्ति नैतिक रूप से कमजोर होता है वह अपनी वाह-वाही या अपने स्वार्थ के लिए अप्रमाणित बातों को फैलाता है अगर वह व्यक्ति किसी पद पर बैठा होता है तो लोग उसकी बात को हाथों -हाथ लेते हैं और उसे आगे से आगे बढ़ा देते हैं I हमारे यहां पीपल के पेड़ में धर्मिक आस्था है कुछ लोगों ने इस धार्मिक आस्था से शरारत करते हुए अपनी वाह-वाही के लिए ये बकवास करनी शुरू कर दी कि पीपल का पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन देता है और लोग अपने बुजुर्गों के अनुभव को लात मारकर इन लफंगों की बातों को आगे बढ़ाने लगे I इस बात को आप कोरोना के इलाज के लिए गोबर स्नान और गौ मूत्र सेवन से भी समझ सकते हैं हम जैसे किसान समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले लोगों के पूर्वज हजारों सालों से गाय पालते आ रहे हैं लेकिन उन्होंने गाय का दूध पीया, घी खाया लेकिन गोबर से नहीं नहाए और न ही मूत पीया परन्तु ऐसे लोग जिन्होंने हमारे जितनी तादाद में इतिहास के किसी भी दौर में गायों को नहीं पाला वे लोग हमें गाय का मूत पीने और गोबर लपेटने की सलाह दे रहे हैं और हमारे भी कुछ नासमझ बहन-भाई उनकी हां में हां भी मिला रहे हैं अगर आने वाले सालों में ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो इन बातों की सेंधमारी इतनी ज्यादा हो जाएगी कि किसी दिन कोई व्यक्ति आकर मंच पर खड़ा होकर बड़ी कुटिलता और बेशर्मी से यह कहेगा कि आपके पूर्वज गोबर और गौ मूत्र का सेवन करते थे और हम कहेंगे कि हां जी करते थे, इसलिए निवेदन है कि तर्कशील बनें और बिना जांच-पड़ताल के हर तरह की बात को अपने गले का हार बनाने से बचें I
खेजड़ी और जाल के बारे में एक बेहद शानदार जानकारी अगली पोस्ट में आपके साथ साझा करूँगा I हमने पर्यावरण पाठशाला ग्रुप के लिए एक नया व्हाट्सएप नंबर लिया था जिसके जरिए उन 2500 साथियों को पर्यावरण पाठशाला ग्रुपों से जोड़ना था जिन्होंने मुझसे अपने नम्बर साझा किए थे लेकिन उस नम्बर पर व्हाट्सएप में अचानक कोई तकनीकी समस्या आ गयी इसलिए जैसे ही उसका समाधान होगा आप सबके पास मेसेज आ जाएगा अगर समस्या दूर न हुई तो दूसरा नम्बर लेकर उससे मेसेज भिजवाऊंगा I
संलग्न फ़ोटो हमारे परिवार के सबसे बुज़ुर्ग हरित सदस्य की है । सादर
#पर्यावरण_पाठशाला #पारिवारिक_वानिकी Shyam Sunder jyani
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