कोरोना के खिलाफ जंग
गांव-गांव में महामारी की रोकथाम का विरोध कितना सार्थक है ? सही है कि सरकार के काम का विरोध करने के काम में एक रोमांच है । सरकार के डर से बाहर आने का रोमांच भी है । और यह रोमांच आमजन को आकर्षित भी करता है । गांव-गांव में सरकार के विरोध के रूप में कोरोना नियंत्रण के अभियान का विरोध किया जा रहा है । मगर गम्भीरता से सोच जाए तो इस कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के प्रयासों का विरोध वास्तव में सरकार का विरोध नहीं है । इससे महामारी के बढ़ने के हालात बढ़ जाते हैं ।सरकार का विरोध तो उसकी गलत नीतियों का विरोध होना चाहिए जैसा कि किसान आंदोलन के रूप में हो रहा है । गांव में कोरोना रोकथाम के कार्यक्रम के विरोध को किसानों के विरोध के रूप में प्रचारित किया जा रहा है जो वास्तव में परोक्ष रूप में से किसान आंदोलन को भी नुकसान कर रहा है । यह किसानों के अन्दोलन को पक्ष और विपक्ष में विभाजित करने की साजिश है के रूप में ही देखा और समझा जाना चाहिए । इस में किसी भी तरह से अव्यवस्था फैलाने की मंशा है ताकि किसान आंदोलन को इसके बहाने से तोड़ने का दबाव बनाया जा सके ।इस प्रकार कोरोना रोकथाम के कार्यकरण का विरोध किसान आंदोलन को अपूरणीय नुकसान पहुंचा सकता है । यही सरकार की मंशा भी है ।
हमें सरकार की गलत नीतियों का विरोध करना है महामारी की रोकथाम का नहीं । यह बहुत ही सावधानी से चलने का दौर है । सरकार से और कोरोना से दोनों के खिलाफ जंग को जीतने के प्रयास ही किये जाने चाहिए।
जन स्वास्थ्य अभियान हरियाणा
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